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लक्ष्य की ओर चलने वाले को बीच में विश्राम कहा? सिर्फ चलते जाना है चलते जाना है कहीं भी शिथिलता या आलस्य नहीं ज़रूर सुने, शिखर तक चलो बहुत ही प्रेरणादायक कहनी है। writer: डॉ. कुसुम लूनिया Voiceover Artist : mohil Author : Dr. Kusun Loonia
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सोमेश की आंखों से नींद कोसो दूर थी । अच्छी थी घटनाएं चलचित्र की भारतीय उसके स्मृति पटल पर एक एक करके उभरती जा रही थीं । उसे अपना बाल्यकाल याद आने लगा । किस तरह माओत्से अपनी ममता की छांव में इसने से वाट साले पूर्वक खिलाती पिलाती बहलाती खेल खेल में अच्छे संस्कार देती और रात में लोरी गाकर सुनाती हूँ अभी भी वो जब तक मैं भोजन नहीं कर लेता माँ खाना नहीं खाते हैं । पिताजी का अनुराग पूर्वक अनुशासन आठ मीयता संपूर्ण मार्गदर्शन रहे रहे कर याद आ रहा था वो अपने आप को सामान्य नहीं कर पा रहा था तो कभी शिवा की बाल क्रीडाएं और उसका पाता पापा कह कर लेकर जाना याद आता बिच्छुओं की अंतिम शाम वाला जन्म दिवस का डाॅॅ उसे बेहद था । वो कर रहा था जिस हाथ आपसे उसने कहा था कि वह बडा होकर फौजी बनेगा । उसे याद करके सोमेश की आंखों से पुनः आँसू बहने लगे और उसके आंसू को पूछे । किसके कंधे पर सर रखकर रहे आप उसे अपनी प्राणप्रिया के अगाध प्रेम की उसके समर्पण की एवम उसके स्नेहिल साहचर्य की यहाँ आने लगी अंतिम रात का मधुर साथ और उसके पश्चात निष्ठुर विडियो कोई आज करके फूट फूट घर उन्हें लगाओ । दीवारों पर सिर पटक ने लगा पागलों की तरह इस कमरे से उस कमरे में चक्कर लगाने लगाओ । ऍम कक्ष में रखे उसकी फोटो को दिल से लगाकर लगता रहा हूँ । इस प्रकार उसकी पूरी रात मिलाप में कट गयी । वो सुबह का हल्का हल्का प्रकाश होने लगा । सीमा की तस्वीर को सीने से लगाए लगाए उसे हल्की सी क्या आ गई? उसे लगा कि उसके दादा अपनी गोद में सुलाकर उसे सांखना भरे स्पर्श है । कब तक आ रहे हैं? आदमी स्पर्श की अनुभूति से उसकी आंखें खुल गईं । उसने देखा सच मुझे किसी बुजुर्ग की गोद में सोया ऍम यह तो उसके मित्र चारु मजूमदार के पता थे । उन्हीं की उम्र के दो तीन व्यक्ति भी उनके साथ एॅफ रह गया और तुरंत छोडकर बोला, अरे आप सब लोग ऍम बोले आज रात का ब्राह्मण है तो जब हमें घर से निकले तो देखा तो महाराज घर खुला हुआ है । सम्भवता तुम लौट आया हूँ । यही सोच कर तो मेरे से मिलने आ गए । बेटा बहुत बुरा हुआ तो तुम्हारे माता पिता जी का अंतकाल सिर्फ तुम्हारे ही नहीं पूरे गांव की अपूरणीय क्षति है । वो तुम्हारी पत्नी और बेटे के बारे में भी सुन कर बहुत दुःख हुआ हूँ । धीरज रखो बेटा भगवान तो मैं जोक सहन करने की क्षमता थे । जहाँ उधो, दीपाकर, सोमेश, पुराना बेला, कोटा रोते रोते उसने पूछा हूँ ऍम चारों के पिताजी हतप्रभ रह गए । उन्होंने कहा कि उसने उन्हें नहीं मारा । ॅ तो अपनी मित्र मंडली के संघ उनसे घंटों मार्गदर्शन लिया करता था । तुम्हारे पिताजी इनके मध्य बेहद लोकप्रिय हो गए थे । उनकी भर्ती है, लोकप्रिय नहीं । उन की जान ले ली । उस दिन सुबह से ही गहन चिंतन मनन पर विचार विमर्श चल रहा था । राहत को सब युवक अपने अपने घर लौट गए । दूसरे दिन प्रात आह, तुम्हारे पिता माता गोलियों से छलनी