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आप सुन रहे हैं फॅार मोहन मौर्य द्वारा लिखी किताब चक्र भी हो और मैं आपके साथ आरजे नितिन ऍम सुनी जो मन चाहे अध्याय पांच माहिम पुलिस स्टेशन राजनगर यही बोर्ड लगा हुआ था पुलिस स्टेशन की उस इमारत के ऊपर बीचोंबीच जिसके सामने तीनों दोस्त अनिल अजित और अगर खडे हुए थे तीनों ने इस समय हल्का हल्का मेकप करके अपना हो लिया । थोडा सा चेंज किया हुआ था उन्होंने एक नजर पुलिस स्टेशन की मुख्य दीवार के आगे लगे हुए तो साइन बोर्ड पर दौडायें जिसपर राजनगर पुलिस स्टेशन की टैगलाइन लिखी हुई थी । राजनगर पुलिस सदैव आपके साथ आम जन में विश्वास अपराधियों में खौफ चलो दोस्त हो आज देखे लेते हैं कितना साथ देती है राजनगर पुलिस आम जन का अनिल ने धीरे से कहा और फिर वो तीनों पुलिस स्टेशन के मेन गेट के अंदर घुस गए । अंदर घुसते ही उन्होंने पाया हूँ चारदीवारी के अंदर बिल्डिंग के लेफ्ट साइड में खाली जमीन पर पुलिस द्वारा जब्त की गई बहुत ही गाडियाँ दुपहिया वाहन से लेकर चार तैयार गाडियाँ वहाँ ऐसे ही लावारिस सी पडी थी जो जाने कब से वहाँ पर पडे पडे धूल खा रही थी उनको देखने मात्र से ऐसे लग रहा था । जैसे जिन लोगों की वह गाडियाँ थी या तो वह शायद उन्हें ले जाना भूल गए थे या फिर पुलिस द्वारा उन्हें लौटाई नहीं गई थी । शायद पुलिस की उनकी बहुमत जांच पडताल अभी तक खत्म नहीं हुई थी । हूँ । इमारत के मुख्यद्वार पर डंडा लिए हुए एक संतरी खडा था जो मुझ में रखे हुए गुटके को अपने दांतों के नीचे रखकर चलाई जा रहा था । वो हर आने जाने वालों को अपनी पैनी निगाहों से घूम घूमकर ऐसे देख रहा था मानो उनका एक सेट ले लेना चाहता हूँ । वो तीनों जैसे ही उसके पास से गुजरे वह संतरी ने पुच्छ करते हुए मुझसे गुटका बाहर फेंका जिसके कुछ छीटें उछलकर उन तीनों की जूतों पर आकर लग गए । उसकी इस हरकत पर तीनों ने एक पल के लिए उसे देखा छोरी मेरा मतलब साडी अपनी गलती पर शर्मिंदा होने का दिखावा करते हुए उस मंत्री ने अपने पीले दार दिखाते हुए ऐसे कहा जैसे ये कहकर वह उन पर कोई एहसान कर रहा हूँ । उसका सौरी सुनकर अगर नहीं उसे एक पल के लिए घूम कर देगा । मैं ऐसे घोलकर क्या देख रहा है? एक बार कह तो दिया सौरी आप क्या जान लेगा? संतरी ने फिर से अपने दांत निकालते हुए कहा और एक बार फिर से पिच करके उनके पैरों के पास हो गया हूँ । चल यार छोड ऍम अपना वो काम कर देते हैं जिसके लिए हम लोग यहाँ पर आए हुए हैं । अजीत ना उसकी वहाँ पकडते हुए उसे धीरे से कहा और उसे इमारत के अंदर लेकर आ गया । अगर को सिपाही की इस हरकत पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था । पर्व मन मसोसकर रह गया । इमारत के अंदर घुसते ही उन्हें पूर्ण रूप से पुलिसिया वातावरण का एहसास हुआ । अंदर एक गैलरी थी जिसमें बाई तरफ कुछ कुर्सियां लगी हुई थी जो इस समय खाली नहीं