Made with in India
भारत आठ रेल यात्रा हकलाहट के विषय पर कई प्रकार के मिथक प्रचलित है । हमारे भारत जैसा देश जहां अंधविश्वास करने और काल्पनिक कहानियां सुनने वालों की कोई कमी नहीं, वहाँ इस विषय को लेकर भी कई प्रकार के अंधविश्वास हो और काल्पनिक कहानियां पर विज्ञान में अपनी पैठ जमा ली है । परन्तु फिर भी हमारे देश में अवैज्ञानिक अंधविश्वासों को करने और काल्पनिक कहानियां को मानने वाला या यू पहले कि पढे लिखे बेवकूफों की कमी नहीं है । मैं अपने इस लेख में हकलाहट के विषय में प्रचलित कुछ अंधविश्वासों और चर्चित मृतकों का वर्णन करने का प्रयास कर रहा हूँ जो की मेरी एक रेल यात्रा पर आधारित है । इस लेख में मैंने देश के विभिन्न विभिन्न शहरों से मेरे साथ यात्रा कर रहे लोगों के द्वारा पकडा हट के विषय पर हुई एक बहस का वर्णन किया है । रेल यात्रा में हुई इस बहस से मुझे हकलाहट के विषय पर प्रचलित कई अंधविश्वास हो और मृतकों के बारे में पता चला । अब इन बातों में क्या सच्चाई है इस बात का फैसला मैं आप पर छोडता हूं । एक बार की बात है, मुझे अपने किसी निजी काम से बाहर जाने के लिए रेल में यात्रा करने का अवसर मिला । मुझे अपनी दुकान के काम के सिलसिले में किसी दूसरे शहर जाना था । इसके लिए मैंने सुबह की ट्रेन पकडी और अपने गंतव्य की और निकल पडा । ये सफर कोई साढे पांच और छह घंटे के बीच का था । मैं ट्रेन में बैठ गया और अपनी आदत के मुताबिक अपना मोबाइल फोन निकालकर हकलाहट के विषय पर कोई नया लेख लिखने में व्यस्त हो गया । इसी दौरान मेरे साथ बैठे सहयात्री आपस में बातें करने लगे । वो बातें करते हुए मेरी तरफ बार बार देख रहे थे मानव की जैसे मुझे भी अपनी बातों में शामिल करना चाहते हो । परन्तु मैं अपने काम में व्यस्त था और उन सब की बातों की तरफ कोई ध्यान नहीं दे पा रहा था । मेरा ये बरता हूँ । शायद उन में बैठी एक महिला को बुरा लगा और मेरी तरफ देखकर कहने लगी वो आजकल के लडकी जब देखो जहाँ देखो वहीं पर मोबाइल लेकर बैठ जाते हैं । इनके आस पास क्या हो रहा है, इस पर कोई ध्यान ही नहीं । बस जब देखो मोबाइल के साथ लगे रहते हैं अपनी सहयात्री महिला की बात सुनकर मैं कुछ हराम हुआ और मन ही मन मुस्कराने लग गया । कभी उस महिला के साथ बैठी एक और महिला बोल पडी, बिल्कुल सही बोलती है बहन जी मेरा लडका भी ऐसा ही है । उसका ताऊ उसके लिए विदेश से एक मोबाइल लेकर आया और जब से उसके पास वो कम वक्त मोबाइल आया है, सबको भूल गया है । जब देखो उसी के साथ लगा रहता है । पता नहीं क्या क्या करता है उसके साथ जब हम उसको रोकते हैं तो वो हम से ही झगडा करने लगता है । उन दोनों महिलाओं की बातें सुनकर पांच बैठे एक सज्जन ने मेरी तरफ देखा और मुझसे कहने लगे पीठ एक बात बताओ आखिरकार इज पाला में ऐसा क्या है जिससे तुम जैसे नौजवानों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है । देखो ना हम कब से तुम से बात कर रहे हैं और तुम हमारी बात ही नहीं सुन रहे हैं । उनकी बातें सुनकर मुझ से रहा नहीं