महत्व पाए गए । कहाँ वालों का विचार है कि जमींदारों ने ऐसा करवाया था? सारे युवक तो ये खबरें सुनकर भी बहुत हुए थे । उनके देव हासन के पश्चात हैं । युवकों को कोई सही मार्गदर्शन देने वाला नहीं रहा हूँ । आटा जो आंदोलन गरीबों, भूमिहीनों एम किसानों के सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिए हुआ था । मैं हिंसा गुरिल्ला युद्ध में बदल गया । मेरे बेटे चारों को पुलिस पकडकर ले गईं । तभी मैं आज यहाँ नहीं आया । ऐसा कहते कहते उनकी आंखें भी नम हो गईं । एक नीरव स्थान बताता हूँ और छा गई । अन्य मान सक सो मैं तत्कालिक स्थानियों पर चिंतन करते हुए हिंसा के रूपों के बारे में सोचना लगा । दूसरों के प्रति द्वेष की भावना, उन्हें गिराने का मनोभाव और उनकी बढती हुई प्रतिष्ठा तो रोकने के सारे प्रयत्न भी हिंसा के अंत गर्भित है । हिंसा की स्थिति पैदा करने वाला कोई भी व्यक्ति अच्छा नहीं । जो व्यक्ति एक बार हिंसा के घेरे में उतर जाता है, फॅमिली उस वाला ऐसे बाहर नहीं निकल पाता हूँ । मैं इधर देखता है । उधर हिंसा ही हिंसा दिखाई देती है । इंसा के शक्ति का प्रयोग संसार में कहीं भी हो, उसका दुष्परिणाम समूची मानवजाति को भोगना पडता है । और जब जनतंत्र में जान पीछे छूट जाता है और तंत्र आगे आ जाता है तब हिंसा आवश्यक भडकती है और नहीं नहीं समस्याएँ खडी हो जाती हैं । उसके माता पिता इसे हिंसा का शिकार हो । इस समय प्राण गवा बैठे ऍम क्या करें? माँ पिताजी के हत्यारों का कैसे पता लगाएं और कौन सा रास्ता अपनाएं ऐसा चिंतन करते हुए हैं । उसके मानस पटल पर अपने मित्र चारों का भी चित्रों भराया । चिंतित स्वर में उसने उसके पिताजी से पूछा हूँ हूँ, वहाँ कैसा है और उसे कब तक रिहाई मिलेगी? अपने पुत्र की आज मैं दुख उदासी सुना बनवा इंतजार के अलावा उनके पास सोमेश के इस प्रश्न का कोई भी जवाब था । काफी समय तक सब लोग वहाँ बैठे रहे । फिर एक एक कर के धीरे धीरे चली गईं । इसी प्रकार संवेदनाएं प्रकट करने हेतु लोगों का आने जाने का क्रम गए दिनों तक बना रहा हूँ । सुमेश को लोगों से सभी प्रकार की सूचनाएं मिलती रहती थीं । कभी किसी व्यापारी के पैसे लूट लेना, कभी किसी निर्दोषों की हत्या कर देना तो कभी किसी सरकारी अधिकारी को अगवा करके चारों को छुडवाने की शर्त रखना । कभी कुछ तो कभी कुछ दिशाहीन युवक माओवादी बनकर इस प्रकार के क्रिया कलाप कर रहे थे । एक दिन खबर मिली की पुलिस की हिरासत में चारु मजूमदार की मौत हो गई । उनका साथ ही सान्याल आंध्र प्रदेश भाग गया । आप कुछ ही दिनों में केंद्रीय पुलिस बल की बढती दवेश से अनेक नक्सली नेता या तो मारे गए या कैद कर लिए गए तो अनेक नक्सली नेता समाज की मुख्यधारा से जुड गए तथा कईयों ने राजनीतिक पार्टियों की भी सदस्यता ग्रहण कर ली । इस प्रकार से कुछ समय पश्चात बंगाल में नक्सलवादी आंदोलन ठंडा पड गया हूँ ।

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लक्ष्य की ओर चलने वाले को बीच में विश्राम कहा? सिर्फ चलते जाना है चलते जाना है कहीं भी शिथिलता या आलस्य नहीं ज़रूर सुने, शिखर तक चलो बहुत ही प्रेरणादायक कहनी है। writer: डॉ. कुसुम लूनिया Voiceover Artist : mohil Author : Dr. Kusun Loonia
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