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Shri Krishna (Poorva Katha) 1.3 in  |  Audio book and podcasts

Shri Krishna (Poorva Katha) 1.3

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श्री कृष्ण Written by गुरुदत्त Published by हिंदी साहित्य सदन Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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कालांतर में देवयानी को आशा नहीं थी कि वर्ष पूर्व उसकी शर्त मानेगा । वो अपनी लडकी को एक निर्धन रावण की लडकी की दासी बनने के लिए नहीं भेजेगा । मैं अपने पिता के सुभाव को भी जानती थी कि उनके संकल्प को कोई बदल नहीं सकता । ऍम छोडने की तैयारी करने लगे । उसने अपना और अपने पिता की पुस्तकें, वस्त्र तथा अन्य आवश्यक सामान बांध लिया था । परन्तु शुक्राचार्य जब राज्यसभा से लोटा तो उसके साथ सर्विस था । दासियों के वस्त्र पहने हुए आई अच्छा देने कहा देखो सर मिस्टर यह है तुम्हारी स्वामी । इसके कहीं अनुसार तो में कार्य करना होगा सर, मिस्टर आंखों में आंसू बडे हुए हाथ जो देवरानी के समीप खडी होगी । पिछली रात भर शुक्राचार्य और देवयानी सोये नहीं थे । अतिरिक्त शर्मिष्ठा को पंखा करने के लिए कह देते हो गयी । मध्यान के समय देवयानी उठी तो उसने देखा कि एक सुंदर यू उसके पिता के सामने आदर युक्त मुद्रा में बैठा है । आचार्य ने कहा देवयानी बैठो हो । ये महापुरुष कहते हैं कि इन्होंने रात तो मैं कोई इनमें से निकाला था । देवयानी ने उस उस की ओर देखा । पिताजी उस समय अंधेरा था । मैंने इन को देखा नहीं था । मेरा मन कहता है कि ये वही महापुरुष ये तुम से भी वहाँ के लिए वचनबद्ध है । पिताजी इस की याचना मैं नहीं की थी । जब उन्होंने मेरा हाथ पकडकर कोई ऐसे निकाला तो मैंने अनुभव किया कि ये मेरा पानी ग्रहण कर रहे हैं । तब ठीक है । इस प्रकार देवयानी महाराजा यह की महारानी बन उन के साथ चली गई । पिता ने जहाँ आभूषण, वस्त्र देवरानी को दिए वहीं सर मिस्टर उसकी दासी के रूप में साथ ही गई । समय व्यतीत होने लगा । देवियानी के घर एक लडका हुआ । उसका नाम यदु रखा गया और युवराज के रूप में वह शिक्षित किया जाने लगा । ये दो अभी पांच वर्ष का ही था कि एक दिन देवयानी महाराज जयंती के साथ उद्यान में भ्रमण करती हुई नदी के तट की ओर चल पडी । वहाँ एक कुटिया के बाहर सर मिस्टर बैठी थी और उसके समीर तीन बच्चे बैठे खेल रहे थे । एक पांच वर्ष का दूसरा तीन वर्ष का प्रतीत होता था और तीसरा तो अभी एक वर्ष का ही था । देवेंद्र ने देखा कि तीनों बच्चे अति सुन्दर और हस्त पुष्ट है है । उसके सब मिस्टर से पूछ रहा हूँ सर मिस्टर यहाँ बेटी क्या कर रही हो तो ये मेरा कर रहे हैं । सर मिस्टर ने उत्तर दिया और ये बच्चे मेरे हैं, किस से प्राप्त किए हैं । मेरी जानकारी में तो तुम्हारा विवाह नहीं हुआ हूँ । महारानीजी हुआ है । इनके पिता ही मेरे पति है और इनके पिता कौन है? मैं एक आर्य पत्नी होने से अपने पति का नाम नहीं ले सकती हैं । इस पर देवयानी ने बडे लडके से पूछा तो मारा क्या नाम हैं बांधने का दो और तुम्हारे दूसरे भाई का ये अनुभव और वो जो तुम्हारी माँ की गोद में है । वाह गुरु हैं तुम्हारे पिता का जाना है । दोनों ने देवयानी के समीप खडी महाराज की ओर अंगुली से संगीत कर दिया । देवी ने सब समझ गई और उसी समय महाराज को वहीं छोड राज्य प्रसाद ने लोट गई । ये आती उसके पीछे पीछे वहां पहुंचा तो देवयानी को यात्रा की तैयारी करते हुए देख पूछने लगा महारानी कहाँ जा रही हो? अपने पिता के पास किस लिए? आपने मेरे साथ विभाग की सख्त भंग की है । अब मैं आपके पास नहीं रहूंगी । यात्री ने समझाने का यत्न किया परंतु देवयानी नहीं मानी और राज प्रसाद छोड असूर राज्य में अपने पिता के असम में जाकर रहने लगी । देवयानी ने अपने पिता को अपने पति और दादा जी सर निष्ठा की बात बताई तो आचार्य जी को भी बहुत करो चढाया और उसमें ये यात्री को साहब दे दिया की यही आती तुरंत वृद्धावस्था को प्राप्त हो । परिणामस्वरूप ये आती वृद्ध हो गया । अब कोई भी कार्य भली बातें नहीं कर सकता था । इस पर ये यात्री का जीवन नीरस प्रतीत होने लगा । वह अपने ससुर सुकुरा चाहती की सेवा में पहुंचा और उनकी विनय अनु नहीं कर काहे लगा कि उसे उन्हें युवा हो जाने का उपाय बताएँ । शुक्राचार्य मृतकों को जीवित कर देने की विद्या को जानता था । अतः वृद्ध को युवा भी कर सकता था । उसने अपने जामाता की विनती सुनी तो उस पर दया कर कहने लगा तुम किसी युवा पुरुष से युवान प्राप्त कर सकते हो । यात्री ने उन्हें युवान प्राप्त करने का निश्चय किया । समस्या ये थी कि किस युवा पुरुष से युवान प्राप्त करेगा जिससे यौवन प्राप्त करेगा, ऍम वृद्ध हो जाएगा । यात्री ने विचार किया कि उसके पुत्र उसको अपना यौवन दान दे सकेंगे । उस समय उसके देवियानी से दो पुत्र ये वन प्राप्त कर चुके थे । सर मिस्टर से उसके तीन पुत्र थे । मैं पहले देवयानी के पुत्रों के पास गया । देवरानी के दोनों पुत्रों यदु और तुर्वसु ने स्पष्ट इंकार कर दिया । तब है सर निष्ठा के पुत्रों के पास पहुंचा । उनमें से सबसे छोटा पूरू पिता की इच्छापूर्ण करने के लिए तैयार हो गया । अतः पूर्व का यौवन उसके पिता ये यात्री को प्राप्त हो गया । गुरु श्रम रद्द हो गया । इस घटना से महाराज ये यात्री ने देवयानी के पुत्रों को राज्य से निकाल दिया और अपना राज्य पूर्व को देने का निश्चय किया । देवयानी का पुत्र ये दूध पिता के इस अनाचार युक्त व्यवहार से रुष्टो ब्रम्हवर्त देश में दक्षिण की ओर चल पडा और वहाँ कहीं मरूभूमि के तट पर किसी नगर में जाकर बहने लगा । यदु से यदुवंश चला । बहुत काल तक वर्तमान राजस्थान की मरुभूमि के तट पर बसाए मथुरा नगर में वह राज्य करता रहा । इसी ये दो वन्स में कृष्ण का जन्म हुआ ।

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श्री कृष्ण Written by गुरुदत्त Published by हिंदी साहित्य सदन Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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