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ऍम के श्रोताओं को रमेश मुद्गल का नमस्कार आज हम अपने श्रोताओं के लिए लेकर आए हैं । गुरूदत्त लिखित श्री राम ऍम सोने जो मनसा श्री राम बहादुर श्री राम भगवान थे । यह परमात्मा का उतार थे या श्रीराम एक महापुरुष थे । हम कुछ भी मानने इतना अवश्य है कि उन्होंने अपने जीवन में वह कार्य किया जो एक महान आत्मा ही कर सकता है । ऐसा क्या क्या श्री राम ने ये है तो हम जानते हैं कि उन्होंने दोस्त राक्षसो और उनके राजा रावण का वध किया । क्या राक्षस दोस्त थे? क्या रावण इतना बुरा व्यक्ति था कि उसका मत करना पडा? रावण कोन था, डाॅन थे । कहते हैं कि लाखों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर पहले आई थी और संपूर्ण प्रति जान में डूब गई थी । सब कुछ नष्ट हो गया था । केवल कुछ बात जो बहुत ऊंचे थे, जल्द से बाहर रह गए थे और वहाँ कुछ लोग बच गए थे । उस बच्ची हुई भूमि में देव लोग भी था । ऐसी मान्यता है कि यह वही क्षेत्र था जिसे आजकल तिब्बत करते हैं । देवताओं में एक रद्द तपस्वी ब्रह्मा थे जो उनके पिता माने जाते थे । डेव लोग का राजा इंद्र था । डेढ लोग में सुख और शांति थी । लोग परिश्रम करते थे और उन्नति करते थे परन्तु सब लोग एक समान योग्य नहीं होते । कुछ ऐसे भी थे जो काम योग्य थे और उनको उन्नति करने का अवसर नहीं मिलता था । इस कारण ये दुखी हो गए । ये पिताबास ब्रह्मा के पास गए और बोले पितामाह हम क्या करें । हमें यहाँ उन्नति करने का अवसर ही नहीं मिलता । ब्रह्मा जी ने देखा कि देव लोग की जनसंख्या बढ गई है और सब लोगों को उन्नति के लिए यहाँ पर्याप्त अवसर नहीं है । उन्होंने कहा, दक्षिण में भी कुछ द्वीप जल से बाहर है तो वहाँ जाओ, परिश्रम करो और सुख भोगों । उन लोगों ने कहा ठीक है पितामाह हम वहाँ जाएंगे और उन द्वीपों की रक्षा करेंगे । उनका आशय था की उन द्वीपों पर अधिकार का, वहाँ बसने वालों की जंगली जी वो मैं जंगली लोगों से तथा अपने नवनिर्माण की भी रक्षा करेंगे । ये लोग देवताओं के भाई ही थे । ये जब उन द्वीपों के रक्षक बने तो पहले उनको रक्षा की कहा जाता था परंतु कालांतर में उनका नाम बिगडकर राक्षस हो गया । उस समय राक्षस कोई बुरा शब्द नहीं माना जाता था । नहीं राक्षस का मतलब है कि उनके बडे बडे डाल थे या वे बहुत दबाव नहीं देखते परन्तु ऍम वर्षों बाद जंगली लोगों को देख देख कर वे भी बुरे काम करने लगे । यहाँ तक कि मनुष्य का मांस खाने लगे तब उनके शरीर बेडोन हो गए और मांसाहर के कारण उनके आगे के दादा बाहर निकलने लगे जिससे उनकी आकृतियाँ भयंकर हो गई । धीरे धीरे उन को में रहते हुए उन्हें कई सहस्त्र वर्ष और व्यतीत हो गए । तब तक देर लोग से जुडी धरती भी जल से बाहर सूख गई थी और वहाँ मानव बसने आरंभ हो गई थी जो अत्यंत परिश्रम कर उन्नत हो गए थे । आर्यव्रत देश उन मांगों का मूलनिवास था । यह आर्यव्रत ही आज भारत कहना था । आर्यव्रत के दक्षिण में ही राक्षस बसे हुए थे । इन राक्षसों के वंश में एक राजा हुआ विद्युत्केश । उसकी राजनीति सालक ऍम तो बहुत गिलास में लीन रहती थी तथा किसी की परवाह नहीं करती थी । जो भी उसके भोगविलास में बाधा डालता था, उसे मरवा डाल दी थी । इसी कारण जब उसका एक लडका हुआ तो बच्चे का पालन पोषण उसे झंझट प्रदीप हुआ । उसने अपने बेटे को भी मरवाने का यह क्या? उसने अपने सेवकों को उसका वध करने के लिए कहा । सेवक उस बालक को ले गए । जैसे हम उसकी हत्या करना नहीं चाहते थे अतः उसे मंदराचल पर्वत के शिखर पर छोड आए । उनका आशय था कि वहाँ चील करोगे आकर उसे खा जाएंगे । परन्तु उस समय कैलाश पति शंकर और देवी पार्वती अपने विमान में बैठे हुए भ्रमण कर रहे थे । ये कुछ ही समय पश्चात उधर से निकले तो उन्होंने एक छोटे से बच्चे को पृथ्वी पर पडे रोते हुए देखा तो विमान को नीचे भूमि पर ले आए । उस बालक को पार्वती ने उठा लिया । चीज पहचान गए कि वह विद्युत्केश का बेटा है । वे उसे अपने निवास स्थान कैलाश पर्वत पर ले गए । पार्वती ने बाला का पालन भोजन किया और इस बालक का नाम उन्होंने सुकेश रखा । विद्युत्केश के उन्हें कोई संतान नहीं हुई । इकलोते पुत्र के बिच छोडने से मैं ध्यान दुखी रहता था तो जब बडा हुआ तो उसे यह बताकर की तुम राजा विद्युत्केश के पुत्र हो । कैलाश पति ने उसे वापस भेज दिया । उसके लौटने के लिए उसे एक विमान उपहार में दिया । सुकेश का रंग रूप वो चलने बोलने की विधि राजा विद्युत्केश के समान ही थी । विद्युत्केश उसे देखते ही पहचान गया । मैं उसे युवराज घोषित कर दिया । सुकेश बहुत बलशाली मुद्दे मानता हूँ । परन्तु भगवान शंकर ऍम पार्वती द्वारा पालित होने के कारण तथा अपने पास विमान रखने के कारण उसमें अभिमान आ गया था । सुकेश के तीन पुत्र माल्यवान, माली और सोमानी तीनों ही बडे बलवान थे । उन्होंने घोर तपस्या की और शस्त्रों का अभ्यास किया । इस प्रकार ये स्वयं को अडतीस रेस्ट व्यक्ति मानने लगे । उनमें भी बहुत अहंकार आ गया है । अब उन्होंने दूसरे लोगों को तंग करना आरंभ कर दिया । अपने देश से बाहर निकल दूसरे देशों पर आक्रमण करना आरंभ कर दिया । एक समय आया की देवता, गंदर्भ, मानव इत्यादि सब की सब जातियां इन तीनों भाइयों के अत्याचार से त्राहि त्राहि कर उठे । कोई इनका विरोध नहीं कर सका । वास्तव में ये सब जानते थे की इनके पिता सुकेश शंकर के प्रिय है और यदि उन्होंने इन भाइयों से युद्ध किया तो शंकर उनके विरुद्ध हो जाएंगे । बहुत से पीडित लोग मिलकर विचार करने लगे कि क्या करें । यह निश्चय किया कि कैलाश पति शंकर के पास चला जाए और उनसे कहा जाए कि सुकेश को सन्मार्ग दिखाएं । सभी लोग उनके पास गए परंतु श्रीशंकर ने कहा तो केश देवी पार्वती का प्रिय है । मैं उसे कुछ नहीं कह सकता । आपसे हम उनसे बात करें । लोग देवी पार्वती के पास पहुंचे । परंतु पार्वती को जब पता चला कि लोग सुकेश के विरुद्ध शिकायत लेकर आए हैं तो उन्होंने उनसे मिलने से इंकार कर दिया । अब लोग परेशान हो उठे । ये पुनर्स् चली शंकर के पास पहुंचे और बोले भगवन पार्वती जी तो उनसे मिलती ही नहीं । अब आती बताइए हम क्या करें? कैलाश पति ने अपनी असमर्थता प्रकट कि परन्तु उपाय भी सजा दिया । आप श्रीविष्णु के बाद जाओ, वह निश्चित ही कुछ उपाय करेंगे । दुखी लोग सागर पति श्री विष्णु के पास पहुंचे । विष्णु देव लोग के राजा इंद्र का छोटा भाई था जो बहुत बलवान था और युद्ध विद्या में पारंगत था । वो और उसकी धर्मपत्नी देवी लक्ष्मी देर लोग से दूर महासागर में किसी जान सुनने टापू में रहते थे । महासागर में होने वाली किसी भी प्रकार की अनियमितता को रोकने में ये समर थे । उनके पास कई दिव्यास्त्र थे । इनमें सुदर्शनचक्र भी था । सुदर्शनचक्र जिस पर छोडा जाता था उसको मारकर से हम ही चलाने वाले के पास लौट आता था । जब दुखी लोगों ने अपनी कथा सुनाई तो विष्णु बोले, कैलाश पति ठीक कहते हैं कि वह तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकते हैं । पार्वती जी सुकेश को बहुत प्यार करती हैं । इसलिए सुकेश के पुत्र भी उनको बहुत है । मैं ही तुम्हारी रक्षा करूंगा । इस प्रकार विष्णु ने राक्षसों पर आक्रमण की घोषणा कर दी । जब राक्षसों ने विश लोगों की घोषणा सुनी तो वे हस पडे । ये मानते थे कि जब तक माल्यवान, माली और सोमाली उनके साथ है उन को कोई हरा नहीं सकता हूँ । उन्होंने विष्णु के आक्रमण की प्रतीक्षा नहीं की । ये सेम विष्णु लोग पर आक्रमण करने चल पडे । विष्णु भी दिव्यास्त्र लेकर राक्षसों से लडने निकल गए । राक्षस संख्या में बहुत अधिक थे परन्तु जब विष्णु दिव्यास्त्र चलाने शुरू किए तो गाजर मूली की तरह फॅमिली सरीर कटने लगे । उनकी इतनी अधिक हत्या हुई कि उनके शवों के ढेर पर्वत के सवाल उनसे उनसे लग गए । फॅस घबराकर दक्षिण की ओर भाग खडे हुए और आपने लंका नगरी में घुस के श्रीविष्णु ने यहीं पर बस नहीं किया । मैं जानते थे कि जब तक बुराई को जड से समाप्त नहीं किया जाए, बुराई कभी भी पनप सकती है और किसी को शांति से जीने नहीं देती । राक्षस लंका में रहेंगे । वे बाहर निकल बने लोगों को तंग करेंगे क्योंकि यह बुरे लोगों का स्वभाव बन जाता है कि भले लोगों को मारकर उनकी संपत्ति हडप कर जाए और उनका मांस खा जाए जिससे कोई प्रमाण उनके विरुद्ध ना रहे । इस कारण विष्णु ने बुराई के स्रोत लंकापुरी पर आक्रमण कर दिया । लंकापुरी अजय मानी जाती थी । इस कारण राक्षस समझते थे की यहाँ पे विष्णु को परास्त कर सकेंगे । परंतु यहाँ उन्होंने अपना सुदर्शनचक्र निकाल लिया । माल्यवान वाह माली इस युद्ध में मारे गए । उन्हें मारा देख सभी बच्चे कुछ एॅफ लंकापुरी को छोड पाताल लोगों को भाग गए । इस प्रकार लंका जान सुनने हो गई । लंका जब खाली हुई तो देवराज इंद्र ने महर्षि पुलस्त्य के पुत्र ऍम को वहाँ का लोकपाल नियुक्त कर दिया । महर्षि रस्ते पति फौज में तथा अत्यंत ज्ञानवान थे । उनका पुत्र विषय हुआ और पोत्र वैश्यवर्ण भी अति बलवान तेजो में तथा ज्ञानवान थे । वैसे ओवन लंकापुरी में रहने लगा और राज्य संभालने लगा । यही वाॅर्ड बाद में कुबेर के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।