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From Weds To Vs Part 10 in  |  Audio book and podcasts

From Weds To Vs Part 10

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यह कहानी एक ऐसे पात्र के जीवन पर आधारित है जो हकलाहट की समस्या से पीड़ित है और उसे अपनी इस समस्या की वजह से कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ा | कहानी के अंत में उसने अपनी सभी समस्याओं पर कैसे विजय प्राप्त की यह जानना दिलचस्प होगा | नोट :- यह कहानी लिखने का मुख्य उदेश्य समाज को हकलाहट की समस्या के प्रति जागरूक करना है | Author : Rohit Verma Rimpu Voiceover Artist : Ashutosh
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जज भानु की तरफ देखता है और फिर ईशा के पिता की तरफ देखता है और इशारों में उनसे बहनों की बात के जवाब के बारे में पूछता है । ईशा के पिता कुछ भी जवाब नहीं देते हैं और लगभग खामोश से हो जाते हैं । तब जांच भानु की तरफ देख कर उससे पूछता है । लडकी के परिवार वालों ने आपके परिवार पर ये आरोप लगाया है कि आपके भाई और आपके पिता ने लडकी के साथ मारपीट की जिस वजह से उसका गर्भपात हो गया । लडकी पक्ष की तरफ से आपके परिवार पर लगाए इस आरोप के बारे में तुम क्या कहना चाहोगे? इसके जवाब में भानु कहता है, जब साहब मैं अपने परिवार के ऊपर लगाए इसकी इन्होंने आरोप को भी सिरे से खारिज करता हूँ । ये सच है कि जब ईशा मेरे घर से गई थी तो वह गर्भवती थी और ये भी सच है कि उसका गर्भपात हुआ है परन्तु उनकी कहीं इस बात में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है कि एशिया का गर्भपात हमारे परिवार द्वारा की गई मारपीट के कारण हो बल्कि सच्चाई ये है कि ईशा के हमारे घर से चले जाने के बाद इसकी माँ नहीं । अपनी एक सहेली जो कि पेशे से डॉक्टर है । उसी के अस्पताल में ईशा का गर्भपात करवाया था और अगर आप सच्चाई का पता लगाना चाहते हैं तो पुलिस को हुक्मदेव कि वह ईशा की माँ की उस सहेली को गिरफ्तार करें और उसे रिमांड में लेकर उससे सब सच उगलवा । जज और वहाँ उपस्थित सभी लोग भालू की दलीलों से बहुत प्रभावित होते हैं । इससे पहले की जज कुछ बोलता ईशा और होने लग जाती है और रोते रोते कहती है जब साहब इन लोगों ने मुझे घर से धक्के देकर निकाला और मुझसे मेरी दूधमुंही बच्ची को छीन लिया । ये जितने शरीफ बनने की कोशिश कर रहे हैं उतने शरीर के हैं नहीं और इतना कहते ही वो जोर जोर से रोने लग जाती है । भानु कहता है जब साहब अगर रोने से यह बात साबित हो जाता है कि रोने वाला शख्स सच बोल रहा है तो सारी दुनिया रोड होकर ही अपना बयान देता जब साहब और वैसे भी और अपने अपने आंसुओं को अपनी आंखों के पास वो रखा होता है ताकि जरूरत पडने पर वो उन्हें सबसे पहले निकालकर एक हथियार की तरह उनका इस्तेमाल किया जा सके । अब रही बात इससे इसकी दूधमुही बच्ची छिलने की तो उस रात असल में क्या हुआ था वो मैं आज अदालत में सबको बताता हूँ और मैं कसम खाता हूँ कि मैं जो कुछ कहूंगा सच कहूंगा और सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा । इतना कहते ही भानु अदालत में सनी और उसके ससुराल जाने और ईशा का उसके साथ आने से लेकर ईशा के द्वारा रात को भाइयों से लडाई और ईशा के मायके वालों का सुबह सुबह ईशा को अपने साथ ले जाने तक का सारा वाकया सुना देता है और वह साथ में ये भी बता देता