Made with in India
मेरा नाम कुशल है । मेरे भाई और पिता मुझे स्टोरी बात भी कहते हैं और ये मुझे अच्छा भी लगता है । मैं हूँ तो सिर्फ अठारह वर्ष का लेकिन मेरे अंदर के लेखक ने मुझे समय से पहले पूरा बना दिया है । पूरा इन द सेंस । मेरी बातों में मेरे उच्चारण में मेरी सोच में मेरे तर्क में बडप्पन आ गया है । मैं अपनी उम्र से ज्यादा बोलने और समझने लगा हूँ । यू समझे जैसे कोई पांचवी क्लास का बच्चा दसवीं क्लास की किताब पर टिवेट कर रहा हूँ । जिस उम्र में लोग कॉलेज, सिनेमा, प्यार, मोहब्बत, मोबाइल, इंटरनेट और ऐश की चक्कर में पडे होते हैं । मैं अपने विचारों में देश, दुनिया और समाज की समस्याओं को लेकर परेशान रहता हूँ । मुझे एक लेखक है जो मुझे और उसे अलग करता है । शायद इसीलिए मैं भीड में भी खुद को तनाव पाता हूँ । ऐसा नहीं है कि मैं सच में तनाव बाहर से तरह हूँ लेकिन अंदर से मेरे अंदर एक भीड है जो हर समय मुझे ये एहसास करती है कि मैं अकेला नहीं हूँ । ये भीड शब्दों की है । मेरे अंदर के शब्द मेरे दोस्त हैं जिनका कोई चेहरा नहीं जिन्हें मैंने देखा नहीं है । लेकिन हर समय इन्हें मैंने महसूस किया है । शब्दों की रोशनी के सहारे मैं वाक्यों की पगडंडी पर चला करता हूँ । ये वाक्यों के रास्ते मुझे हमेशा नए विचारों की मंजिल तक से आते हैं और शायद यही वजह है कि मैं अक्सर एक नई खुशी को महसूस करता हूँ । लेकिन ये विचारों का मंथन मेरे जीवन की दिशा और दशा बदल देगा, इसका मुझे कुमार तक नहीं था । अपना छोटा सब के लिए मैं आज रात दस बजे दादर सर्कल से थोडी दूर एक फुटपाथ पर बैठा हुआ था । पूरा दिन प्रोडक्शन हाउस के चक्कर काटकर थक हारकर मैं इस नई जगह का रुक गया था । क्या करता हूँ? कोई ठौर ठिकाना नहीं था । पहली बार में घर से बाहर था । पिताजी और भाई दोनों नाराज थे । न जेब में पैसे थे और नहीं कोई रास्ता जिससे मैं अपने रहने की व्यवस्था करना था । ऐसा नहीं है कि उस फुटपाथ पर मैं अकेला था और भी कुछ लोग थे । चरसी गरदुल्लों भी थे, जो फुटपाथ पर फैल कर सो रहे थे । मैं दुखी था, इसलिए कहीं शून्य में खोया हुआ था । लेकिन एक तरफ से आती दो भिखारियों की आवाज मेरे कानों से टकरा रही उसी उत्पाद पर मुझ से थोडी दूर पर बैठे वो भिखारी अपने भविष्य को लेकर मुझ से भी ज्यादा चिंतित थे । वो आज देश में चल रही कैब और एनआरसी की बहस पर बहस कर रहे हैं । एक का दुक्का वाहनों का शोर था । बस बाकी सिर्फ शांति थी । मुझे अस्थमा । इसलिए दूसरों के मुकाबले मुझे थोडी कम साल हैं । जेब में पडा स्प्रे भी खत्म होने वाला था । मैं अपने सर्वाइवल की फिक्र में था । ऊपर से उन दो भिखारियों का राष्ट्रवाद को लेकर डिबेट मेरी शांति को भंग कर रहा था । राष्ट्रवाद जिसमें नहीं वो देश भक्त नहीं । एक भिखारी ने दूसरे से कहा लेकिन पता कैसे चलेगा कि कौन राष्ट्रवादी है और कौन नहीं पता चलेगा क्या पता है देश की जनता जान चुकी है इसीलिए तो नहीं सरकार आई है । सत्तर साल से जिन सापों को छूट दी गई, उन्हें ठीक करेंगे । सरकार खाते यहाँ का हैं, गाते