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Ep7 - Jaati hi puchho sadhu ki in Hindi

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AuthorJyotindra Prasad
समाज में व्याप्त हर क्षेत्र के बारे में ज्योतिंद्र नाथ प्रसाद के व्यगात्मक विचार... Author : ज्योतिंद्र प्रसाद Voiceover Artist : Harish Darshan Sharma
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जाती ही पूछो । साधु की ज्योतिंद्र जी सोचते हैं, लोग धर्म बदल लेते हैं, राष्ट्रीयता बदल लेते हैं, यहाँ तक कि वे असार संसार बदल लेते हैं, मगर कभी अपनी जाती नहीं बदलते । कभी किसी को यह कहते नहीं सुना कि मैं जाती बदल रहा हूँ तो क्या सम्मोहन होता है जाती है कि लोग जिसे छोड दे ही नहीं । ज्योतिंद्र जी तो बाबा अंबेडकर के प्रशंसक हैं, जिन्होंने अनुसूचित जाति के ठप्पे से निजात पाने है । तू बौद्ध धर्म अपना लिया । वे तंग आ चुके थे । हरिजन कहलाने से कभी गांधी जी के आज पक्षियों के लिए प्रयुक्त हरिजन शब्द में गजब का आकर्षण हुआ करता था । स्वर्ण अछूतों से ईर्ष्या करते होते हैं कि वे भगवान के जान नहीं है । लेकिन अब तो दलित ज्ञानी जी को गालियां बकते हैं और बाबा अंबेडकर इस शब्द से इस कदर घबराये की उन्हें बुद्धम् शरणम् गच्छामि होना पडा । जोगिंद्र कहते हैं, मैं सराहता हूं, दक्षिण भारतीय निम्न वर्गों को भी जो कभी गरीबी से तंग आकर धडल्ले से ईसाई और इस्लाम धर्म अपना रहे थे, जो तीन दिन में भी जाती बदलने का फैसला कर लिया है, होता हूँ । यहाँ मत समझिए कि ज्योतिंद्र दलित शब्द से तवा है और घोर दरिद्रता से पीडित हैं । वस्तुतः है ज्योतिंद्र आपने बेरोजगारी से परेशान है क्योंकि इस युग में एक अदद नौकरी ही एकमात्र योग्यता है । अतः अपनी पीएचडी की उपाधि के साथ विभिन्न रोजगार दफ्तर का सडक छाप मजनू बने जो तिन दलितों के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण के प्रति चालू है । तो जिस रफ्तार से सरकार नौकरियों में उनके आरक्षण की अवधि बढाए जा रही है और जिस दृढता से उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा के साथ जोडने का उपक्रम कर रही है उससे भरे है कि कहीं ज्योतिंद्र का ही इस राष्ट्र से पत्ता साफ हो जाए । ज्योतिंद्र जी कहते हैं, हमारे वर्चस्व को यह चुनौती है कि देश समाज को चलाने का ठेका हमारे दिमाग को प्राप्त है । बला जो नाली के कीडे की तरह जन्म लेते हैं और उसी में बिलबिलाकर मर जाते हैं, उन्हें कहाँ से वह क्षमता प्राप्त हुई कि समाज में अगुवा बने पर नहीं । हमारी सरकार जिसका दिमाग इन जूतों के सानिध्य से दिवालिया हुआ जा रहा है तो है इन्हें ऊपर उठाकर देश को दिवालिया बनाने के लिए और दो और मंडल आयोग हम पर तलवार की तरह लटक रहा है । जो कुछ स्थान हमारी मेरा के लिए बचता है वह पिछडी जाति हर अपने को तैयार बैठे हैं और उनके आरक्षण से दो हम बिहार में नौकरी से हाथ धो बैठे ही थे । अब केंद्र से भी पत्ता साफ ही समझ है । अब हम आंदोलन छेडने पर बात ये है कि हमें भी आरक्षण जो हमारा अस्तित्व खतरे में है । जब एक साला दिमाग कॉम खतरे में हो तो संपूर्ण राष्ट्र खतरे में पड जाता है लेकिन खतरे की घंटी जबतक सरकार को सुनाई देगी हो सकता है जो केंद्र नौकरी पाने की उम्र सीमा लांघ जाए । अपने इस फैसले पर ज्योतिंद्र पडी है कि इस बार प्रतियोगिता परीक्षा में है, अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के रूप में ही उतरेंगे । ज्योतिंद्र बोले अब पछतावा है कि क्यों झूठ से स्वर्ण की और रुख किया तब शायद सोचा था की जिंदगी में हीन भावना से ग्रस्त हूँ और समाज में जो गरिमा स्वर्ण को प्राप्त है वह मुझे मिले इसलिए अपने मूल जाती छिपा ली और स्वयं को कायस्त कहना शुरू किया होता हूँ । पूछ सकते हैं कि कायस्थ बनने में क्या तो मिया राजकोट बोलों और अपनी सफाई चढ मुझ पर ताऊ देकर तथा आप इतनी सी बुलाये भडकाकर झूठी आन बान चंद लगा लो अथवा गर्दन में जान लटकाकर दूसरों से पाय लागू सुनने का सुख प्राप्त करुँ । आज नहीं जनाब कायस्थ जाति में जानेंगे । जो फायदे हैं वे और कहा यहाँ चमचागिरी करके सबको खुश रख सकते हैं राजपूत को तथा ब्राह्मण और भूमिहार को भी एक साथ इन दिक्कत जातियों की दम मिलने वाली है और कोई कौन ज्योतिंद्र नहीं देखी है । पहले की बात और है तो तब कायस्थों की बौद्धिक वर्ग में सानी नहीं थी । पढाई ही उनका पेशा थी । अब तो पढाई की पूछ भी नहीं रही है । जिसकी लाठी उसकी भैंस और जिसका उल्लू उसकी लक्ष्मी वाला जमाना आ गया और कायस्थ जैसी फटीचर बिरादरी के पास ये दोनों कभी नहीं भटकी । इसलिए ये इसकी कमी ब्रह्मणों कि शास् टन दंडवत करके और राजपूत भूमिहार भाइयों के तलुए सहलाकर पूरी कर लेते हैं । शेयर का झूठ भी मिल जाता है और भूमि मुझको का । प्रसाद जी यू, राजपूत और भूमिहार कभी एक दूसरे को फूटी आंख भी नहीं हुआ है और हम है जो इन दोनों को लडाकर सिर्फ फुटबॉल का मजा लेते हैं । लडते वक्त राजपूतों को महाराणा प्रताप याद आती है तो भूमि आरोपों अपनी छीनी जमीदारी राजपूत हुआ है जिसके सामने अपनी मूझे एंड दीजिए फिर वहाँ छज्जे पर भी खडा रहे तो कूद पडे । ज्योतिंद्र बताते हैं, यो जाती बदलने के अभियान से जो दिन अपने क्षेत्र में शक की नजरों से देखे जाते हैं, उनकी वास्तविक जाती क्या है? यह खुद ज्योतिंद्र को नहीं पता तो अन्य लोगों को कहाँ से होगी? वैसे यह निश्चित है कि ज्योतिंद्र मानव जाति है, भले ही उनमें मानवोचित गुण न हो । यह अभी निश्चित है कि वह पूर्व से जाति से संबंधित हैं । हालांकि ज्योतिंद्र को रविंद्र जी की तरह पुरुष होने का दुख नहीं है । ज्योतिंद्र को तकलीफ इस बात की है कि लोग उनकी जडे खोदने को हर वक्त कमर कैसे रहते हैं । जो दिन याद करते हैं, अभी उसी दिन की बात है । सिंह जी से नया नया परिचय हुआ था । वे आयकर निरीक्षक है । बार बार अपने घर आये वालों का छापा पडने से तंग आकर ज्योतिंद्र में उनसे दोस्ती की थी, जो तीन दिन उनकी मित्र मंडली में एक जवाहरात थे क्योंकि मंडली में उन्हें छोड उनका और कोई भूमिहार जात भाई नहीं था । लेकिन अचानक जब उन्हें पता चला कि जो केंद्र जातिविहीन है तब उन्हें जमीनों होना पडा । अब वे ज्योतिंद्र की तलाश में बंदूक लिए फिर रहे हैं । अक्सर जाती का बता टाइटल से हो जाता है जैसे सिन्हा, सिंह, फंदे, राम यादव इत्यादि । पर ज्योतिंद्र पर यह फार्मूला लागू नहीं होता होता हूँ । वे अपना नाम बस ज्योति बताते हैं । और जब टाइटल बताने को कहा जाता है तब जवाब होता है आगे नाच न पीछे पंगा । दरअसल अपनी जाति के बारे में अटकलें लगाने के लिए नौ परिचितों को ज्योतिंद्र स्वतंत्र छोड देते हैं । सुविधा अनुसार ज्योति प्रसाद, ज्योति सिन्हा, ज्योति राम जाती में वे उन्हें पीट करने लगते हैं । यहाँ तक तो ठीक है, पर जब ज्योतिंद्र भी अपनी सुविधाओं पर उतर जाते हैं तो कभी कभी विचित्र स्थिति पेश हो जाती है । रमादान बाबू को ज्योतिंद्र यदुवंशी समझा था और उन्होंने ज्योतिंद्र को राणा प्रताप का वंशज इस खुशफहमी के साथ साथ खाना बैठना और सरजूबाई के छज्जे पर पांच गिलोरी लेना तब तक होता रहा जब तक ज्योतिंद्र रमाकांत आपने भ्रमजाल से बाहर जाकर एक दूसरे की चंद गंजी करने दो जूते पानी में भिगोने ना लगे ।

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समाज में व्याप्त हर क्षेत्र के बारे में ज्योतिंद्र नाथ प्रसाद के व्यगात्मक विचार... Author : ज्योतिंद्र प्रसाद Voiceover Artist : Harish Darshan Sharma
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