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फ़लक तलक - Part 7 in Hindi

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AuthorAfzal Shaikh
बाइक पर सवार एक आदमी हेलमेट से अपना चेहरा छुपाए जंगल में शरीर के टुकड़े फेंकते जा रहा है। दूर खड़े काले लिबास में 12 लोग यह सब देख रहे हैं लेकिन कुछ कर नहीं रहे हैं। कौन हैं ये बारह काले लिबासी? काले लिबासी मरने का रहस्‍य ढूंढ रहे हैं, ऐसा क्‍यों? दूसरी ओर एक आदमी अपने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने में लिखाने आया था। पुलिस और काले लिबासी आपस में टकराते हैं, तो अब क्‍या होगा? रहस्‍य और हैरतअंगेज घटनाओं से भरी इस कहानी को सुनें बिना आप नहीं रह पाएंगे।
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तुझे दिल जिगर बना लूँ अपनी नजर बना लो तुझमें हमेशा रहा हूँ तुझे अपना घर बना लो । सुना था की जब चाहत किसी में जाती है तो शेरो शायरी में दिल लगने लगता है । आज कुछ ऐसा ही लग रहा था तो दो चार पंक्तियां अपनी डायरी में लिख कर रख लिया था । डायरी अक्सर मेरे साथ ही रहती थी । कहानियों की प्लाॅट कुछ भी जरूरी थॉट नोट करने के लिए डायरी हेल्प करती थी । दिशा का इंतजार करता मैं खडा घाटकोपर में स्टेशन के बाद आज वो मुझ से फिर मिलने आ रही थी । उसका इंतजार करना भी अच्छा लग रहा था । किसी को चाहना भी कितना अच्छा होता है, अंदर से अच्छा अच्छा सा लगता है । अपनी चाहत को जल्दी देखने का भी दिल करता है । और जब वो अचानक सामने आ जाए तो यही इंतजार करने वाला दिल जोर से धडक भी जाता है और मेरा दिल धडका क्योंकि वह सामने ही थी जामुन रन की सलवार कुर्ती में । गले में सफेद दुपट्टा, माथे पर पतली बिंदी जो सीधी थी और सफेद थी आज वह कल से ज्यादा खूबसूरत लग रही है । खुले बाल दो तीन लडके हैं वो तो ऐसी थी जो बार बार उसके माथे पे आ जाती है और जिन्हें वह बार बार अपने एक हाथ से हटाया करती । मुझे ऐसा लग रहा था कि आज मेरी खाते ही सच कराई । काश मेरा ये अनुमान सही हो काश में कह सको कभी की राइटर साहब को प्यार हो गया । सॉरी आर थोडा लेट हो गई । उसने मुझसे कहा और एक ऑटो को इशारा भी कर दिया और वो भी तुरंत घूमकर हमारे सामने आ गया । बच्चों की दिशा मैं भी थोडी देर पहले आया था । वैसे आज तुम अच्छी लग रही हो । कभी दोनों आटो में सवार हो चुके थे और दिशा ने सुभाषनगर का इंस्ट्रक्शन दे दिया । और तो सडक पर दौड चुका था की आवाज है सीख रहे हो । लटकर ना घट फॅस प्लॉट नहीं कर रहा कल थोडा शर्म आ गया था । फॅमिली लडकियों से कभी बात नहीं किया जाता है । तुमसे मिलकर थोडा सीख रहा हूँ । मैंने कुछ कम्बल होते हुए जवाब दिया कुछ ने देखा और मुस्कुराया हिट हो चुके हैं तुमसे मैंने कल कहा था कि एक जगह ले जाउंगी, हम नहीं जा रहे हैं डेट पर नहीं । उसके डायलॉग से एक चीज क्लियर हो गई थी कि फिलहाल उसके मन में वैसा कुछ नहीं है जैसा मेरे