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कर्म चक्र - 1 in Hindi

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Authorडॉ. राहुरीकर
This is a thrilling, unbelievable story of five friends, who were unsatisfied with the way they had to live their life and relations. Then an unusual phenomenon happened, which turned their life around, and they came to know what life actually is and what true happiness is. This is a very uncommon but true story. Read how they find the way to happiness and satisfaction. Voiceover Artist : Rj ARV Author : dr vinita rahurikar
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आप सुन रहे हैं कुकू एफएम पर डॉक्टर विनीता रहा हूँ । कर के लिए किताब कर्म चक्र और मैं हूँ और जे ए आर वी अरविन्द सिंह आदित्य आदित्य अरे तुम कहाँ हो? अपनी पूरे घर में आदित्य को ढूंढ रही थी पर वहाँ घर में कहीं नहीं था । अवनी ने घर के हर कमरे में उसे ढूंढ लिया । तभी उसका पालतू डॉगी लॉयन उसके पास आया । लॉर्ड किया तो मैं पता है । आदित्य कहा है । परेशान अवनी लॉयन से पूछा लोग लॉयन ने अपनी की ओर देखते हुए अपनी पूछ खिलाई और सीढियों की ओर जाकर सीढियाँ चढने लगा । अपनी भी उसके पीछे पीछे सीढियाँ चढने लगी । जब तक की वह छात्र पर नहीं पहुंच गए । लॉयन ने दरवाजे को धक्का दिया और छत पर चला गया । अपनी भी छत पर आ गए । आदित्य छत पर रखे तख्त पर लेता । सितंबर के अंतिम सप्ताह के साफ आसमान में तारे देखने में मांगा था शैतान कहीं के अपनी उस पर चलाई मैं पिछले पंद्रह मिनट से तो मैं ढूंढ रही हूँ और आवाज लगा रही हूँ और तुम यहाँ छात्र पर बैठे तारे गिनने में व्यस्त हो । आदित्य घूरकर अवनी को देखा और उठकर बैठ गया । क्या मिस्टर वर्मा वापस आ गए नहीं, लेकिन आदित्य वह तुम्हारे पिता हैं । उन्हें मिस्टर वर्मा मत करूँ । अपनी ने उसे डाटा तो तो फिर चिल्ला क्यों रही हो? मुझे मेरे सितारों और ब्रह्माण्ड के साथ अकेला छोड दो । आदित्य ने कहा और फिर से दखते पर लेट गया । लेटकर तारों से भरे काले आसमान को निहारने लगा । लॉयन कूदकर तख्त पर आदित्य के पास बैठ गया । अब तुम भी उसके साथ बैठकर तारे गिनते रहो । अपनी लॉयन से बोली पता नहीं तुम सारा समय बैठकर इस काले आसमान में क्या देखते और खोजते रहते हो । यहाँ आओ और मेरे पास पेट्रोल । मैं तो मैं सितारों और उनकी आकृतियों के बारे में बताता हूँ । आदित्य आवनी से बोला क्या बताओगे तो मुझे क्या तुम कोई ज्योतिषी हो? अवनी उस पर हंस पडी । अरे नहीं, क्या फालतू बात है? आदित्य खेंचकर बोला, मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूँ । मुझे तो बस तारों को देखना अच्छा लगता है । समय के बारे में पढना ब्लैक खोल अंतरिक्ष और ब्रह्मांड के रहस्य के बारे में पढना और समझना अच्छा लगता है । इन सब बातों पर ध्यान देना, सोचना बंद करूँ और अपना ध्यान अगले महीने से शुरू होने वाले अपने एम । बी । ए । के एग्जाम्स पर लगाओ । अग्नि नहीं उसे उसकी परीक्षाओं के बारे में याद दिलाया । वो दीदी प्लीज प्लीज मुझे वह याद मत दिलाओ । मुझे मिस्टर वर्मा के वापस आने तक जरा चयन लेने दो । आदित्य ने उस से