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आज सुन रहे हैं फॅमिली नहीं जो मन चाहे धन नहीं तो कदर नहीं लेखक जिस केंद्र कुमार पांडेय आवश्यकता से ज्यादा हो तो उसे बांटो मनीष कभी कभी इतनी मूर्खतापूर्वक हरकतें करता है जिसे सोच कर ही दुख होता है । वह उन चीजों को भी देने से मना कर देता है जिसकी कीमत कुछ भी नहीं । ये चीजे बेकार होती हैं फिर भी अगर कोई व्यक्ति मांग ले तो उसे मना कर देता है । हम में से ज्यादातर लोग ऐसी हरकते जीवन में कई दफा करते हैं फिर भी इस बात का इल्म नहीं रखते हैं कि मेरे पास जो चीज हो वो किसी काम की नहीं है या मेरे पास वो चीज आवश्यकता से अधिक है फिर भी लोग देने में हिचकी चाहते हैं । जैसे घर पर कोई भी क्षु आता है और खाने के लिए आपसे कुछ मांगता है या कोई पुराना कपडा मांगता है लेकिन हम उसे ये कहकर भगा देते हैं घर में कुछ भी नहीं । जब की आपको मालूम होता है कि घर के सभी समय से खाना खा चुके हैं या घर पर कुछ पुराने कपडे अवश्य जिन्हें कोई नहीं पहनता है लेकिन हम उसे कुछ भी देने से मना कर देते हैं । और इस बेचारे को द्वार से भगा देते हैं । ये बात बडी अजीब लगती हैं । लेकिन है बहुत ही दुखद कि मनीष है जब किसी छोटी सी चीज को देने से मना कर देता है तो बडी वस्तु कैसे किसी को दे सकता है वो क्योंकि हम सभी लोगों की आदत हमेशा मांगने की ही रही है । देने की आदत तो बहुत ही थोडे लोगों में होती है और सही मायने में वो व्यक्ति जो देने को राजी है जो उसके पास आवश्यकता से अधिक हैं वहीं मनीष है और उसके पास ही मनुष्यता हैं । पृथ्वी पर बहुत थोडे से लोग ऐसे हैं जो दूसरों को अपनी वस्तु दे देते हैं । अगर मैं आपसे ये कहूँ कि ऐसे लोगों की वजह से ही दुनिया अभी चल रही है वरना कब की खत्म हो जाती है तो ये गलत नहीं होगा । भारत देश में अगर देना सीखना है तो सिख समुदाय से सीखना चाहिए । जो निस्वार्थ सेवा करते हैं उनके लंगर विश्व प्रसिद्ध है । उनके लंगरों में प्रतिदिन हजारों भूखे व्यक्ति खाना खाकर अपनी भूख मिटाते हैं और वह किसी से ये तक नहीं पूछते हैं कि तुम कौनसी धर्म के हो या इस जाती हूँ जैसा अक्सर लोग पूछा करते हैं । इन तो इंसानियत से बढकर और कोई भी धर्म नहीं होता है । इन्हीं लोगों की वजह से भारत में थोडी भूखमरी कम हुई है । सिख समुदाय अगर लंगर बंद कर दें तो पता नहीं कितने लोग भुखमरी से मर जाएँ या उनको भूखे पेट सोना पडी । इसके अतिरिक्त भारत में अभी भी ऐसे लोग हैं जब कभी न कभी ऐसे आयोजन करते रहते हैं जिससे लोगों को भोजन मिल सके । लेकिन ऐसे आयोजन अधिकार से प्रेरित भी होते हैं । तो मेरे कहने का तार पर ये हैं जब भी आप कोई वस्तु या धन दूसरों को दी तो बिना शर्त दीजिए, दूसरा चाहे जैसा उसका उपयोग करें, आपने दे दिया । उसके बाद जिसको मिले वो जाने । तभी देने का अर्थ होता है । अभी उसके मायने रहते हैं । अगर आप देने में शर्त