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ऍम बहुत चाहूँ होनी भी शर्मा के आश्रम के वहाँ तो वाले दसग्रीव की प्रतीक्षा कर रहा था तो जब बाहर आया तो उसने पूछ लिया बताओ क्या कर आए हो गए आपकी योजना विफल हो गई । भाई के नाते मुझे राज्य नहीं मिल सकता हूँ । ये है राज्य देवताओं ने धनाध्यक्ष को दिया माता पिताजी इसमें मेरी कोई सहायता नहीं कर सकते । देवता ही मुझे राज्य दे सकते हैं और वह देंगे नहीं । परंतु दस भी राज्य कई प्रकार से लिया जा सकता है । इनमें साल, बल और प्रबल उपाय इस समय लंका के प्रजा में तीन चौथाई ॅ मेरे मित्र और सहायक उन्हें राक्षस राज्य की प्राप्ति के लिए राक्षसों का संगठन फोन कर चुके हैं । मेरा मित्र प्रहस्त है जिसमें प्रजा से संपर्क बनाया हुआ उसके सहायक है । मारीज, वीरू पक्ष और मैं होता, हम वहाँ चलते हैं । ये साथी प्रजा की सहायता से तुम्हारे भाई को राज्य त्यागने के लिए विवश कर देंगे । हमारे लोग किसी नेता की प्रतीक्षा कर रहे थे । अब तो माँ गई हूँ और सौरभ प्रथम वहाँ के राजा को हम जयवीर करेंगे । यदि इसमें कामना चला तो चल अथवा बल का प्रयोग करेंगे । मेरा अनुमान है कि तुम बिना भाई के हत्यारे कहलाए । राज्य पांच होगी । दसवी अपने नाना के साथ विमान में लंका जा पहुंचा । उसके दोनों भाई और बहन अभी माँ के पास ही रहेगा । श्रीलंका में दस ग्रीन के पहुंचते ही सोमाली ने रहस्त को बुला भेजा और दस को लेकर नगर के एक मकान में चला गया । वहाँ बहस के अन्यसाथी उपस् थित थे तो हसने नगर में यह सूचना भेज दी की उनके भूतपूर्व राजा सोमाली का नाती अपने नाना का राज्य प्राप्त करने लंका में आ गया । इस सूचना पर नगर के राॅड स्ट्रीम के दर्शन करने आने लगे । देव राज्य और राक्षस राज्य में अंतर यह था कि देव राज्य में परिश्रम का फल मिलता था और राक्षस राज्य में शक्तिशाली जो चाहे ले सकता था । इस कारण शरीर से छत्तीस ऍम इस घुटने संबंधित होकर लाभ उठाना चाहते थे । हमारी सीटी आदि ने यह विख्यात कर रखा था कि राक्षस यक्षों से अधिक बाल चली है । बाल तो दोनों का एक समान था परन्तु राक्षस दूर फॅमिली थी है । उनका स्वभाव बन चुका था । के बिना अब है के किसी नियम कानून हो नहीं मानते थे । तब जानते हैं कि यदि संगठित हो जाए तो राज्य उनका हो जाएगा । इस भाषा पर राक्षसों का संगठन बन गया । सभी बलशाली लोग दस ग्रीव को राजा बनाने के लिए तैयार हो गए । उनकी समझ में आने लगा कि राक्षस राज्य स्थापित होने से उन को सब प्रकार की तो सुविधा बनाया से मिलने लगेंगी । जब दस ग्रीन के निवास स्थान के बाहर ऍम की संख्या में बलवान राक्षस एकत्रित हो रहे थे तो प्रहस्त दसग्रीव का दूत बनकर कुबेर के राज प्रसाद में जा पहुंचा । उसने सूचना भेज दी की महाराज के कनिष्ठ बढाता दसग्रीव का मंत्री राज्य महाराज के दर्शन करना चाहता है । इस सूचना पर कुबेर ने ब्लाॅस्ट को भीतर गुना अपने समूह बैठा पूछ लिया । कहाँ है दसवीं महाराज नगर चौराहा है की एक भवन में ठहरा हुआ है यहाँ क्यों नहीं आया हूँ? इसी विषय में उनका एक संदेश लेकर मैं आया हूँ बताओ फॅसने अडतीस समय भाषा में कहा महाराज इस नगरी का अधिकतर निर्माण राक्षसों के राजा सुकेश और उसके पुत्रों ने किया था । उससे पहले यहाँ उनके पूर्वजों ने राज्य स्थापित किया था । पता राक्षस यह समझते हैं कि आपका यहां राज्य पद पर आसीन होना अनाधिकार चेष्टा है । अब