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श्री राम बहुत तीन मुनि शुरुआत की । प्रथम पत्नी दो ही नहीं जो कुबेर की माँ थी कि अपनी कोटियां ऋषि के आश्रम में ही थी परंतु ऋषि की कुटिया से पृथक कुछ अंतर पर थी । ऋषि कैसी के साथ कई वर्ष तक सुखपूर्वक दांपत्यजीवन चलाते रहे । परिणामस्वरूप टैक्सी के चार संतान हुई । पहली संधान एक पुत्र था । जब इसका जन्म हुआ तो उस समय रात्रि थी भयंकर आंधी बिजली की कडक और वर्ष हो रही थी । बिजली की गरज से वन पशु है । बीस हो जी एक देश से लाते सुनाई दे रहे थे । इस पर भी लडका देखने में अति सुन्दर शरीर से सुदृढ तथा तर्क था । कुछ ही दिनों में यह स्पष्ट हो गया कि लडका मेघावी और संसार में प्रभुतासंपन्न होगा । उचित समय पर पिता ने इसके बुद्धि की प्रखरता देख इसका नाम दस ग्रीव रखती है । दस ग्रीव का अभिप्राय यही प्रतीत होता है कि उसके बुद्धि दस मनुष्य हो गया, बराबर थी दस ग्रीव की बाद में रावण के नाम से विख्यात हुआ । टैक्सी की दूसरी संतान भी एक लडका था परन्तु इसका शरीर बेडोल था । व्रत का एक बडे बडे कान और जब मुख से आवाज निकलती थी ऐसा प्रतीत होता था जैसे कुम्भ में आवाज बोल रही हूँ । इसका नाम कुंभकरन रखा गया । तीसरी संतान एक लडकी थी । मैं अति सुन्दर परन्तु टीके सौ वाली प्रतीत होती थी । उसका नाम सूर्पनखा रखा गया है । टैक्सी की चौथी संतान उन्हें एक लडका हुआ । यह दोनों भाइयों से अधिक सुन्दर था और मधुर स्वभाव रखता था । इसका नाम विभीषण रखा गया । विभीषण बाल्यकाल से ही तो मैं स्वभाव वाला और ईश्वर भक्त था । वह अपने पिता से शिक्षा पाकर ग्रुप गति से शास्त्र का ज्ञाता होने लगा । दस । ग्रीव और कुंभकरण शास्त्र शिक्षा से अधिक खेलकूद तथा मलयुद्ध में रूचि लेते थे । गैलेक्सी की लडकी तो दिन भर बहनों में घूमती रहती । सोमाली इस बीच अपनी लडकी से मिलता रहा था परंतु कभी ऋषि के सम्मुख नहीं आया था । दस गरीब अठारह वर्ष की व्यस् का हुआ तो एक दिन सोमाली एकांत में टैक्सी से मिलकर कहने लगा देखो कैसी अब समय आ गया है कि तुम उस योजना को आगे जलाओ जिसके लिए मैंने तो मैं यहाँ भेजा था । मैं क्या करो अपने पुत्रों को गम लोग में शिक्षा के लिए भेज तो वा युद्ध विद्या सिखाने का एक विशेष विद्यालय है । वहाँ इनको प्रवेश दिला दो परन्तु सुना है कि वहाँ देवताओं के अतिरिक्त अन्य किसी को प्रवेश नहीं मिलता । ये है मैं जानता हूँ परंतु ऋषि चाहेंगे तो तुम्हारे पुत्र वहाँ प्रवेश पा जाएंगे । वास्तव में हम देवताओं के भाई ही तो है और ये हमारा अधिकार दी है । पर बाबा यदि रिषी ने पूछा कि वहाँ बच्चों को भेजने का क्या उद्देश्य है तो क्या बताऊंगी? यही कहना कि यहाँ बच्चे उच्च दंगल होते जा रहे हैं और वे वहां पढकर विद्वान बनेंगे । सुमाली ने दस ग्रीव और कुम करण को भी समझाया । उस ने उन्हें एकांत में बुलाकर बताया कि वह कौन है । उसने यह भी कहा कि राक्षसों की संतान होने के