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खूल किरोली एक सशस्त्र गोरी ने आगे बढकर पिंजरे का लो हरिद्वार खोलिए जैसे ही बंदी शेर सीट से बाहर आया हाँ खोज पूर्ण कोलाहल धरती और आकाश को गुंजरित करो था ऍम जिन्दाबाद वीर सुबह जिन्दाबाद आजादी अधिकार हमारा कुछ छडों में इतनी ही पुष्पमालाओं से उसका गला भर गया उस मानव यू पी । सी हाँ की दुर्बल किंतु दीप्तिमान मुखाकृति पर गंभीर मुस्कुराहटें मिलती वो हाथ हिला हिलाकर लोग स्वागत सम्मान के प्रति आभार प्रकट कर रहा था प्रणाम मेरे आराध्य प्रणाव वहाँ अपने आपसे बताए विस्फारित नेत्रों से कुछ अड उस अभूतपूर्व जान कोलाहल को देखती रही फिर पूजन का था लिए आराध्या तेल की ओर पडने लगी सी है बडी निर्भरता और गौरव के साथ आगे आगे चल रहा था और हर्षोल् लेता पार्जन समूह गगनभेदी नारों के साथ उसका अनुसरण कर रहा ब्रिटिश सरकार की सशस्त्र टुकडी ने पुलिस को चारों ओर से घेर रखा था । गुड सवार बडी सतर्कता के साथ जुलूस का फेरा लगा रहे थे और पुलिस का एक उच्च पदाधिकारी जी द्वारा जुलूस की गतिविधियों का निरीक्षण कर रहा था । जुलूस पूरे जोश खरोश के साथ आगे बढता रहा नारोल ब्रिटिश विरोधात्मक आवाजों की गति बढती रही । लोगों में अदम्य साहस और अटूट उत्साह हिलोरे ले रहा था । एक विस्तृत पार्क में जुलूस ठहर गया । पार्क में पूर्व से ही स्वाधीनता सेनानी सुभाष जी के स्वागत आह्वान के लिए भव्य मंच घोषित था । हजारों की संख्या में दर्शक अपने लाडले नेता के दर्शन के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे । इंकलाब जिंदाबाद, वीर सुभाष अमर रहे आजादी अधिकार हमारा जैसे ही सुभाष मंच पर उपस्थित हुए, उपस्थित जनता तो मूल हर्ष और उल्लास के साथ गगनभेदी नारा लगाया जय सुभाष जय हिंद । माइक पर ओजपूर्ण स्वरलहरी वहाँ के वातावरण में गूंजी और इसके साथ ही वहाँ पर शांति हो गई । बंदी सुभाषा बंदे मधुर और श्रद्धा ऍम सात्विक शांति को आकस्मिक रूप से भंग किया और हजारों दृष्टियां अपलक मंच पर टिक गई । मृदला जशवीर परिधान में सुशोभित हाथों में पूजा की थाली लिए क्रांतिदूत के अभिनंदन के लिए मंच पर पस्थित हुई । मृदुला क्रांतिदूत कि तेजस्वी मुखमण्डल पर आह्लाद एवं गौरवान्व भक्ति की पवित्र मुस्कान तरह थी । मृ दिलाने गुलाब के सुगंधित पुष्पों की एक माला क्रांतिदूत को अर्पितकी एक चढ के लिए उन मत बाद लोगों की तरह तालियों की गडगडाहट ये क्रांति जीता की क्रांति प्रयाण का अभिनंदन था मेरे दिलाने आराध्या के उन्नत ललाट पर रोली अंकित करने के लिए हाथ बढाया फिर ओली स्वतंत्रता की सिपाही के मस्तक पर ये रोली क्रांतिदूत के स्वर में कौन सा था तो बाल भर को मृत लाल अरेंज कर रहे गई । मेरे विचार से आजादी के दीवाने का स्वागत रख की रोली से होना चाहिए मेरे द्वारा पोषण कब आएगा जब तुम रख की रोली से मेरे क्रांति प्रयाण का अभिनंदन करोगी मृत लाने पल भर को श्रद्धा वेरावल दृष्टि से क्रांति देवता के प्रखर मुखडे पर देखा सहसा हीरो लिया अंकित करने के लिए उसका बडा हुआ हाथ स्वतः पीछे लौट आया अभी इसी ठंडे वहाँ बुदबुदाई उसने उसी शरण रेजर मंगाकर अपना छोटा चीज लिया रख की गाडी धारा छलक पडे तुम धन्य हो देगी मैं तुम्हारी इस रक्त होली को व्यर्थ नहीं जाने दूंगा । कहते हुए क्रांति देवता ने उसके समक्ष मस्तक न कर दिया रखी जोलन ट्रोली क्रांति देवता के मस्तक पर अंकित हो गयी वातावरण पुनः और जसवीर हर्षनाथ से झंकृत हो था सहस्त्रों कंटेश्वर एक साथ ललकार थे आजादी अधिकार हमारा मार्टि के कण कण का ना आओ प्यारो वीरो आओ भारत मान्य तुम्हें पुकारा ज्यादा सारा हिन्दुस्तान हिंदू मुस्लिम एक समान बता रहा इतिहास हमारा व्यर्थ नहीं जाता । बलिदान केवल एक यही अभियान जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद । सुभाष ने अपने संबोधन में कहा मैं आप लोगों को अपनी आत्म की संपूर्ण निष्ठा के साथ अपने स्वागत अभिनंदन के लिए धन्यवाद देता हूँ । आप जानते हैं कि सन उन्नीस से इक्कीस में विश्वविद्यालय के प्रांगण से निकल कर मैं सक्रिय रूप से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पडा हूँ । नतीजा ये हुआ कि कई बार मुझे आजादी की लडाइयों से संबंधित