Made with  in India

Buy PremiumBuy CoinsDownload Kuku FM
गुजरा हूँ जिधर से - Part 3 in  |  Audio book and podcasts

गुजरा हूँ जिधर से - Part 3

1 KListens
Buy Now
गुज़रा हूँ जिधर से कविता संग्रह Voiceover Artist : RJ Nitin Author : Tejpal Singh ' Tej'
Transcript
View transcript

हैं आज मना मत कर तू साकी दे दे आज शराब बूंद बूंद कर क्या देता है दे दे बिना हिसाब बरसों बाद खोली है आंखें इश्क ने ऐसा वर क्या बरसों बाद मेरे कातिल के रुख से उठा न का जन्नत मिले मे लेना जन्नत जन्नत की है पीर किसे जिसको आना था नहीं आया दिल पर गुजरे लाख अजाब मेरे मरने पर ही शायद आएगा आने वाला फिर मरने का इंतजार किया जी ने सेना रहा लगा आज पूछ मत कितनी गुजरी कितनी से बाकी हैं आज मैं चुकता कर जाऊंगा साकी तेरह हिसाब भर सों बाद मेरे आंगन में सजधज उतरा चार की बरसों बाद मेरी जानम के रूप से उठा नकाब आज होश की बात न कर की तेज तेरे दीवाने का धुआ धुआ विश्वास गया की माटी हुआ सुनेहरा मैंने भी एक गांव खरीदा । मौका पाकर नाम खरीदा । धन दौलत की चकाचौंध में झोंपड का हर दाव खरीदा । संबंधों को अनुबंधित कर सम्बन्धों का मर्म खरीदा । खुशी की खींचातानी में जनता का राम खरीदा चलने की चाहत के चलते लकडी का एक पांव खरीदार तेज निरा पागल है उसमें बस औरों का घाव खरीदा कहा है इतना समझ रही हूँ फूलों जैसी निकल रही हूँ बस्ती बस्ती आंगन अगर धूप सरीखी बिखर रही होगी खुशबू बन सासों के जरिए सबके दिल में उतर रही हो देख आइना सहमी सहमी कहे आचल उतर रही हूँ शायर के मन की पीडा तो गीत गजल की बहन रही हूँ नजरों को पहचाना कर तब जाके दिल हराकर कभी कभी अपने को भी लेकर नाम तो करा कर जीवन तो आना जाना है जीवन सेना हराकर मसलों को तू जुल्फें तरीके आए रोज सवार आकर जैसे भी हो वैसे तेज जीवन भला गुजारा कर तो मैं हूँ कि बर्बाद न पूछो गए दिनों की बात न पूछो झुलसा है मेरा घर आंगन कहाँ हुई बरसात ना पूछो दिन ढलते ही टूट गया दिल कैसे गुजरी रात न बूझो फरमानों में चैन अमन है वैसे है उत्पाद पूछो कुछ तो मेरा भी रहने दो मेरी और एक बात न पूछो आँख में आकाश लेकर जलघरों से प्याज लेकर मैं भटकता ही रहा हूँ जीत का विश्वास लेकर खास कुछ आगे बढा है गोद में उपहास लेकर पेट पर पट्टी बंधी है आज लेकर लोग सडकों पर खडे हैं एक अदद वनवास लेकर बाद बरसों वो हरकत में आने को है जाल वादों के हरसू बिछाने को है दिल के कोने में चलके सेवा कुछ नहीं घर के कोने में मंदिर बनाने को है वो आंखों में नफरत की आंधी लिए दीप उल्फत के भरसक जलाने को है चंद दिन को है वो आदमी हो गया की बात सारी पुरानी बुलाने को है तेज अब भी समय है समझ जाए ये सारी खुशियां वाह खासकर चुराने को है हूँ बेफिक्री है चयन अमन है सपनों का संसार सघन है जाने किसका हाथ है सिर पर पतझर में आबाद चमन है बिन बादल बरसात का आलम आज महरबान नीलगगन है चेहरा जैसे सुर्ख गुलाबी सांसों सात सौ मगर तपन है टंगडी मार गिराना जैसे दुनिया का एकमात्र चलाना है सीख सके तो