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Ep 1: सत्यान्वेषी (दि इनक्विजिटर) - Part 1 in  |  Audio book and podcasts

Ep 1: सत्यान्वेषी (दि इनक्विजिटर) - Part 1

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ब्योमकेश बक्शी की रहस्यमयी कहानियाँ writer: सारदेंदु बंद्योपाध्याय Voiceover Artist : Harish Darshan Sharma Script Writer : Sardendu Bandopadhyay
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आप सुन रहे ऍम किताब का नाम है ब्योमकेश बख्शी की रहस्यमयी कहानियां जिसे लिखा है सारे हिन्दू बंदोपाध्याय ने और मैं आपका दोस्त हरीदर्शन शर्मा ऍम सुने जो मनचाहे बहुत एक सत्यान्वेषी दी । इनकी विजिटर क्योंकि इस से मेरी पहली मुलाकात सन उन्नीस सौ पच्चीस की बसंत ऋतू में हुई थी । मैं यूनिवर्सिटी से पढकर निकला था । मुझे नौकरी वगैरह है की कोई चिंता नहीं थी । अपना खर्च आसानी से चलाने के लिए मेरे पिता ने बैंक में एक बडी रकम जमा करा दी थी जिसका ब्याज मेरे कलकत्ता में रहने के लिए पर्याप्त था । इसमें बोर्डिंग हाउस में रहना, खाना पीना आसानी से हो जाता था । इसलिए मैंने शादी वगैरह जो बंधन में न बंद कर साहित्य और कला के क्षेत्र में अपने को समर्पित करने का निर्णय लिया । युवावस्था की ललक थी कि मैं साहित्य और कला के क्षेत्र में कुछ ऐसा कर देता हूँ जो बंगाल के साहित्य में काया पलट कर सके । युवावस्था के इस दौर में बंगाल के युवाओं में ऐसी अभिलाषा का होना कोई आश्चर्य नहीं माना जाता । पर अक्सर होता यह है कि इस दिवास्वप्न को टूटने में ज्यादा समय नहीं लगता । जो भी हो मैं घूम के से अपनी पहली भेंट की कहानी को आगे बढाता हूँ । कलकत्ता को भरपूर जानने वाले भी या नहीं जानते होंगे कि कलकत्ता की केंद्र में एक ऐसा भी इलाका है जिसके एक और बंगालियों की अभावग्रस्त बस्ती है । दूसरी ओर एक और गंदी बस्ती और तीसरी ओर पीठ वर्ग के चीनियों की कोर्ट दिया है । इस त्रिकोण के बीचोंबीच तरबूजा का जमीन का टुकडा है जो दिन में तो और स्थानों की तरह सामान्य दिखाई देता है किंतु शाम होने के बाद उसकी पूरी कायापलट हो जाती है । आठ बजते बजते सभी व्यापारिक प्रतिष्ठानों के शटर गिर जाते हैं । दुकान बंद हो जाती है और रात का सन्नाटा पसर जाता है । कुछ एक पांच सिगरेट की दुकानों को छोडकर सभी कुछ अंधकार में विलीन हो जाता है । सडकों पर केवल छाया और परछाइयां यदा कदा दिखाई रह जाती है । यदि कोई आगंतुक और आगे जाता है तो कोशिश करता है कि जल्दी से जल्दी इलाके को पार कर ले । मैं ऐसे इलाके के पडोस में स्थित बोर्डिंग हाउस में कैसे आया यह बताने का कोई फायदा नहीं । इतना कहना काफी है कि दिन के उजाले में मुझे ऐसा किसी प्रकार का संदेह नहीं हुआ । दूसरे मुझे मैच के ग्राउंड फ्लोर में एक बडा हवादार कमरा उचित किराये पर मिल रहा था, इसलिए मैंने तुरंत ले लिया । यहाँ तो मुझे बाहर में पता लगा कि उन सडकों पर हर महीने दो दिन कटी फटी लाश होगा । मिलना आम बात है और यहाँ की सप्ताह में कम से कम एक बार पास पडोस में पुलिस