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From Weds To Vs Part 9

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यह कहानी एक ऐसे पात्र के जीवन पर आधारित है जो हकलाहट की समस्या से पीड़ित है और उसे अपनी इस समस्या की वजह से कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ा | कहानी के अंत में उसने अपनी सभी समस्याओं पर कैसे विजय प्राप्त की यह जानना दिलचस्प होगा | नोट :- यह कहानी लिखने का मुख्य उदेश्य समाज को हकलाहट की समस्या के प्रति जागरूक करना है | Author : Rohit Verma Rimpu Voiceover Artist : Ashutosh
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काफी जद्दोजहद और बहस बाजी के बाद वहाँ बैठे स्वर्णकार बिरादरी के सदस्य ये फैसला लेते हैं कि भानु और ईशा का तलाक का फैसला भारतीय कानून के माध्यम से ही होगा परन्तु बहनों के पिता को ईशा के परिवार को हर्जाने की रकम छह लाख रुपए देनी होगी । परंतु जब तक भाइयों के परिवार को तलाक के कागजात नहीं मिल जाते हैं जिससे कि उन दोनों का तलाक सुनिश्चित नहीं हो जाता तब तक भालू के पिता ईशा के परिवार को हर्जाने की रकम उन्हें आदान नहीं करेगा । परन्तु एशिया के पिता कहते हैं कि उन्हें भी अब किसी पर विश्वास नहीं रहा । उस बात की क्या गारंटी है कि तलाक के कागजात उनके हाथ लगते ही ये हमें हर्जाने की रकम अदा कर देंगे । इसके जवाब में बहनों के पिता कहते हैं कि उन्हें किसी को भी किसी भी प्रकार की गारंटी देने की जरूरत नहीं है और वो हर्जाने की रकम पहले ही अदा कर सकते हैं परंतु उनके परिवार की गारंटी कोई भी नहीं दे रहा है जिस कारण वो हर्जाने की रकम स्वर्णकार बिरादरी के उनके शहर के प्रधान के पास जमा करवा रहे हैं और साथ में वो कहते हैं कि अब अगर किसी को उनकी कहीं बात पर किसी को आपत्ति है तो अभी सबके सामने अपनी आपत्ति जाहिर करने बाद में किसी भी बात की किसी तरह की भी सुनवाई नहीं सुनी जाएगी । भानु के पिता की बात पर सभी लोग अपनी सहमती जताते हैं और फैसला करते हैं कि जब भी भानु के पिता हर्जाने की रकम दिशा के शहर के स्वर्णकार बिरादरी के प्रधान के पास जमा करवा देंगे उसके अगले ही दिन भानु ओडिशा के तलाक का केस कोर्ट में दाखिल कर दिया जाएगा । भानु के पिता के लिए अचानक से पैसों का इंतजाम करना मुश्किल काम था । आनंद फाइनल में उनको अपनी नई खरीदी कार बहुत ही कम कीमत पर बेचनी पडती है । किसी ना किसी तरह वो यहाँ वहाँ से पैसे एकत्रित करके स्वर्णकार बिरादरी के पास जमा करवा देते हैं । उसके अगले ही दिन उसके अगले ही दिन वो भालू ओडिशा के तलाक का केस कोर्ट में दाखिल कर देते हैं और भारतीय हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक उन्हें छह महीने का समय दे दिया जाता है । छह महीने का समय बीतने के बाद अगर सब कुछ ठीक ठाक रहता है तो उनको कोर्ट से पक्के तौर पर तलाक मिल जाएगा । उधर भाई की बेटी यानी तरीके पालन पोषण की सारी जिम्मेदारी वालों की माने ले रखी थी परंतु पारी को मानो जैसे भाइयों की माँ नहीं कुदरत स्वयं उसका पालन पोषण कर रही हो क्योंकि वह किसी को तंग नहीं करती थी और ना ही खाने पीने के मामले में किसी के ऊपर निर्भर भानु ने उसे एक छोटा कुर्सी और मेज लाकर दिया हुआ था और उसके लिए छोटे छोटे बर्तन भी बनवा दिए थे । शुरू शुरू में वह खेल खेल में ही अपने छोटे से बर्तनों में खाना लाकर आपने कुर्सी और मेज पर बैठकर खाना खाने