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कलम से हत्या - 05 in Hindi

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प्रॉफेसर की मौत का किस्सा सुनाते हुए किरण की माँ इतना और सुबह चुकी थी जिसका हिसाब लगाना मुश्किल था । फिर भी नीरज है की उन ब्लैक मेल पत्रकारों की भूख एक नारी का उजडा हूँ । सिंधु किसी बेटी के सिर से पिता के साया का उठ जाना और इस कलयुग में बहुत एक सुख सुविधाओं का सामान जुटाने की होड में विलासी लोगों द्वारा दौलत कमाने के जुनून में भागते लोग इन सब को मिलाकर उन आंसुओं का हिसाब लगाने की कोशिश कर रहा था । नीरज मंदिर आया था मन की शांति के लिए लेकिन प्रोफेसर माथुर की मौत का सच जानकर उसका मन अशांत हो गया था । पत्रकारिता को समाज और देश सेवा का माध्यम मानकर दैनिक पत्रिका के बाद अब एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल का मालिक होने पर जितना गौरवान्तित हो रहा है, आज किसी ने उसके देश प्रेम पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया था और ये बात नीरज के लिए बहुत ही कष्टप्रद है । उसकी कानून में बार बार किरण की वह आवाजें गूंजने लगी । क्या अधिकार है आप लोगों को किसी की जान लेने का कोई अदिया पत्रकारों के एक सवाल का भी जवाब न दे तो खुद की बेज्जती समझने वाले आप लोग किसी की इज्जत की परवाह क्यों नहीं करते हूँ । आप जैसे किसी पत्रकार नहीं मेरे पापा और बुआ की हत्या की है । वहाँ हत्या हुई है । मेरे पापा की न तीन सेना तलवार से कलम से हत्या की गई है । नीरज को कॉलेज का वह दिन भी अनायास याद आ गया जब प्रोफेसर माथुर कहा करते थे कि खुदकुशी करने से बडा कोई पाप नहीं होता है । मुश्किलें चाहे जितनी भी बडी हूँ, उसका सामना करते हुए सूझ बूझ से काम लेते हुए जीवन पथ पर आगे बढना ही मानव का पहला कर्तव्य होता है । कोई भी बीमारी हो उसका इलाज जरूर मिलेगा । बस जरूरत इस बात की होती है कि आप उस रोग का निदान कितनी शिद्दत से ढूंढते हैं । जिंदगी को जीना सीखो, जिंदगी से लडना सीखो । जिंदगी से भागते हुए किसी भी हालत में मौत की शरण में जाना उचित नहीं । जिसमें हमें जीवन दिया है उसे से लेने का अधिकार है । हम तो बस सफर की यात्री हैं जिन्हें हर हाल में चलते रहना है । महत्व सरकार लेक्चर याद आते ही नीरज के होठों पर विषाद कि मुस्कान फैल गई और ये बुदबुदाने लगा दीपक तले अंधेरा कई छात्रों को अवसाद से बाहर निकालकर आत्महत्या के निर्णय से वापस लाने वाले स्वयं भी आत्महत्या कर लिए । पत्रकार को पत्रकारों के अलावा आप स्वयं भी अपनी मौत की जिम्मेदार है । सर बहरहाल नादानी करके आपने मेरे काम और समाज के लिए कुछ कर गुजरने के माध्यम को दागदार कर दिया है । सर और अपने वजूद पत्रकारिता पर लगे इसका आपको मैं सहन नहीं कर सकता हूँ । ये सच है कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है । पर मैं उस मछली को जल्दी ही ढूंढकर तालाब से निकाल, फिर कुमार और अपने गुरु के साथ हुई ज्यादतियों का हिसाब भी चुकता करना । ये मेरा मुझसे वादा है और इसके लिए मैं आज ही पहला कदम उठाते हुए उन पत्रिकाओं पर मानहानि का केस दाखिल करूंगा, जिसमें प्रोफेसर साहब के बारे में गलत बातें लिखी गई थी । मैं अपनी पत्रिका को भी नहीं छोडूँगा । किरण का इंटरव्यू लिया, नहीं नहीं । किसी पुस्तक पर उलझे हुए नीरज ने जवाब दिया, मैंने तो पहले ही कहा था कि उससे मिलने से कोई फायदा होने वाला नहीं है । उस तक पर नजरें जमाए ही । नीरज ने