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From Weds To Vs Part 5 in  |  Audio book and podcasts

From Weds To Vs Part 5

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यह कहानी एक ऐसे पात्र के जीवन पर आधारित है जो हकलाहट की समस्या से पीड़ित है और उसे अपनी इस समस्या की वजह से कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ा | कहानी के अंत में उसने अपनी सभी समस्याओं पर कैसे विजय प्राप्त की यह जानना दिलचस्प होगा | नोट :- यह कहानी लिखने का मुख्य उदेश्य समाज को हकलाहट की समस्या के प्रति जागरूक करना है | Author : Rohit Verma Rimpu Voiceover Artist : Ashutosh
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उधर लडकी वालों ने अपने किसी परिचित के घर में भानु और उसके घरवालों के ठहरने का प्रबंध किया हुआ था । भानु अपने परिवार समेत उनके घर में पहुंच गया । ईशा के माता पिता ने उन सबका स्वागत किया और उन्हें घर के अंदर आने को कहा । एशिया के माता पिता ने उन के बैठने का इंतजाम अपने परिचित के घर में खुले बरामदे में किया था । थोडी देर बैठने और बातें करने के बाद ईशा को बुलाया जाता है । भाई की माने ईशा को पहले से ही देखकर पसंद किया हुआ था । थोडी देर इधर उधर की बातें करने के बाद धानों के भाई ईशा के साथ भानु की अपने अपने मोबाइल से तस्वीरें खींचनी शुरू कर देते हैं । थोडी देर बैठने के बाद भानु अपने परिवार समेत वापिस घर की ओर चल पडता है । रास्ते में वो अपनी माँ से नाराज होता है कि जब उसने उनसे ये कहा था कि वह ईशा के साथ अकेले में कुछ बातें करना चाहता है तो उन्होंने ऐसा क्यों नहीं करने दिया । परन्तु माँ ने कुछ नहीं कहा हूँ । इस बात को लेकर भानु पूरे रास्ते में अपनी माँ से झगडता रहा हूँ । घर आकर भानु की माँ उसके पिता से सारी बात बता देती है । उसके पिताजी भाइयों से इस झगडे का कारण पूछते हैं तो उनसे कहता है कि जब उसने उनसे ये कहा था कि वह ईशा के साथ अकेले में कुछ बातें करना चाहता है तो उन्होंने ऐसा क्यों नहीं करने दिया । भानु के पिताजी से समझाते हुए कहते हैं कि तुम्हें अपनी कमजोरियों को यूँ ही किसी के सामने उजागर नहीं करना चाहिए वरना लोग तुम्हारी इन्हीं कमियों को लेकर तुम्हारा फायदा उठाएंगे और साथ में तुम्हारी हकलाहट की समस्या में तो काफी सुधार आ गया है और रही कम पढे लिखे होने की तो ये बात हमने पहले से ही लडकी वालों को बता दी है । उन्हें कोई ऐतराज नहीं । बालों के पिता ने ये बात उसके बुआ के लडके को बताइए । उसकी बुआ के लडके का नाम चेतन था । उसकी बुआ उनके परिवार के नजदीकी रिश्तेदारों में से एक थी । चेतन जोकि भानु की बुआ का लडका था । वो बहनों के परिवार के ज्यादा नजदीक था । चेतन की शादी को कुछ ही महीने हुए थे । चेतन की पत्नी ईशा के परिवार वालों को भली बाकी जानती है क्योंकि वो दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे । चेतन ने ये बात अपनी पत्नी को बताई और शाम को वो दोनों बहनों के घर आ गए । कानूने चेतन की पत्नी यानि अपनी भावी से ईशा और उसके परिवार के बारे में पूछा । उसकी