लगी थी परंतु धीरे धीरे यही खेल उसकी आदत बन गई । अब वो अपनी दादी से अपने लिए अलग से छोटी छोटी चपातियां बनवाती और अपने अलग से छोटे छोटे बर्तनों में परोस कर अलग से अपनी कुर्सी में इस पर रख कर खाते हैं । सारा परिवार उसकी यादव देखकर हैरान रह जाता हूँ परन्तु भानु उसकी नटखट शरारतों को देखकर मन ही मन ईशा को गालियाँ निकाल था । दूसरी तरफ समय का चक्कर अपनी चाल चलता है और भानु ओडिशा के तलाक के लिए अदालत से मिले छह महीनों का समय पूरा हो जाता है, परंतु भाइयों का संजोग तो देखो जिस महीने दोनों के तलाक की तारीख थी । उसी महीने दोनों की शादी हुई थी और तलाक की तारीख से दो दिन पहले करवा चौथ का व्रत था जो कि हिंदू पत्नियां अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए रखती है । खैर दोनों परिवारों के सदस्य भानु ओडिशा के तलाक के सिलसिले में कोर्ट पहुंचते हैं । बानू वहाँ के नोटिस बोर्ड पर अपने केस की बारी का नंबर चेक करना चाहता है । वहाँ कोर्ट के नोटिस बोर्ड पर चौथे नंबर पर उन दोनों का नाम अंग्रेजी में भानु वर्सेस दिशा लिखा होता है । अपना नाम नोटिस बोर्ड पर पढकर भानु को अपने शादी के कार्ड पर लिखे अपने नाम की याद आजाती है । जो भी अंग्रेजी में ही भानु ऍप्स ईशा था । ये वेट से लेकर वर्ष तक का कुछ सालों का सफर भानु को तमाम उम्र भूलने वाला नहीं था । इस कुछ सालों के सफर ने उसे जिंदगी में बहुत कुछ सिखा दिया था । अपने और बेगानों की पहचान भी उसे इसी सफर के दौरान ही होती है । थानों के जीवन में कई अध्यापक आए और सभी अपने अपने अध्याय का अध्ययन करवाकर चले गए । परंतु जीवन का जिस अध्याय का अध्ययन उन्होंने इस सफर के दौरान क्या उस अध्याय ने थानों के जीवन को बदल कर रख दिया । उसे अपने ऊपर से विश्वास साउथ गया । खैर कहानी को आगे बढाते हैं । भानु और ईशा के तलाक का केस अदालत में दाखिल हो चुका था । भानु थोडा डर रहा था और सोच रहा था कि कोर्ट के अंदर जज के सामने क्या होगा क्योंकि उसने तो टेलीविजन के माध्यम से ही अदालत और कोर्ट कचहरी के बारे में देखा था परन्तु असली जिन्दगी में अदालत और कोर्ट कचहरी का सामना करना उसके लिए बहुत ही मुश्किल काम था । भाई का वकील जो की दोनों पक्षों का साझा वकील था, वो भालू का डर भाग गया और उसे समझाने लगा कि डरने वाली कोई बात नहीं है । बस उसे अदालत परिसर के अंदर जाना है, जज के सामने पेश होना है और वो तुम से कुछ सवाल पूछेगा जिसका तुमने जवाब देना है । उसके बाद तो मैं तलाक के कागजात पर अपने हस्ताक्षर करने हैं जिसके बाद तुम्हारा ईशा के साथ तलाक सुनिश्चित हो जाएगा । परंतु ये काम उतना आसान नहीं था जितना उसका वकील बोल रहा था क्योंकि कोर्ट में जज की अनुपस्थिति के कारण उन को कोर्ट से अगली तारीख मिल जाती है । भालू और उसके साथ आए लोग निराश होकर वापस चले जाते हैं । वो अभी कुछ ही दूर पहुंचते हैं कि तभी भानु के पिता को उनकी वकील का फोन आ जाता है । वो उन को वापस बुला रहा होता है । वाहनों के पिता वापिस जाकर वकील को उनके पास बुलाने का कारण पूछते हैं । वो कहता है कि ईशा के पिता को कुछ रुपयों की जरूरत है और वो उस की सिफारिश पर ईशा के पिता को कुछ रुपये पहले दे दी परन्तु बहनों के पिता इस बात के लिए बिल्कुल राजी नहीं थे और वो उनको साफ मना कर देते हैं और कहते हैं कि उन्होंने पहले ही कहा है कि जिस समय उनके हाथ भानु और ईशा के तलाक के कागजात नहीं आ जाते तब तक वो किसी को हर