का छापा वरना कोई विषय के बाद नहीं है । लेकिन तब तक रहते हुए मुझे अपने कमरे से एक प्रकार का लगा हो गया था और अब बोरिया बिस्तर लेकर कहीं हो जाने की मेरी इच्छा नहीं थी । दिन छिपे अक्सर मैं अपने कमरे में ही रहकर अपनी साहित्यिक गतिविधियों में तल्लीन रहता है । इसलिए मुझे व्यक्तिगत रूप से भाई का कोई कारण दिखाई नहीं देता था । मैं इसके प्रथम दल में कुल मिलाकर पांच कमरे थे । प्रत्येक में केवल एक व्यक्ति था । ये पांचों महानुभावों मध्य वाईके थे, जिनके परिवार कलकत्ता से बाहर गाँव या अन्य नगरों में थे । वे कलकत्ता में नौकरी करते थे । हर शनिवार की शाम को वे अपने घरों के लिए प्रस्थान कर जाए करते हैं और सोमवार को अपने दफ्तर जाने के लिए हाजिर हो जाते हैं । ये लोग एक लंबे अरसे से इस मैच में ही रहते आए थे । हाल ही में उनमें से एक सज्जन नौकरी से रिटायर होकर घर चले गए तो वहाँ खाली कमरा मुझे मिल गया । दफ्तर से आने के बाद ये सभी सज्जन एक जगह एकत्रित होकर जब वो कर या ब्रिज खेलते हैं तो उनकी ऊंची आवाजों से मैं गूंजने लगता । अश्विनी बाबू ब्रिज में माहिर है और उनके जोडीदार घनशाम बाबू जब जब बाजी हार जाते हैं तो अब हंगामा खडा कर देते हैं । ठीक नौ बजे महाराज खाने का ऐलान करता तो सब खेल की बाजी भूलकर शांति से खाने की मेज पर बैठ जाते हैं और खाने के बाद सभी अपने अपने कमरों के लिए प्रस्थान कर जाते हैं । मैं क्या यह क्रम बिना किसी परिवर्तन के बडे आराम से चलता रहता था? मैं भी जीवनक्रम का एक भाग बन गया था । मकान मालिक अनुकूल बाबू का कमरा भी ग्राउंड फ्लोर पर था । वे पेशे से होमियोपैथ डॉक्टर थे । व्यवहार में सीधे साधे और मिलनसार सज्जन थे । संभव है वे कुम्हारे भी थे, क्योंकि उस घर में कोई परिवार था ही नहीं । वे किरायदारों की जरूरतों की देखभाल करते और दोनों समय खाने और नाश्ते का प्रबंध करते थे । यह सब बडी मुस्तैदी से पूरा करते थे । किसी तरह की कोई शिकायत की गुंजाइश नहीं थी । महीने की पहली तारीख को पच्चीस रुपए के भुगतान के बाद महीने भर किसी को भी किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं रह जाती थी । डॉक्टर गरीब रोगियों में आपने दवा के लिए काफी मशहूर है । रोजाना सुबह और शाम उनके कमरे के बाहर मरीजों की कतार लग जाती थी । वे अपने दवा के लिए बहुत ही मामूली फीस लेते थे । रोगी को देखने के लिए वह बहुत ही कम जाते थे और जाते हुए थे तो उसकी फीस नहीं लेते थे । जल्द ही मैं भी उनका प्रशंसक बन गया । रोजाना लगभग दस बजे मैच के सभी सज्जन अपने दफ्तर चले जाते हैं और पूरे मैच में हम दो ही रह जाते हैं । अक्सर हम लोग दोपहर का खाना एक साथ ही खाते हैं और सारे दोपहर समाचारपत्रों की हेडलाइंस पर चर्चा करने में बीत जाती । यह भी डॉक्टर सारे व्यवहार वाले व्यक्ति थे, किंतु उनमें एक विशेषता थी । उनकी आयु चालीस से ज्यादा नहीं थी और नाम के आगे कोई डिग्री वगैरह भी नहीं थी, किंतु उनका ज्ञान अपार था । किसी भी विषय में उनकी जानकारी और परिवहन ज्ञान को देखकर मुझे कभी कभी आश्चर्य होता था और