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लक्ष्य की ओर चलने वाले को बीच में विश्राम कहा? सिर्फ चलते जाना है चलते जाना है कहीं भी शिथिलता या आलस्य नहीं ज़रूर सुने, शिखर तक चलो बहुत ही प्रेरणादायक कहनी है। writer: डॉ. कुसुम लूनिया Voiceover Artist : mohil Author : Dr. Kusun Loonia
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अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में आई इस सुनामी से भयंकर विनाश हुआ हूँ । सहस्रों मनुष्यों का अवसान हो गया । हजारों की संख्या में लोग लापता हो गए । एक द्वीप तो दो तिहाई आबादी ही जल सामाजिक हो गया । वहाँ के स्थानीय एयरबेस में वायुसेना के सौ से ज्यादा सदस्य सब परिवार सुनामी की लहरों से तबाह हो गए । भारतीय जाबाज जीवन रक्षा में महारत प्राप्त ॅ क्या इस तरह के विडंबना के हकदार थे? उन्होंने इस प्रकार के भयावह है अंत की तो कल्पना भी ना की होगी वो । वास्तव में मृत्यु एक महान त्रासदी है जो एक क्षण में मनुष्य को मिट्टी की ढेरी बना देती हैं । यहाँ आकर ही जीवन को नश्वरता का बोध होता है । कुशाग्र पर टिके चल कहाँ की अस्तित्व जितना संदिग्ध रहता है, उतना ही संदिग्ध है । मानव जीवन का ऍम काल के क्रूर शहर से खेतानी नहीं । जब भी भी खंडित हो जाते हैं, सुनामी के स्टैंडर्ड से निकोबार द्वीप समूह के कई छोटे छोटे ऍम तूने तैयार चल नहीं हो गए, उन का अस्तित्व ही अद्रश्य हो गया । कुछ द्वीपों का आकार प्रकार बता गया । कई दिलीप दो दो भागों में भी भी भक्त हो गई हूँ । समुद्र के खारे पानी ने आकर यहाँ की कृषि योग्य भूमि को लिया । पानी योग्य मीठे ताजे पानी पीने योग्य मीठे ताजा पानी के स्रोतों को नष्ट कर दिया । हजारों मछुआरों की नावें भी टूट गयी । बडी बडी इमारतें भरभराकर हो गयी, सडके और पंद्रह तक नष्ट हो गए मौतों के इस महा मंजर से महामारी के प्रकोप की आशंका होने लगी । धंस और निर्माण दो विरोधी धाराएं फिर भी सापेक्ष है । महाविनाश के माध्यम एक चमत्कार भी परिलक्षित हुआ तो सुनामी के कारण एक स्थान पर लगभग पंद्रह सौ वर्ष पूर्व का शहर, वहाँ के भग्नावशेष, कुछ मूर्तियां, कुछ आकृतियां भी दस टी कोचर हुई हूँ । समुद्र के दिशा से शहर की सीमा भी विस्तृत हो गयी । काल के इस करिश्में से स्थानीय निवासी विस्मय भी मुक्त थे । वास्तव में काल में परिवर्तन नाम की ऐसी अलौकिक शक्ति विक मान है जिसके कारण रहपुरा तन को नहीं और नवीन को पुरातन में परिणत करता सादा अपना खलित चक्र घूमाता रहता है । इसी काल के वही भूत माउंट हैरियट की तलहटी में शवों के ढेर लगे थे । बचाव दल के सदस्य सेवाभाव है । मौत मैं जिंदगी के अंश खोज रहे थे । राहतकर्मियों ने भी वहां पहुंच कर इस सामूहिक शव संस्कार है तो अगली ग्राहकों अतिशीघ्र ही प्रारंभ कर दिया । अनल किया । तब का स्पर्श पाकर एक शरीर में किंचित हलचल होने लगी । वहीं पास खडे राहतकर्मी की नजर उस पर पडी । मैं घबरा गया । कहीं कोई भूत नहीं । उसने अपने साथ ही कोई शहरा क्या, वे भी आश्चर्यचकित रह गया । फिर दोनों ने मिलकर तुरंत उसे लाशों