प्रार्थना की आदि कितनी बार तो मैं कहा है कि उन्हें मिस्टर वर्मा मत कहा करो तो हमारे पिता है । अपनी नहीं । उसे डाटा । वो कभी हमें अपने बच्चों जैसा नहीं समझते हैं । बचपन से ही उनका व्यवहार हमारे प्रति ऐसा रहा जैसे कि हम उन के हाथों की कठपुतलियां है और उनकी इच्छानुसार उनके इशारों पर नाचते रहे । हमारी अपनी कोई मर्जी नहीं । हम अपनी इच्छानुसार कुछ नहीं कर सकते । हमें अपने जीवन से संबंधित निर्णय लेने की भी स्वतंत्रता नहीं है । सब बातें मिस्टर वर्मा ही तय करेंगे । हम कौनसे विषय चुनेंगे, तुम्हारी शादी कहां और किससे होगी? पिता कभी भी ऐसा नहीं होता है । आदित्य घोर अनादर से बोला तुम्हें अपने पिताजी के बारे में ऐसे अनुचित शब्द नहीं बोलने चाहिए । अपनी ने कहा प्लीज प्लीज मुझे थोडे समय के लिए ही सही, अपने जीवन का आनंद उठाने दो । इस पल में मैं सब कुछ भूल जाना चाहता हूँ । तुम भी कुछ समय मेरे साथ बैठो और ब्रह्मांड के रहस्यों को देखो । ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति के सीमित अनंत ब्रह्मांड, अंतरिक्ष तथा समय के रहस्यात्मक और मन को अपनी ओर खींचने वाले संबंध को जानू आदित्य की आवाज, उत्साह और जोश से भरी हुई थी । उसकी बातें सुनकर कुछ समय के लिए अरुणी मंत्रमुग् सी खडी रहता है । लेकिन जल्दी से उसे याद आ गया कि वह उसे इतनी व्यग्रता से क्यों ढूंढ रही थी । तो मैं पूछ रही थी उसने आदित्य से बात करनी चाहिए । पर आदित्य तो उसकी बात सुन ही नहीं रहा था । वही तो अब भी अपनी ही राव में बाहर जा रहा था । वहाँ उस चमकते हुए सितारे की ओर देखो । वहाँ धरती से हजारों प्रकाश वर्ष दूर है, लेकिन फिर भी उस की रोशनी हम तक पहुंच रहे हैं और जो प्रकाश हम आज देख रहे हैं तो है । दरअसल हजारों प्रकाश वर्ष पुराना है । मुझे बिल्कुल भी समाज में नहीं आ रहा कि तुम क्या कहना चाह रहे हो । अपनी लॉयन के बगल में बैठे हुए बोलेंगे । लॉयन ने उसका स्वागत किया और उससे बैठने को जगह दे दी । यह एक बहुत ही आसान सा तथ्य है । मुझे बताओ, जयपुर से दिल्ली तक पहुंचने में कितना समय लगता है । आदित्य ने पूछा । ट्रेन से जाने पर चार से पांच घंटे लगते हैं । अपनी ने जवाब दिया तो अगर एक व्यक्ति सुबह के छह बजे दिल्ली से निकले तो तुम उसे दस से ग्यारह बजे के बीच जयपुर में देख पा होगी । आदित्य ने कहा हाँ सही है अपनी बोली यह भी ठीक ऐसा ही है । दिल्ली जयपुर से चार पांच घंटे की दूरी पर है । तभी दोनों के बीच सफर इतना समय ले लेता है । ठीक उसी तरह वहाँ तारा हमारी धरती से हजारों प्रकाश वर्ष दूर है । इसलिए उसकी रोशनी को धरती पर पहुंचने तक इतना ही समय लग जाता है । इसलिए तारे की जो रोशनी तो मिश्रण देख रही हो या दूसरे शब्दों में जो तारा तुम अभी देख रही हो, वह दरअसल हजारों प्रकाश वर्ष पहले का है, क्योंकि यहाँ तारा जो प्रकाश उत्सर्जित करता है, उसे धरती पर पहुंचने तक कितना समय लग जाता है और क्या तुम मुझे बताओगे की लाइट इयर क्या होता है? अवनी ने उत्सुकता से पूछना वह दूरी जो प्रकाश एक वर्ष में तय करता है, उसे एक प्रकाश वर्ष कहते हैं । आदित्य ने जवाब दिया, भगवान, तब तो सितारे हम से बहुत ही ज्यादा दूर होते हैं और हम इस शरण हजारों लाखों बरस पुराना तारा देख