मैं चकित होकर उनकी बातों को सुनता रहता था । मैं जब उनकी प्रशंसा में कुछ कहता तो शर्म हजार इतना ही कहते दिनभर करने को तो कुछ है नहीं । इसलिए घर पर ही रहकर पढता रहता हूँ । मुझे सारा गया इन पुस्तकों से ही मिला है । मुझे रहते हुए कुछ महीने ही हुए थे । एक दिन सुबह करीब दस बजे मैं अनुकूल बाबू के कमरे में बैठा अखबार पढ रहा था । अश्विनी बाबू मूवी पान दबाकर अपने काम पर निकल गए थे । उनके बाद गंजाम हो गए । जाने से पहले उन्होंने डॉक्टर से दातों के दर्द के लिए दवा ली और चले गए । शेष दो सज्जन भी समय होते होते प्रस्तान कर गए । मैं दिन भर के लिए खाली हो गया । कुछ होगी अब भी डॉक्टर के इंतजार में खडे थे जिन्हें दवा देकर डॉक्टर ने अपना चश्मा माथे पर चढाया और बोले आज अखबार में कोई खास समाचार है क्या? हमारे पडोस में कल रात फिर से पुलिस ने छापा मारा है । यहाँ तो रोजाना आएगा । किस्सा है । अनुकूल मुस्कुराकर बोले बिल्कुल पडोस में मकान नंबर छत्तीस किसी शेख अब्दुल गफूर के घर में अच्छा मैं जानता हूँ । व्यक्ति को वहाँ अक्सर इलाज के लिए मेरे पास ज्यादा है । क्या खबर में है कि किस चीज के लिए छापा मारा गया कोकेन यह पढ लीजिए मैंने अखबार दैनिक काल के तो उन्हें पकडा दिया । अनुकूल बाबू ने माध्यम पलट के चश्में को नीचा करके पढना शुरू किया । गत रात पुलिस ने स्ट्रीट स्थित मकान नंबर छत्तीस एक अब्दुल्लपुर के घर पर छापा मारा । हालांकि छापे में कोई गैरकानूनी चीज नहीं पाई गई । तथा भी पुलिस को यकीन है कि इस इलाके में कोई वह स्थान है जहां को केंद्र गैरकानूनी धंधा चलता है और उसकी सप्लाई पासपडोस तथा अन्य स्थानों में की जाती है । काफी समय से यहाँ नैतिक गैन बडी चालाकी से इस गैरकानूनी धंधे को चला रहा है । यहाँ शर्मा और कैद की बात है कि अब तक इस गुप्त अड्डे का पर्दाफाश नहीं हो पाया है और दे गा नेता रहस्य में छुपा बैठा है । अनुकूल बाबू कुछ सोचने के बाद बोले यहाँ सही है । मुझे भी लगता है कि इस इलाके में गैरकानूनी नशीले चीजों का कोई बडा गुप्त वितरण केंद्र है । मुझे कभी कभी इसके चिन्नई दिखाई दे जाते हैं जहाँ देते हैं क्या इसे इतने मरीजों मेरे बाद आते हैं? उनमें से नशेडी चाहे जो भी करें वहाँ डॉक्टर से कोकेन का नशा नहीं छिपा सकता । लेकिन यहाँ अब्दुल गफूर मुझे नहीं लगता कोकेन का नशा करता है । मैं जानता हूँ कि नशा करता है पर अफीम का या उसने खुद मुझे बताया है । अनुकूल बाबू पडोस में इतनी हत्याएं होती है । क्या आप सोच सकते हैं? इसकी वजह क्या हो सकती है? मैंने पूछा, इसका बहुत ही आसान स्पष्टीकरण है । जो लोग गैरकानूनी नशीले चीजों का व्यापार करते हैं, उन्हें हमेशा भरा रहता है कि वे पकडे न जाएं । इसलिए कोई भी व्यक्ति यदि उनके रहस्य को जान लेता है तो उन के बाद उसे खत्म करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं रहा था । इस ऐसे समझने की कोशिश कर रहे हैं । मान लो कि मैं को केंद्र अवैध धंधा करता हूँ और तुम यह जान लेते हो तो मेरे लिए तुम्हारा जिन्दा रहना क्या मुझे सुरक्षा दे पाएगा? अगर