चलना सीख गिरना और समझना सिंह सोना तब कुंदन बनता है प्रेम अगन में चलना सीख जीने की चाहत है घर तो बर्फ तरीके गलना से राजनीति में आना है तो खुद अपने को झेलना सीख ढाका मस्ती एक बात है पर भागों में पालना सीख मैं भी अब सो जाने को हूँ अब तू खुद ही जगना सी तेज अकेला क्या कर लेगा हाथ मिलाकर चलना सीख न दे रे न रैनबसेरे सूरज रूठा सुबह सवेरे फुटपाथी घर पटरी बिस्तर कोरा है धरती को घेरे बात बात पर राजनीति हैं मूल्य कहाँ तेरे मेरे भुजबल की पहचान है हरसू ज्ञानी को भुजबल हैं घेरे किस्से करें वफाकी मिन्नत अपने ही हैं आंखें भेज रही धनिया जहाँ भरे भी पानी हरियाणा वह पनघट दे रहे हैं तेज हुआ कुछ ढीला लेकिन वक्त है फिर भी आंख करे रहे वो पटरी बिस्तर ईट करता क्या टापर्स इधर सोवे हरियाणा टूटी जूती हटा घाघरा कब तक सी वो भूखी धनियाँ आंखों में ही डूब जाऊं मुझसे आंख बंद कर बदिया छाती पर चढकर बैठा है नए दौर का छह बाहरिया तेज क्या जाने नए दौर में जिंदादिल है केवल गठिया गांव जब जब भी शहर आवे हैं रात आंखों में गुजर जावे हैं रंग धरती का रहत का मंजर सहज आंखों में उतर रह रहे हैं मार अम्मा की प्यार भाभी का आगे चौखट पे ठहर जावे हैं मैं सरसों की गंद गोबर की जैसे आंगन में पसर जावे हैं तेज जानो तो गांव में हरसू सांस हस्ती है सहर गांव हैं गांव में नए दौर की रफ्तार ले चलो जोड के दस बीस दल सरकार ले चलो बातों में हैं या बात बनाने की नहीं छोडकर इंसानियत तलवार ले चलो जिंदगी जीना है तो जीने के वास्ते हाथों में आपने वक्त का अखबार ने चलो गर्मियों का दौर है माना कि दोस्तो, गर्मियों को छोडिये है बाहर ले चलो जिंदगी माना कि एक नाव के जैसी तो हाथ में आपने फकत पतवार नहीं चलो मौसम में कुछ बदलाव है पैगाम लिख भेजो पार्टी कोई हम कम जगहों के नाम लिख नहीं जो मदद हुई है राष्ट्र से सिर्फ दा किए हुए तकदीर में मेरी भी कोई रात लिख भेज हुआ है उठ गया यू तो जमाने से सुकून कुछ तो होगा आदमी का नाम लिख भेजो या रास्ता रास्ता मंजिल परस्त है कि मेरे रहे तबीब का अंजाम लिख भेजो जबसे गए हो पुर असर तबियत नहीं खेली अब की हवा के रास्ते मुस्कान लिखने जो गांव में नए दौर का प्रभाव देखिए हर नजर हर नवी में बदलाव देखिए इंसानियत यु ही तो ना चुकता हुई निर्धन का है धनवान से टकराव देखिए बदलियां बरसी तो बरसी शहर से हटकर बस्ती में धूपछांव का छिडकाव देखिए कल तलक घर बार था आबाद था आंगन नए दौर में नए तौर का बदलाव देखिए वो जो मुझको हर घडी सूली चढाई है चाल में उसकी हुआ है । राव देखिए जब जब भी वो मिले हैं रोते रोते हस्ते हैं फिर फिर भाग का मस्ती का बाहर मेरे फिर धरते हैं चलते चलते रुक जाना रुक रुक कर के चलते हैं आंखों से करते हैं बातें हाथ नब्ज पर रखते हैं गुजरात एज सफर से ऐसे नाक पकडना भरते हैं बोल सके तो खुलकर बोल वजन तरफ दारों का तो अपना और बनाया छोड सबको एक नजर से तो मैंने अपने पत्ते खोले तो भी अपने पत्ते खोल पर डे तो पर्दे हैं बेशक मुमकिन है पर दोनों में झोल अपना घर तो