कारण वास्तव में वे लंका के राजा है । वहाँ का राजा बनने के लिए उन्हें कुबेर को पराजित करना पडेगा और इसके लिए ज्ञानवान तथा शस्त्रविद्या में निपोन बनना पडेगा । उसने अंत में कहा मैं चाहता हूँ कि तुम हम लोग में चले जाओ । वहाँ सभी विद्याओं के विद्यालय है । उस विद्यालय के कुलपति ब्रह्मा जी से हम है तो मैं वहाँ जाकर युद्ध विद्या में पारंगत होना है । उसके लिए गोर तपस्या और विद्याध्यन की आवश्यकता रहती है । अब तुम यह करने के योग्य हो गए देखो बेटा तो वहाँ से शिक्षित हो जाओगे तो तुम्हें मैं लंका का राज्य दिलवा दूंगा । ऍम तुम्हारी सहायता के लिए वहां एकत्रित हो जाएंगे । सोमकरण इस कठोर तपस्या और सीट प्रदान प्रमुख देश में जाकर रहने के लिए तैयार नहीं होता । यदि दस गरीब उसे सचेत और प्रेरित नहीं करता, वह तो नाना की बात सुनता सुनता भी उन्होंने लगता है । जब सोमाली अपनी इच्छा कह चुका तो दसरी तुरंत तैयार हो गया । परंतु कुंभकरण से जब सोमाली ने पूछा तो उसने नाना की बात सुनी ही नहीं थी । उसने सचेत हो पूछा क्या कहा है नाना? दसवी ने बताया किसने आपकी बात सुनी ही नहीं । यह उस समय हो रहा था तो फिर दस ग्रीव ने उसकी पीठ में एक मुक्का लगाकर कहा अरे कुम्भ सुनो हमें अब यहाँ से चलना होगा कहाँ कुम? करण ने पूछ लिया हम लोग में शस्त्र अस्त्र की विद्या सीखने पर वहाँ तो बहुत सीट होगी । कुछ भी हो चलना होगा । पिता विश्रवा मुनि से ब्रह्मा के नाम पत्र बिना प्रयास मिल गया, जिसे ले दोनो भाई दम लोग में जा पहुंचे । पांच वर्ष की कठोर शिक्षा से दोनों भाई युद्ध विद्या में रिपोर्ट होंगे । इतने साल में बुद्धिमान दस ड्रीम तो वेदादि विद्या भी पड गया । दोनों की लगन से ब्रह्मा जी भी प्रसन्न हो गए । दोनों के लोटने से पुर उन्होंने दोनों को वार अभिप्राय यह है कि विशेष शास्त्र शिक्षा एवं दिव्या शास्त्र दिए । दोनों भाई लंबी यात्रा का पिता के आश्रम लौट आए । अपनी शिक्षा के प्रमाण तक अपने माता पिता को दिखाए । माता पिता प्रसन्न हो गई । उस दिनों बाद दोनों नाना के पास पहुंचे तो माली उनकी प्रतीक्षा ही कर रहा था । रुमाली को उनके प्रमाणपत्र और ब्रह्मा जी के वार का ज्ञान हो चुका था । दोनों को देखकर प्रसन्नता से बोला बहुत अच्छा हुआ तो आ गए हो । अब तुम मेरे साथ लंकापुरी को चलो और उसे देख लो । कितना सुंदर राज्य है तो मुझे उसके वास्तविक अधिकारी हो । पहले लंका का पूर्ण इतिहास ओ लोग लंका का हथियार सुन दोनों बहुत उत्सकता के साथ सोमाली के साथ लंका जहाँ पहुंचे । चारों ओर सागर से गिरी लंका पूरी और उसमें सुदृढ प्राचीरों से गिरा हुआ स्वर्ण तथा रतन जल्दी द्वारों वाला महल इस प्रकार शोभायमान हो रहा था । जैसे आकाश में सूर्य होता है तो वाली ने अपने नातियों को बोल लंकापुरी में घुमाकर उसके सौंदर्य एवं शोभा को दिखाया तो दस गली में उसे प्राप्त करने की लालसा जाग गई । उसने कहा नाना इसे विजय करने के लिए गौर युद्ध