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सर्दियों की गुनगुनी धूप थी । साबित्री अपने घर के आंगन में बैठी सब्जियाँ साफ कर रही थी । पहले सारे माॅ निकले फिर गाजर का दुकान करने लगी । काम को गाजर का हलवा बनाया था । इतने दिनों की मई उसीसे आज मैं भरी थी । उसका प्रिया भाई के शव जो आने वाला था वो आपने घायालों में जो भी अपने काम में इतनी तन्मय थी कि सत्यवान कब आया उसे पता ही नहीं चला हूँ । सत्यवान ने उसे देखा और देखता ही रह गया । जगह नाता लाल साडी लाल बिंदी कमर तक झूलते चमकीले काले बाल सादा मायूस रहने वाली साबित्री के चेहरे पर आज हल्के से खुशी की रेखाएं देख उसे संतोष की अनुभूति हुई । वैसे हॉल ऐसे वहीं सावित्री के पास बैठ गया । ऍम अचानक पति को आया देख कर रहे चाहे कहीं साडी कहाँ चल संभालते हुए बोली ऍसे हूँ । सट्टे वाहन ने असली बात छुपाते हुए कहा ॅ हो रहा था तो मैं घर चलाया हूँ । सावित्री तुरंत गाजा छोडकर खडी हो गई और बोली चलो में दवाई लगा देती हूँ और अदरक की चाय पिलाती हूँ । अंडा क्या चाहे दो आके सत्यवान को मुंहमांगी मुराद मिल गई । वे अंदर जाकर खटिया पर आंखें मोहन कर लेट गया हूँ । कुछ दिनों में सावित्री बांके शिशी ले आई दैनिक सांगली के तौर पर निकाला और नहीं है । भारत है पार्टी के सिर पर लगाने लगीं पत्नी के कोमल करूँ के स्पर्श ने सत्यवान के अंदर सुलग थी आपको और तेज कर दिया उसने हाथ पकडकर साबित्री को अपनी और ऍम क्या कर रहा हूँ? सावित्री बोली सत्यवान ने उसका हाथ वाले से पकडकर आॅफर रखा । वार बोला ॅ तो यहाँ हो रहा है मेरे पति के मनो भागों को ताड कहीं उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया । महीनों बाहर आज उनके घर में खुशियों का आगमन जो हो रहा था । लगभग रात के नौ बजे केशव उनके घर पहुंचा । अपने भाई के साथ चार पांच वर्ष के बच्चे को देखकर साबित्री अॅान भी नहीं किया था तो यह बच्चा कौनसा केशर उनके मनोभावों को ताड गया और पहेलियां हो जाते हुए बोला दीदी, बच्चा कैसा लग रहा है? फॅमिली ने गहरी नजर बच्चे पर डाली । ऍम सुनता था ऍम मुझ पर नहीं होगा तो किस पर होगा । मुझे पुरानी कहावत याद आ गयी । नर ननिहाल पर होते हैं बता मेरा भांजा मुझे ऐसा लग रहा है । सावित्री भौचक्की रह गई । मैं अपलक उसे देखने लगी क्योंकि वो अपने भाई की खिलाडी बहन थी । अब केशर ने सभी शंकाएं में डालते हुए अपनी बात रखना ही उचित समझा । उसने अंडमान निकोबार में आई सुनामी शिवा का उसके मम्मी पापा से भी छोडना । अमेरिकन दंपति, गौर शिवा को देने का विचार आदि बातों से सत्यवान एवं साबित्री गांव परिचित कराया और अंत में बोला हूँ ऍसे आती इसकी माँ हो सम्भालो अपने शिवा को साबित फ्रीडम भावुक हो गयी । खुशी के मारे उसकी आंखों से आंसू बह निकले तो भगवान के रूप में अपने भाई के शव को समझ रही थी और उसके इसी स्वरूप को अनंत कृतज्ञता ज्ञापित कर रही थी । सब ने मिलकर खुशी खुशी भोजन किया और गांव पेशाब करने रहेंगे । गरीब रात के ग्यारह बजे शिवा को नहीं आने लगी है । बोलने लगा हूँ । फॅमिली दीदी को इशारा किया । साबित ही उठकर उधर ही आ रही थी । आ रहे फॅमिली सुनने लगी । सोचा मेरे ऍम सपनों की पर्याय तुज को बुलाती जान हिंडोला लेकर झुला थी इंडिया यूज कर रहे है तो कहा है तो सोच रहा मेरे राजदुलारी ऍम बार तो शिवाज कच्चा आया तो साबित हुई दीदी की मीठी लोरी से मैं शीघ्र ही नियंत्रणाधीन हो गया । तत्पश्चात ॅ तीनों अपनी बातचीत करते रहे । किसी तरह तीन चार दिन गुजर गया हूँ । बाकी हर छोटी से छोटी बात का सावित्री बडा ख्याल रखती हूँ । बिहार से नहीं लाना । चिडिया कबूतर के किस्सों के साथ मनपसंद भोजन करवाना, दिन में उसके साथ खेलना और विशेष कर रात्रि में मीठी लोरी सुनाकर सुलाना