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शिव से शिवत्व तक - Part 8 in Hindi

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11 K Listens
AuthorOmjee Publication
शिव से शिवत्व तक | लेखक - आशुतोष Voiceover Artist : Shrikant Sinha Author : Ashutosh
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महल का रहस्य सभी प्रसन्न थे । केवल परीक्षण ऍम वो इसी कारण संक्षेप में उनका नाम पर एक मेरी प्रमुख पड गया था । इसका अर्थ था कि वे अत्यंत विशिष्ट वैज्ञानिक वक्त दार्शनिक थी । वो अपने गणित के ज्ञान के आधार पर अच्छे भविष्यवक्ता भी थे । वो महाराज को प्रभु कहते नहीं हूँ क्योंकि उनके अनुसार महारात में वो सभी ड्रॅाप थे जिसके कारण कोई पुरुष इश्वर के समकक्ष हो सकता है । अभी उनका कहना ही था वो अभी महाराज को कुछ और पुणे अच्छे करने होंगे और पे आवश्यक करेंगे क्योंकि उनकी जो देश बाद दर्शन दोनों यही कहते हैं । कुछ और चरणों के बाद वे उस पराकाष्ठा को प्राप्त कर लेंगे जहाँ फॅलस्वरूप हो जाएंगे । हूँ अच्छा सभी महाराज आशुतोष केंद्र को प्रभु ही कहते थे और महारानी गौरी को माँ । अचानक प्रभु की नजर प्रमुख चीपर पडेगी तो वहाँ पर हो आप ऍम दिखाई दे रहे हैं । अब सभी का जीवन सुरक्षित हैं और महल पुनः बन जाएगा । और हाँ ये कौन सा अपना मुख्य महल था वो भी तो मात्र कि योग महत्व हूँ । ये सत्य है कि बहुत विशाल होने के बाद भी दो पोस्ट तक फैला था । सुरक्षा व्यवस्था आपने इतनी अच्छी और व्यवस्थित नहीं की । अपनी राजधानी गोस्ट सिंगपुरा में भी नहीं हूँ । ये बात आप से हमको पूछनी है और बहुत सारे रहस्य आपसे जानना हैं परन्तु कहाँ से प्रारंभ करें खेल मुझे समझ में नहीं हो पाता हूँ । आप जहाँ से उचित समझें वहीं सही बताएं का मुख्य प्रभु सबसे निम्नकोटि का पल शारीरिक बल उत्तम है । बहुत ऍम कारण शारीरिक बल से आप एक से दो से या दस से विजय प्राप्त कर सकते हैं परंतु बात ठीक बाल से आप हजारों और लाखों को अपना अनुयायी बना सकते हैं । शारीरिक बल आपका युवा अवस्था में ही रहेगा । बहुत ठीक पाल आपके जीवन के हर साल में रहेगा और आप के न रहने पर भी रहेगा परंतु आपके न रहने पर धीरे धीरे समाप्त हो जाएगा । सर्वश्रेष्ठ है आध्यात्मिक बाल जो आपकी आत्मा का बाल है और आत्मा परमात्मा का अंश है, आता है । आध्यात्मिक बल लोग और पर लोग सभी स्थानों पर आपके साथ रहेगा जबकि शारीरिक बहुत ठीक बाल एक कालखंड के लिए आता है । प्रभु आपको आध्यात्मिक बाल एकत्रित करना है । मेरा चंद इसी अभी प्रायर से हुआ है कि मैं आपको आपके लक्ष्य की तरफ आपका पत्र प्रदर्शित करेंगे । आपकी आध्यात्मिक को नदी के लिए मैंने ये योग महल नहीं किया था । आपके पास बाहुबल और बौद्धिक बल की कोई कमी नहीं है । आपको कोई भी हरा नहीं सकता है । प्रभु अब हम आध्यात्मिक बल की प्राप्ति की दिशा की ओर पढना चाह रहे थे । पर अब तो बीच में ही हो