रहे हैं । असल में अगली उत्साह से बोली यह तो बहुत मजेदार है । अब मुझे पता चला कि तुम घंटों सितारों को क्यों देखते रहते हो । हाथ भी मुझे बहुत अच्छा लगता है । यह सिर्फ मुझे पासा नहीं नहीं है, मेरा जरूर भी है । आदित्य एक गहरी सांस लेकर बोला, मैं समझती होगा लेकिन अब तुम भी समझने की कोशिश करो । मेरे साथ चलो पिताजी किसी भी समय घर वापस आ सकते हैं और अगर उन्हें पता चल गया कि तुम फिर से यहाँ पर हो तो वहाँ बुरी तरह से नाराज हो जाएंगे । और सिर्फ तुम्हें ही नहीं बल्कि मम्मी को भी बहुत डांट पडेगी । अवनी ने उस से प्रार्थना की । ठीक है बाबा चलो आदित्य उठकर खडा हो गया । चलो लाइन रात के खाने का समय हो गया है । अपनी सीढियां उतरने लगी और लाइन और आदित्य उसके पीछे आने लग गए । तुम का हाथ आदित्य अपनी कब से तो मैं ढूंढ रही थी । जैसे ही आदित्य डाइनिंग रूम में पहुंचा माने पूछा मैं ऊपर छत पर था । आदित्य ने जवाब दिया, तुम फिर वही काम कर रहे होंगे । तारों को देखना है ना । मान नाराज होकर बोली तो मेरी प्यारी मां आदित्य ने अपनी दोनों बाहें माँ के गले में डाल दी और उसके चेहरे पर अपना गाल सहलाने लगा । चलो हटो माने उसे डाटा, लेकिन उनका मन प्यार से भरा हुआ था । वह अपने दोनों बच्चों को बहुत प्यार करती थी । उसके बच्चे ही उसके लिए सबकुछ थे । हुआ है । उसके लिए ईश्वर का सबसे कीमती उपहार थे । उसके लिए जीवन जीने का उद्देश्य खुशी की वजह से सिर्फ और सिर्फ उसकी बेटी और बेटा ही थे । वरना तो उसका सारा जीवन परेशानियों से भरा हुआ था । उसका पति अश्विन वर्मा गुस्सैल और बत्तमीज प्रकार का व्यक्ति था । उसने उसे कभी अपनी पत्नी की तरह नहीं समझा । हमेशा उससे अपने कर्मचारी जैसा व्यवहार किया । वह हमेशा बहुत रुपये ढंग से बात करता था । हमेशा यह मत करो, ऐसा करो, वैसा करो । अवनी और आदित्य की मां अंजलि को कभी यह ऐसा सीना ही हुआ कि वह अपने खुद के घर में रह रही है । उसके साथ हमेशा ऐसा व्यवहार होता था, जैसे कि वह घर की बस देख रेख करने वाली है और कुछ नहीं । सिर्फ अंजलि के साथ ही नहीं वरन अपने दोनों बच्चों के साथ भी । मिस्र अश्विन वर्मा का व्यवहार ऐसा ही था । उन्होंने दोनों को कभी पित्र वत्स ने नहीं दिया वरन हमेशा बॉस बनकर रहे । बचपन से ही सारे निर्णय मिस्र वर्मा अकेले ही लेते थे । बच्चे किस स्कूल में जाएंगे या कौन सा विषय चुनेंगे, किस क्षेत्र में अपना करियर बनाएंगे? जैसे कि आदित्य ने कहा, एक कठपुतली के समान उनकी माँ को भी हक नहीं था कि वह यह तय कर सके कि उसके बच्चों के लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं । उसके बच्चों की रूचि और इच्छा किया है और भविष्य में वह किस क्षेत्र में आगे बढना चाहते हैं । इस घर में सारे अधिकार बस मिस्टर वर्मा के पास ही थे इसलिए बच्चों को अपनी माँ से बेहद प्यार था और पिता का नाम बस उनके मन में एक डर के रूप में ही बसा हुआ था । चलो तुम दोनों खाना खालो और जाकर अपने अपने कमरे में पढाई करने बैठ जाओ । इससे पहले की मिस्टर वर्मा घर पर वापस आ जाए । हाँ, दोनों के लिए टेबल पर खाना परोसा और नॉन को उसके बाउल में डाउट फूट दिया । बहुत जल्दी लॉर्ड ने अपना खाना खत्म कर लिया और रोटियों के लिए अपनी और आदित्य की