भावी नहीं ईशा के बारे में कुछ भी बुरा नहीं कहा । उसने उनके परिवार के बारे में अच्छा अच्छा ही कहा और ईशा से उसकी फोन पर ओडिशा से उसकी फोन पर बात करवाने का प्रस्ताव भी रखा है । पहले तो भानु नहीं ईशा के साथ फोन पर बात करने से इंकार कर देता है परन्तु भावी के ज्यादा जोर भरने पर वो ईशा के साथ बात करने के लिए राजी हो जाता है । भानु ईशा से बात करने से पहले बहुत घबरा जाता है क्योंकि उसे डर होता है कि अगर कहीं वो बात करते समय रुक गया या हकलाने लग गया तो कहीं कोई समस्या खडी ना हो जाए । परंतु वो पूरे आत्मविश्वास के साथ ईशा से बात करता है । वो बहुत ही धीरे धीरे आराम से बात करता है जिस कारण उसे हकलाहट की समस्या ना के बराबर होती है परन्तु वो ईशा की बातों से कुछ टेंशन में आ जाता है क्योंकि जिस तरह भानु ईशा से पहली बार बातचीत पर घबरा जाता है । इसके उलट ईशा भाइयों से पहली बार बात करते समय बिल्कुल भी नहीं करती हूँ । वो भालू द्वारा किए हल्के फुल्के मजाक का जवाब बडे आराम से दे देते हैं । वानू ज्यादा टेंशन में रहने लगता है क्योंकि अपनी बातचीत के दौरान ईशा उसे कुछ ज्यादा ही तेज और चालाक लगती है । उसकी माँ बहनों की इस टेंशन को भाव लेती है और उससे इसका कारण पूछती है । वाहनों अपनी माँ को सब कुछ बता देता है । उसकी माँ जोर जोर से हंसने लगती है और उसे समझाती है कि एशियाई कॉलेज में जाने वाली आजकल की पढी लिखी लडकी है और इसमें ज्यादा चिंता करने वाली कोई बात नहीं क्योंकि कॉलेज जाने वाली आज कल की लडकियां ऐसी ही होती है । अपनी माँ के समझाने के बाद वो कुछ नहीं बोलता हूँ । उधर ईशा के माता पिता एशिया की शादी जल्दी कर देना चाहते हैं । इसी सिलसिले में वे बालों के घर आते हैं और भानु और शिखा की शादी की बात को आगे बढाते हैं । काफी सोच विचार और दोनों परिवारों के बडे बुजुर्गों की देख रेख में ये तय होता है कि आज से तीन दिन के बाद दोनों की सगाई और दो महीने के बाद दोनों की शादी कर दी जाएगी । भानु इस फैसले से खुश भी था और थोडा घबरा भी रहा था । शायद इसलिए क्योंकि ये सब उसके साथ बहुत जल्दी हो रहा था । वो अभी शादी नहीं करना चाहता था क्योंकि वो चाहता था कि उसकी अभी अभी हकलाहट की समस्या कुछ कुछ ठीक हुई है और वही समाज में बिना डिग्री और वही समाज में बिना किसी डर के जीवन व्यतीत कर सकता है और वह यह चाहता था कि अब अपने शरीर पर ध्यान दें जिसके लिए वो जिम में दाखिला लेना चाहता था । शादी के बाद ये संभव नहीं था हूँ । कहते हैं कि होनी को कौन टाल सकता है । खैर उसकी सगाई का दिन नजदीक आ गया । सगाई वाले दिन भानु अपने नजदीकी रिश्तेदारों के साथ ईशा के शहर पहुंच गया और आखिरकार उन दोनों की सगाई हंसी खुशी संपन्न हो जाती है । सगाई के फौरन बाद दोनों को खाने के लिए एक अलग से मेज पर बिठा दिया जाता है । धांदूका ईशा से अकेले में बात करने का ये दूसरा मौका था परन्तु सगाई में शामिल सभी मेहमानों का ध्यान उन्ही दोनों पर टिका था । उन्होंने ईशा को किसी दूसरी जगह ले जाने की कोशिश भी की परन्तु सभी मेहमान वहाँ पर भी दोनों की तरफ देख रहे थे जिससे वो दोनों