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From Weds To Vs Part 6 in  |  Audio book and podcasts

From Weds To Vs Part 6

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यह कहानी एक ऐसे पात्र के जीवन पर आधारित है जो हकलाहट की समस्या से पीड़ित है और उसे अपनी इस समस्या की वजह से कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ा | कहानी के अंत में उसने अपनी सभी समस्याओं पर कैसे विजय प्राप्त की यह जानना दिलचस्प होगा | नोट :- यह कहानी लिखने का मुख्य उदेश्य समाज को हकलाहट की समस्या के प्रति जागरूक करना है | Author : Rohit Verma Rimpu Voiceover Artist : Ashutosh
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बानू उनको सब कुछ बता देता है । भानु के पिता जी ईशा को बहुत समझाते हैं परन्तु वो अपनी बात पर अडी रहती है और जब उन के लाख समझाने पर भी ईशा नहीं मानती तो भानु के पिता भाई को बोलते हैं कि तुम ईशा को उसके मायके में छोडा हो और उनसे जाकर कहूँ कि जब तक आपकी बेटी को बात करने की तमीज और घर बसाने की तहजीब नहीं आ जाती तब तक आप को अपने पास रखो । भानु ईशा को लेकर उसके मायके के घर की तरफ रवाना हो जाता है और वहाँ जाकर भानु ईशा के द्वारा की गई सारी बात बताकर दिशा को वहाँ छोड कर वापस आ जाता है । बालों और भानु के पिता जी ये समझते हैं कि ईशा के माता पिता ईशा को समझा बुझाकर एक दो दिन में वापस छोड जाएंगे परंतु असल में होता बिल्कुल इसके उलट है । ईशा के माता पिता उसे समझाने के बजाय अपने घर में पनाह देते हैं और एक दो हफ्ते बीत जाने पर भी उसे छोडने के लिए नहीं आते हैं । एक दिन भाई के बडे ताऊ जी के घर में उनके बेटे के जन्मदिन का टेंशन होता है । उनके बडे ताऊ जी सबको उस फंक्शन में आने का न्यौता देते हैं जिस कारण भानु को भी पूरे परिवार समेत उनके घर जाना जरूरी होता है । परंतु ईशा अभी भी अपने मायके में ही होती है । उसके माता पिता उसे अभी तक भालू के घर छोडने के लिए नहीं आते । उधर भालू के पिताजी ईशा के बगैर उसके बडे ताऊ जी के बेटे के फंक्शन में जा नहीं सकते क्योंकि उस फंक्शन में वाहनों के पिता जी की तरफ से उनके सभी रिश्तेदार इकट्ठा होने वाले थे और ईशा के वहाँ न जाने पर हर कोई उसी के बारे में पूछेगा तो भालू और उसके पिता जी ईशा के ना आने का क्या कारण बताते हैं । क्योंकि एक तो वो ईशा के रोज रोज बिना किसी कारण लडने के बारे में किसी को बताना नहीं चाहते थे क्योंकि इससे उनकी और उनके परिवार की बनी बनाई की जरूरत मिट्टी में मिल जाते हैं । दूसरी तरफ वो लडके वाले थे और हमारे समाज में लडके वालों की कम और लडकी वालों की सुनवाई ज्यादा होती है । लडकी वाले कोई भी इल्जामात लगाने पूरा समाज लडकी वालों की लगाए शाम को बिना कोई तहकीकात के मान लेगा । ये सब कुछ सोचकर बालों के पिताजी ईशा को खुद जाकर लेकर आने का फैसला करते हैं । उनके साथ में भानु और उसका छोटा भाई भी ईशा को लेने जाता है । ईशा के घर पहुंचकर बहनों के पिताजी पहले तो ईशा के पिता को सारी बात बताते हैं कि कैसे ईशा की मामी के आने से ये सब झगडा शुरू हुआ था और बाद में उनसे माफी मानते हैं । बालों के पिताजी भाई को भी उन सब से माफी मांगने के लिए बोलते हैं । बालों उन सब से माफी मांगता है । ईशा बहनों की तरफ देखकर ऐसे मुस्कुराती है जैसे कोई राजा आपने तख्तोताज दोबारा मिलने पर अपने दुश्मन राजा की तरफ देख कर मुस्कुरा आता है । खैर भानु ईशा को लेकर घर वापस आ जाता है । वापस आते ही ईशा के स्वभाव में और तब भी लिया जाती है वो पहले से ज्यादा अहंकारी, घमंडी और झगडालू हो जाती है । अब तो वो बात बात पर भानु से लडना झगडना शुरू हो जाती है । इस रोज रोज की लडाई झगडे के कारण भानु को शराब पीने की आदत हो जाती है क्योंकि शादी के बाद तो उसको कभी खुशी नहीं मिलती जिस कारण वो सच्ची खुशी शराब के नशे में से घूमने लगता है । परन्तु भानु की शराब पीने की एक खासियत जरूर होती है । वो अपने पिताजी के अलावा किसी और के साथ बैठकर शराब का सेवन नहीं करता था और वह कभी भी घर से बाहर शराब का सेवन नहीं करता था । बेशक शराब शरीर के लिए नुकसानदेह होती है परन्तु वालों के लिए ये फायदेमंद रहे क्योंकि पहले जब भी ईशा वालों के साथ झगडा करती थी तो भानु सबकुछ पहले था और ज्यादातर चुकी रहता हूँ । परन्तु अब जब भी भानु शराब के नशे में अपने कमरे में दाखिल होता और ईशा उससे लडना झगडना शुरू करती तो भानु भी पहले की तरह चुप नहीं रहे हैं । वो इस झगडे और बहस बाजी का डटकर मुकाबला करता और एशिया के हर झगडालू सवालों का जवाब बडी हिम्मत और दिलेरी के साथ देता है और दूसरी तरफ वो इसी शराब के नशे में बिना किसी टेंशन के सो जाता हूँ । एक बार की बात है भालू रात को दुकान से आकर अपने पिताजी के साथ बैठकर शराब का सेवन कर रहा था कि ईशा उसे शराब पीने से रोकने लगी परंतु बाहर नहीं माना । ईशा गुस्से में बिना कुछ खाए पीए अपने कमरे में सोने चली गई । भानु है उस की ज्यादा परवाह नहीं करता हूँ । कुछ देर बाद वो आराम से अपना खाना पीना खाकर सोने चला गया । कमरे में अंधेरा होने के कारण और भालू कान नशे में होने के कारण उसका पांव काफी जोर से ईशा के पलंग में जाकर लगता है । कानून नीचे जमीन पर गिर जाता है । ईशा उठती है और उप से सारे ही भानु को उल्टा सीधा बोलने लग जाती है । वो कहती है कि तो मैं दिखता नहीं ये क्या कर रहे हो । ये पलंग मेरे पिताजी ने मुझे दहेज में दिया है तो उसे ठोकर मार रहे हो । तुम्हारी औकात ही क्या है मेरे सामने । इतना सुनकर भाई को भी गुस्सा आ जाता है और उससे लडाई झगडा करने लगता है । ये लडाई झगडा धीरे धीरे मारपीट का रूप धारण कर लेता है । भाई के मारपीट के जवाब में ईशा भी उसका जवाब मारपीट से ही देखिए । बहनों का ये रूप देखकर और अपनी पेश न चलती देखकर ईशा जोर जोर से रोने लगती है । बालों का शराब का नशा अब उतर चुका होता है और उसे अपनी गलती का एहसास होने लगता है और वो उसे मनाने लगता है । ये रूठने मनाने का चक्कर तकरीबन आधी रात तक चलता रहता है । अब सवाल यह उठता है कि इस लडाई झगडे का कारण क्या था । हो सकता है भानु भी शराब पीने की वजह से कहीं कहीं गलत हो परन्तु ईशा की अपने पिता द्वारा दिए गए दहेज और भानु को कहीं औकात वाली बात भी गलत बानू का बाद में एशिया से माफी मांगना अगर गलत नहीं था तो ईशा का भी भानु की शराब पीने की वजह से झूठ जाना बिलकुल सही परंतु आखिरकार इस रोज रोज होने वाले लडाई झगडे का कारण क्या था? भाई को अगर इस बात का पता