पेट की भूख, घरवालों की ज़िम्मेदारी ये सब किसी से भी कुछ भी करवा सकती है। पर सवाल उठता है कि क्या इसकी कोई सीमा होती है? मजबूरियों से जूझते गोविंद ने ऐसा क्या किया की हो गई उसे फांसी! पर हमारा गोविंद तो खुश है? आखिर क्यों ये उसके लिए सज़ा नहीं ईनाम है फांसी! जानने के लिए सुनिए संतोष भट्ट द्वारा लिखी ये कहानी।
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