बात करते समय काफी शर्म और झिझक महसूस कर रहे थे । अंत में वो दोनों बिना ज्यादा बातचीत किए अपने अपने घर वापस आ गए । घर पहुंचने के अगले ही दिन वाहनों अपना महंगा मोबाइल फोन बेचकर उसके बदले दो नए एक जैसे मोबाइल फोन खरीदें और उनमें से एक फोन अपने छोटे भाई के जरिए दिशा को पहुंचाया । अब बहनों ओडिशा दोनों हर रोज फोन पर लगातार घंटों बातें करने लगे । इस दौरान उन्होंने कई बार अपनी हकलाहट की समस्या का जिक्र एशिया से करना चाहा परंतु उसे अपने पिताजी की वो बात याद आ जाती है कि किसी के सामने अपनी कमजोरियों के बारे में नहीं बताना चाहिए । वरना लोग आपकी उन्हीं कमजोरियों की बदौलत आप पर विजय प्राप्त कर सकते हैं जिस कारण उसने कभी भी दिशा के सामने अपनी हकलाहट की समस्या जाहिर नहीं होने दी । उसे जब भी कभी ईशा से बात करते समय हकलाहट होने लगती है वो या तो चुप हो जाता या तो बातों को भूल जाने का अभिनय करने लगते हैं । फोन पर बातें करते करते दो महीने कब बीत गए दोनों को पता ही नहीं चला । दोनों परिवारों ने अपनी हैसियत से बढकर धानू और ईशा की शादी की तैयारियां भानु के परिवार की तरफ से शादी के कार्ड और मिठाइयों के डब्बे बांटे गए जिसके ऊपर अंग्रेजी में भानु बेड्स दिशा लिखा था । खैर शादी का दिन आ गया । दोनों परिवार वालों की तरफ से शादी की तैयारियां खूब जोरों शोरों से चल रही थी और आखिरकार तय दिन को भानु बराज सहित ईशा के शहर की ओर रवाना हो गया । धानों के परिवार में ये पहली शादी थी जिससे उसके परिवार में काफी हर्षोल्लास का माहौल था हूँ । इधर ईशा के परिवार वालों की तरफ से भानु बरात के स्वागत का इंतजाम एक स्थानीय पैलेस में किया गया था । बहनों की बारात उस पैलेस में पहुंचने ही वाली थी कि उस पैलेस में हंगामा खडा हो गया । ईशा के परिवार वालों की तरफ से आए दो परिवार आपस में किसी बात पर उलझ गए जिनसे दोनों परिवारों की तरफ से लडाई झगडा शुरू हो गया है । इधर भाई की बारह धीरे धीरे पैलेस के दरवाजे के समीप पहुंच रही थी और उधर पैलेस के अंदर दोनों परिवारों के बीच एक दूसरे को मारने के लिए कुर्सियाँ तक चल रही थी । ऐसा लग रहा था मानो जैसे पहले इसके अंदर दंगे फसाद हो रही हूँ । ईशा के परिवार वालों ने वाहनों की बारात को पैलेस के बाहर मिलने की रस्म के बहाने खडा कर दिया और पैलेस प्रबंधकों ने पैलेस के अंदर का माहौल जल्दी से ठीक ठाक करवाया । खैर थोडी देर बाद भानु बारात सहित पैलेस के अंदर दाखिल हुआ और कुछ ही देर में हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार बहनों की शादी ईशा के साथ संपन्न हो गई । बानू शादी करके ईशा को लेकर बाराज सहित अपने घर वापिस आ गया । बहनों के सभी रिश्तेदार और संबंधियों ने नई दुल्हन यानी दिशा का स्वागत बडी धूमधाम से क्या शादी के बाद की कुछ रसमें को पूरा करने के बाद भाई की मेरी बहन और कुछ रिश्तेदार धानों की पहली रात यानी सुहागरात के लिए उसके कमरे की सात सजा के काम में जुट जाते हैं । उसकी ममेरी बहन ईशा को भाई के कमरे में चली जाती है । थोडी देर के बाद भानु भी कमरे में आ जाता है और एशिया से प्यार भरी मीठी बातें