के मध्य से उठाकर दूर क्या भाविष्य प्राथमिक चिकित्सा हम कर दी । धीरे धीरे उसे होश आने लगा हूँ । पूरी तरह सचेत होते ही मैं आके नफा फाडकर चारों तरफ देख लेना का आसपास के अप्रित कर वातावरण को देख उसकी चेतना लौटी । सीमा से विछोह था, दर्द भरा रहे । उसके मानस पटल पर हराया तो पागलो की तरह तलाक करने लगा । उसकी नाजुक हालत देखकर उस बचाव करनी ने शीघ्र आती है । अगर उसे राहत शिविर मैं पहुंचाया । लेकिन अभी शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों से मैं बेहद आश्वस्त था । वहाँ के चिकित्सा से लाभ हो गए तो धीरे धीरे स्वस्थ्य होने लगा हूँ । कुछ दिनों बाद उससे रहा नहीं । क्या गिरते बढते अपनी पत्नी और पुत्र तलाश में निकल पडा तो मैं खोजते खोजते पूछते पूछते किसी तरह सिटी पैलेस होटल के पास पहुंचा तो वहां पहुंचकर मैं आवाक रह गया । होटल की इमारत के धंसा विषय यत्र तत्र बिखरे हैं केशव का कहीं अता पता नहीं था अपनी प्राणप्रिय और आत्मा जी की स्मृति में वॅार होने लगा हूँ वहाँ कोई नहीं था जो उसके अशोक को पूछता हूँ उसके घावों पर सहानुभूति काम पर हम लगातार सोमेश स्वयं ही स्वयं को दिलासा दे रहा था । संभालता आपने आपसे बाल प्राप्त कर रहा हूँ भाषाओं में फिर की सन्निधि ही सबसे बडा संबल होता है । इसी संभाल के सहारे अनेक आरोह अवरोह को तय करता हुआ सोमेश किसी प्रकार अपने गांव नक्सलबाडी पहुंच गया । भरी दोपहर में उसके अपने मोहल्ले में मौत का सन्नाटा छाया हुआ था । घर के मुख्यद्वार पर लगता हल्ला बस से बहुत चला रहा था । मैं सोचने लगा अखिर उसके माँ पिताजी कहाँ गई? कहाल के कराल की करारी थपेडे खाका फॅमिली में मोर हो गया नहीं हो । उसने दोनों हाथों से अपना सिर पकड लिया और वही घुटनों के बल निश्चेष्ट होकर बैठ गया । क्या करें? कहाँ जाए? कुछ समय पर चाहते । उसकी स्वच्छ भारत लौटी । वे अपने पडोसी चटर्जी चाचा हैं । मिलने पहुंचा वहाँ चाचा जी तो नहीं देखे! लेकिन चाची वहीं सुमेश को देखते ही मैं दहाडे मारकर रोने लगी । किसी अनिष्ट की आशंका से उसका अंतर्मन कहाँ उठाओ किंतु पर जा रहे चाची कौन दिलासा दे रहा था यह दुख का दोबारा कुछ कम हुआ । तब चाची ने बताया की उसका सब कुछ लुट गया, बर्बाद हो गया । उसके माँ बाप और इस दुनिया में नहीं रहे । किसी पुत्र को अकस्मात एक साथ माँ बाप का वियोग सहना पडे । इससे फॅमिली क्या होगी? तो मैं इस सत्र में को सहन नहीं कर पाया और दहाडे मारकर होने लगा । गरुड नंदन करने लगा, ऐसा नहीं हो सकता है । ऐसा कभी नहीं हो सकता हूँ । गया ऍम कैसे जा सकते हैं, वो कैसे हो गया? तब तो एकदम अच्छे थे । इलाज करते करते रहते हो होकर वहीं गिर गया । घबराकर जा जी नहीं, चाचा को बुलाया । उन्होंने उसके चेहरे पर शीतल जल के छींटे मारे, किन्तु सोमेश को घोषणा आया हूँ । चाचा ने एक हाथ से उसके दोनों नासाग्र बंद किए । दूसरे हाथ है । उसके मुंह में चम्मच द्वारा जल डालना प्रारम्भ किया । कुछ क्षणों में उसकी चेतना लौटाई होना है । भयंकर विलाप करने लगा । चाचा चाहिए । दोनों साफ बना देते रहे । बीच बीच में उसे दो