चल जाता है तो उसका सारा मसला ही हाल हो जाता है । भानु अपना सारा कामकाज छोडकर अपनी रोज रोज की होने वाली लडाई झगडे का कारण और इस लडाई झगडे को रोकने के उपाय के बारे में सोचने लग गया । वो एक जासूस की तरह सोचने लग पडा और इस रोज रोज की होने वाले लडाई झगडे का कारण उसे अपने मोबाइल फोन से मिला । ईशा रोज घंटों बैठ कर भानु का मोबाइल फोन इस्तेमाल करती थी और इस दौरान और इस दौरान वो लगातार अपने कुछ रिश्तेदार और खासकर अपनी मौसी और माँ के संपर्क में रहती थी । उनसे घंटों बैठ कर बातें करती है परंतु क्या बातें करती थी । इस बारे में भानु को कुछ भी पता नहीं था । इस बात का पता लगाने के लिए उसने अपने मोबाइल फोन में कॉल रिकॉर्डिंग नाम का सौंपते डाल दिया । इसका फायदा ये हुआ कि जब भी ईशा भाइयों के मोबाइल से किसी से फोन पर बात करती तो ये कॉल रिकॉर्डिंग नाम का सॉफ्टवेयर उसकी सारी बातें रिकॉर्ड करके अपने आप ही मोबाइल में सुरक्षित रख लेता हूँ । ईशा को इस बात की भनक तक नहीं लगती थी कि उस की सारी बातें गानों के मोबाइल में रिकॉर्ड हो रही है । वो बिंदास होकर पहले की तरह ही अपने मायके में सबसे बात करते हैं । उधर भानु अपने मोबाइल फोन में कॉल रिकॉर्डिंग सॉफ्टवेयर की मदद से ईशा की सब बातें सुन लेता था । जिस वजह से धीरे धीरे उसके सामने सारी तस्वीर साफ होने लगी । उसे अपने इस रोज रोज की लडाई झगडे का कारण मिल गया । उसके इस रोज रोज की लडाई झगडे का कारण उसकी सास और उसकी मौसी यानी कि ईशा की माँ और उसकी एक मौसी थी । बहनों के घर में जब भी ऊंचनीच जैसी कोई बात होती तो ईशा भाइयों के मोबाइल फोन से अपनी माँ या फिर मौसी को बता देते हैं । वो दोनों ईशा को समझाने की बजाय उसे गलत ही सलाह देते हैं । उनकी बातें भानु और ईशा के इस रोज रोज की लडाई झगडे में आग में घी का काम करते हैं । भानु कभी सपने में भी सोच नहीं सकता था कि उनके घर में चल रही लडाई का कारण उसकी सास और मौसी आखिरकार एक दिन भानु का कॉल रिकॉर्डिंग वाला खेल खत्म हो गया । हुआ कुछ यूं कि भानु के ससुराल वालों को ये पता नहीं चल रहा था कि ईशा की उनसे फोन पर की गई बातें भानु को कैसे पता चल जाती है । वो सर किस बात को लेकर परेशान रहते थे । एक दिन वो अपनी ससुराल गया हुआ था कि भाई के साले और उसके एक दोस्त ने उससे उसका मोबाइल फोन मांगा । बालों के साले के दोस्त ने उसके मोबाइल से कॉल रिकॉर्डिंग वाला सॉफ्ट ढूंढ लिया और उन सब के सामने ईशा द्वारा की गई बातों की रिकॉर्डिंग को चलाकर सबको सुना दिया । भानु शर्म और डर की मिली जुली प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा था । किसी न किसी तरह वो बहाने बनाकर उसने उस परिस्थिति को संभाला । उस दिन के बाद ईसा नहीं बहनों के मोबाइल फोन से फोन करना बंद कर दिया और भाइयों से अपने लिए एक अलग फोन रखने की मांग करने लगे हैं । भालू एक बात जानता था कि अगर उसने ईशा को अलग से फोन लाकर दे दिया तो उसकी और उसके मायके वालों की आपस में सीधी बात होने लगेगी । जिसका सीधा मतलब था कि ईशा भानु को अपनी माँ और मौसी के कहने पर कठपुतली की तरह नाचना जाएगी । मालूम ये सब नहीं होने देना चाहता था जिस वजह से वो ईशा की फोन की मांग को बार बार ठुकरा रहा था । परन्तु ईशा