चला रही थी । दाई तरफ एक छोटा सा स्वागत कक्ष बना हुआ था । कक्ष में एक दरवाजा था जो इस समय बंद था । दरवाजे से थोडा सा हटकर साइड में ही खिडकी लगी हुई थी जो इस समय आधी बंद और आधी खुली हुई थी । खिडकी के ऊपर पूछताछ लिखा हुआ था । वो तीनों उस पूछताछ लिखी हुई खेल की के सामने गए । आधी खुली खिडकी से उन्होंने अंदर झांक कर देखा तो पाया कि खेल की के पास ये केबल थी । उसके पीछे कुर्सी लगी हुई थी । जिस पर इस समय एक सिपाही बैठा हुआ ऐसे अखबार पढ रहा था जैसे कि वह सारे जगत की जानकारी पा लेना चाहता हूँ । आॅफिसर अनिल ने उस अखबार में पूर्ण रूप से डूबे हुए सिपाही से धीरे से कहा उस सिपाही में कोई भी रिएक्शन नहीं दिया जैसे उस ने उसकी आवाज सुनी ही नहीं थी । ये देखकर अनिल ने अबकी बार अपनी बात दोबारा से थोडी तेज आवाज में हो रही है । सिपाही ने अबकी बार उसकी आवाज सुनी और अपना सिर हिलाकर पूछा क्या है और फिर बिना किसी जवाब की प्रतीक्षा किए वापस से अपनी नजरें अखबार में गणादि सर वह हम लोग एक रिपोर्ट लिखाने के लिए आए हैं । अनिल ने जवाब दिया । अनिल की बात सुनकर उसने अबकी बार अपने हाथ में पकडे हुए अखबार को सामने टेबल पर इस तरह से फेंका जैसे ये करके उसने उन पर कोई एहसान किया हूँ । फिर अपने सिर को हल किसी जुंबिश देकर थोडी कर का शव आज में पूछा किस चीज की रिपोर्ट लिखवानी है तो मैं वो जो आज सुबह अजीत अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि उसके बीच में ही अनिल बोल उठा जी अभी बस में आते समय किसी पॉकेटमार नहीं मेरा पर्स चोरी कर दिया था । बस उसी की रिपोर्ट लिखवानी थी । पर ये तो शायद कुछ और कहने जा रहा था । तो सिपाही ने अजीत की तरफ इशारा करते हुए संशय से पूछा जी सर, मैं भी यही कहने जा रहा था । वो जब आज सुबह बस में सफर कर रहे थे तो किसी ने इसका पर्स मार लिया । अजित अनिल की बात सुनकर समझ गया था इसलिए उसने अपनी बात को सुधार कर कहा वो जस्ट आगे वाले हॉल में जाओ । वहाँ पर जाकर लिखवा दो । अपनीरिपोर्ट उस सिपाही ने जवाब दिया । उसकी बात सुनकर वो तीनो खिडकी से नीचे हट गए और उसके बताए हुए हाल की तरफ चल पडे । उनके जाते ही वो सिपाही ने फिर से अखबार उठाया और उसमें हो गया तो उन दोनों चुप रहना और बीच में मत बोला । जो भी कहना होगा वो मैं कहूंगा समझ गए । अनिल ने धीरे से उन दोनों को कहा । उसकी बात सुनकर उन दोनों ने हमें से मिले । हॉल के अंदर घुसते ही उन्होंने पूरे हॉल का नजारा हॉल में चार पांच कुर्सियां लगी हुई थी । हाल कुर्सी के आगे एक मेज थी जिनपर फाइलों का ढेर लगा हुआ था । फाइलों का ढेर लगा हुआ होने के बावजूद उन कुर्सियों पर बैठे हुए पुलिस वाले काम करने के बजाय आपस में गप्पें हांक रहे थे । वो तीनों जाकर उसमें इसके सामने खडे हो गए जिसके आगे छोटी सी प्लेट लगी हुई थी । जिस पर शिकायत पंजीयन लिखा हुआ था । उसमें इसके पीछे