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अध्याय पांच । शास्त्रों के अध्ययन का तात्पर्य हिन्दू धर्म में वेद को ज्ञान का स्रोत माना गया है । चार वेदों के अतिरिक्त पुरानी इतिहास धर्मशास्त्र, उपवेद तथा योगशास्त्र है । इनका विस्तारपूर्वक विवरण हम यहाँ नहीं करेंगे । हम यहाँ पर ये जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर इतने सारे धर्म ग्रंथों में जो लिखा है उसका टाइप पर्याप्तता, उसका मकसद क्या है । अगर देखा जाए तो चाहे हम किसी कुल अथवा जाती में जान मिले । हम सभी जन्म से शुद्र होते हैं तो क्योंकि हम रोते हुए पैदा होते हैं और मनुस्मृति में कहा गया है जन्मना जायती शुद्ध रहा संस्कार आज भवेद् वजह वेदपाठ आ भवेद् विप रहा ब्रह्मा जाना अतिथि ब्राहम्णा तो जितने भी शास्त्र लिखे गए हैं उनका एक ही प्रयोजन है कि हम शूद्र बुद्धि से निकलकर ब्रह्मा, वेता ब्राह्मण पर तक पहुंचे । फिर चाहे वो धर्मशास्त्र हो, उपासना, भक्ति, योग या ज्ञान साधना हो । इन सब का प्रयोजन मनुष्य को अपने स्वभाव से हटाकर स्वरूप तक ले जाना है । लेकिन अगर हम अपनी बुद्धि लगाकर विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन करते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि धर्म में अलग बाते बताई गई है । उपासना कुछ अलग कह रही है । पुराणों में कहानियाँ कुछ और कह रही है । ये हमारी बुद्धि में भेजता निर्माण करता है । अगर हम लोग अपनी मर्जी से शास्त्रों का अध्ययन करेंगे तो हमारी बुद्धि कभी भी उस प्रयोजन को नहीं समझ पाएगी जो शास्त्र समझाना चाहते हैं । एक उदाहरण से इसको समझने का प्रयास करें । एक बार की बात है, मैं अपने किसी रिश्तेदार के घर गया था । छुट्टी बिताने के लिए जो हमारे रिश्तेदार थे, उनके दो बच्चे थे । एक बडी लडकी थी जो करीब ग्यारह वर्ष की थी तथा छोटा लडका था जो एक साल का था । दोनों की आयु में दस वर्ष का अंतर था । सर्दियों के दिन थे । दोपहर का वक्त था । माता जी खाना बना रही थी और मैं और हमारे भाई साहब जी बैठे हुए थे । धूप में तो अभी माता जी ने मीडिया से कहा छोटू वहाँ देर से हो रहा है, उसे सलाद हो । मैं खाना बना रही हूँ । मीडिया ने अपने भाई को उठाया और उसे बाहर धूप में ले आई । मैं उसे देख रहा था तो मैंने कहा बेटा, इसके अंदर चुनाव बिटिया बोली की पहले ही सो जाए तो उसे अंदर लेता दूंगी । इतना कहकर वह अपने भाई को जो रो रहा था, उसे का हुआ छिडिया तितली और बहुत सारी चीजें दिखाने लगी तो लडका छुट हो गया । फिर उसने उसे एक साल के बच्चे को एक कहानी सुनानी शुरू कर दिया । उस कहानी का कोई मतलब नहीं था । बस ऐसे ही वो उसे कहानी बताने लगी तथा लडका चुप होकर सुनने लगा । फिर थोडी देर बाद बच्चा हो गया और वह लडकी अपने भाई को अंदर ले गए और उसे रजाई से ढक दिया और वह बाहर अगर खेलने लगी तब मैंने उस बच्ची को अपने पास बुलाया और पूछा मेरा तुमने क्या क्या तुम्हारी माता जी ने तो कहा था कि अपने भाई को सलाद और तुमने उसे बाहर लाकर पहले वो चिडियाँ तितली दिखाई और फिर एक बेकार सी कहानी सुनाई जिसका अर्थ उसे मालूम ही नहीं । तुमने ऐसा क्यों किया? वो बच्ची चुप हो गई । कुछ देर बाद वो बोली चाचा जी, आपको कोई छोटा भाई है क्या? मैंने कहा नहीं वो बोली फिर आप नहीं समझ पा हुए हैं और मैं फैसले लगा लेकिन मैंने इस से बहुत कुछ सीखा । मैंने इसे सीखा कि हमारे