मन में खैर उम्मीद पर दुनिया का और ये उम्मीद कुछ नया ही एक्सपीरियंस दे रही थी । सडक पर ऑटो अपनी स्पीड में था और अचानक दिशा ने उसे रुकने को कहा । ऑटो जैसे ही रुका, सडक के किनारे खडे एक ठेले वाले से दिशा ने एक किलो एप्पल लिया और रिक्शा फिर आगे बढ गया । क्या हुआ हम अस्पताल जा रहे क्या अस्पताल अस्पताल क्यूँ तो किसी के घर नहीं तो एप्पल को देखकर तुम क्या जेब से सवाल क्यों कर रहे हो? वो हस पडी थी उसको अपने पास अपने साथ पाकर अच्छा लग रहा था । काश मेरी किस्मत खुल जाएगा और वह हमेशा के लिए मेरे पास मेरे साथ हो जाए । आज जो शायरी मैंने लिखी थी मैं उसे सुनाना चाह रहा था । लेकिन कॉन्फिडेंस बस कुछ दशमलव ही बढा था जो काफी नहीं था । अरे इंसान फ्रूट्स कहीं और और किसी और के लिए भी तो ले सकता है ऍम लेकिन हम जाता रहे हैं तुम्हारे लिए जा रहे हैं । उसने जवाब दिया कोई सरप्राइज ऐसा लग रहा था मैं रह रहकर कनखियों से उसे देख ले रहा प्रोफाइल में तो वह और भी संदर्भ में कभी कभी सोचता हूँ कि जिसने इतनी प्यारी सूरत बनाई वो भगवान कितना प्यारा होगा और तो रुका हम बाहर आ रहे हैं । ऑटो का बिल भी उसी ने दिया । अरे मैं दे देता हूँ तो मैं मैं लाई हूँ । हम सडक पर थे । आस पास कुछ बिल्डिंग थी जो अभी पूरी तरह बनकर तैयार भी नहीं थी । बस अपनी मंजिल पांच मिनट की दूरी पर है । थोडा वॉक करना पडेगा । हम साथ साथ चलने लगे थे । तुम ज्यादा बोलती नहीं हूँ । इतनी खामोशी है तुमने । खामोशी अच्छी नहीं लगती मुझे । बस अब ये आदत बनती जा रही है क्योंकि बचपन की लत है जल्दी नहीं जाएगी । अजीब सा जवाब था उसका मानव इशारों में वह कोई कहानी बता रही हूँ । थोडा अनकम्फर्टेबल भी हुई थी वो मेरे सवालों का बिल अच्छा तो शायरी पसंद नहीं बिल्कुल नहीं क्योंकि बस ऐसी हाँ कहानियाँ पसंद है । हम अब एक बडे से बंगले के पास जा चुके थे । गेट पर खडे हो कर दिशा ने मुझे बंगलो की तरफ देखने को कहा । आ गयी अपनी मंजिल मैं चौंक गया । वो एक वृद्धाश्रम था मेरी मंजिल कल तो मुझसे मेरी कहानी पूछ रहे थे ना यहाँ तुम्हें मिलेगी कहा चलो अंदर चलते हैं मैं हैरान था कंफ्यूज वो आगे अन्दर की तरफ बढ चुकी थी और मैं उसके पीछे । चारों तरफ यहाँ वहाँ मजबूरी होते थे । बीमार और उदास सबके चेहरों पर मैं कोई ना कोई दर्द की खानी पड रहा था लेकिन इससे पहले मैं कहानियों को बडे करीब से पढ लेता था । मुझे ये खूबी थी मैं कहानी सोच कर रही देखकर लिखने का था । जी हाँ मैंने कल चीज मैं नकल करता था समाज में हो रही घटनाओं की मैं नकल करता था । लोगों की उदासी मैं लोगों के दर्द को ढूंढता भी नहीं था । अक्सर मुझे मिल जाता था कपडों का बाजार गमों का मेला ढूंढना नहीं पडता है । आज चारों तरफ डिप्रेशन, दर्द, तन्हाई, उदासी, बेचैनी, झूठ, फरेब, धोखा, कत्ल, बेईमानी है और इन सब के पीछे कोई न कोई कहानी है जिनपर गुजरी है । उनके चेहरे अपनी कहानी की परछाई दिए खुद घूमते