तुमने पुलिस के सामने अपना मुंह खोला तो न सिर्फ मुझे जेल जाना होगा बल्कि मेरा इतना बडा व्यापार डूब जाएगा । करोडों रुपए का माल जब्त हो जाएगा कि हाँ, मैं यह सब होने दूंगा और वहाँ पे लगे । मैंने कहा लगता है अपने अपराध मनोविज्ञान पर गहन अध्ययन किया है । हाँ या मेरे दिलचस्पी का एक विषय है । उन्होंने अंगडाई ली और उठ खडे हुए, मैं भी उठ नहीं की सोच रहा था कि मेरे कमरे में एक व्यक्ति ने प्रवेश किया । उस की अवस्था लगभग तेईस चौबीस वर्ष की होगी । देखने सुनने में वहाँ पढा लिखा नौजवान दिखाई देता था । उसका रंग साफ था, उसकी कदकाठी और देखने में आकर्षक तथा बुद्धिमान लग रहा था । लेकिन उसे देखकर लगता था कि वहाँ बुरे समय से गुजर रहा है । उसके कपडे अस्त व्यस्त और बाल थे । जैसे उन में कई दिनों से कंघी नहीं की गई हो । उसके जूते भी गर्व से लिपटे हुए थे । उसके मुंह पर आतुरता झलक रही थी । उसने मुझे देखा । फिर अनुकूल बाबू की ओर देखकर बोला, मुझे पता है कि यहाँ बोर्डिंग हाउस है । यहाँ क्या कोई रूम खाली है? हमने उन्होंने उसकी ओर आश्चर्य से देखा । अनुकूल बाबू ने सिर हिलाया और कहा, नहीं, आप काम क्या करते हैं? श्रीमान वहाँ नौजवान ढका होने के कारण मरीजों की बेंच पर बैठ गया और बोला, फिलहाल तो मैं अपने आप को जीवित रखने के जुगाड में लगा हूँ । नौकरी के लिए अप्लाई कर रहा हूँ और सिर छुपाने की जगह ढूंढ रहा हूँ । लेकिन अब आगे शहर में एक अच्छा बोर्डिंग हाउस ढूंढना भी असंभव है । सब जगह हाउसफुल है । सहानुभूतिपूर्वक अनुकूल बाबू ने कहा, सीजन के बीच में कोई जगह मिल पाना मुश्किल होता है । आपका नाम क्या है? श्रीमान अतुलचंद्र मित्र जब से मैं कलकत्ता आया हूँ मैं नौकरी के लिए भटक रहा हूँ । जो छोटी सी रकम में अपने गांव से सब कुछ भेज कर लाया था वह भी अब समाप्त होने को है । मेरे पास मात्र पच्चीस रुपए ही बचे हैं जो यदि मुझे दोनों वक्त का खाना पडे तो ज्यादा दिन चलने वाले नहीं है । इसलिए मैं अच्छे मैं इसको ढूंढ रहा हूँ । ज्यादा दिन के लिए नहीं । बस यही कोई महीना बीस दिन के लिए । यदि मुझे दोनों वक्त का खाना मिल जाए और रहने के लिए जगह तो मैं अपने आप को संभाल लूंगा । अनुकूल बाबू ने कहा मुझे दुख है । अतुल बाबू मेरे सभी कमरे लगे हुए हैं । अतुल ने एक निःश्वास छोडते हुए कहा तो ही है, क्या किया जा सकता है? मुझे जाना होगा । कोशिश करता हूँ यदि पडोस की उडिया बस्ती में कुछ मिल जाए । मेरी एक ही चिंता है राहत भर में मेरे पैसे कहीं चोरी ना हो जाए । क्या मुझे गिलास पानी मिलेगा? डॉक्टर पानी लाने अंदर चले गए । मुझे ऐसा है । नौजवान पर दया आ रही थी । थोडी हिचकिचाहट के बाद मैंने कहा मेरा कमरा काफी बडा है । उसमें आसानी से दो व्यक्ति रह सकते हैं । यदि आप को कोई आपत्ति न हो तो दोनों चल बडा और बोला आपत्ति क्या कह रहे हैं श्रीमान, यह मेरे लिए बडे सौभाग्य की बात होगी । उसने तुरंत पॉकेट से नोटों का बंडल निकाल लिया और बोला, मुझे कितना देना होगा, आप बताए । आपकी बडी दया होगी यदि आप मेरा किराया पहले ही जमा कर लें । देखिए, मैं कोई उसकी आतुरता देखकर मुझे हंसी आ गई । मैंने कहा सब ठीक है । आप किराया बाद में ले सकते हैं । कोई जल्दी नहीं है । अनुगुल बाबू पानी लेकर आए तो मैंने उनसे कहा यह नौजवान परेशानी में है । यहां फिलहाल मेरे साथ रह सकता है । मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी आप बाहर से अनुग्रहित होकर अतुल ने कहा, इन्होंने बडी दया दिखाई है लेकिन मैं आपको अधिक समय के लिए कष्ट नहीं दूंगा । इसी बीच यदि मैं कहीं और व्यवस्था कर पाया तो मैं तुरंत चला जाऊंगा । उसने पानी का गिलास खत्म करके मेज पर रख दिया । अनुकूल बाबू ने वो इसमें तो अगर मुझे देखा और बोले आपके कमरे में यहाँ पे ही गए । यदि आप को कोई आपत्ति नहीं तो मुझे क्या कहना है । आप के लिए भी ठीक ही रहेगा । रूम का भाडा अदा अदा बढते जाएगा । मैंने तुरंत उत्तर दिया नहीं यह गलत नहीं है । बात दरअसल लिया है कि यहाँ नौजवान लगता है परेशानी में है । डॉक्टर हजार बोला हाँ ऐसा लगता है डॉक्टर ठीक है । अब्दुल बाबो जाइए, अपना सामान ले आई है । आपका यहां स्वागत है जी हां अवश्य मेरे पास अधिक सामान नहीं है । बस एक बैटिंग और एक कैनवास बैक । मैं दोनों को होटल के दरबान के पास छोड आया हूँ । मैं अभी जाकर ले आता हूँ । मैंने कहा ठीक है जाइए और लौटकर लंच हमारे साथ ही लीजिए । यह तो बहुत ही बढिया सुझाव है । अतुल ने अपनी दृष्टि से मुझे आभार प्रकट करते हुए कहा और चला गया । उसके प्रस्थान के बाद कुछ मिनट तक हम चुपचाप रहे । अनुकूल बाबू इलाज होने में जैसे खो गए तो मैंने पूछ लिया क्या सोच रहे हैं अनुकूल बाबू? उन्होंने सजग होकर कहा नहीं कुछ नहीं किसी ये परेशानी में उसकी मदद करना अच्छा काम है । आपने जो की आठ ठीक किया लेकिन जैसा कि आप भी वहाँ कहावत जानते ही होंगे कि जाने सुने बिना किसी को अपनी रख लेना । जो भी हो मैं समझता हूँ हमारे लिए कोई दिक्कत नहीं होगी । वे उठे और कमरे से बाहर चले गए । अतुल ने मेरे कमरे में रहना शुरू कर दिया । अनुकूल बाबू ने उसके लिए एक चार भाई मेरे कमरे में लगवा दी । अतुल दिन में कुछ समय के लिए दिखाई देता । अधिकतर वहाँ बाहर ही रहता । वहाँ सुबह ही नौकरी की तलाश में निकल जाता और देर रात ग्यारह बजे के आस पास लौटा । लंच के बाद भी वहाँ बाहर चला जाता । लेकिन जितना अल्प समय भी वहाँ मैच में बिता था, वहाँ उसके लिए सभी लोगों से दोस्ती करने के लिए पर्याप्त था । शाम को कॉमन रूम में रोजाना उसका बेसब्री से इंतजार होता लेकिन क्योंकि उसको ताज खेलना नहीं आता था वह थोडी देर चुप चाप नीचे डॉक्टर से गप मारने चला जाता है । उससे मेरी दोस्ती जल्दी ही हो गई क्योंकि हम दोनों हम उम्र थे । इसलिए जल्दी ही हमारे बीच में औपचारिकताएं खत्म हो गई । अतुल के आने के बाद एक सप्ताह सबकुछ शांति से भी था लेकिन उसके बाद मैच में कुछ अजीब घटनाएं होने लगी । एक दिन शाम को मैं और अतुल अनुकूल बाबू से बातचीत कर रहे थे । मरीजों की भीड घटकर कम रह गई थी । एक का दुख कर होगी । अब भी आ रहे थे अनुकूल बाबू उनको दवा दे रहे थे, साथ साथ ऍसे संभालते हुए