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उमड़ती घटाएं: पंचम परिच्छेद in Hindi

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उमड़ती घटाए Written by गुरुदत्त Published by हिंदी साहित्य सदन Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ashish Jain
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जो पंचम परिचय करण इच्छा नहीं रहते भी शचि के पास ये प्रस्ताव करने गया कि वह नहीं उससे विभाग कर लेंगे । सीमा पार कर उस गांव में पहुंचा जहां सच्ची रहती थी । गांव की रक्षा के लिए सेना कि एक प्रबल टुकडी नियुक्त थी । सच्ची से मिलने के लिए । करण को ये कहना पडा कि देवलोक से महेश का दूध आया है और श्रीमती इन्द्राणी से भेंट करना चाहता है । करन की सूचना शक्ति के पास पहुंचा दी गई । उस दिन नारद भी उससे मिलने आया हुआ था और उससे देव लोग की अवस्था का वर्णन कर रहा था । उसे ना भारत की उपस्थिति में करण के आने की सूचना मिली । इंद्राणी करन का नाम सुन नारद का मुख देखने लगी । नाराज उसके देखने का अभिप्राय समझकर बोला ये नहुष का महामंत्री है । सुनने में आया है कि भला पुरुष है फिर भी किसी कारण वर्ष नहुष का सेवक है । इसमें एक देव करने से विवाह कर लिया है और कहा जाता है कि वह बहुत सुखी है । इस प्रसंग आत्मक परिचय को सुन उसने करण को बुलाने की आज्ञा दे दी । सैनिक करन को लेकर आए तो घर के आंगन में उसे बिठाया गया । पश्चात् सचिन आरत के साथ वहां पहुंची करण नोटकर सच्ची को आदर से प्रणाम किया और खडा रहा हूँ । सच्ची बैठ गई और पहले उसने ना भारत को एक चौकी पर बैठने को कहा । पचास करण को बैठने का आदेश दिया । जब करण बैठ गया तो सच्ची ने उसको अपने आने का आशय वर्णन करने को कहा । करण उसके सौंदर्य से प्रभावित हो मंत्रमुक्त की भांति उसका मुख देख रहा था । अब इस पता संबोधन किए जाने पर सचेत होकर कहने लगा मैं देव लोग का महामात्य हूँ । महाराज न हो की आज्ञा से आपकी सेवा में उपस् थित हुआ हूँ । उन्होंने एक संदेश निवेदन किया है तो हो । शशि ने बात को शीघ्र समाप्त करने के लिए कहा । श्रीमती जी करण ने आंखें झुकाकर का उसको आज्ञा यह है कि महाराज का संदेश केवल आपके ही करना गोचर करूँ । इतना कहकर ना भारत की और देखने लगा हो । मैं समझी थी कि आप इन को जानते हैं । ये महर्षि नाराज है । इनसे हमारी कोई बात छिपी नहीं है । करण ने झुककर देवर्षि को नमस्कार किया और कहा मैं क्षमा चाहता हूँ महारानी मेरा नम्र निवेदन है कि मेरे स्वामी ने मुझको आपके लिए ही और केवल आपके लिए ही संदेश दिया है । बाद में आप जिसको चाहे बता सकती हैं परन्तु मैं केवल आपसे ही निवेदन कर सकता हूँ । भारत ने कहा महारानीजी मैं कुछ दूर रहता हूँ जिससे यह भद्रपुरुष अपना कार्य शुद्ध आत्मा से कर सके । नाराज उठकर दूर चला गया वो उसी आंगन में दूर जहाँ से वो उनकी बातों को न सुन सके परन्तु उसको देख सके जा खडा हुआ और उनकी बात समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा । उसके चले जाने के कारण करण ने अपनी बात नहीं माननीय देवी जी कुछ मार्च हुए मेरे स्वामी ने आपके दर्शन किए थे । यू तो उन्होंने आपको तब भी देखा था जब आपके भवन में सेवा कार्य करते थे । परंपरित ने समीक्षा दर्शन जैसे अब हुए थे, पहले नहीं हुए थे । जब वह सेवक था तब तो हमने उसकी और कभी ध्यान ही नहीं दिया था । परन्तु आपकी बात तो हम को स्मरण नहीं कि उससे कैसे भेंट हुई है । इसी भवन में चाय कृषि स्थान पर कुछ माह हुए एक जौहरी रतन बेचने आया था और आपने दो हीरो पसंद किए थे तो वह जौहरी तुम्हारा स्वानी नहीं था । वो धूर्त और चतुर वह रुपया है । पता चल जाता तो पकडवा लिया जाता हूँ । यहाँ विक्रम जैसा दयालु उसको छोडा ना सकता हूँ । इससे विक्रम की मान मर्यादा कम नहीं हुई । देवी संसार भर में उसकी चर्चा है छोडो इस बात को क्या चाहता है वो उनका कहना है कि आप जैसी सुंदर कोमलांगी देरी को अपना जीवन इस निर्जन शीत प्रधान और कष्टप्रद स्थान पर रहे कर व्यर्थ गवाना नहीं चाहिए । देव लोग की महारानी दो हीरो का मूल्य ना दे सके ये विषय करने की बात है । यहाँ एक दो दासियों के साथ कैदियों की भर्ती रहना आपकी मान मर्यादा के अनुकूल नहीं है । पिछले श्रीमान न होश आपके लिए एक अति सुन्दर सुख सुविधा संपन्न भवन देवलोक में भेंट करना चाहते हैं । उनकी विनम्र प्रार्थना है । यदि श्रीमती जी वहाँ आना स्वीकार करें तो उनको असीम प्रसन्नता होगी । वे अपने पूर्ण धन संपदा और देवा लोग के साधनों के साथ आपकी सेवा के लिए तत्पर रहेंगे । वो आपके देव लोग की महारानी होने की घोषणा करवा देंगे और पूर्ण राज्य आपकी आज्ञा का पालन करेगा । सच िहास पडी और बोली बहुत सुंदर शब्दों में बात कही गई है परन्तु क्या मैं जान सकती हूँ कि वहाँ पर कोई राजा भी होगा या नहीं? यहाँ पर एक राजा श्रीमान न होश पहले ही विद्यमान है और वह महारानी जिसे तुम वहाँ ले जाओगे, उस महाराज की हीरानी होगी हमारा निजी आप पूर्ण देवलोक की महारानी होंगी तब तो तुम्हारा न होश महाराज नहीं रह सकेगा । एक खोल में दो तलवारें कैसे रह सकेगी ये एक खोल में दो तलवारों किसी ही बात होगी । ये तो दो का एक में समन्वय कहा जाएगा । श्रीमती जी वहाँ पहले भी महारानी थी, मेरे स्वामी की या निराशा है । श्रीमती अपनी कोई व्यवस्था उन हाँ प्राप्त करें बिना अपने पति को प्राप्त किए यदि आप शमा करें तो मैं अपने स्वामी के विचारों की व्याख्या कर दूँ । वो आपको अधिक अच्छा पति बनने का आश्वासन देते हैं । ये हो नहीं सकता । हमारे यहाँ नियम है कि जीवन भर एक ही पति रहता है और यदि हमारे बस में हो सब जीवनों में भी एक ही पति रखें । अन्य जीवनों की तो मैं नहीं जानता किंतु इस जीवन में भी तो भविष्य का कुछ भी विश्वास नहीं । एक पति ने आपको इस निर्जन नीरज स्थान पर ला पटका है और दूसरा आपको शक्ति और सुख संपन्न करवाना चाहता है । क्या आनंद की बात नहीं होगी जब दस लाख सेना आपकी दस हजार के नीचे संसार विजय को प्रयाण करेगी? कितना भव्य दृश्य होगा जब आप केवल देव लोग की जी नहीं, प्रत्युत संसार भर की महारानी स्वीकार की जाएंगी । मनुष्यमात्र आपकी वंदना करेगा, लंका विजय वाली धवन बदलूराम पर आ जाए और वे सब कार्य जिनकी ख्याति संसार में है, इसके सम्मुख भी के पड जाएंगे । शक्ति और संपत्ति का संपूर्ण क्षेत्र सुख और समृद्धि की पराकाष्ठा, मान मर्यादा का सर्वोच्च स्तर आपके लिए खुल जाएगा । केवल एक बार स्वीकृति की दृष्टि और प्रसन्नता की मुस्कराहट दीजिए और वह सब शौचालय द्वार की भर्ती खुल जाएंगे । श्रीमती जी मैं इससे अधिक स्पष्ट रूप में वरना नहीं कर सकता हूँ । आप अपने मुखारबिंद से एक स्वीकृति का शब्द चाहिए, जो मैं आपने स्वामी तक पहुंचा दूँ । विश्वास रखी है कि आप इस प्रकार की महान जातियों का सहयोग कर उन की भाग नहीं बनेंगे । करण के कहने के धन को शचि ने अनुभव किया और उसने इस योग्य व्यक्ति को अपनी योग्यता को प्रकट करने का अवसर देने के लिए पूछा । क्या श्रीकरणी विवाहित है? हाँ श्रीमती जी, क्या आप अपनी स्थिति से प्रेम करते हैं? बहुत हम आशा करते हैं कि वह भी अपने पति से प्रेम करती होंगी । जहाँ तक मुझ को ज्ञान है, मुझ से बहुत प्रेम करती है । शायद अपने जीवन से भी अधिक । क्या वो आपके देश की लडकी हैं? नहीं मुझको वो अमरावती में मिल गई थी उससे मेरे दो बच्चे भी हैं थी । आप बुद्धिमान व्यक्ति प्रतीत होते हैं क्या मैं