करने लगता है । परंतु ईशा के दिमाग में कुछ और चल रहा होता है । भानु ने शादी के समय एक रस्म के दौरान अपनी साली यानी ईशा की बडी बहन को एक अंगूठी भेंट की थी । बानू ने यह अंगूठी अपनी हैसियत के मुताबिक ही अपनी साली को भेंट की थी । परंतु ईशा को भाई की ये भेंट काफी छोटी और मामूली लगती है जिसकी शिकायत वाहनों से शिकायत भरे अंदाज से करती है और साथ में ताना मारने के अंदाज में वाहनों से कहती है कि तुम शहर के इतने बडे सुना हो और तुम मेरी बहन को एक अच्छी सी भेज दे रहे हो । मेरी बहन अपने ससुराल में जाकर क्या बताएगी कि उसके छोटे जीजा नहीं ये अंगूठी दी है । शर्म आनी चाहिए तुम्हें और तुम्हारे परिवार को जो इतने पैसे वाले होकर भी मेरी बहन को एक मामूली सी भेज दे रहे हो । भानु ईशा की बात सुनकर हक्का वक्ता रहे जाता है । वहाँ उन्होंने सगाई के बाद दो महीने लगातार ईशा से फोन पर बातचीत की और उसे एक पल भी ऐसा नहीं लगा कि ईशा उसके साथ इस तरीके से भी बात कर सकती है । जिस लडाई भरे लहजे से ईशा उससे बात कर रही थी । भानु ने इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी । बाहर से समझाते हुए कहता है ईशा देखो पहली बात तो ये है कि वो अंगूठी हमने अपनी हैसियत के मुताबिक ही नहीं अपनी हैसियत से बढ कर दी थी और दूसरी बात मैं तुम्हारा पति और ये अब तुम्हारा घर है । रही बात सुनार की दुकान कि ये दुकान में और मेरा भाई दोनों मिलकर चलाते हैं और इस दुकान पर मेरा और मेरे भाई दोनों का बराबर का और आइंदा से तो मेरे काम में दखलंदाजी बिल्कुल नहीं करोगी । इतना सुनकर ईशा रोने लग जाती है और वहाँ से चुप करवाने लगता है । ईसा रोते रोते बहनों से शिकायत करती है कि जब वो पिछले दो महीने से उससे फोन पर बात करता था तब तो बहुत प्यार से बात करता था और आज ये अचानक से क्या हो गया है । भानु भी उसे जवाब देता है कि वह भी तो पहले ऐसी बातें नहीं करती थी । उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वो उसके और उसके परिवार की इस तरह बेज्जती करेंगे । वो उसके परिवार वालों की बहुत इज्जत करता है और उससे यानी ईशा से भी यही चाहता है कि वह भी परिवार वालों की इज्जत करें । वो समझाने की कोशिश करता है कि वह एक साधारण परिवार से संबंध रखता है और उसने कभी भी अपनी हैसियत से बाहर कभी कोई कदम नहीं रखा है और न ही भविष्य में कभी रखेगा । किसका एशिया का ये रूप और बातें सुनकर भानु दंग रह जाता है और एक बार सोचने पर मजबूर हो जाता है कि आखिरकार उसने ऐसा गलत क्या क्या है जिससे िशाने उसके साथ ऐसा किया उसने और उसके परिवार वालों ने अपनी हैसियत से बढकर उसकी शादी की थी । आखिरकार कमी कहाँ रह गई और यहाँ से ही फॅस टू वर्सिस कहानी की असल शुरुआत होती है । अगले दिन दोपहर के समय भानु परिवार सहित दिशा के घर एक रस्म के तहत जाना होता है । वाहनों ईशा को जल्दी तैयार होने के लिए कहता है । उधर ईशा ने बहनों की कल रात की बात का गुस्सा क्या होता है, वो उस की बात का जवाब उसकी बेईज्जती करने के अंदाज से देती है । वो कहती है, उनके परिवार की समय सारिणी फौजियों की समय सारिणी की तरह है