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भाग - 05 in Hindi

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8 K Listens
AuthorOmjee Publication
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कार्तिक केंद्र द्वारा लड करेंगे को आत्मत्या महाराज आशुतोष केंद्र की जय हो । ये उद्घोष तो निश्चित ही को सिंगर पूरा को ऊर्जा प्रवाहित करने में सहायक होगा परन्तु नीलकंठ प्रभु की जय का क्या फिर हो सकता है । एस नीलकांत के जयघोष से गोश सिंगपुरा के मुख्य पदाधिकारी किस विषय में चर्चा कर रहे हैं ये वाले क्योंकि सदस्य निश्चित ही पडे था मालिक शो के लिए नीलकंड नवीन नवोदित रचना था । आखिर उन्होंने ये निश्चित कर ही लिया कि नीलकंठ निश्चित ही महाराज आशुतोष इंद्रा के ही समकक्ष ही होगा । किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचते हुए भी मालिक सुपरसंडे देख रहे थे, परंतु मन में नीलकंठ एक व्यापारी की भर्ती प्रवेश कर गया था जिसे न सोचते हुए भी मनुष्य सोचता रहता है । प्रसन्न है इसलिए थे कि अब अपना वेश बदलकर लगातार कार्तिक केंद्र वहाँ उसके सहयोगी के बार का का अनुसारण कर रहे थे । उन्हें अपना कार्य सिद्ध होता हुआ दिख रहा था । उनके कुछ कब प्रचार कार्तिक केंद्रों पलट भरेंगी के सभी पहकर उनका पीछा कर रहे थे । उसके पीछे शेष मालिक कुछ दूरी पर थी । प्रसन्नता का कारण और उस की प्राप्ति की ओर अग्रसर होते पर जो प्रसन्नता उपलब्ध कराती है वो लक्ष्य प्राप्ति के बाद शाहिद होना प्रारंभ कर देते हैं अर्थात मनोकामना की पूर्ति में वो आनंद नहीं होता है जो मनोकामना बोर्ड होने से पूर्व उस कल्पना भी होता है जिस कल्पना में आप उसे पूर्ण मुद्दा देखते हैं । मालिक इस मना स्थिति से प्रसंद थे कि अब कार्तिक केंद्र से और है । काल विश्व हो जाएगा जैसे उन्हें काल देश प्राप्त होगा । फिर भी अजय हो जाएंगे और साथ ही आशुतोष इंद्र का भी अंतर निश्चित हो जाएगा । बस कल्पना मात्र से मालिक सोन प्रसन्न था । रात्रि का प्रथम शहर ही कारण हुआ था कि गुप्तचरों द्वारा ये सूचना प्राप्त होगी कि कार्ति केंद्र में उसका सहयोगी अब संभव का विश्राम हेतु व्यवस्था कर रहे हैं । इतना सुनने के उपरांत बले छोड नहीं आंतरिक विचार विमर्श प्रारम्भ किया । इस वार्ता में मात्र विशेष मालिक रही थी वो । बहुत कम समय में ये वार्ता समाप्त हो गई । सबूत कर जाने को ही थे कि मालिक दम ने कहा हवा महाराज मालिक सोन को संबोधित करते हुए कलेक्शन अमिता कहने के उपरांत शांत हो गया । मालिक सोंधे अपनी एक शेष आपसे उसकी तरफ देखा और अपनी भाव भंगिमा देंगे । प्रदर्शन किया तो उसे कहने वार पूछने की अनुमति है परन्तु शिक्षा था के साथ इस अनुमति के प्राप्त होते ही पूरा बाॅध क्या धन्यवाद महाराज सभी लोग मेरी वार्ता को ध्यान से सुने । वह विचार करें जिस प्रकार अभी वार्ता के मध्य यह तय हुआ एक आर्थिक केंद्र उसके सहयोगी के साथ मिलकर अपना कार्य सत्य