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आप सुन रहे हैं फॅमिली के साथ सुने जो मिलता हैं धन नहीं तो कुछ नहीं । लेखक चीज केंद्र कुमार फाइन नहीं है । आज के आधुनिक समाज में जहाँ हम रहते हैं वहाँ किसी के पास इतना ज्यादा धन होता है कि वह सोचने को मजबूर हो जाता है कि इस धन का वह कैसे इस्तेमाल करें और होता ये है कि वह फिजूलखर्ची हो जाता है । जो चीजें किसी के काम नहीं आती उन्हें वह इकट्ठा करने में लग जाता है और उसे अपना एक शॉप बना लेता है । गौर से विचार करने पर पता चलता है की फिजूलखर्ची मूर्खतापूर्ण कार्य लगता है लेकिन वो किसी का शौक भी बन जाता है । जैसे किसी व्यक्ति को महंगी पेंटिंग खरीदने का शौक होता है तो कोई महंगी कारों को इकट्ठा कर लेता है । लेकिन उसकी जरूरत सिर्फ एक या दो कारों से पूरी हो सकती हैं । फिर भी वो इकट्ठा करता ही चला जाता है जिनका उपयोग वो ठीक ढंग से कर भी नहीं पाता । मैं धन के दुरुपयोग की नहीं बल्कि उसके सदुपयोग की बात करता हूँ । जितनी महंगी कारों में लोग सफर करते हैं उससे भी कम कीमत में किसी गरीब का आशियाना बनाया जा सकता है या कोई ऐसा काम जिससे लोगों को कुछ फायदा हो सके । जैसे कोई छोटा सा अस्पताल ही बना दिया जाए जिससे लोगों का इलाज हो सके । कोई तालाब या कोई हुआ बनवाया जाए जिससे लोगों की प्याज बहुत सकें । इसीलिए धन का सदुपयोग होना चाहिए । वहीं दूसरी और नीचे भी व्यक्ति होते हैं । उन्हें अक्सर लोग कंजूस की श्रेणी में ही रखते हैं । जबकि मितव्ययी व्यक्ति धन का सदुपयोग बहुत अच्छे ढंग से करता है । वो उन्हीं चीजों को खरीदता है जिसकी उसे आवश्यकता होती है । वो फिजूलखर्ची बिल्कुल नहीं करता हूँ, उसकी फालतू की चीजों को खरीदने की कोई रूचि नहीं होती । हम सभी लोगों ने सुना होगा । घर के बुजुर्ग हमेशा धन को फिजूलखर्च से बचाने के लिए मना करते हैं क्योंकि वह लोग ज्यादा बुद्धिमान होते हैं । किसी व्यक्ति का ज्यादा पढा लिखा होना बुद्धिमत्ता का सबूत नहीं है । जैसा कि अक्सर लोग मानकर चलते हैं कि जो ज्यादा पढा लिखा होता है, जिसके पास ज्यादा डिग्रीज होती है वहाँ से ज्यादा बुद्धिमान होता है । तो ये बात सरासर गलत है क्योंकि मैंने हमेशा कम पढे लिखे लोगों के यहाँ ज्यादा पढे हुए लोग काम करते हुए देखे हैं । इसीलिए कहना चाहता हूँ कि आज के दौर में जो लोग बाजारवाद की तरफ ज्यादा उत्सुक हैं और बाजारवाद ने लोगों से फिजूल खर्ची करने के लिए नए नए उत्पाद तैयार किए हैं, जिनकी व्यक्तियों को कोई भी आवश्यकता नहीं है और बाजारों में नई चीजों को बनाया जा रहा है जिससे लोग आकर्षित हो रहे हैं । लेकिन बाजार में एक नई चीज को चमक दमक के साथ दिखाकर आकर्षण पैदा किया जा रहा है जिससे लोग ज्यादा से ज्यादा बाजार में उत्सुक हो रहे हैं । वो चाहते हैं कि धन आप कमा लूँ और बाजार में खर्च कर दो । यही आज का बाजार है । आजकल तो लोग उधार लेकर फिजूल की चीजों को खरीद लेते हैं जबकि हमारे बुजुर्गों की सोच ये रही है कि जब तक हाथ में हो तब तक किसी वस्तु को खरीदना नहीं चाहिए । आज बडे बडे विज्ञापन तैयार किए जा रहे हैं और उन विज्ञापनों का खर्च करोडों रुपयों सकता होता है तथा उन अभिनेताओं या नायिकाओं को विज्ञापन में शामिल किया जाता है जिससे उस सामान के प्रति लोग आकर्षित हो जाए । लेकिन आप जानकर हैरान होंगे की जितनी भी विज्ञापन बनते हैं उन विज्ञापनों में काम करने वाले अभिनेता शायद ही उस सामान का कभी उपयोग किया करते होंगे क्योंकि उनकी जीवन शैली एक आम आदमी से बहुत अलग होती है और वे लोग उन सामानों का ही ज्यादा उपयोग करते हैं जिनके बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी हूँ । मतलब जो ज्यादा सुरक्षित उत्पाद होते हैं, जिनसे नुकसान नहीं होता, जिस स्वास्थ्य की दृष्टि से बिल्कुल लाभदायक को अनुकूल हो, उनको वह खरीदते हैं । लेकिन हम उनके विज्ञापनों को देखकर आकर्षित हो जाते हैं तथा उस सामान को घर लेकर आते हैं, जब बाद में अन्यन नुकसान ही पहुंचाते हैं । कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि बाजारवाद में ज्यादा उलझना नहीं चाहिए, जिससे फिजूलखर्ची न हो । अगर आप के पास ज्यादा धन है तो किसी कि मदद करें, उसका जीवन यापन सुधारेंगे, क्योंकि बहुत से लोग धन को जोडकर मर जाते हैं और वह धन किसी की भी काम नहीं आता है । इसीलिए मितव्ययी बनी इसमें कोई बुराई नहीं है । लोग अगर आपको कुछ खरीदारी करने को कहीं भी तो आप केवल जब जरूरत की चीजें हैं, उन्हें ही खरीदें । बाकी बचे धन का कहीं दूसरी जगह सदुपयोग करें । हम में से अधिकतर व्यक्ति जीवन में कभी न कभी फिजूलखर्ची की आदत डालते हैं, लेकिन समय रहते इस आदत से मुक्त होना चाहिए । इसलिए अंत में यही कहना चाहूंगा । फिजूलखर्जी नहीं मीटर यही बनी
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