गया तो मैंने लिखना बंद कर दिया और अपने मोबाइल फोन को एक तरफ रख दिया और उनसे कहा देखिए ऐसी कोई बात नहीं है । मैं एक हकलाहट के अध्यापक के तौर पर कार्य करता हूँ और इसके तहत मैं हकलाहट के विषय पर लेख लिखता हूँ । इसके लिए मैं अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहा हूँ । मेरी बात सुनकर उस सज्जन ने हैरानी पूर्व मेरी और देखा और कहने लगे अगला हट वही ना जो अटक, अटक या रुक रुककर बोलते हैं । परन्तु बेटा अगर किसी को ऐसी समस्या है तो उसे किसी डॉक्टर के पास जाना चाहिए । इसमें अध्यापक कहाँ से आ गया? मैंने उनकी बात को काटते हुए कहा आप अपनी जगह बिल्कुल सही है लेकिन डॉक्टर बीमारी का इलाज करते हैं और हकलाहट की समस्या या हकलाना कोई बीमारी नहीं है । और रही बात मेरे अध्यापक होने की तो अगर हम अध्यापक शब्द को परिभाषित करेंगे तो आप सही मायने में यह जान पाएंगे । एक अध्यापक होने का मतलब क्या होता है? इस की परिभाषा कुछ यूं है । जो शख्स किसी अध्याय का अध्ययन करके उसका अध्यापन कराता है, वो अध्यापक कहलाता है । कुछ लोग हकलाहट कोई बीमारी के तौर पर लेते हैं । उनका मत है कि हकलाहट एक बीमारी है और उसका इलाज दवाओं से ढूंढते हैं । कुछ लोग इसे देवीय प्रकोप मानकर मंदिरों और तंत्रमंत्र में इसका इलाज घूमते हैं । मैंने हकलाहट को एक अध्याय के तौर पर लिया । इसको एक समस्या मानकर व्यायाम और कठिन परिश्रम से हाल क्या? क्योंकि ये समस्या मुझे बचपन से ही थी जो कि बीस इक्कीस साल तक की उम्र तक मेरे साथ रही तो इस प्रकार मैंने निजी तौर पर हकलाहट का अध्ययन बीस इक्कीस साल तक किया । जिन व्यायाम और जिन तरीको से मैंने अपनी हकलाहट की समस्या पर विजय प्राप्त की आज उसी के बलबूते मैं एक अध्यापक के तौर पर इसका अध्यापन कर रहा हूँ । तभी पास बैठी है और बोल पडी बेटा, हमारे पुश्तैनी गांव के पास बडे पहुंचे हुए फकीर की दरगाह है । वहाँ पर चादर चढाने से बडे से बडा रोग ठीक हो जाता है । अगर तुम चाहो तो मैं तो मैं वहाँ का पता बता सकती हूँ । मैं उनकी बात का जवाब देता । इतने में दूसरी और बॉल पडेगी हाँ बेटा, जिसे तुम हकलाहट की समस्या कहते हो वो असल में हकलाना होता है । हमारी कुल देवी का जो मंदिर है वहाँ चांदी की जीवा चढाने से किसी भी प्रकार का हकलाना कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है । इतने भी मैं कुछ कहता वो दोनों औरते आपस में हकलाने को लेकर बातें करने लगी । पहली और मेरे दस साल के भतीजे को भी यही यही हकलाने वाली समस्या थी यानी वो भी रुक रुककर बोलता था । हमने उसकी जन्मपत्रिका गांव के पंडित को दिखाई । हमने उसे शुक्र का दोष बताया और उसके निवारण के लिए पूजा पाठ करवाया । अब वो कुछ कुछ ठीक है और उसे समस्या कभी कबार ही होती है । दूसरी औरत मेरी भी भांजे को यही समस्या थी और हमने कई डॉक्टरों को भी दिखाया, न जाने कितना इलाज करवाया लेकिन सब सब व्यर्थ रहा । आखिरकार उनके जान पहचान के किसी ओझा को दिखाया उस ओझा ने उसके हकलाने का इलाज आपने झाडफूक से