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From Weds To Vs Part 3 in  |  Audio book and podcasts

From Weds To Vs Part 3

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यह कहानी एक ऐसे पात्र के जीवन पर आधारित है जो हकलाहट की समस्या से पीड़ित है और उसे अपनी इस समस्या की वजह से कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ा | कहानी के अंत में उसने अपनी सभी समस्याओं पर कैसे विजय प्राप्त की यह जानना दिलचस्प होगा | नोट :- यह कहानी लिखने का मुख्य उदेश्य समाज को हकलाहट की समस्या के प्रति जागरूक करना है | Author : Rohit Verma Rimpu Voiceover Artist : Ashutosh
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उसके ताऊजी आयकर विभाग के जाने माने वकील है । वो उनके परिवार के बेहद करीबी रिश्तेदारों में से थे । उन के दो लडके और एक लडकी थी । उनका बडा लडका जिसका नाम मनोज था । उसकी उम्र बहनों की उम्र के आसपास थी । वो भालू के बेहद करीब था । मनोज को बचपन से पहलवानी का बडा शौक था जिस कारण वो अपने बडे कदकाठी और पहलवानों जैसे दाल डाल के कारण भानु से बडा लगता था । भाई के ताऊ जी की ये मंशा थी कि वो दोनों यानी मनोज और भानु भविष्य में वकील का पेशा अपनाएं । वकील का पेशा एक ऐसा पेशा है जिसमें ज्यादातर बोलना पडता है वालो ये बात भलीभांति जानता था परन्तु फिर भी वो इस पेशे को अपनाने की ख्वाहिश अपने दिल में रखता था । इस पेशे को अपनाने के लिए उसके सामने दो चुनाव क्या पहली चुनौती उसकी शारीरिक कमजोरी थी यानी कि वह शारीरिक रूप से काफी पतला और कमजोर था और दूसरी उसकी हकलाहट की समस्या है जिसको हल करने का रास्ता उसे पता नहीं था । भानु जब दसवीं कक्षा में होता है तो मनोज जो कि उसके ताऊ जी का लडका था उसकी मृत्यु हो जाती है । वाहनों की जिंदगी में शिखा के बाद ये दूसरा झटका होता है जो की उसके अंदर तक हिलाकर रख देता है । बेशक भानु तीन भाई थे परंतु मनोज उसके लिए अपने सगे भाइयों से बढकर था । मनोज की मृत्यु के बाद वो काफी टूट जाता है क्योंकि एक मनोज जी था जिससे वो थोडी बहुत अपने दिल की बात करके अपना मन हल्का कर लेता था । वकील बनना उन दोनों की खाई थी परंतु मनोज की मृत्यु के बाद बहनों की एक ख्वाहिश अधूरी सी लग रही थी । खैर दसवीं कक्षा के बाद आगे की पढाई के लिए उसे कॉलेज में जाना था और कॉलेज के माहौल के बारे में सोच सोचकर ही वो डर जाता था । उसे ये डर लगता था कि उसकी हकलाहट की समस्या और उसके पतले शरीर का वहाँ कॉलेज में उसके सहपाठी कैसा मजाक बनाएंगे । भानु के शरीर के पतलेपन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है जब वो दसवीं कक्षा में पढ रहा होता है । तब उसके शरीर का वजन मात्र तीस किलो के आसपास था । बालों इस बात से भलीभांति परिचित हो गया था कि वो अपनी हकलाहट की समस्या को तो हाल नहीं कर सकता हूँ लेकिन अपने शरीर के वजन को तो बढा सकता है । कॉलेज में कम बोल कर वह जैसे तैसे अपनी हकलाहट की समस्या को तो छुपा लेगा परंतु अपने इस पतले शरीर को छुपा नहीं पाएगा क्योंकि वो अपने पतले शरीर से कॉलेज में पढने वाला विद्यार्थी नहीं बल्कि चौथी पांचवीं कक्षा में पढने वाला कोई छोटा सब बच्चा लगता था । अब वक्त था जब उसे अपने शरीर के वजन के प्रति कुछ सोचना था । इस दौरान उसने