के मायके वाले भी किसी से कम नहीं थी । वो ईशा को उसके जन्मदिन वो ईशा को उसके जन्मदिन पर एक नया मोबाइल फोन तो फिर के रूप में देंगे । वो पहले ही ईशा के मायके से आए दहेज के पलंग पर शराब के नशे में गलती से लगी ठोकर का खामियाजा पहले ही भूल चुका था । अब बहनों की क्या मजाल थी कि वो मायके से आए हुए तो फेको पीछा को रखने से इंकार करते । यही मायके के मोबाइल फोन नहीं बानू और ईशा के रिश्ते के बीच की दीवार के लिए ईंटों का काम किया । बहनों की शादी को छह सात महीनों का समय बीत चुका था । इस समय वो कई बार भानु से लड झगड कर मायके जा चुकी थी । उसके मायके वालों ने ईशा को कभी भी समझाने की कोशिश भी नहीं की । उल्टा हर बात पर उसी का साथ दिया । इसी दौरान एक बार ईशा गर्भवती होगी । वाहनों और उसके परिवार में तो जैसे खुशी की लहर सी दौड में एक दिन भानु नहीं ईशा को अपने पास बुलाया और कहा कि देखो ऐसा अब तो माँ बनने वाली है हमारा अपना परिवार । अब शुरू होने वाला अब पिछले जीवन में जो भी हो चुका है उसे भूल जाओ । समझो कि आज से ही हमारा नया जीवन शुरू हो रहा है । मैं पिता बनने वाला हूँ और एक पिता अपने बच्चे के लिए कई जिम्मेदारियां होती है । उन जिम्मेदारियों को निभाने के लिए मुझे तुम्हारी जरूरत है । इसके साथ साथ मेरे जीवन में आगे बडने के लिए कई सपने हैं । मैं एक गुमनामी की जिंदगी नहीं जीना चाहता हूँ । नहीं इस दुनिया की भीड में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता हूँ । परन्तु ये तभी संभव है जब तुम मेरा साथ होगी । अब बताओ तुम्हारा क्या? जवाब वालों की बातें सुनकर ईशा की आंखों में पानी आ जाता है । वो उसकी बातें मान जाती है । और जीवन को हसी खुशी बिना किसी टेंशन के गुजारने का वादा करती है । वो कहती है, आप मेरी तरफ से चिंता मुक्त हो । आप अपना काम मन लगाकर करो । भविष्य में आपको कभी भी मेरी तरफ से कोई भी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा । ईशा की बातें सुनकर भानु को लगा कि शायद अब उस की आगे की जिंदगी आराम से कटेंगे परन्तु से ये नहीं पता था कि मायके का मोबाइल फोन उसके साथ ऐसा होने नहीं देगा । एशिया गर्भवती थी और इस बात की पुष्टि हो चुकी है । उसे अपने साथ साथ अपने पेट में पल रही नन्ही सी जान का ध्यान रखा था परन्तु न जाने मायके की फोन ने ऐसा क्या कहा कि वह फिर से बगावत करने पर उतारू होगी । ईशा गर्भवती थी और इस बात की पुष्टि हो चुकी थी । उसे अब अपने साथ साथ अपने पेट में पल रही नन्ही सी जान का भी ध्यान रखना था । परंतु न जाने मायके की फोन ने ऐसा क्या कहा कि वह फिर से बगावत करने पर उतारू हो गई । भानु की माँ और डॉक्टर ने जिस गर्भावस्था के दौरान जिस काम के लिए मना किया था, ईशा जानबूझ कर वही काम करने लगे और नतीजा ये हुआ कि उसकी डेढ महीने में ही है । उसका गर्भकाल का समय समाप्त हो गया । यानी ईशा का गर्भपात हो गया । भाई की तो मानो जैसे दुनिया ही लूट गई । उसका मानना ही नहीं । उसे पक्का यकीन था कि इसके पीछे मायके के फोन का हाथ । भानु को पक्का विश्वास हो गया था कि उसके जीवन में सुख नाम की कोई चीज नहीं है । वो ज्यादातर निराश और चुप रहने लगा । वो किसी से भी ज्यादा बातचीत नहीं करता था । ज्यादा टेंशन और