आपसे प्रश्न पूछ सकती हूँ? क्या पसंद करेंगे की पत्ती में वो आपको छोड जाएँ? करण निरॅतर हो गया सच्ची उसके उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी । कारण बहुत हिचकिचाहट के पश्चात कहा श्रीमती जी ने इस तरी और आपकी बात में बहुत अंतर है । वो एक निर्धन सैनिक की पत्नी है और आप स्वभाव से किसी देश की रानी बनने योग्य है । एक देश की रानी के लिए केवल अपनी इच्छाओं का ही ध्यान रखना पर्याप्त नहीं । उनको उन असम के प्रजाजनों के हितों का भी ध्यान रखना होता है जिनको प्रकृति ने उनके अधीन रखा है । जातियों के नेताओं का स्वास्थ्य प्रजाहित में ही निहित है । ये मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं । मैं पूछती हूँ मानो तुम राजा हो जिस पर कोई विपत्तियां पडी है कि अपन ये पसंद करोगे कि तुम्हारी पत्नी उनको छोडकर उसके पास चली जाएगी जिसने तुम्हारे राज्य पर अधिकार कर लिया हूँ । अपनी अंतरात्मा को टटोलकर बताओ कि तुम क्या अच्छा होगी? करण अनुभव कर रहा था कि वह उसको कुछ ऐसी बात कहने को कह रहा है जो स्वयं अपनी स्त्री को कहने को नहीं कहता है । उसको नहीं । उस की ओर से यह निवेदन करते हुए लज्जा लगने लगी थी । अजय वह चुका था । सच्ची ने फिर कहा पूर्व इससे की तो मैं इस विषय में कुछ और का हो । एक बात मैं तुमसे पूछना चाहती है तो आपने इस्त्री से पूछो की वो तुम्हारी मुसीबत के समय तुम को छोडना चाहेगी अथवा नहीं तो उसका उत्तर क्या होगा? करण तो ये पहले ही पूछ चुका था । सुमन का उत्तर वह भूला नहीं था । उन्होंने ये कहा था कि पति पत्नी का संबंध सांसारिक नहीं है । ये आत्मा आत्मा का सहयोग होता है जो टूट नहीं सकता हूँ । इस बात के स्मरण होने पर उसकी आत्मा में वहाँ आने के उद्देश्य पर ग्लानि उत्पन्न हो गई थी । इस कारण एक भी शब्द और बोले मिला है । उठ खडा हुआ । उसने झुककर नमस्कार की और जाने के लिए स्वीकृति मांगी । सच्ची उसको अभी कुछ और कहना चाहती थी । इस कारण उसने कहा ठहरो तुम को मैंने अभी तुम्हारे स्वामी के लिए उसके निवेदन का उत्तर नहीं दिया है । मेरा विचार है कि जाने से पूर्व उसके प्रस्ताव का उत्तर लेते जाएँ । उनको कहना कि उनके बिना भी मैं देव लोग की महारानी हूँ । मैं शीघ्र ही अपना सुख लेने के लिए आने वाली हूँ । मेरे जाने से पूर्व उस था जिसका वो अधिकारी नहीं है और जहाँ धर्म का राज्य चल रहा है छोड देना चाहिए । अन्यथा उसको उस कष्ट और दुख के लिए जिसका वह कारण है, दंड मिले बिना नहीं रहेगा । अब तुम रात के लिए यहाँ मंदिर में ठहर सकते हो । रात होने वाली है और मार्ग ठीक नहीं है । इतना कहकर वोट खडी हुई और घर के भीतर चली गई । करोड देव मंत्रमुक्त की भांति खडा हुआ वहाँ रह गया । करन रात काटने के लिए गांव के मंदिर में ठहर गया । उसके वहाँ पहुंचने के कुछ ही देर बाद नारद आया और मंदिर के अध्यक्ष से कहकर करण के लिए भोजन व्यवस्था कर करन से मिलने को उसके आगार में जा पहुंचा । करण उसको देख स्वागत करने को उठ खडा हुआ । नारद ने उसको बिठाकर कहा, आपको यदि किसी बात की आवश्यकता हो अथवा कोई पृष्ट हो तो अध्यक्ष कह दीजिएगा । उसको महारानीजी की आज्ञा मिल चुकी है । बहुत धन्यवाद है उनका । आपका परिचय प्राप्त कर भी भारी प्रसन्नता हुई है । आप के विषय में ये विख्यात है कि देवताओं की राजनीति के आप संचालक है भारत मुस्कराया और बोला मैं नहीं जानता कि आपने ये बात प्रशंसा प्रभाव से कही है अथवा निंदा के भाव में । फिर भी इतना स्वीकार करने में मैं संकोच नहीं करता हूँ कि मेरे विषय में सूचना देने वाला कोई जानकार व्यक्ति है, उसने उसको ठीक समझा है । मैं पृथ्वी के भ्रमण में था जब देव लोग का राज्य पालता अन्यथा इस विपत्ति