और देखने लगा । लॉयन नहीं, बुरी बात है । तुम्हारा खाना पहले ही खत्म हो चुका है । अंजली नहीं उसे डाटा हम लॉइन अंजलि की ओर देख कर अपनी पूंछ हिलाने लगा । उसे रोटियाँ बहुत पसंद है । हाँ, यहाँ स्वीटी पाई मैं तुम्हें देती हूँ । अपनी लॉयन को बुलाया और उसे रोटी खिलाने लगे । यह बहुत ही गलत बात है तो मैं उसे इसकी आदत नहीं लगानी चाहिए, वरना वह सब से ऐसे ही खाना मांगने लगेगा । मानेका नहीं मां लॉयन बहुत समझदार है । वह बस हमारे साथ ही खाना खाना चाहता है, क्योंकि वहां हम से बहुत प्यार करता है और हमारा हिस्सा होना चाहता है । बस और कुछ नहीं । क्या तुमने कभी उसे मिस्टर अश्विन वर्मा से खाना मांगते हुए देखा है? आदित्य ने लॉर्ड का सिर्फ आप दबाते हुए पूछा, अब बहुत हो गया दी, अब बातें बंद करो, अपना खाना खत्म करो और जाकर पढाई करो । अंजली ने व्यग्रता से कहा, क्योंकि वह चाहती थी कि दोनों बच्चे उसके पति के वापस आने से पहले अपने कमरे में चले जाएँ । प्लीज माँ इतना भी मत डरो । उनसे अब हम बच्चे नहीं रहे । क्या हम चयन से खाना भी नहीं खा सकते? अच्छे और स्वादिष्ट खाने का मजा लेने दो । अपनी ने पनीर की सब्जी का एक टुकडा मूह में रखते हुए कहा, वह यह बहुत लाजवाब है । आखिर उन्होंने खाना खत्म किया और अपने कमरे में चले गए । लॉयन आदित्य के साथ गया आजा मेरे भाई मेरे साथ हजार आदित्य उसे कमरे में लेकर आया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया । लॉयन सीधे उछलकर बिस्तर पर चढा लेट गया तुम बहुत किस्मत वाले वो मेरे भाई तुम्हें पढाई नहीं करनी पडती है तो मैं पिताजी के सपने पूरे नहीं करने पडते हैं । तुम आजाद हो अपने मन की करने के लिए । आदित्य ने प्यार से लॉन को कहा । लॉयन अपनी पूछ हिलाने लगा । आदित्य अपने कोर्स की एक किताब खोलकर पडने की कोशिश करने लगा लेकिन बहुत देर बाद भी वह पडने में अपना मन नहीं लगा पाया । वो एम । बी । ए । करने में जरा भी इच्छुक नहीं था और रही अपने पिता का फैला हुआ बिजनेस ही संभालने में उसकी कोई रूचि थी । उसके पिता एक अरब पति इंडस्ट्रलिस्ट थे और दूसरे तमाम बिजनेसमैन की तरह वह भी यही चाहते थे कि उनका बेटा उन का व्यवसाय संभाले और उसे और भी अधिक ऊंचाई पर ले जाए । पर बेचारा आदित्य उसे समय पास लाइफ भविष्य के बारे में पढना अच्छा लगता था । उसे पूरा विश्वास था समय में पीछे जाना और भविष्य में जाना । दोनों ही संभव है । वह इस विषय पर पूरे समय रिसर्च पेपर ढूंढता रहता और पडता रहता था । किताबे पडता रहता । बहुत जल्दी ही पढाई से उसका मन को चढ गया । उसने खिताब एक और रखती और ऍम के रिलेटिव छोरी पडने लगा । उसने सोचा जब विषय आपकी रूचि का हो तो मन कितना भी रम जाता है उसमें जब विषय आपकी रूचि का हो तो मन कितना राम जाता है । उसमें और दिमाग उसमें घुस जाता है । साढे दस बजे अंजली ने आकर कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी । आदित्य समझ गया कि उसके पिता रात का खाना खत्म करके अब अपने बच्चों से मिलना चाहती हैं । आ रहा हूँ । आदित्य ने अंदर से आवाज लगाई । उसने दस चोरी ऑफ रिलेटिविटी किताब ड्रॉर के अंदर रखी और कमरे से बाहर आ गया । लॉन भी पिताजी से मिलने बाहर आ गया । ये आ गया मेरा बेटा मिस्टर वर्मा ने