लगी हुई कुर्सी पर एक हवलदार बैठा हुआ था, जो किसी फिल्म मैग्जीन में डूबा हुआ था । वो उस पर छपी हुई फिल्मी हीरोइन की अर्धनग्न तस्वीरों को बडे ही ध्यान से देख रहा था । यहाँ पर क्या कर रहे हो? उन तीनों को अपने पास खडे देख उस पुलिस वाले नहीं अपनी अग्नि नेत्रों से घूमते हुए कर कर स्वर्ग में पूछा सर हम लोग एक रिपोर्ट लिखवाने के लिए आए । अनिल ने उसकी बात सुनकर बडे ही धैर्य से जवाब दे तो सालो मेरे सिर पर खडे हो कर रिपोर्ट लिखवा हुए क्या जाओ वहाँ जाकर उस बेंच पर लोगों के साथ बैठ जाओ । जब तुम्हारा नंबर आएगा मैं तो मैं बुला लूंगा पर अभी तो आपके पास कोई रिपोर्ट नहीं लिखवा रहा । आप तो फ्री बैठे हुए हो, अजीत के मुंह से निकला साले में तेरे को फ्री बैठा हुआ लगता हूँ । क्या तो ये पता भी है कि मैं कितना जरूरी काम कर रहा हूँ आप चुप चाप वहाँ जाकर बैठ जा ना अभी आई पर में रिपोर्ट लिख भी दूंगा और तुझे उसमें अंदर भी कर दूंगा । उस हवलदार की बात सुनकर अजीत को बहुत गुस्सा । वहाँ भी उसे कुछ और कहने जा रहा था कि अगर नहीं धीरे से उसके हाथ को तब कर पाया । उसका इशारा समझकर अजित चुप हो गया । उसने उसे कुछ कहा तो नहीं पर वो अभी भी बहुत गुस्से में लग रहा था । फिर वो तीनों वहाँ से हटकर उस बेंच पर जा बैठे जहाँ पर उन लोग जहाँ पर उन जैसे कई लोग बैठे हुए थे । वो लोग पुलिस में अपनी अपनी रिपोर्ट लिखवाने आए हुए थे और इस बात का इंतजार कर रहे थे कि कब वह पुलिस वाला अपनी जरूरी में ग्रीन से फ्री हो और उन लोगों को रिपोर्ट लिखवाने के लिए अपने पास बुलाये ऍफ पर बैठ कर वो लोग पुलिस स्टेशन का इधर उधर का नजारा देखने लग गए । तभी थाना इंचार्ज कमरे से बाहर ने की आवाजाही वहाँ हॉल में वो वहाँ हॉल में बाहर तक वो जुटी क्या काम है? दिखता नहीं, मैं जरूरी बात कर रहा हूँ । उन्होंने नजरें उठाकर देखा तो पाया कि एक बाईस तेईस साल का नौजवान सा लडका थाना इंचार्ज के कमरे से बाहर निकल रहा था । उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी । साथ ही साथ उसके चेहरे पर अपमान से चलने के भाव नजर आ रहे थे । वह युवक धीरे धीरे कदमों से हॉल से बाहर की तरफ जाने लगा । वो उन्हीं बैंच के आगे से गुजर रहा था । तभी अचानक से वह लडखडाया और नीचे गिरने को हुआ । इससे पहले की वह नीचे गिरता अनिल तुरंत अपनी सीट से उठा और उसे गिरने से पहले थाम लिया । तुम ठीक हो? हाँ सर, ठीक हूँ थैंक यू जो आपने मुझे गिरने से बचा गया वो तो ठीक है भाई! पर ये तो बताओ तो मैं इस तरह से रो क्यों ना हो । उसने उसके साथ चलते हुए पूछा । उसने अजीत और अजगर को वहीं पर बैठे रहने का इशारा किया ताकि वह रिपोर्ट लिखवाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर सकते हैं । क्या बताऊ सर? लगता है आज यहाँ पुलिस स्टेशन आना ही मेरी जिंदगी का सबसे बडा गुनाह हो गया । वो युवक रुआंसे स्वर