हैं और जब किसी कहानीकार की नजर उन परछाइयों पर पडती है तो वो उसे पढ लेता है । लिखने के लिए पढना जरूरी होता है । अगर आप पढ नहीं सकते तो यकीन मानी आप लिख नहीं सकते । यहाँ मैं ए प्लस बी का कोर्स कर पडने की बात बिल्कुल भी नहीं कर रहा । लोगों की जिंदगी पडने की बात कर रहा हूँ ये एक वृद्धाश्रम था । मेरी नजर जहाँ भी जा रही थी, हर तरफ बूढी माय नजर आ रहे हैं । किसी को एक मानसी नहीं यहाँ इतनी सारी मांगें मेरी माँ नहीं थी तो तब गुजर चुकी थी जब मैं सिर्फ एक साल का था । वहाँ की वैल्यू मैं समझता था और यहाँ मैं हर एक माँ की आँख में हरेक माथे पर तो आँखों की लकीरे देखा था । हैरान था कि इतनी सारी माएं इस धर्मशाला में क्यों हैं? बच्चे माँ बाप के होते हैं, देखा सुना है यहाँ तो मई बिना बच्चों के पर क्यों? मेरे सवाल का जवाब मुझे मिलने वाला था । मुझे एक कहानी मिलने वाली दिशा के साथ में धर्मशाला में जाते हैं और उसी के साथ मैं उस आश्रम के कैंपस की दाई तरफ बने एक कतार में दस घरों में से एक घर में दाखिल हुआ हूँ । मैं यहाँ कमरा भी लिख सकता था लेकिन घर इसलिए कह रहा हूँ जहाँ माँ होती है वहीं घर होता है । कहने वाले तो ऐसे घर को जन्म दिया है । दिशा मुस्कुराते हुए उस घर में दाखिल हुई थी । मैं भी साथ था । घर के पीछे वाली दीवार की खिडकी पर कोई खडा था एक बूढी और होगी कोई पचास पचपन की जैसे बाकी बुजुर्ग औरतें बाहर थी वैसे ही ये भी थी । मुझे इस समय दिशा पर बहुत ही गर्व महसूस हो रहा हूँ । मैंने अपने लिए एक अच्छी लडकी का चुनाव क्या वोट देकर थोडी चुना था । दिल से चला रहे हैं । लेकिन ये गर्व का शीर्षा अगले कुछ देर में चकनाचूर होने वाला था । हाँ, दिशा ने उस बूढी औरत को माँ कहकर पुकारा कितनी संस्कारी थी मेरी लोगों को इस सब देती थी और वो भी ऐसे शब्दों से दिल भरा इस माँ शब्द में ही इतनी करुणा और प्यार भरा है की किताबें कम पड जाएं । लिखने और पढनी वो बूढी औरत पलटी सिर्फ बालों में सभी दी थी । चेहरे पर कोई झुरियां नहीं । काफी मेंटेन रखा था उन्होंने । लेकिन चेहरे पर दिखती उदासी को वो मेन्टेन नहीं कर सकते । चेहरे पर दिखता दर्द मैं साफ देख पा रहा । दिशा को देख कर खुश हो गई थी । पास आई और दिशा से मुस्कुराकर उन्होंने पूछा ये कौन है? बेटा हाँ, ये मेरा दोस्त हैं । कुशल शुक्र है । उसने दोस्ती को भूल किया । अच्छा नाम है यानी कि टैलेंटिड क्या टैलेंट है? हाँ ये कहानी लिखता है । बॉलीवुड राइटर बनना चाहता है । एक्शन लिखते हो या सच्ची कहानियों को कागज पर एक करते हो । उन्होंने सवाल मुझ से पूछा, मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया, मेरी कहानी झूठ हो सकती हैं लेकिन झूठी नहीं । गुड तुम्हें तो बुक लिखना चाहिए । इस तरह की लाइन्स बुक राइटर लिखते हैं दिशा ने एप्पल उनके हाथों में था । हाँ, वो सामने कोने में पडी चारपाई पर बैठे हाथों से हम दोनों को भी इशारा किया । हम दोनों भी उनके दायें बायें जाकर बैठे । हाँ, इसे मैं इसलिए नहीं होता कि किसी कोई कहानी मिल सके । जिंदगी एक कहानी तो बन चुकी है लेकिन मेरी कहानी में तुम्हें दर्द किसी का कुछ नहीं मिलेगा । और तुम्हें जाना है फिल्मों में, फिल्मों में आजकल हंसी बिकती हैं । आंसू नहीं देखते हैं । आंसू खरीदने वाला कोई नहीं क्योंकि दुख और आंसू सबके पास । और जो चीज लोगों के पास पहले से ही है, वो लोग क्या देखेंगे और क्यों खरीदेंगे? उस बुजुर्ग ने बहुत सटीक बात कही । ऐसा लग रहा था वह कोई लेखक ही है । हाँ डी मोटिवेट मत करो । कुशल को ठीक है बाबा कहानी का हो जाएगा तो ये बता रोहन कैसा है? उसकी तबीयत ठीक हुई ना । जिस सगे बेटे ने अपने सौतेले पिता के साथ मिलकर आपको घर से बाहर कर दिया । आप उस की भी फिक्र क्यों करती है? दिशा नाराज होते हुए मैं शोक था और वो बूढी उदास हो गई । मैं हैरान इस बात से था कि क्या दिशा जो कह रही थी वो सच था? कौन थी ये बोल दिया बेटा उसका ब्रेनवॉश किया गया है । वो ऐसा नहीं था । वो मुझसे प्यार करता था । वैसे ही जैसे तुम करती हूँ । उन दोनों की चिंता मत किया करो । आप बस आशीर्वाद दो मुझे की मैं जल्दी ही कुछ ऐसा करो कि एक घर ले सकूँ । फिर हम दोनों साथ में रहेंगे । मुझे मेरे पिता के साथ नहीं आपके पास रहना । वो बूढी औरत के गले लगकर होने लगी थी । नहीं, इस इमोशनल सीन को देखकर अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा था की दिशा है कौन? मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा था । ये बूढी औरत दिशा की माँ थी । मुझे लगा था कि वो उन्हें उम्र की तक आ जी से माँ को कर रहे हैं । हैरान हुआ मैं ये देखकर की दिशा की माँ धर्मशाला में क्या है? उनकी बातों से लग रहा था कि घर के अपनों नहीं घर से निकाल दिया । कोई बेटा इतना निर्दयी कैसे हो सकता है? और और दिशा उसे क्या मजबूरी थी जो उसकी माँ को इस तरह लावारिस जिंदगी गुजारनी पड रही थी । बेटा तो रोते हुए अच्छी नहीं लगती । दिशा की माँ ने उसे चुप कराते हुए दिशा अपने आंसू पहुंचती हुई मेरी तरफ देख रही थी । शायद वो असहज महसूस कर रहे हैं । मुझे उनके इस मामले में कुछ बोलना जम नहीं रहा था । आप लोग बातें कीजिए मैं बाहर टहल लेता हूँ । मैंने कहा करीब रुखों बाहर जाओगे तो कहानी कैसे समझोगे? मुझे रोक लिया उन्होंने दिशा की बूढी माने बैठने का इशारा किया । मैं बैठ गया और फिर मुझे दिशा जिस लिए ली गई थी वो होना शुरू हुआ । दिशा की माँ की कहानी उन्हीं की जुबानी सुनने लगा था । दिशा की माँ जिनका नाम सुषमा देवी था । उनके पहले पति एक कार एक्सिडेंट मे गुजर चुके थे और जब ये हादसा हुआ था तब सुषमा जी का बेटा रोहन दस साल का रोहन को पालने के लिए सुषमा जी के पास कमाई की कोई साधन नहीं । गरीबी नहीं, दुखों का पहाड से पर डाल दिया और वह पहाड था । उनकी सुंदरता एक खूबसूरत विद्वान खुद को मर्दों से बचाते हुए हैं । अपने