पाकिस्तान का है । जैसे वर्मा से भगाए गए, वैसे भारत से भी नहीं निकाल दिया जाएगा । कितना बडा दोगला है भाई तू मुस्लिम इलाकों में जाकर भीख मांगता है । भीख मांगते समय मंदिर और दरगाह में फर्क नहीं करता और साले यहाँ के अपनी घृणा को जाहिर करता है । ये घृणा नहीं, इन जिहादियों का तिरस्कार है । तुम जैसे तथाकथित सेक्युलर लोग तब क्यों नहीं बोले जब कश्मीरी पंडितों को ये चर्चा हुई रही थी कि मुझ से रहा नहीं गया और मैं बोल पडा बंद करो यार, तुम्हारी सब बकवास शांति से बैठने दो । वो दोनों हाथ बडा गए । मुझे गौर से देखने लगे । जब उन्होंने मुझे अजनबी पाया तो उनमें से एक टन गया ये जगह हमारी और तो हम कोई लडका है । कौन है बे तू मैं कोई भी हूँ, इससे तुम दोनों को कोई लेना देना नहीं है । शांति से बैठ नहीं तो ये जो तुम लोग बहस करके इस फुटपाथ को विधानसभा बनाए बैठे हो, उससे मेरे सर में दर्द हो रहा है । तेरी सर में दर्द होता है तो होने दे हमको क्या तो चला गया यहाँ से । हम तो हमारी डिपेंड नहीं करेंगे । ये फुटपाथ, हमारा लोकसभा, विधानसभा, मंत्रालय, स्टूडियो सब कुछ है । यहाँ ऐसा ही करते हैं । चल निकल दूसरे भिखारी ने ताल दिखाया । मैं चाहता तो उन दोनों को सही जवाब दे सकता था । मुझे उनसे कोई पर्सनल दिक्कत नहीं हुई थी । लेकिन राष्ट्र को लेकर आज चल रही समाज में जो बकवास है, मैं उससे इत्तेफाक नहीं रखता । जब कभी ऐसी बातें में सुनता हूँ तो मुझे चिढ और गुस्सा आता है । मैंने सोचा उन दो भिखारियों को जवाब दूँगी लेकिन अचानक कोई वहाँ खाया और उसने उन दोनों को ठीक कर दिया । दिनभर लोगों से सब भीख मांगते हो, शाम को कमाए हुए पैसों में से दारू और चरस पीते हो और इधर आके देशभक्ति जानते हो तुम्हारे बाप का है क्या बे फुटपाथ ये एक दुबला पतला बडे बालों वाला लफंगे जैसा दिखने वाला शख्स मेरी वकालत में आया था । इसी देखते ही वह दोनों भिखारी थोडी डर गए और मेरी तरफ से मुंह घुमा लिया । उनके हावभाव से लगा कि वह सरेंडर कर चुके हैं । एक ही सेंटेंस में उनकी देशभक्ति छू हो गयी थी । हाँ तो कौन है तो कुशल कुशल नाम है मेरा । मैंने जवाब दिया रघु रघु चोर बोलते हैं मुझे बगल में बैठे हुए वो बोला उसके शरीर से अजीब सी बदबू आ रही थी । माना कई दिनों से नहीं आया नहीं होगा । कितनी बदबू आ रही है तुम्हारे शरीर से नहीं तो नहीं हो गया । अरे नहा के किसका भला हुआ? मान साफ रहता नहीं । पब्लिक का तन साफ करने का मतलब क्या है? अपने को ना आए हुए नौ दिन हो गए । भाई होने के पैसे लगते हैं । ऊपर से दस दिन से कुछ खास धंदा भी नहीं हो पा रहा । लोगों के पर्स में सौ पचास ज्यादा होता ही नहीं । जब से सरकार आई है तब से चोरी का भी धंधा मंदा हो गया । उसने ऐसे स्पष्टीकरण दिया जैसे चोरी काम है, एक बिजनेस है और सही है चोरी करना । बुरी बात नहीं लगता तो मैं भूख लगती है । बस और कुछ लगने से कुछ नहीं होता । उसने सरपट उत्तर दिया । मेरे बैग को देखते हुए अब उसने प्रश्न किया घर से भाग आए । क्या मैंने कोई उत्तर नहीं दिया क्योंकि उसका ये प्रश्न मुझे उदास