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कवित अब तुम बन काहे को होवे उदास गगन मंडल बीस भैया प्रकार अब क्या जाऊँ तीरथ मूरत में अरिजीत मिल गए विजय के बस हरीदर्शन से पाप मिटे सब मिट गए जन्म मरण दुखता अब मान का ही को होवे उदास धल्ली भई गुरु गोपाल जी से मिल गए नहीं तो जगत में फिरते उदास तो वो जो लोगों से थी खुद से दूरी गुरु दया से हुए खुद के पास अब मान काहे को होवे उदास जब से साहेब ने सत्य लगाया कट गए कर्म धमकी फाॅर्स हरीश कभी गुरु नाम न छोटे छोड फैला झूठे जगत कि आज अब मान हो गया था