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ऍम हमारा वैदिक तथा पौराणिक साहित्य हमें अपने अतीत से परिचित कराता है तो जो जो हम दासता की जंजीर में जब करते गए, अपने अतीत से कटते गए और अब जब हम स्वतंत्र हैं, तब कदाचित इस सब की आवश्यकता ही नहीं समझी जाती कि हम ये जाने की हम क्या थे, क्योंकि यह प्रगति का युग है । हमने प्रगति तो की है किंतु केवल बहुत क्षेत्र में नैतिकता और आध्यात्मिकता में हमारा राहत हुआ है । उचित अनुचित कर्तव्य अकर्तव्य की पहचान को हम हो बैठे हैं । ये राज भारतीयों का युवा हो, ऐसी बात नहीं है । यहां तो मानव का का हुआ है किसी कभी कि यह चिंता समीचीन ही है । हम क्या थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी प्रस्तुत उपन्यास प्रभाती वेला का कथानक हम क्या आधे से संबंधित है आदि प्राणी सृष्टि का ये है और पन्या से वर्णन है । ज्ञान और विज्ञान हमें बताता है कि आरंभ में यह पृथ्वी कैसी थी और उसमें कौन निवास करता था । हमारे ग्रंथ हमें बताते हैं कि मानव से पूर्व वन्य पशु और पक्षियों की रचना हुई । कालांतर में मानव की श्रृष्टि हो जाने के उपरांत अधिकांश वन्यप्राणियों का लोग होता गया हूँ किन्तु सर्वथा लोग होना तो प्रलय में ही संभव है । हमारा साहित्य बताता है कि आरंभिक सृष्टि मैं तो नहीं थी । इसका कारण और प्रमाण भी हमारे साहित्य में विस्तार से प्राप्त है । उसके आधार पर कहा जाता है आधी मनुष्य अंडर था । उस अंडे का निर्माण किस प्रकार हुआ और फिर उसमें किस प्रकार मनुष्य प्राणी का बीजारोपण हुआ तथा आरंभिक मनुष्य किस आकार प्रकार का उत्पन्न हुआ, यह भी सम प्राण हमारे शास्त्रों में वर्णित है । पौराणिक सहित वेदों का ही विस्तृत और सहज हम रूप है । किन्तु वेद क्या है? उनकी रचना किस प्रकार हुई? उनके रचियता कौन थे? लेकिन भाषा और लिपि में रचे गए क्या वैदिक भाषा जनसामान्य की भाषा रही थी । भाषा और लिपि का अविष्कार कब, कैसे और कहां हुआ तथा किसने यह अविष्कार किया, ये सब इन पुराणों में पृथक से उल्लिखित नहीं है । तब आती, इसके संकेत उनमें प्राप्त हैं । ये और इसी प्रकार के अन्य अनेक प्रश्न है, जो चिंतनपरक तथा अध्ययनशील मनुष्य के मस्तिष्क को पूरे देखते रहते हैं । ऐसे जिज्ञासु पाठकों को पुराणों का गहन अध्ययन करना चाहिए । वेदों का भी कर सके तो अधिक उत्तम होगा । आत्मा और परमात्मा क्या है? उन का परस्पर क्या संबंध है, वे सजीव हैं । या निर्जीव उनका निवास कहाँ है? ये भी उसी प्रकार के प्रश्न हैं, जिनका समाधान आज का मनीषी चाहता है । हमारे विद्वानों ने इन विषयों पर गंभीरता से विचार किया, मंथन किया, मन किया, शोध क्या प्रयोग किए? तब कहीं जाकर उन्होंने कुछ सिद्धांत सुनिश्चित किए और फिर उस ज्ञान को सर्वत्र प्रकाशित करने का सुख आ रही क्या मंत्रदृष्टा ऋषियों ने वेद सहायता हूँ की रचना की । कालांतर में व्यासपीठ के अधीक्षक व्यासों ने उन के आधार पर पुराणों कोरा चाहूँ व्यासपीठ की यह परंपरा महाभारत, जो समय जय काफी माना जाता था, तक ही प्रचलित मिलती है । प्रभात वेला यद्यपि उपन्यास है, किन्तु इसमें निहित ज्ञान उपन्यास से कहीं अधिक अतुलनीय है, जो समझना चाहिए कि उपन्यास के माध्यम से विद्वान लेखक ने सृष्टि के आरंभ कि सारी प्रक्रिया इस उपन्यास में वर्णित कर दी है । उपन्यासकार स्वर्गीय श्री गुरुदत् मात्र उपन्यासकार नहीं थे । वे चिंतक, शोधकर्ता, अध्ययनशील अध्यापक एवं मनीष ए थे । उन जैसा शुद्ध बुद्ध पंडित ही ऐसे जटिल और दुरूह विषय को उपन्यास एक रूप में प्रस्तुत कर सकता था, कोई अन्य नहीं । हिंदी के पाठकों का यह सौभाग्य है कि स्वर्गीय गुरूदत्त की लेखनी का चमत्का उनके लिए पुस्तक रूप में सुना है हूँ । हूँ । अध्ययनशील अध्यापक एवं मनीष थे उन जैसा शुद्ध बुद्ध पंडित ही ऐसे जटिल और दुरूह विषय हो और पन्यास इक रूप में प्रस्तुत कर सकता था कोई अन्य नहीं । हिंदी के पाठकों का यह सौभाग्य है स्वर्गीय गुरूदत्त की लेखनी का चमक का उनके लिए उस तक रूप में सुना है ।