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दूसरा भाग कैसी जिन्दगी शायद शायद और शायद ग्यारह दिसम्बर जाडे का समय कडाके की ठंड लालिमायुक्त अनंत आकाश में सूर्यास्त के कुछ समय पहले की लालिमा शहर के चारों और बिक्री थी । लोग मेहनत मजदूरी करके अपने अपने आखिरी को पधार रहे थे । ट्रैफिक का घमासान शोर जो ये अहसास दिला रहा था कि ये शहर है किसी ना किसी के इंतजार में कोई न कोई बेचैनी से अपनों की राह देख रहा था । रोडवेज की बसे अपनी रफ्तार पकड चुकी थी । शाम का वही सूरज जो सुबह आग की तरह जल रहा था अब हो चला था । सडक के एक तरफ शादी के नगाडे बज रहे थे तो दूसरी तरफ मातम छाया था । कहीं गाजेबाजे की आवाज इतनी तेज थी कि कान फटे जा रहे थे तो कहीं माताओं बहनों के रोने से आकाश भी डरा हुआ था । बात अजीब जरूर है मगर असंभव नहीं । किसी की जिंदगी में खुशी है तो किसी की जिंदगी में गम की कमी नहीं । किसी की लाइफ मजे में कट रही है तो कोई जैसे तैसे करके काट रहा है । किसी की लाइफ बन पडी है तो किसी की लगी पडी है । किसी की लाइफ में वो सब है जिसके होने पर लोग अमीर कहलाते हैं । मकर रहे किसी गरीब आदमी के आज शाम के खाने के बाद पता नहीं कल का सूरज उसके लिए लगेगा या नहीं । मगर ताजुब के बाद ये है कि ये सोचकर भी हमारे देश का सारा भिखारी मंडल रात में फुटपाथ पर चैन की नींद ले रहा है । है । सूरज तो लगेगा मगर ये तो ऊपर वाला ही जानता है कि फुटपाथ पर बडे लोगों का सूरज होगे गा या नहीं । सब अपने अपने लाइफ में फिट है, खुश है । इस बीच बाहक दुनिया के लाचारी भरे नाटक में अपना किरदार बखूबी निभा रहे हैं जिसमें हर किसी के पास एक मंच है और हर कोई उस मंच का राजा हीरो । शायद बचपन में हम सरकारी स्कूल की दीवार पर एक बात पडे थे जो मार सामने हमें बेशर्म की लाठी से कूटते कूटते याद कराई थी । वो बात हम को आज भी याद है और जिसे हजारों लोगों ने लाखों बार दौर आया है । सुख दुख दुनिया की ऐसी चीजें हैं जो अनिवार्य रूप से व्यक्ति के साथ रहती है चाहे वो गरीब हो या अमीर । उस दिन उनकी बात पर गुस्सा आया था मगर अब असलियत सामने हैं । अब ऐसा लग रहा है कि जैसे उनकी कहीं हर एक बात सही हो रही हो । हम तो सुकन् से पूछे थे कि तेरे पिताश्री ज्योतिषी थे गया कि जो हम जैसे अबूद बालको को दूर से ही देखकर हमारा भविष्य बता देते थे । अब इस बात का मतलब भी पता है वो हर मायने भी और कहते हुई है । जिंदगी के मायने जवाब कुछ समझ में आने लगे तब समझना आप बडे हो गए हैं । शिकायतें हमेशा हर किसी के पास होती है । उस वक्त हमें भी थी, अभी भी है समस्याएँ हर किसी के पास थोक में मिल जाएगी । उनसे पीछा छुडाना नामुमकिन रहा ये नहीं हो रहा है । वो नहीं हो रहा । ऐसा होना चाहिए, वैसा नहीं हो रहा । ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला चिंता से याद आया । चिंता के भी अनंत प्रकार है । अगर हमने फेसबुकिया इंस्टाग्राम पर अपनी फोटो अपलोड की और उसमें हमें दस या पंद्रह लाइक्स मिले तो भी चिंता बढती है । हमारे अभिन्न मित्र जिससे हमारे साथ ही फोटो अपलोड की थी उसकी फोटो पर अगर हम से ज्यादा लाइक साइट तो फिर और भी चिंता बढती है की ये आज कल की चिंता है । इत्ते पाक से अगर किसी ने हमारी फोटो पर दिलवाला रिएक्ट कर दिया फिर तो बल्ले बल्ले और तब तो और जब वह ॅ किसी लडकी ने किया हूँ । इस तरह पागलपंथी के अंधाधुन गेम में हम लोल बन जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता । कल तो एक आदमी को कहते सुना कि ये ताजमहल अगर लाल पत्थर का होता है तो माँ कसम मजा आ जाता है बिल्कुल उसने हूबहू बात कही । मैंने कुछ नहीं कहा बस होट ऊपर किए हर बंदे से दिखा दी । हम तो बचपन से ही एक डायलॉग काट लिए थे कि जब तक हम ना चाहे किसी के बाप की औकात नहीं है जो हमें दुखी कर सके । इसका मंतर हम आज भी दिन रात रखते रहते हैं । सत्ताईस की उम्र तक आते आते हैं । हमने दुनिया में दो कैटेगरी के लोगों को देखा है । एक वो जो सच में दुखी है और दूसरे वो जो बेवजह वजह ढूंढते हैं दुखी होने की पहली वाली की डिग्री तो ठीक ठाक है । उनकी लाइफ की लगी पडी है तो दुखी हो रहे हैं इसमें कोई बडी बात नहीं मगर दूसरी वाली केटिगरी वाले बहुत बडे वाले होते हैं और उसी से बिलोंग करते हैं । मेरे परम मित्र छोटू भैया मिडिल क्लास में पला बडा छोटू अपने छोटे छोटे सपनों को आंखों में सजाए उदासी भरा चेहरा लिए खुद से ही बे खबर अपनी सारे महीनों और सालों में किए कोर्सों के सर्टिफिकेट हाथ में लिए अपने घर की ओर जा रहा था । ठंड धीरे धीरे बढ रही थी, लगी थी घर नजदीक आ गया मगर छोटों के कदम डगमगा रहे थे । मन में कई सवाल भरे पडे थे क्या जवाब दूंगा घर जाकर आज फिर वापस आ गया । नहीं मिली नौकरी सवालों के जवाब में सबसे बडा सवाल यह था कि क्या पैसा कमाना ही सब कुछ है? अगर पैसे कमाना ही सब कुछ है तो कैसे कमाएँ? कैसे बने अपने भी परफेक्ट लाइफ जो किसी की नहीं होती । बस परफेक्ट होने का भ्रम होता है । छोटू अपनी जिंदगी से थक गया था । उसके पास कोई ऑप्शन नहीं था । कोशिश करने के अलावा वही हालता छोटों का जो एक मिडिल क्लास फैमिली के लडकी का होता है । जिसके पास एक ही ऑप्शन होता है बस स्टार्ट अप करना है । कुछ बडा सा करना है । इस उम्र तक तजुर्बा तों का पहाड लिए हमने दुनिया में दो ही तरह से कम होते देखे हैं । एक तो इंटरेस्ट से काम किये जाओ या फिर दूसरा झक मार के काम करना पडेगा । जो इंटरस्ट करते हैं उन्हें कम में मजा आता है क्योंकि झक मार के काम करने में किसको मजा आता है । बदकिस्मती से जो पहला ऑप्शन नहीं चुनते उनको दूसरा ऑप्शन चुनना ही पडता है । लाइफ किस खेल में कुछ नाम का कोई ऑप्शन नहीं होता? क्या है उसके पास? क्या करे वो बस एक जिम्मेदारियों का बोझ है । उसके पास तो वो भी नहीं है जो हर किसी की लाइफ में सबसे जरूरी होते हैं । हताश निराश छोटू अपने से ही परेशान । यहाँ वहाँ नौकरी की तलाश में दिन रात भटकता रहता । उदासी भरी जिंदगी की हद हो गई थी । कभी सोचता मैं किस के लिए जी रहा हूँ । क्या रखा है जिंदगी में हालत वो चीज है जो किसी भी इंसान को तहस नहस करके रख देती है । फिर इंसान वो बन जाता है जब खुद को सपने में भी देखना पसंद नहीं करता । कुछ यही चल रहा था । मेरे परम मित्र की लाइफ में ठंड बढ रही थी । कोहरा उसकी आंखों को धुंधला कर रहा था । उसे हर तरफ सिर्फ अंधकार ही अंधकार नजर आ रहा था । सिर्फ अंदर का अंधकार । यही तो हमारी लाइफ होती हैं । कभी कभी हम मंजिल के बहुत करीब होते हैं मगर सामने कोहरा आ जाता है और हम पीछे हट जाते हैं । शायद हमें हिम्मत ही नहीं होती आगे बढने की फिर बाद में पछताते हुए कहते हैं कि बस एक कदम और बढा लेने की उस वक्त हिम्मत की होती है । मगर उस वक्त शायद हम डर रहे होते हैं कि अगर कोहरे के आगे खाई निकली तो शायद

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