है की अपनी जिस दूधमुंही बच्ची को वो उनसे छीनने की बात कर रही है असल में उसने अपनी उसी दूधमुंही बच्ची को उसी यानी बहनों की तरफ धक्का दे दिया था और उसकी तरफ एक बार भी देखा तक नहीं और उसकी वह दूधमुंही बच्ची बिना दूध के भूख के मारे सारी रात रोती रही है । इतना सुनने के बाद जज कहता है लडके पक्ष की दी गई दलीलों के बाद इसके जवाब में क्या लडकी पक्ष के किसी सदस्य को कुछ कहना है? जज की बात सुनकर ईशा या उसकी तरफ से आए लोग चुप कर जाते हैं और जज के द्वारा उन्हें पूछे सवाल का कोई जवाब नहीं देते । जज अपना प्रश्न फिर दोहराता है और इस बार वो ईशा के पिता को पूछता है । आप ने ये जो आरोप लडके और उसके परिवार के ऊपर लगाए हैं उन सब आरोपों को लडके ने एक एक करके खारिज कर दिया है और उन्हें गलत साबित कर दिया है । इसके बारे में आप कुछ कहना चाहते हैं और अगर नहीं तो ये अदालत इन दोनों का तलाक मंजूर करती है । इसके एवज में ये लडके पक्ष की ओर से क्या मांग रखते हैं । जज की बात सुनकर भाइयों का हौसला बढ जाता है और वह कहता है, जब साहब ये लोग क्या चाहते हैं इसके बारे में उन्होंने पहले ही बता दिया है क्योंकि लिखित रूप में आपके सामने हैं । यह वह चालीस तोला सोना की चाह रखते हैं कि जो उन्होंने कभी खराब में भी नहीं देखा । जब साहब ये वो मछुआरे हैं जो अपनी लडकी को चारे के रूप में हम जैसे भोले भाले लडकों के ऊपर फेंकते हैं और अपने इस चारे के जरिए हम से पैसे मिलते हैं और जब उनका कोई चारा नहीं चलता तो ये भारतीय कानून का सहारा लेते हैं क्योंकि भारतीय कानून लडकी पक्ष की ही ज्यादा तरफ दारी करता है । अब रही फैसले की बात तो फैसला तो हमारा कब का हो चुका था । हम दोनों परिवारों ने मिलकर स्वर्णकार बिरादरी के सहयोग से तलाक लेने का अपना फैसला कर भी दिया था । जिसके तहत मेरे पिता जी को ईशा के परिवार को हर्जाने के रूप में छह लाख रुपये अदा करने का फैसला हुआ था और ये हर जाने के छह लाख रुपये हमने ईशा के शहर के स्वर्णकार बिरादरी के प्रधान के पास आज से सात महीने पहले जमा करवा दिए हैं । आज तो हम यहाँ आकर स्वर्णकार बिरादरी के द्वारा लिए गए फैसले को अंतिम रूप देने के लिए आए थे परन्तु किसी के कहने से या अपनी आदत के मुताबिक इन लोगों के दिमाग में लालच आ गया था जिस कारण उन्होंने अदालत में मेरे और मेरे परिवार के ऊपर बेबुनियाद इल्जाम लगाने शुरू कर दिए । और जिन इल्जामों को मैं पहले ही झूठ साबित कर चुका हूँ जब साहब मैं अब इसके इसके बारे में और कुछ नहीं कहना चाहता हूँ और ना ही में अदालत का और समय बर्बाद करना चाहता हूँ । मेरी आपसे गुजारिश है कि जो फैसला हम दोनों के परिवारों के बडों के बीच बैठकर और स्वर्णकार बिरादरी के सहयोग से लिया है । उस फैसले पर आप अपनी मुहर लगाते हैं । जज ने ईशा की तरफ देखा और कहा, आप दोनों की एक बच्ची भी है । उसके बारे में आपका क्या फैसला है? अदालत ये जानना चाहती है कि उसकी बच्ची को आप दोनों में से अपने पास रखना चाहता है । पैसे बच्ची को अपने पास रखने का फैसला उसकी माँ यानी एशिया के पक्ष में जाता है और अगर वो अपनी बच्ची को अपने पास रखना चाहती है तो अभी अदालत में अपनी रजामंदी जाहिर कर दी । अदालत में उसके साथ पूरा इंसाफ होगा । इससे पहले की शा कुछ कहती वाहनों पहले हि जज को कहता है जब साहब इसने तो अपनी बच्ची को उसी दिन मार दिया था जिस दिन इसने गुस्से में आकर उसे