जाने का एक पैसा भी नहीं देंगे । इन पैसों की बात को लेकर बहनों के पिता और उनके वकील की आपस में बहस बाजी शुरू हो जाती है और ये छोटी सी बहस बाजी कब तकरार में बदल जाती है इस बात का पता ही नहीं चलता है । हालांकि वो वकील उन दोनों पक्षों का साझा वकील था परन्तु फिर भी वो ईशा के पक्ष की बात कर रहा था । उस वकील ने और ईशा के पिता की तरफ से आए कुछ लोगों ने भानु के पिता से पैसों की मांग को लेकर काफी बहस बाजी की परन्तु वालों के पिता अपने फैसले पर डटे रहे और वो सब को वहीं छोडकर कार में बैठकर अपने शहर की तरफ रवाना हो गए । कुछ ही दिनों में भानु और ईशा की तलाक की अगली तारीख आनेवाली थी । भानु के पिता नहीं वकील से अगली तारीख का समय और उनका कुशल मंगल पूछने के लिए फोन किया परंतु वकील ने फोन पर भानु के पिता से कुछ अच्छे ढंग से बात नहीं । बालों के पिता को वकील से बात करना कुछ अच्छा नहीं लगा । उन्होंने इस बारे में अपने बडे भाई यानी भानु के ताऊ जी से बात की परन्तु उन्होंने इस बात को हंसी में उडा दिया और उनसे कहा कि आप बेफिक्री से रहे क्योंकि वो आपका और उनका यानी दोनों पक्षों का साझा वकील है जिस कारण वो एकतरफा बात नहीं कर सकता । उनकी बात सुनकर भाइयों के पिता कुछ नहीं बोलते हैं और सब कुछ भगवान के भरोसे में छोड देते हैं । जब कोई मुसीबत में होता है तो ये उनके दुश्मनों के लिए उन पर विजय पाने का अवसर भी होता है । ऐसा ही कुछ भानु के साथ होने वाला था । शेखर अंकल वालों के पिता के पुरानी जानकार थे । उनकी भानु के पिता से पुरानी दुश्मनी चल रही थी परन्तु उन्हें कभी भानु के पिता से जीतने का मौका नहीं मिला था । जब उनको भानु ओडिशा के तलाक के बारे में पता चलता है तो उन्हें भानु के पिता से अपनी पुरानी दुश्मनी का बदला लेने का मौका मिल जाता है । वो ईशा के पिता के संपर्क में आ जाते हैं । आखिरकार भानु और ईशा के तलाक की तारीख का दिन नजदीक आ जाता है । बानू सुबह नहा धोकर कोर्ट में जाने के लिए तैयार हो जाता है । भाई के साथ उसके पिता उसकी बुआ का लडका चेतन और कुछ नहीं और कुछ नजदीकी रिश्तेदार जाने के लिए तैयार हो जाते हैं । परन्तु एन वक्त पर भानु के पिता बीमार पड जाते हैं । वानू और बाकी सब इसके साथ गए हुए लोग चिंता में पड जाते हैं । भानु के पिता उन सब को कहते हैं कि वो बाहर कार्य में बैठ जायेंगे और बाकी सब भाई के साथ उसके तलाक के केस की पैरवी करने उसके साथ जाएंगे और अगर कहीं उन की जरूरत पडती है तो वह कार में ही बैठे हैं, मैं की मदद के लिए आ जाएंगे । उधर चेतन और वाहनों के जीजा भानु के पिता को हौसला देते हुए कहते हैं कि भानु के केस की फिक्र न करें, वो सब संभाल लेंगे । मानु कोर्ट परिसर में दाखिल होता है और वहाँ नोटिस बोर्ड पर दोबारा से वानू वेट ईशा लिखा देखकर मन ही मन मुस्कुराने लगता है । थोडी देर के बाद जज का बुलावा आता है और उनका वकील दोनों पक्षों को लेकर जज के सामने पेश होता है क्योंकि जज के सामने ज्यादा लोगों के आने की नहीं होती । इसलिए ईशा की तरफ से उसके पिता और बहनों की तरफ से चेतन जज के सामने पेश हो जाता है । इससे पहले की जब उनसे कुछ सवाल पूछता हूँ ईशा के पिता झट से एक कागज का टुकडा निकालकर जज के सामने रख देते हैं । ये कोई और कागज का टुकडा नहीं था । ये ईशा के द्वारा भानु पर लगाएगी । इल्जामात की नकल थी जो कि उन्होंने सबसे पहले पुलिस को दी थी । उनकी इस हरकत का सीधा मतलब था कि वह