करने वाला था । लोगों के पास घर नहीं इधर फुटपाथ पे रह रहे हैं और एक तो है जो घर छोडकर इधर आके बैठे । मैं फिर खामोश । मेरी खामोशी को ही उसने मेरा जवाब समझ गया । उसने जान लिया कि इस समय मैं उसे अपने जख्म दिखाने के मूड में नहीं । मैं उदास था और मेरी उदासी को उस गंदे कपडों वाले बदबूदार छोडने देख लिया था । तो ये जान गया था की मैं अंदर से तकलीफ में हूँ । मुझे कोई दुख है । उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और पूछ बैठा खाना खाया । उसके इस प्रश्न का भी मेरे पास कोई उत्तर नहीं था । था भी तो मेरी खुद्दारी ने मेरे होठ सील दिए थे । सुबह से भूखा प्यासा, गोरेगांव और अंधेरी के चार पांच फिल्म प्रोडक्शन हाउस की चक्कर लगाने में ही जो थोडे बहुत पैसे थे तो खर्च हो चुके थे । चल कुछ खा कर आते हैं । अपनी जगह से उठते हुए उसने कहा मैंने उसे ध्यान से देखा । उस करने से अजनबी में एक नई दोस्ती का रिश्ता नजर आया । खुद को मैं रोकना सका और उसके साथ हो लिया तो मुझे अपने साथ पावभाजी के ठेले पर ले गया जो थोडी दूर पर स्टेशन के पास ही था । रात के ग्यारह बजे तक ऐसी ठेले वालों की धन दे । मुंबई में अक्सर स्टेशन के आस पास मिल जाते हैं । खुद भी उसने जमकर खाया और मुझे भी पेट भर उसने पेट पूजा करवाई । भूख तो जा चुकी थी लेकिन चिंता बरकरार नहीं । हम फुटपाथ पर फिर से आ चुके हैं । रघु से अब इतनी दोस्ती हो चुकी थी की मुझे इस फुटपाथ पर अब ठिकाना मिल चुका था । मुझे यहाँ सोने बैठने से अब कोई रोकने वाला नहीं था । रघु ने बताया था कि महीने के पचास रुपये प्रति व्यक्ति इस उत्पाद का बीएमसी वालों को डिपॉजिट या भाडा देना पडता है । कभी कभी पांडू लोग भी तंग करते हैं । पांडु यानी मुंबई पुलिस । रघु ने तीन चार विजिटिंग कार्ड भी दिया था । ये बिजनेस कार्ड से पर चुराने से मिले थे, जिसमें कुछ प्रोड्यूसर के फोन नंबर थे । अगले दिन मुझे इन्हीं नंबर्स को फॉलो करना था । गटर पर बने हुए फुटपाथ पर मैंने रात ऐसे कैसे गुजारी और अगले दिन ये नहीं । सूरज की रोशनी से अपने उम्मीदों का चेहरा धोकर मैं फिर से प्रोडक्शन हाउस के चक्कर लगाने नहीं था । मुझे किसी भी हाल में बॉलीवुड में एक फिल्म राइटर के तौर पर घोषणा था और अपनी कहानियों को दुनिया के सामने लाकर खुद को साबित करना था । मुझे अपनों की नजर में खुद को प्रूव करना था । मुझे एक सिनेमा राइटर बनना था । चार । बंगला लोखंडवाला, अंधेरी के तीन चार प्रोडक्शन हाउस की चक्कर आज भी पूरा दिन काट कर कोई फायदा नहीं है । किसी को भी नए राइटर से बात तक करने का समय नहीं । संघर्ष के इस मौसम में मैं खुद को उदास नहीं रखना चाहता हूँ । लेकिन खाली जीव और अपनों द्वारा ठुकराया इंसान परेशान तो रहता ही है । पूरा दिन घूम फिर कर मैं उसी दादर वाले फुटपाथ पर लौटा था । ऐसा लग रहा था मानो यही मेरा रैनबसेरा पड गया । रात की ग्यारह बज चुकी थी और रघु नजर नहीं आ रहा था । उन दो भिखारियों की डिवेट पहले से चले जाएँ । उनसे बात करने का मन नहीं कर रहा हूँ । लेकिन रघु की जानकारी लेने