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कोई प्राप्त नहीं हुआ तो हमें उनके बारे में अब जानकारी प्राप्त करनी अत्यंत मतलब होगी । माँ गौरी प्रथम वह हुई थी । दोनों का अभिप्राय भिन्न भिन्न है । प्रमुख प्रथम व्यवस्था में हो सकता है कि कोई ना बच्चें परन्तु हुई थी । अवस्था में जब कोई दूसरा व्यक्ति ब्राॅड पर रसायन डाले का तब कोई तो जगत बचना चाहिए । हाँ, अनुमान हो सकता है अनुमान नहीं । प्रभु यही सत्य है । परंतु दोनों में क्या सत्य है ये पता लगाना है तो हमें और अभी चारों तरफ ध्यानपूर्वक निरीक्षण करना चाहिए । सम्भवता कुछ हाथ लगे । इतनी बात हो रही थी कि दंड आधार के पास एक विशेष सूचना आई तो वो तुरंत प्रभु के पास आया । दंड था प्रभु हूँ । एक विशेष वस्तु हुई प्रवक्ता क्या वह बृहत गोलप प्राप्त हो गया? दंड था हरे हाँ, आपको कैसे पता प्रवक्ता अब सबसे महत्वपूर्ण वस्तु वही है क्योंकि वही यहाँ के वस्तु है और सुरक्षित है । सभी बृहत गोलप के समीप जाने लगते हैं । सभी उत्सुक हैं कि उसमें क्या कोई रहस्य है अथवा उससे कुछ पता चल जाएगा । सभी उसका स्थान पर पहुंचते हैं । जहाँ पर गोलक रखा हुआ है, उसे देखने पर प्रतीत हो रहा है कि उसे वहाँ ठीक से व्यवस्थित किया गया है क्योंकि वहाँ पर एक वृत्ताकार आधार बना हुआ है जिसमें वह गोल्फ फसा हुआ है । ये तो आश्चर्यजनक रूप से इस आधार पर रखा हुआ है जैसे इसे किसी ने रखा हूँ । दंडधारी कहा का मुख्य ये एक तरह की यांत्रिकी विज्ञान है । सब कुछ सही रहा इसलिए ये गोलप अपने अ स्थान पर आकर टिक गया । सब कुछ पूर्वनियोजित आकलन के आधार पर ही हुआ है । इतना सुनते ही गौरी को क्रोध आ गया परन्तु उसने कुछ नहीं कहा । उनका क्रोधित मत देखते ही प्रभु ने प्रमुख से कहा प्रमुख थी आप क्या हूँ सर, आप अपने माँ की तरफ भी देखो । जैसे ही प्रमुख ने माफ की तरफ देखा उनका खोत वह करूंगा से मिश्र मुख देखकर एक बार प्रमुख जी का मन भयाक्रांत हो गया । परंतु उन्होंने प्रभु की तरफ रुख करते हुए कहा हूँ आपकी मनोदशा मैं समझ सकता हूँ । हम सभी आपके ही पुत्र समाज रहे और यदि आप समझ रहे हैं कि हमें सब पहले ही पता था तो बताया क्यों नहीं पूरा मेरा अनुमान है । प्रभु की माँ इसी बात को लेकर प्रबोधित पर दुखी हैं । क्या बेरा अनुमान ठीक ठीक नहीं है । प्रभु प्रवक्ता आपका अनुमान थोडा तैयार सही है परन्तु माँ के दृष्टिकोण से देखो इतना सुनते ही मां के आंखों से अश्रुधारा पहचान नहीं और वहाँ पर एक शिला पर बैठ गई । सभी माँ के चारों में परन्तु कोई समझाने का साहस नहीं करता रहा था । तब प्रभु ने प्रमुख जी से आगे बढकर का क्यों प्रमुख थी इस को लाभ का क्या है? समाप्त हूँ ये गोल अब वही है जिसमें आप ने प्रभु आवाह रहेंगे । इसमें तो कोई द्वार नहीं है । दंड था तो आप कौनसा हुआ? इसको लगते हैं प्रमुख चीजें आपने कुछ सेवकों को संकेत है । सेवक आगे आए और उन्होंने उसको लाभ के बगल में एक स्थान पर भूमि को होना आरंभ और कुछ ही क्षण में एक वृताकार रखा । बता दीजिए । अब उन्होंने उसको लपको धीरे से पुराने अस्थान सिंह वो स्थापित करने का प्रयास किया जैसी को गोला वहाँ से लुढका और नए वृत्ताकार क्षेत्र में पूना स्थापित हुआ । उसके पुनर्स्थापित होते ही परिनीति प्रमुख ही नहीं उसको ध्यान से देखा, उसके सभी पाये और उसको स्पष्ट किया । फिर उसके सभी बैठ गए । उनके बैठने की अवस्था देखकर लग रहा था कि जैसे वह प्रार्थना कर रहे हो । एक का एक वो पीछे हट गई और प्रभु के पास है । प्रभु को वहाँ से ही थोडा दूर ले जाकर उन्होंने कुछ कहा । अब वहाँ से प्रभु माँ की सभी और उन्हें बहुत सहानुभूति के साथ शिला से उठाया । अपने साथ एक दिशा में लेकर गए । जैसे ही प्रभु और माँ उस स्थान से दूर गए प्रमुख जी के सेवक उसको लाभ के पास आए । उनके पास कुछ बडे संतोष भी थे । कुछ ही समय में उन्होंने उन संदूकों में से निकले सामान से एक वस्त्र वकाश टाॅपिक कक्ष का निर्माण कर दिया । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वो कच्छ विश्रामस्थल के अतिरिक्त कुछ और भी नहीं था । सभी बात देख रहे थे । कुछ बोलने के लिए न तो समय था और ना ही अस्थान । इतनी देर में प्रभु भी वापस आ गए । वापस आते ही प्रमुख सीधे प्रभु से आप क्या नहीं । वह अपना गोल आपके पास । अब उन्होंने कोलापुर ध्यान से स्पष्ट किया । उनका हाथ धीरे धीरे उसको समझने का प्रयास कर रहा था । अब उन्होंने एक स्थान पर हाथ करूँ । क्या अपने सिर पर बंद ही पतली में पाया डाला और उसमें से धातु की लंबी वह एक सीधे पर छुट्टी । बडी स्वीट वहाँ वर्ष तो निकली उसका चिपटा सहीराम उसको लाभ के एक स्थान पर जैसे ही जोर से दबाया उस स्थान के बगल से तीन मटर जैसे दाने के उपहार बाहर निकल रहा है । जहाँ पर के बटर के दोनों के समान उपहार निकले थे वहीं पर प्रमुख जी ने एक स्वच्छ वस्त्र सिंह उस स्थान को रखना बृहत् गोलप के साथ प्रमुख वर्तन डाॅ जिससे उस स्थान पर लगी मिट्टी साफ हो गयी । भोजन गणेश्वर ने कहा आप पूरा कोलक ही साफ करवा लीजिए । ठंड था हाँ हाँ ये ठीक रहेगा । प्रमुख जी की कोई प्रतिक्रिया था देख कर उन दोनों को लगा कि सम्भवता प्रमुख इसे किसी से अस्पष्ट नहीं कर पाना चाहते हैं ये महत्वपूर्ण है और किसी के पास पक्ष से कार्य संकट में पड सकता है । प्रमुख ही ने उसका आने के उपहार के बगल के स्थान को साफ किया । तब वहाँ दोनों के बगल में अस्पष्ट चंद्र दिखाई पडने लगे । उन हिंदुओं का क्या अभिप्राय था ये तो प्रमुख से ही जानते थे । तीनों उपहार ऊपर से नीचे की तरफ थे । पहले के बगल में सूर्य की आकृति दी गई थी । दूसरे क्रम के उपहार के बगल में झुके हुए वृक्षों की आकृति उकेरी गई थी । सम्भवता ये जो वायु गति का प्रतीक होगा तृतीय उपहार के बगल में कोई चिन्ह प्रदर्शित नहीं था । प्रमुख जी ने उन उपहारों को देख कर कोई प्रतिक्रिया देंगे इस के विषय में वो सम्भवता पहले से ही जानते हैं । इसके विषय में वो संभव कर पहले से ही जानते हैं । कुछ समय तक हुई विचार करते रहे और शांत किसी एक ही स्थान पर खडे रहे । फिर उन्होंने सबसे ऊपर वाले मटर के दाने जैसे उपहार को अपने दाहिने हाथ के अंदर से दबाया । फिर कुछ कदम पीछे हट गए । उसको लक्मे कुछ अप्रत्याशित खानी जो धीरे धीरे छनछनाहट में बदल रही थी तो होना प्राप्त हो गई । फिर एक एक ऊपर का हिस्सा । एक तरफ सडक नहीं लगा जैसे कोई आप होता है । अब भी उस पर एक आवरण था जो कि पारदर्शी था । बाहर से कुछ नहीं दिख रहा था क्योंकि ऊपर का थोडा ही भाग पारदर्शी था जो सभी के कब से बहुत पहुंचा था । एक का एक प्रकाश नहीं जो उस पर पढ रही थी । उनकी तीव्रता बढते जा रही थी । तीव्रता बढने से वहाँ का तापमान धीरे धीरे पडने लगा । सभी कुछ पीछे हटने लगे परंतु प्रमुख थी आपने अ स्थान पर रहे तब बिंदु उनके ललाट पर अस्पष्ट प्रतीत हो रहे थे । परंतु वो आंख बंद किए हुई कुछ ब्लॅक लग रहे थे । मदर शिष्य जब कोई कार्य प्रथम बार करता है तब वो अपने आप सही अधिक ईश्वर पर विश्वास करता है परन्तु जब वही कार्य बारह पार करता है तो ईश्वर से अधिक अपने आप पर विश्वास करने लगता है । इसे ही आती आत्मविश्वास कहते हैं । इसी पर वो ईश्वर को भूल जाता है और अंत में जब वो अपनी सबसे महत्वपूर्ण कार्य में असफल होता है तब ये नहीं कहता है कि वह सफलता बल्कि कहता है कि ईश्वर नहीं चाहता था । उसने तो सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया ये कहना उसका अपने आप को सुरक्षित करने जैसा है क्योंकि िश्वत से आपने प्रथम तार सहायता मांगी थी और उसके बाद आप स्वतः सक्षम हो गए । जब आपने इश्वर से सहायता मांगी ही नहीं तो वो आपके कार्य में इतना क्यों डाले का धीरे धीरे अस्पष्ट प्रदर्शित होने लगा कि प्रकाश फिर नहीं उस पारदर्शी आवरण सही अंदर जा रही हैं । कुछ समय परेशान हनी में परिवर्तन होगा । रात संभव हो गए । धीरे धीरे ध्वनि की तीव्रता कम होती प्रतीत हो रही थी । अब जब बॉलिंग थोडा तैयार समाप्त हो गई तब प्रमुख सीने दूसरे काम के दाने को दबाया । उसकी दबते ही पारदर्शी आवरण हटने लगा और ऊपर तब हांथ धुलती उसके खोलते ही नीचे से एक हाथ की ऊंचाई पर चारों तरफ कुछ छोटे छोटे क्षेत्रों बंद हो गए । अब हमें उन क्षेत्रों से हवा बाहर की वो रात प्रतीत हो रही थी । अर्थ सर्वदा विधि था की वायु ऊपर से अवशोषित की जा रही थी और नहीं चाहिए वो बाहर की ओर जा रही है । कुछ समय परेशान ये प्रक्रिया स्वतंत्र आवरण पुणा ही दे दी थी । गोली उसको ढक चुके थे । नीचे की तरफ देखने वाले क्षेत्र स्वता बंद हो गई । अब प्रमुखी वापस पीछे की तरफ आए और बोलिंग प्रभु अब आप सबसे नीचे वाला उपहार कब आएगी? क्यों क्या हुआ? ये सब आप द्वारा ही आवश्यक आधारित है । आप ही करें तो इतना कहने के पूर्व ही प्रमुख ही नहीं पुणा विनम्र निवेदन किया हूँ । आपने ही द्वार बंद किया था । आप ही इसको खुले तो पाती उत्तम रहेगा । अभी कुछ समय पहले भी आपने इसी प्रकार चर्चा की परन्तु मैं पूरी तरह से समझ नहीं पाया कि आपके स्वार्थ की चर्चा कर रहे हैं । प्रमुख प्रभु वही दुआ जिसने माँ की मुस्कान और ममता को छीन लिया है । वही द्वार जिसने आपके साहज बाल विवेक को तमिल करने का प्रयास किया । वही द्वार जिसके न खुल पाने के बाद आप और हाँ आपने चंद्र