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Part 3 in Hindi

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11 K Listens
AuthorAditya Bajpai
यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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भाग तीन एक मोटस आदमी अपने पतलून का बटन लगाने की जद्दोजहद कर रहा है । लैट्टे पेट को बाहर बाहर अंदर करने की कोशिश कर रहा है लेकिन पतलून का बटन लगी नहीं रहा । वो अपनी सांस जोर से अंदर खींचता है और जोर जबरदस्ती से जैसे तैसे बटन लगा लेता है । चाहे पर एक छोटी सी सुकून भरी मुस्कान आती है । अब ऍम की पहली सांस लेते हुए बहुत लोन का बटन टूट कर नीचे गिरता है । बटन को उठाए के लिए नीचे झुकते ही अचानक उसके पीछे से जरूर किया वहाँ जाती है । बट लोन पीछे से पड चुकी है गोल मटोल आदमी कोई और नहीं बहुत है बाकी और नारायण पांडेय जिसकी उम्र इकत्तीस और वजन एक सौ तीस हो चुका है । समय आगे बढता गया और समय के साथ साथ बखपुर का वजन भी बढता गया । पांचवीं के बाद बहुत कोशिश की पडने की दे और दिमाग लगाकर जबरदस्ती पढा तो आठवीं तक बहुत ही गया लेकिन छह साल लग गए थे । आठवीं तक पहुंचने में भी तीन बार फेल हुआ तो स्कूल वालों ने भी हार मानली घर वाले तो बहुत पहले ही मान चुके थे । सिर्फ पापानि पंडित बनाने की कोशिश की । कई जगह की कथा और पार्ट बिगडे बतौर से क्योंकि किताबें ठीक से पढना सीखा नहीं था और मंत्र याद होते नहीं थे । पापा के कहने पर को जगह पार्ट किए भी तो ऐसे किए कि लोग भक्ति में खोने की जगह बैठे बैठे से उन्हें लगी दोष बगैर का ही था । क्योंकि जिस तरह रहे पाठ पढ रहा था इंसान क्या अगर घोडा भी सुनता तो वह भी वहीं बैठकर हो जाता है मधुर के कारण जगत नारायण का भी कुछ जगह का काम झूठा नागपुर को लेकर वे हमेशा परेशान रहते हैं और बस और अपने इस मोटापे को लेकर परेशान जैसे आज की ये ऍम लोग तो मम्मी मम्मी हाॅट हो गयी देखो पीछे से फट गई है पतलून हाथ में लिए बस खुलने माँ को दिखाया दिवाली पर शहर में इतने बम नहीं पडते जितने महीने में तेरी पतलून फटती है । कार्यक्रम भी झाडू निकालते निकालते बोली गायत्रीदेवी के जवाब रोचक होते थे । यहाँ तो आपने गरीबी में अभाव में बीते पुराने समय की आज के समय से तुलना करती थी या इस प्रकार की खास इससे भरे जवाब देती थी । अब इसमें मैं क्या करूँ? मम्मी तक लोन टाइट हो गए तो भक्त और खुद को बचाते हुए बोला भेटा पतलून जैसी थी वैसी है तो और बढ गया है । आप तो दही कमर इतनी बढ गई है कि तू पजामा भी बिना नारा डाले पहन सकता है । गायत्रीदेवी ने फिर से कहा अरे यार आप हमेशा मेरा मजाक उडा । एक और कोई नाराज होते हुए बोला ऍम रही हूँ मैं । गायत्रीदेवी ने तुरंत बखपुर के सिर पर हाथ घुमाकर लाट करते हुए बोला हाँ तो फॅमिली से पहले मुझे आज थोडा दूर तक डांस बांटने जाना है । अभी कैसे कर दू बेटा अभी तो घर के इतने सारे काम पडे हैं । देश की सरकार को इतना काम नहीं होता होगा जितना तेरी माँ को करना होता है । अभी दूसरी पैन पहले मैं दिन में सिल दूंगी । गायत्रीदेवी ने थोडी रोज रोज के काम से चलते हुए हैं । सब्जी बनाते हुए कहा अब दूसरी पैंट कहाँ है? माँ होने की है तो तुम्हारे पास तो फिर बीत नहीं कपडे हैं । हमने तो ऐसे ऐसे दिन देखे हैं गरीबी किए कि क्या बताऊँ दो ही साडिया थी मेरे पास जब शादी करके आई थी और पांच महीने दर्ज बस वही पहनी थी मैंने । उसमें से भी एक तो ज्यादातर संभाल कर ही रखनी पडती थी । कहीं भी आने जाने में पहनने के