गया । मैंने अपनी पूरी व्यवस्थाएं की थी कि कोई योग महल में प्रवेश न कर पाए हूँ हूँ । बीच में ही बोलते हुए वही व्यवस्थाएं तो मैं जानना चाहता हूँ । आखिर इस प्रकार की व्यवस्थाओं के बाद कोई कैसे आ गए? हाँ मैं ये बता कि जिससे मेरा हो हुआ वो सामान्य नहीं था । ऍम विभत्स और किसी भी शास्त्र से उसको आघात नहीं हो रहा था । प्रमुख ऍम व्यवस्था है तो मैं आपको बताऊंगा । उस सत्र के विषय में मैं विचार करना था जैसे आपका यह हो । मैंने बोझ जंगेश्वर से भी इसी विषय पर जानकारी प्राप्त की है । आपके और भोजन देशभर दोनों की पूर्ण वार्ता के पश्चात भी मैं तो ज्यादा नहीं समझ पा रहा हूँ । इस प्रकार का शरीर जिस पर पैसे भी अस्त्रशस्त्र का प्रभावना परन्तु वे सभी शत्रु सामान प्रकार के नहीं थी । अधिकांश पर शस्त्रों का प्रभाव हो रहा था और वे ब्राहण महीन हो रहे थे । इस प्रकार की जानकारी भोजन देशभर से प्राप्त हुई है । सब परन्तु कुछ पर अस्त्रों का प्रभाव भी नहीं हो रहा है । इस प्रकार की जानकारी प्रभु के पास नहीं क्योंकि उनका बंद है केवल एक मालिक सोंग से ही और उसके पश्चात में महल कहीं बाहर आ गए थे । वे अचरज के साथ भोजन देशभक्ति अरब में हूँ वो जंगेश्वर क्या तुमने संपूर्ण जानकारी प्रमुख जी को देती आप हूँ । इसका अर्थ हुआ शत्रुसेना में दो प्रकार के सैनिक उसको विशेष सुरक्षा कवच दिया गया था परन्तु जब वो सुरक्षा कवच इतना प्रभावी था तो सभी को क्यों नहीं दिया गया । ये वार्ता लाभ सभी सुन रहे थे कि माँ के बीच में मुझे लग रहा है कि वह कोई विशेष आवरण रहा होगा जिससे शरीर पर अस्त्रों का प्रभाव ना पडे प्रमुख हामा हो सकता है । परंतु ये भी कहना अभी संभव नहीं है । यदि एक भी जीवित या मृत शरीर प्राप्त हो जाता तो संभावना जानकारी प्राप्त करना आसान हो जाएगा । और भी कुछ रहस्य हैं एक व्यक्ति कहाँ हो गए? अपने भी सैनिक बस सेवक नहीं है । दंड आधार बीच नहीं ॅ हाँ, क्या ये संभव नहीं है कि उनके पास वो विशेष आवरण इतने पर्याप्त मात्रा में रहा हूँ कि सबको दिए जा सकती हूँ । जो विशेष हूँ उनको दिए गए हैं और जो सामान्य सैनिक हूँ उनको न दिए गए हो । प्रवक्ता सम्भवता यही रहा हूँ । ये कहना अभिषेक रहता हूँ कि वो आवरण था अथवा कुछ और व्यवस्था कब मेरा तो उससे वन तो था उस नहीं आवरण ऊपर से नहीं पहना हुआ था । शास्त्र उसके माँ बीस में ही पूर्ण पर हाँ उसके शरीर में धंसे अस्त्र अपने आप बाहर निकल रहे थे और उसका शरीर अपने आप पूर्व स्थिति को प्राप्त कर ले रहा था । प्रमुख ये संपूर्ण जानकारी अचंभित करने वाली है । मैं इस पर विचार कर रहा हूँ । आप लोग भी इस पर विचार गरीब सबसे आश्चर्य है कि अपने सैनिक सेवक का मजा ले गए । अब सत्र जिनका अंत हुआ था, गई भी कम है । सभी लोग विचार बंद हो गए क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं था । उत्तर तो जाने दीजिए, संभावनाएं भी नहीं रही थी । रात्रि हो रही थी । सभी अपने अपने शिविरों में विश्राम के लिए जा रहे हैं परन्तु संपूर्ण सुरक्षा बस नहीं आ रही । कादर जब भगवान सभी अपने शयन कक्ष से बाहर निकले तो संपूर्ण जगत में प्रकाश हो गया । कुछ समय परेशान सभी सभा शिविर में हो गए । सभी पर्व स्थिति से अच्छी स्थिति में थे । मानसिक अवस्था तो कम से कम पहले से अच्छी थी । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संकट दल चुका है । सभी सभा में धीरे धीरे आपस में वार्ता लाभ कर रहे नहीं, प्रतीक्षा थी केवल होगी । प्रभु जैसे ही सभा में उपस्थित हुए, सभी उनके सम्मान में अपने अपने स्थान पर खडे हो गए । प्रभु ने बैठने का संकेत क्या बैठने के उपरांत प्रभु ने अपने आसन से सभी की ओर एक बार आपने दृष्टियाॅ संभव का वे सभी की स्थिति को जानने का व्यक्त कर रहे थे । सभी की दृष्टि उनके ऊपर थी और उनकी दृष्टि संबंध हूँ । अब सम्भवता सत्र समाप्त हो गया है या वहाँ से भाग गया है । आप सभी का क्या थे? सभी शाम तक है । पहले कहना सर्वथा अनुचित प्रतीत हो रहा था । सभी एक दूसरे का मुकाबलो काम कर रहे थे तभी प्रभु जी खडे हुए और बडे विनम्र भाव से दो कदम आगे आकर प्रभु कुछ भी कहना शक रहता हूँ परन्तु ये संभावना बनी हुई है । यहाँ जो सत्रह थे उसमें कुछ समाप्त हो गए और जो बच गए हूँ में भाग गए होंगे । क्या जंगलों में जाकर छिप हे प्रभु अन्य लोगों का क्या विचार है? डंडा था प्रभु हम भी प्रमुख जी के विचारों से सहमत है तब भी ठीक है अब प्रभु की ये बताएं ये कुछ रहस्य जो मैंने पूछे थे उनका उत्तर देने का उचित समय है या नहीं हो भूम आप जब आदेश दें तभी समय रुकता है । ठीक है तब पहले ये बताया कि जब मैं महल से बाहर निकला तो सत्तू आखिर उम्मीदवार नहीं तोड पाया और जब उसने द्वार थोडा तो बहल का एक हिस्सा किस प्रकार के ठीक है । एक बार आपने बताया था कि जब इसको कोई गुप्त द्वार से निकलकर बाहर से बंद करते का तो फिर इसका अंदर से खुलना संभव ना होगा । परन्तु रहस्य क्या है ये अब बधाई ऍम कब होगा? ये महल आपके योग क्रिया के उद्देश्य से निर्मित किया गया था । इसीलिए इस महल में बहुत अधिक सैनिक बस सेवकों की व्यवस्था नहीं की गई थी । सदानीरा नदी के इस बार सैनिक शिविरों पर गुप्त सुरंगों की व्यवस्था की गई थी । पर उनतीस महल में आपको आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने के उद्देश्य से रहना था । इसकी सुरक्षा व्यवस्था को भंग करना असंभव था । अब को सुरक्षा हो गई । इसके भी विवेचना करनी है तो हार संबंधी जानकारी जो आप चाहते हैं अब मैं सभी को बताता हूँ प्रभु छात्र मतवार वह बोला का आपस में संबंध है । विद्वान पत्थरों से निर्मित थी । जब तक वो द्वार अंदर से बंद था तब तक सब ठीक है परंतु जब किसी ने बुधवार अंदर से खोलकर बाहर से बंद कर दिया तब एक यांत्रिकी प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है । बुधवार केवल आपातकाल के लिए ही