मेरी और फेंक दिया था । ये बिचारी दूधमुही बच्ची सारी रात भूख के मारे रोती रही है और इसमें एक बार भी पलट कर अपनी बच्ची की ओर नहीं देखा । यही नहीं जब उस रात को बीते हुए लगभग दस महीनों का समय हो गया और उस दिन से लेकर आज तक इसने कभी भी अपनी बच्ची का हाल चाल जानने की कोशिश भी नहीं की । जब साहब ये हम जानते हैं कि हमने अपनी बिना माँ की दूधमुंही बच्ची को पाल रहे हैं । मेरी आपसे हाथ जोडकर विनती है की कृप्या मेरी बच्ची को इसके हाथ में न सौंपकर मेरे परिवार के पास ही रहने दें क्योंकि जिस तरह इसकी माँ ने हमें नीचा दिखाने के लिए अपनी बेटी यानी ईशा का गर्भपात करवा दिया था तो इस बात की क्या गारंटी है कि मेरी बच्ची उनके पास सुरक्षित रहे हैं । इसके जवाब में जज कहता है भानु और ईशा के तलाक की सुनवाई लगभग पूरी हो चुकी है । कोर्ट अपना अंतिम फैसला सुनाने जा रही है परन्तु इससे पहले की कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी । अगर किसी को कुछ कहना है तो वह अभी कह सकता है । फैसला सुनाने के बाद किसी भी पक्ष की किसी भी तरह की सुनवाई नहीं सुनी जाएगी । जज की बात सुनकर पूरे अदालत परिसर के अंदर एक खामोशी छा जाती है और तभी जज ईशा के पिता की ओर देख कर अपना सवाल एक बार फिर दोहराता है परन्तु ईशा के पिता इसके जवाब में कुछ नहीं बोलते हैं । किसी के कुछ नहीं बोलने पर जज अपना अंतिम फैसला सुनाता है । वानू और ईशा के तलाक के केस की सुनवाई अब पूरी हो चुकी है । लडकी पक्ष की तरफ से लडके और उसके परिवार पर कई इल्जामात लगाए गए परन्तु लडके ने अपने ऊपर लगाए सभी इल्जामात को बडी सूझबूझ और समझदारी से खारिज कर दिया । क्योंकि इन दोनों पक्षों ने अपना फैसला पहले ही कर लिया है । तो यह अदालत उनके इस फैसले पर अपनी मुहर लगाते हुए ईशा और भानु का तलाक मंजूर करती है और इस फैसले के अंतर्गत भालू के परिवार द्वारा तयशुदा हर्जाने की रकम ईशा के परिवार को अदा करने का फैसला सुनाती है । तभी चेतन बहनों के काम में कहता है कि उन्हें उनके परिवार पर भरोसा नहीं है, ये हम से पैसे लेकर मुकर भी सकते हैं । हम अभी कोर्ट में जज के सामने पैसे देकर इनसे लिखित रूप में एक दस्तावेज ले लेते हैं जिसमें इन्हें हमारे द्वारा पैसे प्राप्त होने के बारे में लिखा हूँ ताकि भविष्य में हमें इनसे कोई परेशानी ना उठानी पडेगी । जब चेतन वालों से बात कर रहा था तो जज उन दोनों की ओर देख रहा था । वो बात की ओर इशारा करता है और पूछता है कि क्या अब कोई परेशानी वाली बात है । इसके जवाब में बहनों अपने बडे भाई यानी चेतन द्वारा कही गई बात उन्हें सुना देता है । तब जज वकील को कहता है कि एक कोरे कागज पर भानु की ओर से ईशा को हर्जाने के रूप में मिले छह लाख रुपए के बारे में लिखें और उस पर ईशा के हस्ताक्षर करवाए ताकि भविष्य में वाहनों के परिवार को ईशा और उसके परिवार की ओर से कोई परेशानी ना उठानी पडेगी । भानु ओडिशा का वकील तलाक के कागजात पर उन दोनों के आखिरी बार हस्ताक्षर करवाता है और साथ में ईशा के परिवार को हर्जाने के रुपये देकर जज की कहीं मुताबिक एक कोरे कागज पर भारत की ओर से मिले रुपये के बारे में ईशा के बयान दर्ज करवाकर सबके सामने उसके हस्ताक्षर करवाता है और इस प्रकार ईशा और भरत दोनों के तलाक का केस समाप्त हो जाता है । उन की चार साल की शादीशुदा जिंदगी का अध्याय आज कोर्ट में समाप्त हो जाता है । बानू और ईशा