को रोकने का कुछ तो उपाय किया जा सकता था । मैं अब अवस्था सुधारने का यह में कर रहा हूँ । आपको शायद पता नहीं कि मैंने ऐसी लडकी से विवाह कर लिया है जो देव लोग की रहने वाली है और आप के विषय में उसमें ही मुझको बताया है । वास्तव में ही बहुत बुद्धिमती है और मुझे बहुत प्यारी लगती है । महारानीजी ने मुझको आप के विषय में बताया है । उनका कहना है कि आप अतियोग्य, बुद्धिमान और विद्वान व्यक्ति हैं । वो आपकी भूरी भूरी प्रशंसा करती है । उनका कहना है कि वह दुर्भाग्य की बात है । आप जैसा व्यक्ति एक ठग और धूर्त बदमाश की सेवा कर रहा है तो क्या नहुष केंद्र से अधिक ठग और धूर्त बदमाश है? केंद्र का अहल्या से किया गया व्यवहार क्या भूला जा सकता है । नारद को करन के ज्ञान पर अतीव इसमें हुआ फिर भी वो समझता था की दोनों बातों में समझता नहीं है । उसने कहा बात ठीक है परंतु दोनों में कोई तुलना नहीं । एक तो परिस्थिति के वर्ष पतित हुआ था और वो अपने किए पर लज्जित था । उसने इसका प्रायश्चित भी किया था । दूसरी और आपके महाराज अपने पतन को विजय और प्रशंसा की बात मानते हैं । उनको इस पतन में ही जीवन का सार प्रतीत होता है । देवर्षि हुई मेरे स्वामी है, यही तो दुख की बात है । आपने उनकी सेवा स्वीकार की हुई है परंतु न तो महारानी जी ने और न ही मैंने उनकी सेवा का वचन दिया हुआ है । यही कारण है कि हम अपनी सम्मति प्रकट करने में कठिनाई नहीं पाते । मैं आपको अमरावती ने मिलूंगा । इतना कह नारद उससे विदा मांगने लगा । वोट खडा हुआ परंतु एकाएक घूम कर करन की आंखों में देखकर बोला कभी भविष्य में नहीं । उसकी सेवा में दुख अनुभव हो तो मेरी राय है कि आप महारानी की सेवा में आ सकते हैं । आप उनको अपने वर्तमान स्वामी से अधिक सहानुभूतिपूर्ण पाएंगे । करण जब अमरावती वापस पहुंचा तो उसकी मानसिक अवस्था में पूर्ण परिवर्तन हो चुका था । उसने अतुलनीय सुन्दर राशि के दर्शन किए थे । वो एक अतिशिक्षित सभ्य और सुसंस्कृत देवी से बातचीत करके आया था और वो उसकी युक्ति के सम्मुख परास्त होकर आया था । नहीं उसका दूत बनकर जाने पर और एक पतिव्रता को पतिव्रत धर्म से डिगाने के प्रयाप्त के कारण वो अपने को पतित अनुभव करने लगा था । वो समझने लग गया था की उसमें भी आत्मा है और वह धन दौलत और सुख सुविधा के लिए उसे बेच रहा है । इस कारण उसके मन में प्रश्न हो रहा था की क्या वो एक मूड गवार की सेवा ही करता जाएगा अथवा इसका का भी अंत भी होगा । वो नहीं उसकी सेना के साथ । देव लोग इस कारण आया था की दैनिक संसार को देखने का अवसर प्राप्त करें । वो गांव से बाहर निकलना चाहता था । उसकी इच्छापूर्ण हो गई और नहीं उसका साथी कहने में वो अपने आप को एक नीच कार्य में प्रवर्तन मानता था । फिर इंद्राणी की ओर से उसको भी सेवा में लेने का प्रस्ताव तो उसके मन में उथल पुथल मचा रहा था । अमरावती में पहुंच वो पहले घर गया । सुमन का व्यवहार अति प्रेम था । उसने उपालंभ नहीं दिया और सदा की भांति आज भी उसकी सेवा के लिए उपस् थित थी । करण जानता था कि वो उसके द्रुत कार्य की सफलता अथवा असफलता के विषय में जानने के लिए अति इच्छुक होंगे परन्तु उसने कुछ नहीं पूछा और उसकी सेवा शुश्रूषा में लगी रही । उसने करण के स्वास्थ्य और मानसिक अवस्था के विषय में तो पूछा परन्तु कार्य के विषय में संकेत भी नहीं किया । करण आधे दिन तक उनके पास रहा और अनेक विषयों पर बातचीत चलती रहे हैं । बच्चों ने पिता की अनुपस्थिति में घटी अनेक बातें बताई । सुमन ने भी बच्चों की बहुत सी बातें बताई । अंत मेकरन महाराज के पास जाने के लिए तैयार हो गया । इस समय उसको स्वर्ण आया । सुमन ने शचि के विषय में एक शब्द भी नहीं पूछा । इस से