के लिए मुझे उनसे बोलना ही बडा रघु नहीं आया । अभी तक हम भिखारियों की बद दुआ लगी । उसको पुलिस ने पकड लिया । चोरी करते हुए महीना भर के लिए गया अंदर जब देखो हम पर पटेली दिखाता है । साला पटेली मुंबई की भाषा में दादा किसी को कहते हैं । उनमें से जब एक ने न्यूज बताया तो मुझे सुनकर बुरा लगा । ताजी ताजी दोस्ती और ऐसी खबर वो काम भी तो गलत ही करता था । ये तो होना ही था । मैं उदास काफी देर बैठा रहा । फुटपाथ पर कर्जन लोग सोये हुए । अगर सन्नाटे में कोई जग हुआ था तो वो सिर्फ मैं था । नींद पिछली रात भी नहीं आई थी इस नई जमीन पर जहाँ मच्छर, बदबू और आती जाती गाडियों की लोरियां ही थी । आदत नहीं थी इसलिए सो पाना मुश्किल हो रहा था । ऊपर से किसी शराबी सेलिब्रिटी की कार के फुटपाथ पर आ जाने का डर भी था । रात की बच चुके थे । बच्चों के कारण मेरी सास घुटने नहीं थी अस्थमा का मुझे ये उसका ही छोटा सा ऍम थोडी राहत मिली लेकिन साथ ही हैरानी भी हुई । मेरी आंखें छलक पडी क्योंकि उस डिब्बे में जो मेरी आखिरी सांस की घूम थी वो भी खत्म हो चुकी थी । दवा समाप्त, टेंशन शुरू अगर अस्थमा का कोई बडा अटैक आया तो मैं क्या करूंगा? अपनी सांसों को कैसे संभालूंगा? जी तो बिल्कुल खाली थी । पीठ भी पूरा खाली था और अब सांसों से अलग भी एकदम खाली होने वाली थी । कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या कर बेचैनी पड रही थी । दिमाग ब्लॉक हो चुका था । सास की टेंशन हो रही थी कि तभी दिन में मिले एक फिल्म प्रोड्यूसर की बात कानों में गूंजने लगी । फलक का प्लॉट मुझे अच्छा लगा । एक काम करो, तुम्हे कार्य मुझे तो तुम्हें मैं इसके पचास हजार दूंगा । प्रोड्यूसर की बात याद आते ही मेरी आंखें चमक उठे थे । मुझे अभी इसी समय कोई फैसला लेना था और ये फैसला जरूरी था । अंधेरी के चार बंगला के एक फिल्म प्रोडक्शन हाउस में मेरी मुलाकात एक नए प्रड्यूसर्स हुई थी । उसने सिर्फ पांच मिनट का मौका दिया था । पांच मिनट में मैंने अपनी कहानी जिसका नाम अलग था, उसे सुना दिया था । सुनकर वो खुश हुआ । उसे कहानी पसंद आई और उसने मुझे पचास हजार देने की बात कही । मुझे लगा कि वह मुझे मेरी जिंदगी का पहला ब्रेक दे रहा है । खुश होकर मैंने उसका शुक्रिया अदा किया हूँ । किस है आप बताएँ, एग्रीमेंट कब करना है और स्क्रीनप्ले कब से लिखना शुरू करना है? उत्सुकता में मैंने पूछ लिया । लेकिन जो जवाब उसने दिया, मेरे कानों में पिघलती शीशे की तरह हो । स्क्रीन प्ले और डायलॉग तो किसी फेमस राइटर से ही लिखा गया और राइटर में नाम भी किसी दूसरे का ही जाएगा । नहीं समझा नहीं सर, फलक तुम हमें दे रहे हो । बदले में तो मैं पचास हजार मिल रहे हैं । बस बस मतलब मतलब ये कि ये नाम पता भूल जाओ । घोस्ट राइटर के तौर पर मुझ से जुडे रहो । फिल्म इंडस्ट्री में घोस्ट राइटर मतलब वो जो लिखता तो है लेकिन के पैसे भी लेता है । लेकिन उसे कोई क्रेडिट नहीं दी जाती है । स्क्रीन पर घोस्ट राइटर का नाम आता नहीं है । होस्ट राइटर प्रोड्यूसर के लिए नामी राइटर के लिए डायरेक्टर्स