अर्थात उनका परिवार एक फौजी जैसा बर्ताव करता है । जिस तरह फौजी हर काम के लिए समय का पाबंद होता है ठीक उसी प्रकार उसका परिवार भी समय का एकदम पाबंद हैं । एशिया की ये बात सुनकर भानु चुप रहता है और किसी से इस बारे में बात नहीं करता है । कुछ देर बाद भानु ईशा को लेकर परिवार सहित अपने ससुराल की तरफ रवाना हो जाता है । ईशा के परिवार वाले उन सबका स्वागत बहुत आदर के साथ करते हैं । वहाँ ईशा की बडी बहन भी मौजूद रहती है । पहले तो भानु का मन करता है कि वह उनसे जाकर अंगूठी वाली बात करें परंतु वो ये सोचकर रुक जाता है कि अभी नहीं नहीं शादी हुई है । अगर उसने कोई बात की तो कहीं बात बढना जाए । ये सोचकर भानु चुप रहता है । ईशा के घर में सभी रस्मोरिवाज खत्म होने के बाद बानू परिवार सहित अपने घर वापिस अपने शहर की ओर चल पडता है । रास्ते में अचानक को देखता है कि निशाने वहाँ मुट्ठी जो भाई के परिवार वालों की तरफ से उसकी बहन को एक रस्म के तहत भेंट की हुई थी । उस अंगूठी को पहना हुआ है और ईशा को भाइयों की तरफ से पहनाई गई एक अंगूठी काम है । इससे साफ जाहिर हो रहा था कि ईशा ने अपनी बहन के साथ हम मोठी बदल ली है । वाहनों एशिया से उसके हाथ की तरफ इशारा कर के इशारों में अंगूठी के बारे में पूछता है । इसके जवाब में ईशा उसकी ओर मुस्कुराकर देखती है । ईशा की मुस्कुराहट में उसकी भानु पर अपनी जीत साफ झलक रही होती है । इसके उलट भानु कुछ और गुस्से और कुछ न कर पाने की लाचारी के मिले जुले भाव के साथ देखता है । घर पहुंचते ही भानु अपने कमरे की ओर जाता है और ईशा को किसी बहाने कमरे में बुलाता है । भानु ईशा से उसकी इस हरकत के बारे में पूछता है । इसके जवाब में ईशा कहती है कि उसने पहले ही बोला था की उसकी बहन ने अपने ससुराल में जाकर सभी को अपने परिवार के द्वारा दी गई अंगूठी दिखानी है । जिस वजह से मैंने उसके साथ अपनी अंगूठी बदल ली थी ताकि इसमें ताकि इसमें आपके और आपके परिवार की मेरी बहन के परिवार में इज्जत बनी रहे । ईशा के मुख से ऐसे शब्द सुनकर भानु सोच में पड जाता है कि वो अब उस की बात का क्या जवाब दे । एक तरफ हो इस टेंशन में था कि अगर उसके पिताजी ने उससे ईशा की अंगूठी के बारे में पूछा तो वो उन्हें क्या जवाब देगा और दूसरी तरफ ये सोच कर हैरान था कि ईशा की बहन ने उसकी उसकी अंगूठी अपने पास कैसे रखें । ये बात बहनों की समझ में नहीं आ रही थी । भानु को अंगूठी की कोई परवाह नहीं थी । भगवान का दिया उनके पास सब कुछ था और न ही अंगूठी । ईशा की बहन को दिए जाने पर कोई ऐतराज था । बात ये थी कि अगर भानु के पिता जी और परिवार के बाकी सदस्यों को इस बात के बारे में पता चल गया तो वो ईशा और उसके परिवार के बारे में क्या सोचेंगे । ईशा की वो अंगूठी उसके परिवार की तरफ से पहनाई गई थी क्योंकि उसके बाकी आभूषणों के साथ मेल खाती थी और ईशा ने अगर कहीं वहीं अंगूठी नहीं पहनी होगी तो ये बात सबको पता लग जाएगी और ईशा और उसके परिवार वालों की बहुत बेइज्जती होगी । अब जिस बात का डर था वही हुआ । एक दिन भाई की मानें हिस्सा से कहा कि वह अपने सारे आभूषण उन्हें संभालने के लिए दे