प्यार भरे स्वर में कहा और मेरी प्यारी सुंदर बेटी कहाँ है? आदित्य ने आश्चर्य से अपनी माँ की ओर देखा । आज पिताजी को क्या हो गया? बच्चों का अपने पिता के मुँह से ऐसी प्यारभरी बातचीत सुनने की शराब भी आदत नहीं थी । तभी अवनी भी वहाँ गई गुड इवनिंग तापान । उसने पिताजी से कहा तो मेरी बच्ची मई एंजल मिस्टर वर्मा ने अपनी का माथा चूमते हुए कहा यह सिर्फ तुम्हारा ही भाग्य है कि आज मुझे अपने व्यवसाय को और भी आगे बढाने का बहुत बडा मौका हाथ लगा है हो तो ये कारण है मिस्टर वर्मा जितना खुश हैं । आदित्य ने सोचा अपनी मुस्कुराकर अपनी खुशी प्रकट की लेकिन वह सोचने लगी की पिताजी को कभी भी तब इतना खुश नहीं देखा जब हम लोग परीक्षा में अच्छे नंबर लाते थे या अपने क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करते थे । इन की सारी खुशी व्यवसाय और पैसे से ही जुडी हुई है । उस दिन कॉफी पीते हुए मिस्टर वर्मा अपने परिवार के साथ अन्य दिनों के बजाय तेर तक बैठे रहे । बस कुछ ही महीनों की बात और है । मेरा बेटा मेरा बिजनेस जॉइन कर लेगा । तब मेरा व्यवसाय आसमान की सीमाओं से भी आगे फैल जाएगा । मिस्टर वर्मा गद्गद् स्वर में बोल उठे आदित्य का मन डूबने लगा । मिस्टर वर्मा अपने पूरे परिवार के साथ भविष्य के सुनहरे सपने संजो रहे थे पर बाकी तीनों को उसमें लैश मात्र भी रूचि नहीं थी । वहाँ बस गर्दन हिलाकर ऊपरी मन से उनकी बातों पर अपनी खुशी और सहमती व्यक्त कर रहे थे । एकमात्र लॉयन ही था जो एक तक मिस्टर वर्मा की ओर देखकर कितने ध्यान से उनकी बातें सुन रहा था, जैसे कि उसको सब समझ में आ रहा हूँ । मिस्टर वर्मा उसे देख कर प्यार से मुस्कुराये और उसका सिर थपथपाने लगे । लॉर्ड लेब्राडोर हासिल का बहुत बहुत उत्तम और शुद्ध चाहोगे था । पिछले तीन साल से वह डॉग शो का विजेता बनता जा रहा था । वहाँ बहुत समझदार भेजा । उसकी इंद्रिया बहुत तेज थी और वह शहर के सबसे कुशल प्रशिक्षक द्वारा प्रशिक्षित भी था । जब रात के साढे ग्यारह बज गए तब अंजलि दोनों बच्चों को अपने कमरे में जाकर सोने को कहा क्योंकि सुबह दोनों को कॉलेज जा रहा था । दोनों ने अपने माता पिता को शुभ रात्रि कहा और अपने कमरे में चले गए । इस बार लॉयन अवनी के साथ गया क्योंकि वह उसी के कमरे में होता था । अग्नि के पलंग के पास ही उसके लिए भी पलंग लगा था । लॉयन अपने पलंग पर पसर गया । अपनी देखा । उसके मोबाइल की लाइट चमक रही थी । उसने जल्दी से अपना फोन उठाया । अभिमन्यु का कॉल था हेलो । उसने धीरे से कहा कहाँ थी तुम? मैं पिछले पंद्रह मिनट से तो मैं फोन लगा रहा हूँ । दूसरी ओर से अभिमन्यु ने शिकायती स्वर में पूछा सॉरी, मैं अपने पापा के साथ बैठी थी । अपनी माफी मांगते हुए बोली इस समय क्या हुआ? सब ठीक है ना उसके स्वर में अब चिंता जयरत्ने लगे । हाँ बाबा सब ठीक है उन्हें आज अपने बिजनेस का विकास करके और आगे बढने का सुनहरा अवसर मिला है । इसलिए वहाँ बहुत खुश थे और अपनी खुशी को परिवार के साथ बांटना चाहते थे । इसलिए हम सब नहीं के पास बैठे थे । अवनी ने जवाब दिया तो मैं तो डर गया था कि क्या हो गया कि तुम आज अभी अपने कमरे में नहीं थी । अभिमन्यु अब आश्वस्त हो गया । क्या कर रही हो? आप से बातें कर रही हूँ । ऍम सिंह