उसको विश्व में हुआ । उसने जाने से पूर्व अपनी पत्नी से पूछा क्या तुम मेरे कार्य के परिणाम को जानने के लिए उत्सुक नहीं हो? उस की आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई । कारण ये कि उसका एक ही परिणाम हो सकता था और वह है आपकी असफलता हूँ । करण हस पडा । उसने सुमन को अभी प्रेम से कटाक्ष करते हुए कहा, हमारा अनुमान ठीक है । मैं महाराज से वहाँ से लौटकर सबकुछ बताऊंगा । करण जब नहीं उसके संभव पहुंचा तो वह सुरापान से अर्धचेतन अवस्था में था । आपको करण को देख प्रसन्नता से उठा और करन से गले मिलने लगा । पश्चात आदर से उसको बिठाकर कहने लगा बताओ कब आएगी हो? कारण नहीं । उसकी बचपन किसी बात सुनकर मन ही मन ग्लानि अनुभव कर रहा था । फिर भी वो अपने उद्देश्य की पूर्ति में पूर्ण असफलता का ज्ञान कराने में देरी कराना नहीं चाहता था । इस कारण उसने एकदम कह दिया, महाराज, मैं अपने कार्य में सर्वथा और सफल रहा हूँ । वह यहाँ आना चाहती है परन्तु ऐसे नहीं वो चाहती है कि यहाँ विजेता के रूप में आए और आपको दण्ड दें । मुझको वह दंड देना चाहती हूँ । उसने कहा है सब तुमने उसके वहाँ नहीं खींच ली । काम कैसे सेवा हो? करण समझ गया कि आज मात्रा से अधिक दिए हुए हैं । इस कारण उसने कह दिया महाराज ना आज बहुत रखा हुआ हूँ । आप आज्ञा दे तो मैं कल उपस् थित होकर पूर्ण वार्तालाप निवेदन करूँ । अच्छी बात है फॅमिली प्रापॅर्टी ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारे ऊपर भी उस औरत का सम्मोहन मंत्र चल गया है । इसी कारण तो उसके मुख से मेरी निंदा सुनकर चुपचाप लौट आया हूँ । मैं जानता हूँ कि तुम भी हार्ड शाम के बने हुए हो । हम तो हम तो अच्छी बात कल बात करेंगे । अब जाओ करने बाहर सुख का सांस लिया । जब वो इतनी जल्दी लौट आया तो सुमन को अचंभा हुआ और पूछा क्या बात है? महाराज नहीं मिले क्या मिले थे परंतु वो कुछ मध्य हुए थे । इस कारण बात नहीं हो सकी । आपकी अमरावती से अनुपस्थित निकाल मैं यहाँ बहुत गडबड हुई है । क्या देवताओं और गांधार ओं में झगडा हुआ है? देवताओं में बदला लेने की भावना जाग उठी है । एक स्त्री कहीं देहात सहित अमरावती जा रही थी । मार्ग में सेनापति कनक देव ने उसके अपहरण का यह क्या तो उसके साथ आ रहे संरक्षक ने उसकी वहाँ का डाली । इस अपराध में किसी एक देवता और उसकी धर्म पत्नी को मृत्युदंड दिया गया । इसके प्रतिकार में दो गांधार ओं की हत्या कर दी गई । महाराज ने देवताओं की भारी संख्या में हत्या करने की आज्ञा दे दी । देवताओं ने इसका भी प्रतिकार क्या? भारत में महिला मंदिर को जो देवता स्त्रियों की रक्षा के लिए खोला गया था, आर लगवा दी । देवताओं ने सेना शिविर को आग लगा दी । अब महाराज डर गए हैं और देवताओं को शासन कार्य में और सेना में स्थान देने लगे हैं । करण इस वर्णन से गंभीर विचार में डूब गया । उसने भी इंद्राणी से भेंट का पूर्ण विवरण बताया । अंत में नारद का प्रस्ताव इंद्राणी की सेवा की जा सकती है । बताया सुमन का कहना था की मैं समझती हूँ कि देवलोक में गांधार ओं का अंतकाल आ गया है । अब यहाँ से चल देना चाहिए । कहाँ चलूँ पहले अपने देश में चलिए । वहाँ आपकी माताजी के दर्शन होंगे । उसके बाद प्रचार कर लेंगे । करन ने कुछ उत्तर नहीं दिया परंतु वो इस बात के लिए मन को तैयार करता रहा कि देवलोक में रहना उचित नहीं । करण ने नहुष के मन में भी अपने प्रति द्वेषभाव उत्पन्न हुआ देखा था । नहीं । उसने कहा था उस औरत का सम्मोहन मंत्र तो बहाने पर भी चल गया है । अगले दिन वो प्रातःकाल नहुष के भवन में जा पहुंचा । नहीं, इस समय सर्वथा सचिव था । अतएव करन को आदर से बिठाकर उसने पूर्ण प्रताप सुना और पश्चात कहा तो