डिप्रेशन में रहने के कारण उसकी हकलाहट की समस्या फिर से उभरकर सामने आ गई । अब वह कभी कभी बात करते समय हकलाने भी लग पडा था । उन्होंने कभी भी ईशा और उसके घरवालों को अपनी इस समस्या की भनक नहीं लगने दी थी । इससे पहले की ईशा को पता चलता वालों को अपनी दोबारा पैदा हुई समस्या को काबू में करना था । अगर ईशा को भानु की समस्या के बारे में पता चल जाता तो वो सारी उम्र उसकी हकलाहट का मजाक बना लेते हैं । उधर बहनों इस समस्या का कारण समझने में देर नहीं लगी । हकलाहट एक ऐसी समस्या है जो सारी उम्र व्यक्ति के साथ ही रहती है । ये नियमित व्यायाम से काबू में तो आ जाती है परंतु व्यक्ति के ज्यादा टेंशन और डिप्रेशन में रहने से ये फिर से उभरकर सामने आ जाती है । इसके समाधान के लिए वाहनों को ना चाहते हुए भी खुश और टेंशन फ्री रहना था । ये काम उसके लिए मुश्किल था क्योंकि एक शादीशुदा व्यक्ति के लिए टेंशन फ्री रहना उतना ही मुश्किल है जितना कि साहब कों से भरे कमरे में । उनके साथ अंधेरे में रात गुजारनी । वो अब ईशा की ज्यादा परवाह नहीं करता था और लडाई झगडे की अवस्था में वो उसका डटकर मुकाबला करता है । टेंशन फ्री और डिप्रेशन से दूर रहने के लिए वो शराब का सहारा लेने लगा । ईशा उसे अक्सर शराब पीने से रोकती थी परंतु वो उसे हर बार कहता हूँ कि वो ये रोज रोज का लडाई झगडा करना बंद कर दे तो शराब पीना बंद कर देगा । ये नहीं कि ईशा के गर्भपात होने का दुख उसे नहीं था । उसे अपनी गलतियों का एहसास था और वो अपनी गलतियों को सुधारना चाहती थी । उसने भानु और उसके परिवार से अपनी पिछली गलतियों की माफी मांगी और आइंदा से ऐसा न करने का भरोसा दिलाया । परन्तु जैसे कुछ बातें इंसान के अपने बस में नहीं होती है । ठीक उसी तरह औलाद का होना या न होना भी इंसान के अपनी बस में नहीं होता । ईशा और भाई की शादी को हुए एक साल के लगभग का समय हो गया परंतु अभी तक उन्हें औलाद का सुख प्राप्त नहीं हो रहा था । उन दोनों ने औलाद पाने के लिए कई जगह से इलाज करवाया परंतु सब व्यर्थ साबित हुआ । उन्होंने डॉक्टरी इलाज से लेकर बाबाओं और कई पंडितों से अपना इलाज करवाया हूँ । परन्तु औलाद का सुख होना या न होना तो इंसान के हाथ में नहीं कुदरत के हाथ में होता है । एक बार उन्हें उनके किसी रिश्तेदार ने बाबा बृहदेश्वर लाल के बारे में बताया । उस बाबा रोते ईश्वरलाल के बारे में मशहूर था कि उनके पास माथा टेकने वाले दंपत्ति को औलाद का सुख जरूर प्राप्त होता है और खास बात ये है की औलाद के रूप में लडका ही होता है । बालों को पहले ही इन सब में विश्वास नहीं होता है । वो बचपन से तर्कशील नाम की एक संस्था का सदस्य होता है । यह संस्था भूत प्रेत जादू होने में विश्वास नहीं करती । यह व्यक्ति पूजा यानी किसी बाबा को भगवान के समान मानकर उसकी पूजा करने में विश्वास नहीं करती और लोगों को इन सब पाखंडियों से बचने के लिए अपनी किताबों और नुक्कड नाटकों द्वारा समझाती रहती है । भाई का भी इस तर्कशील नाम की संस्था के विचारों में गहरा विश्वास जिस वजह से वो अपने परिवार में उस बाबा रोते ईश्वरलाल के पास माथा टेकने से ही औलाद का सुख प्राप्त होने वाली बात को सिरे से खारिज कर देता है । यानी कि वो उस बाबा के पास जाने के लिए