कई डॉक्टरों से संपर्क किया और उनसे कई तरह की दवाइयां दिखाई परन्तु सब बेकार साबित हुई । उन सब दवाइयों से उसके शरीर में फर्क तो पडता था परंतु तब तक जब तक वो उन दवाइयों का सेवन कर रहा है जब वो उन दवाइयों का सेवन बंद कर देता था । तब उसका शरीर फिर से अपनी पहली स्थिति में आ जाता था । इस सबसे थक हारकर उसने दवाइयों का सहारा नहीं लेने का निश्चय किया । उसे मनोज की नसीहत बार बार याद आती थी । मनोज रोज सुबह शाम व्यायाम करता था और खूब खुराक खाता था और उसे भी खूब खुराक खाने और जमकर व्यायाम करने की नसीहत देता हूँ । उन्होंने अपनी खुराक और व्यायाम पर ध्यान देने का निश्चय किया । इसके लिए उसने एक व्यायामशाला में दाखिला लिया । व्यायामशाला का माहौल उसके लिए नया था क्योंकि वह पहली बार वहाँ गया था । वहाँ के लोग उसके पतले शरीर का मजाक बनाने लगे थे । उनमें से एक दो ने तो हद कर दी थी तो भानु को उठाकर व्यायाम करने लग गए थे । भानु वहां से भागकर घर वापस आ गया और ये निश्चय किया कि वह दोबारा कभी वहाँ नहीं जाएगा परन्तु इस सब के बावजूद वो व्यायाम करना नहीं छोडना चाहता था परन्तु वो कहीं बाहर नहीं जाना चाहता था । इसका एक ही विकल्प था कि वह घर में ही इसका इंतजाम करें । परंतु व्यायाम करने का जो सामान था वो काफी महंगा था । उसे खरीद पाना उसके बस में नहीं था । कहते हैं जहां चाह होती है वहाँ कोई न कोई रहा अवश्य होती है । कानूने इसका भी हल ढूंढ लिया था । भाई के घर की छत पर एक कमरा था जहाँ कोई आता जाता नहीं था । कानूने वो कमरा अपने व्यायाम के लिए चुनी भानु वहाँ ईटों और घर में रखी बेकार लोहे की पाइपों की सहायता से व्यायाम करना शुरू कर देता है । परन्तु बिना किसी गुरु की देख रेख से वो अक्सर गलत काम करता था । खैर वो दसवीं कक्षा अच्छे नंबरों से पास करके आगे की पढाई के लिए कॉलेज में दाखिल हो जाता है । आगे की पढाई वो कॉमर्स विषय के साथ करता है । इसका एक कारण ये था कि उसे भविष्य में वकील का पेशा अपनाना था और दूसरा कारण शायद यह था कि वह गणित के विषय में काफी अच्छा था जिस कारण उसे यकीन था कि वह कॉमर्स विषय में आसानी से पास हो जाएगा । वो पहले दिन कॉलेज में जाता है परंतु कॉलेज का माहौल उस की उम्मीद से कहीं ज्यादा खराब था । स्कूल में तो सुबह एक ही बार हाजरी लगती थी जिससे वह जैसे तैसे बोल लेता था । परंतु इसके उलट कॉलेज में हर विषय का अलग अलग प्रोफेसर था और हर प्रोफेसर का अपना अलग से हाजरी रजिस्टर होता था और हर प्रोफेसर अपनी अलग से हाजिरी भी लगता था । मतलब ये कि बहनों की कक्षा में हाजिरी अब हर चालीस मिनट के अंतराल के बाद लगने शुरू हो गए । हर बार वो अपनी हकलाहट की समस्या के कारण आज ही बोल नहीं पाता था और हर बार उसकी इस परिस्थिति का मजाक उडाया जाता हूँ । धानों की कक्षा में उसके कुछ सहपाठी उसे बहुत ज्यादा तंग करने लग गए थे । नतीजा ये हुआ कि भानु कक्षा में जाने से कतराने लगता हूँ और ज्यादातर समय कॉलेज के मैदान में बिताने लगा । नतीजा यह हुआ कि भानु पढाई में पीछे पडने लगा । उधर कॉलेज की छिमाही परीक्षा शुरू होने वाली थी । भानु डर रहा था कि वो इस छमाही परीक्षा की तैयारी कैसे करेगा क्योंकि कक्षा में कम हाजिरी होने की वजह से पढाई में काफी पिछड गया था । परंतु समय को कोई भी बात नहीं सकता । उसकी छिमाही परीक्षा