के लिए लिखते हैं । समझ लीजिए कि वह ऐसे मजदूर होते हैं जो शब्दों की मोटी खोद खोदकर निकालते हैं और अपने मालिक के हवाले करते हैं । उस प्रोड्यूसर की बात दिल को लगी गयी जब उसने कहा कि नाम पता भूल जाऊँ, मेरे अंदर का राइटर भला ये कैसे मंजूर कर लेता हूँ । मेरा स्वाभिमान मुझे इसकी इजाजत नहीं दे रहा था । पचास हजार का लालच उसी समय मेरे सहन से वॉकआउट कर चुका था और साथ ही मैं भी ये कहते हुए कि मैं इंसान हूँ, कोई घोषणा, घोस्ट कहानियाँ लिखा नहीं करते सकते । फल तो दूर, मैं अपनी किसी भी कहानी को ऐसे ही किसी को बेच नहीं सकता हूँ । ये कहानियां मेरे बच्चों की तरह है और मैं उनका पिता हूँ और कोई पिता अपने बच्चों को भला कैसे भेज सकता है? बच्चे मेरे तो उनके पिता के नाम की जगह किसी और का नाम क्यों? मेरे बच्चे लावारिस थोडी मेरी कहानियां लावारिश नहीं है । जिस बातों के संवाद बोलकर मैं ऑफिस से निकल आया था लेकिन इस समय सांसों की कमी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था । प्रोड्यूसर के बताए हुए वो पचास हजार मेरे कानों में गूंज रहे थे । उस पचास हजार से मैं कितना कुछ कर सकता था? नहीं दवा, नए कपडे, मोबाइल रीचार्ज, खाना और राइटिंग के लिए जो मेरा संघर्ष शुरू हुआ था, उसके लिए यहाँ वहाँ आना चाहिए । क्या हुआ जो कुछ समय के लिए घोस्ट राइटर बन जाता? क्या हुआ जो मैं अपनी ढेर सारी कहानियों के समंदर में से एक कहानी का कतरा तेज देता हूँ । क्या हुआ जो कुछ देर के लिए मैं अपना नाम पता भूल जाता है? मैंने फैसला कर लिया था कि मैं फलक को भेज दूंगा । रघु ने पिछली रात मुझे नोकिया का एक पुराना फोन दिया था । एक दो रुपए का बैलेंस था । उसमें प्रोड्यूसर कि ऑफिस से निकलते समय खरीदार प्रतिशत ने मुझे अपना नंबर दिया था ये कहकर कि तुम्हें जरूरत पडेगी और तब तो मुझे जरूर कॉल कर लिया । मैं फलक खरीद होगा । मैंने उसके दिए हुए नंबर को डायल क्या नंबर नॉट रीचेबल आ रहा हूँ । फट पांच से उठकर मैं थोडा एक तरफ सडक किनारे आ गया । नंबर लगातार मैं ट्राई कर रहा था । मैं अपने स्वाभिमान भरे एटीट्यूड के लिए उस परिसर को सौरी भी कहने वाला था । लेकिन मुझे कल्पना भी नहीं थी कि अगले कुछ साल बाद मेरे साथ क्या होने वाला है । मैं अपनी गलती और शक्ति दोनों को बडे नजदीक से देखने वाला था । नेटवर्क इशू के कारण फोन नहीं लग रहा था और तभी किसी खूबसूरत आवाज ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा हो । जरा सुनिए आवाज किसी लडकी की नहीं जो मेरे जस्ट पीछे से आई थी किसी ने पुकारा था मुझे मैं पढ लेता हूँ देख कर चौंक गया सामने बहुत ही खुबसूरत लडकी नहीं सलवार शुक्ला तो कमाल लग रही थी होगी बीस बाईस वर्ष की आंखें जापानी और उसकी चमक हिंदुस्तानी चेहरा गोरा और जुल्फें घनी और लंबी गाल सुर्ख और तीखे चेहरे पर गुलाबी होती थी उस अजनबी लडकी को देख कर पहले तो मैं मुस्कुराया और फिर मैंने कहा बोलिए आप ऐसा किसी कर सकते हैं उसका इस सवाल बडा अजीब लगा । मुझे एक्चुअली समझ नहीं आया । मैं समझा नहीं क्या चाहिए आपको