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आज सुन रहे हैं तो ऍम आज ये माया के साथ सुने जो मन चाहे धन नहीं तो कदर नहीं लेखक चीज केंद्र कुमार फाइन नहीं कंजूस आदमी कंजूस आदमी का अर्थ है ऐसा आदमी धन को न तो अपने ऊपर खर्च करता है और न ही दूसरों के ऊपर खर्चा रहता है । धन को केवल जोडी चला जाता है पर खर्च करने के नाम पर उसकी जान निकलने लगती है । इस पृथ्वी में ऐसे बहुत से व्यक्ति है । यह कंजूसी से जीवन यापन कर रहे हैं जबकि उनके पास आवश्यकता से अधिक धन होता है लेकिन वो धन किसी काम का नहीं है जो खुद पर भी खर्च किया जा सके । लोग अक्सर कंफ्यूज और मितव्ययी व्यक्ति को एक ही मान लेते हैं लेकिन इन दोनों में जमीन आसमान का फर्क होता है । नीति व्यक्ति आवश्यकता पडने पर धन खर्च करता है लेकिन कंजूस आदमी आवश्यकता पडने पर भी धन को बिलकुल खर्च नहीं करता । यही बुनियादी फंड कंजूस आदमी और मितव्ययी आदमी में होता है । कंजूस आदमी धन के साथ साथ इसी सामान के उपयोग करने में भी कंजूसी करता है क्योंकि उसका कंजूसी में ही जीने की आदत पड जाती है । ये क्यूट खुला आपको सुनाता हूँ । जो आचार्य रजनीश ओशो जी ने अपने प्रवचन में सुनाया था की एक कंजूस व्यक्ति जब मर जाता है और उसके मुंह से दो शब्द बस और जब निकलते हैं मरने वाले व्यक्ति के परिजन उन दोनों शब्दों को बडी ध्यान से सुन रहे होते हैं और आपस में चर्चा करने लगे की ये आदमी जिंदगी भर कंजूसी से किया है । शायद अंतिम समय में कह रहा है कि बक्सा झाड में छुपा है लेकिन ये मालूम नहीं इस जहाँ के पास छिपाकर रखा है उनमें से एक ने कहा इनमें ऐसे डॉक्टर को जानता हूँ, इंजेक्शन लगाते ही पूरा शब्द बोल देंगी । फिर जल्दी से उस डॉक्टर को बुलाया जाता है और डॉक्टर ने जैसे ही वो इंजेक्शन मारते हुए व्यक्ति के शरीर में लगाया तो उस मारते हुए व्यक्ति ने कहा अरे गधों ना समझो मेरा मूड क्या ताक रहे हो वो पचना झाडू चलाए जा रहे उससे पहले लोगों की ये चुटकुला कंजूस आदमी की पहचान है । उसे मरते समय भी चिंता यह है कि कोई उसके सामान को नुकसान पहुंचा रहा है । उसे किसी और बात की बिल्कुल फिक्र नहीं है । लेकिन जो व्यक्ति कंजूस होता है वो करीब करीब ऐसे ही जीता और मंगता है कंजूस व्यक्ति से अच्छे तो वह निर्धन लोग होते हैं जो मेहनत करके धन कमाते हैं, उसे खर्च करने की ये मत तो रखते हैं । लेकिन कंजूस आदमी सबसे निकृष्ट व्यक्ति होता है और इन्ही कंजूस आदमियों की वजह से धन का बहाव रुका हुआ है क्योंकि जो धन रुक जाता है उससे कुछ नहीं किया जा सकता है । तो आप ये बात मान सकते हैं कि भारत देश में जो भी कंजूस आदमी है वो भारत के विकास में बाधा डाल रहे हैं क्योंकि धन का प्रवाह हमेशा बना रहना चाहिए । जैसे नदी बहती है उसी प्रकार धन का भी बाहर होना चाहिए, उसे रोकना बिल्कुल नहीं चाहिए । और जिन लोगों ने धन के इस भाव को रोक कर रखा है उन लोगों की वजह से भारत में निर्धनों की तादाद दिन ब दिन बढती जा रही है । और जब तक भारत देश में ऐसे कंजूस आदमी रहेंगे, भारत कभी भी समृद्ध नहीं हो सकता । भारत की समृद्धि इन्हीं लोगों ने रोक कर रखी है । अन्यथा भारत देश में कोई भी व्यक्ति निर्धन नहीं होता है । इसीलिए मैं कहना चाहता हूँ कि मितव्ययी बनी ये सबसे अच्छी बात होती है लेकिन भूलकर भी कंजूस आदमी मत बनी क्योंकि कंजूस आदमी विकास का विरोध है । नहीं वो अपना विकास करने में मदद करता है और न ही दूसरों का विकास करता है । तो ऐसे व्यक्ति के जीने का कोई मतलब ही नहीं । वो एक पृथ्वी पर बोझ है जिसके पास आवश्यकता से अधिक धन तो है लेकिन खर्च करने की हिम्मत नहीं कर पाता हूँ तो ऐसे जीने का कोई मतलब नहीं हैं । उसका जीवन व्यर्थ है । उसकी जीवन भर की मेहनत बेकार है, किसी काम की नहीं । कंजूसी पन अपने आप में एक शराब है, उसे और किसी श्राप की जरूरत ही नहीं । जो व्यक्ति कंजूस होता है वो शायद ही जीवन में कभी कंजूसी पन से ओवर पाता है क्योंकि उसके मन का और उसके व्यवहार का एक अनुबंधन कंजूसी पाँच के साथ हो जाता है तथा कंजूसी पन में जीने की उसको आदत सी पड जाती हैं । मैंने सुना है एक भी खारी जिंदगी भर भीख मांग मांग कर धन का माता रहा । जब वो मर गया तो उसकी झोपडे में से नोटों से भरे बोरे मिले लेकिन उससे वह धन खर्च नहीं हो पाया था । हमेशा जोडता ही चला गया । तो फिर ऐसे मेहनत से कमाए धन का चाला जिसे खर्चीला किया गया हूँ एक न एक दिन सभी को मरना है । कमाए हुए धन को खर्च करने में कंजूसी क्यों करते हूँ । लेकिन मजे की बात यह है कि कंजूस आदमी अपनी जिंदगी बद से बदतर तो करता ही है साथ ही दूसरों की जिंदगी भी बत्तर कर देता है । मेरे से जानने वाले बहुत से लोग हैं जिनके पास करोडों रुपये हैं लेकिन खर्च करने की हिम्मत नहीं होती । अगर उनसे धन खर्च करने के लिए कहा जाए तो उनके प्राण निकल जाएगा । कई बार मैंने कहा कि कम से कम अपने ऊपर तो खर्च करो । लेकिन जवाब ये मिलता है कि आप मुझसे खर्च नहीं होता है । चाहकर भी खर्च करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता । इसलिए बार बार आप लोगों से यही कहना चाहूंगा कि कंजूस आदमी से लाख गुणा मीटर यही होता है । इसलिए भूलकर भी कभी कंजूस आदमी न बनी ।
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