में बोले क्यों भाई, ऐसा क्या हो गया? अनिल उसके साथ साथ चलता हुआ धीरे धीरे पुलिस स्टेशन की इमारत से बाहर आ गया था । अब क्या बताऊं सक मेरा नाम आनंद है । लोगों के दिलों में पुलिस की इमेज बहुत अच्छी नहीं होती । मैं ये बात अच्छी तरह से जानता था । इसके बावजूद आज से पहले अन्य लोगों से विपरीत मेरे दिल में इन लोगों के प्रति सहानुभूति की भावना ही थी । शायद फिल्मों का और अखबारों में छपी उन खबरों का मुझ पर कुछ ज्यादा ही असर था जिसमें ये बताया जाता था कैसे ये लोग बारह बारह घंटों से ज्यादा की ड्यूटी करते हैं । होली हो या दीवाली या रक्षा बंधन या फिर कोई भी तीस त्यौहार हो, ये लोग कभी भी अपने परिवार वालों के साथ उसे नहीं मना पाते । हमेशा एक दिन देर से ही मनाते हैं । ये बेचारी बडी मेहनत करके मुजरिमों को गिरफ्तार करते हैं । पर कोई भी आम आदमी उनके खिलाफ गवाही देने के लिए आगे नहीं आता । मुझे बडा वकील करके बडी आसानी से अपने आप को अदालत में निर्दोष साबित कर देते हैं और फिर बाइज्जत बरी हो जाते हैं । सडक पर किसी दुर्घटना में अगर कोई आदमी घायल हो जाता है तो भी उसे कोई इस डर से अस्पताल नहीं ले जाता कि कहीं पुलिस उसी को थाने में बुलाकर कुछ पूछताछ नहीं कर लेंगे । पुलिस की इमेज फालतू में ही खराब हो रखी है । दरअसल हम आम नागरिक ही पडने दर्जे के स्वार्थी होते हैं । किसी भी अपराध है गलती के लिए अपनी कमी नहीं देखते बल्कि सारा का सारा दोष पुलिस पर डाल कर इतिश्री कर लेते हैं । जब की देखा जाए तो बिना पब्लिक की सहायता के पुलिस कुछ भी नहीं कर सकते । फिर आज तक इनके बारे में मेरी यही सोच सोचता था । जीवन में कैसा भी कोई भी मौका आएगा तो मैं उस समय पुलिस को अपना पूरा पूरा सहयोग करूंगा, चाहे उसके लिए मुझे कितनी भी कठिनाइयों का सामना क्यों न करना पडेगा । पर अफसोस कितनी गलत थी मेरी ये सोच, इस बात का एहसास आज यहाँ पुलिस स्टेशन में आकर हुआ है और अब उसी सोच की सजा मैं यहाँ आकर भुगत रहा हूँ । क्यों? ऐसा क्या हो गया भाई सर, मैंने अभी ऐसे सीकर लिखित एग्जाम पास किया है और इंटरव्यू के लिए फॉर्म भरना है जिसमें एक फॉर्म पुलिस वेरिफिकेशन का भी है जिसे भरकर जमा करना है । मैं भी हॉस्टल में रहता हूँ और पुलिस वेरिफिकेशन के लिए फॉर्म भरकर मैंने पहले ही जमा करवा दिया था । कल शाम को हॉस्टल में पुलिस का एक सिपाही आया था उसे वैरीफाई करने के लिए और उस समय में हॉस्टल में नहीं था । इसलिए वो सिपाही आज दोबारा से मुझ से मिलने के लिए हॉस्टल में आने वाला था । ये जानकर मेरे दिल में उस सिपाही के प्रति करुणा का सैलाब उमड पडा है । बिचारा मुझसे मिलने के लिए स्थानीय से भी दूर आया था और मेरी ही गलती की वजह से दोबारा से हॉस्टल का एक और चक्कर लगाना पडेगा । ये तो सरासर गलत बात है । इसलिए जिम्मेदार नागरिक होने के नाते अब मेरा फर्ज बनता है कि मैं खुद पुलिस