राक्षसो ने आपके छोटे भाई और सुकेश के सुपुत्र सोमाली के नाती दस गरीब को अपना राजा स्वीकार कर लिया है । अगर नहीं चाहते हैं कि यह राज्य अब अब अपने छोटे भाई को देते कुबेर कह दिया परंतु यहाँ शासन मैं नहीं करता हूँ । यहाँ के नागरिकों की एक समिति शासन करती है । उस समिति में राक्षसी अधिक संख्या में है । मैं तो केवल उस समिति के कार्य में उस समय हस्तक्षेप करता हूँ जब समिति के सदस्य परस्पर सहमत नहीं होते हैं । इस कारण मुझसे शासन लेने का तो प्रश्न ही उपस् थित नहीं होता हूँ । दस को कहूँ कि नगर के भगवन को छोड दें और यहाँ आ जाएगा । महाराज मैं आपके रहते यहाँ नहीं आएगा । मैं चाहता है कि आप यहाँ से चले जायेंगे । यह राज्य राक्षसों का ही था । विष्णु ने राक्षसों की हत्या करके लंका पर अधिकार प्राप्त किया था । अब राक्षस उन्हें अपना राज्य वापिस लेना चाहते हैं । आप यह लंका राक्षसों को नोटा नहीं परन्तु जैसे स्वीकार नहीं करेगी । महाराज रास्ता नहीं कहा यह बात प्रजा द्वारा स्वीकार कर ली गई है कि उनका मनोनीत राजा दसग्रीव यहाँ राज्य करेगा । आप अभी अपना प्रतिनिधि है तेज पता कर लीजिए । सहस्त्रों की संख्या में नागरिक दसग्रीव के निवास के बाद एकत्रित हैं । उसकी जय जयकार बोल रहे कुबेर विचार मंगल होंगे हैं कुछ विचार का उसने कहा मैं कल मध्यांतर तक निर्णयात्मक बात करूंगा कि मैं बरसात छोडो अथवा अपने भाई को युद्ध के लिए ललकारो ब्लाॅस्ट अपना कार्य कर दस ग्रीव के निवास स्थान को लौट गया । कुबेर ने तुरंत पुष्पक विमान नहीं करवाया और दस ग्रीन के निवास स्थान के ऊपर एक चक्कर लगाकर वहां एकत्रित राक्षसों की महती ईड देखी । उस उत्तेजित भीड को देख मनी मान धैर्य बीस हो गया और तुरंत विमान द्वारा पिता के आश्रम को उड चला । ऋषि विश्रवा का आश्रम हिमालय की तलहटी में देव लोग की सीमा पर था । पिता के आश्रम में पहुंचकर उसने पूर्ण स्थिति का वर्णन किया और पूछ लिया पिताजी अब मुझे क्या करना चाहिए? तीसरी भी शर्मा ने पूछा कुबेर कब से राज्य कर रहे हो? वहाँ पैंतीस वर्ष से अधिक हो चुके हैं । इस काल में तुमने कितने लोग ऐसे निर्माण किए हैं जो तुम्हारे लिए लडने मरने को सदा तैयार हो । वहाँ अस्सी प्रतिशत से अधिक राक्षस जाति के लोग कैसे हैं? शेष बीस प्रतिशत में ट्राय कंदर, वैश्य और सुद्ध है । तुमने राक्षस को किस लिए वहाँ बसा रखा है । अन्य कोई वहाँ बस ने के लिए आता नहीं था । देवता तो अपने सीट प्रदान देश को छोड वहाँ उसमें और गीले वायुमंडल में जाकर रहना नहीं चाहते । गंदल और केंद्र एक स्थान पर टिककर रहते नहीं । ये थोडी सी संख्या में वहाँ रहते तो है परंतु युद्ध की आशंका होने पर ये वहाँ से चल देंगे । वहाँ समिति वनवासी मैं आदिवासी मानो की कई जनजातियों के लोग रहते थे । उनको किसी प्रकार का और लो बन देकर वहाँ बसाने का यह तो क्यों नहीं किया? और ये मानव तो वहाँ आती नहीं सोमाली थी आदि भाइयों के उत्पाद के पश्चात विन्ध्याचल से ऊपर के देशों में ही रहना पसंद करते हैं । अन्ना जनजातियों के लोग अति ऐसा हैं तो उनको शिक्षित कर काम सिखाना बहुत डेडी की है । राजस्थान उनसे अधिक बलशाली, अच्छे योध्दा एवं कार्यकुशल है । ऋषि ने क्रोध में अपने पुत्र को संबोधन कर कहा, वैष्णो वन तो मैं एक अयोग्य सांसद सिद्धू हुई हो तो हमारे अनुसार दस ग्रीव के साथ ही तुम्हारे राज्य में तुम्हारे साथियों से कई गुना