करना है । अपने पास एक मात्र ही विकल्प शेष है और वह है किसी भी परिस्थिति में काल विश्व प्राप्त करना । ध्यान रहे या निकाल रिस्ट प्राप्त करने में हम सफल रहे तो निश्चित ही समाप्त हो जाएंगे । यदि किसी के मन मस्तिष्क में कोई विचार हो तो अभी इसकी चर्चा कर ले । अब ये अवसर पूरा प्राप्त होगा । मालिक दो स्वर्ग हो चुके थे । पहला, जब उन्होंने योग पहले पर आक्रमण किया था और दूसरा जब उन्होंने कोशिश इनका पूरा पर आक्रमण किया था । अपने दोनों ही अवसरों में वे विजय श्री के अत्यंत निकट पहुंच गए परन्तु विजय पुरस्कार उन्हें प्राप्त हो सकता है । जवाब अपनी सफलता के बहुत करीब खर्च कर आज सफलता का मुख्य आवलोकन करते हैं । तब निश्चित ही आस्तिकता नास्तिकता में वो नास्तिकता आस्तिकता में परिवर्तित हो जाती है । अर्थात इश्वर को मारने वाला व्यक्ति कहता है कि इस वक्त कहीं नहीं है और इस वर्ग को ना मानने वाला दास भी कहता है कि कहीं कोई अदृश्य शक्ति अठारह ईश्वर ही उसे पराजित कर रहा है या असफल बना रहा है । इस प्रकार रेहता सफलता आपके बोल चरित्र को प्रभावित करने की क्षमता रखती है । अंतर था । उन्होंने अपने निर्णय के अनुसार मुख्य सेना को पोस्ट पर पीछे रखते हुए दस को प्रचार टुकडियों को लगभग समान दूरी पर व्यवस्थित करते हुए कुमार कार्तिक इन पलट देंगी को अपना लक्ष्य निर्धारित दिया । उन्होंने स्वयं गुप्तचर विभाग को इस प्रकार नियुक्त किया की उनकी दृष्टि कुमार वल्लभ हिंदी पर रहे और कुमार वल्लभ भिंडी उन्हें देख ना सकें । अब इस प्रकार की व्यवस्था के उपरांत मालिक होना तैयार आस्वस्त परन्तु पूर्ण सतर्कता थी । मालिक सिद्धम की इस व्यवस्था को देखकर माॅनसून नहीं । आपने मुखा भाव से स्पष्ट किया कि वो व्यवस्था से संतुष्ट इधर मात्र कोर्स भर की दूरी पर कार्य केंद्र पलट देंगी । अब विश्राम करने की व्यवस्था में आ रहे थे । लगभग जी अब कुमार के लिए छोटा परंतु पर्याप्त व्यवस्थित धातु वस्त्र निर्भर कक्ष का निर्माण करते हैं । ये व्यवस्थाएं साथ चल रहे अश्वों पर पहले ही कर दी गई थी । भिंडी ने कुछ ही क्षणों में पर्याप्त व्यवस्था कर दी और कुमार से विश्राम करने के लिए कहा कुमार अब आप विश्राम करें । ताकत काल से अब तक यात्रा के कारण निश्चित थी । आप शारीरिक शीतलता का अनुभव कर रहे होंगे । कुमार ने कहा परन्तु आपने अपने लिए व्यवस्था कुमार इतना ही कह रहे थे कि लटकेंगे ने कहना प्रारम्भ किया नहीं नहीं कुमार ये किस प्रकार संभव है । संभव है और था क्या आप शाम नहीं करेंगे आप भी तो नहीं कुमार ये संभव नहीं । जब प्रभु शाम कर रहे हूँ तो सेवक किस प्रकार विश्राम कर सकता है और यहाँ तो वी आवान वन में जहाँ प्रत्येक दिशा, प्रत्येक जी, प्रत्येक व्यवस्था यहाँ तक कि प्रत्येक आहट शंका उत्पन्न करती हूँ आप निश्चिंत होकर विश्राम करें । जब तक जीवन की डोर से बंधा हूँ तब तक आप के जीवन पर संकट असंभव है । इतना ही लटकेंगे कहीं पाए थे कि कुमार कार्तिक