कहा, मतलब मैं सही थी कि ये इंटरव्यू उससे मिलने का बहाना था । ये तुम क्या कह रहे हो वही जो पिछले कुछ दिनों से बेकरियों महियां क्या देख रही हूँ, बनाओ मत भैया, मैं आपकी आंखों में वो बेचा नहीं देख रही हूँ जिसे देखने की चाहत कई सालों से थी । पर मैं खुश नहीं हूँ क्योंकि क्योंकि वो लडकी आपके प्यार के लायक नहीं है । तुम ने कुछ ज्यादा नहीं कह दिया । नहीं पहली बात तो ये कि प्यार व्यार मुझे छोड भी नहीं सकता हूँ । और रही मेरी बेचैनी का कारण तो वो है मेरे आदर्श प्रोफेसर पर हमारे ही साथी द्वारा की गई ज्यादतियां तो फिर किरण का इंटरव्यू लेने आपने किसी मुलाजिम को भेज देते । आप स्वयं क्यों गए? भैया? बताया तो था कि माथुर सर से मुझे अधिक लगाव रहा है और किरण जी की बातों में पत्रकारों के प्रति नाराजगी थी जिसका कारण मैं जानना चाहता था लेकिन हासिल किया हुआ भी खाली हाथ लौटे हूँ । मैंने तो आपको पहले ही बताया था कि वो घमंडी ऍम नहीं देगी लेकिन तुम्हें कैसे मालूम था? लगदी पुस्तक को किनारे रखते हुए नीरज ने पूछा इसलिए कि मैं उसके बारे में बहुत कुछ सुन चुकी हूँ । क्या सुनी होगी? यही की वो लडकी ना सिर्फ घमंडी है बल्कि थानेदार होने का आप कुछ ज्यादे दिखाती खुद को हरिश्चंद्र की औलाद समझती । अखबारों ने उसके पापा का कच्चा चिट्ठा खोल दिया था तो पत्रकारों से नाराज होने का नाटक करते हुए अपने पापा की झूठी जॅान पीती रहती है । और पिछले दिनों थाने में हुए किसी एक एफआईआर के बारे में किसी पत्रकार ने पूछा तो उसने साफ शब्दों में कहा था कि उन्हें किसी पत्रकार से कोई बात नहीं करनी है क्योंकि पत्रकार तो सिर्फ मनगढंत बातें लिखते हैं । अच्छा इतना कुछ कह दिया गया और हमारे पत्रकार साथ ही चुप रह गए । वो इंस्पेक्टर तो किसी की बात सुनती नहीं है और उसे समझाने से भी कोई फायदा नहीं था । शायद यही उन लोगों की छुट्टी का कारण होगा । लवली ने कहा, आजकल पत्रकारों की खूब जानकारी रखने लगी हूँ । नीरज मुस्कुराने लगा जो बात आप मुझ पर व्यंग करते हुए कह रहे वो सच है भैया, आपकी बहन हो तो आपके क्षेत्र की जानकारी भी रखना जरूरी है और इसलिए मुझे पता है कि उसने आपको भी बुरा भला जरूर कहाँ होगा गिर जाता । मुझे लगता है लवली की तुम एमबीए छोडकर मुझे ज्वाइन कर सकती हो । आप फिर मेरा मजाक उडा रहे भैया तो उडा लीजिए पर मुझे तो ये भी पता चला है कि आपने झूठ को सच में बदलने के लिए और अपने पिता की इज्जत पर पर्दा डालने के लिए वो इंस्पेक्टर अपने पद का दुरुपयोग करने से भी पीछे नहीं रहती है । अपनी बात की विश्वसनीयता पर तुम पूर्णता आश्वस्त हो लगली तुमने जो भी अभी अभी मुझसे कहा क्या वो सब सच है? मुझे छोटी कबसे समझने लगे भैया लवली ने सवाल का जवाब भी सवाल से ही दिया । मैं मजाक के मूड में बिलकुल नहीं हो लबली गंभीरतापूर्वक । नीरज ने आगे कहा, तुम सोच समझकर जवाब दो कि माथुर सर और उनकी बेटी के बारे में जो कुछ भी कह रही हो क्या वो सच है? तुम साबित कर सकती हूँ सबूत ठहाका लगाते हुए लवली ने आगे कहा, पिछले कुछ दिनों का अखबार उठाकर देखो भैया अच्छा हूँ । जिंदा माथुर सर की खबरें सुर्खियों पर थी । उन दिनों यूरोप गए हुए थे । शायद इसीलिए आपको नहीं मालूम कि उन की खबरें हमारे एक बार में भी तो लग गई थी । जहाँ तक सबूत की बात है तो फिर मात्र सर को जानने वाले शहर में किसी से भी पूछ लो । उनकी रंग, गलियों के किस्से और फिर मनीषा में हम की आत्महत्या करने के बाद खुद ही ट्रेन से कट जाने की बात कोई