यू हम कब मिल रही हैं? आठ दिन हो चुके हैं । मैंने आपको देखा रही हैं । अपनी व्यग्रता से पूछा । मुझे पता है मैं भी तो मैं बहुत मिस कर रहा हूँ । जितना तुम कर रही हो ना उससे कहीं ज्यादा । अभिमन्यु की आवाज में ढेर सारा प्यार छलक रहा था । झूठे अब नहीं बोली नहीं जी, सच है तो फिर आप पिछले आठ दिनों से मुझ से मिले क्यों नहीं? अवनी ने अपनी आवाज को दिल्ली में रखते हुए पूछा, समझने की कोशिश करो या मैं पिछले आठ दिनों से ठीक से सो भी नहीं पाया हूँ । मैं बहुत थक गया हुआ था । काम, काम और सिर्फ का । चौबीस घंटे में बस काम ही कर रहा हूँ और कुछ नहीं । क्या मेरा मन नहीं करता तुमसे ढेर सारी बातें करने का, चैन से तुम्हारे साथ बैठने का । लेकिन मैं एक सरकारी नौकर हो । मेरी जान कई बार मजदूर हो जाता हूँ । जीवन में कर्तव्य किसी भी अन्य बात की बजाय सर्वोपरि है । अभिमन्यु की आवाज में सचमुच थकान जा लग रही थी । मैं समझती हूँ लेकिन इस बार सच में ही तो मैं देखे हुए बहुत दिन हो गए । तुम्हें पता है ना इतने लम्बे समय तक तुम्हें देखे बिना दिन गुजारना मेरे लिए कितना मुश्किल हो जाता है । अपनी प्यार धनेश्वर में बोली तुम कल कॉलेज जाओगी क्या? अभिमन्यु ने पूछा हाँ ठीक है तो जब भी तुम कॉलेज के लिए निकलो मुझे बता देना । मैं कैसे भी समय निकालकर दोपहर में तुमसे मिलने आऊंगा । उसने कहा विवादा करते हो । अपनी उत्साह बारे स्वर में बोली हाँ बाबा वादा अब तो खुश हो था । बहुत खुश हूँ । अब कुछ अच्छी अच्छी प्यार भरी बातें करो ताकि मेरा दिमाग थोडा तरोताजा हो जाए । मैं सच में आज बहुत ज्यादा था गया हूँ । ओके डियर लगी सो मच । देर रात तक दोनों एक दूसरे से बातें करते रहे । रात में अपनी बडी चयन और आराम की नींद सोई और सपनों में देखती रही कि वह और अभिमन्यु सास हैं और बहुत अच्छा समय व्यतीत कर रहे हैं । दोनों एक दूसरे से दिल की गहराइयों से प्यार करते थे । अभिमन्यु को पता था कि अग्नि शारी कर पाना नामुमकिन है लेकिन फिर भी वह उसे प्यार करने से अपने आप को रोक नहीं पाया । यह पहली नजर का प्यार था । इस रिश्ते को लेकर वहाँ हमेशा तनाव में रहता था क्योंकि वह एक मामूली सरकारी अफसर था और अपनी शहर के एक अरब पति उद्योगपति की बेटी । वह उसे कभी भी अपने दामाद के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे । लेकिन तब भी उसे भारतीय समाज और मिस्टर वर्मा की सोच पता थी । फिर भी कुछ ऐसा था जो उसे आपने की ओर खींचता चला जा रहा था तो है अपनी के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता । उसे कभी कभी अपने आप पर आश्चर्य भी होता था कि वह उसे इतना प्यार क्यों करता है । जब उसने पहली बार अपनी को देखा था । तभी उसे लगा था कि वह अपनी को बहुत अच्छे से जानता है । वह यहाँ केवल अभिमन्यु के लिए ही आई है । अपनी धरती पर केवल अभिमन्यु के लिए ही है । मैं सिर्फ मेरी है । अभिमन्यु जानता था । अभिमन्यु जानता था अभिमन्यु भले ही उससे शादी कर पाए या ना कर पाए, लेकिन अपनी दिल से बस उसी की है । पर अपनी का प्यार । बस अभिमन्यु हैं । वहाँ साथ में रह पाएंगे । चाहे दूर हो जाए, लेकिन वहाँ दोनों बने एक दूसरे के लिए है ।

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