बनाया । जैसे ही प्रभु आपने बुधवार अंदर से खोला और बाहर से उसको बंद किया उसमें यांत्रिकी प्रक्रिया प्रारंभ हो । यांत्रिकी प्रक्रिया गया है और किस प्रकार कार्य करती है हूँ । जब उस द्वार को बाहर से बंद कर दिया गया तो अब उसका अंदर से खुलने का भार अवरोध हो गया होता है । अब बात एक विकल्प था उसको तोड देना और शत्रुओं ने वही करने का प्रयास । अब जब शत्रु ने उस पाषाण निर्मित बुधवार को थोडा तो उसको एक बार और दिखाई पडा तब उसने उसको भी थोडा परन्तु अब उसके उपरांत उसे एक और द्वार दिखाई पडने लगा । जैसे जैसे शब्दों द्वार बोल रहा था वैसे वैसे उसके समकक्ष और नए आ रहे थे । वो समझ नहीं पा रहा था कि ये क्या हो रहा है । वो समझ रहा था कि वार टू रहे हैं परन्तु फिर द्वार के पीछे द्वार अंततः वो इन छत मीदवारों के माया जाल में फंस गया । वो चंदेश्वर बीच में ही फोन पर ये तो सब ठीक है परंतु गे तो आठ उठने के बाद अन्य द्वारका से आ रहे हैं । प्रमुख छेने बस पूरा करता हूँ था और सब तो पीछे समझाने के लिए मैं बता ही तो रहा हूँ । अच्छा अब ध्यान दीजिए यहाँ पर एक बार नहीं बल्कि एक सौ आठ बार थे । सभी के मुख से एक सात निकला । अरे एक सौ आठ बार आश्चर्यजनक, प्रभु निश्चित नहीं आश्चर्यजनक परन्तु के कैसे संभव है? प्रमुख ने कहा संभावना है तब और आप के महल में ही संभव था । वास्तव में द्वार के पीछे एक द्वार था अर्थात तो द्वार एक दूसरे से चिपके हुये लगे थे । जब वे द्वार खोले या बंद किए जाते हैं तो दोनों द्वार एक साथ खेलते वक्त हूँ । इस प्रकार सभी को ये प्रतीत होता था की वो एक द्वार है परंतु गए थे तो तो और उन दो तो आरोपी थी । ऊपर एक सौ अच्छा पाषाण द्वार समान आकार के समांतर रूप से रखे कहते हैं उन द्वारों का द्रव्यमान केंद्र नीचे की तरफ था । उन द्वारों के अंत में एक कक्ष था जिसका संपूर्ण भारत इन द्वारों पर टिका हुआ था और उस कक्ष के केंद्र में एक गोलक रखा था । जैसे ही सामने वाला एक द्वार टूटता था, शत्रु उससे चिपका वाला द्वार अपनी ओर खींचते थे जिससे वो थोडा आगे आ जाता था । तब ऊपर रखे हुए एक सौ अच्छा द्वारों में से एक द्वार उन्होंने नीचे आ जाता था जिस से नीचे पुनरूद्वार हो जाते थे । ऊपर के द्वार के नीचे आने पर वे सभी बच्चे एक सौ पांच बार और अक्षत रखते मांग केंद्र नीचे की तरफ होने के कारण नीचे की तरफ सडक चाहते थे । इस प्रकार वह कक्ष और उसके भीतर रखा गोला चच्चा तो टोटल नीचे की तरफ सर रखते रहते एक एक करके बुधवार छोड दे रहे हैं । एक एक करके द्वार नीचे की तरफ आते रहेंगे । ऊपर वाला कब धीरे धीरे करता रहा और सडक सडक पे उसका दबते मान केंद्र बाहर तरफ होता जा रहा है । उसको इस प्रकार स्थिर किया गया था कि जैसे ही आखिरी द्वारा टूटने वाला हूँ वो पर्वत का किनारा, उस कक्ष, अता भार नाॅन और पूरा का पूरा हिस्सा टूटकर नीचे आ जाएगी । जिस प्रकार उसको व्यवस्थित किया गया था, प्रभु उसी के