इकलौते बेटे को पालना चाहती थी । वो चाहती थी कि उसकी आबरू पर कोई आंच ना । और इसी संघर्ष के दिनों में सुषमा जी की मुलाकात एक आदमी से हुई जिसका नाम था अधीर शर्मा । अधीर शर्मा की एक बेटी है पांच साल जिसका नाम था दिशा । दिशा की माँ भी कार एक्सीडेंट में भगवान को प्यारी हो चुकी है । अधीर के लिए बिन माँ की बेटी को पालना मुश्किल हो रहा है लेकिन उनके सामने सुषमा जी की तरह कोई गरीबी का टेंशन नहीं था । दौलत की कोई कमी नहीं है । वो दौलत के जरिए कुछ भी खरीदने की ताकत रखते । अधीर शर्मा को एक दिन आइडिया आया हूँ की अपनी दौलत के दम पर दिशा के लिए एक माँ तो खरीदी सकते हैं । बडी बेकार टाइप की सोच के महाना तो देख सकती है और ना ही कोई माई का लाल किसी माँ को खरीद सकता है । ये और बात है कि अपने देश में लोगों की संवेदना खत्म होती जा रही हैं । दिल्ली के शाहीन बाग में सी ए और एनआरसी को लेकर बूढी माय देश की बेटियां बहने प्रोटेस्ट कर रही है और सरकार के समर्थक उन्हें ट्विटर पर बिकाऊ औरतें कहकर भद्दे पोस्ट कर रहे हैं । चाय सुनेंगे ऐसा ही नहीं है कि सर्दी की इस कडकती ठंड में कोई अपनी एक साल के दूध पीते बच्चे को लेकर सिर्फ पांच सौ के लिए कैसे बैठ सकता है । एक माँ तो कभी नहीं बैठक महिलाओं की इज्जत करना उन्हें तो आना ही चाहिए जो भारत को माँ का दर्जा देते हैं । और फिर अधीर शर्मा ने एक अटपटा सा इश्तिहार दिया ऍम चला गया जिसमें कहा गया कि एक माँ की जरूरत है । तीन साल की बच्ची को पालने के एक होनहार औरत की जरूरत है । वो मांगी सैलरी दी जाएगी । ये कैंपेन कामयाब और दिशा की परवरिश के लिए माँ की कतार लगी । ऍम को फाइनल करने की जिम्मेदारी अधीर शर्मा के मैनेजर पंकज रावत की थी । पंकज रावत एक अच्छा और सब जानता हूँ । उस की सोच दुनिया से अलग नहीं । वो लालच और स्वार्थ को कभी भावनाओं में मिक्स नहीं होने देता हूँ । वो भाग लेता था कि कौन स्वार्थी हैं और कौन जरूरत है । उसे पता था की दिशा को वही बेटी समझेगी । जो भारत जरूरत बनी है वही और अधिक किराये की माँ बन सकेगी । जिसके अंदर सच में ममता है, रोज दसियों औरते रिजेक्ट हो रही है ठीक उसी तरह जैसे भारत के शाहीनबाग और पटना के सब्जी बात की । माय सी और एनआरसी को टीचर करेंगे पंकज रोज ॅ और रोज माइंड फेल हो रही है । लेकिन एक दिन एक ऐसी मां जिसे पंकज के फेल करने से पहले तीन साल की दिशा नहीं पास दिशा जिसने अभी बोलना शुरू किया था वो उस बत्तीस साल की औरत की गोद में जाकर ऐसे बैठ नहीं जैसे वही उसकी सकीम । उस औरत का नाम सुषमा देवी था । पंकज ने सुषमा देवी को दिशा की माँ के लिए शॉर्ट लिस्ट है । सुषमा देवी को जरूरत थी एक मौका ताकि वो अपने बेटे रोहन को पांच सके जो उन्हें अब मिल चुकी । उन्हें खुशी थी कि जो काम मिला है वो उनकी सुकून का बेटा तो खानी । अब उन्हें बेटी मिलकर जिंदगी की जब भरने की उम्मीद का बस एक और ऍम और वही हाल था । दिशा के