भी बता देगा । अच्छा और क्या जानती उनके बारे में? नीरज ने लवली से पूरी बात तो बलवानी के लिए पूछा । जानती तो बहुत कुछ तो बता ही तो और क्या क्या जानती हूँ यही की प्रोफेसर मात्रा मनीषा के गहरे तालुका थे । कॉलेज, लाइब्रेरी, बाजार सब जगह हो ले, हम साथ साथ आना जाना था । उनका बातें तो यहाँ तक बढ गई थी कि मनीषा में हम माथुर करके घर पर ही रहती थी । आपने बेमेल रिश्ते को छुपाने के लिए और लोगों का मोहन करने के लिए उन्हें किरायेदार बताया गया लगता है । मन लगाकर तुमने माथुर सर के प्रकरण का अध्ययन किया है । नीरज ने कहा, आप फिर मेरा मजाक उडा रहे भैया । लवली ने शिकायत की अच्छा चलो ये बताओ कि तुमने कभी उन दोनों को साथ साथ देखा था और देखा था तो कहाँ? नीरज ने पूछा नहीं नहीं, मैंने तो नहीं देखा पर फिर तुम इतने विश्वास के साथ उनके संबंधों के बारे में कैसे कह रही हूँ? उनके परिवार से मिली थी क्या? तुम लगती नहीं भैया, मुझे तो उनके घर का पता भी नहीं मालूम । फिर ये सब बातें तो मैं कैसे पता चली । कुछ तो कॉलेज में सहेलियों से सुना था और कुछ समाचार पत्रों के माध्यम फिर वही समाचार पत्रों वाली बात है । नीरज ने नाराजगी प्रकट करते हुए आगे कहा, क्या तो मैं ऐसा नहीं लगता । लवली की व्यक्तिगत संबंधों के मामले में तो मैं और तुम्हारी सहेलियों की तरह पत्रकार लोग भी धोखा खा सकते हैं जब नींद खुद की आंखों में रहती है । फिर सपना हम किसी और की आंखों से कैसे देख सकते हैं? सीमित दायरे में रहकर इस दुनिया को समझ पाना संभव नहीं है और फिर तुमने तो पत्रकारों के एक पहलू को ही देखा है जबकि हमारी दुनिया में सच और झूठ के बीच बस थोडा सा ही फासला होता है । आप कहना चाहते हैं या मैं तो मैं बताना चाहता हूँ कि जिस रेगिस्तान में दूर रहने से पानी का एहसास होता है लेकिन पास जाने पर सच्चाई पता चलती है कि असल में तो वो पानी है ही नहीं बल्कि सूरज की किरणे हमें भ्रमित कर रही थी । किसी तरह दूर स्थित चीजों को पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर जब हम देखते हैं और उन बातों पर तर्कों का तडका लगाते हैं तो हमारा भ्रमित होना स्वाभाविक है । इसीलिए किसी भी बात को हमें तब तक सच नहीं मानना चाहिए जब तक हम उसे पर रखना लें । विषेशकर पत्रकारिता के क्षेत्र में तो ये सावधानी बहुत जरूरी है । मतलब आप ये कहना चाह रहे भैया की हाँ मैं यही कह रहा हूँ कि माथुर परिवार भी चमकीली झूठ का शिकार हुआ हूँ और दूर से देखने के कारण हम झूठ को ही सच मान बैठे हैं । नीरज ने कहा लेकिन वहीं मनीषा कान से पहले तो माथुर सरकार शहर में बडा नाम था । लोग उनकी प्रशंसा करते थकते नहीं थे और अखबारों में भी उनके व्याख्यान सहित व्यक्तित्व की बहुत सराहना होती थी । चर्चा तो यह भी रही कि राजनीतिक पार्टियां भी उनकी लोकप्रियता को देखते हुए अगले चुनाव में प्रत्याशी बनाना चाहते थे । यही तो समझना है कि जहाँ प्रशंसा होती है कमियाँ वहीं ढूंढते हैं और आदर्श का प्रतीक होना ही तो माथुर सर के लिए घातक हुआ । इस दुनिया की रीत है कि जब कोई आदर्श और सच्चाई के रास्ते पर चलकर समाज में अपना अच्छा स्थान बना लेता है तो कई शैतानी दिमाग उनमें गलती निकालने का मौका ढूंढते रहते हैं । और इस तरह के चूहे बिल्ली के खेल में कई बार यात्रा व्यक्ति को अपने आदर्शों के साथ समझौता करना पडता है या झूठी बदनामी का सामना करना पडता है । आप कहना चाह रहे भैया की मात्र सर किसी साजिश का शिकार हुए हैं पर क्यों? पर कैसे