अब बात को खत्म नहीं करना चाहते बल्कि बात को और बढाना चाहते हैं । उनकी इस हरकत से बानों और चेतन सकते में आ जाते हैं । वो ये देखकर हैरान थे कि अब जब बात खत्म होने को है यानी आज तलाक का आखिरी फैसला होने वाला है तो इस आखिरी समय में ईशा के पिता भानु और उसके परिवार के ऊपर यूँ अदालत में इल्जाम क्यों लगा रहे हैं? खैर थोडी थोडी बात भानु और चेतन के समझ में आ रही थी । ये सब भानु के उस शेखर अंकल की चाल थी और वो भी ईशा के पिता के साथ उनके पास ही खडा था । या फिर जब पिछली तारीख परेशा के पिता ने भानु के पिता से पैसों की मांग की थी तो बहनों के पिता ने दोनों के तलाक से पहले पैसे देने से साफ मना कर दिया था । उन्होंने वकील की बात भी नहीं मानी थी जिस वजह से वकील भी उनका साथ दे रहा था । खैर अब एक बात तो साफ थी कि जज के सामने भानु और चेतन एक तरफ थे और दूसरी तरफ ईशा के पिता और उनके साथ खडे उनके शेखर अंकल और उन दोनों का साझा वकील था जो कि ईशा के पक्ष की ही बात कर रहा था । अब जज के सामने एक कागज का टुकडा पडा हुआ था जिस पर भाई के ऊपर लगाए गए इल्जामात लिखे हुए थे और साथ में ये बात भी साफ हो गई थी कि उन दोनों के वकील ने भालू के शेखर अंकल के कहने पर वाहनों के पक्ष की नहीं बल्कि ईशा के पक्ष की बात करनी थी । इसके अलावा भानु को एक डर और भी था । बहनों को बचपन से हकलाहट की समस्या भी थी जो की टेंशन की परिस्थिति में ज्यादा उभरकर सामने आ जाती थी और बहनों के सामने इस परिस्थिति से ज्यादा टेंशन वाली परिस्थिति और क्या हो सकती थी कि वह कोर्ट में जज के सामने खडा है और उस जज के पास उन लोगों पर लगे बेबुनियाद इल्जामात किए पूरी लिस्ट है । उसे डर था कि अगर जज ने उससे कुछ सवाल किए और वो अपनी हकलाहट की समस्या के कारण कुछ भी बोल नहीं पाया तो जज उसे ही दोषी मानेगा । परन्तु फिर उसने फैसला किया कि वह जज के द्वारा पूछे गए सारे सवालों का जवाब खिलाते हुए ही देगा । वो अब अपनी हकलाहट की समस्या के कारण और मुसीबत में नहीं फंसना चाहता था । उसे अभी इस बात का डर भी नहीं था कि अगर वह बात करते समय हकलाने लग गया तो कोर्ट परिसर में बैठे लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे क्योंकि इससे भी बडा डर उसके पास ये था कि अगर अपनी हकलाहट के कारण चुप रहा तो जज उसे ही दोषी मानेगा और उस पर ईशा के द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को सच मान लिया जाएगा । उधर जज ने कानूनी कार्यवाही आगे बढाने का आदेश दिया और सबसे पहले भालू के ऊपर लगाए गए आरोपों को पडने लगा । ईशा के परिवार द्वारा भानु पर लगाए सभी आरोपों को पढने के बाद जज ने वालों की तरफ देखा और उससे पूछा भानु पुत्र सुनील कुमार । लडकी पक्ष के परिवार ने आप पर जो आरोप लगाए हैं क्या वो उन्हें स्वीकार करते हैं? अगर नहीं तो आप अपने ऊपर लगाए गए आरोपों पर क्या सफाई देना चाहेंगे? जज की बात सुनकर पहले तो भारत हक्का बक्का रह जाता है परंतु आखिरकार हिम्मत करके उस जज को जवाब में कहता है, जब साहब मेरी पत्नी यानी ईशा और उसके परिवार के द्वारा मेरे या मेरे परिवार के ऊपर लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से नकार ता हूँ । मेरे या मेरे परिवार के ऊपर लगाए गए सभी आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं । अगर आपकी इजाजत हो तो मैं अपने ऊपर लगाए गए एक एक आरोप की सफाई देना चाहता हूँ । बालों की बात सुनकर सभी हैरान रह