दें । वो उन आभूषणों को घर की तिजोरी में रखना चाहती थी जब कहीं उसे जरूरत होगी वो उसे उन आभूषणों को दे देगी । ईशा ने बिना किसी डर के सारे आभूषण लाकर वालों की माँ यानि अपनी सासु माँ को दे दिए । वाहनों की माँ उन आभूषणों में से अंगूठी को ना पाकर ईशा से उस अंगूठी के बारे में पूछती है और इससे पहले कि ईशा कुछ बताती बानू पहले ही बोल देता है कि वह अंगूठी ईशा को कुछ बडी है । इस कारण वह उस अंगूठी को दुकान में ले गया है । एक दो दिन में ही वो उसे ठीक करके आपको ला देगा । उसकी माँ से कहती है कि अगर उसने उस अंगूठी को छोटी ही करना है तो एक दो दिन वाली क्या बात है । वो शाम तक उस अंगूठी को ठीक करके उसे दे दें । इतना कहकर वाहनों की माँ तो वहाँ से चली जाती है परंतु की शा उसकी बात को सुनकर नीचे देखकर मुस्कुराने लगती है । ईशा की ये मुस्कुराहट बहनों को सोचने पर मजबूर कर देती है । वो कुछ भी समझ नहीं पाता और अपनी दुकान में चला जाता है और शाम को ठीक वैसी ही एक अंगूठी बनाता है और घर आकर ईशा को दे देता है और कहता है कि वह क्या मोटी उसकी माँ को देने और किसी को भी इस बारे में कुछ बताइए । बहनों की शादी को हुए दो सप्ताह के आस पास का समय हो चुका था और इन दो सप्ताह के दौरान उसकी ईशा से किसी ना किसी बात पर लडाई और बहस बाजी हो चुकी थी । जब की शादी से पहले पिछले दो महीने तक एशिया से फोन पर बातचीत करने के दौरान बहनों की एक बार भी लडाई नहीं हुई थी । एशिया का अचानक ही बदला हुआ ये रंग धन देखकर भानु दंग रह गया था । बालों को ये समझ में नहीं आता था कि ईशा को जिस काम से रोका जाता है वो वहीं काम जानबूझकर क्यों करती है और बाद में उसके साथ बहस, बाजी और झगडा करती है । ऐसा ही वाकया है कि वाहनों की शादी को हुए अभी कुछ ही दिन का समय हुआ था । उसके घर में इसके रिश्तेदार नहीं बहू यानी ईशा को देखने के लिए आते रहते थे । वालों की माने ईशा को खास तौर पर कहा हुआ था कि जब भी कोई रिश्तेदार घर आए तो मैं अपना सिर चुनरी से ढाक कर रखना । इसके उलट भानु के घर में जब भी कोई उसका रिश्तेदार आता ईशा सिर पर बिना चुन लिए ही उसके सामने आ जाता है । जिस कारण बहनों के परिवार वालों और खासकर उसकी माँ को सबके सामने शर्मिंदगी का सामना करना पडता हूँ । वालों की माने उसे बहुत समझाया परंतु दिशा उनकी कोई भी बात नहीं मानती थी । एक दिन भाई के नाना जी उनके घर आए । वो काफी बुजुर्ग थे । बालों के परिवार में सब उनसे मिलने के लिए उनके पास आए । भानु की मान ईशा को कहा कि वो भी नाना जी को जाकर मिलने परन्तु सिर के ऊपर चुन्नी लेकर जाएंगे । परन्तु नहीं पता नहीं क्यों ईशा के मन में ऐसा क्या आया । वो नाना जी को मिलने बगैर चांदी के ही आ गयी । नाना जी को एशिया की इस हरकत पर गुस्सा तो बहुत आया परन्तु उन्होंने ईशा को कुछ भी नहीं कहा । एशिया के जाने के बाद नाना जी ने भालों की माँ को ईशा के इस रवैये के कारण बहुत डालता हूँ । वाहनों की माने ईशा को डांटने के लिए जैसे खूब समझाया परन्तु ऐसा नहीं मानी । अंत में थक हारकर भाइयों की माने वालों के पिता से इस बात की शिकायत की । भानु के पिता ने