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Ep 1: सत्यान्वेषी (दि इनक्विजिटर) - Part 1

आप सुन रहे ऍम किताब का नाम है ब्योमकेश बख्शी की रहस्यमयी कहानियां जिसे लिखा है सारे हिन्दू बंदोपाध्याय ने और मैं आपका दोस्त हरीदर्शन शर्मा ऍम सुने जो मनचाहे बहुत एक सत्यान्वेषी दी । इनकी विजिटर क्योंकि इस से मेरी पहली मुलाकात सन उन्नीस सौ पच्चीस की बसंत ऋतू में हुई थी । मैं यूनिवर्सिटी से पढकर निकला था । मुझे नौकरी वगैरह है की कोई चिंता नहीं थी । अपना खर्च आसानी से चलाने के लिए मेरे पिता ने बैंक में एक बडी रकम जमा करा दी थी जिसका ब्याज मेरे कलकत्ता में रहने के लिए पर्याप्त था । इसमें बोर्डिंग हाउस में रहना, खाना पीना आसानी से हो जाता था । इसलिए मैंने शादी वगैरह जो बंधन में न बंद कर साहित्य और कला के क्षेत्र में अपने को समर्पित करने का निर्णय लिया । युवावस्था की ललक थी कि मैं साहित्य और कला के क्षेत्र में कुछ ऐसा कर देता हूँ जो बंगाल के साहित्य में काया पलट कर सके । युवावस्था के इस दौर में बंगाल के युवाओं में ऐसी अभिलाषा का होना कोई आश्चर्य नहीं माना जाता । पर अक्सर होता यह है कि इस दिवास्वप्न को टूटने में ज्यादा समय नहीं लगता । जो भी हो मैं घूम के से अपनी पहली भेंट की कहानी को आगे बढाता हूँ । कलकत्ता को भरपूर जानने वाले भी या नहीं जानते होंगे कि कलकत्ता की केंद्र में एक ऐसा भी इलाका है जिसके एक और बंगालियों की अभावग्रस्त बस्ती है । दूसरी ओर एक और गंदी बस्ती और तीसरी ओर पीठ वर्ग के चीनियों की कोर्ट दिया है । इस त्रिकोण के बीचोंबीच तरबूजा का जमीन का टुकडा है जो दिन में तो और स्थानों की तरह सामान्य दिखाई देता है किंतु शाम होने के बाद उसकी पूरी कायापलट हो जाती है । आठ बजते बजते सभी व्यापारिक प्रतिष्ठानों के शटर गिर जाते हैं । दुकान बंद हो जाती है और रात का सन्नाटा पसर जाता है । कुछ एक पांच सिगरेट की दुकानों को छोडकर सभी कुछ अंधकार में विलीन हो जाता है । सडकों पर केवल छाया और परछाइयां यदा कदा दिखाई रह जाती है । यदि कोई आगंतुक और आगे जाता है तो कोशिश करता है कि जल्दी से जल्दी इलाके को पार कर ले । मैं ऐसे इलाके के पडोस में स्थित बोर्डिंग हाउस में कैसे आया यह बताने का कोई फायदा नहीं । इतना कहना काफी है कि दिन के उजाले में मुझे ऐसा किसी प्रकार का संदेह नहीं हुआ । दूसरे मुझे मैच के ग्राउंड फ्लोर में एक बडा हवादार कमरा उचित किराये पर मिल रहा था, इसलिए मैंने तुरंत ले लिया । यहाँ तो मुझे बाहर में पता लगा कि उन सडकों पर हर महीने दो दिन कटी फटी लाश होगा । मिलना आम बात है और यहाँ की सप्ताह में कम से कम एक बार पास पडोस में पुलिस का छापा वरना कोई विषय के बाद नहीं है । लेकिन तब तक रहते हुए मुझे अपने कमरे से एक प्रकार का लगा हो गया था और अब बोरिया बिस्तर लेकर कहीं हो जाने की मेरी इच्छा नहीं थी । दिन छिपे अक्सर मैं अपने कमरे में ही रहकर अपनी साहित्यिक गतिविधियों में तल्लीन रहता है । इसलिए मुझे व्यक्तिगत रूप से भाई का कोई कारण दिखाई नहीं देता था । मैं इसके प्रथम दल में कुल मिलाकर पांच कमरे थे । प्रत्येक में केवल एक व्यक्ति था । ये पांचों महानुभावों मध्य वाईके थे, जिनके परिवार कलकत्ता से बाहर गाँव या अन्य नगरों में थे । वे कलकत्ता में नौकरी करते थे । हर शनिवार की शाम को वे अपने घरों के लिए प्रस्थान कर जाए करते हैं और सोमवार को अपने दफ्तर जाने के लिए हाजिर हो जाते हैं । ये लोग एक लंबे अरसे से इस मैच में ही रहते आए थे । हाल ही में उनमें से एक सज्जन नौकरी से रिटायर होकर घर चले गए तो वहाँ खाली कमरा मुझे मिल गया । दफ्तर से आने के बाद ये सभी सज्जन एक जगह एकत्रित होकर जब वो कर या ब्रिज खेलते हैं तो उनकी ऊंची आवाजों से मैं गूंजने लगता । अश्विनी बाबू ब्रिज में माहिर है और उनके जोडीदार घनशाम बाबू जब जब बाजी हार जाते हैं तो अब हंगामा खडा कर देते हैं । ठीक नौ बजे महाराज खाने का ऐलान करता तो सब खेल की बाजी भूलकर शांति से खाने की मेज पर बैठ जाते हैं और खाने के बाद सभी अपने अपने कमरों के लिए प्रस्थान कर जाते हैं । मैं क्या यह क्रम बिना किसी परिवर्तन के बडे आराम से चलता रहता था? मैं भी जीवनक्रम का एक भाग बन गया था । मकान मालिक अनुकूल बाबू का कमरा भी ग्राउंड फ्लोर पर था । वे पेशे से होमियोपैथ डॉक्टर थे । व्यवहार में सीधे साधे और मिलनसार सज्जन थे । संभव है वे कुम्हारे भी थे, क्योंकि उस घर में कोई परिवार था ही नहीं । वे किरायदारों की जरूरतों की देखभाल करते और दोनों समय खाने और नाश्ते का प्रबंध करते थे । यह सब बडी मुस्तैदी से पूरा करते थे । किसी तरह की कोई शिकायत की गुंजाइश नहीं थी । महीने की पहली तारीख को पच्चीस रुपए के भुगतान के बाद महीने भर किसी को भी किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं रह जाती थी । डॉक्टर गरीब रोगियों में आपने दवा के लिए काफी मशहूर है । रोजाना सुबह और शाम उनके कमरे के बाहर मरीजों की कतार लग जाती थी । वे अपने दवा के लिए बहुत ही मामूली फीस लेते थे । रोगी को देखने के लिए वह बहुत ही कम जाते थे और जाते हुए थे तो उसकी फीस नहीं लेते थे । जल्द ही मैं भी उनका प्रशंसक बन गया । रोजाना लगभग दस बजे मैच के सभी सज्जन अपने दफ्तर चले जाते हैं और पूरे मैच में हम दो ही रह जाते हैं । अक्सर हम लोग दोपहर का खाना एक साथ ही खाते हैं और सारे दोपहर समाचारपत्रों की हेडलाइंस पर चर्चा करने में बीत जाती । यह भी डॉक्टर सारे व्यवहार वाले व्यक्ति थे, किंतु उनमें एक विशेषता थी । उनकी आयु चालीस से ज्यादा नहीं थी और नाम के आगे कोई डिग्री वगैरह भी नहीं थी, किंतु उनका ज्ञान अपार था । किसी भी विषय में उनकी जानकारी और परिवहन ज्ञान को देखकर मुझे कभी कभी आश्चर्य होता था और मैं चकित होकर उनकी बातों को सुनता रहता था । मैं जब उनकी प्रशंसा में कुछ कहता तो शर्म हजार इतना ही कहते दिनभर करने को तो कुछ है नहीं । इसलिए घर पर ही रहकर पढता रहता हूँ । मुझे सारा गया इन पुस्तकों से ही मिला है । मुझे रहते हुए कुछ महीने ही हुए थे । एक दिन सुबह करीब दस बजे मैं अनुकूल बाबू के कमरे में बैठा अखबार पढ रहा था । अश्विनी बाबू मूवी पान दबाकर अपने काम पर निकल गए थे । उनके बाद गंजाम हो गए । जाने से पहले उन्होंने डॉक्टर से दातों के दर्द के लिए दवा ली और चले गए । शेष दो सज्जन भी समय होते होते प्रस्तान कर गए । मैं दिन भर के लिए खाली हो गया । कुछ होगी अब भी डॉक्टर के इंतजार में खडे थे जिन्हें दवा देकर डॉक्टर ने अपना चश्मा माथे पर चढाया और बोले आज अखबार में कोई खास समाचार है क्या? हमारे पडोस में कल रात फिर से पुलिस ने छापा मारा है । यहाँ तो रोजाना आएगा । किस्सा है । अनुकूल मुस्कुराकर बोले बिल्कुल पडोस में मकान नंबर छत्तीस किसी शेख अब्दुल गफूर के घर में अच्छा मैं जानता हूँ । व्यक्ति को वहाँ अक्सर इलाज के लिए मेरे पास ज्यादा है । क्या खबर में है कि किस चीज के लिए छापा मारा गया कोकेन यह पढ लीजिए मैंने अखबार दैनिक काल के तो उन्हें पकडा दिया । अनुकूल बाबू ने माध्यम पलट के चश्में को नीचा करके पढना शुरू किया । गत रात पुलिस ने स्ट्रीट स्थित मकान नंबर छत्तीस एक अब्दुल्लपुर के घर पर छापा मारा । हालांकि छापे में कोई गैरकानूनी चीज नहीं पाई गई । तथा भी पुलिस को यकीन है कि इस इलाके में कोई वह स्थान है जहां को केंद्र गैरकानूनी धंधा चलता है और उसकी सप्लाई पासपडोस तथा अन्य स्थानों में की जाती है । काफी समय से यहाँ नैतिक गैन बडी चालाकी से इस गैरकानूनी धंधे को चला रहा है । यहाँ शर्मा और कैद की बात है कि अब तक इस गुप्त अड्डे का पर्दाफाश नहीं हो पाया है और दे गा नेता रहस्य में छुपा बैठा है । अनुकूल बाबू कुछ सोचने के बाद बोले यहाँ सही है । मुझे भी लगता है कि इस इलाके में गैरकानूनी नशीले चीजों का कोई बडा गुप्त वितरण केंद्र है । मुझे कभी कभी इसके चिन्नई दिखाई दे जाते हैं जहाँ देते हैं क्या इसे इतने मरीजों मेरे बाद आते हैं? उनमें से नशेडी चाहे जो भी करें वहाँ डॉक्टर से कोकेन का नशा नहीं छिपा सकता । लेकिन यहाँ अब्दुल गफूर मुझे नहीं लगता कोकेन का नशा करता है । मैं जानता हूँ कि नशा करता है पर अफीम का या उसने खुद मुझे बताया है । अनुकूल बाबू पडोस में इतनी हत्याएं होती है । क्या आप सोच सकते हैं? इसकी वजह क्या हो सकती है? मैंने पूछा, इसका बहुत ही आसान स्पष्टीकरण है । जो लोग गैरकानूनी नशीले चीजों का व्यापार करते हैं, उन्हें हमेशा भरा रहता है कि वे पकडे न जाएं । इसलिए कोई भी व्यक्ति यदि उनके रहस्य को जान लेता है तो उन के बाद उसे खत्म करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं रहा था । इस ऐसे समझने की कोशिश कर रहे हैं । मान लो कि मैं को केंद्र अवैध धंधा करता हूँ और तुम यह जान लेते हो तो मेरे लिए तुम्हारा जिन्दा रहना क्या मुझे सुरक्षा दे पाएगा? अगर तुमने पुलिस के सामने अपना मुंह खोला तो न सिर्फ मुझे जेल जाना होगा बल्कि मेरा इतना बडा व्यापार डूब जाएगा । करोडों रुपए का माल जब्त हो जाएगा कि हाँ, मैं यह सब होने दूंगा और वहाँ पे लगे । मैंने कहा लगता है अपने अपराध मनोविज्ञान पर गहन अध्ययन किया है । हाँ या मेरे दिलचस्पी का एक विषय है । उन्होंने अंगडाई ली और उठ खडे हुए, मैं भी उठ नहीं की सोच रहा था कि मेरे कमरे में एक व्यक्ति ने प्रवेश किया । उस की अवस्था लगभग तेईस चौबीस वर्ष की होगी । देखने सुनने में वहाँ पढा लिखा नौजवान दिखाई देता था । उसका रंग साफ था, उसकी कदकाठी और देखने में आकर्षक तथा बुद्धिमान लग रहा था । लेकिन उसे देखकर लगता था कि वहाँ बुरे समय से गुजर रहा है । उसके कपडे अस्त व्यस्त और बाल थे । जैसे उन में कई दिनों से कंघी नहीं की गई हो । उसके जूते भी गर्व से लिपटे हुए थे । उसके मुंह पर आतुरता झलक रही थी । उसने मुझे देखा । फिर अनुकूल बाबू की ओर देखकर बोला, मुझे पता है कि यहाँ बोर्डिंग हाउस है । यहाँ क्या कोई रूम खाली है? हमने उन्होंने उसकी ओर आश्चर्य से देखा । अनुकूल बाबू ने सिर हिलाया और कहा, नहीं, आप काम क्या करते हैं? श्रीमान वहाँ नौजवान ढका होने के कारण मरीजों की बेंच पर बैठ गया और बोला, फिलहाल तो मैं अपने आप को जीवित रखने के जुगाड में लगा हूँ । नौकरी के लिए अप्लाई कर रहा हूँ और सिर छुपाने की जगह ढूंढ रहा हूँ । लेकिन अब आगे शहर में एक अच्छा बोर्डिंग हाउस ढूंढना भी असंभव है । सब जगह हाउसफुल है । सहानुभूतिपूर्वक अनुकूल बाबू ने कहा, सीजन के बीच में कोई जगह मिल पाना मुश्किल होता है । आपका नाम क्या है? श्रीमान अतुलचंद्र मित्र जब से मैं कलकत्ता आया हूँ मैं नौकरी के लिए भटक रहा हूँ । जो छोटी सी रकम में अपने गांव से सब कुछ भेज कर लाया था वह भी अब समाप्त होने को है । मेरे पास मात्र पच्चीस रुपए ही बचे हैं जो यदि मुझे दोनों वक्त का खाना पडे तो ज्यादा दिन चलने वाले नहीं है । इसलिए मैं अच्छे मैं इसको ढूंढ रहा हूँ । ज्यादा दिन के लिए नहीं । बस यही कोई महीना बीस दिन के लिए । यदि मुझे दोनों वक्त का खाना मिल जाए और रहने के लिए जगह तो मैं अपने आप को संभाल लूंगा । अनुकूल बाबू ने कहा मुझे दुख है । अतुल बाबू मेरे सभी कमरे लगे हुए हैं । अतुल ने एक निःश्वास छोडते हुए कहा तो ही है, क्या किया जा सकता है? मुझे जाना होगा । कोशिश करता हूँ यदि पडोस की उडिया बस्ती में कुछ मिल जाए । मेरी एक ही चिंता है राहत भर में मेरे पैसे कहीं चोरी ना हो जाए । क्या मुझे गिलास पानी मिलेगा? डॉक्टर पानी लाने अंदर चले गए । मुझे ऐसा है । नौजवान पर दया आ रही थी । थोडी हिचकिचाहट के बाद मैंने कहा मेरा कमरा काफी बडा है । उसमें आसानी से दो व्यक्ति रह सकते हैं । यदि आप को कोई आपत्ति न हो तो दोनों चल बडा और बोला आपत्ति क्या कह रहे हैं श्रीमान, यह मेरे लिए बडे सौभाग्य की बात होगी । उसने तुरंत पॉकेट से नोटों का बंडल निकाल लिया और बोला, मुझे कितना देना होगा, आप बताए । आपकी बडी दया होगी यदि आप मेरा किराया पहले ही जमा कर लें । देखिए, मैं कोई उसकी आतुरता देखकर मुझे हंसी आ गई । मैंने कहा सब ठीक है । आप किराया बाद में ले सकते हैं । कोई जल्दी नहीं है । अनुगुल बाबू पानी लेकर आए तो मैंने उनसे कहा यह नौजवान परेशानी में है । यहां फिलहाल मेरे साथ रह सकता है । मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी आप बाहर से अनुग्रहित होकर अतुल ने कहा, इन्होंने बडी दया दिखाई है लेकिन मैं आपको अधिक समय के लिए कष्ट नहीं दूंगा । इसी बीच यदि मैं कहीं और व्यवस्था कर पाया तो मैं तुरंत चला जाऊंगा । उसने पानी का गिलास खत्म करके मेज पर रख दिया । अनुकूल बाबू ने वो इसमें तो अगर मुझे देखा और बोले आपके कमरे में यहाँ पे ही गए । यदि आप को कोई आपत्ति नहीं तो मुझे क्या कहना है । आप के लिए भी ठीक ही रहेगा । रूम का भाडा अदा अदा बढते जाएगा । मैंने तुरंत उत्तर दिया नहीं यह गलत नहीं है । बात दरअसल लिया है कि यहाँ नौजवान लगता है परेशानी में है । डॉक्टर हजार बोला हाँ ऐसा लगता है डॉक्टर ठीक है । अब्दुल बाबो जाइए, अपना सामान ले आई है । आपका यहां स्वागत है जी हां अवश्य मेरे पास अधिक सामान नहीं है । बस एक बैटिंग और एक कैनवास बैक । मैं दोनों को होटल के दरबान के पास छोड आया हूँ । मैं अभी जाकर ले आता हूँ । मैंने कहा ठीक है जाइए और लौटकर लंच हमारे साथ ही लीजिए । यह तो बहुत ही बढिया सुझाव है । अतुल ने अपनी दृष्टि से मुझे आभार प्रकट करते हुए कहा और चला गया । उसके प्रस्थान के बाद कुछ मिनट तक हम चुपचाप रहे । अनुकूल बाबू इलाज होने में जैसे खो गए तो मैंने पूछ लिया क्या सोच रहे हैं अनुकूल बाबू? उन्होंने सजग होकर कहा नहीं कुछ नहीं किसी ये परेशानी में उसकी मदद करना अच्छा काम है । आपने जो की आठ ठीक किया लेकिन जैसा कि आप भी वहाँ कहावत जानते ही होंगे कि जाने सुने बिना किसी को अपनी रख लेना । जो भी हो मैं समझता हूँ हमारे लिए कोई दिक्कत नहीं होगी । वे उठे और कमरे से बाहर चले गए । अतुल ने मेरे कमरे में रहना शुरू कर दिया । अनुकूल बाबू ने उसके लिए एक चार भाई मेरे कमरे में लगवा दी । अतुल दिन में कुछ समय के लिए दिखाई देता । अधिकतर वहाँ बाहर ही रहता । वहाँ सुबह ही नौकरी की तलाश में निकल जाता और देर रात ग्यारह बजे के आस पास लौटा । लंच के बाद भी वहाँ बाहर चला जाता । लेकिन जितना अल्प समय भी वहाँ मैच में बिता था, वहाँ उसके लिए सभी लोगों से दोस्ती करने के लिए पर्याप्त था । शाम को कॉमन रूम में रोजाना उसका बेसब्री से इंतजार होता लेकिन क्योंकि उसको ताज खेलना नहीं आता था वह थोडी देर चुप चाप नीचे डॉक्टर से गप मारने चला जाता है । उससे मेरी दोस्ती जल्दी ही हो गई क्योंकि हम दोनों हम उम्र थे । इसलिए जल्दी ही हमारे बीच में औपचारिकताएं खत्म हो गई । अतुल के आने के बाद एक सप्ताह सबकुछ शांति से भी था लेकिन उसके बाद मैच में कुछ अजीब घटनाएं होने लगी । एक दिन शाम को मैं और अतुल अनुकूल बाबू से बातचीत कर रहे थे । मरीजों की भीड घटकर कम रह गई थी । एक का दुख कर होगी । अब भी आ रहे थे अनुकूल बाबू उनको दवा दे रहे थे, साथ साथ ऍसे संभालते हुए हम लोगों से बातें भी कर रहे थे । इलाके में कुछ गर्मागर्मी थी और अफवाहों का बाजार गर्म था क्योंकि पिछली रात हमारे मैच के सामने के मैदान में हत्या हो गई थी और लाश सुबह मिली थी । हुआ है इसलिए गर्म भी क्योंकि लाश की पहचान में वहाँ व्यक्ति गरीब तबके का बंगाली प्रतीत होता था किंतु उसकी धोती के पैसे से सौ सौ के नोटों की गड्डी बरामद हुई थी । डॉक्टर का कहना था, यहाँ सबको केन की तस्करी से ताल्लुक रखता है क्योंकि यदि हत्या पैसों के लिए की गई होती तो मरने वाले के फैसले से एक हजार के नोटों का बंडल कैसे बरामद होता? मेरा मानना है कि वह व्यक्ति को केन खरीदने आया था और इसी दौरान उसे स्मग्लर के अड्डे के कुछ रहस्य पता चल गए । हो सकता है उसने पुलिस में जाने की या फिर ब्लैकमेल करने की धमकी दी हो । तो उसके बाद अतुल ने कहा, मैं यह सब नहीं जानता सर, मैं तो डर गया हूँ । आप लोग कैसे इस इलाके में रहते हैं । मुझे यदि पहले पता होता तो डॉक्टर ने हंस कर कहा तो अब क्या करते हैं? ज्यादा से ज्यादा पडोस के उडिया बस्ती में जाते है ना । लेकिन देखिए हमें कोई डर नहीं लगता । मैं इस इलाके में पिछले लगभग दस वर्षों से रह रहा हूँ । मैंने कभी किसी के मामले में हस्तक्षेप नहीं किया है । मुझे आज तक कोई दिक्कत या परेशानी नहीं हुई है । अतुल ने आहिस्ता से कहा अनुकूल बाबू, मुझे यकीन है आपको भी कुछ रहस्य की जानकारी होगी । है ना एक का एक हमें एक आवाज सुनाई दी । हमने पीछे घूम कर देखा कि अश्विनी बाबू दरवाजों से झांककर हमारी बातें सुन रहे हैं । उनके चेहरे का रंग पीला पड गया था । मैंने पूछा क्या आवाज है? अश्विनी बाबू, आप यहाँ नीचे इस समय क्या कर रहे हैं? अश्विनी घबरा गए और बडबडाए नहीं कुछ नहीं । मैं तो मुझे बीडी चाहिए थी और बडबडाते हुए ऊपर सीढी चढ गए । हम जब बारी बारी से एक दूसरे को देखा । हम सभी में बुजुर्ग अश्विनी बाबू के लिए काफी सम्मान था किंतु में नीचे आकर चुपचाप हमारी बातें सुन रहे थे । हम लोग जब रात के खाने पर बैठे तो पता चला कि अश्विनी बाबू पहले ही खा चुके हैं । खाने के बाद मैंने रोज की तरह अपना चरोडी लगाया और अपने कमरे में जाने के लिए उठ गया । कमरे में मैंने देखा अतुल जमीन पर केवल तकिया लगाए लेता है । मुझे कुछ आश्चर्य हुआ क्योंकि अभी इतनी गर्मी नहीं बडी थी कि फर्श पर सोया जाए । कमरे में अंदर का था और अतुल भी चुपचाप लेता था । मुझे लगा वहाँ ठक्कर हो गया है । लाइट जलाने से अतुल जाग जाएगा । इसलिए पढना लिखना तो हो नहीं सकता । उस की कमी को मैं कमरे में चलकर ही पूरी करना चाहता था । इतने में मुझे अश्विनी बाबू का ख्याल आया । मुझे लगा मुझे जाकर देखना चाहिए । हो सकता है उन की तबियत ठीक नहीं हूँ । उनका कमरा मेरे कमरे से दो कमरे छोडकर था । कमरा खुला हुआ था और मेरे आवाज देने पर कोई उत्तर नहीं मिला तो उत्सुकता वर्ष मैं कमरे में गुजार । लाइट का स्विच दरवाजे के पीछे था । मैंने लाइट जलाकर देखा । कमरा खाली है । मैं नहीं । खिडकी के बाहर झांककर देखा तो कुछ भी नहीं दिखाई दिया तो वास्तव में वेदनी रात में गए तो गए कहा एकाएक याद आया । हो सकता है वे नीचे डॉक्टर से दवा लेने गए हो । यह सोचकर मैं तेजी से नीचे गया । डॉक्टर का दरवाजा अंदर से बंद था, वेस्ट हो गए थे । मैं दरवाजे के बाहर कुछ मिनट असमंजस में खडा रहा । मैं वापस जा ही रहा था कि मुझे कमरे के भीतर कुछ आवाजें सुनाई दी । अश्विनी बाबू ऊंची आवाज में कुछ कह रहे थे । पहले तो मुझे लगा मैं उनकी बातें सुन लूँ । फिर अपने पर नियंत्रण करके सोचा कि अश्विनी बाबू शायद आपने बीमारी डॉक्टर को बता रहे हैं । मुझे नहीं सुनना चाहिए और मैं चुपचाप सीढी चढकर अपने कमरे में आ गया । देखा अतुल क्योंकि तियों वैसे ही फर्ज पर लेता है । मेरे अंदर आते ही उसने गर्दन उठाकर मुझसे पूछा अश्विनी बाबू अपने कमरे में नहीं है ना । मैं उसकी बात से चौक गया नहीं पर क्या तुम सोई नहीं हो? हाँ अश्विनी बाबू नीचे डॉक्टर के पास है तो मैं कैसे मालूम इसके लिए बस काम करने की जरूरत है । फर्ज पर लेट जाओ और अपने कानो को तक ये से लगा दो क्या तुम पागल हो गए और क्या मैं पागल नहीं हूं हूँ जरा तुम यहाँ कोशिश करो । उत्सुकतावश मैंने भी फर्ज पर लेटकर तकिए पर कान लगाए । कुछ क्षण बाद मुझे दोनों की आवाज साफ साफ सुनाई देने लग गई और तब मुझे अनुकूल बाबू की तेज आवाज सुनाई दी । वे कह रहे थे, लगता है आप उत्सुकता में ज्यादा व्याकुल हो गए हैं । यहाँ कुछ नहीं । यहाँ केवल आपके मस्तिष्क काम पर हमें गहरी नींद में ऐसा अक्सर हो जाता है । मैं आपको दवा दे रहा हूँ, उसे खाकर सोने चले जाएँ । सुबह उठ कर भी यदि आपको ऐसा कुछ लगे तो आप चाहे जो कर लीजिएगा । अनुकूल बाबू का उत्तर जरा अस्पष्ट था । नीचे से कुर्सी सरकार ने की आवाजों से लगा कि दोनों उठ गए हैं । मैं यह कहते हुए फर्ज है उड गया । मैं तो भूल ही गया था कि डॉक्टर का कमरा हमारे कमरे के ठीक नीचे हैं । लेकिन आप क्या सोचते हैं? मामला क्या है? अश्विनी बाबू को हुआ क्या है? तुम्हें जम्हाई लेते हुए कहा कौन जाने बहुत रात हो गई । चलो होते हैं संदेह को मिटाने के लिए मैंने पूछ लिया आप फर्ज पर क्यों लेते थे? अतुल बोला दिन भर सडकों को नापते नापते मैं बहुत थक गया था और मुझे फर्स्ट ठंडा लगा इसलिए मैं लेट गया । लेकिन आपके आने से पहले इनकी आवाज एक कान में पडने लगी और मैं जाग गया । मुझे अश्विनी बाबू के सीढियों पर चढने की पदचाप सुनाई दी । वो अपने कमरे में उसे और दरवाजा बंद की आवाज हुई । मैंने अपनी घडी देखी । ग्यारह बज रहे थे । अतुल भी हो चुका था और मैच में सब शांत हो गया था । मैं लेते हुए अश्विनी बाबू के बारे में सोचता रहा और कुछ देर बाद हो गया । सुबह होते ही अतुल ने मुझे जगाया । सात बजे थे ये भाई उठो यहाँ कुछ गोलमाल है । क्यों? क्या हुआ है? अश्विनी बाबू कमरा नहीं खोल रहे हैं । वे आवाज देने पर उत्तर भी नहीं दे रहे हैं । क्या हुआ है उन्हें कोई नहीं जानता । आओ चलकर देखें और तेजी से वहाँ कमरे से निकल गया । मैं उसके पीछे पीछे गया तो सभी अश्विनी बाबू के कमरे के सामने एकत्र थे ।

Ep 1: सत्यान्वेषी (दि इनक्विजिटर) - Part 2

जोर जोर की आवाजों में तरह तरह के अनुमान लगाए जा रहे थे और दरवाजा पीटा जा रहा था । अनुकूल बाबू भी नीचे से आ गए थे । सभी लोग बहुत उत्सुक दिखाई दे रहे थे क्योंकि अश्विनी बाबू को इतनी देर तक सोने की आदत नहीं थी और यदि सोच ही रहे थे तो क्या दरवाजे को इतना बढ बनाने पर भी उनकी नींद नहीं खुली थी? अतुल ने अनुगुल बाबू के पास जाकर कहा, देखिए हम लोग दरवाजा तोड देते हैं । मुझे दाल में कुछ काला दिखाई दे रहा है । अनुकूल बाबू ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा हाँ हाँ और कोई चारा नहीं है । संभव है वे बेहोश हो अन्यथा क्यों नहीं दे रहे हैं । हमें अधिक देर नहीं करनी चाहिए तो रुपया सब मिलकर दरवाजा तोड डाली है । दरवाजा लकडी का था । मोटाई लगभग डेढ इनसे रही होगी और उसमें ये ताला लगा था । लेकिन जब अतुल के साथ साथ कई लोगों ने जोर का धक्का मारा तो ब्रिटिश टाला एक आवाज के साथ दरवाजे के साथ टूटकर गिर गया । दरवाजा गिरते ही जो द्रश्य हमारे सामने आया उसे देखकर भय और दहशत से हमारी सांसे थम गयी । अश्विनी बाबू कमरे के अंदर पीठ के बल लेटे हुए थे । उनका गला एक और से दूसरी ओर तक कटा हुआ था । खून की धार फर्ज पर उनके सिर के नीचे से होते हुए कंधे के नीचे जमकर लाल मखमल के टुकडे जैसे दिखाई दे रही थी तो उनके दाहिने हाथ की उंगलियों के नीचे खून से लतपत रेजर ब्लेड एक दूसरे की तरह हमारी नजरों का मजाक उडा रहा था । हम सब जगह गए जैसे उसी स्थान पर खडे रह गए । उसके बाद अतुल बाबू और अनुकूल बाबू दोनों ने एक साथ कमरे में प्रवेश किया । अनुकूल बाबू ने घृणा मिश्रित चिंता से लाज को देखा और रुखडी आवाज में बढ बढाए । वो बाबा के यहाँ भयानक अश्विनी बाबू ने अपना जीवन अपने आप ही ले लिया । लेकिन अतुल की दृष्टि लाश पर नहीं थी । उसकी नजर कमरे की प्रत्येक वस्तु और कमरे के हर एक कोने पर तेज कतार की तरह घूम रही थी । उसने पहले चार भाई को देखा । सडक पर खुलने वाली खिडकी से झांककर देखा और हम लोगों के पास आकर धीरे से कहा आत्महत्या नहीं हत्या है, एक जघन्य हत्या है । मैं पुलिस को बताने जा रहा हूँ । कृपा या कोई भी किसी चीज को हाथ में लगाए अनुकूल बाबू बोले क्या आप बात कर रहे हैं अतुल बाबू हत्या लेकिन दरवाजा तो अंदर से बंद था और फिर वहाँ देखिए । उन्होंने खून से लथपथ हथियार की और इशारा किया । अतुल ने सिर हिलाते हुए कहा यह जो भी हो लेकिन यह हत्या है । आप सब लोग यही रहे हैं । मैं अभी पुलिस को बुलाकर लाता हूँ । वह तेजी से बाहर चला गया । अनुकूल बाबू हाथों में अपना सिर पकडकर बैठ गए तो भगवान यहाँ सब मेरे ही घर में होना था । पुलिस ने हम सभी से पूछताछ की जिसमें नौकर और महाराज भी शामिल थे । लेकिन अश्विनी बाबू की मृत्यु पर किसी के बयान से यहाँ पता नहीं लग पाया कि उनकी हत्या क्यों हुई है । अश्विनी बाबू एक सीधे साधे सज्जन थे जिनके मैच तथा दफ्तर के अलावा और कोई दोस्त नहीं है । वे प्रत्येक शनिवार को अपने घर जाया करते थे । इस साप्ताहिक क्रम में पिछले दस बारह वर्षों से कभी चूक नहीं हुई थी । पिछले कुछ समय से वे डायबिटीज रोग से ग्रस्त थे । ऐसी कुछ ही बातों का पता चल पाया । डॉक्टर ने अपना बयान दिया । जो कुछ उसने कहा उसने अश्विनी बाबू की मृत्यु को और गूड बना दिया । अश्विनी बाबू मेरे मैच में पिछले बारह वर्षों से रह रहे थे । उनका घर बर्दवान जिले के हरिहरपुर ग्राम है । वे एक मर्केंटाइल फर्म में नौकरी करते थे, जहाँ उनका वेतन एक सौ तीस रुपया था । इतनी कम आए मैं कलकत्ता में सब परिवार रहना संभव नहीं था, इसलिए वे अकेले ही मैच में रहते थे । जहाँ तक मैं जानता हूँ, अश्विनी बाबू एक सीधे साधे और जिम्मेदार से जन थे । वे उधार लेने पर विश्वास नहीं करते थे, इसलिए उन पर कोई कर्ज वगैरा नहीं था । जहाँ तक मैं जानता हूँ, उनमें नशे आदि का कोई अब नहीं था । इस मैच का हर व्यक्ति इस बात की सस्ती कर सकता है । उनके पूरे प्रवास में मैंने उन में कभी कोई संदिग्ध आचरण नहीं पाया । पिछले कुछ महीनों से उन्हें डायबिटीज की शिकायत थी, इसलिए मैं उनका उपचार कर रहा था । लेकिन मैंने कभी उनमें कोई मानसिक विकार का संकेत नहीं पाया । कल पहली बार मैंने उनका व्यवहार कुछ असामान्य पाया । कल सुबह लगभग नौ बज कर पैंतालीस मिनट पर मैं अपने कमरे में बैठा था । जब एक का एक अश्विनी बाबू अंदर आए और बोले, डॉक्टर मैं प्राइवेट में आपसे कुछ विमर्श करना चाहता हूँ । मैंने कुछ आश्चर्य से उन्हें देखा । वे काफी परेशान दिखाई दे रहे थे । मैंने पूछा क्या बात है? उन्होंने चारों तरफ देखा और आहिस्ता से बोले, अभी नहीं । फिर कभी और जल्दबाजी में अपने दफ्तर के लिए निकल गए । शाम को अजीत बाबू, अतुल बाबू और मैं बात कर रहे थे । दब । अजीत बाबू ने पीछे मुडकर देखा कि अश्विनी बाबू दरवाजे के पीछे छुपकर हमारी बातें सुन रहे हैं । जब हमने उन्हें पुकारा तो कुछ बहाना बनाते हुए तेजी से चले गए । हम सभी आश्चर्यचकित देगी । उन्हें क्या हुआ है तो लगभग दस बजे हुए मैंने कमरे में आए । उनके चेहरे से यह स्पष्ट हो रहा था कि उनके दिमाग में कुछ उथल पुथल हो रही है । उन्होंने घुसते ही दरवाजा बंद कर लिया और कुछ देर तक बढाते रहे । पहले तो बोले कि उन्हें भयंकर सपने आ रहे हैं और फिर बोले उन्हें कुछ भयानक रहस्यों का पता लगा है । मैंने उन्हें शांत करने के लिए प्रयास किया किन्तु में उत्तेजना में बोलते गए । आखिरकार मैंने उन्हें सोने की दवा देकर कहा कि आज की रात वैसे खाकर सो जाए । मैं कल सुबह आपकी बातें सुनूंगा । वे दवा लेकर ऊपर अपने कमरे में चले गए । यह अंतिम बार था जब मैंने उन्हें देखा था और फिर सुबह या हो गया । मुझे उनके मानसिक संतुलन के बारे में शक जरूर हुआ था । हिंदू मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि यहाँ क्षणिक व्याकुलता उन्हें अपना ही जीवन लेने पर मजबूर कर देगी । जब अनुकूल ने अपना बयान समाप्त कर दिया, तब इंस्पेक्टर ने पूछा, तो आपका मैं दिया है कि यहाँ आत्महत्या है? अनुकूल बाबू ने उत्तर दिया और क्या हो सकता है? फिर वे अतुल बाबू का कहना है कि यहाँ आत्महत्या नहीं है । यहाँ कुछ और है । इस विषय पर शायद वे मुझसे ज्यादा जानते हैं । वे ही बताएंगे अपने विचार । इंस्पेक्टर ने अतुल बाबू की ओर मुड कर कहा, अतुल बाबू, आप भी आना । आपकी आवाज कोई कारण है, जिसके आधार पर आपकी धारणा है कि यहाँ आत्महत्या नहीं है । जिया कोई भी व्यक्ति अपना गला इतने विभत्स तरीके से नहीं कर सकता । आपने इलाज देखिए, जरा सोचिए यहाँ असंभव है । इंस्पेक्टर कुछ चढ सोचता रहा हूँ । फिर उसने प्रश्न किया, आपको कोई आईडिया है कि हत्यारा कौन हो सकता है? नहीं । क्या हो सकता है की हत्या के पीछे उद्देश्य क्या हो सकता है? अतुल ने खिडकी की तरफ इशारा करते हुए कहा, यह खिडकी ही हत्या का कारण है । इंस्पेक्टर में एक का एक चौकर पूछा । खिडकी हत्या का कारण है आपका मतलब? हत्यारा इस खिडकी से अंदर आया नहीं । हत्यारा तो दरवाजे से ही अंदर घुसा । इंस्पेक्टर ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा चाहे आपको याद नहीं है कि दरवाजा अंदर से बंद था । मुझे याद है तो थोडा मजाकिया अंदाज में इंस्पेक्टर बोला हो गया । अश्विनी बाबू ने हत्या के बाद दरवाजा बंद कर दिया । जी नहीं, हत्यारे ने हत्या के बाद कमरे से बाहर आकर दरवाजा लॉक कर दिया । यह कैसे संभव है? अतुल बाबू मुस्कुराकर बोले, बडा आसान है जरा तसल्ली से सोचिए तो आपको समझ में आ जाएगा । इस सबके बीच अनुकूल बाबू ने दरवाजे को आगे पीछे देखा और बोले, यह सही है, बिल्कुल सही है । दरवाजा आसानी से अंदर और बाहर दोनों और से बंद हो सकता है । हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया । देखिए या इसमें ये लॉक लगा है । अतुल ने कहा दरवाजे में लॉक लग जाता है । यह दिया । बाहर से लॉक लगा दें । दब अंदर से खोले बिना खुल नहीं सकता । इंस्पेक्टर अनुभवी व्यक्ति था । गहन सोच में अपनी थोडी को अगली से ठोकते हुए बोला यहाँ हम उनकी नहीं लेकिन एक बात अभी भी उलझी हुई है । क्या इसका कोई सबूत है? कि अश्विनी बाबू ने राहत को दरवाजा खुला ही छोड दिया था । अतुल बोला, नहीं सच्चाई यह है कि उन्होंने दरवाजा लॉक कर दिया था । इसका सबूत है । मैंने इस बात के सबूत के रूप में कहा यह सही है क्योंकि मैंने दरवाजा बंद करने की आवाज सुनी थी । इंस्पेक्टर बोला तो ठीक है । तब यहाँ मुझे नहीं लगता कि अश्विनी बाबू उठकर अपने हत्यारे के लिए दरवाजा खोलेंगे क्या नहीं? अतुल ने कहा नहीं लेकिन संभव है आपको याद हो कि अश्विनी बाबू पिछले कुछ महीनों से एक बीमारी से ध्वस्त थे । बीमारी तो अब भी कह रहे हैं । अतुल बाबू यह बात तो मेरे दिमाग से निकली गई और फिर बडे इत्मिनान से इंस्पेक्टर उसकी ओर मुड कर बोला मैं देख रहा हूँ आप काफी बुद्धिमान व्यक्ति है । क्यों नहीं पुलिस में भर्ती हो जाते हैं । पुलिस में आप काफी आगे बढ जाएंगे लेकिन मामला भी उलझा पडा है और वो लगता ही जा रहा है यह यह वास्तव में हत्या ही है । तो अब यह स्पष्ट है कि हत्यारा बहुत ही शातिर है । क्या आप लोगों को यहाँ किसी पर संदेह है? उसने सभी को बारी बारी से देखना शुरू कर दिया । हम सभी ने अपनी गर्दन हिलाकर इंकार कर दिया । अनुकूल बाबू ने कहा, देखिए सर आप शायद जानते होंगे । इस इलाके में आए दिन हत्या होना बडी बात नहीं है । अभी परसों ही एक हत्या इस घर के ठीक सामने हुई थी । मेरा मानना है कि यहाँ सारी हत्याए एक दूसरे से जुडी है । यदि एक पता लग जाए तो सभी का रहस्य उजागर हो जाएगा और यहाँ तभी हो सकता है जब हम वास्तव में अश्विनी बाबू की मृत्यु को हत्या मानकर चले । इंस्पेक्टर ने कहा, या बात तो सही है लेकिन यदि हम इसके साथ दूसरे हत्याओं को सुलझाना चाहेंगे तो मुझे लगता है यह जांच कभी खत्म ही नहीं होगी । अतुल बोला, यदि आप इस हत्या की तरह में जाना चाहते हैं तो केवल इस खिडकी पर ध्यान केंद्रित कीजिए । थके शब्दों में इंस्पेक्टर ने उत्तर दिया, हमें एक नहीं सभी पहलुओं पर विचार करना होगा तो तू मुझे अब आप लोगों के कमरों की तलाशी लेनी है । सभी ऊपर नीचे के कमरों की पूरी छानबीन की गई किंतु कहीं से हत्या की गुत्थी सुलझाने का कोई सुराग नहीं मिल पाया । अश्विनी बाबू के कमरे की भी जांच हुई किन्तु उसमें भी कुछ साधारण पत्रों के अलावा कुछ नहीं मिला । रेजर की खाली डिबिया पलंग के नीचे पडी मिली । हम सभी लोग जानते थे कि अश्विनी बाबू अपनी दाढी स्वयं बनाते थे और इसलिए इसे उस दिव्या को पहचानने में मुश्किल नहीं हुई । लाज को पहले ही उठा लिया गया था । इसके बाद उनके रूम को बंद करके सील कर दिया गया । अपना काम करके इंस्पेक्टर दोपहर लगभग डेढ बजे चला गया । अश्विनी बाबू के परिवार को तार द्वारा खबर कर दी गई । शाम तक उनका बेटा निकट संबंधियों सहित आ गया । वे सभी इस दुर्घटना से हतप्रभ थे । यह तभी हम लोगों का अश्विनी बाबू से कोई रिश्ता नहीं था । फिर भी हमने से प्रत्येक सदस्य इस घटना से शोक संतप्त था । इसके अतिरिक्त हम लोग भी जान के खतरे से सहमे हुए थे । यदि यहाँ घटना हमारे साथ ही के साथ हो गए है तो हमारे साथ भी हो सकती है । पूरा दिन इसी उधेडबुन में व्यतीत हो गया । राहत में सोने से पहले मैं डॉक्टर के पास गया । उनके चेहरे पर अब भी गंभीरता छाई हुई थी । पूरे दिन की घटनाओं से उनके शांत और स्थिर चेहरे पर क्लांति और चिंता की रेखाएं उभर आई थी । मैं उनके पास बैठ गया हूँ और बोला, मेरे ख्याल से प्रत्येक सदस्य किसी दूसरी जगह जाने के बारे में सोच रहा है । अनुकूल बाबू ने एक हारी मुस्कान के साथ कहा, इन का इसमें क्या दोष है? अजीब बाबू कौन चाहेगा? ऐसी जगह रहना जहाँ ऐसी दुर्घटना होती हो । लेकिन मैं अब तक यही सोच रहा हूँ कि यहाँ वास्तव में हत्या है या नहीं । क्योंकि यहाँ ते बात है कि कोई बाहर का व्यक्ति तो यह कर नहीं सकता । जो कुछ हुआ है उसको देखकर तो यही लगता है क्योंकि हत्यारा प्रथम तल तक पहुंचेगा । कैसे? आप सभी जानते हैं कि मैच का दरवाजा रात को अंदर से बंद कर दिया जाता है । इसलिए बाहर का आदमी अंदर आकर सीरिया नहीं चढ सकता हूँ । फिर अगर मान भी लिया जाए कि हत्यारा असंभव को संभव बनाने में सफल हो भी गया तो उसे अश्विनी बाबू के कमरे में रेजर ब्लेड कैसे मिल गया? क्या ऐसा नहीं लगता है की संभावनाओं को ज्यादा ही महत्व दिया जा रहा है? यहाँ सब साबित करता है कि अपराध में बाहरी व्यक्ति का हाथ नहीं है । ऐसी स्थिति में यहाँ का मैच में रहने वालों को छोडकर और किसका हो सकता है? हम लोगों में से कौन हो सकता है जो अश्विनी बाबू की जान लेना चाहेगा । अलवत्ता अतुल बाबू जरूर नये हैं जिनके बारे में हम लोग ज्यादा जानते नहीं है । मैं चौंक गया और मुंह से निकल गया । अब्दुल अरे नहीं नहीं यह उनकी नहीं भला अब्दुल बाबू क्यों अश्विनी बाबू की जान लेंगे? डॉक्टर ने कहा जहीर तो आपकी प्रतिक्रिया से और भी स्पष्ट हो जाता है कि यहाँ का मैच के किसी व्यक्ति का नहीं हो सकता तो केवल ये की संभावना बचती है कि उन्होंने स्वयं में अपनी जान ले ली हो है ना, लेकिन आत्महत्या का भी तो कोई कारण होना चाहिए । मैं यहाँ सोचता रहा हूँ आपको याद है मैंने कुछ दिन पहले आपसे कहा था कि इस इलाके में कोकेन स्मगलिंग का कोई गुप्त अड्डा है । कोई नहीं जानता है कि उसका मुखिया कौन है । डॉक्टर में आहिस्ता से कहा अब सोचिए की अश्विनी बाबू दे के मुखिया थे । मैंने आश्चर्यमिश्रित उदासी से कहा क्या यह कैसे हो सकता है? डॉक्टर ने उत्तर दिया, दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है । इसके विपरीत इस संदेह में मेरा विश्वास और गहन हो जाता है । यदि मैं अश्विनी बाबू की बातों पर ध्यान देता हूँ, जो कल रहा तो वे मुझसे कर रहे थे । वो अपने से ही घबराये हुए लग रहे थे । जब व्यक्ति खुद ही दहशत में होता है तो अक्सर अपना मानसिक संतुलन खो देता है । यहाँ पता इस सब के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली । जरा सोचने का प्रयास कीजिए यहाँ यहाँ सब कारण का स्पष्टीकरण नहीं करती । मेरा मस्तिष्क इन दलीलों को सुन सुनकर चकरा गया था । इसलिए मैंने कहा मैं नहीं जानता अनुकूल बाबू, मैं इन सब बातों से कुछ भी समझ नहीं पा रहा हूँ । मेरे विचार से आपको अपने संदेह की चर्चा पुलिस से करनी चाहिए । डॉक्टर उठकर बोले मैं कल करूंगा । जब तक मामला सुलझ नहीं जाता, मुझे चाय नहीं मिलेगा । उसके बाद दो तीन दिन गुजर गए । इस दौरान बार बार पुलिस और सीआईडी के विभिन्न अवसरों के आने और बार बार पूछताछ करने से हम लोगों के पहले इसे चल रहे परेशान दिनों ने जीवन है दूबर कर दिया मैं इसका प्रत्येक सदस्य जल्द से जल्द अपने सामान के साथ मैं छोडने के लिए तैयार बैठा था लेकिन पहल करने से डर रहा था । यहाँ सभी के मन में था कि मैच को जल्दी छोडना पुलिस की नजर में शंका पैदा कर सकता था । अब तक यहाँ स्पष्ट होता जा रहा था कि संदेह की सुई मैच के एक व्यक्ति की और झुक रही थी । लेकिन हम लोगों को यह नाज नहीं हो पा रहा था की वहाँ व्यक्ति कौन हो सकता है । कभी कभी सैनिक भय से दिल की धडकने तेज हो जाती थी कि कहीं वहाँ व्यक्ति मैं तो नहीं हूँ । एक दिन सुबह मैं और अतुल डॉक्टर दफ्तर में अखबार पढ रहे थे । अनुकूल बाबू के लिए कुछ दवाएं एक बडे पैकेट में आई थी तो वे उन्हें खोलकर बडे यतन से आपने सेल्स पर लगा रहे थे । पैकेट में अमेरिकन स्टैम्प लगे थे । डॉक्टर कभी देशी दवाओं का प्रयोग नहीं करते थे । जब कभी उन्हें जरूरत होती वे अमेरिका या जर्मनी से मंगाते थे । लगभग हर माँ उनके लिए पानी के जहाज से दवा के पैकेट आते थे । अतुल ने अखबार पढ कर रख दिया और बोला अनुकूल बाबू! आप दवाएं विदेशों से ही क्यों मंगवाते हैं? क्या देशी दवाएं अच्छी नहीं होती? उसने शुगर मिल के की एक बडी बोतल उठाकर दवा निर्माता का नाम पढा मैरीकाॅम फल क्या यह मार्केट में सर्वोत्कृष्ट है? हाँ अच्छा बताया । क्या होमियोपैथी वहाँ कई बीमारी का इलाज करती है? मुझे कुछ संदेह होता है । कैसे पानी की एक बूंद इलाज कर सकती है । डॉक्टर में मुस्कुराते हुए कहा तो क्या मैं समझो कि ये सब लोग जो दवा लेने आते हैं, बीमारी का नाटक करते हैं? अतुल ने उत्तर दिया, संभवतः इलाज प्राकृतिक रूप से होता है किंतु उसका श्रेय दवा को दिया जाता है । विश्वास अपने आप में ही इलाज है । डॉक्टर केवल मुस्कुराकर रहे गए । उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया । कुछ देर बाद उन्होंने प्रश्न किया, अखबार में हमारे इस घर का कहीं नाम आया है । नाम है । मैंने जोर से पढना शुरू किया । श्री अश्विनी चौधरी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या का रहस्य अभी तक पता नहीं लग पाया है । अब सीआईडी ने केस को अपने जिम में ले लिया है । बताया जाता है कि कुछ तथ्यों का पता चला है । अनुमान है कि अपराधी को जल्दी ही पकड लिया जाएगा । मेरी जूती, यहाँ लोग जब तक चाहे उम्मीद की आज लगाए बैठे रहे हैं । डॉक्टर ने मूल कर देखा और बोले तो इंस्पेक्टर साहब, इंस्पेक्टर ने कमरे में प्रवेश किया । पीछे पीछे दो सिपाही थे । वही पुराना इंस्पेक्टर था । बिना किसी बातचीत के । वहाँ सीधे अतुल के पास गया और बोला आपके नाम वारंट है । आपको हमारे साथ पुलिसचौकी चलना होगा तो पाया कोई व्यवधान नहीं डाले हैं । कोई भी प्रयास व्यर्थ होगा । राम नहीं फॅमिली लगाओ । एक सिपाही आगे बढा और उसने अपने काम को बडी दक्षता से पूरा कर दिया । हम सभी भय और आतंक से खडे हो गए । अतुल चिल्लाया क्या है यह सब? इंस्पेक्टर ने कहा यह तो चंद्र मित्र को अश्विनी चौधरी के हत्या के अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है । क्या दोनों पहचान सकते हैं कि अतुलचंद्र मित्र यही सज्जन है । दहशत से त्रस्त हमने उन्होंने अपना सिर हिला दिया । अतुल ने थोडा हस्कर कहा तो आपका संदेह अंतर मेरे ऊपर ही हुआ तो ठीक है । मैं आपके साथ पुलिसथाने चलता हूँ । अजीत घबराना नहीं, मैं निर्दोष हूं । एक पुलिस वैन आकर मैच के दरवाजे पर रुक गई । सिपाही लोगों ने अतुल को ले जाकर वैन में बैठाया और चले गए । डॉक्टर के दहशत से हुए पीले चेहरे से निकला तो वह दम बाबू निकले । कितना अजीब है चेहरा देखकर किसी की प्रकृति का पता लगाना असंभव है । मेरे जैसे शब्द ही हो गए थे । अब्दुल हत्यारा । इतने दिन साथ रहते हुए मेरे अतुल से संबंधों में एक लगाव हो गया था । उसके मृदुल स्वभाव से मैं काफी प्रभावित था और वही अतुल एक हत्यारा मुझे सच में बडा झटका लगा था । अनुकूल बाबू ने अपनी बात आगे बढाते हुए कहा, इसीलिए यहाँ कहा जाता है कि किसी अजनबी को शरण देते समय दो बार सोचना चाहिए । लेकिन कौन कह सकता था की वहाँ व्यक्ति इतना मेरा मन बहुत अशांत हो रहा था । मैं तुरंत कुर्सी से उठकर अपने रूम में गया और जोर से दरवाजा बंद करके लेट गया । मेरा मन नहाने या खाने को नहीं हुआ । अतुल की चीजें दूसरी तरफ रखी हुई थी । उन्हें देखकर मेरी आंखों में आंसू आ गए । यह अहसास था कि वह कितना मेरे नजदीक आ गया था । जाते समय वहाँ बोला था कि वह निर्दोष है । क्या पुलिस से गलती हुई है? मैं उठ कर बैठ गया और अश्विनी बाबू की हत्या की रात से एक एक घटना को विस्तार से सोचने लगा । अतुल फर्ज में लेटकर अश्विनी बाबू और डॉक्टर की बातचीत सुन रहा था । वहाँ यहाँ क्यों कर रहा था? उसका क्या प्रयोजन था? यह सोचते सोचते लगभग ग्यारह बजे मैं हो गया था और मेरी आज सुबह खुली थी । क्या बता इसी अवधि में अतुल ने लेकिन वहाँ अतुल था जो शुरू से ही यह कहता रहा कि यह हत्या है न कि आत्महत्या । यदि हत्या उसी ने की थी तो क्या वहाँ ऐसा कहकर खुद ही अपने गले में फंदा लगता और क्या यह संभव है कि उसने अपने को संदेह से दूर रखने के लिए जानबूझकर या कहाँ हो और पुलिस यहाँ सोचे कि क्योंकि उसने खुद ही हत्या के बाद पर जोर दिया है इसलिए हत्यारा वहाँ नहीं हो सकता । मैं अपने बिस्तर पर करवटें बदल बदलकर अपने मस्तिष्क को हर तरह से दौडाता रहा । उठकर तेज कदमों से इधर उधर चलकर विचारों में मग्न रहा । अब दोपहर हो गयी । घडी ने तीन बजाये मुझे विचार सूझा क्यों ना मैं किसी वकील से राय लूँ । मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाए? नहीं मैं किसी वकील को जानता था । जो भी हो मैंने सोचा कि वकील को ढूंढना उतरा मुश्किल नहीं है । मैं कपडे बदलने लगा । इतने में दरवाजे पर आहट सुनाई दी । कोई बुला रहा था । मैंने दरवाजा खोला तो देखा अतुल खडा है । अब्दुल दोनों मैंने खुशी से उसे बाहों में भर लिया । सारी दुविधाएं की वहाँ अपराधी है या नहीं सब मेरे दिमाग से हट गई । जैसे कभी आई ना हूँ । उसके बाल उल जय है और चेहरे पर थकान थी । वह मुस्कुराकर बोला हाँ जी तो मैं हूँ अतुल । उन्होंने मुझे बडा हैरान किया । बडी मुश्किल से मुझे एक सज्जन मिले जिन्होंने मेरीबेल कराई । नेता आज मुझे जेल जाना पडता । तुम गए जा रहे के लिए निकल रहे थे जरा संकू से मैं बोला तो वकील के पास अतुल ने मेरे हाथों को प्यार से दवा कर कहा मेरे लिए यदि ऐसा है तो अब आवश्यकता नहीं है । जो भी हो इसके लिए धन्यवाद । मुझे फिलहाल स्थाई बेल मिल गई है । हम लोग वापस कमरे में आकर बैठ गए । अपनी कमीज उतारते हुए अतुल बोला वो मेरा सिर चकरा रहा है । मैंने दिनभर से कुछ नहीं खाया है । लगता है तुम ने भी नहीं खाया है तो चलो जल्दी से नहा लें और चल कर खाना खाएँ । मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं । मैं अपने संदेह को समाप्त करना चाहता था इसलिए मुंह से निकल गया । अतुल तुमने किया तुमने क्या अश्विनी बाबू की हत्या की है? नहीं । अतुल फॅार बोला