जाते हैं क्योंकि किसी ने भी भालू के इस प्रकार जज के सामने बोलने के बारे में कभी सोचा नहीं था । ईशा के पिता और भाइयों की शेखर अंकल दोनों वकील की तरफ देखते हैं । भानु की जज के सामने कहीं बात के जवाब में वकील जज को कहता है जब साहब ईशा और उसके परिवार वाले बहुत ही शरीफ और ईमानदार लोग । सदियों से आ रही परंपरा के तहत ईशा के पिता ने ईशा की शादी के वक्त अपने सामर्थ्य से ज्यादा दहेज देकर अपनी बेटी को विदा किया था । परंतु भानु और उसके परिवार कि लालची नजरें कभी भरने का नाम ही नहीं लेती थी । वो बार बार ईशा के पिता से और दहेज की मांग करते और अपनी मांग पूरी न होने के कारण ईशा के साथ मारपीट भी करते । जज ने भानु की तरफ देखा और बोला इसे अपनी सफाई में कुछ कहना है । इसके जवाब में वाहनों कहता है, जब साहब अगर सदियों से दहेज मांगने की परंपरा चली आ रही है तो सदियों से दहेज मांगने के झूठे इल्जाम में लडके पक्ष के लोगों को फंसाया भी जा रहा है । जिसका जीता जागता उदाहरण मैं खुद जो कि दहेज मांगने के झूठे आरोप का शिकार हूँ । आज आप से न्याय की उम्मीद लेकर आपके सामने खडा हूँ जब साहब मैं ईशा और उसके परिवार के द्वारा लगाएगी सारो को नकारता हूँ मैंने और मेरे परिवार के किसी भी सदस्य ने कभी भी ईशा से कभी भी किसी भी प्रकार के दहेज की मांग नहीं की है । जज कहता है लडकी के पिता ने लिखित रूप में ये बयान दिया है कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी के समय ईशा और तुम्हारे परिवार को कुल मिलाकर चालीस डाले सोना यानी लगभग चार सौ ग्राम सोना गहनों के रूप में दिया था और अगर उनकी बेटी का तलाक होता है तो अपना चालीस तोले सोना वापस चाहते हैं । उनके लगाए इस आरोप पर तुम क्या कहते हो? वानू थोडा सा मुस्कुराता है और जज के सामने हाथ जोडकर कहता है जब साहब हम बहुत शरीफ लोग हैं, हमारी शराफत की लोग अफसर मिसालें देते हैं और शायद ये लोग हमारी इसी शराफत का फायदा उठा रहे हैं । क्योंकि असल बात ये है कि इन लोगों ने चालीस तोला सोना तो क्या कुल चालीस ग्राम सोना भी नहीं डाला । उन्होंने सिर्फ और सिर्फ तीन कपडों में अपनी लडकी को विदा किया था । दहेज के नाम पर हमने इनसे कुछ भी नहीं लिया था । वालों की बात सुनकर एशिया का भाई गुस्से में आ जाता है और जज को कहता है जब साहब ये लडका सरासर झूठ बोल रहा है । हमने अपनी बहन यानि ईशा की शादी में अपनी हैसियत से बढकर दहेज दिया है और भानु शायद ये बात नहीं जानता है कि उसकी शादी में की गई वीडियोग्राफी में उनको दिया गया दहेज का सामान साफ दिखाई दे रहा है जिसको सबूत के तौर पर अदालत में पेश भी किया जा सकता है । ईशा के भाई की बात सुनकर जज बहनों की तरफ देखता है और भानु इसके जवाब में कहता है, जब साहब मेरे प्रिय साला साहब ने अदालत का काम और भी आसान कर दिया है क्योंकि जिस शादी की वीडियोग्राफी में इनके द्वारा हमें दिया गया दहेज का सामान साफ दिखाई दे रहा होगा उसी शादी की वीडियोग्राफी में इनके द्वारा हमें दिया गया चालीस तोला सोना भी साफ दिखाई दिया गया हूँ । भानु की बातें सुनकर ईशा की तरफ से उनके साथ आए लोग हैरान रह जाते हैं । उसके बाद वाहनों जज को कहता है कि जब साहब ईशा के पिताजी ने हमें चालीस तोला सोना देने की बात कही है जो की लिखित रुपये आपके सामने हैं । जिस समय हमारी शादी हुई थी उस समय एक तौला सोने की कीमत लगभग बीस हजार रुपये के आस पास है । उस हिसाब से इनके द्वारा