लिए तभी जगह नहीं आ जाते हैं । विरोध दिन में घर पर खाना खाने आते हो तो वो अभी तक गया नहीं । काम पर जगत नारायण ने बाथरूम में जाकर हाथ पैर होते हुए पूछा, बस पापा निकली रहा था जगत नारायण के सामने बगैर की कभी कुछ ज्यादा बोलने की हिम्मत नहीं हुई । इसलिए हमेशा छोटा सा जवाब देकर रह जाता था । ऐसे जाओगे । बिना पतलून के पतलून बखपुर के हाथ में थी । लगभग अर्धनग्न स्थिति में जगत नारायण ने देखते हुए कहा नहीं फॅार गया । दूसरी पैंट पहनने के लिए सुनो । जगत नारायण हमेशा गायत्रीदेवी को ऐसे ही बुलाते थे । हाँ, फॅमिली भी भी जानती थी कि ये शब्द घर में सिर्फ उनके लिए ही उपयोग होता है । इस रविवार को एक और लडकी देखने चलना है सांवेर में गायत्रीदेवी ने सिर्फ नहीं जवाब दिया । अच्छा मैं जा रहा हूँ । बकौल गायत्रीदेवी और जगह नारायण दोनों के पैर छूकर बोला जय महाकाल घटना है हमेशा से इसी तरह कहा करते थे वो जगत नारायण किसी से मिलना हो, किसी से नमस्कार करना हो, किसी को विदाई देना हूँ, मन की शांति बताना हो, भगवान को याद करना हो, खाने के बाद डकार लेना हो हर बात में वे जय महाकाल का ही उच्चारण करते थे । जय महाकाल बकुल भी कहते हुए हैं । घर से बाहर निकल गया और अपनी साइकिल साफ करने लगा हूँ । क्या लगता है ये लोग हाँ करेंगे । हमारे गोरखपुर के लिए इतनी सारी लडकियाँ तो देख चुके हैं, कोई हाँ ही नहीं करता । गायत्रीदेवी ने गरम गरम रोटी बनाते हुए कहा बता नहीं देखते हैं कल चल कर बाकी महाराज जी की मर्जी । जगत नारायण ने कहा ये गिलास यहाँ किसने रखा? शायद बीच में रखेगी । इलाज को देखकर जगह नारायण ने पूछा अरे वो झूठा है । गायत्रीदेवी ने बताया किसने रखा जोडा । गिलास कहीं भी कुछ भी रखा रहता है । इन्हीं कारणों से घर में दरिद्रता आती है । अरे आप रोटी घायलों पहले बाद में किस किस कर लेना । गायत्रीदेवी ने भी चढते हुए कहा रोटी खालो नहीं, भोजन कर लो, बोला करो हजार बार बोला ब्राह्मण के घर रहते हैं । अपनी जुबान तो ठीक रखो । रोटी कुत्तों को दी जाती है, गाय को दी जाती है । हम भी पशु है क्या जो ऐसे बोलती हो हम से ये बातें जगत नारायण हर रोज किया करते थे । शायद इसीलिए कभी कभी गायत्रीदेवी भी चढ जाती थी । अगर आज दादी होती तो जगत नारायण शायद इतनी ऊंची आवाज में नहीं बोलते । लेकिन दादी भी जमुना और कालू के बाद पांडे परिवार को छोड कर जा चुकी थी और बाकी और को हमेशा या लगता है कि वो आज भी ऊपर जमुना और कालू को साथ में ही रखती होंगी । बस और साइकिल साफ करके घर से निकाल चुका था और ये सोचते हुए कि रविवार को फिर से लडकी देखने जाना है, अभी तक बीस बाईस लडकियों को देख चुका था और बाकी और को सब याद है कि कैसे पूरा पांडेय परिवार हर बार लडकियाँ देखने साठ में जाते हैं और कैसे हर बार लडकी वाले मना करते हैं । कभी बकुल के घर के अंदर जाते ही बकूल के भारीपन पर आश्चर्य भरी नजर पडते ही तो कभी नाश्ते की ब्रेड सामने से उठाकर तो कभी खिडकी से ही बखपुर को नीचे से आता देखकर मना करने का मन पहले ही बना लिया जाता था । कितनी बार रिजेक्ट हो चुका था लेकिन फिर भी जगह नारायण हर रविवार को कैसे भी एक नई शादी योग्य लडकी का रिश्ता ढूंढी लाते हैं । उन्हें बखपुर की शादी की चिंता इसलिए भी बहुत ज्यादा है क्योंकि है उनका इकलौता बेटा है और शादी की सामान्य उम्र के बढा उसको पार कर चुका है तथा पढाई में बहुत और आठवीं फेल हो । तीन बार नौकरी कोरियर बांटने की करता है ऐसा घर वालों को उसने बताया है । असल में वो जो काम करता है वे जगत नारायण कभी