Ep 1: सत्यान्वेषी (दि इनक्विजिटर) - Part 3

यहाँ बहुत हम बाद में करेंगे । इस समय हमें जरूरी है खाना । मुझे चक्कर आ रहे हैं लेकिन इस समय नहीं आने से अधिक और कुछ जरूरी नहीं है । डॉक्टर कमरे में आ गए । अतुल ने उन्हें देख कर कहा, अनुकूल बाबू । कहावत के अनुसार विलक्षण प्रतिभा की तरह मैं लौट आया हूँ । अंग्रेजी में एक कहावत है खोटा सिक्का नहीं चलता । मेरी स्थिति बिल्कुल वैसे ही है । पुलिस ने भी बेरंग वापस कर दिया । गंभीर मुखमुद्रा में डॉक्टर ने कहा अतुल बाबू हो या जानकर खुशी हुई कि आप वहाँ पर लॉर्ड आए हैं । शायद पुलिस ने भी आपको निर्दोष पाया हो और छोड दिया हूँ । लेकिन आप अब यहाँ और नहीं । मैं समझता हूँ आप समझ गए होंगे । मेरा मंतव्य क्या है? यहाँ पूरे मैच का सवाल है । सभी चाहते हैं जाना देखिए, मुझे अन्यथा न लीजिए । मुझे आप के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से कुछ नहीं हैं । पर अतुल ने तुरंत जवाब दिया वो मैं समझ गया । निश्चित रूप से । मुझ पर तो अपराधी का बिल्ला लग चुका है । मुझे सडक लेकर आपके मुसीबत में पढना चाहेंगे । क्या पता पुलिस आपके विरुद्ध भी अपराध उकसाने या मदद करने का चार्ज लगा सकती है? कैसे कहा जाए तो क्या आप चाहते हैं कि मैं आज ही मैं छोड दूँ । डॉक्टर कुछ देर तो चुप रहा फिर अनिच्छा से बोला भी है । आज रात रहे जाइए तो कल सवेरे अतुल बोला जरूर मैं कल आपको कष्ट नहीं दूंगा । कल मैं अपनी जगह तलाश कर लूंगा । जहाँ भी हो कुछ ना मिला तो अंततः पडोस में उडिया होटल तो मिल ही जाएगा और वहाँ खर्च दिया अनुकूल । बाबू ने पुलिस स्टेशन में हुई बातों को पूछना चाहा जिसके उत्तरमें अतुल दो एक मामूली बताकर नहाने चला गया । डॉक्टर ने मुझसे कहा मुझे लग रहा है कि मैंने अतुल बाबू को नाराज कर दिया लेकिन मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं है । मैं पहले ही बदनाम हो चुका है । यदि मैं उसमें किसी अपराधी को और शरण दू तो सुरक्षा की दृष्टि से क्या सही होगा? आप ही कहिए । सच्चाई यह थी की सुरक्षा और अपने को बचाए रखने के ऐतिहात के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता हूँ । मैंने उदासी से सिर्फ लाकर हाँ में हाँ मिलाई और कहा देखिए आप मैच के स्वामी है इसलिए आप जो ठीक समझते हैं वहाँ आपको करना पडेगा । मैंने भी कंधे पर तौलिया डाला और बाथरूम की तरफ बढ गया । डॉक्टर पश्चाताप की मुद्रा में चुपचाप अकेले बैठे रहे गए । मैं और अब्दुल लंच के बाद अपने कमरे में आ रहे थे कि देखा गंजाम बाबू दफ्तर से आ रहे हैं । उन्होंने जैसे ही अतुल को देखा तो चेहरा सफेद हो गया । चिल्लाकर बोले, आतुर बाबू, आप क्या? वाकई में अतुल थोडा मुस्कुराया और बोला हाँ, मैं अतुल ही हूँ । अंजाम हूँ क्या आप दृष्टि दोस्त समझ रहे हैं? गंजाम बोले, लेकिन मैंने सोचा पुलिस ने । उन्होंने दो बार धूप को गले में निकला और तेजी से अपने कमरे में चले गए । अतुल ने खुशी में आगे न जाकर धीरे से कहा, एक बार का अपराधी सादा ही अपराधी रहता है । फॅमिली मुझे देखकर चौकर घबरा गए । उसी शाम अतुल बाबू ने बताया, भाई, हमारे दरवाजे में जो लॉक लगा है, लगता है वहाँ टूट गया है । मैंने भी देखा हमारे दरवाजे का विदेशी ताला काम नहीं कर रहा था । हमने अनुकूल बाबू को बताया । उन्होंने भी आकर देखा और बोले विदेश तालों में यही समस्या है । जब तक ठीक है तब तक बढिया काम करते हैं, पर जब खराब हो जाए तो इंजीनियर को छोड कर कोई बनाए नहीं सकता । हमारे देश जी, दाले इससे कहीं अच्छे हैं । जो भी हो मैं कल सुबह पहला कहाँ से ठीक कराउंगा और वे सीढियों से वापस उतर है । रात को सोने से पहले अतुल ने कहा अजीत सिर दर्द से फटा जा रहा है । क्या तुम कुछ सुलझा सकते हो? मैंने कहा तो माँ अनुकूल बाबू से दवा क्यों नहीं ले लेते हैं? अतुल बोला होम्योपैथी किया उससे कुछ होगा । चलो ठीक है देखा जाए पानी की तूने क्या कुछ कर सकती है? मैंने कहा मैं भी चलता हूँ तुम्हारे साथ मुझे भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है । डॉक्टर अपनी दुकान बंद करने जा रहे थे । हमें देखते ही उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा । अतुल बोला हम लोग आपकी दवा चखने आए हैं । मुझे बडे जोरों का सिर दर्द हो रहा है । क्या आप मदद कर सकते हैं? डॉक्टर में प्रसन्न मुद्रा में कहा वर्ष मैं जरूर आपको राहत दिला सकता हूँ । यहाँ और कुछ नहीं । थोडी सी बदहजमी है जो आपको परेशान कर रही है । सुंदर है बैठे है । मैं अभी एक दोस्त देता हूँ । उन्होंने कुछ ताजी दवाई सेल्स से निकली एक पुडिया बनाकर दी और बोले जाइए इससे खाकर सो चाहिए । आपको याद भी नहीं होगा कि आपको सिर दर्द था भी या नहीं । ऍम बाबू आप भी कुछ मुझे मुझे लग रहे हैं । उत्तेजना के बाद आप भी थकान से पस्त दिखाई देते हैं । क्यों है ना? यही बात तो क्यों ना मैं आपको भी दावा दे दो ताकि सुबह आप भी स्वस्थ और ताजा महसूस करें । हम दवा लेकर वापस जा ही रहे थे कि अतुल ने अनुकूल बाबू से पूछा क्या ब्योमकेश बक्सी नामक किसी व्यक्ति को जानते हैं? थोडा चौकर अनुकूल बाबू बोले, नहीं तो ये कौन है? अब्दुल ने कहा, मैं नहीं जानता । मैंने इन का नाम आज पुलिस स्टेशन में सुना । मुझे लगता है वे इस केस के इंचार्ज हैं । डॉक्टर में दोबारा सिर हिलाकर कहा नहीं, मैंने कभी या नाम नहीं सुना । अपने कमरे में लौटने के बाद मैंने कहा अब्दुल अब तो मुझे सब कुछ बताना होगा क्या? सबकुछ बताऊँ तो मुझे कुछ छुपा रहे हो, लेकिन यह नहीं चलेगा तो मुझे सब कुछ बताना होगा । अतुल कुछ देर शांत रहा । फिर एक नजर दरवाजे पर डालकर बोला अच्छा ठीक है । मैं बताता हूँ आवेदन आकर मेरे बैड पर बैठो । मैं भी सोच रहा था कि समय आ गया है कि तुम्हें भी कुछ बता दिया जाए । मैं उसके बैड पर बैठ गया । अतुल भी दरवाजा बंद करके मेरे पास ही बैठा । मेरे हाथ में दवा की पुडिया थी । मैंने सोचा मैं उसे खा लूँ । फिर उसकी बातें शुरू हूँ । लेकिन जैसे ही मैं दवा खाने को उठा उसने टोक दिया । उसे अभी रहने दो । पहले मेरी गाने सुन लो फिर उसे ले लेना । उसने लाइट बुझा दी और मेरे कान के पास आकर आहिस्ता से अपनी कहानी सुनाने लगा । मैं चुपचाप दहशत में और कभी प्रशंसा में पूरी कहानी सुनता रहा हूँ । करीब पौन घंटे बाद संक्षेप में अपनी कहानी कहकर अतुल बोला आज के लिए इतना पर्याप्त है । शेष कहानी कल तक इंतजार कर सकती है । उसने घडी के चलते डायल में देखा । अभी काफी समय दो बजे से पहले कुछ नहीं होगा । क्यों ना तब तक थोडी नींद लेले । मैं समय उन्हें हर जगह दूंगा । लगभग डेढ बजे मैं ज्यादा हुआ लेता था । मेरे काम इतने सजग है कि मुझे अपने रजाई की धडकन भी साफ सुनाई दे रही थी । मेरी मुट्ठी में वह वस्तु जकडी हुई थी जो अतुल्य मुझे दी थी । अंधकार में सन्नाटे के अलावा कुछ नहीं था । एक का एक मेरे कंधे पर अतुल के हाथ से मैं सजा हो गया । यह संकेत हमने पहले ही तय कर लिया था । मेरी सास धीमी और गहरी हो गई । जैसे सोए हुए व्यक्ति की होती है । मुझे लग रहा था कि वह घडी आ गई है । कब दरवाजा खुला मुझे पता नहीं चला । लेकिन एक का एक अतुल के बैठ पर एक धमाका हुआ और कमरे में रोशनी हो गई । मैं हाथ में लोहे की छड लेकर झपट्टे के साथ खडा हो गया । मैंने देखा कि अतुल हाथ में रिवॉल्वर लिए और दूसरे आज से लाइट के स्विच को दबा खडा है । अतुल के बैठ के पास घुटनों के बल झुके हुए अनुकूल बाबू अतुल को ऐसे घूर रहे थे जैसे एक घायल चेयर अपने शिकारी को घूरता है । अतुल की आवाज गूंजी क्या दोनों भाग्य है? अनुकूल बाबू आप जैसा अनुभवी व्यक्ति अन्ततः एक तकिया में ही घूम पाया । यही ना जरा भी हिलने की कोशिश ना कीजिए और छुरा फेंक दीजिए । जरा भी हिले तो गोली चला दूंगा । अजीत जाकर खिडकी खोल दो । देखो पुलिस बाहर खडे इंतजार कर रही है । जरा देखो ना । डॉक्टर मौका देखकर दरवाजे की ओर झपटा लेकिन अतुल के मजबूत हाथ का एक मुक्का उसके जबडे पर लगते ही वह गिर पडा । डॉक्टर उठ बैठा और बोला भी है मैं भागने की कोशिश नहीं करूंगा लेकिन दया करके यहाँ तो बता दो कि मुझ पर किस बात का अपराध लगेगा । उसकी पेरिस बनाने में बहुत समय लगेगा । डॉक्टर पुलिस ने पूरी चार्जशीट बना ली है । वहाँ समय आने पर आपको मिल जाएगी, लेकिन अभी के लिए । उसी समय पुलिस इंस्पेक्टर कमरे के अंदर आते हुए देखा । उसके पीछे सिपाही अतुल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, अभी के लिए मैं आपको सत्यान्वेषी ब्योमकेश बख्शी पर हमला करने और उनकी हत्या करने की कोशिश करने के लिए पुलिस को सौंप ता हूँ । फॅार ये है अपराधी इंस्पेक्टर में बिना कुछ कहे अनुकूल बाबू के हाथों में हथकडी बहरा दी । डॉक्टर ने खूंखार आंखों से देखा और बोला यह षड्यंत्र है । इस ब्योमकेश बख्शी और पुलिस ने मिलकर मुझे झूठे केस में फंसाया है, लेकिन आप को छोडूंगा नहीं । देश में कानून है और मेरे पास पैसे की भी कभी नहीं है । अतुल ने कहा, जरूर कीजिए । आखिर बाजार में कोकेन का अच्छा दाम मिलता है । विकृत चेहरा बनाकर वहाँ डॉक्टर बोला कोई सबूत है कि मैं को केनगर धंदा करता हूँ जरूर अनुकूल । बाबू शुगर मिल की बोतलों में क्या है डॉक्टर? इस प्रकार चौका जैसे उसके पैरों के नीचे साहब आ गया हूँ । वहाँ बोला कुछ नहीं । उसके आंखों से अतुल के लिए क्रोध और चिंगारियां निकलती रही । यहाँ अनुकूल बाबू की छवि नहीं थी । स्वच्छ जनता के जाने में एक का एक एक खुंखार हत्यारा निकल आया था । यह सोच कर के पिछले कुछ महीने मैंने इस व्यक्ति के साथ कराते हैं । मेरे रोंगटे खडे हो गए । अतुल ने पूछा डॉक्टर अब यहाँ बताया कि कल रात आपने हमें क्या दवा दी थी? क्या वहाँ वो रुपया का छोडने था? चलिए आप नहीं बताएंगे । मुझे कोई फर्क नहीं पडता । केमिकल जांच हमें सब कुछ बता देगी । उसने जरूर जलाया और बिस्तर पर सहारा लगा कर बैठ गया और बोला इंस्पेक्टर आप कृपया मेरा बयान ले लें । एफआईआर बनने के बाद डॉक्टर के रूम की तलाशी हुई, जिसमें कोकेन से भरी दो बडी बोतल पाई गई । डॉक्टर चुप बना रहा हूँ । लगभग सुबह होने वाली थी जब डॉक्टर तथा उसके माल के साथ पुलिस ने प्रस्थान किया । अतुल बोला, यह जगह तमाम आप और उठा पटक से भरी बडी है । होना तो मेरे घर चलकर एक कप चाय पी लो । हम लोग हैरिसन रोड स्थित तीन मंजिली इमारत के सामने उतरे । घर के बाहर गेट पर बीटल की नेम प्लेट पर लिखा था ब्योमकेश बख्शी, सत्यान्वेषी फॅार ब्योमकेश जरूरत तकल्लुफ से बोला आपका स्वागत है । कृपया मेरे घर में प्रवेश करके मुझे आदन प्रदान करें । मैंने पूछा यहाँ सत्यान्वेषी इनकी विजिटर । यह मामला क्या है? यहाँ मेरी पहचान है । मैं जासूस शब्द पसंद नहीं करता हूँ । जांच पर्यवेक्षक शब्द तो उससे भी व्यर्थ है । इसलिए मैं अपने आपको सत्यान्वेषी अर्थात सच की खोज करने वाला कहता हूँ । क्या बात है आपको पसंद नहीं । ब्योमकेश इमारत की पूरी दूसरी मंजिल पर रहता था । कुल मिलाकर चार से पांच विशाल कमरे थे जिन्हें पूरी रूचि के साथ सजाया गया था । मैंने पूछा क्या तो माँ अकेले ही रहते हो । हाँ केवल मेरा सेवा पूरी राम साथ रहता है । मैंने निश्वास छोडकर कहा बहुत ही अच्छी जगह है । कब से रहते आए हो । लगभग एक वर्ष हो गया । थोडे समय के लिए नहीं था जब मैं तुम्हारे मैच में रुका हुआ था । इसी बीच बूटीराम ने इस दो जलाकर चाय बना रही थी वो । उनके इसने गरमा गर्म चाय की चुस्की लेकर कहा, मैं समझता हूँ कुछ दिन जो मैंने भेज बदलकर तुम्हारे साथ बिताएं । वास्तव में काफी रोचक रहे लेकिन अंतिम दिनों में डॉक्टर में पकड लिया था और इसके लिए मैं जिम्मेदार था तो वो कैसे खिडकी के बारे में मैंने ही पहली बार बताया था और वही मेरा भेज दिया । हो गया । अभी नहीं समझे रहे भाई अश्विनी बाबू ने इसी खिडकी से ऐसे नहीं आप कहानी शुरू से बताइए । ब्योमकेश ने चाय की दूसरी चुस्की लेकर कहा कुछ तो मैंने तो मैं कल रात ही बता दिया था अब शेष कहानी सुनो । तुम्हारे इलाके में जो आए दिन हत्याएं हो रही थी उसको लेकर पुलिस कुछ महीनों से काफी परेशान थी । पुलिस पर एक और सरकार का दबाव बढ रहा था । दूसरी और प्रयास अपना अभियान चलाए हुए था और जरा भी मौका मिलने पर सरकार का गला पकड रहा था । ऐसी स्थिति में मैंने पुलिस कमिश्नर से समय मांगा और उन्हें बताया कि मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ और मुझे विश्वास है कि इन हत्याओं के पीछे के रहस्य का पता लगा सकता हूँ । काफी चर्चा का बाद कमिश्नर में आगया प्रदान कर दी कि मैं स्वतंत्र रूप से इन मामलों की छानबीन कर सकता हूँ । शर्त केवल लिया थी की स्वीकृति की जानकारी मेरे और कमिश्नर केबीसी रहेगी और इस प्रकार मैं तुम्हारे मैच में आया । झानबीन के लिए यह जरूरी था की मुझे काम करने के लिए ऐसा स्थान मिले जो वारदात के निकट हो । इसी उद्देश्य से मैंने तुम्हारे मैच का चयन किया । उस समय मुझे यह पता नहीं था कि विपरीत पार्टी का कर्मस्थल भी वही मैच है । शुरू से डॉक्टर स्वभाव से अत्यंत सज्जन पुरुष लगा । मुझे इस बात का भी भान हुआ कि होमियोपैथी जैसा पैसा गैरकानूनी कोकेन स्मगलिंग को रोकने के लिए एक बहुत ही कारगर उपाय है । किन्तु मैं तब तक इस निर्णय पर नहीं पहुंच पाया था कि इस धंधे का रिंगलीडर कौन हो सकता है । मुझे पहली बार डॉक्टर पर संदेह अश्विनी बाबू की मृत्यु से एक दिन पूर्व हुआ । चाहे तो मैं यहाँ तो उस दिन हमारे मैच के सामने एक गरीब बंगाली की लाश मिली थी । जब डॉक्टर में सुना जो व्यक्ति मारा था, उसकी धोती के फैंटे से एक हजार के नोट मिले हैं तो उसके ऊपर शरवर के लिए नोटों के हाथ से निकलने का लालच का बहुत चलता था । उसके बाद से मेरे सारे संदेह उस पर ही केंद्रित हो गए । फिर उस दिन की घटना जब अश्विनी बाबू छुपकर हमारी बातें सुन रहे थे । दरअसल वे हमारी बातें सुनने नहीं आए थे, बल्कि डॉक्टर से बात करने आए थे । जब उन्होंने देखा कि हम लोग बैठे हैं तो कुछ बहाना बनाकर ऊपर अपने कमरे में चले गए । अश्विनी बाबू के व्यवहार से मैं भी कुछ समझ नहीं पा रहा था और कुछ समय तक मैं भी इस उधेडबुन में रहा कि कहीं वे ही तो अपराधी नहीं है । जब मैंने उनकी अनुकूल बाबू से हुई बहुतों को फर्ज पर लेटकर सुना तब भी मेरे मस्तिष्क में कुछ स्पष्ट नहीं हो पा रहा था । लेकिन इतना मुझे आभास हो गया था कि अश्विनी बाबू ने कोई भयंकर घटना देखी है । लेकिन जब उस रात उनकी हत्या हुई तो मेरे मस्तिष्क में सब कुछ स्पष्ट हो गया । क्या बे तुम समझ नहीं पाए? डॉक्टर नितांत गोपनीय तरीके से गैरकानूनी नशीली दवाओं का धंधा करता था और आपने इस रिंगलीडर के काम को रहस्य की अभेद चादर से छिपाए रखता था । जो कोई भी उसके भेद को जान जाता था, उसे फौरन रास्ते से हटा दिया करता था । यही कारण था जिसकी वजह से उस पर अभी तक कोई आज नहीं आ पाई थी । जो व्यक्ति सडक पर मरा पाया गया था, वहाँ अनुकूल बाबू का ही दलाल था या फिर माल सप्लाई करने वाला सरगना था । यहाँ मेरी धारणा है । हो सकता है मैं गलत भी हूँ । उस रात जब व्यक्ति डॉक्टर के पास आया था तब दोनों में तकरार हो गई थी । हो सकता है उस आदमी ने अनुकूल बाबू को ब्लैकमेल करने की कोशिश की हो या उन्हें पुलिस में जाने की धमकी दी हो और जब वह जाने लगा हो तो अनुकूल बाबू ने उसका पीछा किया और मौका मिलते ही उसे समाप्त कर दिया । अश्विनी बाबू ने यहाँ घटना अपनी खिडकी से देखी थी और कुछ मतलब भ्रष्ट हो जाने की स्थिति में इस घटना की जानकारी डॉक्टर को देने गए थे । मैं कह नहीं सकता उनकी मंशा क्या थी । वे अनुकूल बाबू के एहसानों से दबे हुए थे और शायद इसलिए अनुकूल बाबू को इस घटना से सचेत करना चाहते थे । लेकिन उसका परिणाम ठीक इसके विपरीत हुआ । डॉक्टर की नजर में अश्विनी बाबू ने जिंदा रहने का अधिकार खो दिया था । उसी रात जब बाथरूम जाने के लिए उठे थे, उन की नृशंस हत्या कर दी गई । मैं कह नहीं सकता कि शुरू शुरू में डॉक्टर का मुझ पर कोई संदेह था, लेकिन जब मैंने पुलिस को यहाँ बताया कि वह खिडकी है, हत्या का कारण है, तब डॉक्टर समझ गया कि मैं भी कुछ करने जा रहा हूँ और इस प्रकार मैंने भी अपने जीवन समाप्त करने का अधिकार अर्जित कर लिया था । लेकिन मैं उसके लिए अभी तैयार नहीं था । इसलिए मेरे दिन पैनी नजर और सजग पहरेदारी में कटने लगे और तब पुलिस ने एक भूल कर दी । मुझे गिरफ्तार कर लिया । जो भी हो, कमिश्नर में स्वयं आकर मुझे छोडा दिया । मैं मैच में लौट आया और तभी अनुकूल बाबू को विश्वास हो गया है कि मैं इनवेस्टिगेटर हूँ । लेकिन उन्होंने अपने विचारों को छुपा लिया और विशाल रजय दिखाते हुए मुझे उस रात रहने की अनुमति दे दी । इस दरियादिली का एक ही उद्देश्य था कि उसी रात किसी भी समय मुझे मौत के घाट उतार दिया जाए । मैं जितना डॉक्टर के बारे में जानता था उतना शायद कोई नहीं जान पाया था । तब तक डॉक्टर के खिलाफ कोई सबूत नहीं था । उस समय उसके कमरे की यदि तलाशी हो जाती तो कुछ कोकेन की बोतलों के सिवाय कुछ नहीं मिलता जिसके बिना पर उसे जेल हो जाती है और अदालत में कानून की निगाह में यह साबित नहीं किया जा सकता था कि वहाँ एक जघन्य हत्यारा है । इसलिए मुझे उसे ट्रैक करना जरूरी था । दरवाजे के ताले में एक नाखून फसा, अगर मैं नहीं उसे जाम किया था । जब डॉक्टर ने सुना तो मन ही मन प्रसन्न हो गया कि हमारा दरवाजा रात में खुला ही रहेगा । और अंत में जब हमने उससे दवा मांगी तो उसे अपने भाग्य पर यकीन ही नहीं हुआ । उसने मोरदिया की डोज दी और समझ लिया कि हम उसे खाकर उसके आने तक बेहोश हो जाएंगे और वहां बडी आसानी से हमें हमेशा के लिए नींद के आगोश में सुला देगा और इस प्रकार हुआ खुद मेरे जाल में फंस गया और क्या मैंने कहा मुझे जाना चाहिए । तुम तो फिलहाल तो जोर जाना नहीं चाहो गए नहीं पर तुम क्या मैं जा रहे हो? हाँ क्यों? क्या मतलब है? क्या होगा रे भाई, क्या मुझे वापस नहीं आना है? मैं सोच रहा था कि तुम्हें भी अंत मैं तो छोड नहीं पडेगा । तो क्यों ना यहाँ आकर मेरे साथ ही रहो । यह भी तो अच्छी जगह है । कुछ लडकी शांति के बाद मैं हिस्सा से बोला क्या मेरा एहसान उतारना चाहते हो? ब्योमकेश ने अपनी बात है मेरे कंधों पर रख दी और कहने लगा आ रहे नहीं भाई, ऐसा कुछ नहीं है । मैं सोचने लगा हूँ कि तुम नहीं रहोगे तो तुम्हारी कमी महसूस होगी । मैं कुछ सप्ताह में तुम्हारे साथ रहने का आदी हो गया हूँ । क्या वाकई ऐसी बात है? इससे ज्यादा नहीं? ऐसी बात है तो यही रहूँ, मैं अपना सामान लेकर आता हूँ । मुस्कुराकर ब्योमकेश ने कहा मेरा सामान भी लाना ना भूलना ।

Ep 2: ग्रामोफोन पिन का रहस्य - Part 1

भाग दो ग्रामोफोन तीन का रहस्य ब्योमकेश ने सुबह का अखबार अच्छे से तह करके एक और रख दिया । उसके बाद अपनी कुर्सी पर पीछे सिर्फ टिकाकर खिडकी के बाहर देखने लगा । पढें, बाहर सूरत चमक रहा था । फरवरी की सुबह थी न को हराना । बादल आसमान दूर दूर तक नीला था । हम लोग घर की दूसरी मंजिल में रहते थे । ड्रॉइंग रूम की खिडकी से शहर की आपाधापी और ऊपर खुला आसमान साफ दिखाई देता था । नीचे तरह तरह के ट्रैफिक की आवाजों से पता चलता था की शहर रोजाना के शोरशराबे के लिए जाग रहा है । नीचे हैरिसन रोड का शोरगुल बढकर आकाश तक कुलांचे मारने लग गया था क्योंकि पक्षियों की चहचहाट आसमान में उडने लगी थी । ऊपर दूर तक कबूतरों की कतारें उडती दिखाई दी । लगा जैसे वे सूरज के इर्द गिर्द घेरा बनाना चाह रहे हो । सुबह के आठ बजे थे हम दोनों नाश्ता करके आराम से अखबार के पन्ने उलट रहे थे । ऍम की कोई दिलचस्पी समाचार दिखाई दे जाए । ब्योमकेश नहीं । खिडकी से हटने के बाद कहा तुमने वाजी विज्ञापन देखा, जो कुछ दिनों से बराबर छप रहा है । मैंने उत्तर दिया नहीं, मैं विज्ञापन नहीं पडता । आश्चर्य से देखते हुए ब्योमकेश बोला दोनों विज्ञापन नहीं पढते तो क्या बढते हो जो हर एक व्यक्ति पडता है समाचार दूसरे शब्दों में वह कहानियाँ जैसे मनचूरिया में कोई व्यक्ति है जिसकी उंगली से खून बहता है या फिर ब्राजील में एक महिला के तीन बच्चे हुए यही सब पढते हो यहाँ फायदा यहाँ पढकर क्यों पढा जाए है सब यही तो आज के संदर्भ में असली खबर चाहते हो तो विज्ञापन पढो ब्योमकेश विचित्र व्यक्ति था, यह जल्दी ही पता लग जाएगा । ऊपर से उसे देख कर उसके चेहरे या बातचीत से कोई यह कहा नहीं सकेगा की उसमें अनेक विशेष होगा, समावेश है । लेकिन यदि उसे ताना मारो या उसे तर्क में उद्वेलित कर दो तो उसका यह वास्तविक रूप सामने आ जाता है । लेकिन आमतौर पर वह एक गंभीर और कम बोलने वाला व्यक्ति है । लेकिन जब कभी उसकी खिल्ली उडाकर उसका मजाक बनाया जाता है तो उसकी जन्मजात प्रखर बुद्धि सभी संभावनाओं और अवरोधों को तोडकर उसकी जुबान पर खेलने लग जाती है तो उसका वार्तालाप सुनने लायक हो जाता है । मैं यही लोग संबंध नहीं कर पाया और सोचा कि क्यों ना उसे एक बार उद्वेलित करके देखा जाए । मैंने कहा दो या बात है । इसका मतलब यह हुआ कि अखबार वाले सब बदमाश लोग हैं जो अखबार के पन्नों को विज्ञापनों से भरने की जगह फिजूल की खबरें छापकर जगह बढ देते हैं । ब्योमकेश की आंखों में चमक दिखाई देने लगी । वहाँ बोला कसूर उनका नहीं है क्योंकि वे जानते हैं कि यदि वे तुम्हारे जैसे व्यक्तियों के मनोरंजन के लिए ये फिजूल की कहानियां न छापे हैं तो उनका अखबार नहीं दिखेगा । लेकिन वास्तव में चटपटी खबर व्यक्तिगत कालमों में मिलती है यदि तुम सभी प्रकार की महत्वपूर्ण खबरें चाहते हो जैसे कि तुम्हारे इर्द गिर्द क्या हो रहा है? दिन दहाडे कौन किसे लूटने की साजिश कर रहा है । इस मगलिंग जैसे गैर कानूनी काम को बढाने के लिए क्या नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं । तो तो मैं व्यक्तिगत कॉलम के विज्ञापन पढना चाहिए । राइटर्स ये सब खबरें नहीं बेचता । मैंने हस्कर जवाब दिया अगर ऐसा है तो आज इस है केवल विज्ञापन ही पढा करूंगा । पर तुम ने यह नहीं बताया कि आज तो मैं कौन सा विज्ञापन विचित्र लगा क्योंकि इसने अखबार मेरी तरफ देखते हुए कहा, पर लो मैंने निशान लगा दिया है । मैंने पन्नों को पलट कर देखा । एक पेज पर लाल पेंसिल से तीन लाइन की लाइनों पर निशान लगा था । यदि लाल निशान नहीं होता तो शायद साधारण दृष्टि में वहाँ दिखाई बिना देता । विज्ञापन इस प्रकार था शरीर में काटा यदि शरीर से काटा निकलवाना चाहते हैं तो कृपया शनिवार साढे पांच बजे वाइॅन् के दक्षिण पश्चिमी कोने पर लगे बिजली के खंबे से कंधो को टिकाई खडे रहे हैं । मैंने उस विज्ञापन को कई बार पढा और जब मुझे उसका कोई सिर पर नहीं मिला तो मैंने पूछा वहाँ के कहना क्या चाहता है? उस जो हो रहा है कि लैंपपोस्ट से कंधा दिखाने पर क्या जादू से शरीर से काटा निकल जाएगा? उस विज्ञापन का अर्थ क्या है और क्या है यह शरीर का काटा? ब्योमकेश ने उत्तर दिया, मैं भी तो यही समझ नहीं पाया हूँ । अगर तुम पिछले अखबारों पर नजर डालोगे तो पाओगे कि यहाँ विज्ञापन प्रत्येक शुक्रवार बिना किसी नाम के छप रहा है । लेकिन इस खबर में संदेश क्या है? आम तौर पर किसी विज्ञापन को छपवाने का कोई उद्देश्य होता है? इस विज्ञापन से तो कुछ पता नहीं चलता । ब्योमकेश बोला, पहली नजर में तो यही लगता है कि इसमें कोई संदेश नहीं है, पर कुछ भी नहीं है । यह कैसे मान लिया जाए । आखिर कोई व्यक्ति अपनी मेहनत की कमाई फिजूल के विज्ञापन पर क्यों खर्च करेगा? यदि ध्यान से पढा जाए तो पहला संदेश बिल्कुल स्पष्ट है और हो गया है । विज्ञापनकर्ता बताना नहीं चाहता हूँ कि वहाँ कौन है । विज्ञापन में कहीं कोई नाम नहीं है । अक्सर विज्ञापन ऐसे चलते हैं जिनके विज्ञापनकर्ता का नाम पता नहीं होता । पर यह सब जानकारी अखबार के दफ्तर में रहती है । अखबार अपनी ओर से एक बॉक्स नंबर छापता है । इसमें यह भी नहीं है तुम जानते होंगे कि जब कोई विज्ञापन छपवाता है तो उसका उद्देश्य यहाँ होता है कि वह खुद मौजूद रहकर लेन देन पर कोई सौदेबाजी करें । यह भी वही करना चाहता है, पर सौदेबाजी के लिए सामने नहीं आना चाहता हूँ । मैं ठीक ठीक समझ नहीं पाया । ठीक है मैं समझाता हूँ, ध्यान से सुनो । विज्ञापन देने वाला व्यक्ति इस विज्ञापन के माध्यम से लोगों से यह कहना चाहता है की है भाई सुनो, यदि तुम्हें से कोई अपने शरीर का काटा निकाल देना चाहता हूँ तो हम उस जगह इतने बजे मिलो और इस मुद्रा में खडे हो ताकि मैं तुम्हें पहचान सकूँ । अभी हम इसकी चर्चा न करें कि आखिरकार यह शरीर में काटा है । क्या चीज इस समय हम इतना ही सोच ले कि हम यदि उस काटे को निकाल देखना चाहते हैं तो हमें क्या करना होगा? उस जगह उतने बजे वहाँ जाए और लैंपपोस्ट से कंधा टिकाकर खडे हो जाए । मान लो तुम उसी समय ज्यादा इंतजार करते हो तो क्या होगा? क्या होगा? मुझे यहाँ बताने की जरूरत नहीं है कि शनिवार की शाम को उस स्थान पर कितनी भी हो जाती है । वाइॅन् लो एक तरफ है । उसके दूसरी तरफ न्यूमार्केट है और चारों तरफ अनेक सिनेमा हॉल है । तुम वहाँ निर्धारित समय से लेकर आधा घंटे तक ऍम पोस्ट देखकर खडे रहते हो तो खम्बे के आगे पीछे चलने वाली भीड के धक्के तो मैं खाने पडेंगे लेकिन इतने इंतजार के बाद भी जिस काम के लिए तुम वहाँ खडे हो उसका कोई अता पता तक नहीं और जादू से तो शरीर का काटा निकल नहीं सकता । अंत में तुम निराश होकर सोचने लगते हो की किसी ने तुम्हें क्या मूर्ति बनाया है? तब एक आए तो मैं अपनी पॉकेट में एक रुक का मिलता है जो भीड में से किसी ने बडी सफाई से तुम्हारी पॉकेट में डाल दिया है और फेल फिर क्या बीमार और दवा लेने वाला आपस में मिलते नहीं फिर भी इलाज का ना उस काम मिल जाता है । तुम्हारे और विज्ञापन दाता के बीच संपर्क कायम हो जाता है लेकिन तुम्हें नहीं पता लगता है कि वहाँ कौन है और देखने में कैसा लगता है । मैं कुछ देर उसकी बातों पर ध्यान देता रहा और बोला मान लो मैं तुम्हारे वर्णन को सही मान भी लूँ तो भी क्या साबित होता है । इससे सिर्फ यहाँ की शरीर में कांटे का सरगना हर कीमत पर अपनी पहचान को छुपाए रखना चाहता है और जो व्यक्ति अपनी पहचान उजागर करने में हिचकिचाता हो तो जाहिर है कि वहाँ कोई सीधा साधा व्यक्ति हरगिज नहीं है । मैंने अपना सिर हिलाकर कहा यहाँ तुम्हारा केवल अनुमान है इसका कोई सबूत नहीं की । जो तुम कह रहे हो वह सही हो । ब्योमकेश उठ खडा हुआ और फर्ज पर चहलकदमी करते हुए बोला सुनो सही अनुमान सबसे बडा सबूत होता है जिसे तुम जांच पर आधारित सबूत कहते हो । उसे तुम यदि बारीकी से अध्ययन करो तो पाओगे कि वह अनुमानों के एक क्रम के अलावा कुछ नहीं है । परिस्थिति पर आधारित प्रमाण बौद्धिक अनुमान नहीं है तो क्या है? फिर भी इसके आधार पर कितने लोगों को आजन्म कैद की सजा हुई है? मैं चुप रहा हूँ । किन्तु रजत से उसके तर्कों को स्वीकार नहीं कर पाया । एक अनुमान को प्रमाण मान लेना आसान नहीं लगा लेकिन फिर क्योंकि इसके दर्शकों को यही झुठला देना भी मुश्किल था इसलिए मैंने निर्णय लिया कि इस समय यही बेहतर होगा की प्रतिक्रिया के रूप में मैं फिलहाल कुछ नहीं हूँ । मैं जानता था कि मेरी चुप्पी ब्योमकेश को उद्वेलित करेगी और जल्द ही वह कोई तर्क प्रस्तुत करेगा जिनको मैं किसी तरह भी स्वीकार नहीं कर पाऊंगा । इसी बीच गोरैया उडकर हमारी खिडकी के दरवाजे पर बैठ गई । उसकी जो सोच में छोटी सी पहनी थी उसने अपनी छोटी चमकती आंखों से देखा । ब्योमकेश चलते चलते एकाएक रुक गया और गौरैया की और इशारा करके उसने पूछा क्या तुम बता सकते हो कि यह चिडिया क्या कहना चाह रही है? चौकर मैं बोला क्या करना चाह रही है मैंने । मैं समझता हूँ कि वहाँ अपना घोषणा बनाने के लिए जगह ढूंढ रही हैं और क्या क्या या निश्चयपूर्वक कह सकते हो? बिना किसी संदेह के हाँ, बिना किसी संदेह के ब्योमकेश दोनों बाजुओं को आपस में बांधकर खडा हो गया और हल्की मुस्कान से बोला तो तुमने ऐसा कैसे सोच लिया? क्या प्रमाण प्रमाण वह तो है उसके मोह में पेड की टहनी उसके मूवमेंट पहनी । क्या निश्चित रूप से यह बताती है कि वह हौसला ही बनाना चाहती है? मैं समझ गया कि मैं ब्योमकेश के तर्कों के जाल में फंस गया हूँ । मैंने कहा नहीं, लेकिन अनुमान अब ऑनलाइन बनाए तो क्यों इतनी देर से मानने से इंकार करते रहे? नहीं नहीं, लेकिन तुम्हारा कहना है कि जो अनुमान गोरैया के बारे में लगाया गया, वहाँ मनुष्य पर लागू होता है । क्यों नहीं यदि तुम टहनी मुंह में दबाकर किसी की दीवार पर बैठ जाओ तो यह साबित हो जाएगा कि तुम घोषणा बनाना चाहते हो? नहीं, इससे तो यह साबित होगा कि मैं बहुत ही ऊंचे दर्जे का उल्लू हूँ । क्या इसके लिए भी कोई सबूत चाहिए? ब्योमकेश हसने लगा, उसमें कहा, दो मुझे किसी तरह नाराज नहीं कर सकते । तो मैं यहाँ मानना ही पडेगा कि भले ही जांच पर आधारित प्रमाण में भूल हो जाए, पर तर्क पर आधारित अनुमान गलत नहीं हो सकता । मैं भी जिद पर अड गया और बोला, मैं विज्ञापन को लेकर तुम्हारे तरह तरह के अनुमानों और अटकलों पर यकीन करने के लिए तैयार नहीं हूँ । ब्योमकेश ने कहा, इससे तो यही साबित होता है कि तुम्हारा दिमाग कितना कमजोर है । जानते हो आस्ता को भी मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत पडती है । खैर तो तुम्हारे जैसे लोगों के लिए जहाज पर आधारित प्रमाणपत्र ही सर्वाधिक उपयोगी मार्ग है । कल है । शनिवार शाम को हमारे पास कोई काम नहीं है । मैं कल दिखा दूंगा कि मेरा अनुमान सही है कि अगर हो गए इतने में सीढियों से किसी के चढने की पदचाप सुनाई दी । ब्योमकेश ने कानों पर जोर दिया और बोला आगंतुक अजनबी मध्य वाले का भारी भरकम या फिर गोल मटोल हाथ में बैठे कौन हो सकता है? जरूर हमी से मिलना चाहता है क्योंकि इस मंजिल में हमारे अलावा और कौन है? वहाँ अपने आप पर ही हस दिया । दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी । ब्योमकेश जोर से बोला भी देना चाहिए । दरवाजा खुला है । एक मध्यवय के भारी भरकम व्यक्ति ने दरवाजा खोलकर प्रवेश किया । उसके हाथ में मलाका बात से बनी बेट थी जिसकी मूड पर चांदी चढी हुई थी । वह बटनों वाला अप्लास्का उनका काला कोट पहने हुए था । नीचे बढिया प्लेन तो वाली फाइन धोती झलक रही थी । वह गोरा चिट्टा क्लीन सेवथा आगे के बाल उड गए थे पर देखने में वहाँ प्रियदर्शी था तीन मंजिल सीढियाँ चढने से अंदर आते ही बोलने में उसे असुविधा हो रही थी । उसने अपनी जेब से रुमाल निकालकर चेहरा पहुंचा ब्योमकेश मेरी ओर इशारा करके आहिस्ता से बढ बढाया । अनुमान अनुमान मुझे ब्योमकेश का ताना चुपचाप सहना पड रहा था क्योंकि उसका अजनबी के बारे में अनुमान सही निकला था । आगंतुक सज्जन तब तक सहज हो चुके थे । उन्होंने प्रश्न किया, आप दोनों में से जासूस ब्योमकेश बाबू कौन है? ब्योमकेश ने पंखा चलाकर कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा तस्वीर रखिए मैं ही ब्योमकेश बख्शी हो, लेकिन मुझे जासूस शब्द से चिढ है । मैं एक सत्यान्वेषी हूँ । सच को खोजने वाला मैं देख रहा हूँ । आप काफी परेशान है । कुछ देर आराम कर लें । फिर आपसे ग्रामोफोन बिन का रहस्य सुनूंगा । वे सज्जन बैठ गए और बडी देर किंकर्तव्यविमूढ होकर ब्योमकेश की तरफ ताकते ही रह गए । आश्चर्य में तो मैं भी था क्योंकि मेरे भेजे में यह घुस नहीं बता रहा था कि व्योमकेश ने एक ही नजर में उन मध्यवय के संभ्रांत साजन को उसको क्या ग्रामोफोन पिन की कहानी से कैसे जोड दिया । मैंने ब्योमकेश के कई अजूबे देखे हैं पर यहाँ तो कोई जादुई कामना में से कम नहीं था । बहुत प्रयास करने के बाद उन सज्जन ने अपने विचारों पर नियंत्रण किया और पूछ लिया आप यह कैसे जान गए? ब्योमकेश ने हस्कर उत्तर दिया केवल अनुमान पहला यहाँ आप मध्यवय है, दूसरा आप संपन्न व्यक्ति है । तीसरा आपको यहाँ समस्या हाल ही में होने लगी और अंत आप मेरे पास सहायता के लिए आए हैं । इसलिए फॅसने वाक्य वहीं छोड दिया और अपने हाथों को हवा में इस प्रकार उडाया जैसे कह रहा हूँ कि इतना सब होने के बाद उनके आने का कारण तो एक बच्चा भी जानने आएगा । यहाँ यह बताना जरूरी है कि इधर कुछ सप्ताहों से शहर में कुछ अजीब घटनाएं घट रही थी । अखबारों में उन घटनाओं को ग्रामोफोन की पिन का रहस्य के शीर्षक से छापना शुरू कर दिया था और उन घटनाओं की विस्तृत जानकारी पहले पेज की हेडलाइन के रूप में छाप रहे थे । इन समाचारों ने कलकत्ता की जनता को उत्सुकता, व्याकुलता और आतंक के मिले जुले प्रभाव से त्रस्त कर दिया था । अखबारों में भयमिश्रित आतंक पैदा करने वाले व्रतांत पढने से पहाड और चाय के अड्डों पर तरह तरह की आशंकाओं और अफवाहों का बाजार गर्म था । भय और आतंक से शायद ही कोई कलकत्ता वासी रात के अंधेरे में घर से बाहर निकलता हूँ । घटना की शुरूआत इस प्रकार हुई करीब डेढ महीने पहले सुकिया स्ट्रीट निवासी जय हरी सान्याल सुबह के समय कार्ड वाली रोड पर चल रहे थे । सडक पार करने के लिए जैसे ही उन्होंने कदम बढाया वे एकाएक ऑन रेमू सडक पर गिर गए । उस समय सडक पर काफी भीड थी । उन्हें सडक से उठाकर एक और लाया गया तो पता चला कि उनकी मृत्यु हो चुकी है । उनकी एक का एक मृत्यु की जब खोजबीन की गई तो देखा गया कि उनके सीने पर खून की बूंद है पर आसपास किसी गांव का कोई निशान नहीं पाया गया । पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में प्राकृतिक मृत्यु घोषित करके लाश को अस्पताल भेज दिया हूँ । बोस टमार्टम में एक विचित्र तथ्य सामने आया जिससे पता चला की मौत ग्रामोफोन के छोटे से पिन से हुई है क्योंकि वह ह्रदय में पाई गई जो गढकर अंदर पहुंची थी । यहाँ पे कैसे रजाई के अंदर पहुंची इस प्रश्न के उत्तर में होशियार विशेषज्ञों ने अपने निर्णय में बताया कि इसे छोटे रिवाल्वर ये उसी प्रकार के यंत्र से सीने के ठीक सामने बिल्कुल पांच से मारा गया है जिससे बिन मृत व्यक्ति की खाल और माँ से होकर सीधा रजय में पहुंची और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई । अखबारों में इस व्रतांत को पढकर काफी शोरगुल हुआ था । इसके बाद मृत व्यक्ति की संक्षिप्त जीवनी भी प्रकाशित हुई और पत्रों में ऐसी अटकलें भी छापी गई कि यहाँ वास्तव में हत्या ही है या कुछ और । अगर हत्या है तो इस को कैसे अंजाम दिया गया लेकिन एक बात जो कोई नहीं बता पाया कि इस हत्या के पीछे उद्देश्य क्या था और हत्यारे को इससे क्या लाभ हुआ । अखबारों में यह भी छापा की पुलिस ने अपनी जांच शुरू कर दी है । चाहे क्या डोसे वह उडने लगा कि यह झगडा पट्टी के सिवाय कुछ नहीं है । उस व्यक्ति को दिल का दौरा पडा था और अखबारों के पास कोई सनसनी के समाचार वही था तो उन्होंने यह कहानी गढकर दिल को तार बना दिया है । लेकिन आठ दिनों के बाद अखबारों ने अपने मुख्य पृष्ठों पर डेढ इंच के बडे बडे टाइप में जो समाचार छपा उसको पढकर कलकत्ता का संभ्रांत तबका भी चौक कर सोचने पर मजबूर हो गया । चाय के अड्डों के धुरंधर भी सन्नाटे में आ गए हुआ हूँ । आशंकाओं और अटकलों का बाजार बारात के पूर्व मुद्दों की भांति तेजी से बढने लगा दे निकाल के तूने लिखा ग्रामोफोन बिन्नी फिर तांडव शुरू किया । अजीब और राज्य में घटनाओं से लोग भयभीत । कलकत्ता की सडके पूर्णतः सुरक्षित कालकेतु के पाठकों को याद होगा कि कुछ दिन पहले श्रीजय हरी सान्याल की सडक पार करते समय एक का एक मृत्यु हो गई थी । जांच से पता चला की एक ग्रामोफोन पेन उनके राॅय में घुसा मिला और डॉक्टर में उस दिन को ही मृत्यु का कारण घोषित किया था । उस समय हमने संदेह उजागर किया था की वहाँ कोई साधारण दुर्घटना नहीं है और उसके पीछे कोई छुपा भयानक सडयंत्र है । हमारा वहाँ संदेह अब पक्का हो गया है । कल ठीक वैसे ही अजीब दुर्घटना घटती है । प्रख्यात व्यवसायिक कैलाशचंद्र मौलिक कल शाम लगभग पांच बजे मैदान के निकट गाडी से जा रहे थे । रेड रोड पर उन्होंने अपनी कार रुकवाई और पैदल चलने के लिए गाडी से बाहर आए । एक का एक उनके मुंह से चीख निकली और वो जमीन पर गिर पडे । उनके ड्राइवर और अन्य लोग उन्हें उठाकर कार्तक लाए लेकिन तब तक उनका प्राणांत हो गया । यह देखकर वहाँ एकत्र सभी लोग घबरा गए लेकिन भाग्य वर्ष जल्दी ही पुलिस आ गई । कैलाश बाबू रेशमी कुर्ता पहने हुए थे और पुलिस को उनके सीने पर खून की बूंद देखी इस भाई से कहीं यहाँ स्वाभाविक मृत्यु न हो । पुलिस ने तुरंत लाश को अस्पताल भेजा । डॉक्टर की रिपोर्ट में कहा गया कि मृतक के रहे में ग्रामोफोन बिन गुस्सा पाया गया और बताया गया की वहाँ बिन नजदीक से उनके सीने में सामने से शूट किया गया था । यहाँ स्पष्ट है कि यह कोई प्रत्याशित अपराध नहीं है और यहाँ की जघन्य हत्यारों का गिरोह शहर में आ गया है । यहाँ कहना मुश्किल है कि ये कौन लोग हैं और कलकत्ता के इन जाने माने नागरिकों को मारने में उनका प्रयोजन क्या हो सकता है । लेकिन जो वास्तव में अनोखा है वहाँ है उनकी हत्या का तरीका । इसके अलावा हथियार और उसका इस्तेमाल भी राजस्थान के पर्दे में छुपा है । इलाज बाबू अत्यंत उदार और मिलनसार सज्जन पुरुष थे । यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि उन जैसे व्यक्ति का कोई अहित चाहता हूँ । मृत्यु के समय उनकी आयु केवल अडतालीस वर्ष थी । कैलाश बाबू विदुर है । उनके बाद उनकी संपत्ति कि स्वामी उनकी बेटी होगी । हम कैलाश बाबू की बेटी और दामाद के लिए गहन सहानुभूति प्रकट करते हैं जो उनकी मृत्यु से शोकाकुल है । पुलिस अपनी जांच पडताल कर रही है । फिलहाल कैलाश बाबू के ड्राइवर को संदेह है के चलते हिरासत में ले लिया गया है । इसके बाद लगभग दो सप्ताह तक अखबारों में काफी उत्तेजना फैली रही । पुलिस जोर शोर से अपराधी की तलाश में व्यस्त रही लेकिन हाथ पल्ले कुछ पडता न देख कर के भी हैरान और परेशान पुलिस खोजबीन में लगी रही । लेकिन अपराधी का कोई सुराग पानी तो दूर वह ग्रामोफोन बिन के गहन रहस्य के बारे में भी कोई प्रकाश नहीं डाल भाई और करीब पंद्रह दिन बाद ग्रामोफोन बिनने अपनी करामात दिखाई । इस बार का शिकार कृष्ण दयाल लाख नाम का एक सूदखोर धनवान था । वहाँ धर्मतल्ला और वेलिंग्टन स्ट्रीट के चौराहे पर सडक पार करते समय सडक पर ही गिर गया और से कभी नहीं उठा । इस बार फिर मीडिया में ऐसा घमासान छिडा जिसने खबरों के परखच्चे उडा दिए । सम्पादकीय लेखों में पुलिस की कार्यक्षमता और व्यर्थता पर तीखे प्रहार और तेज हो गए । कलकत्ता महानगर में आतंक अच्छा गया । नागरिकों में भय और दहशत घर करने लगे । अड्डो में चाय दुकानों, होटलों और ड्राइंग रूमों में इस विषय को छोड कर कोई और विषय ही नहीं रहा ।