केशव ने देखा । शिवा कभी कभी तो मम्मी के पास जाऊंगा की रेट लगता है तो मगर अधिकांश उसका मन लग गया था । पांचवें दिन मत ध्यान में उसे प्रस्थान करना था । बहन के साथ साथ शिवा से पढाई लेना उसे भारी लग रहा था । किंतु भावनाओं के साथ साथ जिम्मेदारियाँ भी निभानी आवश्यक थी । उसने दीदी से विधान ही तो बहन की आंखे बहुत कुछ कह रही थी । साबित्री से इतना ही बोल पाई कि शाम हमारे ऐसा उनका बदला मैं कैसे चुका हूँ । केशव भी रूम हादसा हो गया हूँ । कुछ नहीं बोल सकता हूँ । आपकी बाकी बारी थी । केशव ने शिवा को गोद में उठाया और बोला हूँ मैं तुम्हारे लिए ऍम खिलोने लाने जा रहा हूँ । तुम अपनी मम्मी के पास क्या आराम से रहना? जीवा बोला ये मेरी मम्मी नहीं है तो आंटी ऍम । तब उसने उसे समझाते हुए पूछा, शिवा ऍम से प्यार नहीं करती । हाँ तो बहुत प्यार करती है । शिवा इतना प्यार करने वाली तो मम्मी ही होती है लेकिन मेरी मम्मी तो सीमा मम्मी थी । शिवान सीमा मम्मी ने ही इन को तुम्हारे पास भेजा जाये । हो सकता है हाँ बेटा कभी कभी ऐसा हो नहीं सकता है । अच्छा अंकल पाॅड भी कर सकते हैं और कोई नहीं कर सकता हूँ । ना बोला था कुछ नहीं पर वो पूरी तरह संतुष्ट भी नहीं हुआ था । केशव में बडी सी चॉकलेट शिवा के हाथ में पढाई अपनी दीदी ऍम जीजा जी के चरण हुआ हूँ । हर गंगे नेत्रों से चुपचार निकल गया हूँ । अच्छा सावित्री बडे दुलार से कह रही थी कि वहाँ खाना खा लो । शिवा टस से मस नहीं हो रहा था । उसे अपनी सीमा मम्मी की बहुत याद आ रही थी । समिति समझ गई । मैं कुछ खेलाने उठा नहीं जो कल ही खरीद कर लाई थी । बेहरा फुसलाकर धीरे धीरे उसे भोजन करवा दिया । फिर उसके साथ खिलौने से खेलने लगी गए । बंदूक से सबसे ज्यादा खेल रहा था । उस की रुचि परखने हैं तो सारे मैंने पूछा इसका क्या करेगा शिवा वो देश के दुश्मनों को इससे गोली मार दूंगा । उसका ऐसा जवाब सुनकर उसने उसे सीने से लगा लिया । दिन प्रतिदिन इन दोनों का नहीं मैं बता रहा हूँ । सत्यवान भी शिवा का घूम ख्याल रखता हूँ । काम आता फिर आता चीजें लाकर देता हूँ । अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनाया था, उसे कविताएं सिखाता हूँ । सेवा के प्रतिभा देखकर माँ बाप दो नौ प्रसन्न थे तो उन्होंने अपने घर के पास सर्वोदय विद्यालय में उसे दाखिला जिला नहीं इस प्रकार श नेशन है । वक्त को लडता गया । शिवा इसी परवरिश में पलता बढता जा रहा था । उसी में समानता जा रहा था । वो अपने जन्मदाता को भूल गया और पालन करता ही उसे याद रहे । प्रतिभा का उनमें नये सारे एक भी होता है । किसी का प्रयत्नपूर्वक प्रतिभा । परेश का हर में संस्कारों की भी अहम भूमिका है । वास्तव में जीवन को संस्कारित, बरी, मान जिद करने की प्रक्रिया का नाम ही संस्कार है । वो सत्य संस्कार हमारे जीवन की थाती होते हैं । शिक्षा के साथ संस्कारों का समायोजन जीवन की वास्तविक दिशा को स्पष्टता प्रदान करता है । हटाओ शिक्षा में संस्कारों की अनिवार्यता स्वतः सिद्ध होती है । सब संस्कारों के बिना शिक्षा उसे प्रकार भार भूत बन जाती है । जिस प्रकार गधे पर चंदन का गठन लादने से गधा बाहर का तो अनुभव करता है, सुगंध का नहीं । आपने महाबार की संस्कारी शिक्षाओं की सुगंध को सिरोधार्य । कृषि वहाँ अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति कर रहा हूँ । सीमित साधनों में भी प्रतिभा कैसे विकास कर सकती है, उसने साबित कर दिखाया था । अपने स्कूल में प्रत्येक कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए हैं । आखिर उसने मैट्रिक बोर्ड की परीक्षाएं देती हूँ । अब उसके मस्तिष्क में एक नया चिंतन चल रहा था तो क्या था वो जानता हूँ ।
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