पिता की नजरों में फाइनल अधीर शर्मा ने जब पहली बार देखा सुषमा देने को तो दिशा की तरह वो भी उस औरत की कायल हूँ । उसकी खूबसूरत चेहरे और उसकी सीधे थी । उन्होंने भी सुषमा देवी को दिशा की माँ के दौर में फाइनल कर रहने के लिए घर मिल गया और सुषमा देवी, रोहन के साथ अधीर शर्मा के घर आना है । करीब एक साल तक वो किराये की माँ बंद कर रहे हैं । इस बीच अधीर शर्मा को सुषमा देवी से प्रेम हो गया और ये होना स्वाभाविक क्योंकि पहले दिन ही अधीर शर्मा उनकी तरफ अट्रैक्ट हुए थे । बस अपने प्यार के इजहार में उन्होंने एक साल लगा दिया । एक दिन अधीर शर्मा ने सुषमा देवी से शादी करेंगे और अब सुषमा दिशा की किराये वाले माना सुषमा देवी को अब सब कुछ मिल चुका हूँ । एक अमीर पति, एक सुंदर सी गुडिया जैसी बेटी और एक राजदुलारा बेटा तो पहले से था । जिंदगी अच्छी से अच्छी गुजरने है लेकिन किस्मत की स्क्रिप्ट में कहानी कुछ और थे । अधीर शर्मा रोहन के करीब होने लगेंगे और रोहन भी वहाँ से ज्यादा अपने इस नए पिता से लगाव रखते हैं । उसकी परवरिश में कुछ अलग ही अंदाज आने लगा । पैसों की तैश और अमीरी कारोबार बचपन में हीरो हमको दिलो दिमाग में दाखिल होने जो कि सुषमा का गुण बिल्कुल नहीं था । ये चीजें वो अपने सौतेले पिता, अधीर किसी जब की दिशा दिशा में सूचना के गुण दाखिल हो रहे हैं । कोई एक सच्चे इन्सान वाली परवरिश पा रही थी । दिशा माँ के करीब और सगे पिता से दूर हो और बेटा सभी वहाँ से दूर और सौतेले पिता के करीब बडी अजीब विडंबना हो रही है । अपने अपनों से दूर हो रहे हैं और वो भी अपनों द्वारा दी जा रही परवरिश, रोहन पूरी तरह अधीर शर्मा जैसे विचार दिशा पूरी तरह सुषमा देवी जैसी सोच रहे हैं । दोनों आप बडे हो चुके हैं । दिशा सत्रह साल पूरा करके और रोहन पच्चीस सुषमा देवी के बालों में सबसे दिया चुकी थी । जबकि अधीर शर्मा अब भी जवान देखते हैं क्योंकि उन्होंने अपने फिटनेस का हमेशा ख्याल रखा वो फिट बस उनकी सोच का दायरा थोडा उनकी अमीरी के घमंड का वायरस अब रोहन में खुश हूँ और इसी वायरस को निकालने की जब भी कोशिश माने की तो दूरियाँ पडती है । इनकी कहानी और जिंदगी में सबसे खतरनाक कृष्ट तब आया जब वर्षों बाद एक राज अतीत कर उस राज के खुलने से विश्वास और उम्मीद की बच्ची कुछ डोर टू अधीर शर्मा ने बरसों से एक जासूस लगा रखा था । अपनी पहली पत्नी के फॅमिली उस जासूस का नाम था करेंगे करण ने दिशा की सभी वहाँ । आरती देवी जो पंद्रह साल पहले एक एक्सीडेंट चल बसी थी । उनके एक्सीडेंट पर बरसों तक जासूसी करके जो रिसर्च तैयार की तो काफी चौंका देने हैं । आरती देवी का उस समय का आदमी के साथ अफेयर चल रहा था और एक्सीडेंट वाले दिन वो उस आदमी के साथ ही अधीर शर्मा को दिशा की असली माँ भारती देवी धोखा दे रहे हैं । वो अधीर से बेवफाई कर रही है । वजह तो सिर्फ आरती देवी ही बता सकती थी जो कि अब इस दुनिया में नहीं इस घर पर एक बार