भी है । अब अपनी अयोग्यता के दोस्त को मिटाने के लिए आपने अनुगामी वक्त की हत्या करवाओगे दीजिए तो मैं तब भी नहीं मिलेगी क्योंकि तुम्हारे सच्चे मित्र एवं साथी अत्यंत सीमित संख्या में है । युद्ध में वे सभी मारे जाएंगे । यह माँ बाप हो जाएगा तो यह नहीं समझ सके कि संरचित जंगली जातियाँ इन्फोटेल राक्षसों से अधिक विश्वास के योग्य है । उस जनता क्या स्वस्थता का स्थानापन्न हो सकती है? व्यस्तता जन्म जात होती है आपने पैंतीस वर्षों के राज्यकाल में उन श्रेष्ठ लोगों को शिक्षा, अभ्यास और अच्छी संगती से आपने कार्यकुशल, मित्र और सहायक बनाया जा सकता हूँ । आता है तुम राज्य के लायक नहीं होगा । कुबेर ने अपने मन की बात कह दी । उसने कहा पिताजी, मैं इंद्रदेव के पास सहायता के लिए जाना चाहता हूँ । वह क्या करेगा? व्यर्थ की हत्याएं? तुम जैसे अयोग्य शासक के राज्य की रक्षा करने के लिए मैं उचित नहीं मानता हूँ । इससे न तुम्हारा कल्याण होगा, न देवताओं का मेरी सम्मति । मान लो तुम अपने परिवार को लेकर वहाँ से चले जाओ । अपने लिए स्थान, कहीं देवलोक क्षेत्र में बना लोग । यहाँ भी बहुत स्थान रिक्त पडा है तो वेज पिता का मूवी देखता रह गया । पिता ने आगे गा भाई भाई, परस्पर लडकर एक दूसरी प्रथा को मत संभव । राज्य के लिए भाई भाई लडते हुए शोभा नहीं पाते । ऐसा तो पहले भी हो चुका है । कुबेर ने साहस पकडकर कहा ऍम और विष्णु लड चुके हैं । आदित्य और देखते भी कई बार लड चुके हैं । बाली और इंद्र का झगडा भी विख्यात है । वामन का छल से बाली का राज्य लेना भी इतिहास में लिखा मिलता है । ऋषि ने मुस्कुराते हुए गा । इसी से तो कहता हूँ कि तुम केवल अयोग्य ही नहीं वरना मोर भी हो नहीं । रक्षा के लिए अयोग्य राजा अब दूसरों से सहायता की भीख मांगेगा । सहायता मांगने से पूर्व स्वयं को देखो कि पैंतीस वर्षों के राज्य में कुछ सहस्त्र सहायक भी एकत्रित नहीं कर सके । सहायता उसे ही मिलती है, जो हम अपने बल पर कुछ करने योग्य हो । देखो वाॅक और विष्णु का भी वही झगडा था, जो विष्णु और माल्यवान का था । वहाँ राज्य का झगडा नहीं था । वहाँ संस्कृति और संस्कारों का झगडा था । वहाँ स्विस्टर ता और नरसल सत्ता का झगडा था । यही बात वामन और बाली की थी । प्रजा का धन ले लेकर बाली आपने यह ग्यों पर जय कर रहा था । यज्ञो में भी पात्र कुपात्र का विचार किए बिना दान दिया जाता था । वामन ने कुपात्रों को दान देने की उसकी मिथ्या उदारता की । व्यर्थता को दर्शाने के लिए ही मैं आयोजन किया था । नया तो विष्णु ने ऍफ का राज्य लिया और नए ही वामन ने बली का जब आदित्यों का राज्य दैत्यों ने छीनने का प्रयास किया तो आदित्यों ने श्री हम अपने बल बूते पर देवासुर संग्राम लडे थे परंतु तुम्हारी बात दूसरी है तो तुम राज्य में रहते हुए दुर्बल रहे हो । तुम्हारी प्रजा ही तुम्हारे विरुद्ध उठ खडी हुई है । तुम जैसे अयोग्य शासक के लिए कोई देवता भी सहायता के लिए नहीं आएगा । भाई भाई की बात तो मैंने अपने विचार से कही है । तुम दोनों में मेरे लिए कुछ अंतर नहीं है । वह अपने नाना की परंपरा चलाएगा हुआ नहीं कहा नहीं जा सकता आप तुमने देवताओं की परंपरा नहीं चलाई तो हमने देवता और असुर में भेदभाव नहीं रखा । अब तुम किस आधार पर देवताओं से सहायता मांग सकते हो अथवा मेरी सहानुभूति के पात्र हो हूँ ।
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