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हूँ हूँ ऍम के सोता हूँ को सुरेश मुदगलकर नमस्कार आज हम अपने श्रोताओं के लिए लेकर आए हैं । गुरूदत्त लिखित श्रीकृष्ण को एफ एम । सुनी जो मन चाहे हूँ पूर्व का था बहुत पुरानी करता है । आज से लगभग नौ दो सहस्त्र वर्ष पहले की उत्तरी भारत एवं पांचाल देश का राजा ययाति था । वह एक दिन अपने पडोसी राजा वृषपर्वा के देश में गुप्त रूप से ग्रहण कर रहा था । यात्री को ये विदित था कि राजा पुरुष पर हुआ अपने गुरु सुकुरा चाहते की देख रेख में विशेष सैनिक तैयारी में लगा हुआ है । वो अपनी आंखों से देखना चाहता था कि इस देश की सेना और सैनिक अस्त्र शस्त्रों की क्या दस साल इन सब को वह अपनी आंखों से देख अनुमान लगाना चाहता था कि कभी इस राज्य से युद्ध हो जाने की स्थिति में उसे हम अपने राज्य में क्या कुछ करना चाहिए । अच्छा मैं एक सामान्य नागरिक के रूप में पैदल ही वर्ष करवा के राज्य में भ्रमण कर रहा था । वर्ष हुआ का गुरु सकता चाहिए । अति विद्वान ज्ञान विज्ञान का गया था और मृतसंजीवनी विद्या का जानने वाला था । ये आती है उस से भी मिलना चाहता था और यदि हो सके तो उसका भारी यश, कीर्ति और धन का लोग देकर अपने राज्य में ले जाना चाहता था । ये यात्री ने राज्य की बहुत सी बातें देखी और ये विचार करके कि ये राज्य कितना उन्नत नहीं जितना कि उसका अपना राज्य वह यह आशा करने लगा कि इस देश के विद्वान को अपने साथ अपने राज्य में चलने के लिए तैयार कर सकेगा । उसका विचार था शुक्राचार्य से रात के समय में मिलना चाहिए । दिन के समय कहीं किसी ने देख लिया और पहचान लिया तो कठिनाई उत्पन्न हो जाएगी । इस कारण राजधानी से बाहर वन में घूमते हुए उसने रात कर दी । घूमते हुए उसे ऐसा अनुभव हुआ कि कुछ देर से को इस्त्री, जोर जोर से सहायता के लिए पुकार रही है । इस तरीके की आवाज रह रहकर आ रही थी । मुझे बचाओ, मुझे बचाओ ये आती उस आवाज की दिशा में चल पडा । समय भी एक हुआ था और उस तरीका सब उसको में से आ रहा था । उस समय वन में अंधेरा हो चुका था और कोई मैं तो और भी दे रहा था । इस कार्ड देखने से कहा कि कोई में से सहायता की कूक लगाने वाली स्त्री कौन कैसी और किस आयोग की है । यात्री ने कोई में जाकर पूछा तुम कौन हो और यहाँ कैसे जा पडी हो? कोई के भीतर से आवाज आई, एक अबला हूँ और इस मुसीबत में फंस गई हूँ । मुझे कोई ये में से निकालो । यहाँ ठंडे जल में टूर कर मारी जाती हूँ । यात्री ने भी यही विचार किया की मुसीबत में फंसे सहायता की याचना करते हुए व्यक्ति की एक क्षेत्रीय के नाते सहायता करनी चाहिए । इस कारण उसने अपनी कमर के साथ लपेटा, दुपट्टा खोला और उसे कोई मिल अटकाकर पूछा । देवी देखो ये दुपट्टा तुम तक पहुंचा है अथवा नहीं । कोई में से आवाज आई पहुंच गया है तो उसे दृढता से पकडो । मैं उसी के ऊपर कैसे हूँ? ठीक है कीजिए भीतर से आवाजाही । ये यात्री ने दुपट्टे को ऊपर खींचा । एक मनुष्य का बोझ उसके साथ था । उसने दुपट्टे को ऊपर खींचा और फिर हाथ का आश्रय देकर उसे बाहर निकाला । कोई ऐसे निकली स्त्री एक युवा लडकी थी । युवती ने कोई ऐसे बाहर भूमि पर पांव रखते ही उस व्यक्ति का धन्यवाद किया और कहा मैं यहाँ एक विद्वान गुरु शुक्राचार्य की लडकी देवयानी हूँ । एक दुर्घटना वर्ष हुए में फेंक दी गई थी परन्तु आप कौन है? यात्री ने अपना परिचय नहीं दिया कि वह ये कहा मैं एक पथिकों पद से भटक जाने के कारण मुझे अपने स्थान पर पहुंचने में बहुत देर हो गई है । इस कारण अब रात कहीं किसी के घर में रहूंगा और प्राप्त हैं । अपने मार्ग पर चल दूंगा तो मेरे पिता के घर पर चलिए । साथ ही आपने एक कुमारी कन्या का हाथ पकडकर उसे कुछ ऐसे बाहर निकाला है मैं उसे पानी ग्रहण ही समझती हूँ । इस कारण मैं कहती हूँ कि आपने मेरा पानी ग्रहण कर मुझे पत्नी के रूप में वर लिया है आप आइए मैं अपने पिता से कहूंगी कि वह कन्यादान कर दें । ये आती इस प्रस्ताव पर बस हो गया । मैं विचार करने