कर दिया । उसके पास बैठी एक औरत उनकी बातें सुन रही थी । उसका हकलाहट की समस्या को लेकर अलग ही तरह था । उसने कहा वो खतराना जो है इसको देशी दवाइयों के साथ ठीक किया जा सकता है या फिर एक शंक को लेकर उसमें रात भर पानी डालकर सुबह उसी पानी को पी लो तो भी यह नाना दूर हो जाता है । मैंने उन सब की बात को बीच में टोककर कहा । मैं आप सब की बातों से सहमत नहीं हूँ । आज का योग वैज्ञानिक युग है और आपको कहीं कोई भी बात विज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतर रही । हकलाहट की समस्या का सीधा संबंध हकलाहट की समस्या से पीडित व्यक्ति के मन में छिपे हुए डर और उस व्यक्ति के आत्मविश्वास से है जिसका हल अवैज्ञानिक अंधविश्वासों से नहीं निकाला जा सकता । मेरी बात सुनकर मेरे साथ वाली जगह पर बैठी एक औरत कुछ गुस्से में मुझे बोली देखो बेटा इसे तुम अवैज्ञानिक अंधविश्वास का नाम दे रहे हो । ये हमारी पौराणिक परंपराएं हैं जिन्हें हम पीढी दर पीढी निभाते चले जा रहे हैं । आज तुम जैसे लोग पढ लिख कर क्या हो गए हो इन सदियों पुरानी परंपराओं को अंधविश्वास का नाम दे रहे हो एक औरत ने तो हद ही कर दी उन से ऐसे बात करने लग गए जैसे मुझ पर हमला कर रही होगी होली तो हम जैसे लोग चार किताबें क्या पढ लेते हो अपने आप को पता नहीं क्या समझने लगते हो धर्म कर्म की बातें तुम लोगों को अंधविश्वास लगती है और रही बात इन बीमारियों की तो हम श्री जी को मानते हैं और वो हमारे लिए भगवान है । यह खिलाने पिलाने जैसी बीमारियों को तो यूँ हाथ घुमाकर ठीक कर देते हैं । अपनी महिला सहयात्रियों के साथ इस बडता उसे उत्साहित वहाँ बैठे सज्जन भी मुझ पर बरस पडे अपने धर्म की रक्षा करना सीखो अगर तुम जैसी नई पीढी धर्म के बारे में यू बोलेगी भविष्य में धर्म तो खतरे में पड जाएगा । इसके जवाब में मैंने उनसे कहा संकल्प अब इस बातचीत में धर्म कहाँ से आ गया? मैं तो हर धर्म की जब करता हूँ और मैंने इसके विरुद्ध कोई भी बात नहीं कही था । एक बार जरूर है कि मैं अंधविश्वास के खिलाफ हो तो हर प्रकार का अंधविश्वास तो विज्ञान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता । ऐसे सही नहीं मानता और रही बात हकलाने की ये समस्या किसी शंख से पानी रखकर पीने से या फिर किसी गुरु जी के हाथ घुमाने से ठीक नहीं होती । इस समस्या को काबू में करने के लिए खास प्रकार के प्रशिक्षण की जरूरत होती है । इतनी कहने के बाद मैंने वहाँ से चले जाने में ही अपनी भलाई समझी क्योंकि वो जो बातें कर रहे थे वो मेरी भलाई में नहीं थी, मेरे हित में नहीं थी और जो मैं कहना चाह रहा था उनकी समझ के बाहर थी । इस सबके बीच मेरा दिमाग बार बार उनकी कही बातों के इर्द गिर्द घूम रहा था । चाहिए तो उन्हें टूट के या ये अवैज्ञानिक अंधविश्वास हमारे जीवन का हिस्सा है और क्या इनके जरिए किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है? इस बात का फैसला मैं आप सबके ऊपर छोड ता हूँ । इस विषय पर अपनी राय अवश्य दें ।
Writer
Sound Engineer