शास्त्र भी हमें यही सिखाते हैं । जब हम छोटे होते हैं तो हमें धर्मशास्त्र संसार के बारे में बताते हैं और संसार में कैसे आचरन करना है ये बताते हैं । जैसे उस बच्ची ने उसे बाहर की वस्तुएं का हुआ इटली उस बच्चे को दिखाई, फिर हमारे उपासना शास्त्र जैसे पुराण की कहानियों के माध्यम से बताते हैं कि कैसे उन कहानियों से सीखें की चाहे वो भूल लोग हो, स्वर्ग लोग हो या जगत में कोई भी लोग हो सभी जगह कामनाएँ, छाव का ही साम्राज्य है । हम चाहे कुछ भी कर्म कर लिए, कोई भी कर्म कांड कर लिए । हमें जीवन में कृतकृत्य ता फुलफिल्मेंट का अनुभव नहीं आ सकता । जैसे कि एक भी विचार जब तक हमारे मन में है हमें नींद नहीं आ सकती । भगवद्गीता कहती है तेरह विद्या माम सोंपा हा पूत पापा ये गे विश्वास वर्ग तीन प्रार्थन ते ते पुन्य मासा अध्या सुरेंद्र लोग मशीन नंती दिव्यानंदजी देव भोगान तेरे नाम भुक्त्वा स्वर्ग लोग कम विशालं श्रेणी पुण्य मत्री लो कमिशन थी ए वक्त रही धर्मन ऊपर अपन नागिता खतम कम कम वाला बनते । वेदों में प्रथम जो तीन भागों में धर्म, उपासना और कर्मकांड बताए जाते हैं उनको करके मनीष केंद्र की पदवी भी प्राप्त कर सकता है परंतु यह कोई स्थाई प्रोमिनेंट पद भी नहीं है । वहाँ पर भोग करके फिर से आपको मृत्युलोक में आना ही पडेगा ऍम वहीँ चक्कर लगा रहेगा । सभी शास्त्र यही बताते हैं कि धर्म, उपासना, योग ये सब साधन है । साथ ही नहीं साध्य ज्ञान और भक्ति है जिससे हम अपने स्वरूप को जानकार उस परम तत्व में मिल सकते हैं और इस आवागमन के चक्कर से छूट सकते हैं । शास्त्रों की एक और प्रयोजन को भली भांति प्रकार से समझ लेते हैं और ये प्रयोजन है । हमें ये बताना की मृत्यु और संभव है । हमारी मृत्यु हो ही नहीं सकती । हमें का खंड सकता है अब इस पर थोडा विचार करते हैं । शास्त्रों में जब ये पसंद आता है कि जहाँ पर बताते हैं कि पिछला जन्म था, पुनर्जन्म होगा तो इसके दो देश है पहला ये बताने के लिए की हम ये जान लेगी । हम पिछले जन्म में भी थे और अज्ञान के कारण अगला जन्म भी होगा तो हम मारे कब और दूसरी बात है हमें इस संसार में जो भी सुख दुख मिलते हैं हम इनके लिए अन्य मनुष्य परिस्थिति को जिम्मेदार बताना बंद कर दे । वो बताते हैं कि पिछले जन्म में हमने अमुक अमुक पाप किए जिसके कारण इस जन्म सुख दुख का अनुभव हो रहा है । महाभारत में ग्रंथ आता है उसका नाम है सनद । सुजा दिया उसमें सनत्कुमार जी का धृतराष्ट्र को देश का वाक ध्यान है । यह विदेश त्रित राष्ट्र को महाभारत खत्म होने पर उसके अंतिम समय पर दिया गया था । इसमें सनत्कुमार जीने धृतराष्ट्र जी को तर्क से यह सिद्ध करके बताया की मृत्यु संभव है आज तक न कोई मरा है और ना ही कोई मारेगा । सनत्कुमार जी कहते हैं यू अन्यथा संत महात्मा नमनीय था प्रतिबद्धित ए कीमतें न कृतम् पाप अम् चोर इन आत्मा पहाडियां कहते हैं कि हम हैं कुछ और और हम अपने को कुछ और ही मान बैठे हैं हम है परमात्मस्वरूप अपने आप को मान बैठे है देख कर जी इससे बडा पाव और चोरी किया हो सकती है । जिस दिन हमारी बुद्धि में छोटी सी बात बैठ गई उस दिन से हमारा अध्यात्मिक जीवन शुरू हो जाता है और जब तक हम अपने आपको देह जीवीए सब मानेंगे हमें अपने स्वरूप के दर्शन नहीं हो सकते हैं तो सभी शास्त्रों का दाद पर यही है कि हमारी बहुत जगत में रहकर आदित्य विक के द्वारा आध्यात्मिक जीवन तक पहुंचाएं ।