कौन है आप? आप मुझे जानते हैं? सब रह गया सडक और इस फुटपाथ की तन्हाई में मैं परेशान राइटर खुद को नहीं जान पा रहा था और ये लडकी कह रही थी कि मैं उसे जानता हूँ । मैं हैरान था और इसीलिए मेरा अगला सवाल था मैं मैं आपको कैसे जाऊंगा? पहली बार देख रहा हूँ आपको आपको कोई गलतफहमी हुई है? नहीं मुझे कोई गलत फहमी नहीं हुई है । मैं सही जगह ही होगा और मैं बस यही कहना चाहती हूँ की आप एक स्वाभिमानी लेखक है, एक मामूली इंसान नहीं । आप इस तरह मुझे बीच नहीं सकते । अब मेरी हालत खराब बना । वो लडकी मेरे मन के भीतर की स्थिति को कैसे जान सकती है? मेरे दिमाग में चलने वाले फैसले कैसे सुन सकती है? अभी अभी तो मैंने फैसला किया था कि मैं अपनी कहानी बेच दूंगा और इसीलिए तो मैं अंधेरी वाले प्रोफेसर को फोन लगाने की कोशिश कर रहा हूँ । मैंने उस लडकी को गौर से देखा । उसकी आंखों में आंखें डालकर मैंने अगला सवाल किया कौन हो तो फलक उसने अपना नाम बताया । सुनते ही मेरे टॉम खडे हो इसी नाम की खानी को बेचने की तैयारी की थी और ये नाम मेरे सामने था । आप अपनी फलक को सिर्फ पचास हजार रुपयों के लिए कैसे भेज सकते हैं? उस ने आगे कहा, मेरी तो बोलती बंद हो चुकी थी । मुझे तो समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या रिएक्ट कर कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देखा । एक नजर मैंने फुटपाथ पर दौड रही ये देखने के लिए की कहीं में सो तो नहीं रहा हूँ । फुटपाथ पर मेरा शरीर नहीं था क्योंकि मैं जाग रहा था और ये कोई सपना नहीं था । देखो मजाक मत करो तुम सच सच बताओ कौन हो और कहां से आया हूँ । मैं फलक हैं । आप की कहानी जिसे अभिया बेच देने की सोच रहे हो, वहीं पालक हूँ । आपके दिल दिमाग में जो सोच रहती है ना, उसी दुनिया से आई मेरी कहानी एक इंसानी शक्ल में मेरे सामने नहीं अपना परिचय वो खुद मुझे दे रही हैं । जिससे मैंने खुद लिखा था वो कहानी मुझ से बातें कर रही थी । मुझे विश्वास नहीं हो रहा था । सुन्दर वो थी लेकिन उसका इस तरह सामने आ जाना । इस तरह पार्टी करना मुझे डरा रहा हूँ की एक काम करूँ तुम जाओ हम बाद में बात करेंगे । आप मुझे बीच होगी तो हम बात नहीं कर पाएंगे । देखो मेरे पास और कोई रास्ता नहीं । पिता और भाई ने घर से निकाल दिया है क्योंकि मैं लिखता हूँ लिखने के सिवा मुझे कुछ नहीं आता हूँ और लिखने के सिवा आगे कुछ कर भी नहीं पाऊंगा । अगर ये हुनर मेरे जहन में किसी की रे की तरह नहीं घुसता तो शायद में कुछ और बनने की सोचता हूँ । कहीं कोई जॉब की सोचता डॉक्टर, इंजीनियर या कुछ भी मगर आगे कुछ बनने की गारंटी होती है । और इस तरह आज मैं फुटपाथ पर ना होता हूँ । एक एक सास को मोहताज होता तुम कहानियाँ हम जैसों के दिमाग में आती हूँ और फिर हम जैसे लोग अपनी जिंदगी को अपने ही हाथों पर बात करने लग जाते । कहानीकार मतलब खुद पे अत्याचार तो मैं बेच कर ही कोई रास्ता निकलेगा । मैंने अपनी भडास निकाल दी । फलक पर अपनी ही कहानी को मैं दोषी मानते हुए उसी से बहस कर रहा था । आपको मैं अच्छा राइटर समझे