अनुरूप शाॅ और उसका तरफ विमान केंद्र पर्वत के बाहर होने के कारण महल का पूर्वी भाग भरभराकर रुक गया । इस प्रकार प्रभु आपको बहल से निकलने का समय मिल गया । आप सुरक्षित आ गए और आप को तो सुरक्षित आना ही था । तब बहुत उत्तम व्यवस्था नहीं परंतु कुमारों को मैंने इतना ही कह पाए थे कि बीस में ही प्रमुख ही बोलता हूँ । बीच में कुछ कहना चाहता हूँ । साथ ही प्रभु कहता नहीं, कुछ जानकारी चाहता हूँ कि जब आपका शक्तियों से युक्त हो रहा था, आपके भयंकर प्रहारों के बाद भी वो पराजय स्वीकार नहीं कर रहा हूँ, उस पर स्ट्रोंग शस्त्रों का कोई प्रभाव नहीं हो रहा था । उस समय आपके कुमारों को किस प्रकार को लाभ पहुंचाया? आपने पहुंचाया अथवा मानी प्रमुख माने का प्रमुख जी जब हमारे बाहर निरर्थक होने लगे और हमने देखा कि उसके शरीर पर था, से हुए तो माॅनसून अपने आप शरीर से बाहर निकल रहे हैं । खाओ अपने आप इतनी प्रगति से भात रहे थे कि आप दूसरे प्रहार का विचार करें । उसके पहले खाओ भर गया । तब प्रभु ने कहा कि गौरी हमें यहाँ से निकलना होगा । मैं अपनी कुमारों को लेकर वापस आएगी थी । एक सौ हजार बाहर जब प्रभु ने किया तो वो शिफ्ट हो गया । तब प्रभु नहीं उसे तस्वीरों से पांच दिया । हम लोग बाहर निकलने का रहे थे क्योंकि प्रभु को आशंका थी केस बनते कितनी कक्षा से बाहर अवश्य ही होगी परन्तु कोई भी सहायता के लिए नहीं आया । अर्थात सभी साॅफ्ट या तो बंद हो गए थे । क्या उन्हें मृत्यु का दासपुर नाथ क्या गया था? बस इसके बाद क्या हुआ और हमारे कुमार कहाँ गए और वे कैसे सुरक्षित बदली? इसका पूछे कोई प्यार नहीं ये कहकर मांग हो गई और वो प्रभु की तरफ देखते हैं । तब प्रभु ने एक्शन के लिए अपनी आगमन मानो कि वे उसमें बहुत सौ बैठती और आज सोचनी घटना को ना चाहते हुए भी सोच रहे थे और घटनाओं को क्रमबद्ध करने का प्रयास कर रहे थे । कई बार मनुष्य जीवन में इस प्रकार की परिस्थिति जो में पड जाता है कि उसके विषय में क्रम पत्थर ना उसका मस्त कष्ट नहीं करना चाहता है परंतु काल समय चाहता है कि वह दुर्घटना को सोच बहुत उसका मांगन करेंगे । विचार करते वक्त गहरी श्वास छोडते हुए कम होने कहना ब्लॅक दिया हूँ । इस तरह का समय हम किसी को ना दिखा है परन्तु ब्रह्म है । जो करता है वहीं सकते हैं और वही उत्तम भी । सम्भवता वही सर्वोत्तम है । प्रभु ने अब आ गयी पूरा कहना प्रारंभ होती है । जब हमने उसे बांध नहीं और बाहर से कोई सहायता नहीं आ रही थी तब मैंने एक क्षण कक्ष से बाहर के वस्तु स्थिति जानने का प्रयास किया । मैंने जो दृश्य देखा आप सभी उस की परिकल्पना भी नहीं कर सकते । आप सभी मैंने यदि वह दृश्य स्वता नहीं देखा होता तो मैं भी उस घटना को कभी सत्य नहीं मानता । तो मैंने स्वता देखी । इस घटना को देखने के बाद मैंने शिखर ता से निर्णय ये मुझे यहाँ से निकलना ही होगा । इस निर्णय में मुझे ज्यादा समय नहीं लगा और मैंने गौरी से