हम लोगों से बातें भी कर रहे थे । इलाके में कुछ गर्मागर्मी थी और अफवाहों का बाजार गर्म था क्योंकि पिछली रात हमारे मैच के सामने के मैदान में हत्या हो गई थी और लाश सुबह मिली थी । हुआ है इसलिए गर्म भी क्योंकि लाश की पहचान में वहाँ व्यक्ति गरीब तबके का बंगाली प्रतीत होता था किंतु उसकी धोती के पैसे से सौ सौ के नोटों की गड्डी बरामद हुई थी । डॉक्टर का कहना था, यहाँ सबको केन की तस्करी से ताल्लुक रखता है क्योंकि यदि हत्या पैसों के लिए की गई होती तो मरने वाले के फैसले से एक हजार के नोटों का बंडल कैसे बरामद होता? मेरा मानना है कि वह व्यक्ति को केन खरीदने आया था और इसी दौरान उसे स्मग्लर के अड्डे के कुछ रहस्य पता चल गए । हो सकता है उसने पुलिस में जाने की या फिर ब्लैकमेल करने की धमकी दी हो । तो उसके बाद अतुल ने कहा, मैं यह सब नहीं जानता सर, मैं तो डर गया हूँ । आप लोग कैसे इस इलाके में रहते हैं । मुझे यदि पहले पता होता तो डॉक्टर ने हंस कर कहा तो अब क्या करते हैं? ज्यादा से ज्यादा पडोस के उडिया बस्ती में जाते है ना । लेकिन देखिए हमें कोई डर नहीं लगता । मैं इस इलाके में पिछले लगभग दस वर्षों से रह रहा हूँ । मैंने कभी किसी के मामले में हस्तक्षेप नहीं किया है । मुझे आज तक कोई दिक्कत या परेशानी नहीं हुई है । अतुल ने आहिस्ता से कहा अनुकूल बाबू, मुझे यकीन है आपको भी कुछ रहस्य की जानकारी होगी । है ना एक का एक हमें एक आवाज सुनाई दी । हमने पीछे घूम कर देखा कि अश्विनी बाबू दरवाजों से झांककर हमारी बातें सुन रहे हैं । उनके चेहरे का रंग पीला पड गया था । मैंने पूछा क्या आवाज है? अश्विनी बाबू, आप यहाँ नीचे इस समय क्या कर रहे हैं? अश्विनी घबरा गए और बडबडाए नहीं कुछ नहीं । मैं तो मुझे बीडी चाहिए थी और बडबडाते हुए ऊपर सीढी चढ गए । हम जब बारी बारी से एक दूसरे को देखा । हम सभी में बुजुर्ग अश्विनी बाबू के लिए काफी सम्मान था किंतु में नीचे आकर चुपचाप हमारी बातें सुन रहे थे । हम लोग जब रात के खाने पर बैठे तो पता चला कि अश्विनी बाबू पहले ही खा चुके हैं । खाने के बाद मैंने रोज की तरह अपना चरोडी लगाया और अपने कमरे में जाने के लिए उठ गया । कमरे में मैंने देखा अतुल जमीन पर केवल तकिया लगाए लेता है । मुझे कुछ आश्चर्य हुआ क्योंकि अभी इतनी गर्मी नहीं बडी थी कि फर्श पर सोया जाए । कमरे में अंदर का था और अतुल भी चुपचाप लेता था । मुझे लगा वहाँ ठक्कर हो गया है । लाइट जलाने से अतुल जाग जाएगा । इसलिए पढना लिखना तो हो नहीं सकता । उस की कमी को मैं कमरे में चलकर ही पूरी करना चाहता था । इतने में मुझे अश्विनी बाबू का ख्याल आया । मुझे लगा मुझे जाकर देखना चाहिए । हो सकता है उन की तबियत ठीक नहीं हूँ । उनका कमरा मेरे कमरे से दो कमरे छोडकर था । कमरा खुला हुआ था और मेरे आवाज देने पर कोई उत्तर नहीं मिला तो उत्सुकता वर्ष मैं कमरे में गुजार । लाइट का स्विच दरवाजे के पीछे था । मैंने लाइट जलाकर देखा । कमरा खाली है । मैं नहीं । खिडकी के बाहर झांककर देखा तो कुछ भी नहीं दिखाई दिया तो वास्तव में वेदनी