शुरू हो गई थी और वो उस परीक्षा में फेल हो जाता है मानो निश्चय करता है कि वो इस परीक्षा के परिणाम के बारे में घर में नहीं बताएगा और अगर कोई उससे इस बारे में कुछ पूछेगा तो वो झूठ बोल देगा कि वो इस परीक्षा में पास हो गया है । परंतु वो कॉलेज की कार्यकारिणी के बारे में नहीं जानता था जिसके अनुसार हर परीक्षा का परिणाम डाक के जरिए घर पहुंचाया जाता है । जिस वजह घर में भानु के फेल होने के बारे में सबको पता चल जाता है । पहले तो मानो इस सब से इंकार कर देता है । वो तर्क देता है कि घर में आया हुआ है । उसका ये परिणाम कॉलेज वालों की गलती का नतीजा है । यानी कि भानु इस परिणाम को जुडना देता है और कॉलेज से सही परिणाम लाने को कह देता है परंतु अपने पिताजी की डांट के आगे वो झुक जाता है और सब कुछ सच सच बता देता है जिस कारण उसे पिताजी से खूब डांट पडती है । भानु के घर वाले सोचते हैं कि वह पढाई न करने के कारण फेल हो गया है परन्तु ये कभी भी नहीं सोच सकते हैं कि इसके पीछे असल कारण क्या था । ग्यारहवीं कक्षा भानु जैसे तैसे पास कर लेता है परंतु अकाउंट के उस एक विषय में फेल हो जाता है । उसके घर वाले आगे की उसकी पढाई कॉलेज में ना करते हुए किसी स्कूल में कराने का फैसला लेते हैं और इसके लिए उसे शहर के किसी निजी और इसके लिए उसे शहर के किसी निजी स्कूल में दाखिला करवा देते हैं । उसने स्कूल में भानु पर उसके घर वाले काफी दबाव बनाते हैं । क्यों अपने विषय कॉमर्स से बदलकर आसान विषय जैसे आठ या कुछ और रख लें क्योंकि वह सब ये सोचते थे कि कॉमर्स काफी मुश्किल विषय है और भानु पढाई में कमजोर है तो भानु से कॉमर्स विषय रखकर पास होना मुश्किल है परन्तु भानु क्या सोचता था ये शायद किसी को भी पता नहीं । बालों अपने ताऊ जी के लडके यानी मनोज के सब को पूरा करना चाहता था । यानी भानु वकील बनना चाहता था । इसके लिए वह कॉमर्स विषय में ही अपनी आगे की पढाई पूरी करना चाहता था । वो स्कूल में कॉमर्स के विषय को रखकर दाखिला ले लेता है । कॉमर्स के विषय में उसकी कक्षा में केवल दस विद्यार्थी थी । भानु जब पहले दिन स्कूल में जाता है तो उसके अध्यापक सब विद्यार्थियों से उनका नाम और भविष्य की उनकी योजनाओं के बारे में पूछने लगे क्योंकि बारहवीं कक्षा के बाद भविष्य के बारे में सोचने का समय होता है । अध्यापक के पूछने पर सभी ने कुछ ना कुछ बोला हूँ । कोई सीए बनना चाहता था तो कोई एम । बी ए जब खानों से पूछा गया तो उसने हकलाते हुए जवाब दिया कि वह वकील बनना चाहता है जिसके लिए वाॅल भी करना चाहता है । उसकी बात सुनकर अध्यापक समेत सब विद्यार्थी हस पडते हैं । उसकी वकील बनने की बात से नहीं बल्कि इस बात को वो हकलाते हुए कहता इस बात पर सब हसने लग पडे थे । अध्यापक के चले जाने के बाद कुछ विद्यार्थी उसकी बात का मजाक बना लेते हैं और नकल उतारकर उसकी हकलाहट का मजाक बना लेते हैं । उसके कुछ सहपाठी अपने अभिनय के द्वारा ये बताते हैं कि भविष्य में जब ऍम भी करके वकील बन जाएगा तो वह हकलाते हुए अपना किस कैसे लडेगा, जिससे बहनों की पूरी कक्षा के सामने बहुत बेज्जती होती है । उस दिन से उसके सहपाठियों से चिढाने के लिए उसे एलएलबी के नाम से पुकारने लगते हैं और कुछ ही दिनों में उसका ये नाम इतना पक जाता है कि पूरे स्कूल में कोई भी उसके असली नाम यानी भालू