पहले तो एशिया को समझाया परंतु जब वो नहीं मानी तो उन्होंने ईसा के परिवार वालों को अपने घर बुलाकर ईशा की इस बात की शिकायत की । ईशा के पिता ने तो थोडा बहुत उसे समझाया परंतु एशिया की माने तो हद ही कर दी । एशिया की माने भानु के पिता के सामने तो ज्यादा कुछ नहीं बोला परंतु ईशा के कमरे में जाकर ईशा के सामने भानु को डाटने के लिए जैसे कहती है कि देखो बेटा आजकल का जमाना नहीं है । सिर के ऊपर चुनरी लेने का ये इक्कीसवीं सदी है । इस तरीके लडकियाँ जींस और टॉप पहनती हैं । सिर पर चुनरी लेना तो पुराने जमाने की बात हो गई है । भाइयों अपनी सास की बात सुनकर दंग रह जाता है क्योंकि उसकी सास यानी ईशा की माँ दिशा को समझाने की बजाय उसकी बात का समर्थन कर रही है । इसके जवाब में वाहनों अपनी सास से कहता है कि वो आपकी बात से बिल्कुल सहमत है । वो इस बात से भी इनकार नहीं करता की इक्कीसवीं सदी है परन्तु इस सदी में भी लडकी को अपनी मान मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए । इसके जवाब में वाहनों की सास कहती है कि तो उनकी इस दुनिया में रहते हो । जब मेरी शादी हुई थी तो मेरे साथ ससुर ने शादी के दूसरे दिन ही सिर पर चुन्नी लेने से मना कर दिया था । वो मुझे अपनी बेटी मानते थे और एक बेटी के समान दर्जा देते थे । अगर वो लोग गांव में रहकर ऐसा कर सकते हैं तो तुम्हें क्या समस्या है । भानु उनकी बात के बाद कुछ बोल नहीं सकता क्योंकि वह जानता था कि ईशा की माँ झूठ बोल रही है । उन्होंने शादी से पहले एशिया की माँ के बारे में अपने कुछ रिश्तेदारों से काफी कुछ सुन रखा था । जैसे कि उसने अपनी शादी से दो तीन महीने के बाद ही अपने पति यानी ईशा के पिता को अपने ससुराल से अपने मायके में ले आई थी । वो अपने मायके के घर के पास के मोहल्ले में एक किराए का घर लेकर रहने लग गए थे । अब उन्होंने ऐसा क्यों किया इसके बारे में भानु ने कभी भी उनसे कुछ जानने की कोशिश नहीं । दूसरी तरफ वो गांव के रस्मों रिवाजों से भलीभांति परिचित था । गांव के रिवाज शहर के रिवाजों की तुलना में ज्यादा सख्त और पिछडे हुए हैं जिसमें वो कभी नहीं चाहते थे कि उनकी नई नवेली बहू बिना सिर के ऊपर चुन के लिए किसी के सामने आएगा । अब ये बात साफ हो गई थी कि बहनों की सास ईशा को समझाने के बजाय हर बात पर उसका साथ दे रही है । उनके जाने के बाद एशिया का भाइयों से छोटी छोटी बात पर लडना झगडना आम हो गया । पहले तो वो सोचता था कि वह ईशा की जब शिकायत उसके माता पिता से करेगा तो वो उसे डाटेंगे और भविष्य में ऐसा नहीं करने के समझाएंगे परन्तु अब तो ऐसा हो पाना असंभव था क्योंकि ईशा के माता पिता भी उसी का ही साथ दे रहे थे । समय के साथ साथ एशिया का बहनों के साथ किसी ना किसी बात को लेकर झगडा होना आम हो जाता है । आलम यह हो गया था कि जब वह दुकान से घर वापस आ रहा होता है तो घर के नजदीक पहुंचने ही उसकी दिल की धडकन बढने लगती है । उसे घर जाने से डर लगने लगता है क्योंकि उसे नहीं पता होता था कि न जाने किस वजह से आज ईशा उससे झगडा कर बैठी हूँ । ये समस्या भानु के लिए उसकी हकलाहट की समस्या से भी जटिल थी