स्टेशन जाएंगे । वहाँ जाकर अपनी हाजिरी बजाओ और उसके तमाम के तमाम सवालों का जवाब दे ताकि उसका काम आसान हो सके । बस इसी भावना के वशीभूत होकर में आज सुबह सुबह ही अपनी सब काम छोडकर इस पुलिसथाने चलाया । पर यहाँ पर ऐसे लगा जैसे मैंने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाडी मार ली हो । अंदर आकर मैंने रजिस्टर खोले हुए उस हवलदार को नमस्ते किया और अपने आने का मकसद बयान किया था । उसने मेरी तरफ देखा और बिना कुछ कहे वापस से अपने काम में लग गया । पाँच सात मिनट बाद मैंने फिर से उसको अपनी बात दोहराई । पर शायद वो जरूर किसी बेहद जरूरी काम में बिजी होगा । इसलिए उसने फिर से मेरी बात को सुन कर अनसुना कर दिया । ऐसी बीस पच्चीस मिनट गुजर गए । जब उसने मेरी बात नहीं सुनी तो मैं फिर दूसरे हवलदार से मुखातिब और उसे अपने आने का मकसद बयान किए । उसने काम करने के लिए हमें से नहीं लाया । पर हाउस में कुछ भी नहीं और वो भी अपने ही किसी और का हो गया । मुझे आए आधे घंटे से ज्यादा हो चुका था, पर किसी ने भी मेरी बात नहीं है । पर किसी ने भी मेरी बात सुनी, जरूरी नहीं समझे । अभी गेट पर खडे हुए संतरी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया । मैं उसके पास गया । मुझे लगा शायद वो मेरी परेशानी देखकर मेरी बात सुनेगा और उस समय मेरी आश्चर्य की कोई सीमा नहीं नहीं जब उसने मुझसे एक हजार रुपये की रिश्वत की मांग की । रिश्वत के साथ उस ने मुझे आश्वासन दिया कि दस मिनट के अन्दर वो वेरिफिकेशन की रिपोर्ट मेरे हाथ मिलाकर रख देगा । उसकी बात सुनकर मैंने उसे तुरंत बनाकर नया और उससे कहा, मेरा चरित्र बिलकुल बेदाग है । जिंदगी में आज तक मैंने ऐसा कोई भी काम नहीं किया जिसकी वजह से पुलिस में मेरे खिलाफ कोई रिपोर्ट लिखवाई गई हूँ । मैं तो यहाँ पुलिस स्टेशन आप लोगों की सहूलियत के ही लिए आया हूँ ताकि आपको मेरे हॉस्टल दोबारा ना आना पडेगा । मेरी बात सुनकर ओखी करके हसने लगा था जैसे मैंने उसे कोई जोक सुनाया हूँ । वो जगह ऐसी थी जहां से हर कोई हमें देख सकता था । हमारी वो बातचीत ऐसी थी जिसका एक एक शब्द बडे आराम से हर कोई सुन सकता था पर किसी ने कुछ भी नहीं किया । एक पुलिस वाले को खुलेआम ऐसे रिश्वत मांगता हुआ देकर मैं सकते की हालत में आ गया था । मेरा आज से पहले कभी भी पुलिस से कोई वास्ता ही नहीं पडा था । किसी जगह पुलिस रिपोर्ट में नाम होने का कोई सवाल ही नहीं था । यदि मेरे चरित्र में कोई कमी होती, कहीं कोई दाग होता तो उसकी भरपाई के लिए शायद रिश्वत फिर भी एक जस्टिफिकेशन होता है । पर मैं तो खुद को शरीफ से बढकर शरीफ निहायती सज्जन किस्म का आदमी मानता था जोकि एक असहाय और लाचार पुलिस वाले की मदद करने के लिए उसके दरवाजे पर आया था । इतने सालों से मेरे दिल में पुलिस के प्रति जो सहानुभूति की छवि बनी हुई थी वहाँ आज एक पल में एकदम से