दिए गए चालीस डॉलर सोने की कीमत लगभग अस्सी लाख रुपये के आस पास और ये लोग शादी में दिए गए दहेज और शादी पर किए गए खर्च को तीस पैंतीस लाख के आसपास बताते हैं । यानि की इनका शादी पर किया गया कुल खर्च सवा करोड रुपये के आस पास है जिसकी जानकारी इन लोगों ने लिखित रूप से आपको दे दी है । अब अगर उनसे पूछा जाए कि बार बार ये लोग मध्यमवर्गीय होने का जो ढोल पीट रहे हैं इनके पांच शादी में खर्च करने के लिए सवा करोड रुपया आया कहाँ से और साथ में मैं आपको विनती करता हूँ कि आयकर विभाग को इनसे पूछताछ करने के लिए कहें क्योंकि जो मध्यमवर्गीय लोग शादी में सवा करोड रुपये के आसपास खर्च कर सकते हैं उनके पास और कितना धन कालेधन के रूप में पडा होगा । भानु की बातें सुनकर जज थोडा गुस्से में हइशा के पिता की तरफ देखता है और तभी ईशा के पिता बात को बदलते हुए कहते हैं, जब साहब भानु झूठ बोल रहा है कि रोज रोज शराब पीकर मेरी बेटी से मारपीट करता है । मेरी लडकी के साथ ही बहुत बुरा बर्ताव करता है । मेरी लडकी बहनों के साथ नर्क जैसा जीवन व्यतीत कर रही है । इसके जवाब में वाहनों कहता है, जब साहब मेरी और इनकी बेटी जिसके साथ में रोज मारपीट करता हूँ, हम दोनों की सेहत देखकर क्या आप यकीन कर सकते हैं कि मैं उसके साथ मारपीट भी कर सकता हूँ । चलो मान लिया कि मैं पचास किलो वजन का लडका अपनी किलो वजन की पत्नी को मार रहा हूँ परन्तु क्या ये अपने बचाव में कुछ नहीं कर सकती? जब साहब इस बात को सिरे से लगता है कि मैं इसके साथ किसी भी तरह की कोई मारपीट नहीं करता । उल्टा ये मेरे ऊपर आए दिन हाथ उठाती रही है । जब साहब एक बार की बात है मैं अपनी कपडों की अलमारी में से कुछ ढूंढ रहा था कि तभी मुझे मोबाइल फोन वहाँ पडा मिला । मैं भी उसे देख ही रहा था कि तभी ईशा वहाँ गई और उसने मेरे हाथ में से वो मोबाइल फोन छीन लिया । मुझे ईशा की इस तरह की गतिविधि पर कुछ हुआ और मैंने वो मोबाइल वापस छीन लिया और उसे चलाकर चेक करने लगा । तभी ईशा ने मुझसे वो मोबाइल वापस छीनने के लिए मेरे ऊपर हमला कर दिया और जबरदस्ती छीना झपटी करके वो मोबाइल मुझसे वापस चीन कर नीचे फेंक दिया । तब मैंने गुस्से में आकर ईशा को एक चांटा मारा था क्योंकि उसकी पीठ को जाकर लगा था परन्तु जज साहब इसके जवाब में ईशा ने मेरा हाथ पकड लिया और चेतावनी दी की अगर आइंदा से उसने उस पर हाथ उठाने की कोशिश की तो वह भी कोई कसर नहीं छोडेगी और साथ में कहा कि उसकी माँ ने कभी अपने पति की उस पर एक नहीं चलने दी तो वह भी उसी माँ की बेटी है । वो भी अपने पति की अपने ऊपर एक नहीं चलने देगी । जब साहब ईशा की इस तरह की बात शंकर वो बहुत डर गया था क्योंकि हर आदमी को अपनी जब प्यारी होती है और मैं नहीं चाहता था की बात और ज्यादा आगे बढे जिस वजह से इस बात का जिक्र मैंने किसी से भी नहीं किया था ।

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यह कहानी एक ऐसे पात्र के जीवन पर आधारित है जो हकलाहट की समस्या से पीड़ित है और उसे अपनी इस समस्या की वजह से कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ा | कहानी के अंत में उसने अपनी सभी समस्याओं पर कैसे विजय प्राप्त की यह जानना दिलचस्प होगा | नोट :- यह कहानी लिखने का मुख्य उदेश्य समाज को हकलाहट की समस्या के प्रति जागरूक करना है | Author : Rohit Verma Rimpu Voiceover Artist : Ashutosh
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