Ep 2: ग्रामोफोन पिन का रहस्य - Part 2

कुछ दिन के अंतराल में ऐसे ही दो मौतें और हो गई । सारा शहर दहशत से सकते में आ गया । एक नागरिक यह समझ नहीं पा रहा था की वहाँ हत्यारे से अपने को कैसे सुरक्षित रखें । कहना न होगा कि ब्योमकेश भी गहन रूप से इस राय से पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए था । गलत कार्य करने वालों को पकडना उसका व्यवसाय था और इस क्षेत्र में उसने पर्याप्त नाम भी अर्जित कर लिया था । वहाँ चाहे जितना जासूस शब्द से घृणा करता हूँ पर वहाँ अच्छी तरह से जानता था कि सभी तत्वों और उसके कार्यक्षेत्र को देखते हुए वह प्राइवेट डिटेक्टिव हुई है । इसलिए भी इस जघन्य हत्या कार्ड में उसके मस्तिष्क की समस्त क्षमताओं को हिला दिया था । हम दोनों सभी अपराध के घटनास्थलों पर जाते हैं और प्रत्येक घटनास्थल को सभी कोणों से जांचते । मैं कह नहीं सकता है की ब्योमकेश को इस जांच पडताल से कोई नया सुराग मिला या नहीं और यदि मिला भी हो तो उसने मुझसे इस बारे में कोई चर्चा नहीं की । लेकिन इतना जरूर था कि वहाँ अपने नोटबुक में बडी मुस्तैदी से छोटी छोटी जानकारी को दर्ज करता जा रहा था । संभव अपने मन के भीतर से उसे विश्वास था कि किसी दिन रहस्य की कोई टूटी डोर उसके हाथ लगी जाएगी । इसलिए आज जब टूटी डोर उसके हाथ के करीब आ गई तो मुझे ऐसा हो गया कि शांत चेहरे के बावजूद भीतर से वहाँ कितना उद्वेलित और अशांत है । विसर्जन कहने लगे, मैं आया था, क्योंकि मैंने आप के बारे में सुना था और अब देख रहा हूँ कि वहाँ सब गलत नहीं है । आश्चर्यजनक दक्षता जो आपने अभी दिखाई है, उसे देखकर मुझे लगता है कि आप ही है, जो मुझे बचा सकते हैं । पुलिस कुछ भी नहीं कर पाएगी, इसलिए मैं उसके पास गया ही नहीं । जरा देखिए, तो कम से कम पांच हत्याएं दिनदहाडे उनकी नाक के नीचे हो गई । क्या वे कुछ कर पाए और आज तो मैं भी जाने कैसे बच गया । उनकी आवाज लडखडाकर मध्यम हो गई और उनकी कनपटी पर पसीने की बूंदें चमक आई । ब्योमकेश ने उन्हें सांत्वना देकर शांत करते हुए कहा, मुझ पर विश्वास कीजिए । अच्छा हुआ कि आप पुलिस के बजाय मेरे पास चले आए । अगर कोई ऐसी को खोल सकता है तो यकीनन वहाँ पुलिस नहीं है । कृपा करके शुरू से सारी बात विस्तारपूर्वक बताई है । कोई भी बात छोडिये नहीं, क्योंकि मेरे लिए कोई भी जानकारी व्यर्थ नहीं होती । उन सज्जन ने सहज होकर कहना शुरू किया, मेरा नाम आशुतोष मित्र है । मैं नजदीक ही नए बूट ओला में रहता हूँ । अठारह साल की उम्र से ही मैं अपने व्यवसाय में लगा हुआ हूँ । मुझे कभी समय ही ना मिला कि मैं अपने परिवार या शादी वगैरह के बारे में सोचता हूँ । दूसरे मुझे बच्चों का भी कोई शौक नहीं । इसलिए मैं इन सब झंझटों से दूर ही रहा । मेरे शौक भी कुछ अलग ही है । कुछ चीजें बहुत अधिक पसंद है । कुछ से मुझे सख्त नफरत है और इसलिए मैं अकेला रहना पसंद करता हूँ । समय के साथ उम्र भी बीत गई । मैं अगली जनवरी को पचास वर्ष पूरे कर लूंगा । दो साल पहले मैंने अपने काम से अवकाश ले लिया । मेरे पास मेरी बचत का पैसा लगभग डेढ । एक लाख रुपया बैंक में जमा है, जिसका ब्याज मेरी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है । मुझे रहने के लिए भाडा भी नहीं देना पडता क्योंकि जिस घर में रहता हूँ, वहाँ मेरा है । मुझे केवल संगीत का शौक है । सब कुछ होते हुए मुझे जीवन से कोई शिकायत नहीं है । ब्योमकेश ने प्रश्न किया, लेकिन क्या आप के ऊपर कोई निर्भर भी है । आशुतोष ने अपना सिली लाकर कहा, नहीं, मेरा कोई भी संबंधी नहीं है और इसलिए मेरे ऊपर कोई बोझ नहीं है । एक निकला भांजा जरूर है जो पहले पैसा मांगने आया करता था, लेकिन वहाँ छोकरा, शराबी और जो आ रही है । इसलिए मैंने उसके घर में घुसने पर रोक लगा दी है । ब्योमकेश ने पूछा ये भाग्य आप कहाँ है? आशुतोष बडे संतोष के साथ बोले, आजकल वह जेल में है । उसे मारपीट करने और पुलिस से हाथापाई करने के जुर्म में दो महीने की कैद हुई है । अब जेल में है । अच्छा ठीक है । अब आगे कहिए । जो कह रहे थे, जब से वहाँ बेहुदा विनोद मेरा भांजा जेल गया है, तब से जीवन आराम से कट रहा था । मेरा कोई मित्र नहीं है और मैंने जानबूझ कर कभी किसी का नुकसान नहीं किया है । इसलिए मुझे नहीं लगता कि कोई मेरा दुश्मन भी होगा । लेकिन कल एक का एक मैं जैसे आसमान से गिरा । मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे साथ भी ऐसा हो सकता है । मैंने अखबारों में ग्रामोफोन की पेन के रहस्य के खबरों को पढा जरूर था, लेकिन मुझे उन पर विश्वास नहीं होता था । मुझे लगता था यह सब मनगढंत कहानियां है । लेकिन मैं गलत था । वह कैसे? कल शाम मैं रोजाना की तरह घूमने निकला । जोडासांको के पास एक संगीत संगोष्ठी है जहाँ मैं शाम का समय गुजारता हूँ और रात में नौ बजे के आस पास लौट ता हूँ । आम तौर पर मैं पैदल ही जाता हूँ क्योंकि मेरी उम्र में स्वास्थ्य के लिए यह फायदेमंद है । कल रात को लौटते समय जब मैं हरिसन रोड और ऍम स्ट्रीट चौराहे पर पहुंचा, उस समय वहाँ की घडी सवा नौ बजा रही थी । उस समय भी सडकों पर भीड काफी थी । मैं फुटपाथ पर कुछ समय के लिए रुका रहा । मैं चाहता था कि आने वाली दो राम तो भी निकल जाए । जब ट्रैफिक बिल्कुल साफ हो गया तो मैं सडक पार करने लगा । मैं सडक के बीच में पहुंचा ही था कि एक का एक मैंने अपने सीने पर झटका महसूस किया । जैसे किसी ने मेरे रहते हैं के ऊपर की हड्डियों के पास जहाँ में अपनी ब्रेस्ट पॉकेट में अपनी घडी रखता हूँ, कुछ ठोक दिया है । उसके साथ ही मुझे दर्द हुआ जैसे किसी ने रहने में काटा, घुसा दिया हो । मैं गिरते गिरते बचा । किसी तरह मैंने अपना संतुलन बनाए रखा और सडक पार कर गया । मुझे चक्कर आया और मैं समझ नहीं पाया कि यहाँ हुआ क्या । जब मैंने ब्रेस्ट पॉकेट में अपनी घडी निकालकर देखी तो वहाँ ठप हो गई थी । उसका शीर्षा पूरी तरह टूट गया था और और एक ग्रामोफोन दिन उसमें घुस गया था । आशा बाबू फिर पसीने से तरबतर हो गए । उन्होंने कांपते हाथों से अपनी बहू पर आए पसीने को पहुंचा और अपनी जेब से निकालकर एक डिब्बी दे दी और बोले यह रही हुआ घडी बी ओमकेश ने डिब्बी खोलकर घडी निकली । घडी गनमेटल की बनी थी । ऊपर का शीशा नदारत था । घडी में समय साढे नौ बजे का था और एक ग्रामोफोन का पिन घडी के बीचोंबीच गडा हुआ था । ब्योमकेश ने घडी को बडी बारीकी से कुछ देर देखा फिर उसे डिबिया में रखकर सामने मेज पर रख दिया और बोला, हाँ तो आप अपनी बात जारी रखी है । आशु बाबू बोले भगवान ही जानता है कि उसके बाद मैं कैसे घर पहुंचा । मैं तनाव और परेशानी में सारी रात सो नहीं पाया । यहाँ घडी मेरे लिए वरदान ही समझिए । अन्यथा तो अब तक अस्पताल में पोस्टमॉर्टम की टेबल पर मेरी लाश पडी होती । आशु बाबू के रोंगटे खडे हो गए । एक ही रात में मैंने अपने जीवन के दस वर्ष खो दिए हैं । ब्योमकेश बाबू पूरी रात मैं सोचता रहा हूँ कि मैं क्या करूं, किसके पास जाऊँ, अपने को कैसे बचा हूँ । दिन की पहली किरण के साथ ही मुझे आपका नाम सूझा । मैंने आप की अभूतपूर्व क्षमताओं के बारे में सुना था और इसलिए मैं पहले ही फुर्सत में आपके पास चला आया हूँ । मैं एक बंद टैक्सी में आया हूँ । पैदल चलने की मेरी हिम्मत नहीं हुई क्योंकि कहीं ब्योमकेश उठकर अशुतोष बाबू के पास गया और उनके कंधों पर हाथ रखकर बोला, आप आराम से रहिए । मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आपका अब कोई बाल बांका भी नहीं कर पाएगा । यह सही है कि कल आप बाल बाल बचे हैं, लेकिन आगे से यदि आप मेरी सलाह पर अमल करेंगे तो आपके जीवन को कोई खतरा नहीं रहेगा । आशा बाबू ने ब्योमकेश के हाथों को अपने हाथ में लेते हुए कहा भी उनके इस बाबू कृपा करके मुझे इस दुर्गति से बचा लीजिए । मेरा जीवन बचा लीजिए । मैं आपको एक हजार रुपये का पुरस्कार दूंगा । ब्योमकेश मुस्कुराते हुए वापस अपनी कुर्सी पर बैठकर बोला, यह तो आपकी उदारता है । इस को मिलाकर कुल तीन हजार रुपये होते हैं क्योंकि दो हजार रुपए के इनाम की घोषणा सरकार कर चुकी है है कि नहीं । लेकिन ऐसा बाद में पहले मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दीजिए । कल जब आप पर हमला हुआ उस समय आपने कोई आवाज सुनी थी किस तरह की आवाज, कोई भी जैसे कार के टायर फटने की आवाज आशु बाबू ने निश्चयपूर्वक कहा नहीं । ब्योमकेश ने फिर पूछा कोई और आवाज ये ध्वनि जैसा की मुझे याद आता है । मैंने ऐसा कुछ नहीं सुना । ध्यान से होती है । काफी देर सोचने के बाद आशु ने कहा, मैंने वेद दुनिया सुनी जो अक्सर भीड भरी सडकों पर होती है । जैसे कारो ट्रांप ओ रिक्शों की आवाजें और जहाँ तक मुझे याद आ रहा है । मुझे झटका लगने के समय मैंने साइकल की घंटी की आवाज सुनी थी । कोई और अस्वाभाविक आवाज नहीं । ब्योमकेश कुछ क्षणों तक चुप रहने के बाद बोला, क्या आपके ऐसे दुश्मन है जो चाहते हो कि आप की मृत्यु हो जाए? नहीं । जहाँ तक मेरी जानकारी में है मैं ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता हूँ । आपने शादी नहीं की इसलिए आपके बच्चे तो है नहीं । मैं समझता हूँ आपका भांजा ही आपका बारिश है । आशु बाबू पहले तो दुविधा में हिचकी जाए और बाद में बोले, नहीं क्या आपने आपने वसीयत लिख दी है? हाँ, कौन है आपका बारिश? आशु बाबू संकोच में मुस्कुराए और कुछ क्षण चुप रहने के बाद कुछ रखते हुए बोले, आप मुझसे इसे छोडकर कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं । यहाँ मेरा निजी मामला है, प्राइवेट है और वहाँ अपनी उलझन में हो गए । ब्योमकेश पैनी निगाह से आशु बाबू को देखकर बोला भी है, लेकिन क्या आपका भविष्य का बारिश जो भी हो, आपकी वसीयत के बारे में जानता है । नहीं, यह मेरे और मेरे वकील के बीच पूरी तरह से गोपनीय है । क्या आप अपने वार इससे अक्सर मिलते रहते हैं? आशु बाबू ने दूसरी ओर देख कर कहा, हाँ, आपके भांजे को जेल गए कितने दिन हुए हैं? आशु बाबू ने हिसाब लगाकर बताया, लगभग तीन माह ब्योमकेश बाबू कुछ देर व्यग्रता में बैठा रहा । फिर एक निश्वास छोडकर उठ खडा हुआ । आप अभी घर जाइए । यहाँ घडी और अपना पता मेरे पास छोड चाहिए । यदि मुझे और किसी जानकारी की जरूरत पडेगी तो मैं आपसे संपर्क करूंगा । आशु बाबू एका एक परेशान होते हैं और बोले लेकिन आपने तो मेरे लिए कोई व्यवस्था नहीं की । यदि मुझे फिर आपको केवल इतना ध्यान रखना है की आप अपने घर से बाहर न निकले । आशु बाबू का चेहरा भय से सफेद हो गया । उन्होंने कहा, मैं घर में अकेला रहता हूँ । यदि कोई ब्योमकेश बोला घबराइए नहीं, आप घर में पूर्ण सुरक्षित है । हाँ, यदि आप दरबान चाहते हो तो रख सकते हैं । आशु बाबू बोले, क्या मैं घर से बाहर बिल्कुल नहीं नहीं चल सकता? ब्योमकेश कुछ क्षण सोचता रहा । फिर बोला, यदि आप घर से बाहर निकलना ही चाहते हैं तो केवल फुटपाथ का ही प्रयोग करें । किसी भी स्थिति में सडक का प्रयोग न करें । यदि करते हैं तो मैं आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले पाऊंगा । आज सुबह के चले जाने के बाद ब्योमकेश काफी देर तक थ्योरी चढाकर विचारों में दूबारा । इसमें कोई संदेह नहीं कि फिलहाल उसके मस्तिष्क के लिए उन्हें काफी मसाला मिल गया था । इसलिए मैंने उसे छेडना नहीं चाहा । कोई आधा घंटे बाद उसने मूड अगर देखा और बोला, तुम सोच रहे हो कि मैंने आशु बाबू को घर से निकलने के लिए मना कर दिया और मैं कैसे इस निर्णय पर आया कि वे केवल घर में ही सुरक्षित रहेंगे । मैंने चौकर देखा और मेरे मुंह से निकल गया । हाँ, ब्योमकेश ने कहा ग्रामोफोन पिन केस में यहाँ स्पष्ट है कि सभी हत्याएं सडक पर हुई है । सडक के किनारे भी नहीं बल्कि सडक के बीच में । क्या तुमने सोचा ऐसा क्यों हुआ है? नहीं? क्या कारण है? दो कारण हो सकते हैं । पहला कि सडक पर मारने से इल्जाम से बच जाना आसान हो सकता है । हालांकि यह ज्यादा मुमकिन नहीं लगता । दूसरे हत्या का हथियार भी ऐसा है जिसका प्रयोग केवल सडक पर ही संभव । मैंने उत्सुकता से पूछा किस तरह का हथियार हो सकता है? ब्योमकेश बोला, अगर यही पता लग जाए तो ग्रामोफोन पेन का रहस्य ही नहीं खुल जाए । मेरे मस्तिष्क में एक विचार रह रहकर उठ रहा था । मैंने कहा, क्या कोई व्यक्ति ऐसा रिवॉल्वर रख सकता है जिसमें गोली के स्थान पर ग्रामोफोन बिन का इस्तेमाल हो सके? ब्योमकेश ने मेरी बात की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा आइडिया मार्केट है लेकिन इसमें कुछ संदेह दिखाई दे रहा है । कोई व्यक्ति जो बंदूक और पिस्तौल का इस्तेमाल करना चाहता है, वहाँ क्यों चाहेगा? तर्क के अनुसार वहाँ एकांत ही खोजेगा । दूसरे बंदूक तो छोडो पिस्तौल के शॉट का धमाका भी भीड के कोलाहल में छुप नहीं सकता । फिर गनपाउडर की महक रहे जाती है । वह कहता है ना कि एक धमाका दूसरे को छुपा सकता है । लेकिन मैं कैसे छिपेगी? मैंने कहा संभव है वहाँ एयरगन हूँ । ब्योमकेश जोर से ऐसा वाह क्या बेहतरीन आइडिया है गंदे पर एयर गन लटकाकर हत्या करने जाना । लेकिन क्या यहाँ व्यवहारिक है? नहीं मेरे प्यारे मित्र यहाँ इतना आसान नहीं है । यहां सोचने की बात यहाँ है कि जो भी हथियार होगा वहाँ धमाका करेगा ही । दावत कैसे उस धमाके को छुपाया जा सकता है । मैंने कहा तुम अभी अभी क्या कह रहे थे कि एक धमाका दूसरे को छिपा सकता है । एक झटके से ब्योमकेश खडा हो गया और मुझे बडी बडी आघोषित घुटने लगा और बडबडाने लगा यहाँ सही है । यहाँ बिल्कुल सही है । मैं चौंक उठा, क्या बात है? ब्योमकेश ने सिर हिलाते हुए कहा कुछ नहीं । मैं जितना ग्रामोफोन दिन का रहस्य के बारे में सोचता हूँ उतना ही मुझे लगता है जैसे सारी हत्या एक दूसरे से जुडी हुई है । एक विशेष प्रकार की समानता सभी हत्याओं में दिखाई दे रही है । हालांकि ऊपर से ऐसा कुछ नहीं लगता । वह कैसे? ब्योमकेश ने उंगली पर चेन्नई लगाते हुए कहा शुरू करें तो सभी शिकार मध्यवय के व्यक्ति थे आशु बाबू जो घडी के कारण बच गए । वे भी मध्य आयु के हैं । दूसरे सभी खाते पीते संबंध व्यक्ति है । कुछ दूसरों से अधिक धनी हो सकते हैं । किंतु निर्धन कोई नहीं था । प्रत्येक व्यक्ति की हत्या सडक के बीचोंबीच हुई, सैकडों की भीड में और अंत में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सभी संतानहीन थे । मैंने कहा तो तुम्हारा अनुमान यह ब्योमकेश बोला, मैंने अभी तक कोई अनुमान नहीं लगाया है या सब बहाते । मेरे अनुमान के केवल आधार है तो इन है संभावना कह सकते हो । मैंने कहा लेकिन केवल इन संभावनाओं से हत्यारे को पकडना । अभी ब्लॅक इसने ठोक दिया, हत्यारे नहीं । अजीत, हत्यारा बहुवचन का प्रयोग केवल प्रतिष्ठा जोडने के लिए है । वास्तव में व्यस्त है । अखबार वाले भले ही हल्ला मचा रहे हैं कि इनके पीछे हत्या रहेगा, गिरोह है, लेकिन उस गिरोह में एक ही व्यक्ति है जो इस मानवीय हत्याओं का पोशाक गुरु और हत्यारा है । सभी हत्याओं के पीछे केवल एक ही व्यक्ति है । मैं अपने संदेह को रोक नहीं पाया । धोनी है । सब इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो? क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है? ब्योमकेश ने उत्तर दिया, सबूत तो अनेक हैं, लेकिन फिलहाल एक ही पर्याप्त है । यहाँ यहाँ संभव है कि सभी लोग इतनी अद्भुत दक्षता से ये एक ही जगह पर दागे गए हथियार से मारे जाए । प्रत्येक बार केंद्र है के बीच में ही होता है । रंच मात्र भी न इधर न उधर आशु बाबू का केस ही ले लो । यदि घडी न होती तो वह दिन कहाँ लगता? तो तुम्हारी नजर में कितने लोग हो सकते हैं जो इतनी दक्षता से यह कार्य कर पाएंगे जिनका निशाना इतना अचूक होगा । यहाँ तो उस तरह से हो गया जैसे पानी में लकडी की मछली की छाया को देख कर घूमते पहिए के बीच मछली की आंख में तीर मानना मैं समझता हूँ तुम्हें द्रौपती के स्वयंबर की कथा याद होगी । जरा सोचो यहाँ केवल और जो नहीं कर पाया था । महाभारत काल में भी इतनी अचूक दक्षता आकाश रेयर केवल एक ही व्यक्ति को मिला था । ब्यू उनके जब उठा तो हस रहा था । ड्रॉइंग रूम के बगल वाला कमरा ब्योमकेश का निजी कमरा था जिसमें वहाँ हर समय मुझे भी आने नहीं देता था । वास्तव में यह उसकी लाइब्रेरी, प्रयोगशाला और ड्रेसिंग रूम था । उसने आज बाबू की घडी उठाकर अपने कमरे की ओर जाते हुए कहा, लंच के बाद इस केस पर मस्तिष्क लगाने के लिए पर्याप्त समय होगा । अब समय है नहाने का । ब्योमकेश दोपहर में साढे तीन के आसपास बाहर चला गया । मुझे नहीं मालूम कहाँ और क्यों गया और वापस आया । तब तक अंधेरा हो चुका था । मैं उसके इंतजार में बैठा था । चाहेगा । समय बीता जा रहा था । जैसे ही वहाँ आया, पुत्ती राम नाश्ता ले आया । हम लोगों ने पूर्ण शांति में नाश्ता किया । हम लोगों की शाम को साथ साथ चाय पीने की आदत थी । ब्यू उनके इसमें कुर्सी पर कमाल दिखाते हुए जरूर जलाकर पहली बार मौन दौडा तो मैं आशु बाबू कैसे व्यक्ति लगे? मुझे प्रश्न कुछ अटपटा लगा । मैंने बुझा ऐसा क्यों पूछते हो मैं समझता हूँ ये सज्जन पुरूष काफी सहज और मिलनसार व्यक्ति है । ब्योमकेश ने कहा और उनका नैतिक चरित्र मैंने उत्तर दिया । जिस प्रकार अपने उस शराबी भांजे के बारे में उनकी नफरत देखी, मैं तो कहूंगा कि वे सीधे तथा सच्चे इन्सान है । फिर उनकी उम्र भी हो गई है । उन्होंने विवाह भी नहीं क्या संभव है जवानी में उन्होंने कुछ बिहार बिहार की हरकतें की हो, लेकिन उन सब के लिए उनकी अब व्यवस्था नहीं है । ब्योमकेश हंस पडा । उन की अवस्था ना भी हो तो क्या उन बहुतों ने उन पर कोई रोक लगाई है । जोडासांको के जिस घर में आशु बाबू रोज शाम को संगीत सुनने जाते हैं वहाँ एक स्त्री का घर है दारा । साल यहाँ कहना कि वहाँ उस इस तरी का घर है गलत है क्योंकि आशु बाबू उसका भाडा भरते हैं । उस घर को संगीत, संगोष्ठी, स्कूल कहना भी शायद गलत होगा क्योंकि संगीत संगोष्ठी बनाने के लिए कम से कम दो व्यक्तियों की दरकार होती है । यहाँ तो वे केवल एक ही है ।

Ep 2: ग्रामोफोन पिन का रहस्य - Part 3

क्या बात कर रहे हो तो बुलाओ । काफी रंगीन तबियत हैं । वह और भी है । आशु बाबू जिस तरीके पिछले बारह तेरह वर्षों से देखभाल कर रहे हैं, इसलिए उनकी वफादारी पर शक नहीं किया जा सकता और जाहिर है बदले में उन्हें भी वही वफादारी मिली है, क्योंकि और किसी संगीत का शौकीन को घर में घुसने की इजाजत नहीं है । दरवाजे पर सख्त पहला है, मैं उत्सुकता से भर गया था । तो क्या वास्तव में तुम संगीत प्रेमी बनकर उस घर में नहीं थे? क्या देखता है उस स्त्री को? कैसी थी देखने में ब्योमकेश बोला मैं एक झलक ही देख पाया, लेकिन मैं नहीं चाहता है कि मैं उसके रूप का वर्णन करके तो महारे जैसे तुम्हारे दोस्त की अनुमोल रातों की नींदे उडा दूँ । ये कि शब्द कहूंगा ला जवाब उसकी आयु संभव सत्ताईस अट्ठाईस बरस की होगी । जो भी हो, मैं आशु बाबू की पसंद का कायल हो गया हूँ । मैंने हस्कर कहा, मुझे यह लग रहा था कि तुम मैं एकाएक आशु बाबू के निजी जीवन में इतनी दिलचस्पी की हो गई है । ब्योमकेश बोला, नियंत्रित उत्सुकता मेरी कमियों में से एक है । दूसरे आशु बाबू का बारिश मुझे परेशान किए हुए था तो ये है आशु बाबू की बारिश यहाँ मेरा अनुमान है । मैंने वहाँ एक और व्यक्ति को देखा जिसकी आयु पैंतीस के लगभग होगी । देखने में काफी तडक भडक वाला लगा । वहाँ दरबान के पास तेजी से आया और उसके हाथ में एक पत्र देकर गायब हो गया । जो भी हो विषय चाहे जितना भी मजेदार हो और इस समय हमारे लिए इतना उपयोगी नहीं है । ब्योमकेश उठकर फर्श पर चक्कर लगाने लगा । मैं समझ गया कि ब्योमकेश नहीं चाहता की आशु बाबू के निजी जीवन की ये घटनाएं आशु बाबू को सुरक्षा प्रदान करने के उसके प्रयासों में और बडे ना आ जाए । मैं भी जानता था कि मानवीय मस्तिष्क कई बार ऐसी स्थितियों में अनजाने में केंद्र बिंदु से भटक जाता है । इसलिए मैंने भी विषय बदलते हुए कहा क्या तो मैं घडी की जांच करके कुछ मिला । ब्योमकेश चलते चलते मेरे सामने रुक गया और हल्की मुस्कान के साथ बोला, घडी को जांचने के बाद मुझे तीन जानकारियाँ मिली है । पहली ग्रामोफोन पिन साधारण ॅ है, दूसरी उसका भारत ठीक दो ग्राम है और तीसरी घडी अब ठीक नहीं हो सकती । उसकी मरम्मत संभव ही नहीं है । मैंने कहा इसका मतलब है कि तुम्हें कोई उपयोगी जानकारी हाथ नहीं लगी ब्यू उनके इसने चेयर खींच कर बैठते हुए कहा, लेकिन मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूँ क्योंकि इससे मुझे यहाँ पता चला कि जिस समय यह पेन वहाँ तक के रहने में दादा गया, उस समय मृतक और हत्यारे की दूरी सात आठ फीट से ज्यादा नहीं हो सकती । एक ग्रामोफोन बेन इतना हल्का होता है कि इससे अधिक दूरी से दादा जाए तो अपने निशाने पर नहीं लग सकता हूँ । और तुम जानते ही हो कि हत्यारे का निशाना कितना अचूक रहा है । प्रत्येक बार हथियार ने अपना काम बखूबी पूरा किया है । आश्चर्य मैंने भी प्रश्न किया । हत्यारे ने इतने नजदीक आकर हत्या की है फिर भी गायब हो गया । पकडा नहीं गया । ब्योमकेश बोला यही तो सबसे बडी पहली है । जरा सोचो हत्या कर देने के बाद वहाँ व्यक्ति भी भीड में खडा होगा । हो सकता है कि मृतक की लाश को हटाने में सहायक भी रहा हूँ । फिर भी कोई उसे पकडा नहीं पाया । कितनी सफाई से उसने अपने को छुपा रखा । मैंने कुछ देर सोचकर कहा मान लो कि हत्यारे के पॉकेट में एक ऐसा यंत्र है जो ग्रामोफोन पिन को दाग सकता हूँ । जैसे ही वह अपने शिकार के सामने आता है । वह अपने पॉकेट के अंदर से यंत्र को चला देता हूँ । अपना हाथ वो पॉकेट में ही रखता हूँ । किसी को शक भी नहीं होगा क्योंकि बहुत से लोग चलते समय अपने हाथ पॉकेट में रखते हैं । ब्योमकेश ने कहा, अगर ऐसा होता तो वहाँ अपना काम फुटपाथ पर भी कर सकता था । वहाँ अपने शिकार के सडक पार करने के लिए ही क्यों रुकेगा? दूसरे, मैं किसी ऐसे यंत्र को नहीं जानता जो बिना कोई आवाज किए तो अच्छा और महास पेशियों को चीरकर सीधे रद्द है, पर आजाद कर सकता हूँ । क्या? तुम ने सोचा कि इसके लिए यंत्र में कितनी शक्ति की जरूरत होगी? मैं चुपचाप सुनता रहा । ब्योमकेश बहुत देर तक आपने कोहनियों को घुटनों पर रखें । मूव हाथों में लिए गहन चिंतन में डूबा रहा । अंत में बोला, मुझे लग रहा है इसका बहुत ही साधारण हाल है, जो मेरे हाथों के निकट ही है, लेकिन सामने नहीं आ रहा । जितना मैं प्रयास कर रहा हूँ, उतना ही हाथों से फिसलता जा रहा है । उस रात हत्या के विषय पर और चर्चा नहीं हुई । जब तक ब्योमकेश सोया नहीं, तब तक वहाँ विचारों में उन जा रहा यह जान कर के रहस्य का हाल उसके हाथों के नजदीक पहुंच गया है, जो बार बार उसके हाथों से फिसला जा रहा है । मैंने भी उसके विचारों में व्यवधान पहुंचाना उचित नहीं समझा । दूसरे दिन सुबह भी उसका चेहरा परेशान दिखाई दिया । वह जल्दी उठ गया और एक कप चाय भी घर चला गया । तीन घंटे बाद जब आया तो मैंने पूछ लिया कहाँ गए थे? जूते के फीते खोलते हुए ब्योमकेश ने बडी व्यस्तता से उत्तर दिया । वकील के पास मैंने देखा कि वहाँ अभी विचारों में डूबा है तो और कोई बात नहीं । दोपहर भर वह कमरा बंद करके काम में लगा रहा हूँ । एक बार मैंने फोन पर बात करते भी सुना । लगभग साढे चार बजे उसने दरवाजा खोला और झांकर चिल्लाया, आ रहे भाई, कल की बात किया भूल गए । शरीर में काटे का रहस्य ढूंढने का समय हो रहा है । वाकई मेरे दिमाग से भी वहाँ बात एकदम निकल गई थी । ब्योमकेश ने हंसते हुए कहा तो आजा भाई, तुम्हारा ड्रेसिंग कर दूँ । हम लोग ऐसे ही तो जा नहीं सकते हैं । मैंने उसके कमरे में घुसते हुए पूछा क्यों हम ऐसे ही नहीं जा सकते हैं? ब्योमकेश ने एक लकडी की अलमारी खोलकर तीन का बॉक्स निकाला जिसमें से उसने क्रैक कर टुकडा, छोटी कैंची, गोंद वगैरह कुछ चीजें निकाल कर बाहर रख दी और मेरे गाल पर स्प्रिट तथा गोल्ड लगाते हुए बोला, लोगों में यहाँ कोई अनजानी बात नहीं रह गई कि अजीत बंदोपाध्याय ब्योमकेश बख्शी के परम मित्र है इसलिए थोडी सावधानी जरूरी है । लगभग सवा घंटे तक ब्योमकेश काम करता रहा । जब उसने अपना काम कर लिया तो मैंने शीशे में जाकर देखा तो चौक कर मेरे मुंह से निकल गया तो बाबा अजीत ने मुझे या फ्रेंचकट दाढी कभी नहीं रखी । जो व्यक्ति शीशे में दिख रहा था उसकी आयु करीब दस वर्ष अधिक होगी । गालों पर कुछ झाइयां थी और रंग भी कुछ दबा हुआ था । मैंने किंचित भाई से पूछा यदि पुलिस ने धर लिया तो ब्योमकेश बडे धैर्य से बोला डर नहीं काबिल काबिल पुलिस वाला भी तुम्हें पहचान नहीं पायेगा की तुमने भेज बदला है । यदि तुम्हें विश्वास न हो तो नीचे सडक पर जाओ और अपनी जान पहचान के किसी भी व्यक्ति से पूछ लो कि अजीत बाबू कहाँ रहते हैं । मेरा आतंक और भी बढ गया । मैंने कहा नहीं नहीं भाई, इस की जरूरत नहीं है । मैं जैसा हूँ वैसे ही जाऊंगा । मैं जब चलने के लिए तैयार हो गया तो ब्योमकेश बोला तो है मालूम है तो मैं क्या करना है । बस लौटते समय सावधान रहना हो सकता है । तुम्हारा पीछा किया जाए क्या इस की भी आशंका है? आशंका को निर्मूल नहीं किया जा सकता हूँ । मैं घर पर ही हूँ । प्रयास करना कि काम पूरा करके जल्दी से जल्दी लॉर्ड सको । घर के बाहर निकलकर पहले तो मैं घबराता रहा, लेकिन जब मैंने देखा कि मेरे बदले भेष से कोई भी आकर्षित नहीं हो रहा है तो मैं हो गया और मेरा आत्मविश्वास भी लॉर्ड आया । सडक के कोने में पान की दुकान से मैं पान खाया करता हूँ, पान वाला पश्चिम का है और मुझे देखकर हमेशा अभिवादन करके पान बना देता है । मैंने उस की दुकान पर जाकर पानी मांगा, उसमें पांच बनाकर मुझे दिया । मेरे पैसे देने पर उसने एक सरसरी निगाह से देखा और पैसे ले लिए । पांच बज गए थे और अधिक समय अब नहीं बचा था । मैं ड्राम पकडकर ऍम में उतरा और निर्धारित स्थल की तरफ बढने लगा । यद्यपि यहाँ कोई रोमांटिक मुलाकात नहीं थी और न ही मेरे मन में रुमानी सपने थे । फिर भी एक प्रकार की उत्सुकता और उत्तेजना का एहसास हो रहा था । लेकिन यह उत्तेजना जल्दी ही विलुप्त हो गई । भीड के रेले में खमनेई की तरह एक ही स्थल पर जमे रहना कोई मामूली काम तो था नहीं । अब तक मैं जाने कितने लोगों की कोहनी और घुटने टकरा चुके थे और मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा था । ऍम पोस्ट पर टिककर यु ही खडे रहने पर एक और भी डर पैदा हो गया क्योंकि सडक के उस पार क्रॉसिंग पर खडा सार्जेंट कई बार मुझे गुड चुका था । अगर वहाँ मेरे पास आए और पूछे कि मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ तो उस की नजरों से बचने के लिए मैंने सामने वाइट वाॅच के सजावटी शोरूमों पर अपनी द्रष्टि बना दी । जैसे कि मैं उनमें रखी सुन्दर वस्तुओं को निहार रहा हूँ । मैंने सोचा कि पॉकेटमार समझकर पकडा जाऊँ । इससे तो बेहतर है कि शहर देखने आया एक मोर और गवार बनकर ही खडा रहूँ । मैंने अपनी घडी देखी । छह बजने में सिर्फ दस मिनट शेष थे । दस मिनट बिताकर मैं झंझट से पार हो जाऊंगा । व्याकुलता बढती जा रही थी । मैं हमें से टिक्कर जरूर खडा था लेकिन बार बार कुर्ते की जेब टटोल रहा था । जेब तक खाली थी आखिर घर छै बजे और मैंने ऍम पोस्ट से अपना कांदा हटाया । एक बार और जेब टटोली पर निराशा ही हाथ लगी । निराशा के साथ साथ मन में खुशी भी हुई । अंततः मुझे एक उदाहरण मिला था जिसके आधार पर मैं ब्योमकेश को चिढा सकूंगा कि उसके सभी अनुमान सही रहे होते हैं । मन ही मन प्रसन्न होते हुए मैंने ऍम डीपो की तरफ कदम बढाए ही थे की फोटो चाहिए बाबू शब्दों ने मुझे चौंका दिया । मैंने मुडकर देखा । लुंगी पहने एक मुस्लिम नौजवान हाथ में एक लिफाफा लिए मेरी और देख रहा है । दुविधा में मैंने हाथ में लिखा वाले लिया और लेने के बाद जैसे ही उसमें से अश्लील फोटो निकाल कर जमीन में बिक्री मैं बनाया गया, मैं जानता था कि कलकत्ता की सडकों पर यह धंधा चलता है । मैंने अपने हाथ को उसकी ओर बढाते हुए घृणा से इंकार कर दिया । लेकिन इसके पूर्व ही वह आदमी गायब हो गया । मैंने दायें बायें चारों ओर देखा पर वहाँ लुंगी वाला युवक कहीं भी दिखाई नहीं दिया । मैं हैरानी में खडा हुआ था । समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ । एक का एक एक दबी हुई स्थिर आवाज ने मेरे विचारों को भंग कर दिया । मेरे बगल में एक उम्र वाला अंग्रेज व्यक्ति खडा था । मुझे न देखकर वहाँ सामने की और देख रहा था और शुद्ध बंगला में एक जानी पहचानी आवाज में बोल रहा था । मैं देख रहा हूँ तो मैं पत्र मिल गया है । इसलिए अब घर आ जाओ । सीधे नहीं बल्कि घूम कर रहा हूँ । आराम से पहले बहुत बाजार जाओ वहां उतरकर हावडा क्रॉसिंग तक । बस लोग फिर टैक्सी से घर । इतने में हमारे सामने सर्कुलर रोड पर जाने वाली ट्राॅला रुकी । वहाँ व्यक्ति उछलकर उसमें चढ गया । आधे कलकत्ता का चक्कर लगाने के बाद जब उन्हें थका हारा घर पहुंचा तो देखा कि ब्योमकेश आराम कुर्सी पर पैर फैलाये जरूर पी रहा है । मैंने कुर्सी खींच कर बैठते हुए पूछा तो सायब आप कब लौटे? ब्योमकेश ने धुआ उडाते हुए कहा, करीब बीस मिनट हुए हैं । मैंने कहा तो तुमने मेरा पीछा क्यों किया? इसलिए कि मैं कुछ ही मिनटो के लिए छूट गया था । जब तुम लैंप पोस्ट पर कंधा टिकाकर खडे थे । उस समय मैं लेट ला के अंदर रेशमी मोजे देख रहा था और आज के पारदर्शी दीवारों से तुम पर नजर रखे हुए था । उस समय शरीर में काटे का सरगना तुम्हें देखकर हिम्मत बना रहा था । उसका भी कारण था क्योंकि तुम हडबडी में बार बार पॉकेट देख रहे थे इसलिए वहाँ रुककर चांस ले रहा था । मुझे स्टोर से बाहर आने में कुछ मिनिट भी लगे होंगे लेकिन तब तक तुम वहाँ से हट गए थे और पत्रवाहक को तुम्हें लिफाफा देने का पर्याप्त समय मिल गया । जब तुम कुछ दूरी पर मुझे मिले तो तुम हाथों में लिफाफा लिए बहुत छक्के खडे हुए थे तो है वहाँ लिफाफा कैसे मिला? जब मैंने ले भावा बानेगा व्रतांत सुनाया तो ब्योमकेश ने पूछा तुमने ठीक से उस आदमी को देखा क्या तो उसका चेहरा याद कर सकते हो । मैंने कुछ देर सोचकर कहा नहीं । बस इतना ही याद है कि उसके नाक के पास एक बडा सा मसला था । निराश होकर ब्योमकेश सिर हिलाते हुए बोला वहाँ तो जाली था । असल नहीं । ठीक वैसे जैसे तुम्हारी दाढी और मुझे जो अभी है लाओ, देखो तो सही वहाँ पत्र गया है । तुम तब तक यहाँ मे का बता रहा हूँ । जब मैं अपना भेज उतारकर वापस आया तो देखा कि ब्योमकेश का व्यवहार एकदम बदल गया है । वहाँ उत्तेजना में दोनों हाथ पीछे किए तेज कदमों से चहलकदमी कर रहा है । उसके चेहरे पर एक चमक थे । मेरा रखा उम्मीद में धडकने लगा । मैंने उत्सुकता में पूछा क्या है उस पत्र में? क्या तुमने कुछ पा लिया है? एक नियंत्रित उल्लास से ब्योमकेश ने मेरी पीठ ठोकते हुए बोला अजीत एक बात बताओ, क्या तुमने हावडा ब्रिज को तब देखा है जब वो हर जहाज के आने पर खुलता है? मेरा मस्तिष्क भी ठीक वैसा था । दो छोड दो तरफ से आकर मिलते हैं । लेकिन एक छोटा सत्रह भाग खाली रह जाता है । छोटे से पुल के लिए आज वहाँ भाग भर गया है । यह कैसे हुआ? आखिर उस पत्र में क्या है? फॅसने वहाँ कागज मेरे हाथों में पकडा दिया । मैंने तब भी देखा था कि लिफाफे में उन अस्लील चित्रों के अलावा भी एक कागज है लेकिन मैं उसे पढ नहीं पाया था । अब पढ रहा हूँ । बडे अक्षरों में स्पष्ट रूप से लिखा था तो तुम्हारे शरीर का कांटा कौन हैं? उसका नाम और पता क्या है? तुम जो चाहते हो उसे कागज पर स्पष्ट अक्षरों में लिख दूँ । कुछ भी न छुपाओ अपना नाम लिखने की जरूरत नहीं है । कागज को लिफाफे में सील बंद करके रविवार दस मार्च की आधी रात को खिदरपुर रेसकोर्स पहुँचा हूँ और रेसकोर्स से साडी सडक पर पश्चिम की और चलना शुरू कर दो तो मैं दूसरी ओर से एक साइकिल सवार आता दिखाई देगा । तुम्हारी पहचान के लिए उसने धूप का चश्मा पहना होगा । जैसे ही तो मुझे देखो, अपने हाथ में लिफाफे को दिखाते हुए आगे बढते जाओ । वहाँ साइकल सवार तुम्हारे हाथ से लिखा ऑफर ले लेगा और फिर समय आने पर तुम से संपर्क किया जाएगा । कृपया अकेले और पैदल चलकर ही आओ । यदि तुम्हारे साथ किसी और को देखा गया तो हमारा मिलन रद्द कर दिया जाएगा । सावधानी से मैंने उसे दो या तीन बार पढा । इसमें संदेह नहीं कि यहाँ सब बहुत ही विचित्र तथा उतना ही रोमांचक भी था । इसलिए मैंने पूछ लिया । लेकिन यह तो बताओ कि आखिर यह सब क्या है? मेरा मतलब है मुझे कुछ दिखाई नहीं तो मैं कुछ भी नहीं दिखाई देता है । हाँ, इतना तो है कि जो कुछ तुमने कल भविष्यवाणी की थी, वहाँ सब कुछ सच निकली है । यहाँ भी दिखाई देता है कि उस व्यक्ति को अपने पहचान छिपाने में उसकी कोई मंशा रही होगी । लेकिन इसके बाद क्या है? आप सूरदास जी को कैसे दिखाया जाए? जो स्पष्ट दिखाई दे रहा है, वहाँ तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा । एक का एक ब्योमकेश रुक गया । सीढियों पर किसी के चढने की आवाज थी, एक्शन सुनता रहा । फिर बोला आशु बाबू हैं, उन्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं है । उसने वहाँ कागज मेरे हाथ से लिया और अपनी पॉकेट में रख लिया । जब आशु बाबू अंदर आए तब उनकी शक्ल देखने लायक थी । मैं सोच भी नहीं सकता था कि एक ही दिन में उन का चेहरा यह बदल जाएगा । उनके कपडे अस्त व्यस्त थे । बाल उलझे हुए गालों में गड्ढे दिखाई दे रहे थे । आंखों के चारों ओर काले स्याह गोले । ऐसा प्रतीत होता था कि किसी गहरे आघात से उन्हें सिर से पांव तक हिला दिया है । कल जब वे लगभग मौत से बज कर आए थे, तब भी मैंने उनको इतना हैरान परेशान नहीं देखा था । उन्होंने अपने आपको सामने की कुर्सी पर लगभग फेंकते हुए कहा, बुरी खबर है भी । उनके इस बाबू, मेरे वकील विलास मालिक लापता हो गए हैं । सहानुभूति दिखाते हुए गंभीर स्वर्ग ब्योमकेश बोला, मुझे मालूम था आपको शायद यहाँ पता चल गया होगा कि जोडासांको का आपका मित्र भी उसके साथ मारा गया है । आशु बाबू आवाज होकर उसे देखते रह गए । कुछ क्षण बाद बोले तो मैं तो मैं मालूम है सब कुछ साहब । कोच ब्योमकेश शांत स्वर में बोला, मैं कल थोडा सा हो गया था । वहाँ मैंने विलास मालिक को भी देखा । काफी दिनों से विलाज बाबू और उस घर में रहने वाली महिला आपके विरुद्ध साजिश में लगे हुए थे और जाहिर है कि आपको इसकी जानकारी नहीं थी । आपकी वसीयत लिखने के बाद विलाज बाबू आपके वहाँ से मिलने गए थे । आरंभ में तो शायद यह उनकी केवल उत्सुकता रही हो । पर बाद में तो आप समझ सकते हैं । वे दोनों इन तमाम वर्षों में सही अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे । आशु बाबू आपको हिम्मत नहीं हारनी चाहिए । आप बहुत अच्छे हैं । एक दल आवाज और और और धोखेबाज वकील के चंगुल से बिल्कुल स्वतंत्र हो गए हैं । आपके जीवन को अब कोई खतरा नहीं है । अब आप सडक के बीचोंबीच निर्भय होकर चल सकते हैं । आशु बाबू ने चिंतित निगाहों से ब्योमकेश को देखा और पूछा, मतलब मतलब स्पष्ट है जैसे संशय से आप घिरे रहते थे और बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे । वहाँ एक सच्चाई थी । उन दोनों ने आप की हत्या का षड्यंत्र रचा था, लेकिन अपने हाथों से नहीं । इस शहर में एक आदमी रहता है । कोई नहीं जानता, वहाँ कौन है या कैसा लगता है । लेकिन उसके जालिम हथियार ने अब तक बडी खामोशी से पांच सीधे साधे मासूम लोगों का इस पृथ्वी से सफाया कर दिया है । यदि आपका भाग्य साथ नहीं देता तो आप भी उन्हीं के कदमों पर चलकर अपनी जान खो देते । कई मिंटो तक आशु बाबू अपने हाथों में मुझे बाहर बैठे रहे । अंत में उन्होंने एक उदास निश्वास छोडा और बोलना शुरू किया । मैं इस बुलाते में अपने पापों की सजा बोल रहा हूँ, इसलिए मैं किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकता । अडतीस बरस तक मेरे चरित्र पर कोई राग नहीं था, लेकिन फिर एक का एक मेरा पैर फिसल गया । अतिशय सुंदरी को देख घर मेरा माथा घूम गया । शादी से मेरा शुरू से ही लगाओ नहीं रहा, लेकिन का एक मैं उससे विवाह करने के लिए पागल हो गया । अंत में एक दिन मुझे पता चला कि वहाँ एक नाचने वाली की बेटी है, इसलिए शादी तो हो नहीं सकती थी, पर मैं उसे छोडना भी नहीं चाहता था । मैं उसे ले आया और उसके लिए किराये पर मकान ले लिया । उसके बाद आज तक यानी बारह वर्षों से मैं उसकी देखभाल पत्नी के रूप में करता रहा हूँ । आप यहाँ जहाँ नहीं गए हैं कि मैंने अपनी सारी संपत्ति उसके नाम लिख दी और इस भ्रम में रहा कि वहाँ मुझे पति की तरह उतना ही प्यार करती है । मुझे कभी कोई संदेह नहीं हुआ । मैं इस सच्चाई को नहीं समझ पाया कि आप से जान मिस्त्री में निष्ठा या वफादारी संभव ही नहीं है । जो भी हो, बूढापे में मिले इस सबका का लाभ मैं दूसरे जन्म में ही ले पाऊंगा । एक अंतराल के बाद उन्होंने टूटती आवाज में पूछा ये दोनों क्या आपको मालूम है कि कहाँ गए हैं? ब्योमकेश ने कहा नहीं और इस जानकारी का कोई लाभ भी नहीं है । आप उन दोनों के पीछे उस रास्ते पर जा भी नहीं सकते हैं जहाँ उन का भय उन्हें खींचे ले जा रहा है । आशु बाबू आपका यहाँ सामाजिक उल्लंघन हो सकता है । समाज की दृष्टि में निंदनीय माना जा सकता है । किन्तु विश्वास कीजिए मेरी दृष्टि में आप हमेशा सम्मानित रहेंगे ।