करना पडेगा । देखा जाएगा पहले तुम कुबेर के भाई के नाते इस पर अपना दावा करो । यदि वह स्वीकार नहीं होगा तब मैं इस देश में बस रहे सहस्त्रों राक्षसों की सहायता से विद्रोह करा तो मैं या अगर राजा बनवा दूंगा किसके पास दावा करूँ अपने पिता के पास उनको कहना कि तुम छोटे हो बडा भाई को भी देवताओं की सहायता से एक नया नगर बसा सकेगा परंतु तुमको देवता नया तो स्थान देंगे और नये ही अन्या सहायता । इस कारण यह राज्य तुम्हें सौंप दिया जाएगा । दसवीं में अपने पिता से जाकर का पिताजी अपने शिक्षा पूर्ण का मैं अब किसी राज्य का राजा बनने के योग्य हो गया हूँ । इस कारण बडे भाई को बेर को आप कहते कि वह लंका का राज्य मुझे दे दे और वह क्या करें? मैं आती धनवाल और योग्य व्यक्ति है । देवता लोग उसके ऋणी है । इस कारण उसे नवीन नगर और राज्य के निर्माण में कस्ट नहीं होगा । ऐसा करो । शर्मा ने कह दिया तुमको बेर के पास चले जाओ और राज्य कार्य में उसकी सहायता को तुम अपनी योग्यता से अपने बडे भाई से अधिक मान प्रतिष्ठा पास जाओगे । पर मैं तो अपना तक राज्य चाहता हूँ । जो अपने भाई की समृद्धि को देखकर एशिया करता है, उसकी तरफ में भारी निंदा होगी । पिताजी मैं निंदा से नहीं डरता । मैं तो यह कहता हूँ कि मेरा लंका के राज्य पर दोहरा दावा है । आपका पुत्र होने से मैं पित्रपक्ष श्रीलंका पर राज्य करने का अधिकार रखता हूँ । दूसरे यह नगरी मेरे नाना के पिता और भाइयों ने निर्माण की थी और बस आई थी । इस कारण मात्र पक्ष से भी मेरा इस राज्य पर अधिकार है परन्तु है राज्य कुबेर को इंद्रा ने दिया है । मैंने नहीं दिया इस कारण मैं इसको तुम्हें कैसे दे सकता हूँ । तब तो पिताजी ऍफ इंद्रा दोनों से युद्ध होगा । राज्य उसका ही होगा जो युद्ध में विजय प्राप्त करेगा । हटी दसरी बोला, परन्तु इंद्र तुम्हारी हत्या कर देगा, देखा जाएगा । यदि मेरा बस चला तो मैं केंद्र की हत्या कर दूंगा । इस झगडे में किसलिए पढते हो? तुमको बेर के पास चले जाओ और उस राज्य का भोग तुम सभी भाई मिलकर आनंद से करो । राज्य का उत्तरदायित्व उसके कंधों पर ही रहने दो । नहीं पिताजी मैं राज्य ही लूंगा । अच्छा अब तुम जाओ । मैं इस विषय पर बात करना नहीं चाहता हूँ । इसमें मेरा अधिकार भी नहीं ये शर्मा ने कहा । और मुख्य मोड लिया । दसवी उठा और कुटिया से निकल गया । संदीप टैक्सी बैठी पिता पुत्र का संवाद सुन रही थी । दस फ्रीज के चले जाने पर उसने कहा भगवान यहाँ अपने क्या कर दिया है? क्या कर दिया है भाई भाई में देश का बीस बोल दिया । ये मूर्ख बालक नहीं जानता हूँ कि मैं क्या कर रहा है । श्रीमान मैं अब हम लोग से गोर तपस्या तथा शस्त्रों की विद्या सीख कराया है । बडा भाई तो शायद इस पर दया कर दें । परन्तु इस युद्ध में संभावना तो बडे भाई के मारे जाने की है । देवता मारते नहीं परन्तु मार तो रहे हैं । विष्णु अब नहीं रहे बडे लिखे मोरक्को कौन समझाये कह कर ऋषि चुप कर