लवली ने पूछा क्योंकि पैसों की लालच इंसान को अंधा बना देती है और दौलत की चाहत ही षडयंत्र का उत्पादक होता है । जब की एक इज्जत यार जब की है कि जतदार व्यक्ति के लिए इज्जत ही उसके जीवन भर की पूंजी होने के कारण वो इंसान की कमजोरी बन जाती है । दौलत के पुजारी की पहली पसंद पैसा ही रहता है । माथुर सर के मामले में मुझे लग रहा है की दौलत की तेजधार तलवार इज्जत की कमजोरी पर भारी पड गई है । हो सकता है भैया का नजर सही हूँ लेकिन माथुर सर जैसे आदर्शवादी और गंभीर व्यक्ति को आत्महत्या का कदम उठाने की जगह कथित पत्रकार बने ब्लैकमेलरों को बेनकाब करना चाहिए था । लोगों को इस बात से अवगत कराना था कि उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की जा रही है । कुछ लोग अपने प्रति अर्जित विश्वास का मूल लगा रहे हैं । माथुर सर की इसी गलती की सजा तो उनका परिवार बोल रहा है । नीरज ने कहा, गलती नहीं हुई है बल्कि माथुर सर में चतुराई से काम लिया भैया क्या मतलब है तुम्हारा? नीरज ने पूछा, माथुर सर मनीषा मैम के साथ अपने रिश्ते के सच को परिवार वालों से छुपा कर रखना चाहते थे, जो कि भेद खुलने से परेशान हो गए और फिर जवान बेटी के सामने आदर्शवादी पिता बने रहने का एक ही रास्ता दिखाओ । ने आत्महत्या का खोजी पत्रकारिता का सामना न कर पाने पर समर्पित पत्रकारों पर अपनी की जूता ना कहां का इंसाफ है भला तुम्हारा तर्क भी सही है । लवली और पुख्ता भी है और मैं महसूस कर रहा हूँ कि तुम्हारा तर्क पत्रकारों की भांति है । तो अब ये भी बता दो कि किस पत्रकार ने बताई है तो मैं ये सब बातें नीरज ने पूछा जिसने भी बताई है उसकी सच्चाई पर मुझे भरोसा है भैया और जिस दिन किरण के झूठे दावों के अलावा कुछ सुनने की मानसिकता में आ जाओगी, उस दिन आपको उस पत्रकार का नाम भी बता दूंगी । लवली ने आत्मविश्वास के साथ कहा, पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए । लवली कि माथुर सर से हम दोनों ने शिक्षा ली है और प्रोफेसर सर हम दोनों की आदर्श रहे हैं । नीरज ने कहा, हम उन की शिक्षा को जानते हैं । भैया व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में नहीं । लवली ने कहा, मैं तो सोचता हूँ कि जो व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में आदर्श प्रस्तुत करता है, उसका निजी जीवन भी खुली किताब की तरह होता है । आपके बोले बन का तो माथुर परिवार नाजायज फायदा उठाने की कोशिश कर रहे भैया, मैं तो कहती हूँ कि पूरा मात्र परिवारी गलत । लवली ने कहा, जो इंसान अब इस दुनिया में नहीं है, उनके साथ उसके परिवार के लिए भी इस तरह की बातें करना ठीक नहीं है । और फिर माथुर सर की कमजोरी को गिनाकर हमें अपने पत्रकार बिरादरी की गलतियों पर पर्दा नहीं डालना चाहिए । प्रोफेसर साहब तो अब नहीं रहे तो सच का पता लगाने का काम अब हमें ही करना होगा । ऐसे लोगों का पर्दाफाश करना ही होगा जो पत्रकारिता के नाम पर कलंक है और किरण जैसे लोगों को ये बताना होगा कि यदि कुछ पत्रकार ब्लैकमेलर होते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि सभी पत्रकारों पर उंगली उठाई जाए । अधिकांश पत्रकार ईमानदार और समाज के प्रति वफादार होते हैं । आप मेरी बातें सुनना ही नहीं चाहते हो तो मैं क्या कर सकती हूँ । पर इतना जरूर कहूंगी भैया की आप बहुत बडी साजिश का हिस्सा बनने जा रहे हैं और माथुर परिवार आपकी सरलता का फायदा उठा रहे हैं ।

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