Ep 2: ग्रामोफोन पिन का रहस्य - Part 4

साइकिल सवार इस बात के लिए कतई तैयार नहीं था कि मेरे पीछे भी कोई होगा । फिर भी उसने ब्योमकेश को चकमा देने की कोशिश की लेकिन बच नहीं पाया । ब्योमकेश ने उसे झगडकर साइकिल से खींचा और एक खूंखार बात की तरह उस पर टूट पडा । जब मैं उठकर मदद के लिए आया तो देखा कि ब्योमकेश उसके हाथों को पकडे उस से जूझ रहा है । जब उसने मुझे देखा तो बोला अजीत मेरी पॉकेट से रेशम की रस्ते निकालकर इसके दोनों हाथों को बांधों कस करवा दो । मैंने उसकी पॉकेट से रेशम की रस्ते निकली और जमीन पर लेटे आदमी के दोनों हाथों को कसकर बांदिया । ब्योमकेश बोला ठीक है अजीत! तो तुम ने इन महानुभाव को नहीं बजा रहा । यहाँ है हमारे मित्र प्रफुल राय जो सुबह सुबह हमारे यहाँ आए थे और यदि पूरा ही जानना चाहते हो तो सुनो ग्रामोफोन पिन रहस्य के प्रणेता भी यही है । उसने उस व्यक्ति की आंखों से काला चश्मा हटा दिया । इन शब्दों को सुनकर मेरा क्या हाल हुआ? मैं वर्णन नहीं कर सकता । लेकिन प्रफुल राय एक विषैली हसी के बाद बोला, ब्योमकेश बाबू! आप मेरी छाती पर से अब तो हर सकते हैं । नया भार नहीं सकूंगा । ब्योमकेश ने कहा, अजीत, इसकी दोनों पॉकेट की ठीक से तलाशी । लोग उनमें कहीं कोई हथियार न हो । उसकी एक पॉकेट में आपेरा की मेहनत थी और दूसरी में पान की डिबिया थी । मैंने डिबिया को खोलकर देखा, उसमें चार पांच रखे हुए थे । ब्योमकेश ने जैसे ही उस पर अपनी पकडा छोडी, वहाँ उठा और बैठे बैठे ब्योमकेश को एक तक देखता रहा । फिर धीमी आवाज में बोला, ब्योमकेश बाबो! तुमने बाजी मार ली क्योंकि मैं तुम्हारी तीव्र बुद्धि का सही अनुमान नहीं लगा पाया और यहाँ तुम भी भाग गए । दुश्मन की शक्ति को कभी काम नहीं आना चाहिए । यहाँ सबका सीखने में मुझे कुछ विलम्ब हो गया । इसका लाभ उठाने का अब समय नहीं रहा । उसके चेहरे पर एक हारी हुई मुस्कान तैर गई । ब्योमकेश ने अपनी जेब से पुलिस की सीटी निकली और जोर जोर से बजाई । फिर बोला, अजीत साइकल को उठाकर एक और कर दो और ज्यादा सावधानी से साइकल की घंटे को हाथ नहीं लगाना वहाँ खतरनाक है । प्रफ्फुल राय हंसा देख रहा हूँ कि तुम सभी को जानते हो गए, जबकि बुड्ढी है । मुझे तुम्हारी बुद्धि से ही डर था और इसलिए मैंने आज का यह जाल बिछाया था । मैंने सोचा था कि तुम अकेले आओगे और हमारा मिलन निधि होगा, लेकिन तुमने सभी जगह मुझे मार दे दी । मैं अब तक अपने आप को अभिनय का सरताज समझता था, लेकिन तुम तो बहुत ऊंचे कलाकार निकले । आज सुबह ही तुमने मुझे बेनकाब करके मेरा दिमाग खाली कर दिया और मैं उल्टे तुम्हारे जाल में फंस गया । मेरा गला सूख रहा है । क्या मुझे पानी मिलेगा? बी उनके । इसने कहा, पानी यहाँ कहीं नहीं मिलेगा । पुलिस स्टेशन में ही पीस हो गए । प्रफुल रायने थकी हुई मुस्कान के साथ कहा, सच में कितना बेवकूफ वो मैं यहाँ पानी कहाँ मिलेगा? वहाँ कुछ देर रुका और पान की डिबिया को लालच भरी निगाहों से देख कर बोला, क्या मैं पान खा सकता हूँ? मैं जानता हूँ कि पकडे गए अपराधी को कौन होगा जो पानी खिलाएगा, लेकिन इससे कम से कम मेरे प्यास बुझ जाएगी । ब्योमकेश ने एक बार मुझे देखा, फिर डिबिया से दो पांच निकालकर उसके मूह में रख दी है । पान चबाते हुए प्रफुल राय बोला, धन्यवाद तो तुम चाहो तो शेष दो पान खा सकते हो । ब्योमकेश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि वहाँ व्यग्रता से चारों ओर देख कर पुलिस का इंतजार कर रहा था । तो थोडी दूर से मोटरसाइकल की आवाज सुनाई दी । प्रफुल राय बोला पुलिस भी अब आने को है इसलिए अब तो तुम मुझे जाने ही न दोगे । ब्योमकेश ने कहा मैं तो मैं कैसे जाने दे सकता हूँ । प्रफुल राय एक बार पागलों की तरह हंस कर फिर बोला तो तुमने मुझे पुलिस को सौंपने का निर्णय कर ही लिया है और नहीं तो क्या? ब्योमकेश बाबू, तुम शायद भूल गए कि एक तीव्र बुद्धि का व्यक्ति भी भूल कर सकता है तो मुझे पुलिस को सौंप नहीं पाओगे और लडखडाकर वहाँ जमीन पर गिर पडा । इतने में एक मोटरसाइकल बढ बढाते हुए आकर रुक गई । पुलिस की वर्दी में एक अफसर कूद कर आ गया । उसने पूछा क्या हुआ मर गया? प्रफ्फुल राय ने बडी मुश्किल से आंखें खोली और बोला वाह क्या बात है आप शायद पुलिस चीज हैं लेकिन सर आने में देर कर दी । मुझे पकडा नहीं पाएंगे । ब्योमकेश बाबू अच्छा होता कि आप भी पान खा लेते हैं । हमारी यात्रा साथ साथ ही होती है । अपने पीछे आप जैसा बुद्धिमान व्यक्ति को छोड जाऊँ । यहाँ मेरे बर्दाश्त के बाहर है । हंसने की नाकाम कोशिश करने के बाद प्रफुल रायने आंखे बंद कर ली और चेहरा निष्प्राण हो गया । इसी बीच एक ट्रक लोड पुलिसदल आ पहुंचा और स्वयं कमिश्नर हथकडी लेकर आगे बढा । दब तक ब्योमकेश मृत व्यक्ति की जांच करके उठ खडा हुआ और बोला हथकडी की जरूरत नहीं । अपराधी फरार हो गया है । दूसरे दिन ब्योमकेश और मैं अपने ड्राइंग रूम में बैठे थे । खिडकी से आती ताजा हवा और प्रकाश से कमरे के वातावरण में एक ताजगी थी । ब्योमकेश के हाथों में साइकल की घंटी थी जिसे वहाँ मनोयोग से देख रहा था । मेज पर एक खुला लिफाफा पडा हुआ था । ब्योमकेश घंटे के कवर को खोलकर उसके यंत्रों का मुआयना कर रहा था । कुछ देर बाद वहाँ बोला कमाल का दिमाग था । कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है कि इतना लाजवाब यंत्र कोई आविष्कार कर पाएगा । यहाँ स्प्रिंग इसे देख रहे हो । कितना शक्तिशाली पावर! यही असली यंत्र है । कितना छोडा किंतु कितना खतरनाक और जानलेवा और यहाँ देख रहे हो यहाँ छोटा सा छेद । यही बंदूक का काम करता था और यहाँ है घंटी बजाने का ट्रिगर यहाँ दो काम करता था शूट करना और घंटे बजाना । अर्थात उसको घुमाने पर वहाँ छोटा दिन निकल कर अपने निशाने पर लगेगा और साथ साथ घंटी बजेगी । लोग समझेंगे घंटे बजे पर उधर गोली चली । घंटी की आवाज स्प्रिंग के आवाज को छुपा लेती थी । याद है हमने चर्चा भी की थी । एक आवाज दूसरी आवाज को छुपा सकती है । लेकिन जो दुर्घंध फैलती है, वहाँ कैसे छिपेगी? उसी दिन मुझे उस व्यक्ति के प्रखर मस्तिष्क का आभास हो गया था । मैंने पूछा एक बात बताओ, तुमने यह कैसे अनुमान लगाया कि शरीर में काटे का सरगना और ग्रामोफोन पिन का हत्यारा एक ही व्यक्ति है? ब्योमकेश ने कहा, पहले मैं यह जान नहीं पाया, लेकिन धीरे धीरे मेरे मस्तिष्क में ये दोनों एक होते गए । देखो शरीर में कांटे वाला क्या कह रहा है? वह स्पष्ट रूप से कहता है कि यदि आपके सूख और शांति में कोई व्यवधान है तो वहाँ उस से छुटकारा दिला देगा । जाहिर है इसके बदले में उसे मोटी रकम नहीं होगी । यद्यपि ज्यादा काम का कहीं जिक्र नहीं किया जाता है, किंतु यहाँ भी तय है कि वहाँ यहाँ काम कोई दयापूर्ण में या परोपकार वर्ष के खाते में नहीं करता । और अब दूसरी और देखो, जितने भी लोग मारे गए, वे सभी किसी के सुख में काटे बने हुए थे । मैं मरने वालों के रिश्तेदारों पर उंगली उठाना नहीं चाहता, क्योंकि जिस तथ्य को साबित नहीं किया जा सकता । उसका जिक्र भी फिजूल होता है । लेकिन कोई इस बात को नोट किए बिना नहीं रह सकता है कि जितने लोगों की हत्या हुई, वे निःसंतान थे और उनके धन संपत्ति को पाने वाला कुछ केसों में उनका भतीजा या दामाद था । क्या आशु बाबू और उनकी रखैल इस तरीका किस्सा हमें संकेत नहीं देता कि उन दोनों का दिमाग किस दिशा में काम कर रहा था । तो यहाँ स्पष्ट हो जाता है कि यद्यपि ये दोनों के शरीर में काटा और ग्रामोफोन बिन देखने में तो अलग अलग दिखाई देते हैं, पर दोनों एक साथ फिट भी हो जाते हैं । जैसे गुलदस्ते के दो टुकडे उसके गोल छेद में थोडे प्रयास के बाद आसानी से फिट बैठ जाते हैं । एक दूसरी बात जो शुरू में ही मेरे मस्तिष्क में घट की थी, वह थी पहले के नाम और दूसरे के काम में समानता । एक और शरीर में काटे का वर्गीकृत विज्ञापन और दूसरी और काटे जैसी वस्तु के रह है में घुसने से मारते लोग । क्या तो मैं एहसास नहीं होता की दोनों में कहीं समानता है । मैंने उत्तर दिया, शायद लगाओ, पर मुझे उस समय कुछ सुनाई नहीं दिया । ब्योमकेश ने व्यग्रता से सिर हिलाते हुए कहा, यहाँ सब कुछ जमा करके एक एक घटते जाने की प्रक्रिया से बिलकुल स्पष्ट हो जाता है । इसका एहसास मुझे आशु बाबू का केस लेने के बाद ही हो गया था । समस्या केवल अपराधी की पहचान की थी और यहीं आकर प्रफुल राय का प्रखर मस्तिष्क सामने आ गया । उसकी चालाकी बेमिसाल थी । जिन लोगों ने हत्या के लिए पैसे दिए, वे तक नहीं जान पाए कि वहाँ कौन है और यहाँ काम वो कैसे करता है । उसकी तुरुप चाल यही थी कि वह कैसे अपने को पर्दे में छुपा रखें । मैं नहीं जानता है कि मैं कभी उसका पता लगा भी सकता था, जब तक कि वह खुद चलकर मेरे घर में नहीं आया । देखो, इसको इस प्रकार समझो । जब तुम उसके आमंत्रण पर लैंप पोस्ट पर खडे थे तो तुम्हारे आचरण से उस को कुछ संदेह जरूर हुआ था । फिर भी उसने जुआ खेला और वहाँ पत्र तुम्हारे पॉकेट में पहुंचाया और अपना संदेह मिटाने के उद्देश्य से तुम्हारा पीछा भी किया । लेकिन जब तुम आधे कल करते का चक्कर लगाकर घर में उसे तो वह जान गया कि तुम मेरे ही दूध हो । वहाँ पहले ही जानना आया था की आशु बाबू का केस मेरे हाथ में आ गया है । इसलिए उसे पूरा विश्वास हो गया कि मुझे सब कुछ पता चल गया है । उसकी जगह कोई और होता तो वहाँ अपनी योजना छोडकर भाग खडा होता है । हिन्दू विपुल राय अपनी अतिशय जिद के कारण मेरे पास आया ताकि वहाँ पता कर सके कि मैं कितना कुछ जानता हूँ और शरीर में काटे के केस में क्या करना चाहता हूँ । यहाँ करके वहाँ कोई जोखिम नहीं उठा रहा था, क्योंकि मेरे लिए यह पता करना असंभव था कि शरीर में कांटे के और ग्रामोफोन पिन दोनों रहस्यों का प्रणेता वही है । और यदि मैं जान भी लेता तो भी मैं किसी भी सूरत में उसको अपराधी नहीं ठहरा सकता । लेकिन उसने यहाँ आकर एक भूल कर दी । वो क्या है? वहाँ यहाँ कल्पना नहीं कर पाया कि उस सुबह मैं उसका ही इंतजार कर रहा था क्योंकि मैं यह जान गया था कि इन सबकी जानकारी लेने के लिए वहाँ मेरे पास जरूर आएगा । तो तुम जान गए थे तो तुमने पकडवाया क्यों नहीं? अब देखो कर रहे हो ना? बोरडम जैसी बात जीत यदि उस समय मैं उसे पकडवा देता तो मेरी सारी मेहनत बेकार जाति क्योंकि मेरे पास ऐसा क्या कोई सबूत था जिसके बल पर मैं उसे हत्या का अपराधी ठहरा सकता था । मेरे पास उसे पकडने का एक ही रास्ता था वहाँ था की मैं उसे रंगे हाथ पकडूं और यही मैंने किया । जरा सोचो हम लोग सीने पर प्लेट बांधकर रात में क्या करने गए थे । जो भी हो मेरे से बात करके प्रफुल राय जान नया की । मुझे अब सब कुछ पता लग चुका है । केवल यह नहीं जान पाया कि मैंने उसके मस्तिष्क को पढ लिया है । उसने फैसला कर लिया कि मुझे अब जिंदा छोड देना उसके लिए खतरनाक है और इसलिए उसने मुझे उस रात रेसकोर्स की सडक पर चलने के लिए आमंत्रित किया । वहाँ जान गया था मैंने उस दिन तुम्हें भेजकर उसे जो बच्चा दिया था इसलिए इस बार मैं स्वयं ही जाऊंगा तो भी एक बात को लेकर उसके मन में अब भी संजय था कि मैं अपने सात यदि पुलिस लिया हूँ तो इसलिए जाते समय उसने पुलिस का जिक्र किया था और जब उसने देखा की पुलिस की बात को लेकर मैं क्रोधित हो गया तब उसे इतना हो गया कि पुलिस नहीं आएगी और मान ही मान उसने मुझे मत मान लिया । बेचारा नटवर लाल एक छोटी सी चूक में फंस गया । इसका सोंग उसने मरते समय प्रकट भी किया और माना कि उसे मेरे प्रखरता को कम नहीं आंकना चाहिए था । एक अंतराल के बाद ब्योमकेश बोला क्या तो मैं याद है । जब आशु बाबू पहली बार यहाँ आए थे तो मैंने उनसे पूछा था की उन्होंने अपने सीने में झटका लगने के समय क्या कोई धनिया आवाज सुनी थी? उन्होंने कहा था कि साइकल की घंटे उस समय मैंने उस बात पर अधिक गौर नहीं किया । यही एक बडी पहली थी जो सोचने का नाम नहीं ले रही थी । लेकिन जब मैंने शरीर में कांटे का पत्र पढा तो तुरंत उसका हल मिल गया । तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में मैंने कहा था कि मुझे पत्र में केवल एक ही शब्द मिला है, वहाँ है बाइसिकल । आश्चर्य होता है कि मैंने साइकल पर पहले क्यों नहीं ध्यान दिया । दरअसल आज जब मैं सोचता हूँ तो मुझे साइकल के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता हूँ क्योंकि इतनी आसानी से निशंक हत्या का अन्य कोई उपाय संभव ही नहीं है । आप सडक पर चल रहे हैं । एक साइकल सवार सामने से आता है । वहाँ आपको एक और हो जाने के लिए घंटे बजाता है और चला जाता है । आप सडक पर गिर जाते हैं या कहो मर जाते हैं । कोई भी व्यक्ति साइकल सवार पर संदेह नहीं करता क्योंकि उसके दोनों हाथ हैंडल को पकडे थे, वहाँ हत्या कैसे कर सकता है । इसलिए दूसरी बार कोई उसे देखता भी नहीं कि वहाँ कहाँ गया । केवल एक बार तो मैं याद हो । पुलिस ने अपनी चौकसी दिखाई थी । पिछले शिकार केदार नंदी की मृत्यु पुलिस मुख्यालय के सामने लालबाजार क्रॉसिंग पर हुई थी । जैसे ही हुए सडक पर गिरकर मारे पुलिस ने सभी ट्रैफिक जाम कर दिया और घटनास्थल पर उपस् थित प्रत्येक व्यक्ति की जांच और तलाशी ली गई । लेकिन पुलिस को कुछ नहीं मिला । मैं समझता हूँ प्रफुल राय भी वहाँ भीड में मौजूद था और उसकी भी तलाशी ली गई । उसने मान ही मंड यहाँ का भी लगाया होगा क्योंकि किसी पुलिस सिपाही के दिमाग में साइकल की घंटी को जांच नहीं का प्रश्न ही नहीं होता । इतना कहकर ब्योमकेश घंटे को हाथ में लेकर बडे चाव से निहारने लगा । इतने में हवा का एक झोंका आया और मेज पर रखा लिखा था उडकर मेरे पापा के पास गिर गया । मैंने उसे उठाकर मेज पर रखते हुए कहा तो पुलिस कमिश्नर महोदय का क्या कहना है और बहुत कुछ क्यूंकि बोला । पहले तो उन्होंने पुलिस और सरकार की ओर से धन्यवाद दिया है और बाद में प्रफुल राय की आत्महत्या पर शोक प्रकट किया है । यद्यपि उससे उन्हें तो खुशी ही होनी चाहिए थी क्योंकि इससे सरकार का सारा श्रम व खर्च बच गया । जरा सोचो उस पर मुकदमा चलाने और फांसी चढाने में कितना श्रमशक्ति और खर्चा हो जाता है । जो भी हो एक बात पक्की हो गई है कि जल्दी ही सरकार की ओर से मुझे पुरस्कार मिल जाएगा । कमिश्नर साहब ने कहा है कि उन्होंने मेरे पेटिशन को तुरंत कार्रवाई करके अनुमोदन करने की सारी व्यवस्था कर ली है । प्रोफोइल राय की लाश की पहचान अभी नहीं हो पाई है । जो ऍप्स के कर्मचारियों ने लाश देखकर इंकार कर दिया कि यहाँ व्यक्ति प्रफुल राय है । उनका प्रफुल राय इस समय काम के सिलसिले में जैसोर गया हुआ है तो यह स्पष्ट है कि हत्यारा प्रफुल राय का नाम प्रयोग मिलाता था । उसका वास्तविक नाम क्या है, यहाँ भी पता नहीं चला है । खैर मेरे लिए तो वही प्रफुल राय है और अंत में कमिश्नर में एक दुख का समाचार दिया है । यहाँ घंटी मुझे पुलिस को दे देनी होगी क्योंकि अब यहाँ सरकार की संपत्ति हो गई है । मैंने हस्कर कहा तुम तो मुझे लगता है, इस घंटे के दीवाने हो गए हो । तुम देना नहीं चाहते हैं । क्यों है ना? यही बात ब्योमकेश ने भी हसते हुए कहा, यह सही है । यदि सरकार मुझे दो हजार के पुरस्कार के बदले में यहाँ घंटी देते तो मुझे खुशी होगी । लेकिन फिर भी मेरे पास प्रफुल राय की एक यादगार है । वो क्या है? क्या तो भूल गए वहाँ दस रुपये का नोट मैं उसे जड जाऊंगा । वो रुपये मेरे लिए अब हजार रुपये से भी ज्यादा का है । ब्योमकेश ने जाकर घंटे को अपनी अलमारी में रखा और ताला लगा दिया । वहाँ जब वापस आया तो मैंने पूछा ब्योमकेश अब तो बताओ बिल्कुल सच सच बताना । क्या तुम जानते थे कि पान में जहर था? ब्योमकेश कुछ क्षणों तक चुप रहा । फिर बोला देखो जानकारी में और अज्ञान के बीच का कुछ भाग अनिश्चयता होता है, जिससे हम संभावना का क्षेत्र कह सकते हैं । फिर कुछ देर बाद बोला क्या समझते हो? क्या यह उचित होता? यदि प्रफुल राय की मृत्यु एक साधारण अपराधी की तरह होती है? मैं नहीं समझता । इसके विपरीत उसका अंत बहुत मौजूद था । उसने यह दिखा दिया कि हाथ पैर बांधे एक अपराधी के रूप में भी उसने कितने सहज रूप से मृत्यु का वरण किया । क्या वहाँ काम कलाकार था? मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था क्योंकि एक सत्यान्वेषी के मन में आपने अपराधी के लिए कब और कहां प्रशंसा और सहानुभूति पैदा होती है? इस दुर्गम मार्ग की कल्पना करना मेरे लिए आसान नहीं था । ऍम आवाज सुनते ही हम दोनों ने उत्सुकता से आगंतुको देखा । ब्योमकेश के नाम रजिस्टर्ड पत्र था । उसने पत्र लेकर खोला । उसके हाथ में एक रंगीन शीट दिखाई थी जिसे उसने मुस्कुराते हुए मेरी और बढा दिया । मैंने देखा आशु बाबू की ओर से भेजा गया एक हजार रुपये का चेक था ।

Ep 3: तरनतुला का जहर - Part 1

बहुत तीन तरह तुला का जहर ब्योमकेश को घर से बाहर ले जाने के लिए मुझे बहुत कोशिश करनी पडी । पिछले एक महीने से वहाँ एक जालसाजी के केस को सुलझाने में लगा हुआ था । सुबह शाम जब भी देखो वहाँ बडी बडी फाइलों में उलझा रहता । जैसे उन पन्नों में जालसाज की छवि उभर आएगी । जैसे जैसे रहस्य की परते बढने लगी वैसे वैसे उस की बातचीत भी घटने लगी । सुबह से रात तक फाइलों के उलझन उसके स्वास्थ्य पर देखने लगी थी । जब भी मैं इस विषय पर बात करता हूँ तो वहाँ दो टूक जवाब देता अरे नहीं मैं पूरी तरह ठीक हूँ । वो शाम मैं जिद पर अड गया । देखो अब मैं तुम्हारी एक विवाद नहीं सुनूंगा । आज हम घूमने जा रहे हैं तो तुम्हारा दो दिन घंटों के लिए बाहर जाना जरूरी है । लेकिन लेकिन लेकिन कुछ नहीं । हम लोग लेके चलते हैं । तुम्हारा जालसाज दो घंटों में भागा नहीं जाता तो चलो चलते हैं । उसमें फाइलों को किसका दिया । लेकिन उन्हें मस्तिष्क से हटावाया या कहना मुश्किल है । लेक के किनारे घूमते हुए एक मुझे पुराना मित्र दिखाई दे गया । वहाँ मेरे साथ इंटरमीडिएट तक पढा था । उसके बाद वह मेडिकल कॉलेज में चला गया तो तब से मैंने उसे नहीं देखा । मैंने आवाज दी है तो तुम मोहनी होना । अरे भाई कैसे हो? वहाँ चौकर रुका और मुझे देखकर खुशी से उछल पडा । अरे अजीत तो मैं देख एक अरसा बीता कैसे हो? कहाँ हो? सब ठीक है ना? जोश भरे अभिवादन के बाद मैंने उसका परिचय ब्योम कैसे कराया? मोहन बोला हो तो आप है भी उनके िपक्षी आपसे मिलकर खुशी हुई । मैं अक्सर सोचा करता था कि ब्योमकेश बख्शी के वृतांतों का लेखक अजीत बन्दोपाध्याय कहीं अपना पुराना मित्र अजीत तो नहीं है, लेकिन निश्चय नहीं कर पाता था । मैंने कहा आजकल क्या कर रहे हो? मोहन बोला मैं कलकत्ता में ही प्रैक्टिस कर रहा हूँ । हम घंटे बरसात साथ घूमते रहे । बातचीत में समय बीत गया । उस दौरान मुझे लगा जैसे मोहन कुछ कहना चाह रहा हूँ पर रुक जाता था । ब्योमकेश ने भी शायद देखा था क्योंकि एक बार उसने मुस्कुराकर कह ही दिया क्यों रो क्यों जा रहे हैं और डॉक्टर साहब जो मन में हैं कैट डालिए । मोहन ने कुछ झिझकते हुए बोला एक बात है जो मैं आप से पूछना चाह रहा था, लेकिन बताने में संकोच हो रहा है । दरअसल मैं वही इतनी छोटी समस्या है, जिसे आपको बताना मुनासिब नहीं समझता हूँ । फिर भी मैंने कहा कोई बात नहीं, तुम बताओ तो सही है और कुछ नहीं तो कम से कम कुछ समय के लिए ब्योमकेश को इस जालसाज से फुर्सत मिल जाएगी । जालसाज मैंने पूरी कहानी बताई तो अजीत बोला यह तो ठीक है, पर ब्योमकेश बाबू मेरी समस्या पर हसेंगे । यदि वह हसने लायक होगी तो जरूर होगा, लेकिन आपको देखकर मुझे नहीं लगता कि हस्ते लाया गया । बल्कि मुझे तो लगता है कि उस समस्या से आप चिंतित है और हल करने के लिए आप एडी चोटी का जोर लगा रहे हैं । मोहन ने उत्साहित होकर कहा, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं । संभव है वहाँ समस्या बेहद आसान हो, लेकिन मेरे लिए जी का जंजाल बन गई है । ऐसा नहीं कि मैं चुपचाप बैठा हूँ । मैं अब तक अपने सामान्य ज्ञान का भरपूर उपयोग कर चुका हूँ । फिर भी आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एक बीमार वृद्ध व्यक्ति, जिसका पूरा शरीर लकवे से ग्रस्त हो, कैसे हर दिन मुझे चकमा दे रहा है । वहाँ केवल मुझे नहीं अपने पूरे परिवार के सख्त पहरे के बावजूद उनकी आंखों में धूल झोंक रहा है । बातचीत के दौरान हम लोग बेंच पर बैठ गए । मोहन बोला, मैं आपको संक्षेप में सारी बात बताता हूँ । मैं बहुत ही संपन्न परिवार का पारिवारिक डॉक्टर हूँ । यह परिवार बहुत ही पुराना है । उस समय का है जब यहाँ शहर बसना शुरू हुआ था । पर्याप्त संपत्ति और आय के अतिरिक्त ये लोग एक संपूर्ण मार्केट के स्वामी है, जिससे उनके आर्थिक स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है । पूरे मार्केट का बडा किया होगा । आप इसी से अनुमान लगा सकते हैं । घर के स्वामी का नाम नंदूलाल बाबू है और वे ही मेरे पेशेंट हैं । अपनी जवानी के दिनों में उन्होंने अनेक ऐसे व्यसन पाल लिये थे कि पचास की आयु पहुंचते पहुंचते उनके शरीर में जवाब दे दिया । उनका शरीर रोगों का घर बन गया है । बहुत पहले से उनके शरीर को आर्थराइटिस ने धन लिया और अब तो लकवा भी मार चुका है । हमारे व्यवसाय में एक कहावत प्रचलित है कि व्यक्ति की मृत्यु कोई विचित्र बात नहीं, बल्कि आश्चर्य तो यह है कि वहाँ अब तक जीवित कैसा है । मेरे मरीज इसी कहावत का सर्वश्रेष्ठ नमूना है । नंदूलाल बाबू के चरित्र के वर्णन के लिए मेरे पास शब्द नहीं है । बत्तमीज, बेहुदा, गाली गलोच करने वाला दो के बाद चालाक और निष्कर्ष संक्षेप में मैंने जीवन में इतना निकृष्ट व्यक्ति नहीं देखा है । उनकी पत्नी और परिवार हैं, किंतु उनका किसी से अच्छा व्यवहार नहीं है । वे आज भी उसी नरक में जीना चाहते हैं, जिसमें वे जवानी में थे । लेकिन उनके शरीर की शक्ति समाप्त हो चुकी है और अब वह सब सहने योग्य नहीं रही । इसलिए उनके मन में सब के प्रति भयंकर द्वेष है । जैसे हुए सब उनकी दशा की जिम्मेदार है । वे हमेशा इसी प्रयास में रहते हैं कि कैसे किसी को दोषी बनाकर उसे गाली गलोच की जाए । उनका शरीर कमजोर है, रजय रोग भी है, इसलिए वहाँ अपने कमरे से बाहर नहीं जा सकते । वे अपने कमरे में बैठकर पूरी दुनिया को गाली देते हैं और लिख लिख कर पन्ने बढते जाते हैं । उन्होंने मन्ने या ब्रहमपाल लिया है कि वे एक महान साहित्यकार है, इसलिए वो काली स्याही से कभी लालसाई से पन्नों को भरते जाते हैं । प्रकाशकों को भी वे गाली देते रहते हैं । उनके मन में यहाँ बैठ गया है कि सभी उनके विरुद्ध षडयंत्र रच रहे हैं और इसलिए उनकी रचनाएं नहीं छापते । कमाल है । उत्सुक्ता से मैंने पूछा, क्या लिखते हैं कहानी या फिर कुछ आत्मकथा जैसा? केवल एक बार मैंने उनके पेज पर दृष्टि डाली थी । फिर कभी हिम्मत नहीं हुई । यदि तो मैं उस कूडे करकट को पढ लो तो कोई देवता भी तुम्हें शुद्ध नहीं कर पाएगा । मैं दावे के साथ कह सकता हूँ । आज के प्रयोगात्मक युवा लेखक भी उसे पढकर बेहोश हो जाएंगे । ब्योमकेश ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, मैं कल्पना कर सकता हूँ चरित्र के बारे में, किंतु यहाँ तो बताइए । दरअसल में समस्या क्या है? मोहन ने सिगरेट का पैकेट निकालकर हम दोनों के लिए सिगरेट पेश की और स्वयं जलाकर बोला, शायद आप सोच रहे होंगे कि ऐसे विचित्र व्यक्ति में और कोई गुण नहीं हो सकते हैं । वे एक अन्य गुण से सम्पन्न है और वहाँ एक भयंकर नशा । उसने सिगरेट के कई कश लगाने के बाद कहा ब्योमकेश बाबू! आपको तो ऐसे नशीले और दुष्चरित्र व्यक्तियों से पाला पडता होगा जो शराब, गांजा, कोकेन और ऐसे ही निकृष्ट नशों के आदि होते हैं । पर क्या आपने कभी सुना है कि कोई व्यक्ति मकडी का जूस पीता हूँ? मैं जोर से चौक गया क्या? कहाँ माॅक बाबा, यह क्या होता है? मोहन बोला, कुछ खास किस्म की मकडिया होती है जिनके शरीर से जहरीला जूस निकाला जाता है । ब्योमकेश जैसे अपने आप सही बोल रहा हूँ उसके मुंह से निकल पडा टाॅस यह एक जमाने में इसने में प्रचलित था । मकडी के काटने पर लोग घोडे की तरह डांस करने लग जाते थे या एक बहुत ही घातक जहर है । मैंने इसके बारे में पढा है किंतु हमारे देश में मैंने इसका प्रयोग करते आज तक किसी को नहीं देखा । मोहन बोला आपने सही का तार अंतुल डांस यहाँ तरंत ओला जूझ दक्षिणी अमेरिका की इस पैनिश अमरीकी जनजातियों में काफी प्रचलित है । तरण तुला का जहर एक घातक जहर है लेकिन इसकी छोटी मात्रा में प्रयोग स्नायुमंडल में बडे जोरों की झनकार और सनसनाहट पैदा कर देता है । और आप आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि जो व्यक्ति इस नशे का आदी हो वहाँ इस नशे के बगैर कैसे रह सकता है । किंतु इसका लगातार प्रयोग घातक है । वह नशेडी निश्चित रूप से लगभग कैसे मारता है? मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि नंदूलाल बाबू ने यह खूबसूरत शौक अपनी जवानी में शुरू किया होगा । बाद में चलकर जब उनका शरीर अपन हो गया तब भी तो वैसे छोड नहीं पाए । मुझे उनका फैमिली डॉक्टर बने लगभग एक वर्ष हुआ । तब तक वे जहर के पक्के आधी बन चुके थे । पहला काम जो मैंने किया हुआ था उस पर रोक लगाना । मैंने उनसे स्पष्ट रूप से कह दिया कि यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें यह नशा छोडना पडेगा । शुरू में काफी लोग जो हुई वे छोडने को तैयार नहीं थे और मैं उन्हें नशा करने नहीं देना चाहता था । अंत मैंने कहा मैं जहर को आप के घर में घुसने नहीं दूंगा । मैं देखता हूँ आप कैसे उसे ले पाते हैं । उन्होंने एक हसी के साथ अच्छा यह बात है तो ठीक है । मैं लेता रहूंगा, देखता हूँ तुम कैसे रोकते हो और इस प्रकार युद्ध का श्रीगणेश हो गया । परिवार के सभी सदस्य वस्तुतः मेरे साथ ही थे और इसलिए घर के अंदर एक मजबूत मोर्चाबंदी करना आसान हो गया । उनकी पत्नी और बेटों ने बारी बारी से उनके रूम पर बहरा देने का काम शुरू कर दिया ताकि रूम के अंदर उसे जहर को ले जाने का उपाय ही नहीं रह जाए । हुआ क्योंकि स्वयं भी अपन थे इसलिए बाहर जाकर उसे लाना उनके लिए संभव नहीं था । इतने मोर्चाबंदी तथा पहरेदारी के बाद फिलहाल तो संतोष हो गया लेकिन वहाँ सब बेकार ही रहा क्योंकि इतना सब करने के बावजूद वे नशा करते ही रहे । कोई नहीं जान पाया कि वहाँ कैसे करते हैं । पहले तो मुझे संदेह हुआ कि यहाँ जरूर उनके परिवार के किसी सदस्य का ही काम है । इसलिए एक दिन मैं खुद पहले पर बैठा लेकिन काजू है कि उन्होंने मेरी पहरेदारी के बावजूद तीन बार जहर का सेवन किया । यहाँ मुझे तब पता चला जब मैंने उनकी नब्ज की जांच की । लेकिन मैं यह जान नहीं पाया की उन्होंने कब और कैसे वहाँ जरुर ले लिया । उसके बाद मैंने उनके कमरे की बडे यत्न से तलाशी ली । हर कोना और फर्नीचर छान मारा । सभी आगंतुकों के प्रवेश पर रोक लगा दी है लेकिन मैं उन का नशा करने को रोक नहीं पाया हूँ । यही आज की स्थिति है । अब मेरी समस्या यह है कि मैं कैसे पता लगा हूँ की वहाँ व्यक्ति मकडी का जहर कैसे पाता है और कब लोगों को चकमा देकर उसे डिटेल जाता है । इतना कहकर मोहन रुक गया । मैं यह नहीं जान पाया कि मोहन के व्रतांत में कब ब्योमकेश का मस्तिष्क को वहाँ से हट कर कहीं और चला गया । क्योंकि जैसे ही मोहन ने बोलना समाप्त क्या ब्योमकेश उठ खडा हुआ और अजीब से बोला अजीत चलो अब हम घर चलते हैं, मुझे का एक कुछ ख्याल आया है और यदि मेरा अनुमान सही है तो मैं समझ गया कि जालसाज फिर से उसके मस्तिष्क में आ गया है । हो सकता है उसने मोहन के व्रतांत का अंतिम भाग चुनावी न हो । मैंने कुछ निरूत्साहित होकर कहा, शायद तो मोहन की कहानी पर ध्यान नहीं दे पाए हो नहीं नहीं मैंने वस्तुतः सारी कहानी पूरी सावधानी से सुनी है । यहाँ समस्या वाकई विचित्र है और मैं तो कहूंगा कि मैं भी इस चक्कर को समझ नहीं पाया हूँ । लेकिन इस समय मेरे लिए समय देना संभव नहीं हो पा रहा है । मोहन को इन बातों से शायद ठेस पहुंची थी किंतु उसने अपने भावों को छुपाते हुए कहा । बिल्कुल सही है छोडिये । उसे आपको छोटे मोटे मामलों में ओलोचना ठीक नहीं लगता । लेकिन इतना जरूर है कि यदि यह ऐसे खुल जाए तो संभव था उस व्यक्ति का जीवन बच जाए । इससे ज्यादा दुख और क्लेश क्या हो सकता है कि एक व्यक्ति को चाहे वहाँ पार्टी ही क्यों ना हो, आंखों के सामने जहर से मारता देखते रहे हैं । ब्योमकेश थोडा विचलित हो गया । उसने कहा, मैंने ये तो नहीं कहा कि मैं इस केस को नहीं देखूंगा । मुझे इस केस को सुलझाने के लिए कम से कम कुछ घंटे तो लगेंगे । फिर उस व्यक्ति को भी देखना चाहूंगा, उससे भेंट काफी सहायक हो सकती है । किंतु यहाँ सब मैं आज नहीं कर पाऊंगा । यह सही है कि नंदूलाल बाबू जैसे अजीब व्यक्ति को यही मृत्यु का ग्रास बनने देना अपराध होगा और मैं ऐसा नहीं चाहूंगा । आप निश्चिंत रहे, लेकिन इस समय मुझे फौरन अपने घर पहुंचना बहुत जरूरी है । मैं समझता हूँ कि मुझे जालसाज को पकडने के लिए एक बार कागजों पर नजर दौडाना जरूरी है । इसलिए आज भर के लिए नंदूलाल बाबू को शांति से अपनी खुराक लेने दीजिए । कल से मैं उनके जहर पर रोक लगा दूंगा । मोहन ने हस्कर उत्तर दिया, मुझे कोई समस्या नहीं । आप केवल मुझे समय दे दीजिए ताकि मैं आपको लेने के लिए कार भेज सकूँ । ब्योमकेश एक्शन सोचकर बोला, मेरा एक सुझाव है । अजीत को अपने साथ जाने दीजिए । इससे आपकी उत्सुकता में फिलहाल राहत भी मिलेगी । एक बार अजीत को जाकर पूरा मुआयना कर लेने दीजिए । उसकी रिपोर्ट पर आज रात या कल तो वहाँ तक आपकी समस्या का हल दे दूंगा । ब्योमकेश का प्रस्ताव सुनकर मोहन के चेहरे पर निराशा की जो छाया दिखाई दी, वह किसी से छिपने सकी । ब्योमकेश के स्थान पर अजीत का जाना वह निराश हो गया । यहाँ भी उनके इस ने भी देखा । इसलिए उसने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा, अजीत क्योंकि आपका मित्र है इसलिए शायद आपका उस पर विश्वास जम नहीं रहा । लेकिन दिल छोटा ना कीजिए । अजीत पहले जैसा अजीत नहीं है । वहाँ भी एक सफल अन्वेषी के साथ रह कर उन्हें ऊंचाइयों पर पहुंच चुका है । मैं तो कहता हूँ कि संभव है कि अजीत स्वयम आपकी बहली का हल खोज निकाले, किन्तु इतनी तारीख के बाद भी मोहन के चेहरे पर मायूसी छिपी नहीं । जैसे दिनभर बडी मछली की । आज मैं बैठा कोई शिकारी शाम तक फंसी । एक छोटी सी मछली को देखकर मायूस हो जाए अंत है । उसने कहा ठीक है जी थी चले मेरे साथ । किन्तु यदि वहाँ नहीं निश्चिंत रहे है, यदि वहाँ सफल नहीं हो पाया तो आप मुझ पर भरोसा रखी है । चलने से पहले ब्योमकेश ने मुझे एक और बुलाकर कहा ठीक से सभी चीजों का मुआयना कर जांच कर लेना और हाँ आने वाली डाक के बारे में पूछना मत भूलना । बहुत से ब्योमकेश को अनेक गुड रहस्यों को सुलझाते देखने के साथ साथ अनेक केसों में उसे मदद करने के बाद मुझे भी अब लगने लगा कि आखिर यह ऐसा कौन सा गहन केस है जो मैं नहीं सुलझा सकता । मोहन ने जो मेरी क्षमता पर इतना संदेह व्यक्त किया था, उसने मानो ना मानो मुझे आज किया था और मैंने भी निश्चय कर लिया कि मैं इस समस्या का हल करके ही रहूंगा । इस निश्चय के साथ वहाँ मोहन के साथ चल दिया उन्होंने । उन्होंने बस पकडी और गंतव्य स्थान पर पहुंच गए । साथ ही अंधेरा गिराया था । सडक की रोशनी में मोहन आ गया । ये चल रहा था । हम लोग सर्कुलर रोड पर कुछ देर चले होंगे कि मोहन ने दूर से बडे घर की ओर इशारा करते हुए कहा, यही घर है । घर के बाहर लोहे का विशाल गेट था, सिर्फ बाहर खडे दरबार ने मोहन को सलाम किया किंतु मुझे रोक लिया । सारा आप नहीं जा सकते हैं । मोहन ने मुस्कुराकर कहा ठीक है दरबान, ये मेरे साथ हैं तो ठीक ऐसा दरबान रास्ते से हट गया । हम बरामदे में कुछ ही दूर गए होंगे कि लगभग बीस वर्ष का एक युवक मिल गया । वो डॉक्टर साहब आप आई आई है और ये मोहरों से दो कदम अलग ले जाकर कुछ बोला तो उत्तर में उसने कहा, हाँ जरूर उन्हें देख लेना जरूरी है । मोहन ने मेरा परिचय दिया । युवक का नाम अरुण था । वहाँ नंदूलाल बाबू का बडा लडका था । वहाँ हमें उस कमरे तक ले गया । बीच में दो कमरे थे । तीसरे दरवाजे पर जाकर उसने खटकटाया । जिसके बाद भीतर से कठोर स्वर गुराया और मैं मुझे परेशान मत करो मैं लिख रहा हूँ । अरुण ने कहा पिताजी, मैं अरुण डॉक्टर साहब आए हैं । अब मैं जरा दरवाजा खोल दो । दरवाजे को खोलने वाला शायद अरुण का छोटा भाई था । उसकी आयु करीब अठारह वर्ष होगी । अरुण में धीरे से पूछा क्या ले लिया उत्तर में अब मैंने निराश होकर सिर्फ हिला दिया । कमरे में घुसते ही मेरी दृष्टि पलंग पर पडी । वह कमरे के बीच में था जिसमें नंदूलाल बाबू अपने दुबली पतली काया में तकिये के सहारे अधलेटे पडे थे । हाथ में खुला पैन था और आग्नेय नेत्रों से हमें देख रहे थे । सिर के ऊपर फ्लोरोसेंट ट्यूब्स चल रही थी । बगल में टेबल लैम्प से रोशनी हो रही थी जिसके प्रकाश में उस व्यक्ति को स्पष्ट देखा जा सकता था । उनकी आयु करीब बावन तिरपन होगी । लेकिन बाल पूरे सफेद हो गए थे तो अच्छा पीली कद, छोटा शरीर का मांस लगभग सूख चुका था जिसके कारण उनके चेहरे के दोनों ओर की हड्डियाँ उठकर नुकीली हो गई थी और उनकी तोते जैसी नाक वोटों तक झुक आई थी । दोनों आंखों में एक विचित्र प्रकार की चमक थे किन्तु चमक के कोरों से एक मारी मछली का अहसास हो रहा था । उन का निचला होटल लटक कर झूला हुआ था । कुल मिलाकर उनकी आकृति पर एक महत्व असंतुष्ट जीजीविषा की प्रतिच्छाया लगती थी । उस प्रेत आत्मा जैसे शरीर का उन लोग काम कर मैंने देखा उनका दायां हाथ ऍफ जाता है । मरे हुए मैंने के किसी अंग पर बिजली का तार छू जाने से जैसे वहाँ एकदम उछलकर दूर गिरता है, वैसे ही उनका दायां हाथ रह रहकर उछल जा रहा था । नंदलाल बाबू द्वेषपूर्ण निगाहों से मुझे निरंतर घूम रहे थे । ऊंची गुर्राती आवाज में गरजे डॉक्टर तो हमारे सा यहाँ कौन है? कौन आया है यहाँ इससे हो चला जाए यहाँ से एक दम भी । मोहन ने मुझे देखकर संकेत में कहा कि उनकी बातों पर काम न रे हैं । उसके बाद उसने पास जाकर पलंग पर पहले कागजों को एक और सरकार कर अपने बैठने की जगह बनाई और उनकी कलाई हाथ में लेकर नब्ज जांचने लगा । नंदलाल बाबू विषैली हंसी के साथ कभी मुझे देखते कभी डॉक्टर को उनका दायां हाथ वैसे ही एक एक बार फिर जाता था । एक्शन बाद मोहन ने उनकी कलाई छोडते हुए कहा, तो आपने फिर ले लिया, ले लिया तो तो मैं क्या? तो मैं क्यों दर्द होता है? मोहन ने अपने होटल चबाते हुए कहा यहाँ करके आप खुद को ही बर्बाद कर रहे हैं और यही बात आप समझ नहीं रहे हैं और यही बात आप नहीं समझ रहे हैं आपने आपने मस्तिष्क को जहर से सडा दिया है । नंदूलाल बाबू ने व्यंग्य करते हुए मजाक किया, अच्छा ऐसा है मैंने अपने मस्तिष्क को सडा दिया है । वह यहाँ बात है लेकिन आपका मस्तिष्क तो चोर दुरुस्त है है ना? तो तुम पाकड क्यों नहीं लेते हैं? मेरे चारों ओर तो तो मैं पहला लगा रखा है, फिर क्यों नहीं पकडते? उनके चेहरे पर एक विकृत मुस्कान तैर गई । मोहन उठते हुए हताश स्वर में बोला आपसे बात करना ही फिजूल है । मैं समझता हूँ आपको आपके हाल पर ही छोड देना चाहिए । नंदलाल बाबू बेहुदा मजाक करते रहे । शहराम नहीं आती । डॉक्टर तो अपने को आदमी रहते हो । हाँ कर लो मुझे या फिर इसे जो उन्होंने चिढाते हुए अपना अंगूठा दिखाया । इतना बडा मजाक अपने बेटों के सामने मेरे भी बर्दाश्त से बाहर हो रहा था । मोहनका धर्य भी अब समाप्तप्राय हो चुका था । उसने कहा थी हैं अजीत देखकर जो भी अपना मुआयना करना चाहते हो कर लोग यहाँ सब आप सही नहीं होता । नंदूलाल बाबू का अब तक का घटिया मजाक एका एक रुक गया । उन्होंने मेरी और विषैली आंखों से देखते हुए कहा तो उनको होते हो तो कर क्या रहे हैं और मेरे घर में जब उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला तो वे बोले तो अपने को बडे तेईज मार खां समझते हो ना ऍम खोलकर सुन लो तुम्हारी चाले यहाँ नहीं चलेंगे तो वहाँ वहाँ से अन्यथा मैं पुलिस को बुलाता हूँ । सब चोर, उचक्के आवारा बदमाश इकट्ठा हो गए । यहाँ उन्होंने मोहन को भी अपनी गाडियों में समेट लिया । हालांकि मेरे आने का मकसद नहीं पाए, किंतु उन्हें शक जरूर हुआ । अरुण अब पछता रहा था । धीरे से मैंने कान में बोला इन की बातों पर ध्यान नहीं देना । एक बार जहर का नशा करने के बाद ये पागल हो जाते हैं । मैंने सोचा कि जो नजारा आदमी के निकृष्ट और जिन्होंने स्वरूप को दिखा सकता है, वह कितना खाता होगा । कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो मनुष्य की इस निम्न और विकृत अवस्था पर नियंत्रण लगा सकता है । आदमी किसी न राधा में स्थिति में गिर सकता है बे उनके इसने मुझे सारे तथ्यों को अच्छे से जांच कर मुआयना कर लेने को कहा था । इसलिए मैं माननीय मान कमरे की सभी वस्तुओं की सूची बनाने में लगा । कमरा काफी बडा था जिसमें कुछ चीजें थी जैसे पलंग, कुछ कुर्सियां, अलमारी और एक छोटी सी बेडसाइड टेबल । मेज पर टेबल लैंप के अलावा कागज, पैन आदि लेखन सामग्री थी । लिखे हुए कागज पहले हुए थे । मैंने कागज को उठाकर पडने की चेष्टा की, पर दो दिन लाइनों के बाद मुझे पढा ही नहीं गया । सब अश्लील बातों से भरा हुआ था । मोहन सही कह रहा था कि उनका लेखन एमिल जोला जैसे लेखक को भी शर्मसार कर देगा । लेखक महोदय ने कमाल और क्या था? कुछ मजेदार लाइनों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्हें लाल स्याही से मार्ग किया था । सच में मैंने अपने जीवन में ऐसा निकृष्ट और घृणित मस्तिष्क नहीं देखा था ।

Ep 3: तरनतुला का जहर - Part 2

अपनी उबकाई को रोकते हुए मैंने उस व्यक्ति को देखा । लेकिन तब तक वह अपने लेखक कर्म व्यस्त हो चुका था । उसका पार्कर पैन तेजी से लिखता जा रहा था । ऍम में एक और मारकर पहन रखा था । जो संभव है उस लेखन के रुकने की प्रतीक्षा कर रहा था, जब शायद वहाँ अपनी रसिक लाइनों को मार्क करें और ठीक वही हुआ । जैसे ही पेज समाप्त हुआ, उन्होंने लल्याल सही वाला मार्कर पैन उठाकर बडे मनोयोग से कुछ लाइनों को मार के करना चाहता हूँ । हिन्दू चुकी से आई समाप्त हो गयी थी इसलिए उन्होंने स्टैंड में रखी लाल जाएगी । दवा से फिर से स्याही भरी और अपने काम में लग गए । मैंने अपना ध्यान अब दूसरी ओर लगाया । अलमारी में कुछ भरी दवाइयों की बोतलों के अलावा और कुछ नहीं था । मोहन ने बताया, मोहन ने बताया दवाएं उसने दी है । कमरे में दो दरवाजे और दो खिडकियाँ थी । एक दरवाजा जिससे हम अंदर आए थे । दूसरा मुझे बताया गया बातों में बोलता है । मैंने बाथरूम भी जाकर देखा । सामान्य जैसा ही था तो लिया साबुन, तेल टूथपेस्ट आ रही क्या? दिन तो कुछ नहीं था । खिडकियाँ मुझे बताया गया कभी खुलती नहीं । हमेशा बंद ही रहती है । मैंने देखा, लेकिन मस्तिष्क खाली ही रहा । मैंने सोचा क्यों ना दीवारों को खटका । अगर देखो लेकिन फिर यह सोचकर रुक गया कि संभव है कि इन लोगों का उनमें कोई गुप्त वॉल्टियर खजाना हो । एक का एक मेरी निगाह दीवार के आने में रखे । चांदी से निर्मित इत्र होल्ड पर बडी उसमें सोई रखी हुई थी । मैंने उसे उठाकर देखा और आहिस्ता से अरुण से पूछा, क्या ये इतने का प्रयोग करते हैं? आजकल जाते हुए उसने सिर हिलाकर कहा, कह नहीं सकता । यदि करते होते तो उनका शरीर महकता । यह कब से? यहाँ तो मुझे याद है । यह पिताजी स्वयं खरीद कर लाए थे । मैंने मुडकर देखा । नंदूलाल बाबूल लेखन रोककर मुझे घूर रहे थे । उत्सुकता से मैंने रूई के टुकडे वो इतने में भी हो कर अपनी पॉकेट में रख लिया । अंत में मैंने पूरे कमरे को एक भरपूर नजर से देखा । नंदूलाल बाबू की नजर बराबर मेरा पीछा करते रही । उनके चेहरे पर अब भी व्यंग भरी मुस्कान थी । हम लोग बाहर बरामदे में अगर बैठ गए । मैंने कहा मैं आप सब लोगों से कुछ प्रश्न करना चाहता हूँ । कृपया सही सही उत्तर दें । अरुण बोला, अवश्य आप पूछे । मैंने पूछा क्या आप लोग निरंतर पहरेदारी करते हैं और कौन है जो इसमें शामिल हैं । अब है माँ और मैं । हम बारी बारी से पहले पर बैठते हैं । हम नौकरी या किसी अन्य बाहरी व्यक्ति को अंदर जाने नहीं देते । क्या किसी ने इन्हें कभी नशा लेते हुए देखा है? नहीं, हम ने कभी नहीं देखा, लेकिन जब जब लेते हैं हमें पता लग जाता है । क्या किसी ने देखा है कि वहाँ जहर कैसा होता है? जब खुल कर लिया करते थे तब मैंने देखा था । वहाँ सफेद पारदर्शी पानी जैसा तरल पदार्थ है, जिसे पहले होम्योपैथी दवा की बोतल में रखा जाता था । वो फलों के जूस में उसकी कुछ बूंदें डाल देते थे । आप निश्चित रूप से कह सकते हैं की वैसी बोतल उनके कमरे में अब नहीं है । जी हां, निश्चित रूप से हमने कमरे को हर प्रकार से छान मारा है । तब जाहिर है वह कहीं से आता है । कौन लाता होगा? अरुण ने सिर्फ लाते हुए कहा हो, हमें नहीं मालूम क्या तीनों के अलावा कोई अन्य व्यक्ति कमरे में नहीं, उसका सावधानी से सोचिए नहीं । डॉक्टर के अलावा कोई और रही है । मेरी जांच समाप्त हो गई । इससे अधिक मैं और पूछता भी किया । मैं तसल्ली से बैठकर सोचने लगा कि क्या पूछा जा सकता है । एक का एक ब्योमकेश की बात याद आ गई । मैंने नए सिरे से पूछना शुरू किया क्या इनके डाक से पत्र आते हैं? नहीं पारलिया कुछ और तब और उन्हें उत्तर दिया । हाँ, सप्ताह में एक बार उनके नाम रजिस्टर्ड लिफाफा आता है । उत्सुक्ता वर्ष मैं आगे जो गया कहाँ ज्यादा है? कौन भेजता है और उनका सिर्फ संकोच में शर्म से झुक गया? नहीं कलकत्ता से ही आता है भेजने वाली महिला है रेबेका लाइट । मैंने कहा वो तो यह बात है । क्या आप लोगों में से किसी ने देखा है कि उसमें क्या होता है? हाँ, अरुण ने उत्तर देते हुए मोहन की ओर देखा तो क्या होता है उसमें? मैंने उतावले सफर में पूछा । कोरे कागज हाँ, कुछ कोरे कागज फोल्ड करके रखे होते हैं । बस और कुछ नहीं । मैंने आज अम्बे से दोहराया और कुछ नहीं नहीं । मैं कुछ क्षणों के लिए भौचक्का गुमसुम रह गया । फिर दोबारा से पूछा क्या निश्चित रूप से कह सकते हैं कि उस लिफाफे में और कुछ नहीं होता? अरुण मुस्कुराकर बोला, नहीं, यद्यपि पिताजी स्वयं हस्ताक्षर कर पत्र लेते हैं पर खोलता मैं ही हूँ । उन कोरे कागजों के अलावा उसमें कुछ नहीं होता । क्या प्रत्येक पत्र को हर बार तुम्हें खोलते हो? कहाँ खोलते हो पिताजी के कमरे में जहाँ पोस्टमेन पिताजी को हस्ताक्षर करने के बाद देता है, लेकिन यह तो विचित्र बात है । खाली कोरे कागजों को रजिस्टर्ड डाक से भेजने का मतलब क्या है? अरुण में सिर्फ लाकर कहा मैं नहीं जानता । मैं काफी देर तक मूल की तरह बैठा रहा । अंत में एक निश्वास के बाद धीरे से जाने के लिए उठा । पहली बार जब रजिस्टर लिफाफे का जिक्र हुआ था तो मुझे लगा था कि मैंने निशाना मार लिया है । लेकिन बाद में जब निराश होना पडा तो लगा वह हरिद्वार अभी तक जो का क्यों बंद ही है । मुझे लगा कि यद्यपि यह रहस्य है तो आसान किन्तु इसे सुलझाना मेरे बुद्धि कौशल से बाहर है । चेहरे धोखा भी देते हैं । जहर और लकवे से ग्रस्त इस रद्द का चेहरा वैसा ही है । इसकी चालाकियों से सुलझना मेरे बस की बात नहीं है । इसके लिए ब्योमकेश जैसी तेजधार वाली स्पष्ट वह कुशाग्र बुद्धि की जरूरत है । मन में हताशा थी । सोचा जांच की पूरी रिपोर्ट ब्योमकेश को दे दूंगा । इसी उद्देश्य से उठने वाला था कि मन में एक बात कौन गई । मैंने पूछा अच्छा यह तो बताइए क्या नंदूलाल बाबू किसी को पत्र लिखते हैं और उन बोला नहीं तो अलबत्ता हर महीने मनीआॅर्डर जरूर भेजते हैं किसे? अरुण ने फिर शर्म से मु नीचा कर लिया और बोला उसी जीजू महिला को । इस पर मोहन ने स्पष्टीकरण दिया वहाँ कभी नंदूलाल बाबू की वो समझा कितने कम मिलते हैं? काफी बडी रकम हमें नहीं मालूम क्यों भेजते हैं? उत्तर मेरे होठों पर आते आते रुक गया ऍन लेकिन मैंने मूव नहीं खोला और मोहन को वहीं छोडकर घर से बाहर आ गया । जब मैं घर पहुंचा तो आठ बजने वाले थे । ब्योमकेश अपने कमरे में था । मेरे घट कराने पर । द्वार खोलते ही बोला कैसा रहा हूँ, ऐसे खोला नहीं अगर मैं बैठ गया बे उनके लिए कागज को मैग्नीफाइंग ग्लास लगाकर पड रहा था । उसने मुझ पर तेज दृष्टि डालकर कटाक्ष किया । कब से इतने शौकीन बनने हो यहाँ इत्र फुलेल अरे भाई, इतने लगाया नहीं, केवल ढोकर लाया हूँ । मैंने पूरा प्रदान विस्तार से ब्योमकेश को बता दिया । ब्योमकेश ने बडे ध्यान से सब कुछ सुना । अंत में मैंने कहा मैं तो सूरज नहीं पाया दोस्त अब तुम्हें दखल देना होगा लेकिन मेरा मन कहता है इस इत्र की बारीकी से खोजबीन इस रास्ते को सुन जा सकती है रहस्य किसका? ब्योमकेश ने इत्र की रोई को सूंघते हुए कहा वाह क्या खुशबू है? शुद्ध अम् बुरीतरह है? हाँ, तो तुम क्या कह रहे थे? और वहाँ मित्र को अपनी कलाई पर रगडते हुए बोला हाँ क्या कह रहे थे? क्या सुलझेगा? मैंने कुछ हिचकी जाते हुए कहा । संभव है इत्र के बहाने नंदूलाल बाबू ब्योमकेश ठहाका मारकर हंस दिया । क्या ऐसी खुशबूदार चीज छिपाए जा सकती है, जिसकी खुशबू दूर तक फैलती है? क्या? तो मैं ऐसा कोई जिनमें मिला, जिसके आधार पर तुम कहते हो कि नंदलाल बाबू वास्तव में इसका प्रयोग करते हैं? नहीं, मेरे प्यारे दोस्त तो तुम गलत जगह दस तक दे रहे हो । दूसरी ओर देखने की कोशिश करो । यहाँ देखो कि वहाँ जहर भीतर कैसे आता है? कैसे नंदूलाल बाबू सबकी नजरों के सामने गटक लेते हैं? कोरे कागज रजिस्टर्ड पोस्ट क्यों आते हैं? उस महिला को पैसा क्यों भेजा जाता है? इन सब बातों पर तुमने ध्यान दिया । मैंने निराश स्वर में बोला, मैंने इन सभी बातों पर सोचा है, लेकिन वैसे का हल खोज लेना मेरे बस की बात नहीं तो फिर से सोचो । ध्यान लगाकर सोचो बस की बात नहीं है । का क्या मतलब? हताशा से तो हताशा ही मिलती है । यहाँ तुम भी जानते हो एक बार फिर से गहराई में डूबकर सोचूँ और जब तक हल ना मिले तब तक सोचते रहो । इतना कहकर उसने फिर लैंड उठा लिया । मैंने पूछा तो तुम कब जाओगे? मैं भी सोच रहा हूँ, लेकिन गहराई से नहीं सोच पा रहा हूँ । यह जालसाल और फिर से वहाँ मेज पर जुड गया । मैं उठकर ड्राइंग रूम में आ गया । आराम कुर्सी पर लेटकर दोबारा सोचने लगा । जो भी हो इतना मुश्किल तो नहीं लगता और ऐसा लगता है कि मैं यह सुझाव भी सकता हूँ । शुरुआत फिर से की जाए । कोरे कागज रजिस्टर्ड पोस्ट से क्यों? क्या उन कागजों में किसी गुप्ती स्याही से लिखा कोई संदेश है? यदि वहाँ है भी तो उससे नंदलाल बाबू को क्या लाभ? उससे उन्हें जहर की खुराक कैसे मिलती है? चलो मान लिया कि जहर कमरे में नंदूलाल बाबू तक पहुंच भी जाता है, पर उसे छुपाते कहा है और कैसे होम्योपेथी दवा की बोतलों में कैसे रखते हैं इतनी नजरों के सामने? और फिर उनके कमरे की जांच पडताल के लिए लोग भी तो आते जाते रहते हैं । वे कैसे करते हैं? यहां जब इन तमाम सवालों पर गहन चिंतन करते हुए अब तक मैं पांच रूट भी चुका था, किन्तु मैं एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं खोज पाया था । मैंने अंततः उम्मीद छोडी थी कि एक आए, फिर एक विचार हो जा । मैं उठ कर सीधा हो गया । क्या ऐसा संभव है और क्यों नहीं संभव हो सकता है? सोचने में अजीब जरूर है, लेकिन हो भी सकता है । ब्योमकेश भी कहता है कि यदि समस्या का एक अध्यात्मक रास्ता निकल सकता है, भले ही वह पटा हूँ, उस पर चलना है, बुद्धिमानी है । इस मामले में वही रास्ता अपनाना चाहिए । मैं ब्योमकेश के पास जाना ही वाला था कि वहाँ स्वयं आ गया । उसने मेरे चेहरे को देखा तो उत्सुकतावश पूछा, क्या कोई सुराग मिला? हाँ लगता तो है, वह बताओ क्या है? जब बताने की बारी आई तो मुझे कुछ हिचकिचाहट हुई । लेकिन मैंने उसे दरकिनार करते हुए कहा, देखो मुझे अभी अभी याद आया कि मैंने नंदूलाल बाबू की दीवारों पर मकडियों को देखा था । मुझे लगता है कि वे उन्हें पकडकर खा जाते हैं । ब्योमकेश की हंसी फूट पडी जी, तो तुम सच में एक महान विद्वान हो । तुम्हारा कोई जवाब नहीं रहे भाई । ये दीवारों की मकडियां यदि इन्हें कोई खाली लेता है तो शरीर पर कुछ दानों के अलावा कुछ नहीं होता । कोई नशा नहीं होता समझे आज सफर में मैंने कहा ठीक है तो मैं क्यों नहीं ढूंढ लेते हैं? ब्योमकेश गंभीर मुद्रा में कुर्सी पर बैठ गया । उसने चरोट सुलगाकर पूछा क्या तुम समझ पाए हो? कोरे कागज डाक से क्यों आते हैं? नहीं क्या तुम ने सोचा कि वह जो महिला को हर महीने क्यों भुगतान जाता है? नहीं क्या तो मैं अब तक यह भी नहीं सोच पाए हो कि नंदूलाल बाबू अश्लील कहानियों में कुछ लाइनें क्यों अंडरलाइन करते हैं? नहीं पर क्या तुम सोच पाए? हाँ, शायद कहते हुए ब्योमकेश नीचे रूडका एक जोरदार कस लगाया । उसकी आगे बंद थी । लेकिन जब तक एक तथ्य के बारे में पूरी तरह निश्चित नहीं हो जाता, मैं कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूँ । क्या है वह तथ्य? मैं जानना चाहता हूँ कि नंदलाल बाबू की जीभ का रंग कैसा है? मुझे लगा वहाँ मेरा उल्लू खींच रहा है । रुकी आवाजों मैंने कहा क्या मेरा मजाक उडा रहे हो? मजाक ब्योमकेश ने चौक कर आंखें खोली और मेरे चेहरे के भावों को पढकर बोला तो तुम तो नाराज हो गए । सच में मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ । पूरा रहस्य केवल नंदू बाबू की जीत के रंग पर ही निर्भर कर रहा है । यदि रंगलाल है तो मेरा अनुमान सही है । यदि वहाँ लाल नहीं है यहाँ तुमने देखने की कोशिश नहीं की है ना नहीं । मैंने उनकी जीविका रंग देखने की कोशिश नहीं की । ब्योमकेश ने हस्कर कहा जब की यहाँ देखना पहला काम होना चाहिए था । चलो कोई बात नहीं, एक काम करो । नंदूलाल बाबू के बेटे को फोन करके पूछ लोग वह सोचेगा । मैं मजाक कर रहा हूँ क्योंकि इसमें हाथों को हिलाया और एक कवी के अंदाज में बोलने लगा । दवना क्या घबरा कैसा हिम्मत है तो रोक जाना कैसा । मैं दूसरे कमरे में गया । फोन का नंबर ढूंढकर मैंने फोन किया । मोहन अभी तक वही था । उसी ने फोन उठाया और जवाब में बोला मैंने तो मैं यह नहीं बताया था क्योंकि मैंने नहीं सोचा था । यहाँ जानकारी इस रहस्य में कोई मायने भी रखती होगी । उसमें कहा नंदूलाल बाबू की जीभ का रंग सुर्ख लाल है या कुछ अटपटा जरूर है क्योंकि वो पानी वगैरह तो खाते नहीं लेकिन दुनिया क्यों पूछ रहे हो? मैंने ब्योमकेश को इशारे से बुलाया । उसने पूछा रंगलाल ही है ना । तो मिल गया । उसने फोन लेते हुए कहा डॉक्टर साहब, अच्छा हुआ कि आप मिल गए । आपकी समस्या सोलह गई । हाँ अजीत नहीं सुलझाई है । मैंने तो केवल थोडी मदद की है । मैं तो आप जानते हैं । उस जालसाज के केस में फंसा हुआ था । उसे भी मैंने सुलझा लिया है । आपको अधिक कुछ नहीं करना है । केवल लाल से आई की दवा और मैन को उस कमरे से हटा लीजिए । हाँ, बस ठीक है । यही आप आप समझ गए होंगे और कल समय निकालकर हमारे यहाँ आ जाइए । मैं पूरा खुलासा विस्तार से समझा दूंगा । नमस्कार जरूर । मैं आपका आभार अजीत तक जरूर पहुंचा दूंगा । मैंने आपसे नहीं कहा था कि उसका मस्तिष्क आजकल तेजधार की तरह हो गया है और ब्योमकेश ने हसते हुए फोन रख दिया । ड्राइंग रूम में लौटने पर मैंने जरा कठोर होते हुए कहा मैं सोच रहा हूँ मुझे भी टुकडो टुकडों में हल सूझ रहा है । पर तुम विस्तारपूर्वक मुझे बताओ कि तुमने कौन सा तरीका अपनाया? ब्योमकेश घडी देखकर बोला खाने का समय हो गया है । ज्योतिराम कभी भी बुला सकता है । फिर भी चलो । संक्षेप में तो मैं बताता हूँ तुम शुरू से ही गलत मार्ग पर चले हो । पहला प्रमुख काम यहाँ पता लगाना था कि वहाँ जहर कमरे में घुसता कैसे हैं । उसके पैर तो है नहीं । जो चल कर वहाँ पहुंचे । जाहिर है कि उसको लाने वाला कोई तो है, वहाँ कौन है? पांच लोग अंदर जाते हैं । डॉक्टर दो लडके, पत्नी और एक अन्य व्यक्ति ये चार व्यक्ति तो लाएंगे नहीं तो रहा वहाँ पांचवा व्यक्ति । यह पांचवां व्यक्ति कौन हैं? यहाँ पांचवां व्यक्ति पोस्टमैन हैं । वहाँ सप्ताह में एक बार आता है और जहर उसके जरिए कमरे में घुसता है । लेकिन लिफाफे में कोरे कागज के अलावा कुछ नहीं होता । यही तो चालाकी है । सब लोग यही सोचते हैं कि लिफाफे में ही शायद जहर भी होता हूँ । इसलिए लोगों का ध्यान पोस्टमेन पर नहीं जाता । पर यहाँ पोस्टमैन बहुत तेज आदमी है । वहाँ ऍम की दावत बदल देता है । किसी को पता नहीं चलता । रजिस्टर्ड पोस्ट से कोरे कागज भेजने का उद्देश्य केवल पोस्टमेन को नंदूलाल बाबू के कमरे में प्रवेश करवाना है । और फिर तुम ने अपनी जांच में एक और गोल यहाँ की की, जो महिला को भेजे जाने वाले पैसे को तुमने पेंशन मान लिया । यहाँ परंपरा कहीं भी नहीं रही । यह रकम जहर की कीमत है, जो वहाँ महिला पोस्टमेन के जरिए नंदूलाल बाबू तक पहुंचती है । अब देखो जहर नंदूलाल बाबू को हाथों में कैसे पहुंच जाता है और कोई शक में नहीं करता । लेकिन कमरे के अंदर भी निरंतर बहरा रहता है तो कैसे वे उसे खा लेते हैं और यहीं पर उसका लेखन काम में आता है । कागज और कलम स्याही सब कुछ वहीं है । जहर के लिए उन्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है । यहाँ काम वहाँ बैठे बैठे ही कर लेते हैं । वे काले बहन से लिखते हैं, बीवी बीच में लाल पेन से लाइन खींचते हैं और जब भी अवसर मिलता है, लाल पेन की निब को मुंह से चूस लेते हैं । जब पैन में से ही खत्म हो जाती है तब वे उसे दोबारा भर लेते हैं । अब तुम समझे कि उनकी जीविका रंग लाल क्यों हैं? लेकिन तुम नहीं हैं । कैसे जाना है कि वह लाल ही होगी? क्या वह काली स्याही नहीं हो सकती? आ रहे नहीं, तुमने देखा नहीं । काली स्याही का प्रयोग कितना अधिक है? क्या नंदलाल बाबू चाहेंगे कि उनकी कीमती चीज ही बर्बाद होती है । इसलिए लेखन के कुछ भागों को ही अंडरलाइन अर्थात लाल चाहिए का प्रयोग आप समझा कितना आसान लगता है? बेशक आसान है, लेकिन इस चालाकी के पीछे जो मस्तिष्क काम कर रहा था, उसे कम नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि इतनी आसानी नहीं । अब तक इतने लोगों को मूर्ख बनाया हुआ था । तुमने यह कैसे जा रहा हूँ? बहुत आसानी से इसमें दो ही बात ऐसी थी जो अटपटी थी, जिनका पूरे के से कोई लेना देना नहीं था । इसलिए उन दोनों पर ही मुझे शक हुआ । पहली कोरे कागजों का रजिस्टर्ड पोस्ट से आना, दूसरी नंदूलाल बाबू का धुआंधार लेखन और उसमें कहीं कहीं लाल से आई माफ करना । इन दोनों बातों पर जब मैंने गहनता से सोचना शुरू किया तो मुझे केस का सुराग अपने आप टकरा गया और देखो वहाँ जालसाज भी । इतने में दूसरे कमरे में टेलीफोन की घंटी बजने लगी । हम दोनों ही उस कमरे की तरफ दौडे । ब्योमकेश ने फोन उठाकर बोला, कहीं कौन जहाँ बोल रहे हैं वो डॉक्टर साहब जी कहिए? क्या नंदूलाल बाबू ने हंगामा पैदा कर दिया है? वे क्रोध से लाल पीले हो रहे हैं । यहाँ तो होना ही था । क्या वे अजीत को भद्दी गालियां दे रहे हैं? बेहुदा शब्द इस्तेमाल कर रहे हैं? यहाँ तो ठीक नहीं, गलत है । उन्हें रोका जाना चाहिए, क्योंकि उनका मोह यदि बंद नहीं किया जा सकता तो और कोई उपाय भी नहीं है । जी, जी जी नहीं नहीं जीत के लिए क्यों बुरा मनाएगा । वहाँ जानता है कि इस दुनिया में अच्छा काम निंदा हिलाता है । उसे मालूम है कि फुल्के गुलदस्तों के साथ साथ ईंट पत्थर भी मिलते ही है । यही दुनिया है तो ठीक सर विदा लेता हूँ नमस्कार ।