होने के कारण बिना किसी निश्चित आरोप के बंदी बनाया गया । मुझे इसकी कोई शिकायत नहीं क्योंकि अपनी स्वतंत्रता का अधिकार मांगना हमारा अधिकार है और हमारे इस प्रयास को आघात को बचाना उनका शासकीय दायित्व है । मैं बिना किसी अभिमान के इस बात का दावा करता हूँ कि प्रत्येक भारतीय ने मेरी तरह विभिन्न प्रकार की राष्ट्रीय समस्याओं का अनुभव किया है । अपने ऐसे ही अनुभवों के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ के बिना सशस्त्र क्रांति के भारत की स्वतंत्रता संभव नहीं । आप सब जानते हैं कि जब विदेशियों ने सर्वप्रथम हमारी धरती पर अपने कदम रखें, उस समय भारत में दूध घी की नदियाँ बहती थी । लोग अमन चैन से रहते थे । भारत में सुख समृद्धि अपनी चरम सीमा पर थी और विदेशी इसे सोने की चिडिया के हैकर्स चिडिया को अपनी स्वार्थ की धारा में बंदी करने को लगाए रहते थे । वो भारत की समृद्धि ही थी जिसमें कुटील अंग्रेजों को भी हमारे देश की ओर आकर्षित किया था और बडे ही नाटकीय ढंग से व्यापार के बहाने हमारे देश में आकर उन्होंने एकछत्र अधिकार कायम कर लिया । आज हम देखते हैं कि भारतीय जनता राजनैतिक दासता और आर्थिक विपन्नता के कारण भूख और गरीबी से मार रही है जबकि अंग्रेजो कभी दीनता और दरिद्रता में जीते थे । भारत की समृद्धि और साधनों के बल पर मोटे और समृद्ध हो गए केंद्र तमाम दुख और कष्ट सहकर दासता और उपेक्षा की चरमसीमा पर पहुंचाने के बाद अब भारतीय ये समझ गए हैं कि इन सभी स्थिति और समस्याओं को सुलझाने का एक ही रास्ता है अपनी खोई हुई स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त करना । भारतीय इतिहास के घटनाक्रम से हमें तो समझ मिले हैं । पहली बार यदि हम विश्वासघातियों का बहिष्कार नहीं करते और उन्हें आवश्यक दंड नहीं देते तो हम स्वतंत्रता प्राप्त करने की कल्पना भी नहीं कर सकते । और दूसरी बात जब तक हम भारतीय एकता के सूत्र में बंद कर सामूहिक रूप से ब्रिटिश सत्ता से मोर्चा नहीं लेते तब तक हमारी आजादी का प्रयाण पूरा नहीं हो सकता । वस्तु कहा जब सितंबर ऍम चालीस में लडाई प्रारंभ हो गई, उस समय हमारा कर्तव्य था कि हमारे देश की संपूर्ण शक्तियां एकत्रित होकर सरकार पर इस बात का दबाव डाले कि वह हमारी मांगों पर विचार करेंगे । यदि वो इन मांगों को पूरा करने से इनकार करे तो लडाई के लिए सामने किंतु अफसोस है कि सहयोगी नेतागणों ने मेरे इस विचार की उपेक्षा क्योंकि वो दूसरे ही ढंग से सोचते थे, उन की ढुलमुल नीति के कारण हमें असफलता ही हाथ लगी । ये वक्त ज्यादा तर्क वितर्क का नहीं है और हमें अपने संकल्प को दोहराते हुए अपनी आजादी की लडाई आखिरी सांस तक जारी रखनी है । नतीजा कुछ भी नहीं दोस्तों मैं एक बार फिर अपने विश्वास को दोहरा देना चाहता हूँ कि देश हर कीमत पर आजाद होगा । हमारा त्याग और बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा । हमें हमारे खून की हर पूर्ण का मुआवजा मिलेगा । हम अपने इस कठिन इम्तिहान में जरूर पास होंगे । आइए एक बार फिर हम अपने संकल्प को दोहराया लेगी । हम सब कंधे से कंधा मिलाकर अपनी आजादी की लडाई के लिए आखिरी सांस तक लडते रहेंगे और हम में से कोई भी अपने लिए नहीं वन देश के लिए जीता मरता रहेगा । इस वक्त इतना ही काफी है । इन्कलाब सिंदबाद चाहिए । जनसमूह ने गगनभेदी नारा लगाया नेताजी जिंदाबाद नेता जी अमर रहे । कभी ब्रिटिश कोर्सवार सभा को भंग करने के लिए दौड पडे । उत्तेजित जनता उनसे भिडने को आमादा हो तभी लोगों ने नेता की ओजस्वी शब्द सुने । हमें ऐसी छोटी मोटी बेकार की बातों में अपनी शक्तियों का विनाश नहीं करना है बल्कि अपने को भविष्य के बडे मोर्चों के लिए तैयार करना है । जनता उनकी आवाज के जादू से शांत हो गई । आप के लिए सार्वजनिक सभा में भाषण करने की पाबंदी है । पुलिस अधिकारी ने आगे बढकर सुभाष को पुनः हिरासत में लेते हुए कहा आप को घर में नजरबंद रहेगी । फरवरी शर्त पर छोडा गया है । ठीक है गंभीर मुस्कुराहट के साथ सुभाष इतना ही कहकर गाडी में बैठ गए और पुलिस की जीप उन्हें हिरासत मिलेगा । फंकी एल्गिन रोड वाले मकान की ओर भागती रही देशभक्ति युवा हृदय सम्राट सुभाष का ये क्रांति अभिनंदन था