दो बूंद पानी पिलाते रहे हैं । धीरे धीरे सोमेश की स्थिति में सुधार हुआ । कोई चाहे या ना चाहे मृत्यु, एक सच्चाई है । व्यक्ति को नहीं कि अपरिहार्य रूप में इसे स्वीकारना ही होगा । वो तो मेरे कॅरियर के मुझसे लौटा था । पत्नी और बेटे को खो कराया था । यहाँ तो माँ बाप ना मिले । एक के बाद एक झटके को मैं कैसे खेले है । उनकी मृत्यु का कारण जानना चाह रहा था तो मैं उसे ढांढस बंधा रहे थे । इस समय भी उन्होंने ही उसे साफ मना नहीं संभाला । फिर बडी मुश्किल से उसे चाय भी पिलाई । तब सोमेश स्थिति को सामान्य हुई । चाची उसके घर की चाबी उठा नहीं और उसे देते हुए बोली, तू दरवाजे पर ताला लगाया है । हमने ये भी ले लोग अपना घर संभालो । जब भी कोई आवश्यकता हो बता देना तो सुमेश उठ खडा हुआ तो वे दोनों भी उसके साथ आएँ । सुने घर में प्रवेश करते ही तो मेरे चाचा कहती है लगभग पूरा मिला के उठा हूँ । साफ ना देते हुए चाची ने कहा ऍम लालू तुम्हारा मन लग जाएगा । शब्दों ने जले पर नमक छिडक दिया । सुबह देखते हुए उसने सारी स्थिति स्पष्ट की की किस प्रकार काल के क्रूर अट्टाहास है । उसका परिवार उजड गया । स्थिति की गंभीरता समझ वे भी वहाँ उसके साथ बैठ गए । गमगीन स्वर में सोमेश ने चाचा से अपने माता पिता के देहावसान के बारे में जानना चाहता हूँ । उन्होंने ठंडे सफर में बढाना शुरू किया । पिछले दिनों हमारे शांत नक्सलबाडी कस्बे में भूचाल आ गया । सामाजिक आंदोलन के रूप में एसपीएम पार्टी के कुछ कार्यकर्ता भूमि ही गरीब किसानों एवं जमींदार होता था । रईसों में मुठभेड हो गई । उसके कुछ समय पश्चात ही सिलीगुडी में किसान सभा ने हथियार सहित आंदोलन की उद्घोषणा कर दी । यहीं आदिवासियों ने उग्र होकर एक पुलिस इंस्पेक्टर की तीर मारकर हत्या भी कर दी हूँ । माओवाद से प्रभावित होकर यहाँ के चारों मजूमदार नरेंद्र को गर्म कनु सान्याल है । इस खूनी संघर्ष में खुद पडेगी अपने यहाँ के युवकों का ये आक्रमण । हिंसक रवैया देख हम सभी हाॅल तो किसी में भी इतनी मतलब थी कि उन्हें रोक सके । तुम्हारे पिताजी तो सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रहे थे तो उनमें अप्रितम साहस था । प्रबल आठ था इसलिए उन्होंने इन माओवादी युवाओं को समझने का बहुत प्रयत्न किया । उनसे हिंसा का रास्ता छोडने की अपील की और कहा कि लूट पाट, रक्तपात, हिंसा और शास्त्रार्थ के सहयोग के बिना अहिंसा क्रांति से भी रचनात्मक सकारात्मक परिवर्तन संभव है । अपने गांव के ये नवयुवक भी उन्हें बहुत सम्मान देते थे । आठ घर से उन्हें सुनते थे । एक शाम नहीं । घर पर उन्हें से संगोष्ठी थी । यह उनकी अंतिम अपील थी । अगली सुबह हमारे माता पिता दोनों गोलियों से छलनी में पाए गए । हमने तो मैं सूचना देने का बहुत प्रयास किया, किंतु तुम से संपर्क नहीं हो पाया । जनकल्याण और देश हित में उन्होंने अपना बलिदान कर दिया । तो सोमेश के नेत्रों से जहाँ अविरल अश्रु पराहित हो रहे थे, वहीं है गाय के अस्तल से है । उनकी महान शहादत को नमन कर रहा था ।

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