Ep 4: वसीयत का जंजाल - Part 1

बहुत चार वसीयत का जंजाल सुबह करीब दस बजे का समय होगा । मैं नहाने की सोच रहा था की बगल वाले कमरे में फोन की घंटी घनघना उठी है । ब्यूंग किसने जाकर फोन उठाया? फिर उसकी आवाज सुनाई दी, हलो कौन साहब, बिंदु बाबू नमस्कार कैसे है? आप सब ठीक है । नजर जी क्या गा? अरे वाह! मुझे आना ठीक है । कृपया पता बता दें थी गए हैं । मैं आधे घंटे में पहुंच रहा हूँ । ब्योमकेश कुर्ता पहनते हुए कमरे से बाहर आया । चलो एक जगह जाना है, मर्डर हुआ है । विधु बाबू ने हमें बुलाया है । मैंने उठकर पूछा कौन भी दो बाबू? डिप्टी कमिश्नर ब्योमकेश ने मुस्कुराकर कहा हाँ, वही पर कह नहीं सकता कि इसके लिए किसको धन्यवाद । दो । उन की बातों से तो नहीं लगता है कि उन्होंने स्वयं बुलाया है । शायद आदेश ऊपर से ही मिला है । हमें अपने कामकाज के सिलसिले में अक्सर पुलिस के डिप्टी कमिश्नर विधु बाबू से मिलना होता है । वे दिखावा ज्यादा करते हैं । जब भी मौका मिलता है तो अपनी शेखी में हम लोगों को अपना लेक्चर पिलाना कभी नहीं बोलते हैं और हर तरह से यह संकेत देने का प्रयास करते हैं कि ब्योमकेश अपनी क्षमताओं और कौशल में उनसे बहुत नीचे है । ब्योमकेश शेख से भरी बातों को बहुत ही विनय सुनता है और मान ही मन मुस्कुराता रहता है । विधु बाबू अपने बुद्धि और काबिले दिखाने के चक्कर में अक्सर पुलिस फाइलों कि अनेक गोपनीय सूचनाओं को भी लिख कर देते थे । इसलिए जब जब ब्योमकेश को पुलिस की जानकारी की जरूरत पडती, वहाँ वीरू बाबू का लेक्चर सुनने चला जाता है । विडियो बाबू अपने जवानी में इतने जडबुद्धि नहीं थे । वे अपने काम काज में चुस्त दुरुस्त थे । लेकिन पुलिस की घिसी पीटी नियमित कार्यप्रणाली की एक लैबर निरन्तरता ने उनके मस्तिष्क को भोथरा कर दिया था और उन्हें अब रूटीन गाडियों से ज्यादा कुछ सुझाव नहीं देता था । उनके सहयोगी उनके पीछे उन्हें बुद्धू बाबू कहा करते थे । बहरहाल, हम लोगों ने जल्दी से नाश्ता किया और निकल पडे बस से । हमें बहुत ना में लगभग बीस मिनट लगे । वहाँ जगह उत्तरी कलकत्ता के संपन्न इलाके में थी । हम लोग घर के नंबर देख रहे थे कि सामने के घर के आगे दो सिपाही खडे दिखाई दी है । हम समझ गए कि वही बता है जहाँ हमें जाना है । ब्योमकेश ने जब अपना नाम बताया तो वे सिपाही एक और हट गए । बाहर से वहाँ दो मंजिला मकान साधारण लग रहा था लेकिन अंदर जाकर देखा तो काफी विशाल दिखाई दिया । बरामदे के बाहर सीढियों के किनारे फूलों के गमले, अंदर गैलरी में पीतल के सजावटी गमलों में ताड के पौधे, विशाल एक्वेरियम में रंग बिरंगी मछलियां कुल मिलाकर एक संपन्न परिवार के चिन्ह दिखाई दी है । सेंट्रल हॉल का मार्ग दोनों और बालकनियों तक जाता था । तीसरा मार्ग सीढियों से केंद्रीय कक्ष की तरफ जाता था । हम लोग राई और के कमरे की और बडे जहाँ लोग एकत्र थे । कमरे के बीचोंबीच अपना भारी शरीर लिए वीरू बाबू कुर्सी पर बैठे बार बार अपने सफेद मुझको ताव देकर अपनी मौजूदगी का ऐलान कर रहे थे । नौकर से पूछताछ हो चुकी थी । खानसामे की बारी थी आंखों में आंसू लिए वह विदु बाबू के प्रत्येक प्रश्न पर भय से उछलकर कांपने लगता था । कुछ सिपाही खानसामा के पीछे खडे थे । हमें देखते ही वीडियो बाबू के चेहरे पर हल्की नाराजगी का भाव दिखाई दिया तो आए हैं । आप लोग बैठे हैं तो ज्यादा कुछ नहीं है । साधारण बॉर्डर है, कोई उलझन नहीं है । साफ पता चल रहा है कि किसने ऑर्डर किया । वारंट भी जारी हो गया है । लेकिन चीज का आदेश था कि आपको बुलाया जाए । इसलिए उन्होंने जोर की आवाज में गला साफ करते हुए कहा, हमारे डिपार्टमेंट में सवाल तो किया जाता नहीं । वो जो क्या बाहर गए हैं तो देख ले । एक बार हालांकि कुछ है नहीं । वाकई ब्योमकेश बोला सर, क्योंकि स्वयं अपने चार्ज लिया है । मैं बोला क्या नया देख पाऊंगा? लेकिन क्योंकि कमिश्नर्स आपने स्वयं आदेश दिया है तो मैं इतना ही कर सकता हूँ कि यहाँ रहकर आपकी सहायता का रूप वहाँ भी यदि आपकी अनुमति हो तो । लेकिन हुआ क्या? मर्डर किसका हुआ है? खुशामद पहाड को भी पिछला देती है । वीडियो बाबू के चेहरे से रूखापन साफ हो गया । वे बोले कॅालेज वो इस घर के स्वामी है । उनकी हत्या रात को सोते समय कर दी गई । हत्या का तरीका थोडा विचित्र है इसलिए कमिश्नर परेशान है । लेकिन वास्तव में वहाँ बहुत आसान है मोदी लाल जो कराले बाबू का एक भतीजा है, उसी ने की है घर दूध और तभी से फरार है । क्योंकि इसने विनय भाव से कहा मेरे जैसा सीमित बुद्धि वाला व्यक्ति इन गुड बातों को तभी समझ सकता है जब उसे विस्तारपूर्वक समझाया जाए । क्या अब एक बार पूरा व्रतांत शुरू से बता नहीं क्रपा करेंगे? विदु बाबू के चेहरे पर असंतोष के बादल अब पूरी तरह छंट गए शान से मुझे और बोले थोडा रोगों जरा में इससे पूछताछ पूरी कर लो । फिर में सहारे घटना बताता हूँ । खानसामा अब भी वही खडा काम रहा था । विधु बाबू उसे हडकाते हुए बोले सावधानी से जो कहना सोच समझकर कहना एक गलती हुई नहीं कि यहाँ कडी देख रहे हो थी क्या? खानसामा ने घबराकर कहा जी जर बी तूने अपनी शेष पूछताछ जारी रखते हुए कहा, कल रात जब तुमने मोतीलाल को घर से बाहर जाते देखा तो समय क्या हो जाता है? मैं मैं मैं ही नहीं देख पाया । सर, लेकिन उस समय एक या दो बजा था । एक बात बोलो क्या बजाता? ये एक या दो सर । उस समय रात के करीब बारह या एक बज रहा था । अच्छी तरह सोचो । विडियो बाबू क्रोध में बोले एक बार पब एक बार पक्का करके एक बार बोलो क्या आधी रात थी, एक बच्चा था या दो बजा था खानसामा गले में धूप सडक कर बोला यस सर! आधी रात उत्तर सुनकर बैठे सिपाही ने कागज पर नोट कर लिया । वहाँ चोरों की तरह बिना आवाज किए भागा था । है ना जी सर जी सर, बात ये है कि अकसर बातों को वो बाहर रहते हैं । हाल तो बात मत करो । जो मैं पूछ रहा हूँ उसी का जवाब दो । क्या तुमने मोतीलाल को नीचे आते देखा था? नहीं अगर मैंने उन्हें घर से बाहर जाते देखा था तो उन्हें उन्हें सीढी से नीचे आते नहीं रहेगा । था कहाँ है तो उस समय फॅार बोलते क्यों नहीं कहा है तो उस समय आतंकित स्वर में खानसामा हकलाकर बोला मुंह माईबाप सरकार घर के सामने जो चाल है उसमें मेरे गांव के साथ ही रहते हैं । रात को काम पूरा होने के बाद मैं थोडी देर के लिए उनके पास बैठता हूँ । वो तो यहाँ बात है । तो उस समय अपने दोस्तों के साथ गाँव अजय के नंबर रहते हैं । है ना जी माईबाप तो आपके दरवाजा खुला पडा था क्यों खानसामा भय से कम गया । धीरे से बढ बढाया जी सर विधु बाबू त्योरी चढाए । कुछ देर बैठे रहे । फिर बोले तो अपने अड्डे है । तुम देख सकते थे कि घर में कौन गुजरा है और कौन बाहर जा रहा है जी सर, घर से कोई और बाहर नहीं निकला सर, अच्छा तो यहाँ बताओ । तुम जब लौटे तो क्या समय था सर? मोदी बाबू के जाने के आधे घंटे बाद में वापस आ गया । तब तक सुकुमार बाबू लॉर्ड आए थे क्या शो कुमार वहाँ कहाँ से लौटे थे यह मुझे नहीं मालूम है । अगर वे कितने बजे लौटे थे । मोदी बाबू के जाने के बीस पच्चीस मिनट बाद विधु बाबू की त्योरियां और चढ गई । उन्होंने कुछ देर सोचकर कहा तो आप जा सकते हो । हमें जरूरत हुई तो तुम है फिर आना होगा । खानसामा ने झुककर फर्जी सलाम किया और खुश होकर नदारद हो गया । विधु बाबू ने सभी पुलिस अधिकारियों से कमरा खाली करने को कह दिया । कमरे में केवल ब्योमकेश और मैं रह गए । उन्होंने हमारी और घोलकर देखा देखा आप लोगों ने एक आदमी ने सबको जो कैसे उंगलिया साहब हो जाता है केवल ऍम करना आना चाहिए । चलिए हाँ तो मैं आपको बताऊँ । जब तक मैं पूरी कहानी खोलकर नहीं बताया था तब तक आप के समझ में तो आने से रहे तो भी गए । मुझे ही कहना होगा । मैंने सभी लोगों से पूछताछ कर पूरा व्रतांत पता कर लिया है तो ध्यान से सुनी है । ब्योमकेश ने ध्यान से सुनने के लिए अपना सर नीचे की ओर झुका दिया । तब विधु बाबू ने कहना शुरू किया घर के मालिक का नाम कराली बाबू था । वे निसंतान विदर्भ है । काफी संपत्ति के मालिक कराली बाबू के कलकत्ता में चार पांच मकान थे और बैंक में लाखों रुपए की संपदा थी । उनका परिवार तो नहीं था, पर उनके संरक्षण में पांच लोग पाल रहे थे । इन पांचों में इनके तीन भतीजे थे मोतीलाल, माकन, लाल और फणिभूषण तथा दो उनकी स्वर्गवासी पत्नी के भांजी । भांजे जाते सत्यवती और सुकुमार । ये पाँचों इसी घर में रहते थे । उनका दुनिया में और कोई नहीं था । कराली बाबू क्रोधी स्वभाव के व्यक्ति थे । उन्हें गठिया की शिकायत थी । इसके अलावा भी कई अन्य रोग लग गए थे, इसलिए वे अपने घर से बाहर नहीं जाते थे । लेकिन पूरा घर उनसे डेट की तरह डरता था । वे सनी कि व्यक्ति थे और अपनी सडक । मैं अपनी वसीयत बदलते रहते थे । आज के एक नाम नाराज हुए तो दूसरे के नाम तो इस प्रकार अब तक तीन वसीयत बना चुके थे, जो अब उनके लॉकर से प्राप्त हुई है । पहली वसीयत में उन्होंने माखन को अपनी सारी जायदाद का वारिस बनाया । दूसरे में मोतीलाल को और तीसरी तथा अंतिम वसीयत में सबकुछ सु कुमार के नाम कर दिया । यह तीसरी वसीयत परसों लिखी गई । अब सारी संपत्ति का वारिस सुकुमार है । हर बार कोई न कोई उन की नाराजगी का शिकार हो जाता तो कराली बाबू उसका नाम कार्ड देते हैं । इसी संदर्भ में कल दोपहर कराली बाबू और मोतीलाल के बीच झडप भी हुई । मोतीलाल स्वभाव से झगडालू है और यह जानकर की वजह से उन को बेदखल कर दिया है । वहाँ कराले बाबू के मुंह पर गाली गलोच कराया था । इसके बाद आधी रात के करीब मोतीलाल चुप चाप घर से बाहर चला गया । नौकर और खानसामा दोनों ने उसे बाहर जाते देखा और सुबह को कराले बाबू मत पाए गए । पहले कोई नहीं जान पाया कि उनकी मृत्यु कैसे हुई । मैंने अगर पता लगाया उनकी मृत्यु हुई से की गई थी, जिसे गले और रीड की संधि तैयार के मेंदोला और विराट बना के मध्य में हो गया था । जब विधु बाबू रुके तो ब्योमकेश ने सिर उठाया क्या आश्चर्य रीड की हड्डी और मेन बुला के बीच में सोई खूब कर हत्या । यह तो अंग्रेजी उपन्यास ब्राइड ऍम जरूर जैसा है । एक्शन रुकने के बाद वहाँ बोला, आपने तो पहले ही मोतीलाल के नाम वारंट जारी कर दिया है । क्या वहाँ कहीं काम काज करता है, उसके बारे में क्या कोई जानकारी है? नहीं कुछ नहीं । विधु बाबू बोले आठवीं तक पढा बाद में आवारा गर्दी करता रहा । आपने कहा था केवल पर जिंदा है और बाजारों घटिया जीवन जीता है और माखन लाल क्योंकि इसमें पूछा ये मैं भी वैसे ही है लेकिन इतने घटिया नहीं है । गांजा सुनवा पीता है पर पक्का गंजेडी नहीं हुआ है । और फणिभूषण ये महाशय लंगन दिन है वो कहावत देना वो कहावत है ना । लंगडा और अंडा क्या गोल नहीं दिला सकता । पर ये ठीक था गया लंगडा होने के कारण वहाँ घर से बाहर नहीं जा सकता । तीनों भाइयों में यही है जिसमें मानवीय गुण दिखाई दे जाते हैं । और ये सुकुमार ये क्या है? सो कुमार अच्छा लडका है । मेडिकल कॉलेज में फाइनल ईयर का छात्र है । उसकी बहन सत्यवती भी कॉलेज जाती है । ये दोनों ही वद्ध महाशय की देखभाल करते थे । मेरे ख्याल से अभी तक शादी किसी की भी नहीं हुई है । सही है लडकी की भी नहीं । ब्योमकेश उठ खडा हुआ और बोला सर चलिए एक बार घर का मुआयना कर लिया जाए । मैं समझता हूँ अभी इलाज को हटाया नहीं गया है नहीं अगर विदु बाबू अनिच्छा से उठे और आगे आगे सीढियाँ चढने लगे । सीढियाँ दोनों ओर से ऊपर जाकर एक जगह मिलती है और प्रथम चलने तक पहुंचती है । सीढियों के ठीक नीचे के कमरे को देखकर ब्योमकेश ने पूछा उसमें बहुत रहता है । विधु बाबू बोले यहाँ मोदी लाल का कमरा है । अपने इच्छा अनुसार वहाँ नीचे के कमरे में रहना पसंद करता है । वृद्ध महाशय है । अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे और रात में नौ बजे के बाद बाहर रहने के विरोधी थे । उनका काम राठी इसके ऊपर है तो और वो काम ना । ब्योमकेश ने नीचे के कोने वाले कमरे को दिखाते हुए कहा माँ घर लाल रह गए हैं । उसमें मोतीलाल को छोडकर ये सभी लोग शायद घर में ही होंगे । हाँ और मैंने सब कोई स्पष्ट आदेश दे दिया है । मेरी आज्ञा के बिना कोई घर छोड कर नहीं जाएगा । बाहर सिपाहियों का पहला है ब्योमकेश स्वीकारोक्ति में कुछ बुदबुदाया । पहले चलने पर सीढियों के ठीक सामने बंद दरवाजे वाले कमरे को दिखाकर विदु बाबू बोले यहाँ कराले बाबू का सोने का कमरा है । कमरे की दहलीज पर ब्योमकेश ने झुकते हुए पूछा यह कैसे निशान हैं? वीडियो बाबू ने भी नीचे झुककर देखा । फिर उठते हुए बेफिक्री से बोले चाहेंगे निसार है सत्यवती रोजाना सुबह कराली बाबू को चाहे लेकर जगह में आती थी । आज सुबह कराली बाबू ने कोई उत्तर नहीं दिया तो उसने देखा कि उनकी मृत्यु हो गई है । वो समय संभव हडकंप में कुछ चाहे जमीन पर गिर गई थी हो तो वह पहली इंसान थी जिसे मृत्यु का पता लगा । हाँ, कमरा बंद था । वीरू बाबू ने ताला खोला और हम लोग अंदर आए । वहाँ मध्यम साइज का कमरा था । सामान काम पर करीने से लगा था । एक मिर्जा पूरी कालीन बिछा हुआ था । कमरे के बीच में रखी मेज पर हादसे कहरा गया । मेजपोश बिछा था कोने में हैंडर पर तय किया हुआ दो दी गुड का लडका था । नीचे पॉलिस्टर चमकते जूतों की कतार लगी हुई थी । बाई और पलंग था जिसमें सफेद चादर के नीचे जैसे करोड से कोई सो रहा था । चादर उसके कानों तक देखी हुई थी । पलंग के पास एक स्टैंड पर दवाओं की बोतल और दवा नापने वाले कब कतार में रखे थे । पलंग के सिरहाने एक छोटी मेज पर पानी का जगह और उल्टा गिलास रखा था । कमरे को देखकर लगता था कि उसका स्वामी अपने कमरे को स्वच्छ और टिप टॉप रखना पसंद करता था । कमरे की स्वच्छता देखकर यह अनुमान लगाना कठिन था कि इसमें पिछली रात में इसके स्वामी की हत्या हो गई है । दीपावली पर चाय का प्याला रखा हुआ था । ब्यू उनके इसने एक्शन उस कप का मुआयना किया और मन ही मन बडबडाने लगा । जैसे अपने से ही कुछ कह रहा हूँ । आधी चाहे कब से गिरकर प्लेट में ही है । कब आधा बना है फिर नीचे कैसे ही नहीं । बीजू बाबू ने ब्योमकेश का बडबडाना सुनकर एक गहरा निराशा का स्वास्थ छोडा और बोले रहे भाई, यही तो मैंने बताया था वह लडकी मैंने सुना है । ब्योमकेश बोला पर क्यों? बीजू बाबू ने इस प्रश्न का उत्तर देना उचित नहीं समझा, लेकिन बिच कहकर वे दूसरी और खिडकी से बाहर देखने लगे । ब्योमकेश ने बहुत ही सावधानी से चाय के प्याले को उठाया । चाय के ऊपर सफेद परत जम गयी थी । उसने पास में रखी चम्मच से चाय को हिलाकर उसका एक घुट लिया । मूव पहुंचा और पलंग के पास पहुंच गया । काफी देर तक लाज पर नजर बनाने के बाद ब्योमकेश ने पूछा लाश को तो छुआ गया न होगा है ना वैसी है जैसे पाई गई थी विडियो बाबू ने जो अब तक खिडकी में से ताक रहे थे । जवाब दिया हाँ, केवल चादर को सिर तक ढक दिया है और मैंने वहाँ सुई निकालना है । ब्लॅक चादर को नीचे की जा एक दुबली पतली वृद्ध का आयात करवट से लेती थी । लगा जैसे गहरी नींद में अब हो रहे हैं । उनके सफेद बालों के नीचे माथे की त्वचा में लाइनें और झुरियां थी । इसके अलावा चेहरे पर किसी दर्द का भाव नहीं था क्योंकि इसने शरीर को हिलाये डुलाए बगैर बारीकी से जांचा । उसने पीछे गर्दन के ऊपर बालों को उठाकर देखा । सावधानी से नाक के पास कुछ देखने के बाद उसने विदु बाबू को बुलाया और बोला, सर, मुझे विश्वास है कि आपने पूरे शरीर का अच्छे से मुआयना कर लिया होगा, लेकिन मैं आपका ध्यान दो बातों पर लाना चाहता हूँ । गर्दन में सोई घुटने के तीन निशान हैं । बीजू बाबू ने पहले नहीं देखा था, अब उन्होंने देखा तो बोले हाँ, लेकिन इसमें खास बात किया है । जाहिर है कि वर्टिब्रा और मेडल ला के संदेश स्थल को ढूंढने में हत्यारे को तीन बार कोशिश करनी पडी हो और दूसरी बात क्या है? क्या आपने नाग देखी है? नाथ जी नाक । बीजू बाबू ने झुककर नाक को देखा । मैंने भी झुककर नजदीक से देखा । नाक के छेदों के इर्द गिर्द कुछ छोटे छोटे चिन्ह है जैसे सर्दियों में त्वचा फटने से हो जाते हैं । विधु बाबू ने कहा, शायद उन्हें सर्दी जुकाम हुआ हो । उस स्थिति में बार बार नाग पहुंचने पर कुछ चेंज हो जाते हैं । पर इस से इस केस का क्या मतलब निकलता है? भाई, यहाँ तो बताओ । उन्होंने मजाक के लहजे में कहा, कुछ नहीं कुछ नहीं । चलिए हम लोग बगल के कमरे में चलते हैं । शायद वह कराली बाबू का काम करने का कमरा था, जिसमें में अधिकांश समय बिताते थे । कमरे में मेज, कुर्सियां, टाइपराइटर और बुक्स थे । बीजू बाबू ने मेज पर लगे लॉकर की और इशारा करके बताया उनकी सभी वासी रहते । यहीं से मिली है ब्योमकेश कमाने का । फिर से मुआयना किया नौकर में और कोई कागज नहीं मिला । कमरे की दूसरी ओर छोटा सा टॉयलेट था । ब्योमकेश ने झांकर देखा और वापस आते हुए बोला, और कुछ देखना नहीं है । चलिए हम लोग सुकुमार बाबू के कमरे में चलते हैं । वही ना ऍफ दार है । अरे यहाँ क्या में एक बार उस को देख सकता हूँ । बीजू बाबू ने जेब से एक लिफाफा निकालकर उसमें से सोई को निकाल कर दो उंगलियों में पकडकर दिखाया । वहाँ साधारण सोई से बडी थी जैसे कि मोटे धागे की सिलाई में इस्तेमाल होती है । सूरी के छेद में दाग अटका हुआ था । ब्योमकेश ने बडी बडी आंखों से उसे देखा और धीरे से बोला, आश्चर्य! बडा आश्चर्य है कि आज चलते हैं । यह धागा देख नहीं रहे । यह काला देश में धागा हाँ, वो तो मैं देख रहा हूँ । पर इस वर्ष के लिए यह तो बताइए कि इसमें आश्चर्य किया है । सुई में धागा है । ब्योमकेश ने एक नजर विदु बाबू के चेहरे पर डाल कर स्वयं भी अपना मजाक बनाने लगा । वो वाकई अब इसमें क्या आश्चर्य? सुई में धागा नहीं होगा तो क्या होगा? सोयेगा और काम भी किया है । उसने सोई को लिफाफे में रखते हुए कहा और विधु बाबू को लिफाफे लौटा दिया । चलिए अब सु कुमार बाबू के कमरे में चलते हैं । गलियारे में दाई तरफ कोने का कमरा सुकुमार बाबू का था । दरवाजा बंद था । विदु बाबू ने खटकटाया बगैर धक्का देगा खोल दिया । सुकुमार मेज पर को नहीं रख कर बैठा था और हाथों में सिर को पकडे हुए था । हमारे प्रवेश करते ही वहाँ उड गया । एक और पलंग था । दूसरी ओर मेज, कुर्सी और बुक्स था । ऊंचे डेस्क दीवार से लगे हुए थे । मेरे अनुमान में सु कुमार की उम्र चौबीस पच्चीस के लगभग रही होगी । देखने में आकर्षक शरीर गठा हुआ लेकिन घर में भयानक दुर्घटना के प्रभाव ने पूरे शरीर को पीला करके त्वचा को सुखा दिया था । आंखों के नीचे सियाह गोले उभर आए थे । हम तीनों को अंदर आते देखकर उसकी आंखों में भर तैरने लगा । विधु बाबू ने कहा, सुकुमार बाबू, ये ब्योमकेश बक्शी है । ये आप से बात करना चाहेंगे ।

Ep 4: वसीयत का जंजाल - Part 2

सुकुमार ने गला साफ करते हुए कहा बेटी बैठे ना? ब्योमकेश उसकी मेज के सामने बैठ गया । उसने मेरे पर रखी पुस्तक ग्रेज एनाटोमी को उठाया और उसके प्रश्न पलटते हुए बोला, काल आधी रात को आप कहाँ से आए थे? सुकुमार बाबू सुकुमार चौक पडा । फिर धीमी लडती । आवाज में बोला मैं राहत को फिल्म देखने गया था । पृष्टों को उलटते हुए बिना सिर उठाए ही ब्योमकेश ने पूछा कौन से सिनेमा हॉल में चित्र वीडियो बाबू ने नाराजगी भरे स्वर में कहा आपको यहाँ मुझे पहले बताना चाहिए था । क्यों नहीं बताया आपने सब? मैंने सोचा था कि यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है । इसलिए विधु बाबू ने और भी तेज आवाज में कहा यहाँ हम तय करेंगे कि वहाँ महत्वपूर्ण है नहीं की आप के बाद कोई सबूत है कि आप चित्र सिनेमा गए थे । सुकुमार ने कुछ शरण सिर्फ गायब हो जा । फिर उठकर रॅाक उडता के पॉकेट से गुलाबी रंग की एक चिट्ठी निकालकर विदुआ बुकी और बढा दी । वहाँ सिनेमा के टिकट का आधा भाग था । वीडियो बाबू ने उसे ठीक से जाता और आपने डायरी खोलकर रख लिया । कुछ और रिश्तों को पलटते हुए ब्योमकेश ने पूछा, शाम के शो के बजाय नौ बजे के शो में जाने का आपके पास कोई विशेष कारण था । सुकुमार का चेहरा सफेद पड गया फिर भी उसने धीरे से कहा, नहीं, ऐसा कोई कारण नहीं था । ऐसा कुछ भी नहीं था । ब्योमकेश बोला, निश्चित रूप से आपको मालूम था कि कराली बाबू को रात में किसी का देर से आना पसंद नहीं था । शिव कुमार के पास कोई उत्तर नहीं था । वह चुप चाप मलिन मुख लिए खडा रहा । एक का एक ब्योमकेश नेसू कुमार को अपनी आंखें खोलकर देखा और पूछा, आपने अंतिम मार कराली बाबू को कब देखा था? सुकुमाल ने मु में ठीक से करते हुए कहा, कल शाम करीब पांच बजे क्या आप उनके कमरे में गए थे? वहाँ क्यों? सुकुमार ने अपनी आवाज को नियंत्रित करने का प्रयास किया और धीमे स्वर में कहा, मैं काका से उनकी वसीयत के बारे में कुछ कहने के लिए गया था । उन्होंने अपनी वसीयत में मोटी दा आपको बेदखल कर के सारी संपत्ति मेरे नाम कर दी थी । इसको लेकर दोपहर में उनकी और मोदी दा के बीच झडप भी हुई थी । मैं काका के पास यह कहने गया था कि मैं नहीं चाहता की सारी संपत्ति केवल मेरे नाम की जाए बल्कि हम सबको बराबर हिस्से में विभाजित कर दी जाए फेल जब उन्होंने मेरी पूरी बात सुनी तो क्रोध में उन्होंने मुझे कमरे से निकल जाने का आदेश दिया । आप निकल आए हाँ, उसके बाद मैं फनी के कमरे में गया । बात करते करते काफी देर हो गयी थी । मेरा मन बडा विचलित हो रहा था तो सोचा क्यों न कोई फिल्म देख लू फडी ने भी मेरे प्रस्ताव का अनुमोदन कर दिया । इसलिए मैं चुपचाप निकल गया यह सोचकर कि काका को पता भी नहीं चलेगा । प्रत्यक्षतः था विडियो बाबू सु कुमार की दलील पर पूर्णतः संतुष्ट दिखाई दी है । लेकिन ब्योमकेश के चेहरे पर अब भी शिकन मौजूद थी, जिसे देखकर विदु बाबू ने कुछ टुकडे स्वर में कहा ब्योमकेश बाबू, आप अपनी मंशा क्यों नहीं बताते हैं? क्या आप सुकुमार बाबू पर हत्यारा होने का शक कर रहे हैं? ब्योमकेश उठ खडा हुआ और बोला आ रहे हैं, नहीं नहीं, बिल्कुल नहीं । चलिए हम लोग अब सुकुमार बाबू की बहन के कमरे में चलते हैं । विडियो बाबू ने अब रुकी आवाज में कहा, ठीक है चलिए लेकिन वहाँ बेचारे कुछ नहीं जानती और दरअसल में उस बेचारी लडकी को बेवजह क्या इस सब में घसीटना जरूरी है । मैंने पहले ही उसका बयान ले लिया है । ब्लॅक स्वर में उत्तर दिया जी हाँ जरूर जरूर । फिर भी बस एक बार यदि मैं लडकी का कमरा गलियारे से दूसरे छोर पर था, विदु बाबू ने दरवाजा खटखटाया । लगभग आधे मिनट बाद एक सत्रह अठारह वर्ष की लडकी ने दरवाजा खोला और हमें देखकर एक और हो गई । कुछ संकोच के साथ हम लोग कमरे के अन्दर प्रविष्ट हुए । हमारे पीछे सुकुमार जो हमारे पीछे पीछे आ रहा था, कमरे में घबराया हुआ आया और पलंग पर लेट गया । प्रवेश करते समय मैंने लडकी को देख लिया था । वहाँ कद में ऊंची दुबली और सावली लडकी थी । बार बार होने से उसकी आंखें सूज आई थी इसलिए यह कहना मुश्किल है कि वह सुंदर कही जाएगी या नहीं । उसके बाल उलझे और इधर भी दर्द है । शोक में डूबी एक लडकी से यू पूछताछ मेरे लिए भी क्रूरता से कम नहीं थी और इसके लिए मन ही मन में भी उनके से नाराज भी हो रहा था । लेकिन फिर मैंने ब्योमकेश की आंखों में संकोच के बावजूद एक प्रकार की मजबूरी की झलक भी देखी । ब्यू उनके इसने विनम्रता से हाथ जोडकर अभिवादन करते हुए कहा, शमा करें, मैं आपको थोडा कष्ट दूंगा । मैं समझता हूँ आपको कोई परेशानी नहीं होगी । घर में जब ऐसी दुख भरी घटना घटती है तो आपने कठिनाइयों के साथ साथ पुलिस की तस्तीर जैसी छोटी मोटी दिक्कतें बर्दाश्त करने पड जाती है । विधु बाबू ने फौरन विरोध प्रकट किया । बोखला आकर घर जाए पुलिस को क्यों बदनाम करते हैं? आप पुलिस में नहीं है । ब्योमकेश ने विडियो बाबू की आवाज को अनसुना करते हुए अपने उसी लहजे में कहा, अधिक कुछ नहीं वही कुछ नियमित प्रश्न दबाया बैठ जाए और उसने कुर्सी की और संकेत क्या? लडकी ने ब्योमकेश को तिरस्कृत नजरों से देखा और शोक ग्रस्त टूटी आवाज में बोली आपको जो पूछना पूछिए, मैं बैठे बिना ही जवाब दे सकती हूँ । आप बैठना नहीं चाहती तो ठीक है । मैं ही बैठ जाता हूँ क्योंकि इसने बैठकर एक नजर कमरे के अन्दर डाली । सुकुमार के कमरे की तरह यह भी साधारण रूप से सजा कमरा दिखाई दिया । कहीं किसी प्रकार का नंबर नहीं, साधारण पलंग, मेस, कुर्सी, एक बुक सेल, एक अतिरिक्त वस्तु केवल दराज वाली ड्रेसिंग टेबल थी । ध्यान लगाने के लिए ब्योमकेश ने कमरे की छत में लगे बीमों को देखते हुए कहा, आप ही है जो रोजाना करालु बाबू को सुबह की चाय पहुंचाती थी । लडकी ने स्वीकारोक्ति मैं अपने सिर को हिला दिया । ब्योमकेश बोला तो आज सुबह जवाब चाहे लेकर कराली बाबू के पास गई थी । तब आपको उनकी मृत्यु का पता लगा । लडकी ने फिर स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया आपको यहाँ पहले पता नहीं था विधु बाबू फिर बडबडाए बेकार । प्रश्न बिल्कुल व्यर्थ और मूर्खों वाला प्रश्न है । ब्योमकेश ने फिर अनसुना करते हुए अपनी बात जारी रखी । क्या करा ले बाबू अपने कमरे का दरवाजा रात में खुला ही रखते थे । हाँ, घर में किसी को भी दरवाजा बंद करने की अनुमति नहीं थी का कभी रात में सोते समय दरवाजा खुल्ला ही रखते थे । अच्छा फिर जैसे अब ठहरे का पैमाना छूट गया हो । विधु बाबू दिलाए बास बहुत हुआ अब चलिये आज है ऐसे फिजूल सवालों से बेचारी लडकी को परेशान करने की कोई जरूरत नहीं । आपको पता ही नहीं राॅबिन कैसे किया जाता है । इस घटना ने ब्योमकेश के जहर एसे विनम्रता के आवरण को उतार फेंका । एक घायल बात की तरह विधु बाबू पर टूट पडा । उसने कडती सभी आवाज में कहा यदि आप इसी तरह मेरा काम में बाधा पहुंचाते रहे तो मुझे कमिश्नर से शिकायत करनी पडेगी कि आप मेरे जांच पडताल में बाधा पहुंचा रहे हैं । क्या आप जानते हैं कि ऐसे के पुलिस के कार्यक्षेत्र में नहीं पढते हैं, बल्कि सीआईडी के होते हैं? विधु बाबू एकदम सन्न रह गए । आश्चर्यचकित इतना कि कोई उन्हें थप्पड भी मार देता तो नहीं होते वे कुछ शहर आग्रह नेत्रों से ब्योमकेश को घूमते रहे । कुछ बोलने को उतावले दिखे, पर अपने आप को जब्त कर लिया और क्रोध में पैर फटकारते हुए कमरे से बाहर निकल गए । ब्योमकेश दोबारा ध्यान केंद्रित करके फिर पूछा, आपको करा ले बाबू की मृत्यु का पहले पता नहीं लगा । सावधानी से सोच कर उत्तर दीजिए । मैंने सोच लिया है । मुझे पहले पता नहीं लगा । उसकी आवाज में एक प्रकार की जिद का ऐसा था । ब्योमकेश कुछ देर शांति से बैठा रहा, पर उसकी भृकुटी तनी हुई थी । वहाँ फिर बोला, चलिए अब मुझे यहाँ बताई है कि कराली बाबू चाय में कितनी चीनी पीते थे । लडकी बडी बडी आंखों से ताकती रही । फिर आहिस्ता से बोली सीरी काका! अपनी चाहे मैं काफी जी नहीं पीते थे । तीन चार चम्मच चीनी दूसरा प्रश्न बंदूक से निकला बुलेट जैसा था । तब आप ने सुबह के चाय में चीनी क्यों नहीं डाली? यह सुनते ही लडकी का चेहरा सूख गया । उसने चारों और भय से देखा । फिर आपने होटों को काटते हुए अपने पर नियंत्रण किया और बोली शायद मैं भूल गयी । कल से मेरी तबियत ठीक नहीं थी क्या आप कला आप कॉलेज गई थी? हाँ भर्राई आवाज में अब भी जीत थी । कुर्सी से उठते हुए ब्योमकेश बहुत आहिस्ता से बोला यदि आप सब कुछ मुझे बता रहे हैं तो हमें बहुत लाभ होगा । आप का भी फायदा होगा । लडकी वैसे ही हूँ । दवाई खडी रही । बोली कुछ नहीं । ब्योमकेश ने दोहराया बताने के करवा करेंगी । लडकी ने धीरे से एक एक शब्द नापते हुए कहा । इसके बाद आगे मुझे कुछ नहीं मालूम । ब्योमकेश के मुंह से एक निश्वास निकल गया । बातचीत के दौरान इसकी निगम मेज पर रखी सिलाई की टोकरी पर पड रही थी । वहाँ उठकर उसके पास पहुंच गया । उसने पूछा मुझे लगता है यहाँ आपकी है हाँ ब्योन के इसने टोकरी को खोलकर देखा । अंदर एक अधूरे मेजपोश के साथ रंगीन धागों के गुच्छे पडे हैं । ब्योमकेश ने उन बच्चों को हाथ में उठाया और मन ही मन बडबडाते हुए गिनने लगा । लाल नीला, काला, अच्छा काला भी । उसने धागों को टोकरी में रखते हुए कुछ और भी थोडा उसने तहत ये मेजपोश को भी खोल कर देगा और लडकी को देखते हुए पूछा सोई कहाँ नहीं? लडकी तब तक पत्थर की मूर्ति बन चुकी थी । उसके मुंह से केवल एक शब्द निकला सुई । ब्योमकेश ने कहा हाथ हुई जिससे आप सिलाई करती है, वह कहाँ गई? लडकी कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कह नहीं पाई । एकाएक वहाँ मुडी और ज्यादा शब्द बडबडाती हुई पलंग पर बैठे सुकुमार की और दौडी और उसकी गोद में सिर रखकर फूट फूटकर रोने लगी । शिवकुमार घबरा गया । उसका सिर ऊपर करके कोशिश करते हुए कहता रहा सत्य सत्य । सत्यवती ने सिर्फ ऊपर नहीं उठाया । वह होती रही बी उनके उन लोगों के पास जाकर धीरे से बोला, आपने ठीक नहीं । क्या जानती है आपको? मुझे सब कुछ बता देना चाहिए था । मैं पुलिस का आदमी नहीं हो । यदि आप मुझे सब कुछ बता देंगे तो आपको ही फायदा होता है । चलवा जीत हम लोग चलते हैं । कमरे से बाहर निकलकर ब्योमकेश ने सावधानी से दरवाजा बंद कर दिया । कुछ क्षण के लिए वहाँ खडा सोचता रहा । फिर बोला, हाँ बडे बाबू के कमरे में चले हैं । मेरे ख्याल से उनका कमरा उधर है । हम लोग गलियारे में करा ली । बाबू के कमरे को पार कर होने वाले कमरे के सामने पहुंचे बे उनके इसने दरवाजा खटखटाया । एक इक्कीस बाईस वर्ष के युवक ने दरवाजा खोला । ब्योमकेश ने पूछा आप ये फडे बाबू है? उसने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया जी, कृपया अंदर आ जाइए । उसकी आकृति से यहाँ होता था कि उसके शरीर में कहीं दोष है । पर वहाँ कहाँ है यह तुरंत पता नहीं चलता था । उसका शरीर काफी गठा हुआ था किन्तु ऊपर कस्ट रहने से पैदा होने वाली सिलवटे साफ दिखाई देती थी । जैसे ही हम कमरे में उसे उसने आगे बढकर कुर्सी की और इशारा किया, कृपया बैठे उसकी चाल से पता चल गया कि दोस्त उसके दायें पैर में है । वहाँ बहुत ही पतला कटे हुए अन्य जैसा था इसलिए चलते समय उसकी चाल में लॉन्च आता था । मैं पलंग के एक और बैठ गया और ब्योमकेश दूसरी और ब्योमकेश को देखकर लगा जैसे उचित शब्दों को ढूंढ रहा हूँ । फिर जरा अन्यमनस्कता होकर बोला मैं समझता हूँ आप यह जान गए होंगे । पुलिस आपके भाई मोतीलाल पर शक कर रही है । मैं जानता हूँ बडे बोला पर अपनी ओर से निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि ज्यादा बेकसूर है । वह गुस्सैल और झगडालू जरूर है पर काका की हत्या करने की क्षमता नहीं रखते हैं । वसीयत से अपना नाम बेदखल किए जाने के बाद भी यह संस्कार केवल मोदी दा पर ही नहीं हम सब पर लागू होता है तो मोदी दा पर ही शक क्यों किया जाए? ब्योमकेश ने उसके प्रश्न पर ध्यान न देकर कहा, मैं समझता हूँ कि आपने पुलिस को अपना बयान दे दिया होगा । फिर भी मैं कुछ प्रश्न पूछना, बडे कुछ असमंजस में दिखाई दिए । आप पुलिस में नहीं है तो मैंने सोचा शायद सीआईडी के होंगे बी उनके इसने हसकर का नहीं । मैं केवल सत्य का खोजी हूँ । सत्यान्वेषी पडी ने सुना तो आश्चर्य में उसकी आगे बडी हो गयी । वहाँ बोला सत्यान्वेषी भी उनके बाबू तो क्योंकि इस बक्शी है । ब्योमकेश ने सिर हिलाया और बोला अब मुझे यहाँ बताइए कि कराली बाबू का संबंध सब लोगों से कैसे थे? दूसरे शब्दों में किसी भी पसंद करते थे और किसे ना पसंद यहाँ सब कुछ विस्तार में बताएंगे । बडे कुछ देर अपने हाथों में सिर्फ छिपाए बैठा रहा । फिर थी कि मुस्कान के साथ बोला, देखिए मैं लंगडा आदमी हूँ, भगवान का शाहब है । इसलिए मैं इन सब लोगों से ज्यादा मेल मुलाकात नहीं रखता था । मैं और मेरी ये पुस्तक मेरे अब तक के जीवन में मेरी साथ ही रही है । लेकिन मैं ठीक से नहीं बता पाऊंगा कि काका की हम लोगों में से किस पर कपा थी और किस पर नाराजगी । काका को समझना आसान नहीं था और न ही वे अपनी मंशा जाहिर करते थे । लेकिन उनकी बातों और बताओं से मैं यही जान पाया हूँ कि वे सत्यवती की परवाह अधिक करते थे और आप की मेरी संभव है । मैं लगता हूँ इसलिए उनके मन में भीतर कहीं दया का भाव हो । पर इससे अधिक मैं उनकी आत्मा का अनादर नहीं करना चाहता । विशेष रूप से ऐसे व्यक्ति का जिसमें हम सबको शरण नदी होती तो हम लोग अब तक भूख से मर गए होते । लेकिन यह भी सही है कि वे नहीं जानते थे कि प्यार क्या होता है । ब्योमकेश बोला शायद आपको मालूम हो कि उन्होंने अपनी वसीयत में सारी संपत्ति सुकुमार के नाम की है । बडी थोडा मुस्कुराकर बोला, मैंने सुना है और इसमें कोई संदेह भी नहीं होना चाहिए कि हम सब में सु कुमार ही योग्य व्यक्ति है । लेकिन इस से यह नहीं कहा जा सकता कि काका के रजय में क्या है । वे सैनिक आवेश के व्यक्ति थे । जरा सी बात पर बिगड जाते हैं और टाइपराइटर पर तब तब करके अपनी वसीयत बदल देते थे । इस पर शायद ही कोई बच्चा हो जिसके नाम इन्होंने कभी ना कभी वसीयत न की हो । ब्यूंह के इसने कहा क्योंकि अंतिम वसीयत सुकुमार के नाम है इसलिए संपत्ति उसे ही मिलेगी । बडी बोला अच्छा मुझे कानून की इतनी जानकारी नहीं है । कानून तो यही कहता है बे । उनके सैनिक हिचकिचाहट के बाद बोला ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे? क्या आपने सोचा है पढने? निराशा में अपने बालों पर हाथ फेरा और खिडकी से बाहर देखते हुए बोला मुझे नहीं मालूम मैं क्या करूंगा कहाँ जाऊंगा? मैं कुछ पढा लिखा नहीं हूँ इसलिए नौकरी नहीं कर सकता । यदि सुकुमार मुझे शरण देता है तो उसके पास रहूंगा या फिर मेरा अंत सडकों पर होगा । उसके आंखों में आंसू आ गए । मैंने जल्दी से अपना मूड फिर लिया । ब्योमकेश ने ध्यान दिए बिना ही कह दिया । सुकुमार बाबू कल आधी रात को लौटे थे । बडे बाबू ने चौंककर पूछा आधी रात अरे हाँ वह कल रात सिनेमा देखने गया था क्योंकि इसमें बोझा क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि कराली बाबू की हत्या कब हुई? क्या आपको कोई आवाज या कुछ और सुनाई दिया था कुछ नहीं । शायद सुबह तडके नहीं । उनकी हत्या आधी रात को हुई । फॅसने उठकर अपनी घडी देखी और बोला वो ढाई बज गया, अब काफी है । चलो अजीत मुझे बहुत भूख लगी है । हम लोगों ने सुबह से कुछ खाया भी नहीं है । अच्छा नमस्कार । ठीक उसी समय नीचे शोरगुल सुनाई दिया । दूसरे ही क्षण एक व्यक्ति हफ्ता हुआ । दरवाजा खोलकर गुस्सा और बोला भडे पुलिस मोदी को पकडना है किन्तु हमें देखते ही रुक गया । ब्यूरो किसने कहा क्या आप ही माखन बाबू है? माखन भय से पीला बढ गया और मैं कुछ नहीं जानता । कहते हुए तेजी से बाहर निकल गया । हम लोगों ने नीचे अगर देखा । ड्राइंग रूम में बहुत अफरा तफरी मची हुई थी । वीडियो बाबू नहीं थे । उनकी जगह स्थानीय चौकी का इंस्पेक्टर कुर्सी पर बैठा हुआ था । उसके सामने दो सिपाही एक व्यक्ति को पकडे खडे थे जिसके ऊपर हवाइयां उड रही थी । वहाँ चला रहा था । कल की हत्या हो गई । देखिए सर मैं कुछ नहीं जानता हूँ । मैं किसी की भी कसम खा सकता हूँ । मैं मूर्ति शराबी हूँ और मैंने रात दल इनके यहाँ गुजारा है, वह गवाही दे देगी । इंस्पेक्टर अपना काम जानता था । वह इस सब के बीच चुका बैठा था । उसने जब हमें आते देखा तो बोला भी उन के बाबू ये है मोतीलाल विधु बाबू का मुजरिम आपको यदि कुछ पूछना है तो पूछ ले । ब्योमकेश बोला इन्हें कहाँ पकडा? सब इंस्पेक्टर जिसने उसे पकडा था । वो बोला बदनाम इलाके में एक वेश्या के खोते से मोतीलाल ने फिर भर याद शुरू कर दी । मैं दल इनके कोठे पर सो रहा था कौन? बहुदा कहता है ब्योमकेश ने हाथ के इशारे से उसे चुप क्या? आप तो रोजाना तडके सुबह लौटा करते हैं । आज क्या हो गया? मोतीलाल ने खूंखार लाल आंखों से चारों ओर देखा और बोला क्या हो गया मैं जैसे मैं मजबूत था । मैंने रात में विस्की की दो बोतल खाली कर दी थी, इसलिए सुबह उठ नहीं पाया । ब्योमकेश ने इंस्पेक्टर को देखकर सिला दिया । इस बेटर बोला इसे ले जाओ और बंद कर दो । जैसे ही सिपाही मोतीलाल को ले जाने लगे, उसने चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया । ब्यू उनके इस ने पूछा विधु बाबू का है? वे करीब घंटा भर पहले चले गए और बोल कर गए हैं कि शाम को चार बजे के लगभग आएंगे तो ठीक है । हम लोग भी अब चलते हैं । हम लोग कल सुबह आई है और यहाँ यहाँ तो बताइए कि क्या सभी कमरों की तलाशी हो गई है । कराली बाबू और मोटी बाबू के कमरे की तलाशी हो चुकी है । विधु बाबू ने और किसी कमरे की तलाशी को जरूरी नहीं समझा । मोतीलाल के कमरे से कुछ मिला कुछ नहीं । मैं वसीयत को नहीं पढ पाया हूँ । मेरे ख्याल से विदु बाबू ने उन्हें सील कर दिया है । खैर कल तक देख लूंगा तो ठीक है फिर मिलते हैं । इस बीच कोई नई घटना कटे तो कृपया खबर करेंगे और हम लोग घर वापस आ गए । राहत में ब्यू उनके इसने कराली बाबू के घर गया है कि मैं ऐसा बनाया और उसे मुझे दिखाने लगा । यह देखो कराली बाबू के कमरे के ठीक नीचे मोतीलाल का कमरा है । हाँ, माखन उसके बगल वाले कमरे में रहता है । पानी के कमरे के नीचे ड्रॉइंग रूम है जिसमें पुलिस ने अपनी दुकान लगाई है । सत्यवती का कमरा रसोई घर के ऊपर है और खानसामा आँसू कुमार के कमरे के नीचे होता है । मैंने पूछा ऍफ उपयोग किया है कुछ नहीं क्योंकि इसने कहा और नक्शे के अध्यन में लग गया । मैंने पूछा तो मैं क्या लगता है? मोतीलाल ने हत्या नहीं की है । यही ना नहीं उसने नहीं है । यहाँ तो निश्चित है तो कौन हो सकता है, यहाँ कहना मुश्किल है । यदि मोतीलाल को अलग कर दिया जाए तो रहते हैं भडी, माखन, सुकुमार और सत्यवती । इनमें से कोई भी हो सकता है । इन सबका उद्देश्य एक ही रहेगा । मैंने चकित होकर कहा, सत्यवती भी क्यों नहीं? लेकिन वहाँ इस तरह है यदि कोई स्त्री किसी को प्यार करती हो तो वहाँ उसके लिए कुछ भी कर सकती है । लेकिन इसमें उसका व्यक्ति कथित किया था । वह तो उसके भाई को मिलने वाली थी तो वहाँ तक समझे नहीं । जब एक व्यक्ति किसी भी क्षण में अपनी वसीयत बदल लेता हूँ । यदि उसे ही हटा दिया जाए तो उसके वसीयत बदलने का पैसा नहीं नहीं रहे जाता । मैं किंकर्तव्यविमूढ बना बैठा ही रह गया ।