केन्द्र के मन मस्तिष्क में प्रश्नों के हम बाद जो ध्यान लोग कक्ष में लव भेंगी से मेरा नाम भेंट में उत्पन्न हुई थी, भरभराकर मनमस्तिष्क से निकलकर मुकेंद्र अर्था जी वहाँ पर आ गए । उन्होंने अपने मन में विचार किया की इस समय विश्राम करना तो उचित है परंतु शयन निश्चित ही संकट बनना कर सकता है । इस विचार के आते ही कुमार ने लड हिंदी से कहना प्रारम्भ किया आपने जब मुझसे प्रथम गया ध्यान कक्ष में भेज की थी तब आप आप के विषय में अधिक चर्चा नहीं हो सकी थी । तो अब समय है कि आप अपने विषय में मुझे अवगत कराएं । लैट्रिन गिनेगा हूँ मेरा नाम तो आप जानते ही हैं । मेरे विषय में स्वतः मैं भी बहुत अधिक नहीं जानता हूँ । मैं वही जानता हूँ जो मुझे देवा श्री जी ने अवगत कराया है । कांस्य केंद्र ने मुस्कुराते भी का हर व्यक्ति वही जानता है तो उसे अवगत कराया जाता है । इसमें कुछ विशेष नहीं है । मैं भी संभावना वही जानता हूँ जो मुझे अवगत कराया गया है । लेट भरेंगे ने कहा हूँ आप अक्षय नशा हो सकते हैं कुछ रुपये के उपरांत परन्तु आप में वह मुझे एक विशेष अंतर प्रभु अंतर ये है कि आप के विषय में आपके माता पिता, आप के अन्य शुभचिन्तक, वह महल के अन्य प्रबुद्धजन भी आपके जर्मन से अब तक के विषय में जानकारी रखते हैं । ये तो आपने सबसे का परन्तु आप के विषय में भी तो आपके माता पिता व अन्य या लटकाएंगे बीच नहीं बन । नहीं नहीं प्रभु मेरे विषय में बात करते, दूसरी वो आपके विनाश नहीं जानते हैं । मेरे पिताश्री वो किस प्रकार ॅ क्या तुम पहले को सिंगपुरा आ चुके हो । अब तो कार्तिक केन्द्र के मन में विचारों का अम्बार और भी बढ गया । इसके पहले की कुमार कुछ कहते हैं लटकेंगे ने कहना प्रारंभ नदियाँ तो मेरे विषय में देवा श्री जानते हैं तो क्योंकि वे ही मुझे मेरे लोग से लाए थे । कुमार अब और भी आश्चर्यचकित नहीं कि वह किस लोग से आया है । क्या वहाँ कोई अन्य भी है? यदि है तो हो क्यों नहीं आया? पिता श्री से क्या संबंध है अब मन में प्रश्न तो बढते ही जा रहे थे । ऍम हिंदी ने कहा हूँ आप को समय दें तो मैं जो जानता हूँ वो आपको स्पष्ट कर देता हूँ और जो नहीं जानता हूँ उस को जानने के हेतु आपके वहाँ आपके पिता के समक्ष आया । मुझे देवा श्री मेरे लोग से लाये थे । वहाँ पर अन्य लोग भी हैं और वे आने की प्रतीक्षा में तब हूँ की सेवा का अवसर उपयुक्त समय आने पर ही प्राप्त होता है । कुछ मेरे पुण्य संचित रहे होंगे जिसके फलस्वरूप मुझे आपकी सेवा का अवसर शिक्षा प्राप्त हुआ जो वहाँ पर शेष है, वे प्रभु कृपा प्राप्त करने हेतु प्रतीक्षा रखते हैं । देवा श्री मुझे बहुत वर्ष पूर्व की ले आए थे । आप के पिता अर्थात प्रभु मुझे किस प्रकार जानते हैं और हमारा उनका क्या संबंध है ये मुझे याद नहीं । परन्तु देवा श्री ने कहा था कि प्रभु ही संपूर्ण हैं । वहीं पर तुम को अपने जीवन के रहस्य की घूमता का अर्थ स्पष्ट होगा । आपने ये भी पूछा था क्या मैं कभी गो श्रृंगा