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वो ही कृष्ण कथा प्रॉब्लम । ये आती का राज्य उसके सबसे छोटे पुत्र पुरु को मिला । पुराने पिता को कई वर्ष तक अपने यौन का भोग करने का अवसर दिया । जब ययाति भोगविलास से ऊब गया तो उसने पूरा योवन उसे वापिस कर दिया और साथ ही अपना राज्य भी उसे दे दिया । इस पर उसे पुरुवंश चला जो पीछे चल कर पूर्व कहना पूर्व उसकी एक साथ पांडे हुई पांडवों का कोरों से राज्य के विषय में झगडा हो गया और परिणाम शुरू कोरोमंडल युद्ध जो महाभारत युद्ध के नाम से विख्यात है लडा गया । उस युद्ध में यदुवंश के श्रीकृष्ण ने प्रसिद्ध योगदान दिया था । उसी की कथा हम बता रहे हैं । जिन दिनों क्रौं में नेत्रहीन राजा धूत राष्ट्र राज्य कर रहा था उस समय मथुरा मंडल में सुरसेन नाम का एक यदुवंशी राजा राज्य करता था । मंडल एक छोटे राज्य को कहते हैं । अभी पता यह है कि यदुवंशी का राज्यक्षेत्र कुरूवंश से छोटा था । कुरुवंशी के पांडू ने असम में किया था और वह चक्रवर्ती राज्य था । अश्वमेध यज्ञ का अभिप्राय ये होता था कि देश के सब राजाओं का एक अग्रणी राजा हो जो एक एक कर देश के सब वजहों से अधिक बलशाली भी हो । चक्रवर्ती को राज्य के अंतर्गत मथुरा का राज्य था । मथुरा राज्य में तीन यदुवंशी परिवार मिलकर राज्य करते थे । तीन परिवारों में ब्रश नी बोझ अंधक सूरसेन वृष्णि परिवार का था । उग्रसेन भूंज परिवार का एक घटक था । सूरसेन के पुत्र मसूद क्यों का बोझ? परिवार की कन्या देव किसी भी हुआ हुआ तो विभाग के कुछ कालो प्रांत नारद जो उस समय के एक महान ज्योति थे, घूमते हुए मथुरा में आए । उसने भोजवंशी कंस को कहा एक तो तुम्हारा जीवन धर्मानुकूल नहीं है, इसे ठीक करो अन्यथा तुम्हारा जीवन समाप्त हो जाएगा । कौन करेगा मेरा जीवन समाप्त? कंस ने अभिमान पूर्व पूछा । देवकी का पुत्र नारद ने कहा देवकी कंस की बहन थी । उसका विभाग वर्ष नहीं खुल के सुर चीन के पुत्र वसुदेव से हुआ था । सुरसेन और वसुदेव अपना जीवन धर्मानुकूल चलाते थे । नाराज को भविष्यवाणी करते देख कंस को चिंता लग गई । उसने अपने जीवन को धर्मानुकूल करने का यह तो नहीं किया परन्तु सुरसेन को राज्य छूट कर स्वयं मथुरा मंडल का राजा बन गया और फिर वसुदेव और अपनी बहन देवकी को बंदी बना लिया । बंदीग्रह में जब भी देवकी बालक होता तो कंस उसकी हत्या करा देता हूँ हूँ ।