Ep 4: वसीयत का जंजाल - Part 3

मैंने यहाँ तो कभी सोचा ही नहीं था । मैंने कहा तो अब तुम सोच रहे हो कि सत्यवती मैंने यहाँ तो नहीं कहा । हो सकता है सुकुमार हो । यहाँ भी हो सकता है कि कोई बाहरी व्यक्ति हो । किन तो सत्यवती कोई साधारण इस्त्री नहीं है । मैं फिर सोचने लगा पिछले कुछ घंटों में इतनी अप्रत्याशित घटनाएं घट चुकी है । इतनी परस्पर विरोधी शंकाएं आती जाती रही है कि घटना को एक सूत्र में बांधना लगभग असंभव है । जितना सुलझाने का प्रयास होता है, मामला उतना ही उलझता जा रहा है । अन्ततः मैंने प्रश्न किया लाज को देखने के बाद तुम्हारा विचार क्या है? मेरा मत यहाँ है कि कराली बाबू की हत्या से पूर्व हत्यारे में उन्हें क्लोरोफॉर्म से बेहोश क्या है? यहाँ कैसे जाना हत्यारे गले में तीन बार छेद किया । यदि क्लोरोफार्म न दिया होता तो कराली बाबू पहले प्रयास में ही नींद से जाग गए होते । तो तो मैं याद है नाग परवेज, इन ये क्लोरोफॉर्म देने के चिन्ह है और सोई को तीन बार छेडने का रहस्य क्या है? इसका अर्थ है कि हत्यारा पहले दोनों छेदों में सही स्थल को नहीं ढूंढ पाया, लेकिन यहाँ उतना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण यहाँ है कि हत्यारा सोई को यही गडा क्यों छोड गया? काम हो जाने पर यदि उसे हटा दिया जाए तो सबूत भी हट जाता है तो क्यों उसे वहाँ छोडा जाए? हो सकता है जल्दी में उसे निकालना भोली गया हो । लेकिन एक बात और तो मैं यह कैसे मालूम हुआ की हत्या आधी रात को हुई । यहाँ तो केवल अनुमान हैं, लेकिन अगर सत्यवती ने कभी सच बोला, तुम देखोगे कि मैं सही हूँ । डॉक्टर की रिपोर्ट मेरी बात का सत्यापन करेगी । ब्योमकेश बैठकर छत की और ताकता रहा । फिर बोला तो कुमार की मेज पर जो पुस्तक रखी थी, उसका शीर्षक था ग्रेज एनाटॉमी । पूरी पुस्तक में केवल एक ही पृष्ठ पर कुछ लाइनों के नीचे लालकुॅआ मार्क किया गया था । अच्छा वे लाइनें क्या थी? वे लाइनें थी । यदि मे डुला और पहली वर्टिब्रा के संदीप स्थान पर सुई होती जाए तो तत्काल मृत्यु हो जाती है । मैं जो उसमें लगभग उछल पडा, तब क्या? पर विचित्र बात यहाँ है कि मैंने सुकुमार की मेज पर कहीं भी लाल पेंसिल को नहीं पाया । एक का एक ब्योमकेश फर्ज पर चहलकदमी करने लगा । उसकी आंखों पर चेहरी थ्योरियां स्पष्ट दिखाई दे रही थी । मेरे दिमाग में प्रश्नों की झडी लगी हुई थी, लेकिन ब्योमकेश को छेडने की हिम्मत नहीं हो रही थी । मुझे मालूम था इस समय कुछ पूछना मतलब उसकी डांट सुनना होगा । रात को सोते समय उसने एक ही प्रश्न पूछा तो मैं कल लेखक हो तो यहाँ बता सकते हो कि अंग्रेजी शब्द थीम बाल का उद्गम क्या है? आश्चर्यचकित मैंने कहा थीम बाल तुम्हारा मतलब वहाँ होल्डर जो दर्जी लोग सिलाई के समय अपनी उंगली में पहन लेते हैं, बिल्कुल सही वही मेरे लाख सोचने पर जब मेरे मस्तिष्क मैं कुछ नहीं आया तो मैंने अपने ही अनुमान के अनुसार बताया कि इसका संबंध संभव थम यानी अंगूठे से है और यहाँ अंगूठे की सुरक्षा के लिए लगाया जाता होगा । तुम क्या समझते हो? संभव है कि वह हम और हम बाल शब्दों का मिश्रण हो । दो तरह की बात मत करो । मुझे एक सीधा उत्तर चाहिए । तब मुझे स्वीकार कर लेना पडा कि मेरे पास कोई सीधा उत्तर नहीं है । लेकिन मैंने भी उससे पूछ लिया क्या तुम्हारे बात है? नहीं, मेरे पास होता तो मैं तुमसे क्यों पूछता क्योंकि फिर कुछ नहीं बोला । मैं भी भाषा की जटिलता पर सोचते सोचते कब हो गया? मुझे याद नहीं । दूसरे दिन उठते ही देखा ब्योमकेश सुबह निकल गया है । मुझे उसका अकेले चले जा रहा अखिला भी फिर मैंने सोचा शायद मुझे न ले जाने का उसके पास कोई जायज कारण रहा हो । संभव है उसकी जांच पडताल में कोई बाधा आती हो । वह ग्यारह बजे लगभग लौटा । उसने कमीज उदार दी और पंखे के नीचे बैठकर सिगरेट सुलगा ली । मैंने बुझा क्या हुआ, उसने सिगरेट का भरपूर कस लिया और धीरे धीरे धूम छोडते हुए बोला मैंने सभी वसीयतों पढ ली है । उन सभी पर नौकर और खानसामा की गवाही मौजूद है । दोनों के हस्ताक्षर है और मैंने उन्हें सब कमरों की तलाशी लेने के लिए कह दिया है । किंतु विदु बाबू ने जो मैं कहूँ उसके ठीक विपरीत काम करने की कसम खाली है । अंत में उनसे काम करवाने के लिए मुझे कहना पडा कि वे यदि तलाशी नहीं लेते हैं तो मुझे कमिश्नर साहब से शिकायत करनी पडेगी और क्या है और क्या होगा? वे अब भी मोतीलाल के पीछे पडे हैं । कुछ क्षण रुकने के पश्चात फिर बोला लडकी बहुत मजबूत है जिस तरह से उसने होठों को सुन लिया है, बोलने का नाम ही नहीं लेती और वही इन तमाम हस्तियों की खून जी है । जो भी है देखा जाएगा । यदि विदु बाबू सभी कमरों की अच्छे से तलाशी करवाते हैं तो कहीं से कुछ भी निकल सकता है । तो किस चीज के निकल आने की उम्मीद कर रहे हो? कौन जाने को छोटी मोटी चीज? शायद केमिस्ट की पर्ची या पेंसिल या किन्तु अनुमान लगाने से कोई मतलब नहीं निकलता । चलो तैयार हो जाओ । काम शुरू करने का समय हो गया । ब्यूंग के दोपहर भर आराम कुर्सी पर आंख बंद करके लेता रहा । लगता था जैसे वहाँ कुछ होने का इंतजार कर रहा था । तीन बजते बजते पुत्ती राम चाय लेकर आ गया क्योंकि इसने शांति से चाय भी और फिर उसी पोज मिल लेट गया । लगभग साढे तीन बजे दूसरे कमरे में फोन की घंटी बजने लगी । ब्योमकेश ने जाकर फोन उठाया । जी कौन साहब? इंस्पेक्टर कुछ मिला? अशोक कुमार बाबू के कमरे की तलाशी हो गयी वह वह तो विधवा बने । अंत में कमरे में क्या मिला? क्या सुकुमार बाबू को गिरफ्तार कर लेगा? और भी कुछ मिला ऍम की बोतल ऍम पुस्तकों का भी और वसीयत में बडे बाबू सही है । सही है ऍम चाय के सिद्धांत के अनुसार अब उनकी बारी है । क्या उनकी बहन को भी गिरफ्तार किया गया है? नहीं जल्द ही गया है क्या कमरे में और कुछ जैसे लाल बॅाल? नहीं । नहीं आश्चर्य कोई अन्य सिलाई की वस्तु तो क्या विधु बाबू हूँ, मोतीलाल को छोडने हैं? चॅू कल तो आई सुकुमार के कमरे के अलावा और किसी कमरे की तलाशी नहीं । सु कुमार के कमरे के अलावा और किसी कमरे की तलाशी नहीं । ऐसा क्यों? वीडियो बाबू ने जरूरी नहीं समझा तो क्या समझते हैं? विदु बाबू क्या जरूरी समझते हैं? क्या मेरी जरूरत है? मैं नहीं वासी देखना चाह रहा था तो वो अपने साथ ले गए तो ठीक है । कल सुबह ठीक रहेगा । जब तक लाल पैंतीस और सिलाई का सामान नहीं मिल जाता । क्षमा करें । आप क्या कह रहे थे? शिव कुमार के खिलाफ तो सबूत मिला है । एक बार दोहरा सकते हैं । क्या डॉक्टर की रिपोर्ट आई है? क्या है रिपोर्ट में मृत्यु का समय क्या पाया गया? खाने के करीब तीन घंटे बाद लगभग आधी रात अच्छा तो ठीक है । मैं कल सुबह आता हूँ । ब्योमकेश रिसीवर रखकर वापस अगर बैठ गया । उसकी आंखों की त्योरियां संकेत दे रही थी कि वहाँ अब भी पूर्ण संतुष्ट नहीं हुआ है । मैंने प्रश्न किया तो वास्तव में वहाँ शिवकुमार निकला तो तुम शुरू से उस पर शक कर रहे थे । है ना कुछ क्षण मौन रहने के पश्चात ब्योमकेश बोला जितने भी सबूत मिले हैं, वे सब के सब सो कुमार को हत्यारा करार देते हैं । देखो तराली बाबू की मृत्यु की प्रकृति तक साफ साफ कह रही है कि यह किसी मेडिकल के व्यक्ति का ही काम है । जो लोग मानव शरीर की एनाटोमी नहीं जानते, वे यहाँ काम कर ही नहीं सकते । कोई भी जिसका इस्तेमाल हत्या में हुआ वहाँ भी उसकी बहन की सिलाई के बक्से से ही निकाली गई थी । यहाँ तक कि वहाँ धागा भी वही था । सुकुमार रात में आधी रात को आया और कराली बाबू की मृत्यु का समय भी वही है । सु कुमार के कमरे की तलाशी मैं क्लोरोफॉर्म की बोतल और वहाँ टाइप की हुई नई वसीयत मिली है । यही नहीं वसीयत है जिसमें कराली बाबू नेसू कुमार को संपत्ति से बेदखल कर बडे बाबू को संपूर्ण संपत्ति का हकदार घोषित कर दिया था । शो कुमार ने स्वयं स्वीकार किया है की इसको लेकर उस शाम उसकी कराली बाबू से नोक झोंक हुई थी । इसलिए उसे शक हुआ होगा कि शायद कराली बाबू अपनी वसीयत को फिर ना बदल रहे हैं । हत्या का उद्देश्य बहुत स्पष्ट हो जाता है तो तय हो गया । वह सुकुमार ही है । इसमें किसी शक की गुंजाइश नहीं है । कुछ क्षण बाद ब्योमकेश ने एक नया प्रश्न पूछा, अच्छा बताओ तुम क्या समझते हो? सुकुमार को? क्या वहाँ मोर है? मैंने कहा । ठीक इसके विपरीत वहाँ काफी बुद्धिमान दिखाई देता है । ब्योमकेश ने सोचते हुए कहा, यही तो यही तो मैं भी गच्चा खा गया । एक बुद्धिमान व्यक्ति इतनी बेवकूफी क्यों करेगा? एक का एक ब्योमकेश चौंककर उठ बैठा । मुझे भी दरवाजे के बाहर पदचाप सुनाई दी । ब्योमकेश ने ऊंची आवाज में कहा, कौन है कृपया अंदर आइए । पहले कोई उत्तर नहीं मिला । फिर धीरे से दरवाजा खुला और मैं जडवत बैठा रह गया । मेरे सामने सत्यवती खडी थी । सत्यवती ने अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया । कुछ देर वहाँ खडी रही है । फिर एकाएक आंसुओं से रोने लगी और रूंधी आवाज में बोली भी उन के बाबू मेहरबानी कीजिए । कृपा करके मेरे भाई को बचा लीजिए । मैं उसके अचानक आगमन से सकते में आ गया था, लेकिन ब्योमकेश उठकर उस की ओर बढा । शायद सिर चकराने की वजह से उसने अपने हाथों को अंधे की तरह आगे क्या? ब्योमकेश ने तेजी से उसके हाथों को पकडा और उसे कुर्सी तक ले आया । उसके इशारे पर मैंने पंखा चला दिया । पहले कुछ मिनट वहाँ साडी से मूड अबे आंसू बहाती रही । हमने भी उसे शांति से समझने का समय दे दिया । हमारे इस उठा पटक के जीवन में भी ऐसी पहली घटना थी । मैंने सत्यवती को एक ही बार देखा था । उस समय वह एक आम शिक्षित बंगाली लडकी से अलग करते ही नहीं लगी थी । ऐसी स्थिति में इस संकट की घडी में अपने सारे संकोच को छोडकर उसका सीधा हमारे पास आना न केवल कल्पना से परे था बल्कि एक असाधारण घटना दी । संकट की घडी में अधिकांश बंगाली लडकियाँ काठ की गुडिया बन जाती है तो इस दुबली पतली सांवली लडकी ने मुझे अश्चर्य में डाल दिया । उसके पैरों की धूल से सुनहरी चप्पलों से लेकर उसके उलझे बालों के नीचे गुंथी चोटियों तक उसके संपूर्ण शरीर में एक आवाज अलग रही थी । उसने अपनी आंखें पहुंची और सिर उठाकर दोहराया भी । उनके इस बाबू दया करके मेरे भाई को बचा लीजिए । मैंने देखा यद्यपि उसने अपने ऊपर नियंत्रण कर लिया था, फिर भी उसका स्वर्ग क्या आप रहा था? ब्योमकेश ने धीरे से कहा मैं सुना कि आपके भाई को गिरफ्तार कर लिया गया है, किन्तु सत्यवती ने बात काटकर व्याकुलता में कहा तो वह बेकसूर है । वह कुछ नहीं जानता । उसने कोई अपराध नहीं किया है । यह कहकर वहाँ फिर होने लगी । मैं देख रहा था ब्योमकेश भीतर ही भीतर काफी प्रभावित हुआ है, पर बाहर से शांत दिख रहा था । वहाँ बोला, लेकिन सबूत जितने भी मिले हैं, वे उसी के विरुद्ध है । सत्यवती बोली, वे सब झूठे हैं । दादा धन के लिए किसी की हत्या कर ही नहीं सकते । आप शायद नहीं जानते वे कैसे व्यक्ति है । बी उनके इस बाबू हम दोनों काका की संपत्ति नहीं चाहते हैं । हमें संकट से बचा लीजिए । हम जीवन भर आपके एहसान के तले जिएंगे । उसकी आंखों से आंसुओं की धारा अब गालों के नीचे बहने लगी थी । उसने ना पशुओं को पहुंचने का प्रयास नहीं किया । संभव है उसे इसका भान बिना हुआ हो । इस बार जब क्योंकि बोला तो पहली बार मुझे उसकी आवाज में संवेदना की झलक दिखाई दी । उस ने कहा, यदि आपका भाई वास्तव में बेकसूर है तो मैं उसे बचाने की भरसक चेष्टा करूंगा, किन्तु वहाँ बेकसूर है । क्या आप मुझ पर विश्वास नहीं कर पाए हैं? मैं अपने सम्मान की कसम खा सकती हूँ । दादा यहाँ जब नहीं कर सकते, वे एक मक्खी तक नहीं मार सकते । एक का एक उस ने नीचे झुककर ब्योमकेश उसके पैर पकड ली है । बीएमकेजी ब्योमकेश तेजी से उठकर एक और हो गया । यह क्या कर रही है? मेहरबानी करके ऐसा ना कीजिए, वायदा कीजिए । पहले अब फायदा कीजिए कि आप दादा को छुडवा देंगे । ब्योमकेश ने सख्ती से उसे पकडा और उसको कुर्सी पर बैठा दिया । उसके बाद उसने सामने बैठ कर स्पष्ट रूप से कहना शुरू किया, आप एक बात पर बिल्कुल गलत है । मैं वो व्यक्ति नहीं हूँ जो सुकुमार को छोड सकूँ । यहाँ केवल पुलिस कर सकती है । मैं यहाँ साबित कर सकता हूँ की वहाँ बेकसूर है । लेकिन इसके लिए जरूरी है मुझे सारे तथ्य का पता चले । क्या आप तक यह भी नहीं समझ पाई है कि जब तक आप मुझसे सब बातें छुपाते रहेंगी दाब तक मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता । सत्यवती ने आंखें निजी करके कहा मैंने आपसे कोई बात नहीं छिपाई है । आपने छिपाई है वो सराहत आप करा ले । बाबू के कमरे में गई थी और आपको उनकी मृत्यु का पता लग गया था लेकिन आपने मुझे नहीं बताया । सत्यवती भयभीत आंखों से ब्लूम के इसको देखती रही । उसके बाद उसने सिर नीचा कर लिया । और चुप चाप बैठी रही । ब्यू उनके इसने अब आहिस्ता से पूछा आप क्या आप सब कुछ बताएंगे? सत्यवती ने आंख उठाकर कहा ऐसे कहूँ वह सब कुछ तो दादा के खिलाफ ही जाएगा । ब्योमकेश ने आगरा भरे स्वर में कहा, बाद समझने की कोशिश कीजिए । यदि आपका भाई बेकसूर है तो सच्चाई उनका कुछ भी बिगडने नहीं देगी । आप निर्भय होकर मुझे सब कुछ बता सकती है । सत्यवती कुछ देर सिर नीचा की है । बैठी सोचते रही फिर टूटती आवाज में बोली ठीक है, मेरे पास कोई और उपाय नहीं है । उसने आंसू भरे नेत्रों को पोछा और अपने को नियंत्रित करके कहना शुरू किया । उस शाम दादा की काका से कहाँ तो नहीं हुई थी । इससे पहले काता ने अपनी वसीयत में दादा के नाम सारी संपत्ति लिख दी थी । इसको लेकर दोपहर में उनका मोटी दासे काफी झगडा भी हुआ था । कॉलेज से लौटने के बाद जब दादा को यह पता लगा तो वे काका के पास गए और जाकर बोले कि वह संपत्ति केवल उनके नाम न करके उसका सब में बटवारा कर दे । का का को इस तरह से नफरत थी । जब उन्होंने दादा की दलील सुनी तो वे क्रोधित होकर बोले, तुम क्या मेरे से ज्यादा जानते हो क्या समझते हो? निकल जाओ यहाँ से तुम्हे पाई भी नहीं दूंगा । दादा को यह उम्मीद नहीं थी कि कहाँ था इतने नाराज हो जाएंगे । उनके कमरे से निकलकर दादा भनिता के पास गए । परणिता अपंग है । वे बाहर नहीं जा सकते इसलिए दादा शाम का समय उनके साथ बिताते हैं । ऍम आप भी शायद मिल चुके होंगे । वे कभी स्कूल तो नहीं गए किंतु काफी पढे लिखे हैं । उनके बुक सेल्स को देखकर आपको अनुमान हो जाएगा कि उन्हें कितने विषयों का यान है । मैं कभी कभी अपनी पढाई में सहायता के लिए उनके पास भी जाती हूँ । बहरहाल उस शाम दादा बहुत निराश हो गए थे और करीब आठ बजे मुझे बोले सत्य में फिल्म देखने जा रहा हूँ । आधी रात तक वापस लौटूंगा । मेरे लिए दरवाजा खुला ही रखना । उन्होंने जल्दी खाना खाया और चुप चाप निकल गए । हमारा खानसामा रात का खाना समाप्त हो जाने पर सामने के घर में अपने गांव के दोस्तों के पास काफी देर तक बैठा रहता है । यह मैं जानती थी इसलिए दादा के आने तक मैंने इंतजार नहीं किया । दस बजे तक मैंने खाने की मेज को साफ किया और ऊपर अपने कमरे में सोने चली गई । मैं अभी सोच ही नहीं थी कि कुछ आहट सुनकर मेरी आप खुल गई । मुझे लगा जैसे दादा के कमरे में कुछ आवाज आई है । जैसे कोई भारी चीज मेजिया, बडा बक्सा फर्ज पर खींचा जा रहा हूँ यह सोचकर कि दादा शायद सिनेमा देख कर लौटे हैं । मैंने फिर से सोने की कोशिश की, लेकिन जाने क्यों नींद आई ही नहीं । कुछ देर आंखें खोले लेटी रही । दादा के कमरे से और आवाज नहीं आई । मैंने सोचा दादा हो गए होंगे । घंटा भर भी बीता न होगा कि गलियारे से मुझे फिर आठ सुनाई दी, जैसे कोई आहिस्ता से चल रहा हूँ । मुझे आश्चर्य हुआ दादा कब के हो गए थे तो फिर कौन हो सकता है? मैं धीरे से उठी और दरवाजे की पांच से देखा । दादा चुपचाप अपने कमरे में घुसे है और पीछे से उन्होंने दरवाजा बंद किया है । गलियारे में क्योंकि चांदनी छिटकी हुई थी इसलिए मैंने स्पष्ट रूप से ज्यादा को देखा था । ब्योमकेश उसने टोका केवल एक स्पष्टीकरण । क्या सुकुमार बाबू जूते पहने हुए थे वहाँ । क्या उनके हाथ में कुछ था? नहीं, कुछ नहीं । कोई कागज या बोतल कुछ नहीं । क्या समय होगा, क्या आपने देखा था? सत्यवती ने कहा इस की जरूरत नहीं थी, क्योंकि सभी घडियों में बारह बजे के घंटे बजने लगे थे, हुआ हूँ । सत्यवती ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, पहले तो मैं समझ नहीं पाई कि यह सब क्या हो रहा है । दादा पंद्रह मिनट पहले आ गए थे । यह मुझे उनके कमरे से आवाज से पता लगा था तो फिर अब कहाँ गए थे? एक मुझे खयाल आया कि कहीं काका की तबियत तो खराब नहीं हो गई और दादा उन्हें देखने गए हो । काका को कभी कभी रात में आर्थराइटिस का दर्द होने लगता था और वे सो नहीं पाते थे । ऐसे मौके पर उन्हें सुनने के लिए दवा देनी पडती थी । मैं ऍसे दरवाजा खोलकर काका के कमरे की और जाने लगी । वो हमेशा दरवाजा खुला ही रखते थे । मैं कमरे में घुसी वहाँ दे रहा था, पर वहाँ एक अजीब सी महक थी । मैं नहीं कह सकती वहाँ कैसी थी, तेज तो नहीं थी, पर थी चारों और क्या वहाँ मीठी महक थी वहाँ जैसी सिर्फ की होती है? हाँ, वही तो क्लोरोफॉर्म अच्छा । फिर लाइट स्वीट दरवाजे के पास ही था । मैंने लाइट जला दी और देखा कि काॅपर लेते हैं । मुझे लगा सो रहे हैं । उनके शरीर को देख कर यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता था की उन की फिर भी पता नहीं क्यों मेरा दिल धडकने लगा । उस महत्व मेरे सांसों में घुटन जैसी पैदा कर दी थी जैसे किसी ने मेरे नाक पर गिली पट्टी रख दी हो । कुछ देर मैं दरवाजे के पास खडी रही, अपने को समझाने की कोशिश करती रही कि यह महायच दवा की है, जिसे लेकर का अभी अभी हो गए हैं । मेरे पापा हूँ काम रहे थे । पर मैं बहुत सावधानी से काका के पलंग के पास गई । मैंने आगे झुककर देखा कि वे स्टाॅफ नहीं ले रहे हैं । मैं यह नहीं सकती । मेरे अंदर क्या हो रहा था । मुझे लगा कि मैं बेहोश हो जाऊंगी । मेरा सिर चकराने लगा था अपने को संभालने के लिए । मैंने आगे बढकर कहा था के तकिए कुछ हुआ । मेरा हाथ उनके गले पर गिरा । मेरे हाथ में काटे जैसी चुभन हुई । मैंने देखा कि उनके गले में एक हुई उसी हुई है । सुई में धागा भी लगता है । मैं वहाँ और अधिक देर नहीं रूपाई । मुझे नहीं मालूम कैसे मुझे लाइट बुझाने और वापस अपने कमरे में आने की ताकत आई । जब तक मुझे हो जाया तब तक मैंने अपने को पलंग पर बैठा पाया । मैं धर धर काम कर रो रही थी । शेष बातें तो आप जानते ही हैं । मुझे दादा पर शक नहीं था क्योंकि मैं जानती थी कि वे यह नहीं कर सकते हैं । फिर भी मुझे यह सोचने में अधिक समय नहीं लगा कि यह सब मैं किसी को नहीं बता सकती, क्योंकि बताने से दादा की स्थिति और भी खराब हो सकती है । दूसरे दिन सुबह मैंने किसी प्रकार चाय बनाई और काफी तुमने में ले गई । यह कहते हुए सत्यवती की आवाज मध्यम पढकर लडखडाने लगी । उसका स्वाभाविक पीला मुंग और दहशत से त्रस्त आखिर साफ गवाही दे रही थी कि बीती रात उसने कितनी उलझनों और यात्रा में गुजरा है । मैंने ब्योमकेश के मूंग को देखा, उसकी आंखों में चमक दिखाई दी । वहाँ बोला, मैं आज तक आप जैसी असाधारण लडकी नहीं देखी । कोई और होती तो वहाँ चिल्लाती । शोर मचाती और बेहोश होकर उसने दुनिया को सिर पर उठा लिया होता । लेकिन आप केवल दादा के लिए ब्योमकेश ने खडे होकर कहा, अब आप घर जाइए । कल सुबह वहाँ होना

Ep 4: वसीयत का जंजाल - Part 4

सत्यवती उठी और घबराकर बोली, किन तो आपको कुछ बताया नहीं । ब्योमकेश बोला, बताने को क्या है? मैं आपको ऐसी कोई उम्मीद नहीं दे सकता, जो बाद में आपको निराशा दे । इस पूरे कांड में विदु बाबू नामक महाज्ञानी शामिल हैं । यहाँ नहीं जानती क्या? बहरहाल यहाँ तो मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि यदि आप ने मुझे पहले दिन ही सब कुछ बता दिया होता तो पूरा केस अब तक आसानी से सुलभ गया होता । सत्यवती ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से पूछा, जो कुछ मैंने कहा है, क्या वह दादा को नुकसान पहुंचाएगा? आपको विश्वास है भी? उनके इस बाबू मेरा अपना कोई नहीं है । यह कहते हुए उसका गला भर आया । ब्योमकेश ने तेजी से उठकर उसके लिए दरवाजा खोला और मुस्कुराकर बोला, अब आप जल्दी कीजिए, देर हो रही है और फिर यहाँ कुमारों का घर है । सत्यवती उठी और दुखी मंत्रित जाने लगी । लेकिन जैसे ही वह द्वार पर पहुंची, ब्योमकेश ने दबी जबान में कुछ कहा जो मैं नहीं सुन पाया । सत्यवती ने चौक कर ब्योमकेश को देखा । उसकी आंखों में मुझे आंसू भरे आभार की झलक दिखाई दी । हाथ उठाकर उसने अभिवादन किया और सीढियां उतर गई । दरवाजा बंद करके ब्योमकेश आकर बैठ गया और अपनी घडी देखकर बोला अरे सात बज गए । फिर अपने मन में हिसाब लगाने के बाद बोला अभी काफी समय है । उत्सुकतावश मैं अपने को रोक नहीं पाया और पूछ बैठा ब्योमकेश तुम है, अब क्या लग रहा है? मैं तो कुछ भी नहीं सोच पा रहा हूँ, लेकिन तुम्हें देखकर मुझे आभास हो रहा है कि तुम है । सारे तथ्यों की जानकारी हो गई है । ब्योमकेश ने सिर हिलाकर कहा सब कुछ नहीं, अभी नहीं । मैंने कहा तुम जो भी गांव किन तो यह निश्चित है कि वहाँ सुकुमाल नहीं है, भले ही उसके खिलाफ सबूत मौजूद हूँ । ब्रो उनके इसने हस्कर कहा, तो फिर कौन है? मैं वो सब नहीं जानता । लेकिन निश्चित रूप से वह सुकमा नहीं है । ब्योमकेश चुभ रहा । उसने सिगरेट सुलगाया और लंबे कश खींचने लगा और लम्बे काट खींचने लगा । मुझे लगा वहाँ और कुछ नहीं बोलेगा । मैं भी शांति से केस की विचित्र उलझनों के बारे में सोचने लगा । कुछ देर बाद भी उनके इसने एक पूछा, मेरे ख्याल से तुम सत्यवती को सुंदर नहीं कह सकते है ना चकराकर । मैंने उसकी ओर देखा और बोला ऐसा क्यों? मुझे हो ऐसे ही पूछ रहा था । मैं समझता हूँ ज्यादातर लोग उसे बहुत सावली कहेंगे मेरे मस्तिष्क में यह बाद घुस नहीं पा रही थी कि इस केस का सत्यवती के रूप से क्या रहता है । लेकिन कई बार ब्योमकेश के दिमाग के विचित्र मार्ग की कल्पना करना असंभव हो जाता है । मैंने गंभीरता से विचार करके कहा यह सही है कि लोग सत्यवती को सावली कहेंगे, किन्तु मैं समझता हूँ गुरु हरगिज नहीं । इतना सुनकर ब्योमकेश हस्कर उछल पडा और बोला तो हमारा मतलब जैसा कि कवि ने कहा है काली है वहाँ तुम कहते हो काली रात से निकली पर मैंने उन काली हिरनी जैसी आंखों को देखा है । ठीक है यह तो बताओ जीत तुम्हारी सही उम्र क्या है? मैंने फिर चकराकर पूछा । उम्र मेरी उम्र जैसे कराली बाबू की मृत्यु के रहस्य का हाल मेरी उम्र में छिपाओ ब्योमकेश के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता । मैंने कुछ गुणाभाग करके बताया कि मेरी सही आयु वर्ष पांच महीने और ग्यारह दिन है । पर क्यों? ब्योमकेश ने संतोष की सांस ली और कहा तो तुम मुझसे पूरे तीन महीने बडे हो, इस बात का ध्यान रखना भूलना नहीं तो उम्मीद है सब क्या कह रहे हो? मेरे भाई कुछ नहीं मेरा सेरे समस्या को लेकर चकराने लगा है । चलो आज रात को फिल्म देखने चलते हैं । ब्योमकेश कभी सिनेमा नहीं जाता हूँ । सिनेमा या नाटक उसे पसंद नहीं थे । इसलिए पहले तो मुझे आश्चर्य हुआ । फिर मैं बोला आज तो मैं गया हुआ है । क्या वाकई पागल हो गए हो? ब्योमकेश ने हस्कर कहा कोई ताज्जुब नहीं । मेरा जन्म चंद्रराशि में हुआ है और श्रीमान भट्टाचार्य ने मेरी जन्मपत्री देखकर बताया था कि यहाँ बालक चंद्रमा के प्रभाव में पागल भी हो सकता है किन्तु हमें देर हो रही है । चलो जल्दी से खाना खाकर निकलते हैं । मैंने सुना है कि चित्र में बहुत अच्छी फिल्म लगी हुई है । इसलिए खाना खाकर हम लोग चित्र पहुंचे । फिल्में साढे नौ बजे शुरू हुई । फिल्में लम्बी थी इसलिए बारह बजे के करीब खत्म हुई थी । हमारा घर कुछ दूरी पर था । कुछ एक बसे अभी दिखाई दे रही थी । जैसे ही मैं बस स्टॉप की और बढा ब्योमकेश बोला नहीं चलो हम लोग थोडा पैदल चलते हैं । वह तेजी से कदम बढाकर चलने लगा । जब काॅस्ट स्ट्रीट के बाद वहाँ छोटी सी गली में घुसा तो मुझे समझ में आ गया कि हम लोग कराली बाबू के घर की ओर जा रहे हैं । मैं यह सोच नहीं पा रहा था कि आखिर इतनी रात गए, वहाँ जाकर वहाँ क्या करना चाह रहा था? बहरहाल, मैं बिना कुछ कहे उसके पीछे पीछे चलता गया । हम लोगों की चाल साधारण छल से कुछ तेज थी । फिर भी हमें वहाँ पहुंचने में काफी समय लग गया । घर के सामने सडक की लाइट चल रही थी । ब्योमकेश ने लाइट के नीचे अपनी घडी देखी, लेकिन उसकी जरूरत नहीं पडी क्योंकि ठीक उस समय सभी घडियों में बारह बजे के अलावा हम बज उठे थे । ब्योमकेश ने खुश होकर मेरे पीठ पर एक हाथ मारा और बोला वाह कम हो गया । चलो अब टैक्सी लेते हैं तो दूसरे दिन सुबह करीब साढे आठ बजे हम करा ली । बाबू के घर पहुंचे पुलिस वालों के साथ विधु बाबू वही मौजूद थे । ब्योमकेश को देखकर पहले तो वे संकोच में पड गए । फिर आपने वो संभालकर गंभीर आवाज में बोले बियोन् केजवाब, वो शायद आप जान गए होंगे कि मैंने सू कुमार को हिरासत में ले लिया है । वास्तव में वही हत्यारा है । मैं शुरू से ही जान गया था । पर इसका प्रपंच देख रहा था वाकई यहाँ का । अगर ब्योमकेश ने विदु बाबू की बडी बडी आंखों को ध्यान से देखा । जैसे उम्मीद कर रहा हूँ कि कब हुए कोई नया गुल खिला दें । यह सब देखकर इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर के चेहरों पर हंसी फूट पडी और छिपाने के प्रयास में उन्होंने अपने चेहरे दूसरी ओर घुमा दिया । विडियो बाबू ने कुछ संदेह के लहजे में पूछा, आज आने की कोई खास वजह? ब्योमकेश बोला, नहीं, कुछ नहीं । मुझे पता लगा की एक नई वसीयत पाई गई है । मैंने सोचा एक नजर देख लूंगा काफी देर तक वेज उलझन में रहे की वसीयत ब्योमकेश को दिखाए जाए या नहीं । अंत में अनिच्छा से आपने फाइल कोहली और उसमें से एक दस्तावेज निकालकर ब्योमकेश की और बढाया और बोले ध्यान से पहाड बाड न देना । यहाँ वसीयत सुकुमार के खिलाफ सबसे मैं तो पूर्ण सबूत हैं । कराले बाबू की हत्या करके सुकुमार चोरी करके यह वसीयत ले आया और उसे अपने कमरे में छिपा दिया । आपको मालूम मैं कहाँ छिपाया था अपने कमरे में तीन अलमारियों के नीचे क्या सुकुमाल गिरफ्तारी के समय कुछ बोला था यहाँ बोलता वही जो सब कहते हैं । मुझे कुछ नहीं मालूम और चौंकने का नाटक ब्योमकेश ने दस्तावेज को चारों ओर से ज्यादा फिर बडी सावधानी से खोलकर पडने लगा । मैंने भी अपनी गर्दन दिवसी करके ब्योमकेश के पीछे से देखा एक सादे कागज पर टाइप किया गया था । आज सितंबर के बारिश हुए । दिन उन्नीस सौ तैंतीस क्रिश्चियन कैलेंडर के अनुसार मैं पूरे होशोहवास में आपने वसीयत लिख रहा हूँ । मेरी मृत्यु के पश्चात मेरी सारी चल और अचल संपत्ति के साथ साथ मेरी सारी धनराशि का उत्तराधिकारी मेरा कनिष्ठ भतीजा बडी भूषण होगा । इससे पूर्व लिखी गई अन्य सारी वसीयतों बकायदा रद्द और निष्फल की जाती है । हस्ताक्षर कराली चरण बाजू वसीयत पढने के बाद ब्योमकेश उठ खडा हुआ । उसकी आंखें एक नए उत्साह से चमक नहीं लगी । वहाँ बोला विनोबा बो, यहाँ तो कमाल हो गया यहाँ वसीयत तो उसने अपने को रोक लिया और दस्तावेज को विदु बाबू की और बढा दिया । विजय बाबू ने वसीयत को आश्चर्य से दोबारा शुरू से अंत तक सावधानी से बडा और सिर उठाकर पूछा क्या है इसमें? मुझे तो कुछ नहीं देगा । यह नहीं देखा । ब्योमकेश ने हस्ताक्षर के नीचे रिक्त स्थान को दिखाते हुए कहा । विधु बाबू ने जब वह देखा तो उनकी आंखें फैल गई और मुंह से निकला वो दवाओं के नाम । इतने में ब्योमकेश बोला शांत । उसने शांत रहने का इशारा किया और दरवाजे की आहट लेने लगा । कुछ देर रुकने के बाद वह धीरे से उठा और आहिस्ता कदमों से दरवाजे तक पहुंचा और भक्ति से दरवाजा खोल दिया । माखन लाल खडा चोरी से बातचीत सुन रहा था । उसने भागने की कोशिश की लेकिन ब्योमकेश उसकी बाजुओं को खींचते हुए उसे अंदर ले आया और उसे कुर्सी पर पटक दिया । इंस्पेक्टर इस पर नजर रखना भागने ना पाए इसके मूल को भी बंद कर दो । माखन दहशत में आधा हो गया था । उसने बोलना चाहा । मैं चुप राव एकदम चौक विनोबा बो मजिस्ट्रेट से एक दूसरा वारंट हुआ है । अपराधी के नाम की जगह खाली ही रखें । उसे हम बाद में भर लेंगे । वहाँ विदु बाबू के नजदीक पहुंच गया और झुककर उनके कान में बोला तो बता का आप इसकी पूरी खबर लेने हैं । आश्चर्य भरे लहजे में विधु बाबू बोले, लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा है । बाद में बताऊंगा । इस बीच कब आ करके वारंट मंगवा ले । आव्रजित ब्योमकेश तेजी से सीढियां चढकर फणिभूषण के कमरे के बाहर पहुंचा और दरवाजा खटखटाने लगा । दरवाजा अपने आप ही खुल गया । हम लोगों को देखकर फनी चौंक गया । उसके मुंह से निकल गया बी उनके इस बाबू हम लोग कमरे में आ गए । अब क्योंकि इसकी पूर्ति प्रायर गायब हो गई थी, सस्ते में बोला । आपको जानकर खुशी होगी की हमें पता लग गया है कि कराली बाबू का वास्तव में हत्यारा कौन है? भडिया भी कि मुस्कान के साथ बोला, वहाँ मैंने सुना है कि सुकुमार बाबू को हिरासत में ले लिया गया है । लेकिन मुझे भी यकीन नहीं होता । यहाँ तो है । विश्वास करना बडा मुश्किल है । उसके कमरे से एक नई वसीयत मिली है । उसमें संपत्ति का हकदार आपको बनाया गया है । बडी बोला यह भी मैंने सुना है । जब से मुझे यहाँ पता लगा है मेरा मन खट्टा हो गया है । महज कुछ हजार रुपयों के लिए काका को जीवन खोना पडा । उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, संपत्ति इन सभी पापों की जड है । मेरे लिए सारी संपत्ति छोड गए । पर मैं खुश नहीं हूँ क्योंकि बाबू मैं चाहता था कि मुझे संपत्ति न भी देते हैं । पर जीवित रहते ब्योमकेश बुक सेल्स के पास खडा पुस्तकों को देख रहा था । माने मन में बोला सही है सही है संपत्ति कभी सुख नहीं देती । कहावत सुनी है ना यह कौन सी पुस्तक है? फिजियोलॉजी अरे वहाँ सुकुमार की पुस्तक है बे । उनके इसने पुस्तक में डालकर उसके मुखपृष्ठ को देखकर कहा भरणी धीरे से हटकर बोला हाँ, सुकुमारक सर मुझे मेडिकल की पुस्तकें पडने को देता था । जीवन भी कितना विचित्र है । इस घर में केवल सुकुमार ही ऐसा व्यक्ति था जिसे मैं अपना मित्र समझता था । यहाँ तक कि अपने भाईयों से भी ज्यादा । और वही ब्योमकेश ने कुछ और पुस्तके नीचे उतारी और आश्चर्य में कहा आप तो खासे पढाओ व्यक्ति है ना और क्या आप सभी पुस्तकों में पढने के समय मार्क लगाते हैं । बडी बोला हाँ, पडने के सेवाएं मेरी ओर कोई हॉबी नहीं है । उस तरह ही मेरी साथ ही है । केवल सुकुमार मेरे पास हर शाम आकर बैठता था क्योंकि इस बाबू मेहरबानी करके मुझे यह बताइए कि क्या वाकई सुकुमार नहीं यह क्या है इसमें कोई संदेह का अवसर नहीं है । ब्योमकेश ने कुर्सी पर बैठकर कहा अपराधी के खिलाफ जो सबूत निकला है उसमें संदेह की कोई भी गुंजाइश शेष नहीं है । आइए इधर बैठे मैं आपको सारी बात समझाता हूँ । फनी उसके पास पलंग के किनारे बैठ गया । देखिए हत्या दो प्रकार की होती है । एक वो जो अधिक आवेश में आकर की जाती है, जिसे हम आवेश में हत्या अथवा क्राइम ऍम कहते हैं । दूसरी वे हत्याएं हैं जो पहले से सोची समझी गई तथा पूर्वनियोजित होती है । आवेश की हत्या में अपराधी को पकडना आसान होता है । अधिकांश केसों में वहाँ स्वयं ही स्वीकार कर लेता है । लेकिन जम आदमी सोच समझकर पूर्वनियोजित हत्या करता है तो वहाँ अपने ऊपर आने वाले सारे संदेहों को भी हटा देता है । ऐसी स्थिति में उसे पकडना मुश्किल हो जाता है । तो हमें नहीं मालूम होता है कि अपराधी कौन है और दूसरों पर संदेह काम में लग जाते हैं । ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? हमारे पास के वाले एक ही मार्ग बचता है कि हम हत्यारे के तरीके को जांच का केंद्र बिंदु बनाए । इस केस में हमने एक विचित्र बात यहाँ पाई कि हत्यारा चालाक और मूर्ख दोनों हैं । उसने हत्या बडी बुद्धिमानीपूर्वक है, पर हत्या के सारे हो हजार अपने ही कमरे में छुपा रही है । आप ही बताइए, क्या यह जरूरी था की हत्या के लिए सत्यवती की कोई का ही प्रयोग किया जाए? क्या शहर में सोनियो की कमी हो गई थी और क्या वसीयत को इतनी सावधानी से छिपाना जरूरी था? क्या उसे भानगर फेंका नहीं जा सकता था? ये सब से क्या संकेत मिलते हैं? भले ही अपने थोडी को अपनी हथेलियों में लिए सुन रहा था । उसने पूछा क्या ब्योमकेश बोला एक व्यक्ति जो स्वभाव से मंदबुद्धि है वहाँ चालाकी से काम नहीं कर पाएगा । लेकिन जो व्यक्ति चपल है वहाँ मूर्ति का नाटक बडी आसानी से कर लेता है । इसलिए यहाँ यह स्पष्ट है कि अपराधी चालाक है । लेकिन चालाक लोग भी गलती करते हैं तो अपने को हमेशा सीधा साधा बनाने का प्रयास हमेशा सफल नहीं होता । इस केस में भी अपराधी ने कुछ छोटी छोटी गलतियां की है जिनकी वजह से ही मुझे उसे पकडने में मदद मिली है । पढने पूछ लिया कौन सी गलतियां रुकिए ब्यू उनके इसने अपनी पॉकेट से एक सफेद कागज निकाला । मैं पहले इस घर का नक्शा बनाना चाहता हूँ । क्या आपके पास कोई पैन से लिया कुछ मिलेगा जिससे मैं नक्शा बना सकूँ? फनी के पलंग पर तकिये के पास एक पुस्तक पडी हुई थी । उसने पुस्तक से लाल पेंसिल निकालकर ब्योमकेश को दे दी क्योंकि इसने पैंसिल को सावधानी से देखा । फिर मुस्कुराते हुए बोले दारा साल में अब नक्शा बनाना उतना जरूरी नहीं है । मैं शब्दों में ही बता देता हूँ । अपराधी ने तीन भयंकर बोले की है । पहले यहाँ की उसने ग्रेज एनाटॉमी पुस्तक में कुछ लाइनों के नीचे मार्क लगाया । दूसरी उसने भरी अलमारी खिसकाने में काफी शोर किया और तीसरी यहाँ की । उसे कानून का कोई ध्यान नहीं था । फनी के मूंग का रंग उड गया । उसने बुदबुद रहेगा प्रयास किया कानून का ज्ञान नहीं नहीं ब्यू उनके इस ने दोहराया और यही कारण है उसकी इतनी सफाई से बनाई गई योजना फेल हो गए पडेगा । गला सूख गया । वहाँ भर्राई आवाज में बोला मैं दरअसल मैं आपकी बातों को समझ नहीं पाया । ब्योमकेश ने कडे शब्दों में कहा यहाँ वैसी है तो जो सुकुमार के कमरे से मिली है वहां कानून की नजर में गैरकानूनी और व्यर्थ है क्योंकि उसमें गवाहों के हस्ताक्षर नहीं है । लगा जैसे फनी बेहोश हो जाएगा । वहाँ काफी देर तक चुप चाप पत्थर की तरह फर्ज पर नजर गडाए बैठा रहा । फिर कोई नजरों से अपने सिर के बालों को हाथों से नोचते हुए बुदबुदाया सब व्यर्थ सब देखा गया । नजरे ऊपर उठाकर बोला ब्योमकेश बाबू, क्या आप मुझे अकेले में छोड देंगे? मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही है । ब्योमकेश खडा होकर बोला मैं आपको आधा घंटे का समय देता हूँ, अपने आप को तैयार कर लें । दरवाजे पर जाकर वह मुडकर बोला आपने सिलाई का होल्डर फेंक दिया है ना लिया तो था आपने क्योंकि वहाँ मुझे सत्यवती की सिलाई टोकरी में नहीं मिला । पता नहीं क्यों आपने उसे सु कुमार के कमरे में क्लोरोफॉर्म के साथ नहीं छोडा । शायद जल्दबाजी में दिमाग से निकल गया है ना, लेकिन यहाँ तो बताएं क्लोरोफॉर्म लाया कौन? माँ घर लाल फणी तब तक तकिए पर पीछे की तरफ लुढक गया था । वहाँ भर्राई आवाज में बोला आधे घंटे बाद आइए । ब्योमकेश ने कहा अच्छा दरवाजा बंद कर दिया । हम नीचे अगर बैठ गए माखन लाल पुलिस के पास वैसे ही बैठा हुआ था । ब्योमकेश ने नाराज होकर करके आवाज में कहा ऍम ला कर दिया था । माखन लाल ने चौहत्तर कहा मैं कुछ नहीं जानता, साठ साठ बताओ अन्यथा मैं तुम्हारा नाम वारंट में लेकिन दूंगा माखन फूट फूटकर रोने लगा । सर, ईमानदारी से कहता हूँ, मैं सब में शामिल नहीं हो पडी ने मुझसे कहा था कि उसे नींद नहीं आती । ये अधिक लोगो हम की एक बूंद नहीं जाती । इसी से एक है विधु बाबू । आप इसे छोड सकते हैं । जैसे ही माखन को छोडा वहाँ भागा । ब्योमकेश ने विदु बाबू से पूछा क्या वारंट अभी तक नहीं आया? नहीं पर आता ही होगा, लेकिन वहाँ किसके लिए है? तरह वाले बाबु के हत्यारे के लिए विधु बाबू भडक उठे और सिर्फ ऊपर उठाकर बोले क्योंकि इस बार वो यहाँ वक्त हसी मजाक का नहीं है । कमिश्नर साहब क्या जरा सा आपको मानते हैं? आप मुझ पर रॉक गार्डन फिर रहे हैं । यहाँ भी मैंने सहेलिया पर । अब मैं आपके यहाँ मैं फिर पैर के मजाक बर्दाश्त नहीं करने वाला हूँ । मैं मजाक बिल्कुल नहीं कर रहा हूँ । यही सच्चाई है । बिलकुल स्पष्ट ध्यान से सुनी है और क्योंकि इसमें संक्षेप में सारी बातों का ब्यौरा दे दिया विडिओ बाबू क्षण भर के लिए आश्चर्य में जरूरत हो गए । फिर चिल्ला उठे अगर ऐसा है तो आपने उसे छोड कर रखा है । अगर वह भाग जाए तो नहीं । वहाँ भाग गया नहीं, वहाँ पे कसूर होने की दलील देगा और यही हमारी ग्रुप चाल है क्योंकि अदालत में हमारे लिए उसे दोषी ठहराना बहुत मुश्किल होगा और अदालत में जोडियों को तो आप जानते ही हैं । उन्हें तो दोषी को मुक्त करने का बस मौका चाहिए । यहाँ तो मैं जानता हूँ पर विधु बाबू फिर कुछ चिंतन में लग गए । ठीक आधा घंटे बाद हम खडी बाबू के कमरे में गए । वीडियो बाबू ने आगे बढकर दरवाजा खोला और पहले उसे और आगे जाकर एका एक रुक गए । भडी पलंग पर लेटा हुआ था । उसका दावा या हाथ नीचे झूल रहा था और फर्ज पर खून बह रहा था । उसके झूलते हाथ की नब्ज की नाडी कटी हुई थी, जिससे खून की बूंदें नीचे गिर रही थी । ब्योमकेश एक्शन शरीर को देखता रहा । फिर धीरे से बोला, मैंने नहीं सोचा था कि वहाँ इस हद तक पहुंच जाएगा, लेकिन उसके पास और उपाय भी क्या था? एक सफेद कागज पणी के सीने पर रखा दिखाई दिया क्योंकि उसने उसे उठाकर जोर से पढना शुरू किया । ब्योम के बाबू अलविदा मैं एक अपंग और व्यर्थ व्यक्ति हूँ । मेरे लिए इस संसार में कोई स्थान नहीं है । देखता हूँ ऊपर भी मुझे स्थान मिलता है या नहीं । मुझे मालूम है कि अदालत में आप मुझे दोषी साबित नहीं कर पाएंगे । लेकिन मेरे लिए अब जीवित रहने का कोई मतलब नहीं रहा । जब पैसा ही नहीं मिलेगा तो मैं जीवित रहकर करूंगा भी क्या? मुझे काका की हत्या करने का कोई पछतावा नहीं है । उन्हें मेरे से जरा सा भी प्यार नहीं था । वहाँ हमेशा मेरे लंगडे पन का मजाक बनाकर खिल्ली उडाते थे । हिन्दू मैं सूख कुमार दादा का जरूर अपराधी हूँ और इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ । लेकिन मेरे पास उन के अलावा कोई और व्यक्ति नहीं था जिसके मत थे । यह दोष मान सकूँ और फिर उसके जेल चले जाने से मेरा एक फायदा और भी होता है । यहाँ लाभ मेरे मन में पाल रही उस गुप्त इच्छा से संबंधित था जिससे आप होने के कारण मैं कभी जगजाहिर नहीं कर पाया । मैं यह नहीं बताऊंगा कि मुझे क्लोरोफॉर्म कैसे मिला । जो व्यक्ति मेरे लिए लाया था उसे मेरे उद्देश्य की जानकारी नहीं थी, लेकिन बाद में शायद उसे संदेह हो गया हो । आप सचमुच में विचित्र प्राणी है । आपने उंगली के उस होल्डर को भी नहीं छोडा । आपका कहना सही था । मैं उसे उठाना भूल गया था । यहाँ मुझे याद तब आया जब मैं अपने कमरे में वापस आया हूँ । वहाँ अब भी यहीं कहीं गिरा पडा होगा । उस रात जब मैंने सोई और होल्डर को सत्यवती की सिलाई टोकरी से चुराया था, उस समय वहाँ रसोई में खाना बना रही थी । आपकी जगह यदि कोई और होता तो पकडा नहीं पाता । लेकिन फिर भी मैं अपने को आपसे नफरत करने की स्थिति में नहीं ला पा रहा हूँ । नमस्कार अब विदा लेता हूँ । बहुत दूर जाना है । भवदीय भरनी भूषण कर ब्योमकेश ने विधु बाबू को कागज पकडाते हुए कहा, मेरे ख्याल से अभ सुकुमार को हिरासत में रखना जायज नहीं हैं । उसकी बहन को भी खबर कर देनी चाहिए । मेरे ख्याल से वहाँ भी अपने कमरे में होगी चलवा जी! लगभग एक सप्ताह बाद हम दोनों एक दिन शाम को अपने कमरे में बैठे चाय भी रहे थे । पिछले कुछ दिनों से ब्योमकेश रोजाना दोपहर में कहीं जा रहा था । उसने बताया नहीं और मैंने पूछा भी नहीं । कई बार उसे कुछ गोपनीय केस मिल जाते थे, जिसकी गोपनीयता रखने के लिए वहाँ बताना उचित नहीं समझता था । मुझे भी नहीं बताता था । मैंने पूछा आज भी तुम्हें जाना है । ब्योमकेश ने अपनी घडी देखते हुए कहा था, हाँ, कुछ रुके बन से मैंने पूछ लिया यहाँ कोई नया गैस तुम ने लिया है? केस हाँ, लेकिन पूर्ण गया वो अपनी है । मैंने विषय बदलते हुए पूछा । सुकुमार की रिहाई का मार्ग अब खुल गया है ना? हाँ, उसने जमानत के लिए अर्जी दी है । मैंने कहा ब्योमकेश मुझे ठीक से बताओ । भडी नहीं यहाँ हत्या कैसे की? मुझे विस्तार से समझाऊँ । अब भी मैं बुड्ढी को सुलझा नहीं पाया हूँ । ब्योमकेश ने चाय के प्याले को मेज पर रखकर कहा ठीक है, मैं बताता हूँ शुरू से अंत तक सिलसिलेवार उस दिन मोतीलाल ने करा ले बाबू से झगडा किया था । शाम को जब सुकुमार को पता चला तो वह कराली बाबू के पास अपनी बात कहने गया था । पर जब कराली बाबू ने उसे कमरे से निकाल दिया तो पडी के कमरे में गया और लगभग साढे सात बजे तक वहाँ रहा । उसके बाद उसने खाना खाया और सिनेमा देखने चला गया । यहाँ तक तो कोई उलझन नहीं आना नहीं । रात में आठ से नौ बजे तक सत्यवती रसोई में थी । वो दौरान पानी ने उसके कमरे में घुसकर हुई और उंगली में लगाने वाला होल्डर चुरा लिया । उसने अनुमान लगाया था कि कराली बाबू इस बार फिर अपनी वसीयत बदलेंगे जिसमें इस बार संपत्ति उसको ही मिलने वाली है । उसने फैसला कर लिया । अब वहाँ उस खूसट को अपनी वसीयत बदलने का अवसर नहीं देगा । हड्डी के मन में कराली बाबू के लिए नफरत थी । आप लोग अपनी कमी को लेकर बहुत भावुक होते हैं । जो लोग उनकी कमियों को लेकर मजाक उडाते हैं उनसे बदला लेने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं । पानी नहीं बातों को लेकर उनसे नाराज था और बहुत पहले से उनकी हत्या की योजना बना रहा था । खानसामा के बयान के अनुसार हमें पता लगा कि मोतीलाल रात में लगभग साढे ग्यारह बजे घर से बाहर गया । फिल्म के पिनक में अक्सर समय का हेरफेर स्वाभाविक है । इसलिए खान सामान निश्चय से कुछ नहीं कब आ रहा था । मेरे अनुमान के अनुसार मोतीलाल ने करीब ग्यारह बजकर पच्चीस मिनट पर घर छोडा । उसकी कमजोरी थी उसने शायद ही कभी रात घर में बिदाई थी । मोदी लाल के चले जाने के बाद पडे अपने कमरे से निकला । मोतीलाल का कमरा कराली बाबू के कमरे के ठीक नीचे था । भाई नहीं चाहता था कि शोरिया आवाज मोतीलाल को सुनाई दे इसलिए उसने उसके जाने की प्रतीक्षा की । उसे कराली बाबू को क्लोरोफॉर्म से बेहोश करने में पांच मिनट लगे । उसके बाद फनी कराली बाबू की गर्दन में सोई को ठीक से नहीं हो पाया । सही निशाने के लिए उसे तीन प्रयास करने पडे । यदि वहाँ काम सुकुमार जैसा कोई मेडिकल छात्र करता तो उसे इतना समय नहीं लगता । उसके बाद पानी दूसरे कमरे में गया और उसने मेज की दराज से करा ली । बाबू की अंतिम वसीयत निकली । उसने पढकर देखा उसका अनुमान सही था । वसीयत उसी के नाम थी । इन सब कामों में उसे दस से बारह मिनट का समय लगा । अब उसके लिए यह समस्या थी कि उस नहीं वसीयत का क्या करें । वहाँ उसे उसी लॉकर में छोड दे सकता था । बार उससे सुगुमार के गले में फंदा जैसे लगता और आपने वो बचाने के लिए उसे किसी पर इल्जाम तो अपना जरूरी था । इसलिए उसने वसीयत और क्लोरोफॉर्म को सूप कुमार के कमरे में छिपा दिया । वहाँ जानता था ऐसे हत्या के बाद में कमरों की तलाशी होती है और उस तलाशी में ये दोनों चीज सु कुमार के कमरे से निकला ही । इस तरह एक तीर से दो निशाने हो जाएंगे । सु कुमार को फांसी का फंदा और पढें को वसीयत की संपत्ति उसने जब अलमारियाँ खस कराई थी तब उनकी आवाज हुई थी । इसी से सत्यवती की नींद टूटी थी । वो समय पौने बारह बजे थे । सत्यवती ने सोचा सु कुमार सिनेमा देखकर लौटा है लेकिन सच्चाई यह भी सु कुमार उस समय तक वापस आ ही नहीं सकता था । वहाँ जब वापस आया तब सभी गाडियों में बारह के घंटे बज रहे थे । क्या अभी कुछ और जानना चाहते हो और वसीयत में गवाही न होने का कारण क्या हो सकता है? ब्योमकेश एक्शन सोचकर बोला लगता है कराली बाबू ने वसीयत रात के खाने के बाद लिखी हो और वे चाहते हो कि सुबह वे खानसामा और नौकर से उस पर हस्ताक्षर करवा लेंगे । कुछ देर हम लोग शांति से सिगरेट के कश लगाते रहे । फिर मैंने ही पूछा क्या सत्यवती से तुम दोबारा मिले? क्या कहा उसने खूब धन्यवाद दिया होगा तो मैं ना ब्यू उनके । इसने चेहरे पर निराशा लाते हुए कहा कुछ नहीं केवल साडी से सिर ढककर मेरे चरणों का इस पर क्या? बस बहुत ही बहुत ही शालीन लडकी है । वो ब्योमकेश खडा हो गया और मेरी और उंगली उठाकर बोला तो मुझसे उम्र में बडे हो याद रखना और बिना उत्तर दिए अपने कमरे में चला गया । थोडी देर में सजधज के आया देखकर मैंने कहा तो तुम्हारा गोपनीयत क्लाइंट लगता है । बहुत ही शौकीन है । जासूस को भी रेशमी कुर्ते में देखना चाहता है क्या कहने? ब्योमकेश ने सेंटर सुगंधित रुमाल से मूव पहुंचा और फिर बोला, हाँ सत्य का अन्वेषण कोई मजाक नहीं है । उस के लिए बकायदा तैयारी करनी पडती है । मैंने कहा लेकिन सत्य का अन्वेषण करते हुए तुम्हें अरसा बीता । इससे पहले तो मैंने तो मैं इतनी सजधज में नहीं देखा । ब्योम के इसमें गंभीर मुद्रा में कहा, दारा साल सच्चाई यहाँ है कि सही मायनों में सत्य की खोज मैंने हाल ही में शुरू की है तो तुम्हारा क्या मतलब है? तुम्हें जाना हूँ । मतलब गहरा है । मेरे भाई देसी आंखों से देखो और एक शरारत भरी मुस्कान छोडकर जाने के लिए उड गया । सच्चाई सत्य मैंने मस्तिष्क दौडाया और फिर सब कुछ समझ में आ गया । मैंने दौड कर ब्योमकेश को कंधों से जकड लिया । सत्यवती अब समझा यह भी तुम्हारी सत्य की खोज जिसके लिए इतने दिनों से भागते रहे हो । ब्योमकेश तो यार इतना मत वाला निकला । शेक्सपियर ने ठीक ही कहा है यह सारी दुनिया ही प्यार का जंजाल है । ब्योमकेश बोला आप खबरदार तो मुझसे बडे हो और इस लिहाज से तो उसके अंदर नहीं है । जेटली लगते हो । इसके बाद दोस्ती की परिभाषा नहीं चलने वाली है । मैं भी तुम है भाई साहब कहकर पुकार होंगा, इससे तो मैं आसानी भी रहेगी । मैंने टोक दिया क्या प्यार है अब मैं खत्म हो गया । मैं साहित्यकारों की नस्ल से बखूबी परिचित हूँ । मैंने जोर से निःश्वास छोडकर कहा अच्छा बाबा! आज से मैं तुम्हारा बडा भाई हूँ । मैंने यानि की मुद्रा में ब्योमकेश के सिर पर हाथ रखकर कहा जाओ था विडंबना करो । चार बज रहा है तो मैं शीघ्र ही चलना चाहिए । मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है । तुम सदैव सत्य की खोज में लगे रहो । चाहे स्त्री योजित हो अथवा सांसारिक और भी उन के चला गया हूँ ।