चकनाचूर हो गई सर । इतना कुछ सुनने के बावजूद मैंने फिर भी सोचा था हो सकता है कि नीचे के लेवल पर ऐसा होता हूँ और शायद थाना इंचार्ज मेरी बात को सुन और समझ सके । इसलिए हिम्मत करके मैं उसके दरवाजे पर गया था । वो अंदर किसी से फोन पर बात कर रहा था । पांच सात मिनट तक मैं वहाँ दरवाजे पर खडा रहा और फिर किसी तरह से हिम्मत करके अंदर आने के लिए पूछ लिया था । मैं आई कम इन सर और उसके बाद तो शायद आपने भी उसके चिल्लाने की आवाज सुनी होगी । मेरी बात सुन कर कैसे वो थाना इंचार्ज भडक गया था और मुझे कार्ड खाने को दौड पडा हो । मेरी बात सुन कर कैसे वो थाना इंचार्ज बढ गया था जैसे मुझे कार्ड खाने को दौड पडा हूँ । हाँ सुनी थी उसके चिल्ला नहीं किया यहाँ बाहर तक गुंजीत सर आप तो मुझे बहुत डर लगने लगा है । मैंने इनकी रिश्वत की पेशकश नहीं मानी । अब कहीं लोग मुझे ही किसी उलटे सीधे इल्जाम में ना पसंद नहीं है । अब तो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मैं वो शिकार हूँ जो खुद ब खुद शिकारी के बिछाया हुए जाल में आकर फंस गया है तो ऐसा लग रहा है अगर नौकरी करनी है तो फिर रिश्वत देकर रीवेरिफिकेशन पूरा करवाना होगा । पर आप सोचिए जब मुझे खुद को इतना सा काम रिश्वत देकर करवाना पड रहा है तो फिर में क्यों भविष्य में दूसरों से रिश्वत की डिमांड नहीं करूँगा? शायद इस देश में रिश्वत का सिलसिला जारी ही इसलिए है क्योंकि जब नौकरी पाने के लिए आदमी को रिश्वत देनी पडती है तो फिर वो रिश्वत देने वाला व्यक्ति भी यही सीखेगा और खुद रिश्वत जरूर लेगा । लगता है इस रिपोर्ट से ये सिस्टम कभी भी खत्म नहीं होने वाला है । नहीं अनिल के मुझे इतना ही निकला सर, बुरा ना माने तो आपसे बात करूँ । हाँ! बोलो, मैंने देखा था आप अपने दोस्तों के साथ उस रजिस्टर वाले हवलदार के पास अपनी रिपोर्ट लिखवाने के लिए गए थे । मेरी बात माननीय कुछ हासिल नहीं होने वाला । यहाँ रिपोर्ट लिखवाने से ये पुलिस वाले वह रहते हैं जो शिकार फंसाने के लिए इंसानी रूप में नजर आ रहे हैं । शायद तुम सही कह रहे हो दोस्त पर फिर भी हम लोग कोशिश तो कर ही सकते हैं । अनिल ने कुछ सोचते हुए का ठीक है सर, आप अपनी कोशिश जारी रखिए । मैं तो अब हॉस्टल के लिए निकलता हूँ । कुछ लोगों की हेल्प करने के चक्कर में सुबह नाश्ता भी नहीं किया था और अब तो इनके बर्ताव से लंच भी करने की इच्छा नहीं हो रही । ठीक है दोस्त जा रहे हो जाओ पर जाते जाते मेरी एक बात जरूर सुनते जाओ उसे मानना क्या ना मानना तुम्हारे ऊपर है । कहिये सर क्या कहना चाहते हैं? देखो दो हो सकता है कि अभी अपना सर्टिफिकेट बनवाने के लिए तुम्हें रिश्वत देनी पड रही है । पर सरकारी नौकरी मिलने के बाद तुम भी कहीं ये सोचकर रिश्वत लेना शुरू मत कर देना कि जब नौकरी पाने के लिए तुमने रिश्वत दी है तो रिश्वत लेने का तो मैं हाँ क्यों नहीं । जिंदगी के