Made with in India
चौथा भाग उस से मुलाकात नहा धोकर खाली पेट छोटू फिर नौकरी की तलाश में भटकता शहरों के बीचों बीच पहुंच गया । उसके हाथ में बैग और न्यूज पेपर के क्लासिफाइड वाले दो पेज थे । कंपनी के सामने खडा होकर सोचने लगा यही कंपनी है शायद यहाँ काम बन जायेगा । आजमाकर देखते हैं । इंतजार करते करते चार घंटे बीत गए । घडी में दोपहर के ही दो बज रहे थे । इंतजार खत्म हुआ । अगला नंबर उसका था । अगर उसी समय उसके मोबाइल की स्क्रीन पर एक मैसेज का नोटिफिकेशन चमका । भैया सरकारी हॉस्पिटल आ जाओ । दादा की तबियत बिगड रही है तो वही रूको हम आते हैं । छोटू ने रिप्लाई किया । छोटू फौरन वहाँ से काट लिया । टैक्सी पकडी और हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गया । टैक्सी से उतरकर बिना ट्रैफिक देखे रोड क्रॉस करने लगा । तभी एक लाल रंग की कार ने उसे टक्कर मार किंचित कर दिया । छोटू सर्कल के पास बेहोश हो गया कि ये एक हादसा था, मगर इसी हादसे से उसकी कहानी पलटने वाली थी । कहते हैं कुछ हादसे जिंदगी लेते ही नहीं, जिंदगी बना भी देते हैं । उसकी मुलाकात ही कैसे इंसान से होने वाली थी । जो कभी उसे अपना सब कुछ मानती थी, उस एक्सीडेंट के बाद क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं । जब छोटे को होश आया तो उसने देखा कि वह हॉस्पिटल के बैठ कर लेता है । उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था । वो बार बार सिर में लगी पत्ती को खींच रहा था । रात के करीब डेढ बज रहे थे । छोटू की नींद खुली क्या हो गया यार कहाँ फस गए हम पलंग पर लेटे लेटे उसने सोचा । कुछ देर बाद हल्के से रूम का गेट खुलने की आवाज आई ऍम मैं घर जा रही हूँ की पारी के आवास थी कल सुबह जल्दी आ जाउंगी । बरी जाने लगी । मैडम इतनी रात को अब घर जा रही है और फिर सुबह जल्दी भी आ जाएगी । नर्स बोली दिल के करीब है क्या? ये पेसेंट नहीं ऐसी कोई बात नहीं है । रोहित जी करी मुस्कुराई तो कहते हैं कुछ लोग हमें बिना बताए छोड कर चले जाते हैं । मगर हम भी उनके साथ वही करे जो उसने किया । तो फिर हमें और उनमें क्या फर्क रहेगा? बरीकी आंखे चमक रही थी । समझ गई मैं क्या रिश्ता है आपका । इनसे नर्स गौर से पारी को देख रही थी । समझ से परे है ये रिश्ता । इस इस का नाम तो होगा कुछ पता नहीं और वो ही मैडम कुछ रिश्तों के नाम न हो तो अच्छा रहता है । मेरी वजह बेनाम से रिश्ते मुझे समझ नहीं आया । कोई बडी बात नहीं । मैंने पहले कहा था कि समझ से परे हैं ये रिश्ता मुझे भी आज तक समझने आया । कहते हुए पारी रूम से बाहर चली गई । नर्स ने भी कमरे की लाइट बंद की और गेट को जोर से लगाकर चली गई । छोटू जाग रहा था । उसने सब कुछ सुन लिया था । उनकी दरमियां अभी भी कुछ अधूरा सा था । कुछ बाकी था जो आज पारी के मुझसे जाने अनजाने में निकल गया । ये बात और है कि नर्स नर्स समझे हो मगर जिसको समझना था वो समझ गया । कुछ बातें जो हमें अभी समझ नहीं आई वो बातें ये समझ के समझ लेनी चाहिए कि ये बहुत बडी बातें थी । बातें याद रखे । मतलब बाद में समझ आ ही जाता है । छोटू की आंखे खुल गई । उसके चेहरे पर सुबह की सूरज की तेज गिरने पड रही थी । चका चौंध को छेडते हुए उसकी आंखों ने सबसे पहला चेहरा परी का देखा । वो खिडकी से पडता हटा रही थी । छोटू उठकर बैठ गया । परी अभी भी काम में लगी थी । उस से छोटों को नजरंदाज किया तो छोटू ने बात शुरू की । हाँ मैं यहाँ कैसे क्यों ताजुब हुआ कि गोल गई मुझे या में? याद नहीं बडी खतरनाक तरीके से मुस्कुराई । अब तबियत कैसी है? पहले से बेहतर छोटू बोला फिर पलंग खाली करों और भी मरीज है । जिनके दुःख दर्द हम से ज्यादा है, वह भी इंतजार में बैठे हैं । पारी ने अपना डॉक्टर वाला एटिट्यूड दिखाया में अभी तक यादव में भोली नहीं मुझे कोशिश बहुत की भूलने की । मगर फिर जिंदगी से ये हिदायत मिली की धोके भूले थोडी जाते हैं । वो मिलते ही है याद रखने के लिए अभी तक नाराज मुझसे छोटे बोला उस बात को कई साल गुजर गए । घाव कितने भी पुराने हो । निशांत हो रही जाते हैं । परी रुक गई । खैर छोडो इस बात को माफ कर सकती हूँ मुझे माफ तो उसी दिन कर दिया था जिस दिन तो मुझे छोड कर गए थे भक्तों में तो मैं जानती तक नहीं । परिंदे अनजान बनने का नाटक किया । बैठ खली करो और भी पेशेंट है जिनका ट्रीटमेंट बाकी है । छोटू चुक रहा । धीरे धीरे पलंग से उठा और जाने लगा तुम्हारे पास मेरे लिए बिल्कुल भी टाइम नहीं गया । बिल्कुल नहीं पर ये अपने मोबाइल में बिजी हो गए । जिनके पास मेरे लिए टाइम नहीं था उनके लिए मेरे पास टाइम नहीं जैसे को तैसा और वैसे भी मुझे बहुत कम है बेरोजगार नहीं हूँ । मैं छोटू रूम से बाहर चला गया । नरसी फाइल डॉक्टर अरोडा को दे देना और कहना इसे अच्छे से देख ले । कोई कमी हो तो जरूर बताये । परिवेश देखकर भी छोटों को अनदेखा कर दिया । छोटू नीचे वाले फ्लोर पर आया मगर वहाँ उसके दादा दादी नहीं थे । और दौड कर काउंटर पर खडी नर्से पूछता है यहाँ पर बूढे दादा दादी बैठे थे । आपको पता है वह कहाँ गए जी सर, उनका ट्रीटमेंट तो कल ही हो चुका है । नर्स बोली उनका ट्रीटमेंट आएगा । मैम ने किया था । मुझे लगा जैसे वो लोग उनकी कोई रिलेटिव हो । बिल बिल पहले ही पे हो चुका है । किसने किया? शायद मैंने उन्हीं के नाम से बिल बना है । नर्स ने कंप्यूटर में चेक किया । छोटू जाने लगा तभी वो नर्स बोली अब मैडम के रिलेटिव हो गया । नहीं क्यों? छोटों ने कुछ सोचा कल मुझे ऐसा लग रहा था जैसे महम का कोई सपना हो क्योंकि वो इतनी टेंशन में थी । छोटू मन ही मन मुस्कराया । उसके दिल में मेरे लिए अभी भी कुछ बाकी है । वो अभी भी मुझे चाहती है । छोटों ने मन ही मन सोचा मुझे सब सच बताना होगा उसे । आखिर उस दिन हुआ क्या था? कहते हैं की नाराजगी वाला प्यार सच्चा प्यार करने वाले ही समझ पाते हैं । जिसमें एक दूसरे की गया तो होती है मगर बात नहीं होती । जवान कुछ कहती है वहाँ नजरे कुछ कहती है कि दिल कुछ कहता है सिनेमा कुछ शायद वही प्यार पारी के दिल में अभी भी जिंदा है । छोटों ने घर के अंदर पैर ही रखा था कि सवालों की तूफान ने उसे घेर लिया । किस से बढ कर आए हो मेरी दादी ने पूछा कुछ नहीं छोटा सा एक्सीडेंट हो गया था । बस छोटू बैंच पर बैठ गया तो भी कभी सुधर नहीं सकता । एक न एक सियापा खडा करता रहता है । श्री दादी ने पानी का ग्लास छोटों की तरफ बढाया । अच्छा सुन कल परी मिली थी तो बडे डॉक्टर बन गई है । बिटिया कौन तेरे कॉलेज के दोस्त हाँ मिली होगी । छोटू फॅसा था जैसे वो कुछ जानता ही ना हो । उसके वन में कुछ तो पकडा था । एक्सीडेंट की वजह से ही से ही कम से कम बिछडे दोस्त से मुलाकात हुई । सही नाम था उसका डॉक्टर आएगा । छोटू कहकर अटारी पर जाने लगा और दादा की तबियत कैसी है? पहले से अच्छी है । कल परिधि ने ही दादा का ट्रीटमेंट किया था । संस्कृति ने बताया अभी भी उसकी हमदर्दी मुझसे और मेरे परिवार से जुडी हैं । छोटू ने एक बाल के लिए सोचा और अटारी चढ गया । उस से बात करो या नहीं । छोटू पलंग पर लेटा सोचने लगा शायद वो मेरी मजबूरी समझ पाए । शायद वो समझ जाए कि मैं उसे छोड कर नहीं आया था इस शहर में शायद वो मेरे हालात, समस्याएँ शायद सोचते सोचते छोटों की कब नींद लग गई उसे पता भी नहीं चला । गजब की मजबूरी है ये मजबूरी आदमी को कितना मजबूर बना देती है । यह मजबूरी एक मजबूरी न समझने से कितनी गलत फहमी खडी कर देती है की ये मजबूरी छोटू कई सालों से किराये के घर में रहता था तो पूरा घर ज्यादा की पेंशन से चलता था जिससे सिर्फ जरूरत के सामान ही आप आते थे । सब लोग बस इसी उम्मीद के सहारे बैठे थे की छोटों की नौकरी लग जाए । मगर पता नहीं कब लगेगी छोटों की नौकरी । ऐसा नहीं था कि छोटों के कुछ सपने नहीं थी । उसने सपने तो बहुत बडे बडे देखे थे, मगर उन्हें पूरा करने की उसमें हिम्मत नहीं थी । बहुत कुछ सोच रखा था उसने दिन बीते हैं । बीते गए शामिल । गलती है कि दाल दी गई । रातें गुजरती है, गुजरती गई । धीरे धीरे जिंदगी की उम्र बढती गई । अभी तक छोटों की लाइफ में ऐसा अवसर नहीं आया था, जिससे वह अपनी काबिलियत को सिद्ध कर सकें । अपनी काबिलियत सिद्ध करने के लिए दिनभर छोटू भटकता रहता था । इधर उधर न जाने के धर किधर खाना बदोश की तरह घूमता रहता । खैर छोटू का एक और मुश्किल दिन कट गया । दिन तो कट जाते, भटकते भटकते, मगर रात की बेचैनी उसे साफ की तरह सस्ती थी । उसी एक बात समझ में नहीं आती थी कि असाटी इतना खुश क्यों रहता है । मेरा ही क्लासमेट है । उसी भी मिडिल क्लास फैमिली का टैग लगा था । नौकरी का भी अता पता नहीं, मगर फिर भी हमेशा बिजी रहता है और इस्माइल वाले इमोजी की तरह हमेशा बेफिक्र खुशमिजाज रहता है । उसकी तो खुश रहने की वजह भी समझ नहीं आती । पता नहीं क्यों