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प्रतिशोध - प्रतिशोध in  |  Audio book and podcasts

प्रतिशोध - प्रतिशोध

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10 हॉरर कहानियां का संग्रह 'प्रतिशोध' आपके रोंगटे खड़ा कर देगा। ये कहानियां अलग-अलग घटनाओं और व्‍यक्ति से जुड़ी हैं। तो देर न करते हुए ट्यून करें कुकूएफएम और सुनें खौफनाक कहानियां।
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प्रतिशोध हूँ । दिव्या पिछले हफ्ते विदेश से अपनी पढाई खत्म करके लौटी थी । उसे अपने कॉलेज की तरफ से लंदन में आगे की पढाई करने के लिए स्कॉलरशिप मिली थी । पूरे कॉलेज के छात्रों में सबसे अधिक अंक पाने वाले विद्यार्थी को ही ये स्कॉलरशिप दी जाती थी । ऐसा नहीं था कि दिव्या के बेटा उसे पढने के लिए विदेश भेजने की हैसियत नहीं करते थे लेकिन दिव्या को चाहत स्कॉलरशिप हासिल कर विदेश जाने की थी । इसका कारण ये था कि हर साल हजारों विद्यार्थी स्कॉलरशिप पाने की इच्छा से परीक्षा देते थे । इसलिए इतनी कडी प्रतिस्पर्धा को जीत करिए । स्कॉलरशिप पाना बहुत बडे सम्मान की बात है । उसके वापस आते ही उसके बिताने दिव्या के लिए बहुत शानदार पार्टी दे डाली । अपने पिता क्या हो मगर और प्रसन्नता देकर दिव्या भी बहुत खुश थी । रात की पार्टी के कुछ बेहतरीन पलों को याद कर ही रही थी कि उसके मोबाइल फोन की घंटी बजे फोन उसकी सबसे प्यारी सहेली स्नेहा का था । कॉलेज के दिनों में वो एक साथ ही पडती थी । दोबारा को मिली जान इस ने बडे जोश से कहा अब आगे क्या अगर नहीं आ रहा है । सोच रही हूँ पापा का बिजनेस मालूम तब तो ये बिजनेस की नहीं हूँ । अपने सपनों के राजकुमार की जरूरत है । इसलिए मैंने मुस्कुराते हुए कहा पैसे पापा कुछ विषय देख रहे हैं । लीबिया को शर्म आ गयी । वो सब तो होता रहेगा । इस नेहा के स्वर में अपार उत्साह था । आज मैं तुझे भविष्य जानने का सबसे आसान तरीका बता दूँ क्या है? देख कुछ नहीं । बस इतना करना है कि किसी ऐसे कमरे में जाकर बैठ जा जहां रोशनी बहुत कम हो । अपने हाथों में एक आईना ले लेना । फिर वहाँ मोमबत्ती जला लेना और पूरे तेरह बार ब्लडी मैरी का नाम होगा । तो जो साइने मैं एक आत्मा दिखाई देगी तो उसे पूछ लेना कि तेरा होने वाला जीवन साथी कैसा होगा? उसके बाद तुझे आइना हाथों में लेकर उल्टी सीढियां चढनी होंगी तो जो सेना में चेहरा नजर आएगा, ये चेहरा उसका होगा जो आप करते रहा, जिंदगी भर के लिए थामेगा । ये सब तो भगवान से लीबिया ने सिर हिला दिया । मैं ऐसी बातों पर विश्वास नहीं कर सकती । मैं सच कह रही हूँ इसलिए मैंने जोर देकर कहा अपनी रेखा है ना, उसने ऐसा ही किया था और तू जानती है । अगले ही दिन उसे लडके वाले देखने आए । उसके होने वाले पति की शक्ति बिलकुल वैसी थी जैसी उसने तो साइनी में देखी थी । चल झूठी देवी अपनी सहेली का मजाक उडाते हुए हसी तो जगह मुझ पर विश्वास नहीं तो खुद क्यों नहीं आजमाकर देख लेती हूँ । ठीक है तेरी फॅमिली के लिए ये भी करके देख लेती हूँ क्या कर दिव्या ने फोन कार्ड दिया । दिव्या ने अपने कमरे की खिडकियां बंद कर ली और पर्दे गिरा लिए । फिर उसने कमरे में चारों तरफ मोमबत्तियां जलाई और उसके बाद कमरे की लाइट बंद कर दी । रात का व्यवस्था इसलिए मोमबत्ती के हल्के से प्रकाश के बावजूद भी कमरा अंधेरे में डूब गया । उसने एक मोमबत्ती मेज पर भी