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2. Sumali Ka Lanka Lautne Ka Prayas   in  |  Audio book and podcasts

2. Sumali Ka Lanka Lautne Ka Prayas

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श्री राम Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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श्री राम भाग दो पता लोग में जंगल ही जंगल थे । वहाँ हिंसक पशु पक्षी ही थे । वनस्पतियां सौरभ था । नवीन प्रकार की थी । राक्षस नहीं जानते थे कि क्या खाया जाए और क्या नहीं खाया जाएगा । सोमाली अपने पिता का विमान बचाकर ला सकता था । इस विमान में बैठकर मैं इस नए देश का सर्वेक्षण कर अपनी जातियों को बताने में सफल हुआ था । उसने यह पता कर लिया था कि कहाँ कहाँ फलों वाले सुरक्षा कहाँ भूमि कृषि योग्य है और कहाँ तीन योग्यजन मिल सकता है । इसपर भी वहां वहां खुशहाली नहीं थी, जो लंका में थे । माल्यवान, सोमाली और मालिक तीनों भाइयों में से सोमाली ही जीवित बचा था । उसका परिवार भी सुदर्शनचक्र की अग्नि में भस्म हो गया था । उस राक्षस अपनी पत्नियों और परिवार को बचा कर ले जा सके थे । उनके बसने में सोमाली ने पर्याप्त सहायता की । उसने अपने लिए भी एक छोटा सा निवास स्थान बनवाया और एक कन्या से विवाह कर नए परिवार की सस्ती आरंभ करती हैं । कालांतर में उसके एक लडकी हुई, जो बहुत सुंदर थी । कुछ राक्षस अपनी व्यवस्था से दुखी थी । वे पुन्न लंका में एक नया राज्य स्थापित हुआ देख वहाँ बस नहीं की योजना बनाने लगे । दो दो चार चार कर वे लंका में पहुंचने लगे और वहीं बसने लगे । कुबेर ने भी इन लोगों को बस ने से मना नहीं किया क्योंकि देवता और आर्यव्रत देश के मानव लंका में बस ने के लिए तैयार नहीं होते थे । वहाँ का जलवायु उनके अनुकूल नहीं था । राक्षसों को उन्हें लंका लोटते देख सोमाली को विचार आया कि वह भी क्यों न नोट जाए । परन्तु जिस देश का राजा रहै चुका था, वहाँ मैं साधारण नागरिक बन कर रहने के लिए मन को तैयार नहीं कर सकता । उसके मन में एक योजना बन गई । वह अपनी लडकी को विमान में बैठा लंका जा पहुंचा । उसका विचार था कि वह अपनी लडकी का लंका के अधिपति कुबेर से विवाह कर देगा तो वह राज्य में एक अधिकारी तो बन ही जाएगा । अतः लंका में एक स्थान पर ढेेर करवा राज प्रसाद ने राजा को देखने गया, परंतु वहाँ जाकर मैं समझ गया कि योजना सफल नहीं हो सकेगी । जब सो वाली राज प्रसाद के बाहर पहुंचा तो वहाँ पर एक बहुत बडा विमान खडा था । मैं उसे देख चकित रह गया । मैं भी उसे देख ही रहा था कि राजा अपनी रानी के साथ राज प्रसाद से निकला है । हुबेर अति सुन्दर और ओजस्वी युवक था और उसकी पत्नी एक देवकन्या थी जो उससे भी अधिक सुंदर थी । इनको देख सोमाली समझ गया कि उसकी लडकी का विवाह यहाँ नहीं हो सकेगा । यदि किसी भी दी से वो भी गया तो वह इस रानी की तुलना में मान प्रतिष्ठा नहीं पा सकेगी । अतः अपने निवास स्थान पर पहुंच उसने अपनी योजना बदल दी । उसने विचार किया कि इस युवक के पिता के साथ अपनी पुत्री का विवाह करते उससे जो संतान हो उसके द्वारा लंका पर अधिकार जमाले । इस विचार के आते ही विमान पर चढकर देव लोग जा पहुंचा और वहाँ किसी विषय हुआ के आश्रम के समीप विमान खडाकर इसी विषय हुआ को देखने चला गया । ऋषि एक कुटिया के बाद वृक्ष के नीचे आसन लगाए स्वाध्याय कर रहे थे । मैं आती ओ ज्वान सोमाली विमान पर लौट आया और आपने लडकी टैक्सी से बोला टैक्सी मैं तो मैं यहाँ अपने परिवार का एक भवन कल्याण करने के लिए लाया होगा । यहाँ एक अति ओजस्वी ऋषि रहता है । उसकी पहली पत्नी से एक संतान है । वह संतान अति सुन्दर और बलवान वह है इस समय लंका पर राज्य कर रहा है । वह राज्य किसी समय हमारा था । मैं चाहता हूँ की तो उसी से विवाह कर वैसी ही सुंदर और और दसवीं संतान प्राप्त कर इससे हमारा परिवार अपना पुराना राज्य उन्हें प्राप्त करने में सफल हो सकेगा । टैक्सी ने कहा मुझे ऋषि दिखा दीजिए । मैं उनको विवाह के लिए मना लूँ । ठीक है चलो में रहता हूँ । सोमाली ऍर इसी के सम्मुख जाना नहीं चाहता था । इस कारण उसने दूर से ही किसी को दिखाकर कहा अब तुम स्वयं से बातचीत कर लो । टैक्सी ने कुबेर को देखा था और उसके पिता को भी देखो । किसी उस समय आंखे मूंद ध्यान लगाए बैठे हैं । टैक्सी ने ओजस्वी किसी को पसंद किया और उनके सामने जा खडी हूँ । किसी का ध्यान भंग नहीं गए । हाथ जोड खडी रही और ऋषि द्वारा आंखे खोलने की प्रतीक्षा करने लगे तो मैं दो घडी बर्फ खडी रही । तब किसी की आप खुली ऋषि धवन के लिए और लोगों की इस अग्नि प्रदीप्त करने लगे तो उनकी दस्ती सामने खडी इस सुंदरी की ओर से लेंगे । दोनों की आगे मिली तो कैकसी की आंखे जुड गई । ऋषि पूछ लिया सुंदरी क्या चाहती हूँ, किस लिए हाथ जोडे खडी हो? टैक्सी बोली भगवन् वर्ष जाती हूँ मांगों हमारी समर्थन में हुआ तो देंगे । भगवन मैंने आपके पुत्र लंकापति जो अब कुबेर के नाम से जाना जाता है तो देखा है वैसा ही पुत्र पाने की अभिलाषा से खडी हूँ । परन्तु है तो ईश्वर के अधीन महाराज ईश्वर की प्रेरणा से ही आई हूँ और आपकी सामर्थ्य को जानती हुई आपकी सेवा में उपस्थित हुई है । ऋषि स्वयं भी लडकी के सौंदर्य पर मुग्ध हो रहे थे । इस कारण आंखे मूंद । कुछ समय विचार करते हुए तदुपरांत बोले इस सामने वाले आसन पर बैठ जाओ । टैक्सी आसन पर बैठे तो ऋषि ने अग्नि प्रदीप्त की और हवन आरंभ करती है । हवन समाप्त हुआ तो ऋषि ने शांति पाठ पडा । तदंतर सामने बैठी लडकी को कहा अब उठकर मेरे वामहस्त के साथ आसन पर बैठ जाओ । हमने तो मैं अपनी पत्नी के रूप में वर लिया है ।

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श्री राम Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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