सिर्फ एक मोड पर रिश्वत देने से ही हर बार तो में रिश्वत लेने का लाइसेंस नहीं मिल जाता है । कैसे हो सकता है कि तुम्हें मेरी ये बात एक लेक्चर लग रही हूँ पर ध्यान रखना जिस प्रकार इनके रिश्वत मांगने से तुम इतना दुखी और परेशान हो रहे हो, उसी प्रकार तुम्हारे रिश्वत मांगने से दूसरे भी तुम्हारे जितने ही दुखी और परेशान होंगे । अभी तुम ने खुद कहा कि रिश्वत का ये सिलसिला इसलिए चल रहा है जब किसी को नौकरी पर लगने के लिए रिश्वत देनी पड रही है, वो भी रिश्वत लेगा पर ठंडे दिमाग से तुम ये भी सोचो अगर तुम किसी से रिश्वत नहीं लोगे तो ये भी हो सकता है कि वो सामने वाला भी किसी से रिश्वत नाले और रिश्वत देने लेने का इस सिलसिला तुम्हारे साथ ही खत्म हो जाए और इस तरह से देश से रिश्वत का नामोनिशान मिट जायेगी । तुम खुद रिश्वतखोरी के ताबूत की पहली खेल बनने में कामयाब हो जाओ । ये बात तो आप सही कह रहे सर, आप की बात सुनकर मुझे इस बात का एहसास हो रहा है । मैं आपसे ये वादा करता हूँ चाहे मुझे भी रिश्वत देनी पड जाए पर मैं कभी भी अपनी नौकरी में किसी से रिश्वत नहीं लूंगा और ना ही कभी मेरी वजह से कोई इस तरह से परेशान होगा । डाॅ । तुम्हारी नौकरी के लिए अग्रिम शुभकामनाएं । दोस्त ऐसे अपने अंदर चलता हूँ । हो सकता है आखिर हवलदार अब रिपोर्ट लिखने के लिए तैयार हो गया । ठीक है सर चाहिए आप के साथ मेरी भी शुभकामनाएं बाय कहते हुए आनंद के होठों पर एक मुस्कान उसने साइकिल स्टैंड पर लगी हुई अपनी साइकिल उठाई और वहाँ से चला गया । अनिल उसे तब तक जाते हुए देखता रहा जब तक वह नजरों से ओझल नहीं हो गया था । उसके जाने तक वो न जाने क्या क्या सोच रहा था । फिर वो भी इमारत के अंदर चला गया । क्या हुआ? अनिल तो उस युवक के पीछे पीछे हो गए थे । उसके आते ही अजित ने पूछा, बस ऐसे ही यार तुम बताओ अपना नंबर आया गया, इतनी जल्दी कहाँ से आएगा या बीस पच्चीस मिनट हो गए और अभी तक उस हवलदार में सिर्फ एक जाने की रिपोर्ट लिखवाने के बीस पच्चीस मिनट हो गए और अभी तक उस हवलदार ने सिर्फ एक जने को रिपोर्ट लिखवाने के लिए बुलाया है । वो बेचारा रिपोर्ट लिखवाने के बाद भी बडा दुखी नजर आ रहा था, जैसे उसका सब कुछ छिन गया । अगर ऐसा ही चलता रहा तो मुझे नहीं लगता कि शाम तक भी अपना नंबर आ पाएगा । एक बात और कहूं यार, यहाँ के हालत देखकर तो ऐसा लगता है कि यहाँ पर रिपोर्ट लिखवाने का कोई फायदा ही नहीं है । अजीत ने जवाब दे शायद तुम सही कह रहे हैं पैसे अब चलो । यहाँ हम लोग रिपोर्ट नहीं लिखवा रहे हैं पर क्यों? अगर ने आश्चर्य से पीछे वो मैं तो मैं बाद में बताऊँ । वैसे भी अभी अजीत ने कहा है कि शाम तक भी अपना नंबर आने से रहा और शाम तक अपना वक्त बर्बाद करने से अच्छा है । फिलहाल हम लोग अभी यहाँ से बाहर निकल जाएगा । कहते हुए अनिल बाहर की ओर चल पडा । ये देख वो दोनों भी जल्दी से अपनी सीट