क्योंकि उस समस्या पर तो किसी ना किसी तरह उन्होंने काबू पा लिया था । परंतु ईशा की वजह से जो दिन बदिन नई से नहीं समस्या उभरकर सामने आती थी, उस समस्या पर काबू पाना उसके लिए कठिन हो रहा था । ईशा के बर्ताव में काफी बदलाव आ गया था । उस की शादी से पहले की बातों और अब की बातों में काफी फर्क था । ईशा वाहनों से इतनी छोटी छोटी मामूली सी बातों पर लडने लग पडती थी कि कभी कबार तो उसकी लडने की वजह के कारण भानु को हंसी आ जाती थी । एक बार की बात है धानों की दुकान पर उसकी मामी सास यानी ईशा की मामी आई उसकी मामी का मायका भानु की दुकान के पास में था । वो अपने मायके में आई थी इसलिए वह बहनों से मिलने उसकी दुकान पर अभी भानु अपनी मामी सास को अपने साथ घर ले आया । एशिया की मामी भानु की माँ को पहले से ही जानती थी । ईशा ने उनके लिए चाय पानी का इंतजाम किया और अपने कमरे में जाकर वहाँ से लडने लगे । एशिया का कहना था की उस की मामी सबसे पहले उसे क्यों नहीं मिलने आई । वो तुम्हारे पास दुकान में । क्योंकि ईशा को शक था कि कहीं भानु ने तो मामी को बुलाया होगा और उसके बारे में मामी से जमकर शिकायतें लगाई होंगी और साथ में वो कहती है कि अगर वो हमारे घर में आ ही गई थी तो उसे सीधा अपनी माँ के कमरे में क्यों लेकर गए थे? क्या वो पहले मेरे कमरे में नहीं आ सकती थी क्या और फिर तुमने या तुम्हारी माने उन्हें चाय पानी के साथ कुछ मिठाई वगैरह क्यों नहीं रखी? भानु को गुस्सा आ जाता है और इसके जवाब में वह कहता है कि देखो मैंने तुम्हारी मामी को कोई फोन वगैरह नहीं किया और न ही मैंने उनको अपने पास आने का कोई निमंत्रण दिया था । वो तो अपने आप मायके में आई हुई थी और हमारी दुकान के बाहर से निकल रही थी । उन्होंने बाढ से मेरी तरफ देखा तो मैंने उन्हें आवाज लगाकर अंदर बुला लिया । अब रही बात तेरी मामी का सबसे पहले मेरी माँ के पास जाने का तो इसका कारण यही है कि मेरी माँ और तेरी मामी बचपन से एक दूसरे को जानते थे तो इसी बचपन की जान पहचान के कारण ही वो सबसे पहले मेरी माँ के पास उनसे मिलने गई थी और रही बात उन्हें मिठाई वगैरह ना खिलाने की तो इसके लिए तेरी मामी नहीं हमें मना किया था और फिर वो हमारी मेहमान हैं । उनकी खातिरदारी करने की जिम्मेदारी हमारी भी है । कुमारी अकेले की नहीं । इतना सुनकर ईशा गुस्से में आ जाती है और उसके साथ झगडने लग जाती है । उनके झगडे के बारे में उसके पिताजी सुन लेते हैं और भानु को अपने पास बुलाकर झगडे की वजह के बारे में पूछते हैं ।

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यह कहानी एक ऐसे पात्र के जीवन पर आधारित है जो हकलाहट की समस्या से पीड़ित है और उसे अपनी इस समस्या की वजह से कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ा | कहानी के अंत में उसने अपनी सभी समस्याओं पर कैसे विजय प्राप्त की यह जानना दिलचस्प होगा | नोट :- यह कहानी लिखने का मुख्य उदेश्य समाज को हकलाहट की समस्या के प्रति जागरूक करना है | Author : Rohit Verma Rimpu Voiceover Artist : Ashutosh
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