लक्ष्य को संभव का प्राप्त करने में अपने आप को सक्षम नहीं पाते । पता नहीं ऍफ था है कि आप आगे पढें और आप जिस तरह की चर्चा कर रहे हैं उससे मैं सम्भवता उस कक्ष के विषय में विचार करने लगा जिसमें महल से निकलते समय मैंने दोनों कुमारों को छुपा दिया था क्योंकि आपके कथनानुसार वो पक्ष टेस्ट ब्रम्हांड में सर्वाधिक सुरक्षित स्थान वहाँ जब तक आप अपना चाहे कोई पहुंच नहीं सकता हूँ, उस कक्ष को न तो चलाया जा सकता है और ना ही उसमें जल का कोई प्रभाव पडेगा । यहाँ तक कि किसी भी अस्त्रशस्त्र सहित उसे थोडा या समाप्त नहीं किया जा सकता है । कुछ देर रुककर हो परन्तु वो स्थान जहां मैंने दोनों कुमारों को छुपाया था तो वो एक कक्षा अनुमत और ये गोलक है प्रमुख प्रभु आप सत प्रतिशत सत्य कह रहे हैं परन्तु हम सभी इस विषयों पर बात में चर्चा कर लेंगे । अभी आप उस तरह थी उपहार को दबाएं, ठीक है ये कहकर प्रभु नहीं उस तरी थी । उपहार को दबाया और दबाते ही उसमें एक बार को भरना प्रारंभ हो गया । कुछ ही देर में द्वार धीरे धीरे खुलने लगा । उसके खुलते ही अंदर प्रभु वह प्रमुख चीनी प्रवेश किया । उसके बाद कुछ समय तक होता था । फिर अंदर से दोनों कुमारों को लेकर भी दोनों बाहर दोनों कुमार उनकी कोर्ट में थी । बाहर खडे सभी व्यक्ति सेवक मत सैनी न समझ पा रहे थे कि हर्ष का समय अथवा शोक बाहर निकलते ही वे दोनों कुमारों को लेकर वस्त्र अवकाश टाॅपिक कक्ष में ले गए । वहाँ पहले से ही आवश्यक चिकित्सा संबंधी उपकरण उपलब्ध नहीं । आवश्यक चिकित्सकीय कार्य के बाद प्रमुख जी के चेहरे पर मुस्कुराहट दिखाई पडनी शुरू होगी उन्होंने आगे बढकर प्रभु के चरणों में था । नाम क्या? और बोले हाँ, यदि मैं दोनों कुमारों का जीवन न बच्चा पाता तो पूरे जीवन घर अपने आप को कलंकित मानता रहता हूँ । परन्तु प्रभु ये मेरा कार्य नहीं है । आप वहाँ के आशीर्वाद के कारण ही संभव । मैंने इस योग महल में अपनी तरफ से सभी व्यवस्थाएं की थी, जिनका रहस्य उद्घाटन मैं पास में करूँगा । इतनी बात चल ही रही थी कि कुमारों में चेतना वापस आने लगी और एक का एक दोनों कुमार उठकर बैठे हैं । उन्होंने देखा कि उनके पिता आपके सामने खडे थे । जैसे वो शयन के उपरांत दौड कर उनकी कोर्ट में चाहते थे । वैसे ही दोनों उठे और दौड कर अपने पिता की उसमें आ गई । उनको अन्य कोई आभास नहीं था । उनके कोर्ट में आते ही प्रमुखी बाहर की तरफ चले । बाहर आते सभी उनकी तरफ देख रहे थे । एक का एक उन्होंने अपने दोनों हाथ ऊपर की तरफ उठाए और ईश्वर धन्यवाद । इसके उपरांत जोरदार आवाज में सभी तुले कुमार गणेशचंद्र की जय हो तो बार कार्तिक केंद्र की जय हो । इस खानी की प्रतिध्वनि संपूर्ण वन खंड में गुंजायमान हो गई । ये धोनी सभी माँ को सुनाना चाहते थे । कुछ ही क्षणों में माँ और इस सामने भी और वो तुरंत वस्त्र निर्मित कक्ष में आपने कुमारों के पास पहुंच गई । बाहर प्रभु बात वक्त मारोकी जयजयकार पूछ रही थी और अंदर माँ के अच्छे सुबह रहते हैं ।
Sound Engineer
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