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Part 10 in Hindi

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AuthorAditya Bajpai
लक्ष्य की ओर चलने वाले को बीच में विश्राम कहा? सिर्फ चलते जाना है चलते जाना है कहीं भी शिथिलता या आलस्य नहीं ज़रूर सुने, शिखर तक चलो बहुत ही प्रेरणादायक कहनी है। writer: डॉ. कुसुम लूनिया Voiceover Artist : mohil Author : Dr. Kusun Loonia
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सुना है जो मेरे को खाने दौड था । निस्तब्धता इतनी थी कि उसे अपनी सांसों के स्वर भी दीवारों से टकराकर प्रतिध्वनित होते थे । सुनाई पडते किसी प्रकार दिन तो लोगों की आवाजाही में कट जाता लेकिन आप बाहर से प्रतीत होती तो प्रिया पुत्र शिवा की छवि आंखों से हटते ही नहीं हूँ । जिस घर में उसकी बालसुलभ किलकारियां पहुंचती थी अब नीरव सन्नाटे में जेंडरों की आवाज सुनाई पडती थी । सीमा के बिना उसके मन का कोना कोना वीरान था । घर का कोना कोना संस्थान था । उन लोगों की खोज करवाने में उसने कोई कसर नहीं छोडी । हिन्दू उसके सारे प्रयास व्यर्थ करें । धीरे धीरे उनके मिलने की आशा भी धूमिल होती चली गई । घर की सारसंभाल काम वाली बाई के जिम्मे थी । कॅश जैसे ही वह भोजन लाकर सामने रखती, सुमेश की आंखों के सामने माँ की मूरत उबर आती, उसका भोजन करना दो बार हो जाता हूँ । आप जबरदस्ती दो जाने वाले जल के साथ कटक ता और उठ खडा होता हूँ । ऍम ना वो अपने आप को बेहद कमजोर वहाँ अकेला महसूस करता हूँ । धीरे धीरे पता लगाने की कोशिश कर रहा था की उसके माँ पिताजी की हत्या किसने की? कौन था है हिंसक संहारक जिसने उसके माँ बाप को मार डाला । अनेक युक्तियों पर उसने विचार किया । अंततः उसे एक तरकीब सूझी रहे । अपने गांव के समीपस्थ किसानों, दलितों, भूमिहीनों एवं आदिवासियों से मेलजोल बढाने लगा । नियमित रूप से वह प्रतिदिन एक निश्चित समय उनके साथ व्यतीत करता हूँ । उनके साथ उठता बैठता उनके साथ बातचीत करता हूँ । उन के साथ खाता पीता और उनकी समस्याएं सुनता । जहाँ भारत की अधिकांश आबादी विकास के सोपान तय कर रही थी, वहीं ये बोले वाले आदिवासी देश की मुख्यधारा में शामिल होने से वंचित रहे गए । इन्हें प्रशासन से प्रोत्साहन तो नहीं मिला, उल्टा वन अधिकारियों का जन्म सेना पडता हूँ । इनकी अपनी खेती बाडी महुआटोला जैसे दैनिक आवश्यकताओं की वनोपज से लेकर झाडियों की ओट में नित्यक्रिया निपटाने जैसे नए सरगेट अधिकारों पर बनने से लगते हैं । यहाँ तक कि अपने पाले पोसे अश्रय डाटा जंगलों में घुसने के लिए भी उन्हें वनकर्मियों के रहमोकरम पर निर्भर होना होता । वो मनमाना वर्षों तक व्यवहार करते हैं । जब से अपने पास से मौत को छोडकर जाते हुए सोमेश ने महसूस किया था, तब से उसका है नया एक्साम बेटन ही हो गया था । प्रशासन से पिसते आदिवासी व्यापारियों से ठगे जाते आदिवासी शिक्षा के अभाव में पिछले आदिवासी विकास से वंचित आदिवासी और चिकित्सा सुविधा के अभाव में मारते आदिवासियों की अवस्था वास्तव में चिंताजनक थी । सोमेश अपनी पी रहा बोल कर उनके दुख दर्द दूर करने लगा । उसकी श्रय दत्ता ने अतिशीध्र उन का दिल जीत लिया । आस पास के क्षेत्र के आदिवासी कबीलों के सरदार उसे अपना सरताज मानने लगे तो सोमेश ने चारु मजूमदार के छोटे भाई राजा को अपना विशेष सहयोगी बना रखा था । गंभीर से गंभीर रोग हो या प्रशासन से परेशानी अथवा अन्य किसी से शिकायत हो, सुमेश तुरंत आदिवासियों की समस्या निपटाने का प्रयास करता हूँ । सुमेश की लोकप्रियता का लाभ उठाकर राजा इन आदिवासियों में राष्ट्रविरोधी माओवादी विचार फैलाने लगा । उन्हें जमींदारों के खिलाफ भडकाने लगा । उसका लक्ष्य था अधिकाधिक आदिवासियों को नक्सलवादी बनाना । वो एक संगठन की संरचना तैयार करके पुलिस से अपने भाई चारों मजूमदार की मौत का बदला भी लेना चाह रहा था । तो मैं जब राजा की इन हिंसा प्रसारण गतिविधियों को देखता तो सोचता ये हिंसा के हथियार क्यों तैयार कर रहा है? संभवतया हमें अहिंसा से भी रास्ता मिल जाए । अगले शर्ट उसके मन में विचार आता हूँ । अहिंसा और सत्य से सुख शांति मिल सकती है, किंतु धन दौलत नहीं फिर हिंसा का रास्ता भी बहुत लंबा आए और ऍम इंसान हिंसा से भी गई । गुजरी होती है वो दुनिया वाले जय पराजय माने, लेकिन अहिंसा द्वारा हिंसा को रोकना अहिंसक कार्य तो क्या वास्तव में हिंसा द्वारा हिंसा का रुख पाना संभव है?

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लक्ष्य की ओर चलने वाले को बीच में विश्राम कहा? सिर्फ चलते जाना है चलते जाना है कहीं भी शिथिलता या आलस्य नहीं ज़रूर सुने, शिखर तक चलो बहुत ही प्रेरणादायक कहनी है। writer: डॉ. कुसुम लूनिया Voiceover Artist : mohil Author : Dr. Kusun Loonia
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