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तीसरा भाग सब धुआ धुआ सबकी जिंदगी न जाने कितने सियापुर से भरी है । अगर उनसे आपका कलेक्शन करें तो एक मूवी की स्क्रिप्ट लिखी जा सकती है । ऐसा हमेशा मेरे साथ ही क्यों होता है कि ये हादसा शायद हर किसी के साथ होता है और ये बात शायद हर कोई कहता है । इसी हादसे का शिकार मेरा यार छोटू था । किस किस ने नहीं समझाया उसे हर किसी के ताने बाने तो सुने थे कोई भी, कहीं भी, कभी भी उससे मिलता तो बोले बिना नहीं चूकता, चाहे वो रिश्तेदार हो । क्या पडोसी देखो ऐसा होता है बिना अब आपका लडका कितनी दूरी लाइफ एसकी हर कोई अपनी तरफ से पूरी सहानुभूति दिखा था । मगर जब सहयोग की बात आती है तो सब की चुप्पी सब जाती । पता नहीं सहयोग के वक्त लोगों की सहानुभूति कहाँ मर जाती है । सहानूभूति तो हर कोई रखता है मगर उन्हें पता नहीं कि गूंगा व्यक्ति सलाह या सहानुभूति नहीं मांगता । वो सहयोग जाता है क्योंकि सलाह तो ना मांगने पर भी मिल जाती है । नहीं तो मैं ऐसा करना चाहिए तो ही ट्राई क्यों नहीं करते । मगर जब सहयोग की बात दादी तो दूर दूर तक लोग दिखाई नहीं देते हैं छोटू सलाह नहीं सहयोग जाता था भाई आज तक उसे किसी ने ये नहीं कहा कि आओ मैं तुम्हें नौकरी दिलाता हूँ । इससे व्यक्ति जले पर नमक तो नहीं छोडता, मगर उसका इंटेंशन भी समझ नहीं आता । मगर मैं अपने दोस्त को अच्छे से जानता था । उसकी खुद्दारी उसे सबसे अच्छी लगती थी क्योंकि उसे मांगने से अच्छा कमाना पसंद है । वो जिम्मेदार है और मजबूत भी । और कहते हैं जो जिम्मेदार होते हैं, कंधे उन्हें के मजबूत होते हैं । छोटू की हर मांग को हर जरूरत को उसकी आवश्यकताओं को पता नहीं क्यों परेशानी बना लिया जाता? राहत चलते लोग कहते मिल जाते हैं, जितनी चादर हो उतने पैर पसार हो तुम कहीं के लाटसाहब नहीं हो, ज्यादा रंगदारी मत बताओ । तुम कहीं की रंगदार नहीं हूँ । जाने अनजाने में क्या क्या बातें वो अपने बारे में सुनता रहता था और अंत में वह शांत होकर सीमित रह जाता हूँ कि ये किसी एक दिन की बात नहीं थी । लोगों की ताने दिनों दिन बढते जा रहे थे तो कुछ नहीं कर सकते । तो जी क्यों रहे हो? लोगों की वादियों से काटने को दौडती थी । वो चाहता था कि दुनिया छोड कर कहीं और चला जाए । एक पल उसे खयाल आता कि वह खुद को खत्म कर ले । मगर वही गलती दोबारा नहीं दोहराना चाहता था । जो उसके सबसे गरीबी लोगों ने की थी वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त था क्योंकि हम लोगो टीआईआर थे । हम बचपन से ही दूसरे को समझाते थे और मुझे मालूम था कि उसने ऐसा गलत कदम आज तक क्यों नहीं उठाया । असल बात ये थी कि वो अपने दादा दादी और बहन से बहुत प्यार करता था । उनकी आखिरी उम्मीद था मेरा भाई । जब कोई आदमी लोगों के ताने सुन सुन के थक गया हो तो उसे लोगों का समझाना भी ताना लगने लगा था । उसके अंदर गुस्सा भर गया था । बाद बात पर गुस्सा हो जाता । मगर