स्वीकार नहीं करेंगे । जगह नारायण का बेटा ये काम करता है । यह बात जानकार तो उनके मान सम्मान को उनके मन को बहुत ठेस पहुंचेगी क्योंकि मैं एक प्रतिष्ठा प्रिया इंसान हैं लेकिन इस काम के अलावा वर्षों से कोई और काम मिला भी नहीं । इसीलिए मजदूरी में बगैर बस यही करता है । घर पर झूठ बोल कर एक किराने की दुकान वाला अपने कस्टमर को सामान दे रहा है और एक के बाद एक सामान की लिस्ट पूछता जा रहा है । तभी बगल वाली दुकान से आवाज आती है एक आदमी बोल रहा है । अरे वो लाला उलाला पर प्रैक्टिस करते एक बार चलो फॅमिली अचानक जोर जोर से शादी में बजने वाले बैंड की आवाजे आने लगती है । वो लाला ओल अलग गाने की धुन बज रही है । यहाँ पे बैंड में इस्तेमाल होने वाले सारे इंस्ट्रूमेंट जैसे बास बाजार तरफ खुरदुरी रन मुरली की मिलीजुली है जो की किराने वाले के कान में बिल्कुल वैसे चुभ रही हैं जैसे पैरों में कांटा किराने वाला जोर जोर से ग्राहक से चलाकर सामान के बारे में पूछ रहा है । लेकिन राहत का जवाब से कुछ समझ नहीं आ रहा है । उधर बैंड की उलाला उलाला आवाज और तेज होती है । किराने वाला अपने बाल नोचने लगता है और गुस्से में दुकान से बाहर निकलता है । और बगल में जहाँ बैंड बज रहा है वहीं जाता है फॅार ये उसने ब करके मुझसे बजा छीनते हुए कहा हाँ, बस कृषि बैंड में काम करता है । कम ले बैंड गद्दा बोल इयाॅन रोड पर ये वाला वह संयंत्र जिससे बजा कहते हैं यह बजा इस बैंड में बाकुल बजाता है आज से दस लोग जो अपना प्लाॅट बजा रहे थे, अचानक सब एक साथ हो जाते हैं क्या क्या हुआ? क्या दिक्कत है? बस कुर्क एबॅट पप्पू करवा जी ने गिराने वाले से पूछा आप वो तुझे कितनी बार कहा है कि दुकान खाली करके कहीं जंगल में जाकर बच्चा अपने ये ऍम बोल रहे हो । क्यों किसी की बात की है क्या या दुकान पप्पू ने खुद खरीदी है । दुकान किसी के बाप की नहीं है तो हमारे कान भी किसी के बात की नहीं है जो रोज तेरह ये ऍम म्यूजिक सुने तुम तेल शैंपू बेचने वालों को संगीत की समझ है । कहाँ खबरदार जो म्यूजिक को घटिया कहाँ? तो बकौल का सबसे करीबी दोस्त और इस बैंड के गायक गोपाल ने म्यूजिक के खिलाफ गलत शब्द सुनने पर आपत्ति जताई । सिर्फ गोपाल ही एक ऐसा इंसान था जिससे बक और सारी बातें करता है । जो कुर्ता हरसर जानता है, बस उसकी जाती जनीति है । इसलिए जगत नारायण को पसंद नहीं कि बकुल गोपाल के संपर्क में रहे और इन सब के अलावा वह बहुत अच्छा सिंगर है । ऐसा उसके अलावा कोई और नहीं मानता । किशोर तुम्हार का बहुत बडा फैन है । अपने आपको किशोर कुमार कर दूसरा जन्म मानता है क्योंकि वे भी मध्य प्रदेश से थे । आइए भी तेरे बहुत से बात कर रहा हूँ तुम अलग गोपाल की बात का जवाब दिया किराने वाले नहीं और उसका बॉस तेरे नहीं लगना चाहता हूँ । चल प्रैक्टिस करने दे । शाम को प्रोग्राम है हमारा ॅ भूला बुला रहा सब फिर से बजाने लग जाते हैं । किराने वाला अंदर आता है और अब की बाहर सीट पख्तू कडवा जी से बजा छीनकर फेंक देता है । जब अपनी फॅमिली घरवा अपनी कुर्सी से गुस्से में खडे होते हुए बोले और दोनों के बीच में हाथापाई शुरू हो जाती है । दोनों लड रहे हैं और वो लाला लाला पर बैंड की प्रैक्टिस भी लगातार चल रही है । सेट बब्बू कडवा मारते तो सा म्यूजिक ऊंचा कर देते हैं और सेठ जी मार खाते तो सा म्यूजिक धीमा कर देते हैं ।

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यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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