भारी अनुपस् थिति में यहाँ देवताओं और गांधार ओं में भारी झगडा हो गया था । उसमें जहाँ गांधार ओं ने उच्छ्रंखलता की थी, वहाँ देवताओं ने भी राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया है । उसका मैंने एक उपाय ये सोचा है कि जब देवता अपराध करें तो गांधार सेना द्वारा उनको दंड दिलवा हूँ और जब गांधार गडबडी करें तो देवताओं की सेना से दंड दिलवाओ, सब देखता हूँ । इस उपाय से अब शांति रहने लगी है । अब तुम आ गए हो तो तुम राज्य प्रबंध देखो और उसमें जो भी कुप्रबंध करें उसको निकाल बाहर करो । रही सच्ची की समस्या मैंने स्वयं उसका अपहरण करने का निश्चय किया है । मैंने देखा है कि तुम समस्या को सुलझा नहीं सकते । वैसे देव लोग के राज्य को मैंने बिना एक बूंद रक्त बहाये ले लिया था । वैसे ही अब मैं ये कार्य करूंगा । करण ने सिर से विपत्ति डाली । समझूँ कि सांस ली । इस समय उसने अपने मन में उठ रही बात कह रही है । उसने कहा महाराज मेरी माता का स्वास्थ्य बिगड रहा है । इस कारण छह मार्च का अवकाश चाहता हूँ । फिर माता को यही वो चाहेगी तो साथ लेता होगा । नहीं भी चाहता था कि शचि के अपहरण काल्बे वह यहाँ न रहे । उसके मन में यह धारणा बैठ गई थी की जैसी चतुराई उसने देव लोग कर राज्य लेने के समय की थी वैसी बात करन जैसे लोगों की उपस्थिति में नहीं चल सकेगी । इस कारण उसने कह दिया, हाँ, छह मार्च का अवकाश दे सकता हूँ परन्तु तुम्हारे वापस आने का विश्वास होना चाहिए । मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं आऊंगा । तुम्हारी सुमन यहाँ रहेगी ना । महाराज वो भी मेरे साथ जाना चाहती है तो तुम लौटकर आने का विचार रही रखते हैं । ऐसा नहीं हमारा देखो करण तुम्हारा लडका यहाँ बंधक के रूप में रहेगा । यदि तुम छह मार्च में नहीं लौटे तो उसको मृत्यु के घाट उतार दिया जाएगा । महाराज करण रहती दुख मन में कहा जब राजा और मंत्री में परस्पर अविश्वास उत्पन्न हो तो दोनों का एक साथ रहना उचित नहीं । इस कारण मेरी प्रार्थना है की मुझे सेवा कार्य से मुक्त किया जाएगा । तो तुम हमारी सेवा से मुक्त होना चाहते हो । इसी में आपकी भलाई हमारा । आज मैं तो पहले ही समझ गया था कि उस औरत का सम्मोहन अस्त्र तुम पर चल गया है । तो आप मुझ को क्या आज्ञा देते हैं? अभी तुम नहीं जा सकते । हम विचार कर के उपरांत ही इस विषय पे आज्ञा देंगे । नहीं । उस को संदेह हो गया था कि करण यदि अपने परिवार है, वहाँ से जाना चाहता है तो अवश्य इंद्राणी की सेवा करने के लिए जा रहा है । वो ये नहीं चाहता था ना उसने कुछ विषयों को राज्य में बुला लिया था । उनसे उसने कह रखा था यदि वे ब्रह्मा को प्रसन्न कर जीवित भारत का रहस्य ज्ञान सकेंगे तो उनको इतना पुरस्कार देगा कि वे उसका सैकडों वर्षों तक भोक करने पर भी उसे समाप्त नहीं कर सकेंगे । साथ ही उसने ये भी कह दिया ये रहस्य देव लोग की उन्नति के लिए ही प्रयोग में लाया जाएगा या फिर मानव समाज की सुख सुविधा जुटाने के लिए प्रयोग में लाया जाएगा । ऋषि लोग में फंस गए । अब लम्बा से मिल मिलकर इस विद्या को प्राप्त करने का यत्न करने लगे । हम माने उनको न तो विद्या देने के लिए इनकार किया और न ही स्वीकार । उनका कहना था की तपस्या से सिद्धि प्राप्त होती है । जब किसी की तपस्या हो जाती है सब फल प्राप्त होता ही है । इस कारण ऋषि लोग भगवत भजन और धम्मा के द्वार पर आना जाना लगाए हुए थे । अब न होश नहीं ऋषियों को बुलाकर कहा महात्माओं मेरी एक समस्या ये भी है कि अभी तक मेरा व्यवहार नहीं हुआ । इस कारण आपने योग्य किसी इस तरी से विभाग करना चाहता हूँ । मैंने इंद्राणी से विवाह का प्रस्ताव किया था परन्तु उसने अभी से स्वीकार नहीं किया । मैं समझता हूँ ये आप लोग उसको मेरे पक्ष में अपना परामर्श देंगे तब वह अवश्य मान लेगी । पहले तो ऋषि इस प्रस्ताव से बहुत अच्छा चाहे पष्चात ये विचार कर इसमें ब्रह्मा सहायता दे सकता है । उन्होंने यत्न करने का आश्वासन दे दिया । ऋषि इस नवीन समस्या को सुलझाने के लिए भी मम्मा के पास पहुंचे । रम्मा ने उनकी बात सुनकर अपने विचार बतलाए । जहाँ तक जीवित भारत के निर्माण का संबंध है मैं समस्या को लोक हित में देखता हूँ । पिछली बार जब आप लोग यहां आए थे तो मैंने आज की नियुक्ति को सुना था की विद्वान लोगों को जनता के हित में विचार करना चाहिए । राजा तो जो भी होगा और कूटनीतिज्ञ होने से स्वार्थी लोग ही और कम ही होगा । इस कारण हमें राजनीति और राजा का विचार छोडकर सर्वसाधारण के सुख साधन में लगे रहना चाहिए । मैं इसके लिए तैयार हूँ । केवल एक बात विचारणीय रह गई है । ये पारद रहस्य किसको दो जिससे यह किसी दृष्ट के हाथ में न चला जाए । दुष्ट के हाथ में इस अच्छा शक्ति के स्रोत के चले जाने से वो प्रजा का अहित भी कर सकता है । परिणाम ये होगा कि हमारी और से जनता के हित में किया गया कार्य जनता के हित में हो जाएगा । अब मैं इस सुझाव तो यहाँ तक पहुंच गया हूँ कि भारत का निर्माण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा करवाऊँ जो इसका दुरुपयोग न होने दें । कुछ ही दिनों में ये विचार कर अपना निर्णय आपके सम्मुख रखूंगा । इस पर जावाल ऋषि बोले, पिता मैं हम पर तो आपको विश्वास करना चाहिए । मैं इसी विषय पर विचार कर रहा हूँ । जो बात मेरे मन में संदेह उत्पन्न कर रही है । आप लोगों में देवर्षि नारद की अनुपस् थिति है । वो क्यों नहीं आया? कहाँ है वो क्या कर रहा है? वह ऋषि गणेश पर्सन देकर घबरा गए । इस पर एक बोला संभव है वे कहीं ब्रह्मनाथ गए हूँ । उनको कई वर्षों से नहीं देखा गया । दो वर्ष हुए तो मेरे पास आया था । मैंने उस को वचन दिया था कि पारद रहस्य नहीं उसको नहीं दूंगा । मैं इस विषय उससे परामर्श करना चाहता हूँ । ये सुन उपस् थित ऋषि एक दूसरे का मुख देखने लगे । कुछ विचारोपरांत एक ने कहा हम उनको ढूंढकर आपके पास भेजेंगे । इस आश्वासन के पश्चात शचि के विवाह के बाद प्रारंभ हो गई भी । मम्मा का कह रहा था कि ये नहीं हो सकता । मैं किसी के विभाग के लिए, विशेष रूप से किसी की पत्नी को किसी दूसरे से व्यवहार करने के लिए प्रयास में नहीं कर सकता । पिता मैं इंद्रशक्ति के योग्य नहीं है । इस से उसने अभी तक संतानोत्पत्ति भी नहीं की । मैं इस विषय में निर्णय नहीं दे सकता । ये सच्ची के अपने विचार करने के बाद है । जहाँ तक मुझे विदित है ना उसने अपने मंत्री को सच्ची के पास किसी प्रयोजन से भेजा था और सच्ची ने न हो उसके प्रस्ताव को नहीं माना । इस विषय में एक बात और स्मरण रखनी चाहिए न हो उसका व्यवहार अपने देश में हो चुका है और उससे उसका एक उत्तर भी है । उत्तर यशस्वी और एक विख्यात वंश की स्थापना करने वाला होगा । अजय मैं इसमें हस्तक्षेप नहीं करूंगा । ना हो चाहे तो किसी अन्य राजा की कन्या से हमें वहाँ कर सकता है । वास्तव में ऋषियों को ब्रह्मा से अभी तक कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ । इस पर भी उसको आशा बनी हुई थी । इसी आशा के कारण होश उसकी मान प्रतिष्ठा करता था । वो ब्रह्मा से तीसरी भेंट थी । इसके पश्चात उन हाँ तीन मांस उपरांत उनको आने के लिए कहा गया था । बहुत से मिलकर जब करण घर लौटा तो उसका मन अति खेलता था । सुमन ने उससे उदासी का कारण पूछा तो करण ने सब घटना जो कि क्यों वरना कर दी । सुबह का कह रहा था इसका तो यह अर्थ हुआ की हम बंदी हैं । महाराज की सेवा छोड भी नहीं सकते । ये क्या हुआ है? हमने