अपना घर है किसी और की कुंडी खोल तो तुम अपनी कीमत पहचान हूँ मैं तो हूँ कौडी के मोल तेज का क्या वो तो पागल है तो अपने बारे में हूँ कंगला मालामाल बरस शांतिदूत महाकाल बरस आता जाता सालाना मानवता को साल बरस राजनीति के गलियारों में करता खूब धमाल बरस जी ने देना मरने दे हैं, करता अजब कमाल बरस उत्तर की परवाह किए बिन गडता नए सवाल बरस कथनी करनी पढना हक करता नहीं मलाल बरस तेज मानवीय संबंधों का करता नहीं खयाल बस बात पर कुछ बात कहना प्यार को जज बात कहना बारहा गमगीन मत रहे खास कुछ उत्पाद कहना टूटती इंसानियत को कल योगी प्रपात कहना रक्त में ना हाई धारा को बे सबब अपवाद कहना आग का घर है जमाना टूटकर हिमपात कहना दो सावन कि करवट बदलती रही कि समंदर की चढती उतरती रही चंद सोता रहा अर्श पर नई खबर चांदनी दरबदर भटक ही रही धनिया की नाजुक जवानी मगर दुष्ट आंखों में रह रहे उतरती रही जान तारों से लेकर कोई ताजगी बीटीआरसी बनती समवर्ती रही तेज तपता रहा जेट की धूप साहब वो सावन के जैसे ही बस्ती रही विदा हुई जब घर आंगन से बेटी आ रहे बस पडी बूढे बाबुल की अखियां आ रही हूँ भाभी की आंखों के आंसू सूख गए हवा हुई छोटे भैया की निधियां रहे बाहर बाहर बिटिया भी थी दुखी बहुत अंदर अंदर चमक रही थी बिंदिया रही दूल्हा दुल्हन पल भर में ही एक हुए हाथ लगी जी हूँ निज मंजिल की बत्ती आ रही तेज अकेला नाहक थक थक रोवे हैं जीवन जीवन है बहती नदियां रहे बेटे वालों की सरदारी क्या कहने ढोल वाले गोलाबारी क्या कहने सब दुल्हे के आगे पीछे घूम रहे बेटी वालों की ला जारी क्या कहने लेना देना खाना पीना सब कुछ है ऊपर से है तहबाजारी क्या कहने मित्र जनों ने मिलकर सारा काम किया रिश्तेदारों की मेहमानी क्या कहने तेज पडोसी आए आकर चले गए नए दौर की आपस दारी क्या कहना है कब फर्स्ट टूटे गगनी वे चुरू तो कुछ कुछ हो आम लापा बजे घुंगरू तो कुछ कुछ हो अमावस्या की रातों में जो जुगनू बन कभी दो को कभी निकलूँ तो कुछ कुछ हो पतझड के बियाबान मे में सरसों सारा कॅश लूँ बनु सवरूप तो कुछ कुछ हो वैशाखी दोपहरी में मैं बन बादल कभी घर जाऊँ कभी बरसू तो कुछ कुछ हो तेज का क्या मेरी सोचो मैं बन मजनू डिश करके नाम हो गुजरा हूँ कुछ कुछ वो आई भी सकुचाई भी कुछ मिलने से कतराई भी लगता है सस्ती है अब उसे भीड भरी तन्हाई भी नए दौर में छीन ली वैसे तरुणाई भी अंगडाई भी आप चुराई के होले होले वो शरमाई भी खिलाई भी कुछ भी गांव जिंदगी आ रहा है रुतवा भी जो दवाई भी इतना भरना प्रयाद क्या क्या दिल से दिल को याद किया कौन है अपना कौन पराया जितना हो इमदाद क्या कर यूट्यूब जीना भी क्या जीना कुछ कुछ कुछ संवाद क्या कर कोई नहीं यहाँ सुनने वाला नाहक न फरयाद क्या कर शायद फिर हाजत हो निकले आंसू ना बर्बाद किया कर हूँ गए रोज मैं देखा क्या यूज चांद सा चेहरा रोशनी कम कम थी कुछ दाग था कह रहा गो चंद की फितरत नहीं मेरा नसीब है या की है मेरे देश पर एक लाख का पहला नामुमकिन हुआ मिलना मेरा उससे कभी बुंदी रही था उम्र जो मेरे नाम का सहरा