Ep 5: विपदा का संहार - Part 1

बहुत पांच विपदा का संहार । निराश होकर ब्योमकेश ने अखबार मेरी गोद में फेंक दिया और बढ बढाने लगा । कोच नहीं कहीं भी कुछ नहीं है । इस से तो अच्छा है कि प्रेस वाले अखबार के प्रश्नों को खाली ही छोड दें । कम से कम छपाई का खर्चा तो बचेगा । मुझे उसकी झुंझलाहट बर्दाश्त नहीं हुई तो क्या कुछ भी नहीं है? अखबार में तो मैं तो कहते हो कि दुनिया की सारी खबरें केवल वर्गीकृत विज्ञापनों में होती है क्योंकि इसने मायूसी में एक जरूर सुलगाया और बोला नहीं कुछ नहीं । व्यक्तिगत सूचनाओं में भी कुछ नहीं । किसी ने विज्ञापन दिया है कि वह विधवा से शादी करना चाहता है । विधवा ही क्यों? जबकि कुमारी लडकियों की कतार लगी हुई है । जरूर उसके मन में चोर बैठा है । बात तो सही लगती है और भी तो कुछ होगा । एक बीमा कंपनी ने बडा इस्तिहार छापा वहाँ संयुक्त रूप से पति पत्नी का बीमा करेगी और यदि किसी कारण से उन में से एक की मृत्यु हो जाती है तो बीमा की सारी रकम जीवित साथी को मिलेगी । ये बीमा कंपनियां जीवन को इतना कष्टमय बना सकती है यानी आदमी शांति से मार भी नहीं पाएगा । ऐसा क्या है इसमें भी तुम्हें कोई गुण दोष दिखाई देता है । बीमा कंपनी को तो प्रत्यक्ष रूप से कोई फायदा नहीं होने वाला है । पर क्या यह लोगों के दिमाग में अपराध का बीज बोना जैसा नहीं है? मैं समझा नहीं । ज्यादा विस्तार से समझाओ तो समझो ब्योमकेश ने कोई उत्तर नहीं दिया । उसने हताशा से भरा निश्वास छोडा । अपने पैरों को मेज पर रखकर छत की ओर देखते हुए चाहे रूट का कष्ट खींचने लगा । सर्दियों का मौसम था, क्रिसमस की छुट्टियां चल रही थी । कलकत्ता वासी छुट्टियाँ मनाने शहर छोडकर दूरस्थ स्थलों के लिए निकल गए थे और दूसरे शहरों के वासी कलकत्ता घूमने आ गए थे । या कहानी तब की है जब ब्योमकेश का विवाह नहीं हुआ था । अपने दैनिक कार्यक्रम के अनुकूल हम दोनों सुबह चाय पर अखबार पढ रहे थे । तीन महीने की लंबी अवधि बिलकुल खाली गुजरी थी । खाली बैठे बैठे ब्योमकेश जैसे मजबूत व्यक्ति में भी एक प्रकार की और निकला बन बैठ गया था । दिनभर खाली बन के दिन लुढकते जा रहे थे । हर एक दिन अखबार देखते कि शायद कुछ मिल जाए पर सब व्यर्थ अखबारों में जो भी भरा होता हमारे लिए बेकार था । दिन बीतने के साथ मान भी बोझिल होने लगता था । मैं कल्पना ही नहीं कर सकता था की सोचने की ऊर्जा के अभाव में ब्योमकेश का मस्तिष्क कितना भूका होगा । मैंने इस विषय में ज्यादा चर्चा करना उचित नहीं समझा क्योंकि मुझे लगा यदि मैच की चर्चा करूंगा तो शायद कहीं यह सोच बैठे हैं कि मैं उस पर निठल्ले का दोष मान रहा हूँ । आज सुबह भी उसके निराश चेहरे को देखकर मुझे दुख हुआ यह सोचकर कि जिस अंधी गली में वहाँ फंसा बैठा है, उसे बाहर निकालने के लिए स्वयं ही योग्य है । मैंने खाली बन गई, चर्चा छोड दी और चुपचाप अखबार के पन्नों में हो गया । सर्दियों में कल करता सम्मेलनों और सेमिनार होगा, गढ बन जाता है । इस वर्ष में सम्मेलनों की बाढ थी । अखबार वालों को अपने पन्ने भरने का भरपूर मसाला मिल रहा था । तरह तरह की खबरें तरह तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के विस्तृत समाचार मैंने देखा । इस समय कोई छह से सात सम्मेलन चल रहे थे । इसके अतिरिक्त दिल्ली में अखिल भारतीय साइंस कांग्रेस चल रही थी । बडे बडे दिग्गज वैज्ञानिक देश के कोने होने से एकत्र होकर अपने सारगर्भित धुआंधार भाषणों से दिल्ली के प्रदूषण को और बढा रहे थे । उन की खबरों को पडने से उत्पन्न जो सेकेंड हैंड प्रदूषण मेरा मस्तिष्क झेल रहा है वह निश्चित रूप से मस्तिष्क पर एक कलोन छोड जाएगा । मैं अक्सर सोचता हूँ कि हमारे वैज्ञानिक काम करने से ज्यादा बोलते हैं । वैज्ञानिक जितना बडा होगा उसका भाषण उतना ही बडा होगा । अगर कोई विमान या इस स्टीम इंजन का आविष्कार करे और धुंआधार लेक्चर दे तो उसको तो सुनने का बनता है । पर जब तो मैं किराया उसके मारने तक की दवा नहीं बना सकते तो तुम्हारी लफ्फाजी कौन सुनता है साहब की जब बकवास है साइंस कांग्रेस की खबर पढते हुए एक नाम देखकर कुछ दिलचस्पी हुई । नाम था कलकत्ता के विख्यात प्रोफेसर और रिसर्चर डॉक्टर देवकुमार सरकार । उन्होंने अधिवेशन में एक लंबा भाषण दिया था । ऐसा नहीं कि बंगाल के अन्य प्रसिद्ध वैज्ञानिकों ने भाषणों से सम्मेलन को लाभान्वित न क्या हो । पर प्रोफेसर देवकुमार सरकार के नाम पर नजर इसलिए बडी कि वे हमारे पडोसी है । हमारे घर से दो मकान छोडकर कोने वाला मकान हो नहीं रहा है । यह भी हमारी उनके जान भेजा नहीं थी । किंतु हम उनके बेटे हाबिल को जानते थे जो हमारे यहाँ आया करता था वहाँ ऍम के इसका बडा पसंद था । अठारह उन्नीस साल का युवक हाँ, अबुल कॉलेज का छात्र था । वहाँ आता और बडी श्रद्धा से ब्योमकेश को ताकता रहता था और ब्योमकेश मुस्कुराकर मन ही मन उसकी श्रद्धांजलि स्वीकार कर लेता हूँ । कभी कभी हम हम उनको चाय पर भी बुलाते, उस समय उसके रोमांच का कोई अंत ना होता । इस लिहाज से भी मेरे मन में जिज्ञासा थी कि हमारे उस युवा मित्र के पिता ने अपने भाषण में क्या कहा । एक सरसरी निगाह डालकर मैंने पाया कि उन्होंने भारतीय वैज्ञानिकों को विकास में जो आर्थिक कठिनाई आती है, उन के बारे में विस्तार से चर्चा की है । मैंने सोचा यदि में उसे जोर से पढकर ब्योमकेश को सुना हूँ तो शायद ब्योमकेश के बोझिल मस्तिष्क को कुछ राहत पहुंचे । यह सोचकर मैं बोला सुनो हमारे हाथ खुल के पिता ने दिल्ली में क्या कहा है क्योंकि इसमें कोई उत्साह नहीं दिखाया और नहीं आपने नजरों को छत की बीमों से हटाया फिर भी मैंने पढना शुरू कर दिया । इस तथ्य को स्वीकार कर लेने में हमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि कोई भी राष्ट्र वैज्ञानिक ज्ञान के बिना महान राष्ट्र नहीं बन सकता । यहाँ आमधारणा बन गई है कि भारतीय वैज्ञानिकों में खोज और आविष्कार तथा उत्पादक रिसर्च करने की क्षमता नहीं है और इसी को भारत के स्वावलम्बी न हो पाने का एक प्रमुख कारण बताया जाता है । लेकिन यहां धरना बिल्कुल गलत है, इसका कोई आधार नहीं है । इसका सबूत है हमारा गौरव में इतिहास । यहाँ यहाँ बता नहीं की आवश्यकता नहीं है कि भारत का प्राचीन काल ज्ञान और विज्ञान में इतना वैभवपूर्ण और उन्नतशील था, जिसके सूत्रों के बल पर ही आधुनिक विज्ञान की उत्पत्ति हुई और सुदूर क्षेत्रों में उसका विस्तार हुआ । आधुनिक वैज्ञानिक चिंतन के चार आधार सिस्टम है गणित, खगोल विद्या, चिकित्सा और मूर्तिकला । इन चारों का जनक भर्ती है । फिर भी आज के युग में यह तर्को व्यर्थ ही कहा जाता है । इसके परिणामस्वरूप हमारी आविष्कार की अद्भुत क्षमता हाउस की ओर अग्रसर है । ऐसा क्यों हुआ? क्या हमारी मानसिक ऊर्जा समाप्त हो गई है? नहीं, ऐसा नहीं है । इसके कारण कुछ और है, जिसमें हमारी योग्यता की ऊर्जा को निष्क्रिय बना दिया है । राजीन गाल में ऋषि, मुनि और ज्ञानियों को राजकीय संरक्षण प्राप्त था । उन्हें संसाधनों के बारे में चिंता नहीं करनी पडती थी । जब कभी धन की आवश्यकता होती तो वह राजकीय कोर्स से प्राप्त हो जाता था । राजकीय कोष की अकूत संपदा उनकी खोज और आविष्कारों के लिए हरदम उपलब्ध रहती थी । आर्थिक संसाधनों की चिंताओं से मुक्त रहकर ज्ञानी और वैज्ञानिक अपनी संपूर्ण ऊर्जा अपने शोध में लगाते थे और इसी के परिणामस्वरूप उन्हें अपने प्रयासों में पूर्ण सफलता मिलती थी । लेकिन हमारे वैज्ञानिकों की दशा कैसी है? सरकारें वैज्ञानिक शोध को प्रश्रय देने से कतराते है । उधर समाज का आर्थिक रूप से सक्षम धनी वैभवशाली वर्ग भी अनुसंधान और शोध की योजनाओं में खास दिलचस्पी नहीं रखता है । ऐसी स्थिति में हमें सीमित साधनों में बंद कर अपना कार्य करना पडता है या साधक भी कुछ अनुदान अदुआ कुछ विश्वविद्यालयों के आर्थिक सहयोग से एकत्र धन पर आधारित रहते हैं । इसलिए हमारी कार्यक्षमता और सफलता भी उसी के अनुरूप नियंत्रित रहती है । हमारी स्थिति ठीक उस हुए की बात है जो एक हाथ को अपनी पीठ पर ढो नहीं सकता । हम साधनों के अभाव में बडे आविष्कार करने लायक नहीं रहते हैं । एक अभावग्रस्त मस्तिष्क विराट की कल्पना कैसे कर सकता है? इस सब के बावजूद मेरा अटूट विश्वास है कि यदि हम अपने मस्तिष्क को आर्थिक चिंताओं से मुक्त रखकर अपने शोध और अनुसंधान कार्यों में प्रयासरत रहे हैं तो कोई कारण नहीं कि हम विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया के दूसरे देशों से पिछड जाए । लेकिन सच्चाई यह है कि हम अभावग्रस्त हैं तो इसके मायने यह नहीं है कि हमारे वैज्ञानिक चुपचाप बैठे हैं । बल्कि इन विपरीत स्थितियों के बावजूद उन्होंने अब तक जो भी शोध, अनुसंधान और आविष्कार किए हैं, वे तारीफ के काबिल हैं । क्या कोई ऐसी एजेंसी है जो इन छोटे छोटे वैज्ञानिकों की प्रयोगशालाओं में होने वाले प्रयोगों और आविष्कारों का हिसाब रखती हो? यहाँ राजू की बात है कि छोटी छोटी प्रयोगशालाओं में ही ऐसे आविष्कार हो जाते हैं जिसे देखकर सब वैज्ञानिक आश्चर्यचकित रह जाते हैं और अपने अविष्कार को दुनिया की नजर से बचाकर दूसरी खोजों में लग जाते हैं । वे जानते हैं कि वे अकेले हैं, कोई उनकी सहायता के लिए आने वाला नहीं है । ऐसी विचित्र स्थिति में किसी को अपनी खोया आविष्कार बताने में भी भाव खाते हैं क्योंकि उन्हें भय रहता है कि जिस शहर किसी को उनके आविष्कार का पता चल जाएगा, वहाँ उसकी खोज कर रहे वैज्ञानिक से चीन कर अपने पर ले लेगा । क्योंकि दुनिया में ऐसे चोरो की कमी नहीं है । इसलिए मेरी आप लोगों से अपील है हमें आर्थिक सहायता तो हमारे पास शोध व अनुसंधान के लिए नियंत्रित साधन हूँ तथा वैज्ञानिकों को उनके आविष्कारों का श्रेय देने की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए । हम जाते हैं बात बात प्रोफेसर के ज्ञान की चर्चा में मैं भूल गया की कोई और भी उसे सुन रहा है । ब्योमकेश ने एक का एक बीच में काट दिया । बाजी इतना काफी है क्या हुआ हमें यहाँ चाहिए । हमें वहाँ चाहिए और वहाँ भी चाहिए । यहाँ सुनते सुनते कान पक गए बस दूर के ढोल सुहावने लगते हैं । मैंने कहा यही दो दोस्त फेल होने के बहाने अनेक हैं । देवकुमार बाबू का भाषण पढकर लगता है कि देश के ज्ञानी और विज्ञानी भी काम चोरी की इस प्रवर्ति से बडी नहीं है । ब्योमकेश के उदास होठों पर हल्की सी मुस्कान तैर गई । वहाँ बोला हाँ बोल देखने में एक सीधा सादा लडका दिखाई देता है और बुद्धिमान है । उसके पिता होने के नाते देवकुमार बाबू कैसे ऐसे फिजूल की बातें आपने लेक्चर में बोलते फिरते हैं । यह जरूरी नहीं कि बुद्धिमान लडके का पिता मेधावी हो । क्या तुम प्रोफेसर सरकार से मिले हो? मैंने पूछा मैं शायद नहीं मिला हूँ और उनसे मिलने की लालसा भी नहीं हुई लेकिन सुना है कि उन्होंने दूसरी शादी की है । इससे बडी मूर्खता और क्या होगी? और ब्योमकेश ने फिर से अपनी आंखें बंद कर ली । घडी ने साढे आठ बजाये मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था तो मैं कुर्तिराम से एक और कब चाय बनाने के लिए कहने जा ही रहा था कि ब्योमकेश आंखें खोलकर सीधा बैठ गया । मुझे सीढियों से पदक आपकी आवाज सुनाई दी है । कोई आ रहा है उसने कान फिर से लगाए और आबुल बोलते हुए फिर निराज मन से लेट गया । काबुल ही है । क्यों आया? लगता है जल्दी में एक्शन बाद दरवाजा खोलकर हाँ अबुल तेजी से अंदर आकर बैठ गया । उसके ऊपर हवाइयां उड रही थी । आंखों में भय था जैसे कोई विभत्स घटना देखी हो । वहाँ कोई आकर्षक लडका नहीं था । मोटी धुल धुल, देवर, गोल चेहरा और हल्की घास जैसी दाडी वहाँ व्याकुल दिखाई दिया । मैंने उठकर पूछा यहाँ बोल क्या हुआ? लेकिन हाउसफुल पागल की तरह ब्योमकेश को देख रहा था । मेरी बात शायद उसने सुनी नहीं । वहाँ उठा और लडखडाकर ब्योमकेश के नजदीक पहुंचा और बडबडाया भी । उनके सर्वनाश मेरी बहनें का एक मर गई और वहाँ जोर जोर से रोने लगा । ब्योमकेश ने हाबिल का हाथ पकडकर उसे कुर्सी पर बैठाया । कुछ देर वहाँ वैसे ही रोता रहा । अनायास विवस्त्र कान से लडका अपना होश खो बैठा था । हम लोगों को अब तक यह नहीं मालूम था कि हाँ बुल की बहन भी है । उसने अपने परिवार के बारे में कभी कुछ नहीं बताया था । मैंने इतना ही सुना था की हाँ बुल की माँ के मरने के बाद देवकुमार बाबू ने शादी कर ली है और हाँ अबुल तथा उसकी नई माँ के बीच अच्छा रिश्ता नहीं है । थोडी देर में हाँ बोल कुछ शांत हुआ और बताने लगा पिताजी दिल्ली गए हैं और घर में वहाँ उसकी बहन और उसकी माँ है । आज सुबह रोज की तरह पडने के लिए ऊपर अपने कमरे में चला गया । घडी में आठ घंटे बजने के बाद उसे माँ की ठीक सुनाई दी । वहाँ नीचे भागा । उसने देखा की माँ रसोई के बाहर खडी जोर जोर से रो रही है । मैं समझ नहीं पाया कि वह क्या कर रही है । इसलिए मैंने रसोई में घुसकर देखा की उसकी बहन रेखा इस टोकी और झुकी खडी है । उसमें उससे पूछा कि उसे क्या हुआ है । जब उसने कोई उत्तर नहीं दिया तो मैंने उसके पास जाकर उसे हिलाकर देखा तो पता लगा कि वह मर चुकी है । उसकी देह ठंडे पत्थर जैसी और हाथ पैर अकड गए थे । इतना कहकर हाँ अबुल फिर से सिसकने लगा । मैं क्या करूँ भी उनके पिताजी यहाँ नहीं है । इसलिए मैं आपके पास बाहर आया हूँ । रेखा मर गई थी । भगवान यहाँ कैसे हो गया भी उनके इस बार हाँ अबुल की दशा देखकर मुझे भी नया आ गयी । ब्योमकेश नेहा बोल के कंधों पर हाथ रखकर कहा हाँ बोल, अपने को संभालो भाई । संकट में हिम्मत नहीं हारते । अच्छा यहाँ बताओ कि रेखा को क्या कोई बीमारी थी? कोई रजाई की बीमारी मैं नहीं जान का । मैं नहीं समझता । ऐसा कुछ था क्या? उम्र थी सोलह वर्ष वहाँ मेरे से दो वार से छोटी है । क्या उसे हाल ही में बेरी, बेरी या कोई अन्य बीमारी हुई हो? नहीं ब्योमकेश ने कुछ देर सोचा फिर बोला चलो तुम्हारे घर चलते हैं । जब तक मैं स्वयं देख लू क्या हुआ है तब तक मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ । तुम अपने पिता को तार देकर तुरंत आने को कहो लेकिन उनको अभी जरूरी है कि हमें डॉक्टर मिले । डॉक्टर रुद्रा तो तुम्हारे बगल नहीं रहते हैं ना तब चलो अजित जल्दी ही हम देवकुमार बाबू के घर पहुंच गए । घर सामने से तिकोना था । जैसे दोनों तरफ बने घरों ने इस घर को दोनों ओर से घेरकर तिकोना कर दिया हो । इसलिए नीचे एक कमरा और रसोई दिखाई थी । उसके साथ भंडारघर और पीछे बाद रूम था । घर के दरवाजे पर पहुंचते हुए हमें दिखाई दिया । एक महिला खडी चीख रही है । स्वर में परेशानी और व्याकुलता थी, लेकिन शोक का आभास करना ही नहीं था । इस पर था कि महिला अपनी युवा पुत्री के मरने के शोक से चिल्ला रही है । दरवाजे पर एक बूढा नौकर दिग्भ्रमित होकर खडा था । ब्योमकेश ने उससे कहा तो यहाँ काम करते हो ना जाओ सामने के घर से डॉक्टर बाबू को बुला लाओ । कुछ काम मिले जाने से वह खुश होकर बोला जी, सब और चला गया । हम लोग हाँ बोल के साथ अंदर दाखिल हुए । जिस महिला की चीज हमें बाहर से सुनाई दी थी, वहाँ सीढियों से नीचे घडी चिल्ला चिल्लाकर अपने से ही बात करती जा रही थी । हमारे कदमों की आवाज से उसने चौंककर हमें अजीब नजरों से देखा कि हाँ बोल के साथ दो अजनबी आ रहे हैं तो जल्दी से आचल ढककर सीढियों से ऊपर चढ गई । चाहते समय मैंने उसके चेहरे की झलक से महसूस किया कि उसे हमारा अच्छा नहीं लगा । झलक के तुरंत बाद उसने चेहरे को आज कल से छिपा लिया । हाँ, अबुल धीरे से बडबडाया मेरी माँ है वो अच्छा । ब्योमकेश ने कहा रसोई किधर है? हाँ बोलने छोटे से चौक की और इशारा कर दिया । उसके बगल में छोटे छोटे कमरे थे । सबसे बडा कमरा रसोई घर था, बाहर नहीं लगा था जिसकी टपकती बूंदों से वह स्थान चिकना हो गया था । हमने अपने जूते उदार दिए और अंदर गए । कमरे में रोशनी की कमी थी । कोई खिडकी भी नहीं थी । आप बोलने आगे बढकर रसोई का स्विच दबाया जिससे एक मटमेला प्रकाश पहला और हमें साफ दिखाई देने लगा । दरवाजे के सामने वाली दीवार से सटे दो कोयले के चूल्हे एक ऊंचाई पर बने हुए थे जिनमें कोयला भरा था । पर उनमें जला हुआ एक भी ज्यादा । एक जून के सामने एक लडकी आगे वो झुकी खडी थी जैसे पूजा कर रही हो । उसका सिर आगे की तरफ झुका हुआ था । एक हाथ नीचे लटका झूल रहा था । लेकिन पीछे से देखने में नहीं लगता था कि उसके देह में जान नहीं है । ब्योमकेश ने झुककर उसके हाथ की कलाई पकडकर नब्ज देखी । उसके चहरे को देख कर मैं जान गया कि उसको नब्बे नहीं मिली । उसके हाथ को देखकर ब्योमकेश ने उसके मुंह को उठाने की कोशिश की । वह थोडा सा ही ऊपर उठा सकता क्योंकि अब तक सारे शरीर में एक हम जब गई थी देखने में लडकी आ कर सकती । रंग गोरा तिकोनिया चेहरे पर मछली जैसे हो उसकी उम्र के लिहाज से शरीर भरा भरा था । लंबे बालों को शायद उसने यही छोड रखा था । जो पीछे जुल रहे थे । वहाँ छपी सूती साडी पहनी थी । दोनों हाथों में सोने की तीन तीन चूडियां, कान में टॉप तथा गले में हल्का स्वर्ण हार था । ब्योमकेश ने नजदीक से एक बार फिर उसका मुआयना किया । वहाँ सीधा होकर तीन कदम पीछे गया । वहाँ से उसने एक बार फिर देखा । पूरा मुआयना करने के बाद वहाँ दोबारा उसके पास गया और इस बार लडकी के मुडे हुए दाय आपको देखा उसने हथेली देखनी चाहिए तो देखा वह कोयले से काली हो गई थी । स्पष्ट था कि उसने ही चूल्हे में कोयला भरा था । पूछने देखा की हथेली के अंगूठे से पहली उंगली सभी हुई है । दोनों को अलग करने में एक छोटा तिनका निकल कर नीचे गिर गया । उसने उठाकर देखा वह जली हुई माचिस की तीली थी । दिल्ली को नजदीक से देखने के बाद उसने उसे फेंक दिया । फिर उसने लडकी के बाएं हाथ को देखा । अकेली बंद थी । उसकी हथेलियों को हटाकर मुट्ठी गोली तो नीचे माचिस की डिब्बी गिर गई । ब्यू उनके इसने डिब्बे को खोलकर देखा । उसमें कुछ तीलियाँ बची हुई थी । फिर सोच कर वहाँ धीरे से बोला, वही तो जो मैंने सोचा था, वही निकली । मृत्यु तभी हुई जब उसने सोलह सौ लगाने के लिए माचिस जलाई । ब्योमकेश ने अब उसे छोडकर रसोई घर में चारों और नजर दौडाई । उसने लडकी के पीछे से दरवाजे तक फर्ज पर बने पद जिन लोगों को देखा और बोला, नहीं, मृत्यु के समय रसोई घर में कोई और नहीं था । बाद में एक महिला ने प्रवेश किया और फिर हाँ बोल अंदर आया । उसी समय रसोई घर के बाहर कुछ आवाजें सुनाई दी क्योंकि बोला शायद डॉक्टर साहब आए हैं । हाँ, अबुल उन्हें अंदर ले आओ । काबुल चला गया । उस समय मौका देखकर मैंने पूछा कुछ मिला । ब्योमकेश ने हताहत से स्वर में कहा ऐसा कुछ नहीं । इतना जरूर पता लगा की मृत्यु से पहले तक का लडकी को जरा भी आवाज नहीं था कि उसकी मृत्यु होने वाली है । हाँ, अबुल डॉक्टर रुद्रा को लेकर आ गया । डॉक्टर रुद्रा मध्यवय के कलकत्ता के जाने माने फिजीशियन थे, किन्तु वे अपने रूखे स्वभाव और क्रोध के कारण बदनाम भी थे । उनका पारा हमेशा आसमान पर रहता था । यहाँ तक कि मरने वाले मरीज के सामने भी उनका बढता हूँ । इतना बेहुदा और कर्कश होता था की कोई और डॉक्टर होता तो उसको दुकान छोडकर भाग जाना पडता है । लेकिन जहाँ तक योग्यता का प्रश्न था वे अपने हुनर में इतने माहिर थे कि लोग उनके इस स्वभाव के बावजूद हमेशा उन्हीं के पास आते थे और यही उनकी सफलता का रहस्य था । उन की प्रैक्टिस भी बहुत तगडी थी । डॉक्टर रुद्रा की शक्ल उनका परिचय देने के लिए काफी थी । काले यानि कोयले से काले घोडे जैसे ऊपर चमकती छोटी छोटी लाल आंखें जिसपर पडती वह देशक में आ जाता है । वोटों पर भी बहुत कर्कशता कोर्ट पैंट और जूते पहने । जैसे ही उनका प्रवेश हुआ तो लगा जैसे वातावरण में तेज गर्मी की लहर व्याप्त हो गई है । हाँ बोलने चुपचाप अपनी बहन की और इशारा कर दिया डॉक्टर रुद्रा ने अपनी आदत के अनुसार रूखे स्वर में कहा यहाँ है मर गई गया । ब्योमकेश बोला आप देखिए और बताइए । डॉक्टर रुद्रा ने क्रोधी निगाह से ब्योमकेश को देखा और बोले आपको नहीं है मैं पारिवारिक मित्र हूँ वो उन्होंने ब्योमकेश को अनसुना करते हुए हाब उनसे पूछा यहाँ लडकी कौन है? देवकुमार बाबू के बेटे हाँ बोलने स्वीकारोक्ति में सिर हिला दिया । डॉक्टर रुद्रा के चेहरे पर एक उत्सुकता रह गई । उन्होंने बोला सिकोडते हुए पूछा । इसी का नाम रेखा है । काबुल ने फिर से दिला दिया, क्या हुआ इसे कुछ नहीं । एक डॉक्टर रुद्रा में झुककर लडकी की नब्ज देख कर आंखों की पुतलियां देखी और उठकर बोले उसकी मृत्यु हो चुकी है । मैं क्यों लगभग दो घंटे पहले हुई है । शरीर अकड गया है । उन्होंने यह बडे चाव से कहा जैसे यह सुनकर मौजूद लोगों में खुशी की लहर दोडने वाली हो । ब्योमकेश ने पूछा क्या यहाँ संभव है की मृत्यु का कारण पता लग सकें । यह हाल आज के पोस्टमार्टम पर ही पता चलेगा । मैं जाता हूँ मेरे भी इसके बत्तीस रुपए मेरे घर में भेज देते हैं । और हाँ, पुलिस को सूचना करना ना बोली है क्योंकि मृत्यु प्राकृतिक है । यह कहकर डॉक्टर रुद्रा घर से बाहर निकल गए । रसोई घर से बाहर आते हुए ब्योमकेश बोला, हाँ, पुलिस को सूचित करना तो जरूरी है अन्यथा बाद में समस्या उत्पन्न हो सकती है । मैं स्थानीय चौकी के इंस्पेक्टर वीरेन बाबू को जानता हूँ । मैं उन्हें सूचित कर देता हूँ । उसने कागज पर कुछ पंक्तियां लिखकर नौकर को देते हुए कहा कि वहाँ यह चिट्ठी स्थानीय पुलिस चौकी में जा कर देते हैं । फिर बोला, बॉडी से अब और कोई छेडछाड हो पुलिस अगर खोदी देख लेगी सब कुछ और उसने रसोई घर को बंद करके हांगुल से कहा हाँ बोल, एक बार रेखा के कमरे का मुआयना कर लेना उचित होगा । हाँ! बोलने । गंभीर आवाज में कहा चलिए और आगे आगे सीढियाँ चढने लगा । शुरू होने के बाद वहाँ जैसे जरूरत हो गया था और यंत्रवत बात करता था । जो पूछा जाता था उतना ही उत्तर बस प्रथम तल पर तीन कमरे थे जिनमें से अंतिम कमरा देखा था और पहले दो कमरे संभव था । देव बाबू और उनकी पत्नी के बैडरूम थे । रेखा का कमरा यद्यपि छोटा था पर साफ सुथरा था । एक तरफ पलंग दूसरी और खिडकी के पास दस जिसके बाद दो बुक्स थे जिनमें बंगला पुस्तकें भरी हुई थी । एक कोने में शीशा लगा हुआ था जिसके नीचे ब्रस्ट रिबिन हेयर क्लिप टंगे हुए थे । कहने का मतलब यहाँ की कमरे में आकर लगता था कि यहाँ एक दक्षिण समझदार पढी लिखी लडकी का कमरा है ।