फिर से बिजली गिरने वाली थी । वो भी परसों बात । रिश्ते बिखर जाने वाले थे क्योंकि अतीत का काला साया अपनी मनोज छाप छोडने वाला था । सुषमा देवी का पहला पति राजेश्वर जो बरसों पहले एक्सीडेंट में मर चुका था, आज उसकी भी परछाईं, उसका भी अतीत अपना पर्दा उठाने वाला था । करण ने जो सबूत इकट्ठा किए थे उसके अनुसार दिशा की पहली माँ आरती देवी का, फिर लोहन के पहले पिता राजेश्वर से एक्सीडेंट वाले दिन आरती और राजेश्वर साथ और एक्सीडेंट में साथ मारे आनंद फाइनल में लाशें अलग अलग समय में अलग अलग जगह मिली थी, जिसके कारण लोगों को उन का एक साथ होना बताना चाहूँगा । ये रहस्य सामने आते ही अधीर शर्मा पागल हो उन से ये बात बर्दाश्त नहीं हो रही थी । उनका दिशा की इस माँ सुषमा देवी से रोज झगडा होने लगा । वो सुषमा को जिम्मेदार मानने लगे कि अगर तुमने अपने पहले पति का ध्यान रखा होता है तो शायद दूसरी औरत की तरफ ना जाता । अधीर शर्मा ये आरोप लगाने लगे कि सुषमा के पहले पति नहीं अधीर की घर गृहस्थी बर्बाद । यह इल्जाम काफी दिल दुखाने वाला था । सुषमा अंदर से टूट चुकी । उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने पहले पति को बेवफा कहे या आज के पति से लडे की उनका पहला पति सही था । प्रॉब्लम अधीर की पहली पत्नी आरती में भी दुखों और रास्तों का दौर फिर से आ चुका था । सुषमा देवी अब अकेले में गुम से रहेंगे । दिशा को ये सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था और फिर एक दिन दिशा ने सोच लिया कि इस दुखों से निकलने का एक ही उपाय और वह है अपने पिता से बातचीत । दिशा ने अधीर शर्मा को एक दिन पूछ लिया कि आखिर माँ की क्या गलती है? इस माने तो अपने पति राजेश्वर को उकसा नहीं होगा । गलत तो इनके साथ हुआ । आपकी पत्नी आरती देवी ने मेरी इस माह के पति राजेश्वर को अपने जाल में फंसाया और फिर उनके साथ विश्वासघात हुआ । एक्सीडेंट में दोनों मारे गए क्योंकि की तरफ था अधीर शर्मा के पांव तले से जमीन के सकते ये देखकर दिशा उनकी अपनी बेटी उनसे बहस कर रही है । अधीर शर्मा अपनी बागी बेटी के इस रूप को देखकर इसका जिम्मेदार सुषमा को समझना नहीं । अधीर शर्मा अब गुस्से में आ चुके थे । वो सुषमा देवी से रिश्ता तोड लेना चाहते हैं । वो एक पल भी सुषमा देवी के साथ रहना नहीं चाहते हैं और फिर उस दिन उन्होंने सुषमा देवी को घर से चले जाने को कर दिया । सुषमा देवी का ये समय उनके जीवन का सबसे खराब सकता क्योंकि अधीर ही नहीं बल्कि उनका सगा बेटा रोहन भी अपनी माँ के खिलाफ था । वो भी यही कह रहा था कि आपने अगर ध्यान से मेरे पहले पिता का ख्याल रखा होता है तो किसी के पास नहीं जाते । आज वो जीवित होते हैं । दिशा अपनी इस माँ के लिए पिता से लडी तो थी लेकिन सुषमा देवी ने हाथ जोडकर दिशा को घर न छोडने के लिए तो किया था और खुद महिला आश्रम में आ गई थी ।

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