पूरा आया? मैं कभी कोशिश िंगम बुरा नहीं आया । सत्य था तो ये है कि मैं कभी फिर फिर लोग ही नहीं आया अगर मैं अब यहाँ पर अपने जीवन के रहस्यों के विषय में जानने हुआ हूँ । इन सब चर्चाओं के मध्य का अधिकेन्द्र का वहीं महल की ओर केंद्रित हुआ हूँ । एक का एक उसके मन में एक विशाल नहीं अस्थान आकार पढाना प्रारंभ किया । मान के विचार सामान्यतः जीवन के ऋणात्मक महयोगों के पक्ष में अधिक समर्थन करते प्रतीत होते हैं । आप कितने भी अधिक धैर्यवान ज्ञानवान हूँ, जब काल अपनी कसौटी पर कसता है तब ज्ञान और धैर्य की परीक्षा प्रतिकूल समय पर मन निश्चित ही ऋणात्मकता की तरफ अधिक संभावना देखता है । इसका संभव का ये भी कारण हो सकता है कि जहाँ घटनाक्रम घटित हो रहा होता है । यदि आप वहाँ उपस्थित हैं तो आपका समय वह घटनाक्रम एक साथ घटित होते हैं । जब आप वहाँ पर उपस् थित नहीं होते हैं । तब आपका मन मस्त इस घटनाक्रम की गति से अधिक तीन प्रगति से चलना प्रारंभ करना है । ऐसी कारण जो अभी घटित नहीं हुआ होता है, मैंने उसको मारने के लिए बुद्धि के डर को बता हार करता है । अंततः जो नहीं हुआ होता है, मन मस्तिष् उसको मानने लगते हैं । जब कार्ति केंद्र महल में थे, तब उन्हें सामान्य तार इतनी शीघ्रता न थी, जितनी अभी प्रार्थन से निकले हुए हैं । एक ही दिन व्यतीत होने पर हो रही है । उन्होंने लड भिंडी से अपने मन की व्यथा कहना उचित समझा । आप से मैं कुछ कहना चाहता हूँ आप स्वामी है प्रभु आप आदेश करें, नहीं आदेश नहीं । मैं कुछ कहना लादा प्रभु आप मुझे सेवक ही रहे थे । मेरा स्थान वही है । आप केवल आदेश करें । यदि मैं आपका आदेश पूर्ण करूँ तो मैं अपने जीवन को धन्य मानूंगा । अच्छा हमें अभी महल से निकले हुए मात्र एक ही दिन वैदिक हुआ है । परन्तु ये कहकर कार्ति केंद्र शांत हो गए । श्रेष्ठ वही है जो आपने स्वामी के मुखमण्डल से उसके अंतर्दशा का सत प्रतिशत सही आकलन करें । लड फेंकी गई होते ही समय में आकलन कर लिया कि कार्य केंद्र बहल में चल रही समस्याओं से चिंतित हैं अथवा हो सकता है कि वे काल विश्व के प्रति चिंतित हूँ । तब उन्होंने कुमार से क्या आप कल विश्व को इतना ही कहता है कि कार्यक्षेत्र ने कहा नहीं कालवश चिंता का विषय नहीं । कालवी लाने से मुझे कोई नहीं रोक सकता हूँ । बहन तो ये कहकर बहुत हो गए । लगभग जी अब उनके मन के विचारों को पढ चुके थे । उन्होंने पूरा कार्तिक केंद्र से कहा, कुमार आप संभव कब? पिता वह माता को लेकर चिंतित हो रहे हैं । या तो विलंब हो गया और ये कहकर लटकेंगे रुक गया । परंतु कार्ति केंद्र नहीं, कुछ भी नहीं होता । अब लेट करेंगे । पूर्ण रूप से समझ चुका था कि कुमार प्रभु वहाँ के विषय में चिंतित थे । डबलर भेंगी ने कुमार से कहा हूँ, आप अपने आप को पहचानने प्रभु आप जिनकी चिंता कर रहे हैं, एक समय पर शायद उन का चिंतन करने से समस्त चिंताएं समाप्त हो जाया करेंगे । वो स्वतः चिंता हारी हो जाएंगे । ऐसा उससे देश जी ने कहा