जलाई और एक चाइना अपने हाथ में ले लिया । पता नहीं ये सब में क्यों कर रही हूँ । ॅ को देखते हुए कहा लेकिन क्या करूँ? अपनी सबसे अच्छी सहेली की बात टाल भी तो नहीं सकती । चलो ये भी करके देख लेते हैं । दिव्या ने आईने में देखा और पूरे तेरह बार ब्लडी मैरी का जवाब क्या जैसे उसका जवाब खत्म हुआ । उसने आईने में देखा हूँ । उसे अपने चेहरे के अलावा और कुछ भी नजर नहीं आया । मैं भी ना एकदम पागल हो । दिव्या हसी और आपने सर्पा धीरे से चपेट हमारी । जाने क्यों फालतू की बातों पर विश्वास करने लग जाती हूँ । ऐसा कहकर उसने आइना मेज पर दिया । उसके मुँह से शव निकाले थे कि कमरे की सारी मोमबत्तियां बुझ गई । सिर्फ मेज पर रखी एक मोमबत्ती ही चल रही थी । ये देखकर दिव्या को बडी हैरानी हुई । सारी खिडकी और दरवाजे बंद थे । कहीं से हवा का एक झोंका तक नहीं आया । तो फिर ये मोमबत्तियां मुझ कैसे गई? अंधेरा होते ही ना जाने क्यों दिव्या के दिल की धडकनें अचानक से तेज हो गई । जैसे उसे किसी अब शुरू उन का आभास हो गया हो । उसे ऐसा लगा कमरे में उसके पीछे कोई हरकत हुई हो । उसका मुड कर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था । उसे बार बार ये अहसास हो रहा था कि उसके कमरे में कोई अनजान साया सांस रोककर छुपा बैठा है । उसने धीरे से मेज पर रखा है ना उठाया उसके हाथ बहुत बुरी तरह से कहाँ रहे थे । फिर भी उसने कैसे कैसे आई, ना हाथ मिली और उसे देखा । उसे आईने में एक औरत का डरावना सा चेहरा नजर आया । उसकी अंगारों जैसी लाल आंखें बाहर को निकली हुई थी । उन आपको में आक्रोश भी था और खेलना भी ऐसा लग रहा था कि वह चोएल आंखों से ही दिव्या का खत्म कर डालेगी । उसकी नाक से खून बह रहा था और उसकी जी भी उनके बाहर लटक रही थी । उसके गले पर ऐसे गांव के निशान थे जैसे किसी रस्सी से उसका गला घोट आ गया हो । उसके देखते ही देव्याः थरथर का आपने लगी अपने होने वाले पति का चेहरा देखना चाहती हो । वो सौरभ से दिव्या को घूरते हुए पूछा । दिव्यांग डर के मारे अपनी आवाज खो दी थी । उसने सहमते हुए अपना से हिलाकर हामी भरी । फाइन को हाथ में लोग और उल्टी सीढियाँ चौडा शुरू कर दो तो स्टूडेंट है खून दिया । दिव्या आइना लेकर उठी और सीढियों की तरफ थोडी चिडियों के पास पहुंचकर उसने आईने में देखा तो छोडा जा चुकी थी । दिव्या की जान में जान आई । उसके पैर लडखडा रहे थे लेकिन फिर भी उसने बडी मुश्किल से हिम्मत जुटाकर सीढियां चढना शुरू किया । सीढी चढते हुए उस की नजर आई । ने पर ही टिकी रही । उसमें अव्यक्त चेहरा उभरकर आने लगा था । जैसे जैसे वो सीढियाँ चढती वो चेहरा और ज्यादा व्यक्त होने लगता है । जब उसने आखिरी सीढी भी चौडी तो उसने महीने में देखा । उसमें एक ऐसा चेहरा उभर आया था जो उतना ही भयानक था जितना कि वह आकर्षक था । उसके माथे पर लगी छोड से खून की धारा फूट रही थी जिसने उसके चेहरे के आधे हिस्से को खून में डूबा दिया था । रंजीत होने के बावजूद भी देवयानी वो चेहरा पहचान दिया था । उसे पहचानते ही दिव्या के रोंगटे खडे हो गए । राहुल दिव्या के मुझसे वो नाम खुद बा खुद निकल पडा । दिव्या को अपने डॅाल वाले कॉलेज का वो आखिरी साल याद आ गया । उन दिनों दिव्या हर हाल में स्कॉलरशिप पाना चाहती थी और उसके लिए वो जी तोड मेहनत करती थी । लेकिन दिव्या चाहे कितनी भी कोशिश क्यों ना कर ले वो हमेशा राहुल से मात खा जाती थी । स्कॉलरशिप के पहले चरण की परीक्षा में राहुल दिव्या से कुछ ज्यादा ले आया था । अब अगली परीक्षा में भी उसकी जीत लगभग निश्चित थी । दिव्या को लगा कि उसे जल्दी कुछ करना होगा नहीं तो राहुल बाजी मामले जाएगा । उस पर स्कॉलरशिप पाने का जुनून इस तरह सवार हो गया था । वो किसी भी हद तक जा सकती थी । जब सीधी उम्मीद से भी ना निकला तो दिव्या ने उंगली टेढी करने की सोची । उसने राहुल को छल से हराना ही उचित समझा । उसने राहुल से दोस्ती बढाई । राहुल सीधा साधा और दिल का बडा हिस्सा लडका था । वो दिव्या को धूर्तता ना समझ पाया । जब दिव्या ने देखा कि उसकी चाल काम कर रही है तो उसने राहुल को धीरे धीरे अपने रूप लगाने के जाल में भास्कर प्रेम पांच में बांध लिया । लेकिन राहुल उसे सच्चा प्यार करता था और मनी मान उसे जीवन संगीत मान बैठा था । जब दिव्या ने देखा कि राहुल उसके जाल में पूरी तरह से फंस चुका था तो राहुल पर छुपकर बाहर करने लगी । उसने धोखे से उसे नशीली दवाएं देनी शुरू कर दी । राहुल को नशीली दवाओं की लत पड गई और उसका ध्यान पढाई से हट गया । अब दिव्या का रास्ता साफ था । उसने अगली परीक्षा में खूब दिल लगाकर पढाई की और स्कॉलरशिप हासिल करें । उसके बाद राहुल का कोई पता नहीं चला । दिव्या को लगा स्कॉलरशिप ना मिलने की असम में वो कॉलेज छोडकर चला गया है । राहुल तुम दिव्या ने हकलाते हुए पूछा तो तो तो तो क्या हो गया मैं तुम्हारी तरह अमीर बाप के बोला तो था नहीं । पायले के अंदर से राहुल बोला मेरी माँ ने बहुत सारा कर्जा लेकर मुझे पढाया था । स्कॉलरशिप ना मिलने की वजह से मेरे लिए सारे रास्ते बंद हो गए तो ऊपर से ड्राॅ मुझे अंदर से खोखला कर दिया था । मेरे सामने आत्महत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था । तुम जिस दिन स्कॉलरशिप लेकर विदेश गई थी तो मैं अपने घर की छत से कूदकर अपनी जान दे दी । मुझे होने के मेरी माँ भी फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली । तुमने आईने में जिस सुथरी को देखा था मेरी माँ थी मुझे माफ कर तो रहा हूँ । देव्यागिरि लडाई हो स्कॉलरशिप मेरे लिए बहुत मेहनती दे दिया । राहुल की आंखों से खून के आंसू निकल पडे लेकिन उससे कहीं ज्यादा अहम था हमारा प्यार तो मैं एक बार मुझसे कह दिया होता कि तुम्हें स्कॉलरशिप पाले कितनी तमन्ना है तो मैं खुद तुम्हरे रास्ते से हट जाता हूँ । स्कॉलरशिप तो में अगले साल भी हासिल कर सकता था । मैंने तुमसे सच्चा प्यार किया था दे दिया लेकिन तुमने मेरे प्यार के बदले मुझे धोखा दिया और अब तुम है इसकी सजा मिलेगी नहीं । वो सेना दिव्या के हाथों से नीचे गिरकर टूट गया । राहुल की आत्मा उस महीने से आजाद होकर और दिव्या के सामने खडी थी । राहुल को जगह जगह चोट लगी थी और खून बह रहा था वो धीरे से दिव्या की ओर बढा । दिव्या उससे बचने के लिए ऊपर छत की तरफ भागी । छत पर जाकर वो रेलिंग को कसकर पकड के खडी हो गई । उसने चारों तरफ देखा कहीं भी कोई नहीं था । दिव्या ने आंखे बंद की और एक गहरी सास नहीं लेकिन जैसे ही उसने फिर से आती खोली राहुल को आपने बिल्कुल करीब खडे पाया । वो भयानक दृश्य देखकर दिव्या का संतुलन बिगडा और वह छत से नीचे गिर गयी । उसकी तत्काल ही मृत्यु हो गई । दिव्या की मौत होते ही राहुल और उसकी माँ की अशांत आत्माओं को मुक्ति मिल गई हूँ हूँ ।

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