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स्वागत है आप सभी का मैं राज राज की जुबानी इस वक्त आपको ले जाने आया हूँ एक और वो के सफर में एक पूर्ण आध्याय एक सबर पर । इसके अंत में हम अपने आप में एक नया इंसान से मिलेंगे । नये मान और नए विचारों के साथ तो अपने आप को तैयार कर लीजिए और मेरा नाम राज है । साथ निभाऊंगा अंत तक फॅसने जब मन चाहे अध्याय एक अधिकारी कौन है हमारा जीवन तीन स्तर पर चलता है, पहला है आदि बहुत एक दूसरा है आज ब्रेक तथा तीसरा है आध्यात्मिक आदिभौतिक जीवन । आज डेविक के बिना तथा आज देविक जीवन आध्यात्मिक जीवन के बिना अधूरा है । जिस प्रकार अगर कोई मनुष्य अपनी जीवनी लिखे और वह सिर्फ अपनी जाग्रत अवस्था के ही बारे में लिखता है मतलब उसने सिर्फ अपने संपूर्ण जीवन के एक तिहाई भाग की ही कहानी लिखी है । बाकी की दो तिहाई भाग में क्या वह जीवित नहीं था? तो जितनी भी जीवनी हम लोगों ने आज तक पडी वो सम्पूर्ण है । उन का कोई मतलब नहीं है । जिस प्रकार मान ले हमें कुछ पौधों में शोध करना है, उसमें फोटो ऍम को स्टडी करना है । तो क्या हम केवल डेटाइम केरेटा आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं । नहीं क्योंकि इन कंपनी डेटा हमारे किसी काम का नहीं, ये सही रिजल्ट नहीं देगा बल्कि भ्रम पैदा करेगा । उसी प्रकार आदिभौतिक क्षेत्र माननीय संसार या हमारे अनुभव का क्षेत्र आदिदैविक और आध्यात्मिक क्षेत्र के बिना मनुष्य में भ्रम पैदा करता है । आदिदैविक क्षेत्र या अनुभव होने का स्तर है अर्थात अनुभव की प्रक्रिया । जैसे यदि हमारी आंखों में जो दृष्टि है वो हो गई अनुभव की प्रक्रिया या आधी देवी क्षेत्र तथा तीसरा जीवन का स्तर है । आध्यात्मिक सर अब थोडा ध्यान देने वाली बात है । आदिभौतिक से आदिदैविक तक ज्यादा तक लोगों की समझ में आ जाता है परंतु ज्यादातर लोग आदि बहुत ही को ही सत्य समझ लेते हैं । जबकि यहाँ पर ये समझना बहुत ही जरूरी है कि आदिभौतिक की सत्ता आदिदैविक की वजह से है तथा आदि देव इक्कीस सत्ता आध्यात्मिक क्षेत्र की वजह से है । जैसे मैं चश्मा पहनता हूँ क्योंकि चश्मा बाहर का रंगरूप देख रहा है नहीं क्योंकि चश्मा अपने लिए तथा अपने आप बाहर की विषय वस्तुओं को प्रकाशित नहीं कर रहा है, वो आंखों के लिए काम कर रहा है । तो क्या आंखे रंगरूप को देख रही है? नहीं यदि आंखों में दृष्टि न हो तो चाहे यहाँ की कितनी सुंदर या स्वस्थ क्यों ना लगे उन का कोई मतलब नहीं । तो क्या सुर दृष्टि के द्वारा हम बाहर की विषय वस्तु रंग रूप को देख तथा अनुभव कर रहे हैं । थोडा चिंतन करने से पता चलेगा कि यदि आंखों के पीछे मन ना हो तो हम आंखों में दृष्टि होते हुए भी कुछ नहीं देखते हैं । तो फिर क्या मन सब चीजों का प्रकाशक है? नहीं मन अपने आप में जड है । मन में यदि चैतन्य ना हो तो मान कुछ भी नहीं है । ऐसा करते करते हमें ये पता चलता है कि आखिर ये कौन है जिसके कारण आदि भौतिक तथा आदिदैविक क्षेत्र अपना अपना कार्य कर रहे हैं । यही क्षेत्र आध्यात्मिक क्षेत्र कहलाता है । मान लिया एक मलेशिया भी बिल्कुल स्वस्थ है । वो आदि बहुत एक तथा आदिदैविक क्षेत्र को देख रहा है, उसमें व्यवहार कर रहा है । दूसरे ही शायद उसकी मृत्यु हो जाती है तो आदमी वही है, उसकी आंखें भी वैसी ही है । लेकिन अब उसके लिए आदिभौतिक और आदित्य क्षेत्र का कोई मतलब नहीं है क्योंकि आध्यात्म क्षेत्र ने देख के द्वारा आदिभौतिक और आदित्य क्षेत्र को प्रकाशित करना बंद कर दिया है । तो कुल मिलाकर बात ये हो गई कि इस पुस्तक को पडने के लिए आपको किसी भी तरह के अधिकार की जरूरत नहीं है । लेकिन इस पुस्तक को समझने तथा इस पर चिंतन वही कर सकता है जो जीवन का अर्थ केवल आदि बहुत क्षेत्र अर्थात आहार खाने पीने, निद्रा, सोना, भाई अर्थात अपने को संरक्षित करना, डेढ अभिमान तथा मैं बच्चे पैदा करना । इन चार बातों के अलावा समझता हूँ जो मनीष चयन, चारो आहार, निद्रा, भय, मैथुन इन्ही को जीवन समझता है, वह पुस्तक को अध्ययन करने का अधिकारी नहीं है । क्योंकि इस पुस्तक को समझने के लिए पहले हमें जीवन के बारे में जो हमारी अनगिनत गलत धारणाएं हैं, उन को ठीक करना होगा । तभी इस पुस्तक में बताए गए तथ्यों को समझा जा सकता है ।