मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब
से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी|
writer: दुर्जोय दत्ता
Voiceover Artist : Ashish Jain
Author : Durjoy DuttaRead More