के नाम से नहीं जानता था । सब उसे एलएलबी के नाम से जानने लगे थे । इतना सब होने के बाद बहनों को एक बात समझ आ चुकी थी कि अगर जिंदगी में कुछ करना है और कुछ मुकाम हासिल करना है तो सबसे पहले उसे अपनी हकलाहट की समस्या को ठीक करना होगा । बारहवीं कक्षा की परीक्षा देने के तुरंत बाद उन्होंने एलएलबी करने के लिए एनईईटी की परीक्षा देता है । वो उस परीक्षा को अच्छे नंबरों से पास कर लेता है परन्तु बारहवीं की परीक्षा के एक विषय में फेल हो जाता है, जिस कारण उसका वकील बनने का सपना अधर में लटक गया । अब उसे हकलाहट की समस्या के साथ साथ अपने भविष्य की चिंता भी सताने लगी थी । उसके वकील बनने का सपना पहले ही उसकी हकलाहट की समस्या के कारण टूट गया था । अब उसके सामने एक नई समस्या थी कि वह किस व्यवसाय को अपनाए जिससे वो अपना जीवन यापन कर सके । परंतु इसके साथ साथ उसे अपनी हकलाहट की समस्या को ठीक करने के बारे में भी सोचना था । भानु के ननिहाल में ज्यादातर सभी सुनार का काम करते थे । भानु के नानाजी ने बहनों के पिता को सलाह दी कि भाई को भी सुनार के व्यवसाय में डाल दिया जाएगा । सभी को उनकी सिला अच्छी लेंगे । परंतु भानु अभी भी अपनी जिद पर अडा हुआ था । वो चाहता था कि वह बारह के जिस विषय में से फेल हुआ है वो उस विषय को पास करके वकालत की पढाई के लिए फिर से कॉलेज में दाखिल हो जाए । इसके लिए वो अपने एलइटी में अच्छे नंबरों का हवाला देता है । परंतु इसके विपरीत भानु के घर वाले उसे उसकी हकलाहट की समस्या का हवाला देकर सुनार का काम करने की सलाह देते हैं । उन सब के समझाने के बाद वो मजबूरी वर्ष सुनार का काम करने को राजी हो जाता है और अपना वकील बनने का स्वप्न अपनी हकलाहट की समस्या के कारण सदा के लिए छोड देता है । वाहनों की हकलाहट की समस्या ने उसके जीवन में कई बदलाव ला दिए थे । छोटे से समय में उसने अपनी जिंदगी में अपनी इस हकलाहट की समस्या के कारण कई उतार चढाव देख लिए थे । बहनों की पिछली जिंदगी तो जैसे तैसे इस समस्या के साथ निकल गई थी परंतु अब उसकी जिंदगी का अहम पढाओ शुरू होने जा रहा था । इस पडाव में वो अपनी इस हकलाहट की समस्या के साथ जिंदगी जी नहीं सकता था । उसे अपनी समस्या का कोई न कोई हल जरूर होना था । उसे ज्ञात हो गया था कि इस समस्या के साथ आगे का जीवन जीना काफी मुश्किल हो सकता है । धानों के घरवाले उसे सुनार का काम सिखाने के लिए अपने शहर के सुनार बाजार में एक सुनार के पास भेज देते हैं । वो सुनार बहनों के जीजा जी का दोस्त था मानों कि बहुत से रिश्तेदार उसी सुनार बाजार में काम करते थे । शुरू शुरू में तो भानु बाजार के माहौल को समझ नहीं पाता है क्योंकि स्कूल और कॉलेज का माहौल बाजार के माहौल से काफी अलग था । स्कूल में तो वही कुछ अध्यापक और विद्यार्थी थे जिनसे हर रोज मुलाकात होती थी और जो उसकी हकलाहट की समस्या के बारे में जानते थे परंतु इसके विपरीत बाजार में बहुत से ऐसे लोग थे जो कि उस की इस समस्या से अंजाम थे । स्कूल में तो हर रोज बार बार आपने उन्हें सहपाठियों और अध्यापकों से मिलता था परन्तु इसके विपरीत बाजार में उसकी मुलाकात रोज नए नए लोगों के साथ होती है । एक तरफ वाहनों बाजार में सुधार काम सीखने जाता था तो दूसरी तरफ वो अपनी हकलाहट की समस्या के समाधान को ढूंढने में जी जान से जुट जाता है । हकलाहट