लगाते हैं तो वह देना देना नहीं रहता हूँ । वो ये जताना होता है कि तुम्हारे पास नहीं है । इसीलिए मैं तो मैं वो वस्तु दे रहा हूँ । उसमें अहंकार होता है । आपने अगर कोई वस्तु किसी को दी, बस बात समाप्त हो जानी चाहिए लेकिन हमने देना नहीं सीखा है । इसीलिए शर्त लगा कर देते हैं । भला ऐसा भी कोई देना हुआ जिसमें कोई शर्त लगी हो । लेने वाला भी सोचता होगा कि इससे अच्छा होता तो मुझे कोई सामान्य देता क्योंकि ऐसे में शर्मिंदगी महसूस होती है । इसीलिए मनुष्य के पास कोई वस्तु ये धन आवश्यकता से अधिक हो तो उसे दूसरों को बांटना चाहिए । यहाँ पर ये बात समझना बहुत जरूरी है कि वस्तु जो अधिक हैं, अर्था मात्रात्मक रूप में ज्यादा हो, उसे बांटना चाहिए । जैसे किसी के पास चार कलम है अगर कोई आपसी मांगता हूँ और आपको लगता है मेरा काम तीन कल मुझसे हो जाएगा तो एक कलम दूसरे को देने में कोई हर्ज नहीं । दुनिया का बडा अजीब दस्तूर है । कुछ लोग गर्म कपडे न होने की वजह से ठंड से मर जाते हैं और कुछ लोगों के पास अंबार लगा होता है । गर्म कपडों का मैंने महानगरों में सडक के किनारे यह फूलों के पास अधिकतर लोगों को ठंड से लडते हुए देखा है । उनके पास ठंड से बचने के लिए कोई कपडे नहीं होते हैं । वो आपकी तपिश में रात भर जागकर काटते हैं । कभी कोई भला आदमी कभी कभी इन लोगों की मदद भी कर देता है । ये चंदा इकट्ठा कर लोगों को गर्म कपडे खरीद कर बांटता है । मैंने नेताओं को एयर कंडीशनर में भाषण देते हुए सुना है और काजू बादाम का नाश्ता करते हुए देखा है । लेकिन आज तक किसी नेता को कचडे के ढेर से खाना ढूंढने वाले इंसान की मदद करते हुए कभी नहीं देखा । नेता को अपना घर पर अपना परिवार ही दिखाई देता है । किसी दूसरे का घर तो केवल उसे वोट ही दिखाई देता है । इसलिए मेरी नजर में अगर सबसे घटिया आदमी है तो वह भारत देश की जांच नेता है क्योंकि नेता हर कान के बदले धन मांगता है । हर किसी को कुछ कभी देता नहीं । मुझे आश्चर्य होता है कि भारत देश में अशिक्षा और बेरोजगारी के कारण ही नेताओं के भाषण सुनने हजारों की तादात में होगा जाते हैं । मैंने किसी उद्योगपति को किसी नेता का भाषण सुनते नहीं देखा है, नहीं हूँ किसी के मंच पर जाते हैं क्योंकि मुझे पता है कि आ गए वो किसी नेता का भाषण सुनने जाएंगे तो उनका लाखों करोडों का नुकसान हो जाएगा । अगर भारत देश से अशिक्षा और बेरोजगारी मिट जाए तो शायद ही नेता का कोई भाषण सुनने जाएँ क्योंकि प्रबुद्ध लोग कभी किसी नेता के यहाँ नहीं जाते क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी सोच के सामने नेताजी की कोई सोच नहीं है । इसीलिए अभी तक मैंने आपसे जो भी बातें कहीं, उसका तात्पर्य यही है कि आपके पास आवश्यकता से अधिक जो भी हो उसे बाल्टी क्योंकि दूसरों को देने का भी एक अलग आनंद होता है ।
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