मना कर देता है । परंतु कहते हैं कि औरत और भगवान की मर्जी के आगे आदमी और शैतान की एक नहीं चलते । आखिरकार भानु को उसकी माँ और ईशा के कहने पर उस बाबा के पास माथा टेक नहीं जाना पडता है । वहाँ उस बाबा के बनाए मंदिरनुमा जगह का नजारा देखकर बहुत हैरान होता है । वहाँ उस बाबा के भक्त हजारों की संख्या में माथा टेकने आए हुए थे जिनमें से ज्यादातर ओलाद की कामना लेकर आए हुए थे । कुछ लोग वहाँ ढोल बाजे के साथ माथा टेकने आ रहे थे । धानों के इस बारे में पूछने पर उसकी माँ ने बताया कि इन लोगों ने यहाँ इस बाबा के पास माथा टेका और मनोकामना की कि अगर उन्हें औलाद का सुख मिला तो उनके पास ढोल बाजे के साथ माथा टेकने आएंगे । भानु अपनी माँ की बात सुनकर बहुत हैरान हुआ और उसने कहा माँ यहाँ पर तो उस बाबा के भक्त हजारों की संख्या में आते हैं और उन हजारों की संख्या में से कुछ सौ पचास को अगर हालात का सुख मिल जाता है तो वह ढोल बाजे के साथ माथा टेकने आते हैं और जिन बाकी भक्तों को उसके पास माथा टेकने से औलाद का सुख नहीं प्राप्त होता वो क्या बाबा को दोबारा ये पूछने आते हैं कि बाबा हमने तो आपके पास आकर माथा भी टेका है । हमें औलाद का सुख क्यों नहीं हुआ? धानों की बात के जवाब में उसकी माँ कहती है बेटा जिनके कर्मों में औलाद का होना लिखा होता है, उन्हीं को ही औलाद का सुख प्राप्त होता है । बिना कर्मों के किसी को भी कुछ नहीं मिलता । उनके जवाब में भानु कहता है कि वहाँ अगर औलाद का होना या न होना मेरे कर्मों के ऊपर निर्भर है तो छोडो इस बाबा का चक्कर और चलो अपने घर चलते हैं । अगर हमारे कर्मों में औलाद का सुख होगा तो वो हमें जरूर प्राप्त होगा । बहनों की बात का उसकी माँ के पास कोई जवाब नहीं था । परंतु उस बाबा में अंधश्रद्धा के कारण भानु और उसकी पत्नी ईशा को वहाँ उस बाबा के पास माथा टेकना पडा । उधर भानुं औलाद की प्राप्ति के लिए अपने किसी जान पहचान के डॉक्टर से संपर्क करता है । उस डॉक्टर के तीन चार महीने की कोर्स के बाद ईशा फिर से गर्भवती हो जाती । भानु उसे प्यार से और डाटकर दोनों तरीकों से समझाता है कि अगर इस बार तुमने मायके के मोबाइल की बात मानकर कुछ भी उल्टा सीधा कदम उठाया तो उससे बुरा कोई नहीं होगा । ईशा दूसरी बार गर्भवती हुई थी । कानून किसी खुशी और चिंता के दौर से गुजर रहा था । वो ईशा की हर जायज और नाजायज मांग को किसी ना किसी तरह पूरा कर रहा था ताकि वह कोई समस्या ना खडी कर देते हैं क्योंकि उसे और उसके परिवार वालों को लगता था ईशा को एक बच्चा होने के बाद उसकी नादानियां और बार बार होने वाला लडाई झगडा कम हो जाएगा क्योंकि उसका सारा ध्यान बच्चे के लालन पालन की ओर लग जाएगा और ईशा को भाइयों के साथ लडने झगडने की ओर ध्यान नहीं रहेगा । परंतु बहनों की समझाई हुई इस बात का असर ईशा पर कब तक होता है । आखिरकार एक दिन मायके की उस फोन ने अपना कारनामा कर दिया । एक दिन ईशा मौसी के मायके में आई हुई थी । मौसी ने ईशा को मायके के फोन पर फोन करके ईशा को उससे मिलने के लिए कहा । ईसा ने तुरंत इसके बारे में भाई को कहा, परंतु भानु ने ईशा को मायके जाकर मौसी को मिलने से मना कर दिया । भालू का ईशा को मायके जाने से रोकने की दो वजह थी । एक तो डॉक्टर ने ईशा को