की समस्या का समाधान ढूंढना उसके लिए काफी मुश्किल था क्योंकि वह यह नहीं जानता था कि इसके समाधान के लिए वो किसके पास चाहिए क्योंकि वो पहले ही कई डॉक्टरों के पास जाकर अपनी हकलाहट का इलाज करवा चुका था । जो की समय और पैसे की बर्बादी साबित हो चुका है । वो कई ज्योतिषों के पास जाकर कई तरह के टोटके आजमा चुका था परंतु कोई भी टोटका अपना काम नहीं कर रहा था । वो अपना ज्यादा ध्यान हकलाहट की समस्या को सुलझाने में लगाने लगता है । सबसे पहले उसे इस बारे में पता लगाना था कि आखिरकार ये हकलाहट होती क्या है, ये किस बला का नाम है । ये कब पैदा होती है, क्यों पैदा होती है, कब इसका प्रभाव ज्यादा होता है और कब इसका प्रभाव कम होता है । वो कौन कौन सी परिस्थितियां हैं जब उसे हकलाहट की समस्या सबसे ज्यादा होती है और कब वो भी कुछ ठीक महसूस करता है । भाई को अपनी हकलाहट की समस्या के हल के लिए इन सब सवालों के जवाब ढूंढने थे । अगला इस शब्द से भलीभांति परिचित था । परन्तु ये क्या है और इसके पैदा होने के पीछे क्या कारण है? सबसे पहले इस बात का पता लगाना जरूरी था । किसी व्यक्ति में हकलाहट की समस्या कैसे और क्यों उत्पन्न होती है, इस बात पर काफी समय से बहस छिडी हुई है । कोई इसी मानसिक समस्या कहता है और कोई इसे माता पिता या अपने किसी रिश्तेदार से विरासत में मिली बीमारी कहता है और नीम हकीम डॉक्टरों के पास इसका इलाज ढूंढते हैं जैसा कि भाई के जीवन की कहानी में होता है । कुछ बोलने वाले लोग इसी देवीय प्रकोप मानकर ओझाओं और तांत्रिकों के पास अपना समय और पैसे बर्बाद करते हैं । अपने निजी अनुभव के आधार पर मैं आपको हकलाहट होने के पीछे कुछ कारणों का उल्लेख करने का प्रयास करता हूँ । इसका एक कारण ये है कि जब हम किसी बात को बोलते हैं तो हम साथ साथ सांस लेते हैं । यानि कि हम हर पंद्रह या बीस सेकंड के अंतराल में अपनी एक बात एक ही साथ में बोलते हैं । इस तथ्य को आसान भाषा में हम अगर बोले तो मैं ये कहना चाहता हूँ कि हम बातचीत करते हुए पंद्रह से बीस सेकंड के अंतराल में सांस लेते हैं । सामान्य व्यक्ति को ऐसा करने में किसी प्रकार की कोई दिक्कत पेश नहीं आती है । परंतु एक हकलाने वाले व्यक्ति हो, पंद्रह से बीस सेकेंड के इस समय के बीच तालमेल बनाना कठिन हो जाता है और यही तालमेल उस हकलाने वाले व्यक्ति की परेशानी का कारण बनती है । अगर हम एक सामान्य व्यक्ति की तुलना एक हकलाहट की समस्या से ग्रस्त किसी व्यक्ति से करें तो हम हकलाहट के सही कारणों का पता लगा सकते हैं । जी बात प्रमाणित की जा चुकी है कि एक हकलाने वाले व्यक्ति का दिमाग सामान्य व्यक्ति के दिमाग की तुलना में काफी तेज होता है । अगर हम गौर करेंगे तो पाएंगे कि एक बच्चा जो हकलाहट की समस्या से ग्रस्त है, उसकी बाकी सभी गतिविधियां जैसे पढना लिखना, कंप्यूटर चलाना और विडियो गेम खेलना आदि सामान्य बच्चों की तुलना में बेहतर ढंग से कर लेते हैं । परन्तु इसका दूसरा पहलू देखें तो जानेंगे कि यही तेज दिमाग उसकी हकलाहट का मुख्य कारण बनता है । एक सामान्य व्यक्ति एक समय में एक ही बात को सोचता है और बोलता है । इसके विपरीत हकलाने वाले व्यक्ति के दिमाग में एक समय में कई बातें चल रही होती है और इससे पहले वो हकलाना शुरू कर दे वो अपनी बात को जल्दबाजी में बोलने लगता है । यही