ये दोनों पात्र आपको कहीं भी किसी भी घर में मिल जाएंगे । वालों की कहानी हर उस शख्स की कहानी है जो की हकलाहट की समस्या से पीडित है । मेरा ये कहानी लिखने का मकसद समाज को हकलाहट के जीवन के बारे में नजदीक से महसूस करवाना था और साथ में ईशा जैसे पात्र के चरित्र को समाज के सामने प्रस्तुत करना था । कहानी का अंत जो कुछ भी हो परंतु जिसमें उस बेचारी तरीका क्या कैसा था फिर उस अजन्में बच्चे का क्या कसूर था । किसी उसकी माँ ने अपनी माँ के कहने पर पैदा होने से पहले ही मार दिया था । अगर ईशा के परिवार वाले चाहते तो वो अपनी लडकी का घर बसा सकते थे । परंतु बहनों के घर अपनी हद से ज्यादा दखलंदाजी करने के कारण वो अपनी बेटी का बसा बसाया घर अपने ही हाथों से उजाड देते हैं । अब सवाल उठता है कि एक माता पिता अपनी बेटी की शादी करके उसके ससुराल में इतनी दखलंदाजी क्यों करते हैं? ईशा के जैसे उनकी बेटी के साथ भी तलाक तक की नौबत आ जाती है । शायद इसके पीछे उनकी मानसिकता ये होगी कि शादी के बाद किसी ना किसी तरह वो अपने दामाद को उसके परिवार वालों से अलग कर सकें और अपनी बेटी को एक अलग घर दिलवा सकें जिसमें उसकी बेटी के जीवन में उसके ससुराल वालों की कोई दखलंदाजी ना हो । ऐसे बेवकूफ लोग इसी में अपनी बेटी का भविष्य तलाश करते हैं परन्तु अज्ञानवश वो अपनी बेटी और दामाद का शादीशुदा जीवन नरक बना देते हैं । उधर भानु और ईशा के तलाक के लगभग चार साल भी चाहते हैं । वाहनों की शादी हो चुकी होती है । एक दिन भानु अपनी पत्नी के साथ अपने किसी रिश्तेदार की शादी में जाता है । उसके साथ उसकी पांच साल की बेटी परी भी होगी । उस शादी में ईशा भी मौजूद होती है । संयोग वर्ष पारी की मुलाकात ईशा के साथ हो जाती हैं । पहले तो वो उसे पहचान नहीं पाती तो जम्मू से भाई के साथ अठखेलियां करती देखती है तो झट से पहचान जाती है । परी के बहनों से दूर जाते ही उसे अपने पास बुलाती है और खूब प्यार करने लगती है । पर ही हैरान होकर ईशा से पूछती है कि वह कौन है और वो उसे ऐसे प्यार क्यों कर रही है । पहले तो ईशा उसकी बात का कोई जवाब नहीं देगी । वो बडी की ओर देखी जाती है । बडी फिर से अपना प्रश्न दोहराती है और ईशा से उसके बारे में पूछती है । वाहनों का दोस्त रोहित दूर से ये सब नजारा देख रहा होता है । ईशा पारी की बात का जवाब देते हुए कहती है, बेटा मैं तुम्हारी माँ हूँ पर ही हैरान हो कर उसकी तरफ देखती है और कहती है कौन सीमा क्योंकि मेरे घर में मेरी माँ है, मेरी चाची हुआ है और मेरी दादी माँ है तो उनको हंसी हो । इससे पहले की ईशा पारी की बात का जवाब देती । रोहित उसे गोद में उठा लेता है और ईशा की बात को टोकते हुए कहता है, परी बेटा, ये तुम्हारी सेरोगेट मां है पर हैरान रह जाती है और रोहित से कहती है अंकल मेरे घर में मेरी माँ है । मेरी चाची मा हैं । मेरी दादी माँ है । अभी सरोगेट मां कौन है? परी के बोले से सवाल के जवाब में रोहित कहता है, पर ये बेटा सेरोगेट मां वो माँ होती है जो किसी की औलाद को जन्म देने के बाद उससे इसके पैसे वसूल करती है । किसी प्रकार इस औरत ने तो उन्हें जन्म दिया और तुम्हारे पिता जी से पैसे ले लिए । रोहित भाई को परिज सौंप देता है और सब वहाँ से चले जाते हैं । दिशा और पारी दोनों एक दूसरे को देखते हुए एक दूसरे की आंखों से ओझल हो जाते हैं ।

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