सफर करने से मना किया हुआ था और दूसरा ईशा की मौसी वहाँ उसके मायके में आई हुई थी और उसे उसकी मौसी से मिलने नहीं देना चाहता था । क्योंकि भाई को शक ही नहीं पक्का यकीन था कि जब भी उसकी मुलाकात उसकी मौसी से होती है तभी वाहनों के घर में कोई न कोई कलह कलेश होता था । परंतु ईशा नहीं मानी और अपने मायके जाने की जिद करने लगी । ईशा की जिद के आगे वालों की एक न चली और भालू के पिता के कहने पर उन्हें मायके जाना पडा । भालू ईशा को धीरे धीरे स्कूटर चलाकर मायके ले गया क्योंकि बस या किसी और जरिए से जाने से डॉक्टर ने मना किया था और अगले दिन मौसी और बाकी सबसे मिलकर वो दोनों वापस आ गए और घर वापस आते ही जिस बात का भाई को डर था ईशा वहीं बात कर मिलेंगे । ईशा वाहनों से एक नए मुद्दे को लेकर जगह नहीं लेंगे । वो भाई को घर से अलग होने के लिए कहने लगी । इतना सुनकर भानु से भी रहा ना गया वो ईशा को बुरा भला कहने लगा बात तू तू मैं मैं ऐसे लडाई झगडे की ओर बढने लगी । उनके झगडे को खत्म करने के लिए वाहनों के पिता नहीं ईशा को बहुत समझाया परंतु ईशा अपने घर से अलग होने की जिद पर अडी रही । भानु ईशा की मौसी को इस लडाई झगडे का मुख्य वजह मानता था जिस वजह से वो उसे गालियां देने लगा । दोनों का लडाई झगडा बढता हुआ देख भाल के पिता ने दोनों को शांत कराया और दोनों का घर से अलग हो जाने का फैसला कर दिया । और बात यह तय हुई की जब तक उन का अलग से घर नहीं बन जाता तब तक वो दोनों अपने कमरे में ही अलग से रसोई बनाकर रहेंगे और अपना खाना अलग से बनाएंगे । यानी कि भाई के एक ही घर में दो दो रसोई घर हो जाने । परन्तु इस फैसले के अलावा और कोई चारा भी नहीं था और आखिरकार ईशा मान गई और अपने ही कमरे में अपनी एक अलग रसोई करने की तैयारियाँ करने लग गई । भानु मुझे हुए मन से किसी न किसी तरह यहाँ वहाँ से पैसे जुटाकर अपने अलग रसोई घर के लिए सामान इकट्ठा शुरू करने लगा । इसके लिए भानु को अपना नया नया खरीदा हुआ लेपटॉप भी काफी कम कीमत पर बेचना पडा और कुछ ही दिनों में भानु और ईशा की रसोई उनके कमरे में सेट हो । एक दिन उनसे मिलने और उनकी नई रसोई को देखने एशिया का पूरा परिवार वालों के घर में आया । वालों को इस बात का पता तब लगा जब वह रात को दुकान से घर आया था । वहाँ उन्होंने सोचा कि शायद अगर वह ईशा के पिता से इस बारे में बात करें तो शायद वो उसे कुछ समझाएँ और अपनी इस अलग सी बनाई रसोई की जिद को खत्म कर देंगे । परन्तु इससे पहले की वो अपने पिता को कुछ कहता । ईशा का पिता उसकी इस नई रसोई की तारीफ करने लगा और इस सबके लिए भानु को शाबाशी देते हुए कहने लगा, बेटा जी, बाकी तो सब कुछ ठीक है परंतु यहाँ खाना बनाते समय जो धुआ उठता है ये कुछ ठीक नहीं लग रहा है । तुमने अपने कमरे में रसोई तैयार की वो तो ठीक है परंतु अगर ये तुम्हारे कमरे की जगह कहीं अलग बनी होती तो ठीक रहेगा । भाई को उनकी बात सुनकर बहुत गुस्सा आता है परन्तु वो कुछ भी नहीं कर सकता था । वो ईशा के पिता उन्हें समझाने के लिहाज से कहता है पापा जी बुजुर्ग लोग कहते हैं कि घर में बाथरूम चाहे जितने मर्जी हूँ परन्तु रसोई घर एक ही होना चाहिए । आप हमारी इस अलग रसोई की तारीफ करने के बजाय अपनी बेटी को ऐसा न करने के लिए समझाएँ । ईशा के