थे लेकिन आप इतने मामूली इंसान निकले एक ही बात को दो बार कहकर क्या साबित करना चाहती हूँ? अगर आप भेज ही रहे हैं तो सिर्फ मुझे ही क्यूँ, इनको भी भी चीज ये भी आपको ढेर सारे पैसे दिला सकती है । उसने अपनी दाई तरफ इशारा किया और मैं एक बार फिर देख कर दंग रह गया । ये मेरी कल्पनाओं की हद थी या कोई भ्रम? मेरी हैरानी की कोई सीमा नहीं रह गई थी । मैं सब पकडा गया था । अवाक रह गया था । मेरी हैरानी में परेशानी खुल गई थी । मैं ठीक था बस देखता रह गया । दाई तरफ जब मेरी नजर पडी तो मैंने देखा एक कतार में करीब दर्जनभर लोग खडे थे । सबसे आगे एक नौजवान हैंडसम सा हट्टा कट्टा नौजवान था । उसके पीछे पचास साल की बुढिया औरत थी और उस बुढिया के पीछे कुबडी लडकी खडी थी । और भी लोग थे जो एक के बाद एक खडे फुटपाथ और सडक पर सन्नाटा । आधी रात को ही दर्जनभर की भीड आई । कहाँ से कहीं लोग सरकार के किसी कानून का विरोध करने तो नहीं है लेकिन उनके हाथ में तो कोई तख्ती भी नहीं । और ये फलक नाम की लडकी ऐसा क्यों कह रही थी कि उन्हें भी बेच तो कौन है? लोग मैंने खुद से ही पूछा । मेरे मन की आवाज सुनकर उस खूबसूरत लडकी ने जवाब दिया मेरी तरह ही ये सब कहानियाँ हैं । भूल गया हमेशा आपके साथ आपके पास रहती है कि क्या मजाक है । थोडा इरिटेट होते हुए मैंने कहा ये मजाक नहीं है कि उतना ही सच है जितना कि आपका ये फैसला की । आप पलक को बेचने की सोच रहे हो । इस बार सबसे आगे खडे उस नौजवान ने कहा फलक की तरह उसने भी मेरी मना स्थिति आप नहीं नहीं अच्छा चलो मान लिया ये तो मेरी कहानी फलक है तो तुम कौन हूँ मैं आकाश आपकी कहानी देशद्रोही का नायक । उसने जवाब दिया, मैं सुन रहे हैं । मैंने कुबडी को गौर से देखा । ये जरूर मेरी कहानी खूब बडी होगी । पुडिया की तरफ पढा और आप धर्मशाला कि बुढिया तुम्हारी कहानी । दर्जनभर । कहानी मेरे सामने इंसानों के शकल में थी । सबसे आखिर में एक बच्चा था जो सर बाहर निकालकर मुझे गौर से देख रहा था । उसे देखते ही मैं और डर गया । वो इंसान लगी नहीं रहा था । आजाद हुआ था वो । आधा शरीर उसका झाड जैसा था । उससे नजर हटाकर मैंने उसी और जोर से आवाज हो जाए और तू तू कौन है भाई? इस तरह साबुन के झाग की तरह साबुन आपकी अधूरी कहानी? उसने जवाब दिया, अब मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि ये सब मेरी अपनी लिखी कहानियां हूँ, जो मुझसे मिलने आई थी यार तू इस तरह आधा अधूरा मुझे अच्छा नहीं लगा । जल्दी मैं तो पूरा कर दूंगा । वादा है मेरा हूँ । जैसे ही मैंने ये आश्वासन दिया, सब कहानियों के चेहरों पर मुस्कुराहट आ गई । फलक के चेहरे पर सबसे अलग मुस्कान थी क्योंकि अब वह जान गई थी कि मैं उसे किसी प्रोड्यूसर को बिना नाम के बेचने वाला नहीं था । मैंने इरादा बदल लिया हूँ । मैं खुद अंदर से बहुत ज्यादा खुश था हूँ । मैं जान गया था की अब मैं अकेला नहीं । मैं आज अपनी बनाई दुनिया में था । अपनों के बीच अपनी कहानियों के साथ था । उनसे मैं बातें कर सकता था । उनके साथ हर सकता था हो सकता ।
Writer
Sound Engineer