था । आपको मैं रहस्य की बात बताता हूँ । जब मुझे के पता चला कि प्रभु आशुतोष इंद्रा को दिखते काल अस्त्र से प्रहार हुआ है तब मैं निश्वित रह गया । मैं ही नहीं देवा श्री भी अत्यंत विस्मित । वह चिंतित हो गए थे । उनके अनुसार उस वस्त्र का दोनों असंभव था । कार्तिक केंद्र ने कहा असंभव की पिताश्री को पहले शल्यचिकित्सा विधि से प्रतिरोधक खोल ये कहकर वो शांत हो गए क्योंकि संभावना का केंद्र को ये इस प्रति हुआ आया था की ये घटना तो लड करेंगी जानता ही है । अब जो लाॅन्ड्रिंग कहना प्रारम्भ किया तो कार्य केन्द्र के चक्षु दीर्घाकार हो गए । कुमार उस प्रतिरोधक खोल का समय बहुत छोटा था । सम्भवता वो समाप्त हो चुका है । कार्तिक केंद्र तीव्रता के साथ अपने आसन से खडे होते हुए कब समाप्त हुई वो थी आप व्यर्थ चिंता न करें । तो जब मैं बातें श्री आपसे मिलने आए थे तभी वो अवधि समाप्त हो रही थी । अब मैं आपको एक रहस्य बताऊंगा और आपसे एक रहस् से पूछूँगा । पहले आप एक रहस्य ध्यान से सुने । रहस्य ये है कि मैं सौभाग्यशाली क्योंकि मुझे इस कार्य के लिए चुना गया । जिस कार्य के लिए मुझे चुना गया है वो कार्य अवश्य ही सिद्ध हो होगा । इसको इस प्रकार भी कर सकते हैं के कार्य तो सिद्ध है ही मात्र उसका घटनाक्रम प्रदर्शित करना है । ऍम मैं स्पष्ट रूप से समझा रही । तब लटकेंगे ने स्पष्ट किया कि जो प्रभु आशुतोष इन कार्य वकाल की सीमा से परे हैं, हम उन का कार्य क्या सिद्ध करेंगे । हम साधन बात सही है । ऍम उससे कहा था कि कार्य तो पूर्वनियोजित ही है और अब ये सब प्रभु की लीला है । ये सुनने के उपरांत कार्तिक केंद्र मंद मंद मुस्कराने लगे । तब लाॅन्ड्रिंग जीने का केंद्र से क्षमा मांगते हुए कहा प्रमुख शाम निश्चित ही आप मेरी किसी अज्ञानता पर उसको रह रहे हैं । आप मेरा मार्गदर्शन करें, नहीं नहीं ऐसा नहीं है । आपने जो कहा है हो सकते हैं मुझे इसका आंशिक खान है और इसी कारण ये मेरे लिए रहस्य नहीं । आप मुझ से कुछ रहस्य जानना चाह रहे थे । इतना ही कहना मात्र था की लडकी सिंगिंग प्रणाम करने की मतलब कार्तिक केंद्र से कहा आपके पिता श्री नहीं आपको योग के विषय में ज्ञान दिया है और आपको उसका अनुभव भी कराया है । क्या दिया पूछे जाने और प्रभु की आपने ताज पर कृपा हो तो उस ज्ञान से कुछ आंशिक ज्ञान मुझे भी प्रदान करने की कृपा करें । इतना सुनने के उपरांत कार्तिक केंद्र नहीं अपने नेत्रों को बंद कर लिया । लगभग दो घडी तक भी शांतभाव से एक ही मुद्रा में बैठे रहे हैं । एक बार तो ऐसा प्रतीत हुआ कि वे मित्रा में है परंतु दूसरी क्षण प्रतीत हुआ कि वे ध्यान वहाँ समाधिस्थ हो चुके हैं । समाग्री पवित्रा दोनों का संबंध करन शरीर से होता है । दोनों बाहर से एक सवाल दिखाई देते हैं परन्तु दोनों में सब और असद के सवाल नहीं रहता है । समाप्तिकाल में वासुदेवन सरवन ऐसा ध्यान जान कर रहे हैं । दो । ज्ञान स्कूल शरीर सुक्ष्म शरीर कारण शरीर के साथ अंतर्रात्मा