पिता भाई की बात सुनकर कुछ नहीं बोले और शायद उनकी यही गलती अगर वे चाहते तो परिवार के मुख्य सदस्य होने के नाते वो ईशा को समझा सकते थे । परंतु उनका चुप रहना और ईशा को समझाने के बजाय उसकी हर बात का समर्थन करना उनकी कायरता या भाई के विरुद्ध चल रही है । एक बहुत बडी साजिश की निशानी हो सकती है या फिर ये हो सकता था कि उनकी, उनके परिवार और खासकर के ईशा की माँ के आगे कोई पेस्ट बना चलती है । खैर बात जो भी हो । इसमें घर तो उनकी बेटी ईशा का ही तोड रहा था । दरअसल बात ये होती है कि लोग अपनी बेटियों कि शादी कर की चिंता मुक्त हो जाते हैं और उन्हें अपने ससुराल पक्ष के माहौल में खुद ढालने के लिए बेटी को सदा प्रेरित करते हैं और अपनी बेटी को ससुराल पक्ष के सभी सदस्यों की सदैव इज्जत करने की शिक्षा देते हैं । अपने पति को परमेश्वर मानकर उसकी हर जाए इस बात को मानने के लिए कहते हैं और अपनी बेटी को ये समझाते हैं कि वह ससुराल पक्ष के सभी सदस्यों को एकजुट करने में अपना अहम योगदान डाले । परन्तु इसके विपरीत कुछ लोग अपनी बेटियों को गलत शिक्षा देकर मायके से ससुराल विदा कर वो अपनी बेटी को ससुराल के सभी सदस्यों को एकजुट रखने के बजाय अपने पति को लेकर सभी सदस्यों से अलग करने की गलत शिक्षा देते हैं । उनका अपनी लडकी के ससुराल में अपनी लडकी के माध्यम से पूरा कंट्रोल होता है । अपने दामाद को तो वो अपने घर से ही अपनी लडकी की सहायता से कठपुतली की तरह ना चाहते हैं । इस तरह के लोगों का मानना शायद ये होता है कि वो अपनी लडकी और दामाद को उसके परिवार के सदस्यों से अलग करके अपनी बेटी का घर बसा रहे हैं । बाहर के केस में भी कुछ ऐसा ही होता है । शादी से पहले तो ईशा भाइयों से मीठी मीठी बातें करते हैं । वो उसको अपना इस प्रकार के चाल चलन की भनक तक नहीं लगने दी थी । या शायद इसका कारण ये भी हो सकता था कि वह अपने मायके वालों कि इशारों पर भाई को कठपुतली की तरह न जा रही हूँ । क्योंकि वैसे तो ईशा का व्यवहार बनी और उसके परिवार के बाकी सदस्यों के साथ बिल्कुल ठीक रहता था । परंतु जब कभी ईशा मायके से होकर आती थी या उसके मायके से कोई फोन आ जाता है तभी से ही उसके व्यवहार में अचानक से तब भी लिया जाता यानी की उसके बाद से ही ईशा किसी न किसी बहाने वहाँ से लडने जगह नहीं लगता । ये कुछ बातें इस बात की पुष्टि करती थी कि भाई के घर ईशा की वजह से होने वाली लडाई का कारण दिशा के मायके पक्ष के कुछ लोग खासकर ईशा के मायके की तरफ से उसकी औरत सदस्य क्योंकि जब भी एशिया का संपर्क उसकी माँ या मौसी से होता तभी ईशा भानु से किसी न किसी बात पर झगडा करने बैठ जाती हूँ हूँ ।

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यह कहानी एक ऐसे पात्र के जीवन पर आधारित है जो हकलाहट की समस्या से पीड़ित है और उसे अपनी इस समस्या की वजह से कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ा | कहानी के अंत में उसने अपनी सभी समस्याओं पर कैसे विजय प्राप्त की यह जानना दिलचस्प होगा | नोट :- यह कहानी लिखने का मुख्य उदेश्य समाज को हकलाहट की समस्या के प्रति जागरूक करना है | Author : Rohit Verma Rimpu Voiceover Artist : Ashutosh
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