से उठे और उसके पीछे पीछे इमारत से बाहर की ओर आ गया । आखिर तुम्हें हुआ क्या है यार, कुछ तो बताओ आके हम लोग बिना कुछ किये यहाँ से क्यों जा रहे हैं? अगर नहीं चलते चलते पूछा यार सब बताऊंगा पहले इस पुलिस स्टेशन से बाहर तो चलो कहते हुए अनिल पुलिस स्टेशन के मुख्य गेट से बाहर आ गया जहाँ पर उनकी कार खडी थी । अनिल ने कहा कि ड्राइविंग सीट का दरवाजा खोला और अंदर जाकर बैठ गया । अगर उसकी बगल की सीट पर आकर बैठ गया और अजीत पीछे का दरवाजा खोलकर वहां बैठ के उन के बैठते ही अनिल निकाल स्टार्ट की और वो लोग वहां से रवाना हो गए । अबुल पहले तो तुम्हें रिपोर्ट लिखवाना चाहते थे और जब हम रिपोर्ट लिखवाने के लिए पुलिस स्टेशन तक आ गए । फिर तुमने रिपोर्ट लिखवाने का अपना फैसला क्यों बदल दिया और बिना रिपोर्ट लिखवाए हुए बाहर के बाद यह वैसे तो अंदर के हालत देखकर तुम समझ ही गए हो गए । फिर भी जानना चाहते हो मैंने रिपोर्ट लगवाने का फैसला क्यों बदला तो सुनो हमारे सामने निकले उस लडके के साथ क्या हुआ था? उस पुलिस स्टेशन गाडी चलाते हुए अनिल ने उस युवक के साथ हुआ अपना सारा वार्ता लाभ सुना डाला और अंत में का वैसे अब तुम ही बताओ । ऐसे पुलिस स्टेशन में अपनी बात किससे और कैसे कहते हैं जहाँ पर ऊपर से लेकर नीचे तक हर कोई भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है । वहाँ पर तो जैसे ही वो लोग ये सुनते कि हम वहाँ पर किसलिए आए हैं, हमको अलाल करने की तैयारी करने लग जाते हैं । उनको तो यही लगता था कि बैठे बिठाए उनके जाल में बहुत बडे बडे मुर्गे फस गए । फिर शायद बिना मोटी रकम अदा किए हम लोग वहाँ से आजाद होने की भी सोच नहीं सकते थे और हो सकता है वो लोग हमें उस नेता के आपको भेज देते है । तो तुम सही रहे हो यार, वो लोग वास्तव में लोगों को मुर्गी और बकरी की तरह ही हलाल कर रहे हैं और ऐसा तो हमने भी अपनी आंखों से देख लिया था । जब तुम उस लडके के साथ बाहर गए थे वहाँ एक बंदे को सिर्फ अपनी गाडी के एनओसी प्रमाणपत्र पर एक छोटा सा साइन कराने के लिए वो लोग इधर से उधर दौडा रहे थे । अगर ने कहा पर अब हम लोग क्या कर रहे हैं किसको? ये खबर दें कि देवराज ठाकुर के घर पर हुए हमले के पीछे जुबैद अंसारी का हाथ है । अजीत ने पूछा क्यों ना हम लोग किसी और पुलिस स्टेशन में चले? अगर में पीछे और वहाँ पर भी हमें ऐसे ही काट कर खाने वाले कसाई पुलिस वाले मिले तो जितने का तो क्या हूँ । मुझे तो वैसे ही खाने का बडा शौक है । उनके साथ मिलकर खा लेना । अबे साले वो लोग हमें साथ में खिलाएंगे । थोडी ना वो तो हम लोगों को ये लाल करेंगे । वो ऐसा क्या चल फिर तो एक खाने का प्लान कैंसिल करते हैं पर फिर करना क्या है? हाँ मिल क्या सोचा है तुम्हें कुछ नहीं । अभी तो यहाँ से सीधा घर चलते हैं और ठंडे दिमाग से सोचते हैं कि क्या कब और कैसे करना है । अनिल गहरी सांस लेकर का