को प्रकाशित वह प्राणों को ऊर्जावान करता है । नेतृत्वकाल में वृत्तियां अविद्या में लीन हो जाती है । सब आधिकार में दस वो इन्द्रियाँ पांचों प्राण वन मन बुद्धि की गति स्थिर हो अपनी चंचलता का परित्याग कर देती है । नेतृत्वकाल में प्राणों की मन की वह बुद्धि की गति विद्यमान रहती है इसलिए नेत्रा के समय सब आप ही होते हैं । दो गाडी के उपरांत कार टिकेंद्र ने अपने नेत्र को खोला और बोलना प्रारम्भ किया । नंबर के प्रेरणा से मुझे ये संकेत प्राप्त हुए हैं की मैं आप कुछ ज्ञान देने का प्रयास करेंगे । इसका कारण सम्भवता विकाश में ही है । इतना कहने के उपरांत उन्होंने उस ज्ञान योग को लग भिंडी को प्रदान करने ही दूँ । अपने आपको मानसिक वहाँ आध्यात्मिक रूप से तैयार किया । अब उन्होंने कहना प्रारम्भ किया मेरे पास संपूर्ण ज्ञान नहीं और ये ज्ञान जो मैंने अपने पिताश्री से प्राप्त किया है वो आंशिक ही है । डॅडी ने कहा हूँ अंधकार में अत्यंत छूट दी । बस का महत्व मात्र अंधकार में खडा व्यक्ति ही जान सकता है । फिर आपका ध्यान तो इतना कहने के उपरांत एक्शन के लिए लड टिंकी शांत हो गए । कुछ विचार करने के उपरान्त पुनः कहना प्रारम्भ किया हूँ । जब मैं आपके साथ आने हेतु पृथ्वी लोग पर आया तब देवा श्री ने मुझसे कहा था कि मुझे अपने प्रश्नों के उत्तर वही प्राप्त होंगे । संभव का उसका समय हो गया है । आप से मेरा एक अनुरोध हैं । इतना ही कहता है लडकी देंगी । दोनों हाथ जोडकर खडे हो गए और उन्होंने कहा हूँ यदि आप अनुरोध करेंगे तो मुझे आप सर्वप्रथम मेरी संपूर्ण बात सुन लें । इसके उपरांत ही कुछ गए । आप मुझे प्रभु ला कहाँ करें । आप मुझे कुमार ही गए, कुछ क्षण लटकेंगे, विचार करते रहे और तब बोले छुआ क्या प्रभु फिर आप नहीं प्रभु कहा शमा कुमार क्या अपने अपने प्रश्न पूछे परन्तु ध्यान रखा की संपूर्ण ज्ञान बाट पिताश्री के पास ही है और मैं तो जानता हूँ वह स्पष्ट करने का प्रयत्न करूंगा । तब लड्डू भिंडी ने अपना पहला भ्रष्ट क्या? हमारा संबंध ऍम समय से किस प्रकार होता है? पार्टी केंद्र कुछ विचार करते होगे । आप का प्रश्न बहुत ही बेहतर वशिष्ठ है । इस प्रश्न के उत्तर के लिए सर्वप्रथम हमें अपने आप को जानना होगा क्योंकि आपने अपना हमारा संबंध काल के साथ जाने की इच्छा अभिव्यक्ति की है । सर्वप्रथम हमें ये जानना होगा कि शरीर वर्ष दीदी जी बात दो अलग अलग सर्वथा भिन्न विभाग है । एक चढ नाशवान है, विकारी प्रतिक्षण परिवर्तनशील निरंतर सहज निपटती है । एक चेतन है अभी नाशी नेट स्वीकार है, अब परिवर्तनशील है निरंतर सभी को प्राप्त हैं शरीर जिसको सामान्यता एक माना जाता है वो भी तीन प्रकार का होता है इस स्कूल शरीद, सूक्ष्म शरीर वह कारण शरीर, स्कूल, शरीर, भोजन, चल आदि से दीपित रहता है । सूक्ष्म शरीर पांच काॅपियों, पांच कर्मेंद्रियों पांच कारणों, एक मन वो आपत्ति से मिलकर बना होता है

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