लगा था कि इस प्रकार मैं गुरु शुक्राचार्य को अपने पक्ष में कर लेगा । इस पर भी उसने कहा तुम्हारे कुल का पर इससे प्राप्त कर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है । मैं जाती हूँ यदि तुमसे विवाह होगा तो ऐसे नहीं कि रात के अंधेरे में किसी मुसीबत में फंसी अबला को पाकर उससे विवाह कर लूँ । ये हम छतरियों के धर्म और प्रसाद के विपरीत है । मैं तुम्हें नगर के द्वार पर छोड अपने स्थान पर रोड जाऊंगा । फोर्ड दिन के समय तुम्हारे पिता के पास आऊंगा और तुम्हें विवाह में मांग लूंगा । ये आती उस लडकी को नगर द्वार तक पहुंचाकर लौट गया और लडकी अपने पिता के घर पर जा पहुंची । शुक्राचार्य लडकी की रात हो जाने पर भी घर नहीं लौटने के कारण चिंतित था तो वह राज्य प्रसाद में राजकुमारी समझता के घर गई थी । इस कारण शुक्राचार्य लडकी के घर ने आने पर उसे ढूंढता हुआ राज्य प्रसाद में जा पहुंचा । वहाँ वे राजा से मिला और राजा नहीं अपनी लडकी समझता से पता किया तो पता मिला कि देवयानी भी सर्विस था की सखियों में थी जिनके साथ वन के तालमेल जलविहार करने गई थी । वहाँ से देवयानी संदेह होते ही अपने घर चली गई थी । ये समाचार पाकर शुक्राचार्य अपनी लडकी को वन में ढूंढने के लिए जाना चाहते थे । जाने से पूर्व वे अपने घर उन्हें पता करने पहुंचा और उसे नए देख वह जाने के लिए तैयार भी हुआ था कि देवयानी सिर से पांव तक जल्द से भीगी हुई गीले वस्त्रों में पहुंचे । उसे देख आचार्य प्रशन हो पूछने लगे, दिव्यानी! ये क्या हुआ है? तुम कितनी देर तक कहाँ थी । मैं तुम्हारी सखी शर्मिष्ठा से पता करने गया था । देवयानी ने पूछा, ऍम मेरे विषय में क्या कहा है? उस ने कहा है कि तुम अपनी सखियों के साथ जलविहार से लौटकर अपने घर चली गई थी । बहुत झूठी है गया मैं आप की सिस्टर की लडकी है । क्या हुआ है? आचार्य का प्रश्न था । देवी ने अपनी उस अवस्था का कारण बताया । उसने कहा पिताजी, हम सब सखियाँ वन तालमेल तट पर बहुत देर तक जलविहार करती रही । जब बाहर निकली तो मैंने भूल से सर मिस्टर के वस्त्र पहली । मैं अभी अपनी भूल का अनुमान ही लगा रही थी कि स निष्ठा को मेरी भूल का पता चल गया । मैं मुझे गाली देने लगे । उसने कहा अनदेखी संतान देखती नहीं । ये कपडे तुम जैसी और कंगले ब्राह्मण की लडकी के नहीं हो सकती हैं । उसने एक स्वास्थ्य मुझे और आपको गाली दी । इस पर मैंने भी उसे ये कहा कि उस कंगले ब्राह्मण के आश्रय ही तो तुम्हारे पिता का राज्य चलता है । यदि मैं पिता से कहूँ तो वह कंगला ब्राहमण कल ही इस राज्य को छोड जाएगा और एक ही वर्ष में ये राज्य जिसका तुम्हें अभिमान है, नष्ट भ्रष्ट हो जाएगा । इस पर उस दुष्ट लडकी ने अपनी सखियों को आदेश देकर मुझे वन के एक कोई हमें फिकवा दिया । बहुत कठिनाई से एक पति की सहायता से निकलकर आई हूँ परन्तु तुमने ये अभिमान युक्त बात क्यों कह दी की यदि में उसका राज्य छोड दूंगा तो एक वर्ष के भीतर ये राज्य विनिष्ट हो जाएगा । तो क्या ये सब नहीं है? क्या यह सत्य है कि पिछली बार जब देवेंद्र से इस का युद्ध हुआ था तब यदि आप मृत सैनिकों को जीवित नहीं कर रहे होते तो ये सब के सब असुर विनिष्ट हो जाते हैं और आज यहाँ इंद्र का राज्य होता । इस पर शुक्राचार्य विचार करने लगा । देवयानी ने उन्हें का तो जाइए, वर्ष पूर्वा को कह दीजिए कि हम कल यहाँ से चले जाएंगे, परन्तु जाऊंगा तो मिनट समाज करने लगेगा । एक ब्राह्मण होते हैं । किसी की याचना को मैं नए नहीं कर सकता तो एक सडक पर यहाँ रहना स्वीकार करिए । देखिए पिताजी अपराध किया है संस्था ने इसका । यदि वे झूठी क्रूड स्वभाव वाली लडकी अपने किए का प्रायश्चित करें तो आप मान जाइए और तब यहाँ रहकर इन लोगों की सहायता कर सकते हैं । क्या प्रायश्चित करें वो है मेरा मतलब है शर्मिष्ठा यदि मेरी दासी बनकर इस घर में रहे तो आप इस राज्य में रहना स्वीकार कर लीजिए अन्यथा यहाँ से चल देना चाहिए । शुक्रचार्य को ये बात युक्तियुक्त समझ में आई हो गए