उसके हालत, जज्बात और मजबूरियाँ सिर्फ मैं समझता था वो ऐसा क्यों हैं? उसकी बेरूखी का क्या कारण है? सिर्फ मैं जानता था छोटू जरा जरा सी बात पर जल्दी हैरान परेशान हो जाता है । शायद इसलिए भी क्योंकि उसके पास जिम्मेदारियाँ बहुत थी, मगर उन्हें संभालने की हिम्मत नहीं थी । कोई उसे हौसला देने वाला भी नहीं था । बस इन्हीं जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा छोटू अपनी बहन के सपनों को पूरा करने और बूढे दादा दादी की बुढापे की लाठी किंकर्तव्यविमूढ होकर बैठा नहीं रहना चाहता था । क्या? मूल लेकर दादी के सामने जाऊँ? फिर बिना नौकरी के वापस आ गया । ऐसे पता नहीं कितने उलटे सीधे विचार उसने अपने सहन में पाल रखे थे । उसकी आंखों में आंसू थे मगर वो नासिक को अपनी आंखों में ही समेट कर रखना चाहता था । खुद को बेनकाब होने से डरता था । उसके घर में घुसते ही जूते उतारे और किसी से बिना कुछ कहे अटारी पर पडे पलंग पर गिर गया । उसके परिवार की उम्मीद फिर से टूट गई । घडी की टिक टिक करती आवाज भी उसे ऐसी लग रही थी जैसे वो भी उसकी बदकिस्मती पर वहाँ के लगाकर हस रही हो । सुबह का सूरज अपने नए पडाव पड था । सूर्य की किरणे चारों और फैली थी हर जगह चमक धमक सुस्ती आ रही थी सडक के अगल बगल की ना लिया भरी पडी थी अम् मर्जी । दूधवाला दूध वाले ने छोटू के घर की घंटी बजाकर कहा भैया जी! कल से दो दादा लेटर ही चाहिए । छोटों की दादी ने तरफ बाजी को खोलकर पतीली आगे की क्यों माईबाप कुछ गलती हो गई का? हम से दूध वाले ने दूध देते हुए कहा । नहीं बस ऐसे ही दादी ने उससे नजरे बचाई । ठीक अम्बाजी दूध वाला दूध देकर वहाँ से चल दिया । दादी दूध लेकर किचन में गए । थोडी देर बाद दादी चाय का ग्लास लिए ऊपर अटारी में पहुंची । उठो बेटा दादी बोली नौकरी के लिए नहीं जाना गया । श्रीगांधी पलंग पर बैठ गई । ज्यादा बीमा नौकरी हो तो जाए । छोटू में ही बोला आप किस नौकरी की बात कर रही है? यहाँ जिसके पास पैसा होता है उसी को नौकरी मिलती है । फिर जमाना भी उसी का है । इन बातों से लग नहीं रहा था कि वह नींद में है । थानों पूरे होश में ये बातें बोल रहा हूँ । छोटों ने अपनी सारी भडास निकालते हैं । मुझे तो विरासत में दुआएं ही मिली है । जिससे एक चड्डी भी खरीदी नहीं जा सकती । कोशिश तो करनी चाहिए । दादी माने उस को समझाते हुए कहा कोशिश कोशिश कोशिश जब से कोशिश तो कर रहा हूँ । छोटों का गुस्सा बढ रहा था । दादी ने हालत को समझाते हुए बात बदले । लोग चाय पीओ । हमें अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिए । उम्मीद नहीं छोडनी चाहिए । सब का समय आता है, अपना भी आएगा । श्री दादी मुस्कुराई थी । गए दादी छोटों ने अनमने ढंग से कहा ये एक ऐसा सच था जो उस दिन उसकी दादी ने छोटों को बताया था । मगर वह भी खबर था इस बात से की ये सच कुछ सालों बाद सच में सच साबित होगा और साबित भी हुआ ।

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