Ep 5: विपदा का संहार - Part 2

ब्योन के एकाद चीजों को उठाकर देखता रहा । उसने हेयरपिन और रेपिनो को उठाकर देखा । उसके बाद खिडकी के पास जाकर देखा । वहाँ से डॉक्टर रूद्र का घर दिखाई देता था । दोनों कि छठे पास पास थी । उसके बाद हर ड्रेस के पास आया । दराज खोलकर देखा कुछ नोटबुक, लेटर पैड सैंटोकी, शिशी और कुछ सफेद गोलियाँ रखी थी । एस्पिरिन ऍम क्या रेखा इस तरह लेती थी? हाँ, कभी कभी जब कभी उसे सर दर्द होता था । हाँ बोलने उत्तर दिया क्योंकि इसने दराज बंद कर दी और तेज कदमों से चहलकदमी करने लगा । एकाएक हुआ पलंग के पास रुक गया । उसने ध्यान से देखा । रजाई पैरों की तरफ सिकुडी पडी थी । चादर पर सलवटें थी और तकिए पर सिर के निशान मौजूद थे । यानि रात में रेखा अपने बिस्तर पर हुई थी । कुछ बडों के लिए मेरा दिमाग गमगीन ख्यालों में डूब गया । इस जीवन का क्या भरोसा है? अभी दल उसके नींद के लक्षण जियो के क्यों बने हुए हैं और वहाँ प्राणी दूसरी दुनिया में पहुंच गया है । कितना क्षणभंगुर है जीवन विचारों में मग्न ब्योमकेश ने तकिये को उठाकर देखा तो उसके नीचे एक हरे रंग का कागज तय किया रखा दिखाई दिया । उत्सुकता से ब्योमकेश ने उसे उठा लिया । वहाँ ऍम था थोडी हिचकिचाहट के बाद ब्योमकेश ने उसे खोल लिया और पडने लगा मैं भी ब्योमकेश के पीछे खडा होकर देखने लगा । लिखावट इस तरह की थी । पत्र इस प्रकार था नो टुंडा हमारा विवाह नहीं होगा क्योंकि तुम्हारे पिता ने दस हजार रूपये दहेज के रूप में मांगे हैं और मैं जानती हूँ मेरे पिता इतनी बडी रकम नहीं दे पाएंगे । शायद तुम जानते हो गए कि मैं तुम्हारे अलावा किसी और से विवाह नहीं कर पाउंगी । लेकिन इस घर में अब जीना कठिन हो गया है । क्या तू मेरे लिए जहर ला सकते हो? मैं जानती हूँ कि तुम्हारी फॉर्मेसी में कई प्रकार के जहर होते हैं । मुझे कोई जहर ला दो । अगर नहीं लाओगे तो जीवन समाप्त करने का मैं कोई दूसरा साधन ढूंढ होगी तो तुम जानते ही हो । मैं अपना वायदा निभाती हूँ । सदैव तुम्हारी रेखा बी । उनके इसने शांत वातावरण में पत्र को पढा और उसे हासिल को दे दिया । उसने फिर से वह पत्र पढा और पढते पढते रोने लगा । आंसुओं की धार उसके चेहरे पर बहने लगी । वहाँ बोला मुझे मालूम था एक दिन यहाँ होगा रेखा आत्महत्या कर लेगी । यहाँ नॉन टू कौन है? नॉन टूट डॉक्टर रूद्र का लडका है । दोनों के रिश्ते की बातचीत चल रही थी । नॉन टूटा अच्छे व्यक्ति है लेकिन उस जंगली पुरुष ने दस हजार के दहेज की मांग पर पिताजी को नाराज कर दिया । ब्यू उनके इसने अपनी हथेलियों से एक बार अपना चेहरा साफ किया और बोला लेकिन चलो छोडो जाने दो । उसने हांगुल के हाथों को पकडकर बैठाया और आइस धीमी आवाज में उसे सांत्वना देने लगा और उन्हें गले से हवल बोला भी । उनके ज्यादा मेरी एक बहन ही थी जिनको मैं अपना कह सकता था । माँ गुजर गई । पिता के पास हमारे लिए समय नहीं है । उसमें अपना चेहरा हाथों में छुपा लिया और फूट फूटकर रोने लगा । थोडी देर में ब्योमकेश के प्रयासों से हाउल कुछ समझ पाया । तब ब्योमकेश उठ खडा हुआ और बोला चलो अब पुलिस आती होगी । उससे पहले मैं तुम्हारी माँ से कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ । हाँ, अबुल की नई माँ अपने कमरे में थी । हाँ बोलने जाकर ब्योमकेश की इच्छा की सूचना दी तो उसकी माँ दरवाजे पर आकर खडी हो गई । उसका मुंह अब भी थोडा सा ढका हुआ था । इससे पहले मैंने उसकी एक झलक देखी थी । इस बार मैंने ठीक से देखा । उम्र लगभग सत्ताईस अट्ठाईस वर्ष दुबली और लम्बा कद रंग गोरा और नाक नक्से सामान्य होने के बावजूद उसे सुंदर तो क्या साधारण रूप से आकर्षक भी नहीं कहा जाएगा । कठोर व्यवहार की छाया उसकी आंखों में बस गई थी । यहाँ उसकी भ्रकूट क्यों से पता लगता था? पतले और मुडे हुए वोटों से दूसरे के प्रति अपमान वह दुत्कार जलका दी थी, जैसे हरदम दूसरों में दोष ढूंढने के लिए तैयार हो । उस की संपूर्ण चितवन से मुझे आवाज हुआ कि इस तरी ने विवाह के पश्चात कभी सुख नहीं पाया है । उसकी अपनी संध्या नहीं थी । इस कारण शायद वह पति की पूर्व संतान से भी प्यार नहीं करवाई और परिणाम स्वरूप उसका कठोर रह है । सहानुभूति अथवा प्यार की भावना से सादा मरुस्थल की तरह वंचित ही रह गया था मैंने एक मैंने एक और बात देखी, वहाँ अपने निजी जीवन में साफ सफाई रखने में कटिबद्ध है और इसलिए किसी को अपने निजी जीवन में या अपने कमरे में आने देना नहीं जाती । जिस तरह वहाँ पे मूल को आंचल से ढके द्वार पर अगर खडी हो गई थी, यह संकेत था कि उसे किसी का कमरे में प्रवेश करना पसंद नहीं है । वहाँ नहीं चाहती कि कोई उसके निजी जीवन में खलल पहुंचाये । इसलिए स्वाभाविक रूप से हमने उसके कमरे में जाने का कोई प्रयास नहीं किया और ब्योमकेश ने वहीँ खडे रहकर प्रश्न किया क्या आपने आज सुबह रेखा को देखा था? इस सीधे साधे प्रश्न के उत्तर में उस महिला ने बातों की झडी लगा दी । मैं समझ गया कि आदिकाल से मशहूर स्त्रियोचित गुणों के साथ साथ यहाँ महिलाओं वाचाल भी है अर्थात यदि बोलने का मौका मिल जाए तो रुकने का कोई अंत नहीं क्योंकि इसके प्रश्न से मौका पाकर उसने दुनिया भर की चर्चा शुरू कर दी । आज सुबह जब उसे पता लगा कि आया नहीं आएगी तो उसने रेखा से रसोई घर को साफ करके चुनाव चलाने के लिए कहा था । पर इसका यह मतलब नहीं कि मैं अपने सोतेले बच्चों से रोजाना ही काम करती हूँ । मेरी तबीयत ठीक रहने पर मैं कभी एक काम में उनसे नहीं करती लेकिन आया कि मैं आने से अकेले सब काम करना संभव नहीं हो पाता । इसलिए उसने रेखा से चूल्हा जलाने को कहा और खुद अपना कमरा साफ करके नहाने चली गई । उसके बाद यह जाने बिना की रसोई घर में क्या हो रहा है । वहाँ ऊपर गई । नहाने के बाद उसने कपडे बदले, बालों को सुखाया और दस बार ठाकुर को प्रणाम करके वहाँ जब सीढियों से नीचे पहुंचे तो देखा यहाँ सर्वनाशी घटना वहाँ सौतेले बच्चों के जीवन में कभी कोई रोक टोक नहीं करती । पर उसकी किस्मत ही ऐसी है कि हर बार उसे ही समस्या से जूझना पडता है । इस बार भी जो हुआ है उसका सहारा दोष उस पर ही मार दिया जाएगा । खास तौर पर जब घर के स्वामी लौटेंगे तो जो हंगामा होगा वही जानती है और अब चाहेंगे कि उसकी मौत ही हो जाए । जैसे ही उस महिला की चपड चपड कम हुई ब्योमकेश ने विशेष रूप से पूछ लिया क्या आपने आज सुबह रेखा को कोई कठोर शब्द कहे थे? यह सुनते ही महिला आगबबूला हो गयी । कठोर शब्द कठोर सब मेरे मुंह से नहीं निकलते । मैं ऐसे माहौल में नहीं मिली हूँ । जब से मैंने इस घर में कदम रखा है तब से आपने सोतेले बच्चों के साथ रहती आई हूँ । क्या कोई कह सकता है कि मैंने किसी से कभी अपशब्दों का प्रयोग किया हूँ? लेकिन आज सुबह जब मैंने देखा को चूल्हा जलाने को कहा तो वहाँ पर जाकर उसने यह कहते हुए कि उसे माचिस नहीं मिल रही है, वहाँ मेरे कमरे में घुस आई और मेरी फॅमिली । मैं उस समय कमरे में पूछा लगा रही थी । मैंने उससे कहा तुम बिना नहाये हुए, मेरे कमरे में उस गई इतनी बडी होकर तो मैं इतनी से कल नहीं है । अगर तुम्हें माचिस नहीं मिल रही थी तो दुकान से मंगा लेती । बस इतना भर मैंने कहा था इससे अधिक एक सब भी नहीं बोली । मैं अगर यह अपराध है तो मैं दोषी हूं । शांत स्वर में ब्योमकेश बोला सवाल दोषी होने का नहीं है, लेकिन रेखा को आपके कमरे में मार्च इसके लिए क्यों आना पडा? क्या माचिस आपके कमरे में रहती है? महिला ने उत्तर दिया हाँ मैं अंधेरे कमरे में नहीं हो सकती है इसलिए मैं कमरे में तेल का लैंप रखती हूँ । ऍम सुपर रखे होते हैं, यह सभी जानते हैं । देखा भी जानती थी । मैंने कमरे में झांककर देखा । वाकई पलंग के सिरहाने की ओर दीवार से लगे सेल्स पर एक छोटा सा लैंप रखा था । यही अवसर उसके कमरे में नजर दौडाने का था । पूरा कमरा साफ साफ इतना चौदह था, फर्नीचर भी जैसे जल गया था । यहाँ तक की दीवार पर लगी तस्वीर में माँ काली भी युवा बाहर निकालकर इस भय से डर लग रही थी कि उस कमरे की पवित्रता में कोई बाधा ना बहुत जाए । ब्रेक कुडियों को तानकर ब्योमकेश ने पूछा तो वहाँ अंतिम मार था । जब आपने रेखा को देखा उसके बाद आपने उसे जीवित नहीं देखा नहीं और महिला दूसरी बार अपनी चपड चपड शुरू करने जा ही रही थी कि नौकर ने नहीं जैसे पुलिस इंस्पेक्टर के आने की सूचना दी । हम लोग नीचे उतर आए । ब्योमकेश इंस्पेक्टर वीरेन बाबू से खूब परिचित था । दोनों एक दूसरे के महत्व को समझते थे । बिरेन बाबू मध्यवय का स्वस्थ और मजबूत काटी का बुद्धिमान और कर्मठ व्यक्ति था । ब्योमकेश के मन में उसके लिए काफी सम्मान था । विशेष रूप से इसलिए कि उसमें हम पुलिस अधिकारियों की तरह दिखावा और दूसरों को नीचा दिखाने की पुलिसिया प्रवर्ति नहीं थी । मैंने भी कई केसों में देखा है कि ब्योमकेश ने उस से सलाह लेकर ही काम किया है । आपने कामकाज के दौरान उसने जुआरियों, पाकिट मारो जैसे निचले दर्जे के अपराधियों के बारे में काफी अनुभव और दक्षता हासिल की थी । हमारे अभिवादन पर उसने ब्योमकेश को देखकर कहा, क्या हुआ अभी उनके बाबू क्या कोई गंभीर बात है? ब्योमकेश ने उत्तर दिया, इसका निर्णय आप ही करके बताया और उसे अंदर ले वाला है । लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजना । देवकुमार बाबू को तार करना और अपने भरसक मामलेको । निपटारा करने में हमें दो बज गए । उसके बाद घर जाकर हमने खाना खाया । जब तक हम उठा पाए, सर्दियों की सामने गिरना शुरू कर दिया । ब्यू उनके इस गंभीर मुद्रा में बैठा रहा । मेरा मन भी अशांत था । कहाँ तो हम लोग किसी उत्साह वर्धन केस की बाढ जो रहे थे और कहाँ इस दुखभरे मामले में फंस कर रहे गए हैं? मुझे बराबर । हाँ अबुल का चेहरा नजर आता था । मन क्लांत हो गया । धीरे धीरे रात में संध्या को अपने आवरण में ले लिया । बी उनके खिडकी के पास बाहर ताकतें बैठा रहा । आखिरकार मैं नहीं पूछ लिया तो मैं क्या लगता है? यहाँ आत्महत्या का ही मामला है । ब्योमकेश चौंक गया । क्या हो यह रेखा का मामला तुम्हारी क्या राय है? यद्यपि मैं पूर्णतः निश्चिंत नहीं था, फिर भी बोला और हो भी जा सकता है । उसकी मंशा उसके पत्र में स्पष्ट ही तो है । ठीक है यह तो मान लिया पर तुम्हारे विचार से तुम आत्महत्या के तरीके के बारे में क्या क्या हो गए? जहर यह भी तो उसके पत्र में स्पष्ट है । प्रकट हो जाता है । यहाँ भी मान लिया पर मैं समझ नहीं पा रहा हूँ की जब तक वहाँ जहर उसके पास नहीं आ जाता उसने कैसे उसका प्रयोग कर लिया । उस ने अपने पत्र में जहर की मांग जरूर की थी लेकिन वहाँ पत्र अपने गंतव्य तक पहुंचाई । कहा वहाँ तो उसके तकिये के नीचे ही दवा रह गया । दो जहर उसके पास आया कहाँ से मैंने कहा । पत्र में कहा गया कि यदि उसे जहर नहीं मिला तो वह किसी दूसरे तरीके का प्रयोग करके कोशिश करेगी । लेकिन तुम क्या सोचते हो कि पत्र को भेजने से पहले ही दूसरे तरीके का प्रयोग का प्रयास करेगी । इस बार मैं चुप रह गया । कुछ क्षण बाद क्योंकि बोला एक बात और कोई चूल्हा जलाते समय आत्महत्या नहीं करता । रेखा की मृत्यु एका एक हुई है बिलकुल बिजली की चमक की तरह । इससे पूर्व उसे आवाज तक नहीं था । दुर्घटना इतनी क्षणिक और तीव्रगामी थी कि शरीर में दूसरे हरकत भी नहीं कर पाई जैसी थी वैसे ही रह गई । यहाँ तक कि जली हुई माचिस की पीली भी जलकर वही रह गयी । ऐसी मृत्यु कैसे हो सकती है, यही तो मैं समझ नहीं पा रहा हूँ । जितनी जानकारी मुझे जहर की है उन्होंने मुझे केवल हाइड्रो सैनिक ऐसी भी ऐसा लगता है जिसकी मार इतनी घातक होती है । लेकिन फॅसने वाक्य को अधूरा ही छोड दिया । मैंने कुछ असमंजस में कहा इन सब बातों में मेरी जानकारी अधिक तो नहीं है । किन्तु क्या ऐसा नहीं लगता कि मौत एका एक राधा यादगार से हो गए हो? ब्योमकेश चुपचाप सोचता रहा । फिर बोला, यही एक संभावना मुझे अब उभरती दिखाई दे रही है । रेखा अक्सर सिर दर्द के लिए एस्प्रीन लेती थी । हो सकता है उसका दिल कमजोर हो रहा हूँ । लेकिन नहीं बाद कुछ जब नहीं रही । मैं इतनी आसानी से रद्द याद आपकी चोरी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हूँ । हालांकि तर्क और सभी संकेत तथा सबूत गवाही उसी की दे रहे हैं । एक भेदभरी मुस्कान के साथ वहाँ बोला, मेरा मस्तिष्क के और मन एक दूसरे को देख नहीं पा रहे हैं । मुझे क्यों लग रहा है कि यहाँ प्राकृतिक मौत है? एक असाधारण और कुछ ऐसा जैसा भयंकर रूप से कुछ गलत हुआ है । लेकिन जाने दो ज्यादा दिमाग लगाने का कोई फायदा नहीं । कल देखते हैं डॉक्टर की रिपोर्ट क्या कहती है? कमरे में अंधेरा हो गया था बे? उनके इसने लाइट जला दी इसी समय दरवाजे पर कुछ हल्की खटखटाहट हुई । इससे पूर्व सीढियों से कोई आहट नहीं हुई थी । ब्योमकेश ने जोर से कहा कौन है वहाँ अंदर आ जाओ । एक अनजान युवक ने धीरे से प्रवेश किया । वहाँ एक स्वस्थ गठीला आकर्षण नौजवान था । पर चेहरे पर अवसाद के चेन्नई स्पष्ट दिखाई दे रहे थे । उसने रबर सोल के जूते पहने थे इसलिए सीढियों पर चढने की आवाज नहीं हुई । संकोच वर्ष वहाँ दो कदम चल कर बोला मेरा नाम मन्मथनाथ रुद्रा है । ब्योमकेश ने उडती नजर उस पर डालते हुए कहा तो तुम ही हो । नॉन थोडा आओ, अंदर आ जाओ । उसने कुर्सी की और इशारा किया । मन्मथ ने बैठकर हटाते हुए कहा आप मुझे जानते हैं । ब्योमकेश ठीक उसके सामने बैठ गया । हाल ही में तुम्हारा नाम सुनने का अवसर मिला था । तुम रेखा की मृत्यु के बारे में जानना चाहते हो । युवक की आवाज एक बार चौंक गई था । उसकी मृत्यु कैसे हुई? भी उनके इस बाबू? यही अब तक पता नहीं चला है । मन मत ने अपनी उत्सुक आंखों से ब्योमकेश को देखा । क्या आपको शक है कि उसने आत्महत्या की है? नहीं, ऐसी संभावना नहीं तो क्या कोई और मैं अभी इस बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता हूँ । मन मत हाथों में मून छिपाए बैठा रहा । फिर सिर उठाकर कुछ हिचकी जाते हुए बोला शायद आपने सुना रेखा और मेरा हाँ मुझे मालूम है अब तक मन मत अपने आप को नियंत्रित किए हुए था । लेकिन अब एका एक वहाँ फूट पडा और रूंधे गले से कहने लगा, मैंने हमेशा ही रेखा को प्यार किया है । तब से जब वह छह साल की होगी और मैं उसके यहाँ खेलने जाया करता था । बाद में चलकर जब विवाह का प्रस्ताव आया तो मेरे पिताजी ने सब कुछ इतना मुश्किल कर दिया की बातचीत ही टूट गई । लेकिन मैंने सोच लिया था कि अपने पिताजी की मर्जी के विरुद्ध शादी करूंगा । इस बात पर मेरा पिताजी से झगडा पंजाब भी हुआ । उन्होंने कह दिया कि वे मुझे घर से निकाल देंगे । फिर भी यह झगडा कब हुआ था । कल दोपहर में मैंने कह दिया की मैं रेखा को छोडकर किसी और से शादी नहीं करूँगा पर किस से मालूम दा लेकिन ये हुआ कैसे भी उनके बाबू उसके जीवन को लेकर किसी को क्या मिलता । ब्योमकेश मेज पर रखी पैंतीस से खेल रहा था । उसने सिर उठाए बिना कहा तो तुम्हारे पिता को लाभ मिलता है । चौकर मन मत खडा हो गया । मेरे पिता नहीं नहीं अरे नहीं क्या कह रहे हैं अब पिताजी उसकी आंखों में दहशत तेहर गई । उसने चारों और रिक्त नजरों से टका और धीरे धीरे कमरे से चुपचाप बाहर निकल गया । मैंने ब्योमकेश की ओर देखा । वहाँ अब ऍम एज पर खटकड करने में मजबूत था । दूसरे दिन सुबह हम डॉक्टर की रिपोर्ट का इंतजार करते रहे । जब कोई खबर नहीं मिली तो ब्योमकेश ने पुलिस थाने में फोन किया तो पता लगा कि उनके पास भी अब तक रिपोर्ट नहीं आई है । शाम को लगभग साढे चार बजे देवकुमार बाबू दिल्ली से पहुंचे । वे हाबिल का तार पाते ही चल दिए थे और दोपहर में कलकत्ता पहुंचे । उनकी आयु कोई चालीस के करीब थी, लेकिन आपदा ने उम्र को बढा दिया था । दोहराते शरीर पर उन्हें बालों से चंद लगती थी । आंखों पर भारी चश्मा बाद बाद में भूल जाने की आदत से लगता था कि वे बहुत एक जगह से ज्यादा खयाली दुनिया में हुए रहते हैं । उनका बंद चलेगा । कोर्ट गोलमोल, ऊपर गोल गोल चश्मा कलकत्ता के छात्र वर्ग में खूब प्रचलित था । पडोसी के नाते मैंने भी उन्हें देखा था । लेकिन इस विभत्स घटना ने उनके चेहरे का रंग उडा दिया था । आंखों के नीचे काले सिया गड्ढे उनके झूले, गालों से मिलकर उनकी आकृति को और भी बोझिल बना रहे थे । आते ही उन्होंने पूछा आप ब्योमकेश है? उत्तर में मैंने ब्योमकेश की ओर संकेत कर दिया तो कहते हुए उन्होंने ब्योमकेश की ओर देखा और मेज के सहारे अपनी बेहद रखनी । ब्योमकेश ने सांत्वना के कुछ शब्द कहे जिन्हें शायद उन्होंने सुनाई नहीं । बोलने से पहले उन्होंने एक नजर कमरे के चारों ओर दौडाई फिर ठगी । आवाज में बोले मैं दिल्ली से कल सुबह दस बजे चला था और दोपहर ढाई बजे कलकत्ता पहुंचा हूँ । गरीब तीस घंटे से ट्रेन में हम शांत बने बैठे रहे । शारीरिक थकान उनके सभी अंगों में दिख रही थी । उन्होंने ब्योमकेश की ओर घोलकर का मैंने आपके बारे में हाउसफुल से सुना है । आपने जो इस विपदा में मेरी अनुपस् थिति में परिवार की सहायता की है उसका मैं सदैव आभारी रहो ना । ब्योमकेश बोला कृपया वहाँ सब छोडिए । अगर मैंने सहायता की तो एक पडोसी के नाते एक फर्ज के रूप में की है । यह तो आपको विनय है क्यों कि आप स्वयं ही एक व्यस्त व्यक्ति है । फिर एक पूछा उससे क्या हुआ था? कुछ बता पाएंगे । घर में कोई भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाया । ब्योमकेश ने शुरू से अंत तक जो देखा था उसका विवरण दे दिया । सुनते हुए देवकुमार बाबू ने अपनी जेब से सिगार निकाला । उसे होठों पर लगाया, फिर बिना तो लगाए ही मेज पर रख दिया । मेरी नजर बराबर उन्हें पर जमी हुई थी । वे ब्योमकेश के विवरण सुनने में इतने तल्लीन हो गए थे कि उन्हें पता ही नहीं चला था कि उनके हाथ क्या कर रहे हैं । एक बार उन्होंने चश्मा उदारा और कुछ देर तक बडी बडी आंखों से मुझे देखते रहे । फिर चश्मा लगाकर आंखे बंद कर ली । ब्योमकेश के विवरण समाप्त करने के बाद देवकुमार बाबू कुछ देर चुप चाप बैठे रहे । फिर एक का एक बोले वहाँ वहाँ डॉक्टर रुद्रा मेरे घर में क्या हुआ? मेरे घर में होता था वहाँ नीरज कमीना जंगली ऍप्स पैसे भूखा क्या नहीं कर सकता है । वहाँ पैसे के लिए वहाँ पे शायद है । क्रोध में आकर उन्होंने अपनी बेटी को कसकर पकड लिया । उनके चेहरे का रंग क्रोध में लाल हो गया । लेकिन कुछ देर में उन्होंने अपने आप को नियंत्रित कर लिया और हमें अच्छा देखते हुए झेल गए । अपने दलों को साफ करके उन्होंने कहा मैं चलूंगा भी उनके इस बाबू मैं एक बार फिर आपका आभार व्यक्त करता हूँ और उठकर दरवाजे की ओर चल दी है । दरवाजे पर पहुंचकर वे रुक गए । जैसे एका एक उन्हें कुछ सूझा हो । वो मुड कर बोले, मेरे पास पैसा होता तो मैं आपको इस केस की जांच पडताल के लिए जिम्मा देता, लेकिन मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है । मैं उतना खर्च नहीं कर पाऊंगा । ब्योमकेश ने कुछ कहना चाहा, लेकिन वे बेहद के इशारे से उसे चुप करते हुए बोले, नहीं, मैं किसी की सेवा मुफ्त में नहीं ले पाऊंगा । पुलिस अपना काम कर रही है । उसे करने दीजिए और फिर जहाज के लिए शेष रहा । अभी क्या है? कितनी भी जांच हो जाए, मेरी बेटी तो वापस नहीं आ सकती है और बिना किसी अभिवादन के वे सीनिया उधर गए । उनके यादगार आगमन के बाद हम लोग चुपचाप बैठे रहे गए । कुछ देर बाद ब्योमकेश ने गहरी सांस ली और बोला, चलो एक संदेह तो दूर हो गया । मैं सोचने लगा था कि देवकुमार बाबू अपनी पहली की संधान से प्यार नहीं करते हैं । यहाँ तो साबित हो गया कि जहाँ तक रेखा का प्रश्न है, वे उससे बहुत प्यार करते थे । देवकुमार बाबू अपना सिगार मेज पर ही भूल गए थे । ब्योमकेश उसे देख कर बोला आश्चर्य हैं ऐसे बुलाकर जी है । मैंने कहा देखा । डॉक्टर रुद्रा के प्रति उनका क्रोध ब्योमकेश ने सुना पर बोला कुछ नहीं । शाम को बिरेन बाबू डॉक्टर की रिपोर्ट लेकर आए । वे बोले रिपोर्ट में कुछ नहीं है । बार बार टेस्ट करने के बाद भी मृत्यु का कारण नहीं पता लग पाया । मैंने रिपोर्ट को पडा । डॉक्टर में लिखा है कि शरीर पर कोई जख्म या और कोई चेन्नई नहीं पाया गया । रक्त में जहर का कोई अच्छा नहीं है । अगर है मजबूत और साधारण था । अच्छा । एक का एक आघात मृत्यु का कारण नहीं है । ऐसा लगता है कि इस नई मंडल में अचानक पक्षाघात से मृत्यु हुई है । लेकिन डॉक्टर यह कहने में असमर्थ हैं कि स्नायुमंडल में अचानक पक्षाघात कैसे हुआ । उसने ऐसा विचित्र के पहले कभी नहीं देखा, जिसमें मृत्यु बिना किसी पूर्व चेन्नई के हो गए हो । ब्योमकेश रिपोर्ट को लेकर सोचता रहा । उसके माथे पर शिकन बढती गई । बीरेन बाबू ने कहा, यह केस अब निश्चित रूप से करो । ना कोर्ट में जाएगा, जहां फैसला होगा । अज्ञात कारण से मृत्यु । उसके बाद हम यानी पुलिस स्वतंत्र हो जाते हैं । चाहे तो वह जांच को जारी रखे या नया चाहे तो समाप्त कर दें । ब्योमकेश बाबू आप क्या सोचते हैं ऐसी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद जहाज से कोई से निकलेगा । ब्यूंग किसने कहा, मैं नहीं जानता कि जहाँ में कुछ निकलेगा या नहीं लेकिन जांच जारी रहना चाहिए । बिरेन बाबू ने उत्साह से पूछा, आप ऐसा क्यों कहते हैं? क्या आपको किसी पर शक है?

Ep 5: विपदा का संहार - Part 3

किसी एक पर नहीं है, लेकिन मुझे पूर्ण विश्वास है कि इसमें कुछ गलत हुआ है । बिरेन बाबू ने हामी में सिर हिलाते हुए कहा मुझे लगता तो है आपको देवकुमार बाबू की पत्नी के बारे में क्या सोचते हैं? ब्योमकेश कुछ देर शांत रहा । फिर धीरे से बोला, देखिए इधर उधर शक बैंक में से कोई लाभ नहीं । इस रहस्य को सुलझाने के लिए हमें पहले मृत्यु का कारण ढूंढना होगा । जब तक हमें यह नहीं पता लगता तब तक किसी पर शक करने से कुछ लाभ नहीं होगा । हाँ, इतना जरूर याद रखने की बात है कि जिस समय रेखा की मौत हुई उस समय वहाँ उसकी माँ और भाई ये दोनों ही घर में मौजूद थे । लेकिन इसी कारण वर्ष मुख्य समस्या को नहीं बोलना चाहिए । लेकिन जब डॉक्टर ही उसे नहीं बता पाया तो डॉक्टर में तो केवल लाश ही देखी है । हमने तो बहुत कुछ देखा है इसलिए यहाँ कोई असंभव नहीं की हम बाहर ढूंढ ले जो डॉक्टर नहीं रूम पाया है । कुछ संदेह से बिरेन बाबू बोले यह तो ठीक है पर चलिए आप जो कहते हैं वही सही है । आप तो देवकुमार बाबू की तरफ से शुरू से ही है और अंत तक रहेंगे भी । तो चलिए हम लोग मिलकर काम करते हैं । जब जरूरत पडेगी तो आपस में सलाह मशवरा करते रहेंगे । क्षणिक मुस्कान के साथ ब्योमकेश बोला है नहीं भाई, अभी थोडी देर पहले देवकुमार बाबू यहाँ आए थे । उन्होंने मुझे ड्यूटी करने से स्वतंत्र कर दिया है । आज तेरे से बिरेन बाबू ने कहा अच्छा हाँ । वे फीस दिए बगैर मेरा काम नहीं चाहते और फीस के लिए उनके पास उतने पैसे नहीं है । वाह वाह क्या कहते हैं उनके पास पैसे नहीं है, उनकी अच्छी नौकरी है और सुनाए काफी मोटी तनखा भी लेते हैं । हो सकता है यहाँ सही भी हो । यह सुनकर बिलियन बाबू की थी । उन्होंने चढ गयी । वे बोले अच्छा तो यह बात है । लगता है मुझे देवकुमार के आर्थिक स्थिति का चिट्ठा खोलना होगा । पर उसका और आपको काम पर न लगाने का रिश्ता क्या हो सकता है? क्या किसी को बचाना चाहते हैं? यह सुनकर मेरी हंसी फूट पडी । देवकुमार बाबू किसी को बचाने के लिए ब्योमकेश की सेवाओं से इंकार कर देंगे । यहाँ विचार मात्र ही हास्यास्पद बिरेन बाबू को मेरा हसना घर गया । उन्होंने कुछ टुकडे पन से पूछा इसमें हम नहीं क्या बात है? मैंने कुछ संजीदगी से उत्तर दिया । क्या आपने देवकुमार बाबू को देखा है? नहीं, यदि देखा होता तो समझ जाते मैं क्यों है? ज्यादा वीरेन बाबू जाने के लिए तैयार हो गए । उन्होंने भी उनके से कहा, मैं इस केस की छानबीन तब तक करता रहूंगा, जब तक मैं इसके दल में नहीं बहुत जाता है । मैं भी देखता हूँ, यहाँ कितना गहरा है, लेकिन आपको मैं छोडूंगा नहीं । देवकुमार बाबू ने भले ही छोड दिया हो, पर मैं जब तक जरूरत होगी सहायता के लिए आप के पास जाऊंगा भी है । यहाँ तो अच्छा प्रस्ताव है । ब्योमकेश बोला मैं अपनी ओर से भरसक सहायता करूंगा । मेरा भी इस केस में निजी स्वार्थ हो गया है । हाँ, बोल के कारण चलिये ठीक गए पर भी उनके बाबू क्या जांच के दो एक संकेत सुजा सकते हैं । किस दिशा से शुरुआत की जाए? आप की नजर में कोई संकेत तो उम्र ही होंगे । ब्योमकेश ने कुछ देर सोचकर कहा, क्यों ना शुरुआत डॉक्टर रुद्रा से की जाए । संभव तरह रहस्य की खून जी उन्हीं के पास से मिल सकती है । बिरेन बाबू जरा चौकर बोले हो तो ठीक है । आप कहता है तो उनका सिर्फ कुछ सोचने में झुक गया और वैसे ही वे चले गए । पांच छह दिन ऐसे ही बीत गए । ब्योमकेश पहले जैसी मुद्रा में लेट गया था । सुबह अखबार पडता, खिडकी से खाली आंखों से देखा करता । शाम को भी मेज पर पैर टिकाकर खिडकी से बाहर का नजारा देखता रहता । बिरेन बाबू का भी आना नहीं हुआ । इसलिए हमें पता भी नहीं कि केस में कितनी प्रगति हुई है । बस एक ही आगंतुक था हाँ । अबुल दो तीन रोज में वहाँ आकर बैठ जाता और सुनील होने उदास आंखों से सबको देखता रहता । ब्योमकेश ने उसका हौसला बढाने के लिए क्या क्या मैं कहा पर उसके सोनी आंखों में अंतर नहीं आया । हम पूछते भी की घर में क्या हो रहा है? उसके उत्तर भी । हाँ, अबुल केवल देखते रहने में ही दे जाता । शायद गम के सैलाब में उसके मस्तिष्क को जड बना दिया था । वहाँ हमें एक एक करके देखता और चुपचाप दरवाजा खोलकर सीढियां उतर जाता । वहाँ अपने घर के बारे में जो कुछ इशारों में बदलाव आया, उसे पता लगा कि उसकी सौतेली माँ का व्यवहार और भी कर्कश हो गया है । अंतर रहा । एक दिन वहाँ आया और गहरी सांस लेकर बोला तो पिताजी आज रात पटना जा रहे हैं । शायद उनका लेक्चर है । मैंने अनुमान लगाया कि देवकुमार बाबू शोकाकुल वातावरण से त्रस्त होकर पटना भाग रहे हैं । उन जैसे बुलाकर वैज्ञानिक जीवन वास्तव में दयनीय हो गया था । उस दिन हाँ बोल के जाने के बाद बिरेन बाबू का आगमन हुआ । उनके चेहरे से स्पष्ट था कि केस में वे अधिक बढ नहीं पाए हैं । ब्योमकेश ने उनका भरपूर स्वागत किया । चाय का समय था और चाय भी आ गई । ब्योमकेश ने बिरेन बाबू की ओर देखकर पूछा तो कैसा चल रहा है? चाहेगी? चुस्की लेकर बिलेन बाबू ने गंभीर मुद्रा में कहा, कोई भी प्रगति नहीं किसी भी और कुछ नहीं मिल पाया है । अभी तक सबूतो छोडिये शक की गुंजाइश भी नहीं बन पा रही है । अलबत्ता मुझे यह विश्वास जरूर हो गया है कि यह रहस्य बहुत ही कहीं गहराई में छुपा है । कदम कदम पर जितना में फैल हो रहा हूँ, उतना ही विश्वास गहराता जा रहा है । ब्योमकेश ने पूछा । मृत्यु के कारण की खोज में कुछ नया पता लगा । बिरेन बाबू ने सिर हिलाते हुए कहा, मैं डॉक्टर के पास गया था । वैसे तो अपनी रिपोर्ट के बाहर वहाँ कुछ कहने को तैयार ही नहीं है । पर मुझे लगता है उन के बाहर से एक स्टोरी है । उनका अनुमान है की मृत्यु किसी अज्ञात जहर की गैसे सोंपने से रजय आजाद की अदालत हो सकती है । उन्होंने यह सब स्पष्ट रूप से नहीं कहा किंतु लगता है उनका विश्वास कुछ ऐसा ही है । ब्योमकेश ने एक्शन सोचने के बाद कहा क्या आपने उन्हें बताया था की मृत्यु चूल्हा सुलझाने के समय हुई है? हाँ, कुछ मिनट और चिंतन के बाद ब्योमकेश ने कहा चलिए यहाँ तो ठीक है और दूसरी तरफ क्या आपने डॉक्टर रुद्रा के बारे में पता क्या हाँ जहाँ तक मुझे पता चला कि यहाँ व्यक्ति निहायत थी, कमीना और पैसे के लिए खून चूसने वाला ऍफ है । फिर वहाँ तो यह भी है कि आपने आविष्कार का प्रयोग करने के चक्कर में उसने टेटनेस के अनेक रोगियों का सफाया तक कर दिया है लेकिन इस केस में उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला । यह सही है कि देवकुमार बाबू की लडकी और डॉक्टर रुद्रा के लडके के बीच बातचीत चल रही थी । डॉक्टर रुद्रा ने दहेज के दस हजार रुपये की मांग भी रख दी थी जिससे देवकुमार बाबू ने पैसा न होने की वजह से टुकडा दिया था । लेकिन डॉक्टर रुद्रा का लडका एक होना युवा है । उसने अपने पिता का विरोध किया और इसको लेकर पिता से उसका जवाब हुआ । इसी बीच यह दुर्घटना हो गई । रेखा आएगा । एक मर गई । उसके बाद से मुझे पता लगाएगी लडकियों में घर छोड दिया है । उसका विश्वास है कि रेखा की मौत के लिए उसके पिता अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार हैं । मन मत के घर छोड देने की खबर नहीं थी । शेष बातें हमारे लिए नहीं नहीं थी जब वीरेन बाबू चुप हो गए तो क्योंकि उसने पूछा आपने कहा था कि देवकुमार बाबू की आर्थिक स्थिति के बारे में पता करेंगे? क्या कुछ पता क्या हाँ पता किया था । उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है । कोई उधर वगैरह नहीं है । पर दस से बारह हजार एक बार में शादी में लगाना उनके लिए संभव नहीं है तो वे रुपये पैसों के मामले में ज्यादा परवाह नहीं करते हैं । दूसरे व्यवहारिक भी कम है । हालांकि कॉलेज से आठ सौ रुपए का खासा वेतन मिलता है । लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वेतन का बडा भाग बीमा कंपनी को प्रीमियम चुकाने में खर्चा हो जाता है । उन्होंने जीवन बीमा कराया है । वहाँ भी इतनी देर से की महीने का प्रीमियम भी बडी रकम हो जाती है । उसको चुकाने के बाद वेतन में ज्यादा कुछ बच नहीं बंदा ब्योमकेश ने आश्चर्य से पूछा पचास हजार रुपए यह तो और क्या पॉलिसी उनियाना में उनके अकेले नहीं संयुक्त रूप से पति पत्नी के नाम हैं । यहाँ बीमा उन्होंने पिछले वर्ष ही कराया है । उन की दूसरी शादी है । यदि उन्हें एक आये कुछ हो जाए तो बेचारी विधवा बेसहारा ना हो जाए मेरे विचार से । इसलिए उन्होंने संयुक्त बीमा कराया है । बच्चों को इसमें से कोई बात नहीं मिलेगा । अच्छा और कुछ और । क्या मैंने हाबिल पर भी नजर रखने के लिए एक आदमी को लगा दिया है । शायद उससे ही कुछ नया पता लग जाए । लडका तो जैसे पागल हो गया है । उसने कॉलेज जाना छोड दिया है । दिन भर सडकों को नापता फिरता है । कभी कभी चुपचाप पार्क में बैठा रहता है और लगभग रोजाना आपके यहाँ एक चक्कर जरूर लगता है । मैंने देखा एक का एक ब्योमकेश आलस्य छोडकर चपल हो गया है । इतने दिनों बाद उसकी आंखों में चमक देखकर मुझे लगा कि उसे जरूर कोई नया आवाज हुआ है । मेरे रथ है की धडकन बढ गई । मैं समझा कि शायद वहाँ कुछ बोलेगा । लेकिन ब्योमकेश अपने चेहरे पर प्रत्यक्षतः कुछ प्रकट न करते हुए अपने पहले अंदाज में ही बोला हाँ, अबुल को छोड दिया जाए । क्या आप लौटकर पुलिसथाने जाएंगे? हैना अगर जरूरत पडी तो मैं आपको फोन करूँगा । वीरेन बाबू को ब्योमकेश का व्यवहार थोडा अटपटा जरूर लगा, पर उन्होंने प्रकट नहीं किया और चले गए । उन के चले जाने के बाद ब्योमकेश तेज कदमो से कमरे में चक्कर लगाने लगा । उसकी आंखों में वहाँ पुरानी चमक फिर कौन होने लगी? मैं पूछ नहीं जा रहा था कि उसने बिरेन बाबू को एकाएक क्यों इस प्रकार विदा कर दिया । तभी देखा कि वह रुक गया है । उसने कुर्सी से कॉल उठाते हुए कहा चलो जरा घूम कर आते हैं । यहाँ मेरा दम घुट रहा है । हम दोनों बाहर निकल आए । ब्योमकेश का बिना किसी उद्देश्य के घर से निकल जाना कोई नई बात नहीं थी । वहाँ उसके व्यवहार में शामिल था । कोई काम न रहने पर चुपचाप कोने में बैठे रहना भी उसकी विशेषताओं में से एक था । उसके साथ गैर अगर मैं भी आलसी बन गया था और बाहर घूमने की अभिलाषा लगभग समाप्त हो गई थी । इसलिए मुझे खुशी हुई कि आखिरकार ब्योमकेश अपने गर्म मस्तिष्क को ठंडा करने के लिए बाहर निकलने को तैयार हुआ । लेकिन जैसे जैसे हम चलने लगे, मेरी खुशी डूबने लगी । ब्योमकेश की चाल बहुत तेज थी । वहाँ इतनी तेज चल रहा था कि रास्ते में लोगों से टकराने लगा । मैंने उससे थोडा इसका चलने को कहा पर उस पर जैसे कोई असर ही नहीं । बडा उसके चहाल इतनी तेज थी कि भीड में कभी वहाँ वृद्ध व्यक्ति के पास पर चढ जाता तो कभी कॉलेज जाती । कन्या से टकराते टकराते बचता जैसे एक धुन में चलता जा रहा कोई चक्रवात हो । मैंने कभी उसका यह पागल बन नहीं देखा था । मैं समझ रहा था कि उसे जरूर कुछ ऐसा सूत्र मिला है जिसको पकडने के दौड में उसके मानसिक श्रम की तेज रफ्तार ने मुकाबले उसका शारीरिक श्रम पिछडता जा रहा है । लेकिन सडक पर चलने वालों को कौन का है? और इस तरह रास्ते में लोगों की गालियाँ और कटाक्ष झेलते हुए हम कॉलेज स्क्वायर पहुंच गए । पूरा वातावरण् कॉलेज के छात्र छात्राओं से अटा पडा था । उनकी हसी, ऊँची आवाज में बातें लोग जो मैं मौका देखकर ब्योमकेश को बहुत से पकडकर एक कोने में ले गया । चौक के बीचोंबीच तलाक था । उसके दोनों ओर से लोगों का हुजूम जा रहा था । हम लोग एक ओवर के रेलवे में मिल गए । उसमें टकराने की गुंजाइश कम थी । ब्योमकेश के चेहरे पर शिकन जो कि क्यों थी और उसे जैसे हो भी नहीं था कि वह कहा है बार बार उसका शॉल कंधों से किसका जा रहा था लेकिन उसे उस की जरा भी परवाह नहीं थी । मैं बडी देर से यही सोच रहा था कि आखिर बिरेन बाबू और ब्योमकेश वार्तालाप में ऐसा किया था जिसने ब्योमकेश के मस्तिष्क को पहले गेयर में शिफ्ट कर दिया और पंजाब मेल की तरह भागने लग गया । क्या रेखा के रहस्य का सूत्रों से मिल गया है? लगभग आधा घंटा चलने के बाद घूम के फिर अपनी चेतन अवस्था में लौट आया । उसने मेरी और देख कर कहा देवकुमार बाबू, आज शाम को पटना जाने वाले हैं ना? मैंने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया, वो नहीं जा सकते हैं । उन्हें ब्योमकेश आगे भीड देखकर और तेजी से चलने लगा । मैंने देखा कि एक कॉर्नर की एक बेंच के पास लोगों की भीड जमा है । वे जोर जोर से बोले जा रहे थे । जो लोग कुछ दूरी पर खडे थे, वे गर्दन झुकाकर उसी और देखकर जानना चाह रहे थे कि क्या हुआ है । उनके चेहरों से लग रहा था कि वहाँ कोई साधारण घटना घटी है । वहां पहुंचकर ब्योमकेश भीड में घुस गया । उसने पूछा मामला गया है । एक युवक ने उत्तर दिया मुझे ठीक से पता नहीं मेरे ख्याल से कोई बैंच पर बैठे बैठे मर गया है । ब्योमकेश ने भीड में घुसकर रास्ता बनाया । मैं भी उसके पीछे पीछे गया । बेंच के पास पहुंचने के बाद हमने देखा एक युवक सिर नीचे किए हुए बैठा है जैसे कि हो गया हो । उसका सेर सीने की ओर लडका था और पैर आगे की ओर है । उसके होठों के बीच एक सिगरेट चिपकी हुई थी पर उसे जलाया नहीं गया था । उसके बाद हाथ की मुट्ठी में माचिस थी । एक मेडिकल छात्र में उसकी नब्ज टटोलने की कोशिश की और बोला साज नहीं है । इस की मृत्यु हो गई है । शाम का झुटपुटा हो गया था और भीड में स्पष्ट कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था । ब्योमकेश ने मृत युवक की थोडी उठाकर उसका चेहरा दिखाना चाहा पर चेहरा देखते ही जैसे करंट लग गया । मेरा भी धक्का से रह गया । वहाँ हाँ अबुल था । जल्द ही पुलिस आ गई । हमने देवकुमार बाबू का पता दे दिया और वहाँ से चलती है । रास्ते में सडक की रोशनी जल गई थी । देश कदमों से लौटते वक्त ब्योमकेश दहशत से त्रस्त आवाज में बोला किस्मत में कितना भयंकर बदला लिया । कितना विभाग से मजाक है? मेरा मस्तिष्क बिल्कुल बुजुर्ग चुका था । लेकिन इस शोक के वातावरण में मैं केवल यही कामना कर रहा था कि यदि जीवन के परे भी कोई दुनिया है तो हाँ अबुल की प्यारी बहन की आत्मा का मिलन अपने भाई के आत्मा से हो गया होगा । घर पहुंचकर ब्योमकेश ने कमरे में घुसकर दरवाजा बंद कर लिया । थोडी देर में मैंने उसको फोन करते सुना । करीब एक घंटे बाद ब्योमकेश अपने कमरे से निकला और थकी हुई आवाज में पुत्री राम से चाय लाने को कहा । उसके बाद वहाँ सिर झुकाए सोचता रहा । मैंने भी उसे परेशान करना उचित नहीं समझा । साढे आठ बजे बिरेन बाबू आ गए । ब्योमकेश ने उनसे पूछा, आप वारंट लेकर आए हैं? बिरेन बाबू ने स्वीकार उसी में सिर हिला दिया । कुछ मिनटों में हम लोग देवकुमार बाबू के घर के सामने खडे थे । घर में मरघट जैसी शांति थी । कहीं कोई लाइट का चेन्नई नहीं था । केवल नीचे के कमरे में रोशनी हो रही थी क्योंकि इसने दरवाजा खटखटाया । कोई उत्तर न मिलने पर उसने दरवाजा ढीला तो वह खुल गया । हम लोगों ने अंदर प्रवेश क्या छोटे से कमरे में एक सोफे पर देवकुमार बाबू चुपचाप बैठे थे । हमारे अंदर आने पर उन्होंने रक्तरंजित नेत्रों से हमें देखा और कुछ क्षण यो ही देखते रहे । फिर उनके चेहरे पर एक कटु मुस्कान उभर आई । सिर हिलाकर वे बडबडाए । मेरी तमाम मेहनत, शोध का फल सब कुछ व्यर्थ ही रह गया । मैंने समुद्र का मंथन किया और मिला क्या? जहर की हांडी बिरेन बाबू ने आगे बढकर कहा, देवकुमार बाबू, हमारे पास आपके नाम का वारंट है, जैसे वेब होश में आए हो । उन्होंने इंस्पेक्टर की वर्दी देखकर कहा, आप आ गए हैं । अच्छा हुआ । मैं स्वयं पुलिस स्टेशन जाने की सोच रहा था । उन्होंने दोनों हाथों को आगे बढाकर कहा लीजिए हथकडी लगा दीजिए । बिरेन बाबू बोले इस की जरूरत नहीं पडेगी । गवादर के पहले अपने खिलाफ चार्ज सुन लीजिए, जो आप पर लगाए गए हैं और फिर ऐसे दिखाया जैसे पढने के लिए तैयार हो रहे हैं । हिंदू देवकुमार बाबू फिर से अचेतन अवस्था में चले गए । उन्होंने अपने पॉकेट में हाथ डालकर कुछ ढूंढने की कोशिश करते करते फिर बनाना शुरू कर दिया । किस्मत और नहीं तो क्यों? हाँ बोल ही क्यों उस माचिस का प्रयोग करेगा? मैंने क्या सोचा था और क्या हो गया? मैं तो चाहता था कि रेखा की शानदार शादी करूँ । मेरी खुद की एक बडी प्रयोगशाला हो । हाँ अबुल को पडने विदेश भेजूँ । उसने पॉकेट से सिगार निकालकर होठों पर लगा लिया । ब्योमकेश ने अपनी जेब से माचिस निकालकर उनके सिगार को सुलझा दिया । उसने कहा देवकुमार बाबू, आपको यहाँ मैच मौत से हमें दे देनी होगी । देवकुमार बाबू ने चौकर देखा, ब्योमकेश बाबू आप ही है? घबराइए नहीं, मैं अपने को नहीं मारूंगा । मैंने अपने बेटी बेटे को मार दिया । मैं तो अब चाहता हूँ कि मुझे अपराधी की तरफ फांसी पर लटकाया जाए । ब्योमकेश ने कहा तो पाया वहाँ मैच बॉक्स दे दीजिए । देवकुमार बाबू ने अपनी जेब से मैच बॉक्स निकालकर सामने मेज पर रख दिया और कहा, यह रहा वहाँ मैच बॉक्स । लेकिन खबरदार यहाँ खतरनाक चीज है । यहाँ तीली में जहर लगा है । एक बार जलाई की गए बच नहीं सकते । ब्यू उनके इसने मैच बॉक्स उठाकर बिरेन बाबू को दे दिया । उन्होंने बडी सावधानी से अपनी पॉकेट में रख लिया हूँ । देवकुमार बाबू फिर बोलने लगे, क्या खूब आविष्कार है? एक बार के जलाने पर मौत और किसी तरह कोई सबूत ही नहीं । यहाँ आविष्कार आधुनिक युद्ध की परिभाषा को ही बदल डालता केवल जहर ही नहीं है । यहाँ विनाश का सूत्र है । लेकिन सब कुछ डूब गया और एक लंबा निश्वास छोडकर वे हो गए । बहुत ही फॅसे बिरेंद्र बोले देवकुमार बाबू, अब चलने का समय आ गया है । चलिए वे तपाक से उठ गए । कुछ संकोच करते हुए ब्योमकेश ने पूछा क्या आपकी पत्नी घर में मौजूद हैं? पत्नी देवकुमार बाबू की आंखें रोज से भयानक हो गई । वे जोर से पागलो की तरह चिल्लाये । पत्नी मेरी फांसी के बाद उसे ही मेरे बीमा की पूरी रकम मिलेगी । यही तो किस्मत का खेल है । चलिए आइए चलते हैं । टैक्सी बुलाई गई । ब्योमकेश ने उन्हें टैक्सी में ले जाकर बैठाया । उनके बराबर बिरेन बाबू बैठे हैं । जाने कहाँ से दो सिपाही प्रकट होकर टैक्सी में बैठ गए । देवकुमार बाबू अंदर सही दिलाए । ब्योमकेश बाबू आप चाहते ही थे मेरी रेखा की मौत के रहस्य आप सुन जाए । मैं आपका आभारी हूँ । हम लोग फुटपाथ पर खडे रह गए और टैक्सी चली गई । दो एक दिन तक ब्योमकेश ने इस केस की चर्चा नहीं की । मैं उसके मस्तिष्क की हालत समझ सकता था । इसलिए मैंने भी इस सिलसिले में कोई बात नहीं किए । पर तीसरे दिन शाम को वहाँ अपने आप ही बोलने लगा । अंग्रेजी में कहावत है बदले की भावना घर आती है अड्डा जमाने के लिए और यही देवकुमार बाबू के साथ हुआ । वे अपनी पत्नी की हत्या करना चाहते थे लेकिन किस्मत देखिए दो बार उन्होंने अपना निशाना बनाया तो दोनों बार अपने बेटी और बेटे को खो बैठे जो उन्हें अपने जीवन से भी ज्यादा प्यारे थे । यह विधि का विधान था कि देवकुमार बाबू अनजाने में ही एक असाधारण आविष्कार करने में सफल हो गए थे जिसकी उन्होंने स्वयं कल्पना तक नहीं की थी लेकिन आर्थिक साधन के अभाव में वे उसका उचित प्रयोग नहीं कर पाए । ऐसे आविष्कार काॅल बुक करने के लिए आवेदन नहीं किया जा सकता है क्योंकि वाणिज्यिक मार्केट में इसका कोई मूल्य नहीं है । लेकिन युद्ध योनिमुख देश जैसे जर्मनी, जापान अथवा फ्रान दादी को इस अविष्कार की यदि भनक भी पड जाए तो वेज फॉर्मूले को लेकर अपनी प्रयोगशालाओं में शोध करके नरसंहार के हथियार बनाने में जुट जाएंगे और आविष्कार करने वाले न तो कुछ कर पाएगा और न ही उससे इसका कोई लाभ हो पाएगा । इसलिए देवकुमार बाबू ने इसको अपने तक ही सीमित रखा । इस शहर के विभिन्न प्रयोगों के लिए बडे पैमाने पर अनुसंधान की जरूरत थी और इसलिए उन्हें आर्थिक अनुदान चाहिए था । लेकिन आर्थिक सहायता का कोई प्रश्न नहीं था । उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी क्योंकि इसके प्रयोग पर शोध करने के लिए उन्हें अपनी प्रयोगशाला चाहिए थी और उसके लिए पैसे का होना जरूरी था और पैसे आते कहाँ से? इधर घर में उनका जीवन दुश्वार होता जा रहा था । उनकी पत्नी ने अपने हरकतों से उनकी स्थिति को दयनीय बना दिया था । जो लोग मानसिक गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, उन्हें घरेलू जीवन में अमन चैन की जरूरत होती है । हिन्दू उनके जीवन में इसका नितांत अभाव था । उनकी पत्नी की तुनक मिजाजी, रूखापन और बात बात पर रोने पीटने के व्यवहार ने देवकुमार बाबू के जीवन को बाजार कर दिया था । स्वभाव से वे शांत पुरुष थे । एक शांतिपूर्ण जीवन में रहकर आपने वैज्ञानिक शोध में प्रगति करते रहने से अधिक उन्हें कोई और चाह रही थी । अपने बच्चों के प्रति उनके प्यार को देख कर । यहाँ इस पर तो हो जाता है कि वे अपने बच्चों का कितना ख्याल क्या करते थे । उनकी दूसरी पत्नी ने यदि प्रयास किया होता तो वहाँ भी उनके प्रेम की भागीदार बन सकती थी, तो उसकी प्रकृति का गठन नहीं, दूसरा था । नौ बात यहाँ तक आ गई थी कि देवकुमार बाबू उसके चेहरे तक से नफरत करने लगे थे ।

Ep 5: विपदा का संहार - Part 4

साधारण ताया कोई भी व्यक्ति किसी व्यक्ति की हत्या तब तक नहीं करना चाहेगा जब तक की उसका बर्दाश्त का पैमाना भर नहीं जाता । देवकुमार बाबू का पैमाना भी भर चुका था और यही वहाँ समय था जब यह घातक जहर उनके हाथ लग गया । उन्होंने दिमाग में सोचा, यही मौका है कि वे अपनी पत्नी से हमेशा के लिए छुट्टी पा जाए । उन्होंने भीतर ही भीतर अपनी योजना पर काम करना शुरू कर दिया और तब उन्होंने बीमा कंपनी का वहाँ विज्ञापन देखा जिसमें कहा गया था पति पत्नी संयुक्त रूप से जीवन बीमा कर सकते हैं और यदि दोनों में से कोई एक उस दौरान मर जाता है तो पूरी रकम दूसरे को मिल जाएगी । इसको पढकर उनके सभी प्रकार के संदेह दूर हो गए । ऐसा अवसर उन्हें फिर कहाँ मिलेगा? वे दोनों का संयुक्त बीमा करने के बाद अपने ही आविष्कार से उससे हमेशा के लिए छुट्टी पालेंगे । एक तीर से दो निशाने पैसा भी मिलेगा और उससे छुट्टी भी मिल जाएगी और किसी को कोई संदेह नहीं ना होगा । देवकुमार बाबू ने पहला काम बीमा करवाया और फिर अवसर की तलाश में समय गुजारने लगे । जल्दबाजी करने से बीमा कंपनी को संदेह का निमंत्रण देना था । इसी प्रकार एक वर्ष बीत गया । अंततः उन्होंने क्रिसमस की छुट्टियों में अपने प्रोजेक्ट को अंजाम देने का निर्णय लिया । जो जहर उन्होंने आविष्कार किया था, उसमें विस्फोटक तो थे, जब तक उन तत्वों को नहीं छोडा जाता, वहाँ सामान्य ही रहेगा । लेकिन जैसे ही उसका संपर्क अग्नि से होगा, उसके विस्फोटक तत्वों से जहरीली गैस निकलेगी, जिसे मात्र सूम लेने पर तत्काल मृत्यु निश्चित है । अब देवकुमार बाबू ने अपनी योजना के कार्यान्वयन के लिए एक बहुत ही नायाब तरकीब निकाली । ऐसी तरकीब एक वैज्ञानिक के मस्तिष्क में ही पैदा हो सकती है । उन्होंने माचिस की कुछ तीलियों के मसालों पर इस जहर का लेप कर दिया । मैं नहीं कह सकता है कि लेट चढाने का तरीका उन्होंने क्या अपनाया होगा । तो इसका परिणाम यहाँ निकला है कि जो भी व्यक्ति उस बिल्ली को मार चीज पर लडेगा तो गैस सूंघते ही तुरन्त मर जाएगा । इन तेलियों को बना लेने के बाद देवकुमार बाबू ने दिल्ली में होने वाली साइंस कॉन्फ्रेंस में जाने की तैयारी शुरू कर दी । धीरे धीरे जाने का दिन आ गया । उन्होंने प्रस्थान के पूर्व रेखा के कमरे में रखी माचिस की तीलियों में उसे जहर की एक थैली को रख दिया और चले गए । उन है । मालूम था कि उनकी पत्नी रोजाना लैंप जलाने के लिए माचिस जलाता है । इस माचिस का प्रयोग कहीं और नहीं होता । पहले या कभी भी माचिस जलाने में वहाँ दिल्ली उसके हाथ लगी जाएगी । उस समय देवकुमार बाबू बहुत दूर दिल्ली में होंगे । कोई शक भी ना कर पायेगा की वहाँ उनका काम हो सकता है । साहब कोच योजना के अनुसार हो रहा था किंतु किस्मत को कुछ और ही मंजूर था । रेखा चूल्हा जलाने गए । वहाँ उसे मार चीज नहीं मिली । माँ के कमरे से मार्च लेकर गए । माचिस जलाने को हुई तो उसका हाथ उसी जहरीली दिल्ली पर पडा और देवकुमार बाबू ने दिल्ली से लौटकर जब यहाँ विभत्स घटना देखी तो उनके प्रदाय में पत्नी के लिए नफरत की आग और भी तेज हो गई । वे गम में डूब गए क्योंकि उनकी बेटी मर चुकी थी । इसलिए अब उनकी पत्नी को मारना ही था । कुछ दिन और बीते उन्होंने फिर एक जहरीली तीली को माचिस में रखा और पटना जाने को तैयार हो गए । लेकिन विपदा ने देवकुमार बाबू के जाने के पहले ही अपना तांडव दिखा दिया । हाँ, उनको सिगरेट पीने ये आदत थी । उस की माचिस संभव खाली हो गई थी । इसलिए उसने अपनी माँ की माँ जिससे कुछ पीलिया निकालकर अपनी माँ जिसमें रखी और घूमने निकल गया और देवकुमार बाबू ने विज्ञान के महासमुद्र में मंथन कर बडे यत्न से जो रतन बनाया था, उन्हें लगा कि वहाँ उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि होगी । उन्हें जराबी संकेत न मिला कि वास्तव में उनकी उपलब्धि इतनी जहरीली और विनाश में घातक साबित होगी । उनके द्वारा निर्मित जहर की चिंगारी उस सबको स्वाह कर देगी जो उन्हें जीवन में प्यारा था क्योंकि इसने गहरी सांस ली और चुप हो गया । कुछ क्षण मौन रहकर मैंने पूछा अच्छा या बताओ तो मैं कब शक हुआ कि देवकुमार बाबू ही अपराधी है । जिस समय मुझे पता लगा कि उन्होंने पचास हजार रुपये की बीमा पॉलिसी ली है, उससे पहले तो यह भी नहीं सोचा था कि रेखा की हत्या के पीछे कोई उद्देश्य भी हो सकता है क्योंकि उसकी हत्या से किसी को क्या फायदा होना था और किसी के मार्ग में वहाँ कोई बाधा भी नहीं पहुंचा रही थी और यह भी सोच न पाएगी । रेखा हत्यारे का लक्ष्य क्यों हो सकती है? लेकिन बहुत ही छोटा सा सूत्र मुझे अन्यत्र मिल गया । जब रेखा के पोस्टमार्टम में कुछ तथ्य नहीं मिला तो मेरे सामने एक ही संभावना रह गए और बहुत ही की जिस शहर से रेखा की मृत्यु हुई उसकी जानकारी अभी तक वैज्ञानिक जगत को नहीं हो पाई है । अर्थात यहाँ कोई नया अविष्कार है तुम्हें याद है देवकुमार बाबू का दिल्ली का भाषण वो समय हम लोगों ने उसे एक सफल वैज्ञानिक का प्रलाप कहकर मजाक बनाया था । हमें क्या पता था कि वहाँ एक कर्मठ वैज्ञानिक की विलक्षण खोज का संकेत है क्योंकि उनके भाषण में अविष्कार से संबंध कुछ संकेतों का जिक्र भी शामिल था । जो भी हो सवाल यह है कि यहाँ आविष्कार किसके हाथों हुआ? द्रश्य में दो ही वैज्ञानिक थे पहले डॉक्टर रुद्रा, दूसरे देवकुमार बाबू । इसमें डॉक्टर रुद्रा चूंकि डॉक्टर थे इसलिए शक उन पर जाता है क्योंकि किसी जहर के लिए उन की पहुंच आसान थी । दूसरे आविष्कारकर्ता यदि देवकुमार बाबू है तो क्यों में अपनी ही पुत्री को जहर देंगे? इसलिए शक डॉक्टर रुद्रा पर टिकता था । फिर भी मेरा मैंने इस धारणा पर स्थिर नहीं हो पा रहा था । डॉक्टर रुद्रा एक नीच व्यक्ति थे किन्तु क्या वे केवल इसलिए रेखा की हत्या कर सकते थे क्योंकि उनके लिए उनका बेटा उन से विमुख हो गया था और मान भी लें । कि वे चाहते भी रहे हो पर वे रेखा तक कैसे पहुंच सकते थे । वे किसी के घर में वहाँ जहर कैसे ले जा सकते थे । रेखा और मन मत आपस में मिला करते थे । छत पर एक दूसरे को चिट्ठियां का करते थे । लेकिन इस की जानकारी डॉक्टर रुद्रा को कहा थी । दिमाग के किसी कोने में यही धारणा पड रही थी की हत्या किसी जहरीली गैस से हुई है । जरा सोचो रेखा के हाथ की उंगली में जली हुई थी, ली थी और दूसरी मुट्ठी में माचिस की डिबिया । इसका सीधा सा अर्थ है कि मृत्यु उसके माचिस जलाते ही हुई है । यहाँ मात्र इत्तेफाक हो सकता है या फिर मार्च जिसके जिसने और उसके बाद की घटना में कोई लिंक हो सकता है । देवकुमार बाबू ने भी बहुत सतर्कता बरती थी । उन्होंने मैच बॉक्स में केवल एक ही जहरीली दिल्ली रखी थी जिससे कि यदि शेष तेलियों की जांच की जाए तो कोई सबूत नहीं मिल पाया । मैं जो माचिस लाया था, उसमें मैंने अन्य तीलियों की जांच की तो कुछ नहीं मिला । आबुल के केस में भी मार्च इसमें केवल एक जहर की तीली थी, लेकिन भाग्य की क्रूरता देखो पहले ही तीली को उठाया और वही जहर की निकली अजीत तुम लेखक हो, तुम है, इसमें कुछ सीखने का कोई पार्ट नहीं दिखाई देता । जिस दिन मनुष्य ने दूसरे के संहार के लिए जिन शस्त्रों का आविष्कार किया, उसे दिन उसने उन्हें शस्त्रों द्वारा स्वयं के विनाश की भारत भी लिख ली । जिस प्रकार दुनिया में चोरी छिपे जिन विनाशकारी शस्त्रों का आविष्कार किया जा रहा है, वही एक दिन पूरी मानव जाति का ही नाश कर देंगे । उस राक्षस की तरह जो ब्रह्मा की कल्पना से ही पैदा हो गया था, जैसे फ्रेंड्स दिन जो अपने ही जन्मदाता को खा गया । क्या तो ऐसा नहीं सोचते हैं । रात के अंधेरे में मैं क्योंकि इसको ठीक से नहीं देख पाया, लेकिन यह जरूर लगा कि उसके विचार वास्तव में आने वाले कल के लिए भविष्यवाणी है तो