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सूर्योदय प्रवा कैसी है? रायबहादुर जानकीनाथ ने विभाग स्वर्ग में पूछा और उनकी व्याकुल दृष्टि कमरे के द्वार पर झूलते पर्दे कोबेद नहीं लगी । घबराएगी सरकार कमरे से निकलकर आती हुई । सेविका ने मंद मंद मुस्कराकर कहा कुछ ही पलों की देर है । इस समय तो बीवीजी प्रसव पीडा से करा रही है । करा होने का करना सेट स्वर सुप्रसिद्ध वकील रायबहादुर जानकीनाथ की कानून तक आया । क्षण भर को मैं रोमांचित हो उठे और शंका आशंका से उनका हृदय कांप उठा । माँ दुर्गे उन्होंने दीर्घ निश्वास लियो रात दुर्दशा । मैं इधर से उधर टहलते रहे । कटक ओडिसा की कोटलिया ग्राम में स्थित उनकी विशाल टेलिकाॅम चहल पहल और उत्साह उमंग से गूंज रही थी । वातावरण अत्यंत सुहावना हो रहा । वायु में हूँ और नवीनता का संचार प्रतीत होता था । ऐसा आभास होता था कि भारत को कोई महान उपलब्धि होने की घडियां पहुंची है । रायबहादुर जानकीनाथ स्वयं उल्लास की अनुभूति कर रही थी । ऐसे शिक्षक हो रहे थे जो प्रसव की दिव्यता का पूर्वाभास देते थे । एक विचित्र सानंद उन्हें छूट हो जाता था । बधाई हो, सरकार सूर्योदय हो गया । एक का एक कक्ष से निकल करती हुई परिचारिका ने हर्षोल् सिर्फ स्वर में पुत्ररत्न प्राप्ति का शुभ समाचार सुनाया और रायबहादुर कुछ उनको आनंद में बोर होते हैं । विशाल भवन का कोना कोना मंगलगीत लहरियो से गुंजायमान होता । बधाई और शुभकामनाएं व्यक्त करने वालों का तांता लग गया । सेवक सेविकाएं न्योछावर पाने के लिए मालिक और परिवारजनों को घेरने लगे । कोई ऐसा नहीं था जो इस नवोदित सूर्यउदय पर तन मन से अलादीन हो । शहर आई की सुमधुर स्वरलहरी दूर दूर तक गूंज रही थी । पूर्व जी बुलाए गए जयम कुंडली बनाएंगे । शिशु के ग्रहों को देखकर पंडित जी आश्चर्यचकित रहे गए और हर्षोल्लास से बोले ये बालक विद्या में सदा अग्रणी रहेगा । महापराक्रमी होगा दुश्मन सदाय से मैं भी तो नहीं । अपने माँ से अधिक जननी जन्मभूमि का मुफ्त होगा और इतिहास में अमर स्थान प्राप्त करेगा । इस भविष्य घोषणा नहीं, परिवार की प्रसन्नता में दुगुनी वृद्धि करती रायबहादुर जानकीनाथ के हर्ष का पारावार ना रहा । शिशु का पालन पोषण बहुत सावधानी के साथ होने लगा । उसका नामकरण सुभाष चन्द्र किया गया । वास्तव में ये संख्या उसकी रूपाकृति के सर्वथा अनुकूल थी । जो देखता मंत्रमुग्ध साहब अप्रतीम शिशु को ही देखकर है जाता । उसके उदित होने के दिन से ही रायबहादुर की यश और प्रतिष्ठा में वृद्धि होने लगी । एक रात रायबहादुर जानकीनाथ ने एक विचित्र तो आपने देखा शिशु शुभाष पालने में निद्रामग्न हैं । सहसा पालने के समीप दिव्यप्रकाश फैलता है और माँ दुर्गा जैसी भव्य आकृति प्रकट होती है । उस आकृति के हाथों में एक पुष्कर मालिका है । बहुत तेजस्वी नेत्र से अपलक श्रीश्री सुभाष को निहारती रहती है । रायबहादुर सांसे संभाले अचानक से या कुछ स्वप्न अदृश्य देखते रहते हैं । फिर भी आकृति आगे बढकर कुछ कोमालिका शिशु के गले में पहना दी है वो देख पत्र तो अवतारी है । फॅमिली भूमि को बंधन मुक्त कराने के लिए जन्म आया गया है । मेरा शीर्ष है तो अपने महान देश में सफल हो और वहाँ पुष्पमाला शिशु के गले में जाना पडेगा । मांग साक्षात महादुर्गा भावविभोर होकर रायबहादुर देवी के चरण स्पर्श करने को झपट्टे हैं । अचानक उन्हें पलंग के पाएगी, छोडकर लगती है और स्वप्न भंग हो जाता है । रायबहादुर रखा था व्रत से आंखें मिलते हैं नहीं कुछ भी नहीं था । स्वच्छ केवल स्वस्थ्य मगर अध्यक्ष वक्त ऐसा सपना उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था । अच्छा पढते हुए पत्नी के कक्ष में देखा तो प्रभावती गहरी निद्रा में लीन थी और समीर की पालनी में सुभाष सोया था । वास्तव में ऐसी गले में एक ताजी पुष्पमाला पडी थी हूँ । स्वप्न केवल सपना नहीं था । पत्नी के निकट आकर उसे सारी घटना कह सुनाई और शिशु के गले में पडी हुई माला की ओर संकेत क्या सच ये कैसी लेना है? प्रभावती चकित होती ईश्वर जाने रायबहादुर हर्षातिरेक में अधिक कुछ ना कह सके ।