जल्दबाजी हकलाहट का कारण बन जाती है । एक उदाहरण के द्वारा आपको यह समझाने की कोशिश करता हूँ एक खाली गिलास नहीं उसे मेज पर रखते हैं । उसमें धीरे धीरे पानी डालना शुरू कर दिया । जब तक गिलास पूरा भरना जाए आप पानी डालते रहे । अब धीरे धीरे पानी डालते रहे हैं, पूरे नहीं । आप देखेंगे कि गिलास पानी से पूरा भरने के बाद उसके ऊपर से बाहर आ रहा है और मैं इसके ऊपर गिरने लगता है । यानी पानी अपना प्रभाव नहीं इस पर डालकर में इसको गिला कर रहा है । ठीक इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति विशेष का दिमाग उसकी क्षमता से ज्यादा होता है तो वो उसकी पांचों ज्ञानेन्द्रियों में से किसी एक पर अपना प्रभाव डालता है और ज्यादातर इसका प्रभाव आंखों पर आवाज पैदा करने वाली ज्ञानेंद्रियों पर पडता है । आंखों पर इसके प्रभाव को बताने के लिए आप उस एक छोटे बच्चे को उदाहरण के तौर पर कहीं भी देख सकते हैं जिसे दो या तीन वर्ष की आयु में आंखें कमजोर होने की वजह से एनक् लगी हुई है । उस बच्चे को दिखाई बेशक कम देता हूँ परन्तु पडने और बाकी गतिविधियों में सबसे आगे रहता है । आवास पैदा करने वाली ज्ञानेंद्रियों पर इसके प्रभाव को बताने के लिए आप भानु को उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं । हकलाहट क्या है ये तो भाई को पता चल गया परंतु ये किन परिस्थितियों में पैदा होती है इस बात का पता लगाना बाकी था । बालों जब कभी कुछ गुनगुनाता है, मतलब कोई गाना गाने लगता है तब कोई समस्या नहीं होती या फिर अकेले में या अपने किसी परिचित के सामने बात करते समय कोई भी समस्या नहीं होती । मतलब कहने का ये था कि भानु अपने घर में और आपने कुछ निकटतम संबंधियों के सामने बडे आराम से बातचीत कर लेता था । वहीं इसके विपरीत यानी की घर से बाहर और किसी अनजान व्यक्तियों के सामने उसे बोलने में समस्या होने लगती है । इसका कारण क्या था? ऐसा क्यों होता था? वाहनों को इस बात का पता लगाना चाहूँगी । इसका एक मुख्य कारण ये था कि भाई को इस समाज से डर लगता था । परंतु सवाल यह था कि उसे डर किस बात का लगता था । उसे डर इस बात का लगता था कि अगर वह इस समाज के सामने बोलते समय रुक गया यानी हकलाते हुए बात करने लगा तो ये समाज उस पर खूब रहेगा और उसकी हकलाहट का खूब मजाक बनाएगा । अकेले में या अपने किसी परिचित के सामने बात करते समय कोई भी समस्या नहीं होती । इसका कारण ये था कि उसे अकेले में या अपने परिचित के सामने बोलने से इस बात का डर नहीं होता था कि अगर उनके सामने बोलते हुए नहीं हकला गया तो वो उसकी इस हकलाहट का कभी भी मजाक नहीं बनाएंगे । जिस कारण वो अकेले में या अपने परिचितों के सामने बिना किसी डर के बिंदास होकर बोल लेता था ।

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यह कहानी एक ऐसे पात्र के जीवन पर आधारित है जो हकलाहट की समस्या से पीड़ित है और उसे अपनी इस समस्या की वजह से कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ा | कहानी के अंत में उसने अपनी सभी समस्याओं पर कैसे विजय प्राप्त की यह जानना दिलचस्प होगा | नोट :- यह कहानी लिखने का मुख्य उदेश्य समाज को हकलाहट की समस्या के प्रति जागरूक करना है | Author : Rohit Verma Rimpu Voiceover Artist : Ashutosh
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