कहा कृषि क्राॅस तुरंत यहाँ से निकलना होगा । अब मैं गौरी और दोनों कुमारों को लेकर निकलना ही चाहता था कि पता नहीं किस प्रकार उसकी चेतना गई । उसने अपने हाथ इस प्रकार निकाल के जैसे उसके हाथ हूँ, बल्कि वे प्रत्यास्थता पदार्थ रबर से बने हुए थे । उससे अपने हाथ को बोलना, झीला बनाना मालूम उसमें हूँ और हाथ पैर को बंधनमुक्त कर दिया तो मैं मैं उसे देख चुका हूँ कि अब वो बंधन मुक्त हो चुका है । पता है मैंने निर्णय की से अब समाप्त करता हूँ । उसने मुझ पर धातु बातों से भीषण प्रहार किया पर उस प्रहार से मैंने अपने आप को बचा लिया परन्तु दोनों कुमार बकौरी उस प्रहार के बीच में आ गई । अब मैंने जो कप रहा और उस पर किया कि यदि वो सुरक्षा कवच में नहीं होता तो उस प्रहार को सहना असंभव था और वह पुनः मुर्छित हो गया । मैंने देखा कुमार केवल भर से ग्रसित है परन्तु देवी गौरी घायल थी । दोनों कुमारों और गौरी को एक साथ निकलना संभावना था । तब मुझे प्रमुख की एक बात स्मृति में आई की उन्होंने कहा था, ये तो कब तक शयन कक्ष के ऊपर पडा है । उससे सुरक्षित स्थान एस जगत में कोई नहीं है । तब मैंने बहुत शिक्षक से दोनों कुमारों को इसमें पहुंचान, उसके भीतर मैंने पहली बार प्रवेश किया था । मैंने देखा कि वो जो बाहर से सामान्य कक्षा देख रहा था, अंदर से एकदम सामान्य था । उसके विषय में प्रमुख से ही पतला है तो अत्यंत उचित होगा कुमारों को वहाँ पहुंचाकर जब मैं वापस गौरी के पास पहुंचा तो वह शक तुम वो अच्छा था परन्तु मुझे अनुमान था कि बहुत शुक्र ही उसमें पुना चीता आ जाएगी । पता है अभिषेक मेरे गौरी को उठाया और गुप्त द्वार से महल के बाहर इस प्रकरण की जानकारी मेरे अतिरिक्त और किसी को नहीं । प्रमुख जी से मिलते ही मैंने पूरन जानकारी प्रमुख जी को देती थी । इस वार्ता के ब्रांड माँ गौरी का माॅडल तब तब आया हुआ था उनके रोज का कारण अत्यंत सटीक परंतु वे जब तक अपने खुद के चरम पर सस्ती बीस में ही प्रभावपूर्ण नहीं प्रमुख जी ने कहा माँ क्षमा आप होता न करें जाती । प्रभु आपको ये बताते थे कि कुमार उसी बहल में हैं तो हम अपना लक्ष्य होते थे उस दशा में आप वहाँ से अपने आधार शिविर के लिए न चलती है और शत्रु आपको बंधक बना सकता था । था मान आप एक महान कार्य के लिए इस लोग में अवतरित हुई हैं । सर्वश्रेष्ठ बात तो ये है दोनों कुमार सुरक्षित जब जीवन में परिणाम अनुकूल आ जाए तब पटके कार्डो और उसके खामों की परवाह करता है । इस प्रकार दोनों कुमार सुरक्षित और अब मैं अपने अनुभव के आधार पर कहता हूँ कि प्रभु ने जो किया वही सर्वोत्तम था । आप सभी बात नहीं होना । बस इतना कहकर महत्व हो गई । उनको भी आभास था कि जो हुआ उसी की वजह से दोनों कुमार सुरक्षित हैं । अब उनका खोद करूंगा में परिवर्तित होकर अशोक बन चुका था । वातावरण् शान वक्त हो चुका था । तब उन्होंने कहा

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