वो आदमी जो न्याय की नजरों में चोर था नजरों में खास हु आम कि वो आदमी ठहरा उन्हें जाना जिंदगी दरिया है हर नजर के तेज नहीं जाना क्या जिंदगी का सहवा जब मैं पारी हार खडा था सुधियों से हर सांस लडा था चंदा अंधियारों में गुम था सूरज का प्रभाव पडा था मेरा भी अस्तित्व था कोई लेकर इतनी बात अडा था आज की तरह मियां कल भी आरा माना आंगन कुछ गला सडा था तेज अकेला क्या कर लेता है लडने को यू जो लडा था फिर फिर कोई अपना मुझे शीर्षा दिखाए हैं खुद तो हस्ता है मगर मुझको रुलाए हैं मेरे घर में देख कर के धुप अंधेरा बारहा घर में वो किसी और के दीपक जलाए हैं मांगू पता अगर तो वो रास्ता बताये हैं आने को तो आता है मुझे जोड घटाओ हूँ वह करते करते जोड कर कुछ कुछ घटाई है बात बढने से ही पहले हम गए अच्छा हुआ अब मैं बतलाऊं से ना वो बुलाई हैं जाने कब कब क्या क्या खोया सोच सोच के मन में रोया के मजदूर इनका भूका बच्चा माँ का थप्पड खाकर सोया जब जब नींद ना आए मुझको आंसू पीपी करके सोया चंदा क्या खुजलाई सूरज घोडे बेच के सोया तेज पहनकर काला चश्मा छत पे चादर तान के सोया ये कैसी हिमाकत है रिश्तों में बगावत है कहने को तो असली है सचमुच में मिलावट है चलने का हुनर तो है रस्तों में रुकावट है भूखों के पांव छूकर उभरी ज्ञान सियासत है उसने नहीं मेरे हाथों की लिखावट है उससे ही नहीं मेरी खुद से भी अदावत है करता है कौन मेरी धरती पर हिमायत है मतलब की बात करना दुनिया की रिवायत है है चादर में झोल खासे ये कैसी बुनावट है तेज सभी अपनी फिर कैसी शिकायत है अपनी एक मजबूरी है खुद से खुद की दूरी है मोर हुआ बूढा मना पर मस्त मलंग मयूरी है काम तो है पूरा का पूरा अभी मगर मजूरी है रोटी के मुद्दे पर चर्चा साडियों गए अधूरी है जीना तो है एक चुनौती मारना एक मजबूरी है बहुत हुआ जीतेजी मारना जुलमत के घर पानी भरना मुद्दत बाद समझ आया है खुलकर जीना खुलकर मारना जिसको आना है आएगा देशक द्वार गुलाम मत रखना खट्टा मीठा जैसा भी है मैं फिल बीच सजा कर रखना तेज आंधियां बाबस्ता है दीपक जरा बचाकर रखना बे जाना सिर्फ अपने तू सबके मुन्ना हले लेनी ही पडे घर तो खुदा की पनाह लें हो ही गया ना बेडा तमाम अगर ले और लेना हक सबकी सलाह ले सुनता है कब कानून मुद्दा ही कि सादा साथ में कुछ एक तू अपने गवाह ले बनता था जो इश्क का तीमारदार हो गया वो इश्क में यू ही तबाह ले कुछ जामनगर जो हो गया तो हो गया छोड सिटवे तेज अब मंजिल की रह लेगी सरे राह में गुजरात तो पर कुछ कुछ यूं काम तेरह कुछ ने बडा तो पर कुछ कुछ यूं ना घर का रहा घाट का क्या कही ना मेरा सच उछला तो पर कुछ कुछ यूं कब रात हुई कब दिन निकला मैं क्या जानूँ गिर गिर के मैं मिला तो पर कुछ कुछ यूं न बाहर कभी न पत्थर बनाराम क्या मैं बर्फ सरीखा पिघला तो पर कुछ कुछ यूं उठ उठ गिरना गिर गिर उठना लगा रहा है तेज सफल में निकला तो पर कुछ कुछ हूँ मैं हूँ कि बर्बाद मैं पूछूँ गए दिनों की बात ना पहुंच हूँ झुलसा है मिला घर आंगन कहाँ हुई बरसात न पूछो दिन डालते ही