रात में गए तो गए कहा एकाएक याद आया । हो सकता है वे नीचे डॉक्टर से दवा लेने गए हो । यह सोचकर मैं तेजी से नीचे गया । डॉक्टर का दरवाजा अंदर से बंद था, वेस्ट हो गए थे । मैं दरवाजे के बाहर कुछ मिनट असमंजस में खडा रहा । मैं वापस जा ही रहा था कि मुझे कमरे के भीतर कुछ आवाजें सुनाई दी । अश्विनी बाबू ऊंची आवाज में कुछ कह रहे थे । पहले तो मुझे लगा मैं उनकी बातें सुन लूँ । फिर अपने पर नियंत्रण करके सोचा कि अश्विनी बाबू शायद आपने बीमारी डॉक्टर को बता रहे हैं । मुझे नहीं सुनना चाहिए और मैं चुपचाप सीढी चढकर अपने कमरे में आ गया । देखा अतुल क्योंकि तियों वैसे ही फर्ज पर लेता है । मेरे अंदर आते ही उसने गर्दन उठाकर मुझसे पूछा अश्विनी बाबू अपने कमरे में नहीं है ना । मैं उसकी बात से चौक गया नहीं पर क्या तुम सोई नहीं हो? हाँ अश्विनी बाबू नीचे डॉक्टर के पास है तो मैं कैसे मालूम इसके लिए बस काम करने की जरूरत है । फर्ज पर लेट जाओ और अपने कानो को तक ये से लगा दो क्या तुम पागल हो गए और क्या मैं पागल नहीं हूं हूँ जरा तुम यहाँ कोशिश करो । उत्सुकतावश मैंने भी फर्ज पर लेटकर तकिए पर कान लगाए । कुछ क्षण बाद मुझे दोनों की आवाज साफ साफ सुनाई देने लग गई और तब मुझे अनुकूल बाबू की तेज आवाज सुनाई दी । वे कह रहे थे, लगता है आप उत्सुकता में ज्यादा व्याकुल हो गए हैं । यहाँ कुछ नहीं । यहाँ केवल आपके मस्तिष्क काम पर हमें गहरी नींद में ऐसा अक्सर हो जाता है । मैं आपको दवा दे रहा हूँ, उसे खाकर सोने चले जाएँ । सुबह उठ कर भी यदि आपको ऐसा कुछ लगे तो आप चाहे जो कर लीजिएगा । अनुकूल बाबू का उत्तर जरा अस्पष्ट था । नीचे से कुर्सी सरकार ने की आवाजों से लगा कि दोनों उठ गए हैं । मैं यह कहते हुए फर्ज है उड गया । मैं तो भूल ही गया था कि डॉक्टर का कमरा हमारे कमरे के ठीक नीचे हैं । लेकिन आप क्या सोचते हैं? मामला क्या है? अश्विनी बाबू को हुआ क्या है? तुम्हें जम्हाई लेते हुए कहा कौन जाने बहुत रात हो गई । चलो होते हैं संदेह को मिटाने के लिए मैंने पूछ लिया आप फर्ज पर क्यों लेते थे? अतुल बोला दिन भर सडकों को नापते नापते मैं बहुत थक गया था और मुझे फर्स्ट ठंडा लगा इसलिए मैं लेट गया । लेकिन आपके आने से पहले इनकी आवाज एक कान में पडने लगी और मैं जाग गया । मुझे अश्विनी बाबू के सीढियों पर चढने की पदचाप सुनाई दी । वो अपने कमरे में उसे और दरवाजा बंद की आवाज हुई । मैंने अपनी घडी देखी । ग्यारह बज रहे थे । अतुल भी हो चुका था और मैच में सब शांत हो गया था । मैं लेते हुए अश्विनी बाबू के बारे में सोचता रहा और कुछ देर बाद हो गया । सुबह होते ही अतुल ने मुझे जगाया । सात बजे थे ये भाई उठो यहाँ कुछ गोलमाल है । क्यों? क्या हुआ है? अश्विनी बाबू कमरा नहीं खोल रहे हैं । वे आवाज देने पर उत्तर भी नहीं दे रहे हैं । क्या हुआ है उन्हें कोई नहीं जानता । आओ चलकर देखें और तेजी से वहाँ कमरे से निकल गया । मैं उसके पीछे पीछे गया तो सभी अश्विनी बाबू के कमरे के सामने एकत्र थे ।

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