टूट गया दिल और गुजरी रात ना पूछो फरमानों में चैन अमन है वैसे है उत्पाद न पूछो कुछ तो मेरा भी रहने दो मेरी हर एक बात ना हो आंखों आंखों प्रीत लिखा कर अधरों आदमी गीत लिखा कर सर्दी सर्दी धूप का नगमा गर्मी गर्मी शीत लिखा कर अपने हिस्से हार भली है उनके हिस्से जीत लिखाकर आपने तो आपने है माना गैरों को भी मीट लिखा कर तेज के नगर में नाकाफी हैं । सांसों में संगीत लिखाकर बहुत मुश्किल से दिया जाता है । अंक मिलता नहीं लिया जाता है । जहर पीने की बात किया कीजिये जहर मुश्किल से पिया जाता है । कर्ज लेना तो सहज है लेकिन कर्ज क्रिश तों में दिया जाता है । हम तो हम है कि जवाब दिल छह रहे पर दिल मुश्किल से दिया जाता है । बात करने में कुछ नहीं जाता । जख्म मुश्किल से सिया जाता है पल पल यु ही गुजरा जीवन कदम कदम पर हारा जीवन हमने जाना एक चुनौती उसने जाना नारा जीवन मौत को आना है आएगी फिर फिर लाख सवारा जीवन समझे थे हम चांद सरीखा लेकिन निकला तारा जीवन मौत की चिट्ठी साथ लिए हैं मानो कि हल्का राजीवन कहने को एक साल गया है वैसे जिंदा काल गया है लेकर खाली प्याला प्याली घर अपने कंगाल गया है सत्ता की आपाधापी में पाक कभी बंगाल गया है मानवता के सीने पर चढ मजहब का भूचाल गया है बेपर्दा हुई राजनीति की इंसानी सुल्ताल गया है सोनी मस्तानों की होली हाथ छोडा महिवाल गया है तेज पुराने संबंधों को अनुबंधों में ढल गया है एक दिन मुझे तू आंख भर के देखता हूँ सीने पे तेरे हाथ घर के देख तो कुछ सुनाई दे अगर तो चुप रहना दिल्लगी का हौसला एक बार करके देख तो जो कुछ हुआ तो हो गया अब छोड भी जीतने पर भी कभी तोहार करके देख तो हर घडी ॅ आऊंगा नजर सुधियों की खिडकी खोलकर के देखता हूँ तेज है कि उल्फत में तेरी जब है दिल तू उस परिवार करके देखता हूँ खिराम आखिर लामा चला कीजिए बियाबाँ अभियान बाजिया कीजिए जिंदगानी असल जिंदगानी नहीं मौत से रूबरू हो दिया कीजिए रिंदों की सहमत है अच्छी नहीं अकेले अकेले पिया कीजिए कब तक किसी का एहसान लोगे चाक दामन स्वयं ही सिया कीजिए तेज । खुद ही उजालों से महरूम है ना उसका सहारा लिया कीजिए भागा कशी में ही दम लिया है आज तक । मैंने देखा नहीं है शहर क्या बाजार तक मैंने कहने को हम आजाद है, आबाद है लेकिन देखी नहीं दिल्ली कभी राजपथ मैं नहीं खून का इल्जाम यूज के सिर्फ था खुद ही खुद को है क्या पर नामजद मैंने एक खत्तक भी मेरा अक्सर बना हुआ लिखने को यू लिखे हैं लाख खत्म मैंने दिल्लगी भी खूब है दिल्लगी में तेज पूछा न यार ए यार का कभी नाम तक मैंने हम को छह से उदार होने के लिए जैसे पूर्वा बयार होने के लिए कितना अच्छा हो कि घर ही में दर्द दिल का गुबार होने के लिए बहुत शब्दों को छला था हमने । शब्द आखिर सवाल होने के लिए शिकारी शौक फरमाते खुद ही खुद का शिकार हो निकले । घर के बाहर जो शेर बनती थी तेज घर में सीआर होने के लिए

Details
गुज़रा हूँ जिधर से कविता संग्रह Voiceover Artist : RJ Nitin Author : Tejpal Singh ' Tej'
share-icon

00:00
00:00