तो कोई भी काम नहीं बिगाडा । यही मन लगाकर सेवा करने का फल है । करंट चुप था । तुमने फिर कहा हमको चुपचाप यहाँ से चल देना चाहिए । अकेला होता तब ये बात कठिन नहीं थी । सीमा पर कोई रोकता तो उस से दो दो हाथ कर भाग निकलता परन्तु तुमको और बच्चों को वहां छोडकर नहीं जाना चाहता हूँ और सब का भाग निकलना बेहद कठिन है । सुमन सारी कठिनाइयाँ समझ गई इस कारण वो इसके दूर करने का उपाय सोचने लगी । उसकी विचारधारा अपने को करन से पृथक कर देने की और जाती थी । वो अपने को अलग करके अपने पति का मार्ग साफ कर सकती थी । बच्चों की समस्या विकट थी, न तो उनको छोड सकती थी और न ही उनके लिए पति को अपनी माता से भेंट करने से रोक सकती थी । बहुत विचारोपरांत उसने कहा तो आप अकेले ही अपनी माताजी से मिलाइए मुझको और बच्चों को यहां छोड जाइए । इस प्रकार जाने की स्वीकृति तो मिल सकती है । प्रश्न यह नहीं है सुमन मैं तो अब इस राज्य की सेवा नहीं कर सकता और नहीं करना चाहता हूँ परन्तु में भाग कर नहीं जा सकता और जाना भी नहीं चाहता हूँ । मैंने कोई अपराध नहीं किया जिसके कारण मुझको यहाँ बंदी बनकर रहना पडेगा । समस्या इस प्रकार सुलभ नहीं सकती । नियमानुकूल मध्यान्न के समय कर्ण राज न्यायालय में जाने के लिए घर से निकल गया तो उस को राजभवन के बाहर नाराज जाता मिला । उसके मतलब का कुछ दूर पीछा करने पर नाराज है । उसको देख लिया । इस कारण कुमार में खडा होकर उसकी प्रतीक्षा करने लगा । करण पास आया तो साथ साथ चलते हुए ना रखने से पूछ लिया तो आप आप पहुंचे हैं यहाँ हाँ महाराज को पूर्ण स्थिति भी बदला दी है । अब वे क्या करने की सोच रहे हैं ये तो उन्होंने नहीं बताया । मैं आपको बताता हूँ ये व्यवहार नहीं होगा । इस पर समय क्या करना व्यर्थ है मुझको यहाँ आए हुए कई दिन व्यतीत हो चुके हैं । मैयत में कर रहा हूँ कि किसी प्रकार आपकी इस तरी से परिचय प्राप्त करूँ तो ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो उनसे परिचित हो और मेरा परिचय दे सकें । क्या काम है आपको उससे? सचिन जी ने आपकी स्त्री की अत्यंत प्रशंसा की थी और मुझसे कहा था कि जब अमरावती हूँ तो पता करों की कौन है वो बस इतनी सी बात है मैं ही बता देता हूँ । केंद्र के काल के भावना अध्यक्ष की वो लडकी है । उसका नाम सुमन है । सुमन भारत में विश्व में खडे होकर पूछा वो करन का मुख देखने लगा? पाल कई कारणों से हमारा संपर्क हुआ और फिर विवाह हो गया । क्या आप जानते हैं उसको बहुत अच्छी तरह से महाराष्ट्र की भी जानती होंगी । वो इंद्रा भवन में बहुत ही सरुपरिया बालिका थी । कहाँ रहते हैं आप? भवन के पश्चिमी पार्टियों में नीचे ही मेरा निवास स्थान है । मैं उनसे मिलना चाहूंगा । आपको आपत्ति ना हो तो किसी भी समय आ सकता हूँ । करण ने उत्तर नहीं दिया । वो अपनी और नहीं उसकी समस्या पर विचार करने में लीन था । भारत ने समझा कि वो उसके आपने स्त्री से मिलने में कोई कठिनाई अनुभव नहीं कर रहा । इस कारण पूर्व इसके की वो कुछ और कहे । नारद नमस्कार कर चल पडा । करन अभी विचार ही कर रहा था कि वह अपनी कठिनाई उसके सम्मुख हे नारद लंबे लंबे डग बढता हुआ चला गया तरह न्यायालय में गया तो ऋषि लोग मम्मा से मिलकर लौट आए थे और नहीं उसको उसके विचारों से अवगत करा चुके थे । करण ने उनको नहीं उसके पास से बाहर आते देखा तो वह नहीं जान सका कि वे लोग कौन है, किस कार्य से आए हैं । उच्च न्यायालय के अधिकारी से पूछा जिसने बताया ये ऋषि लोग हैं । आपकी अनुपस्थिति में इनको आर्यव्रत से बुलाया गया है । इनके द्वारा ब्रह्मासि वार्तालाप हो रहा है और उसमें काफी सफलता मिलने की आशा हो रही है । रन के मन में ये विचार हुआ कि कहीं ये वही लोग तो नहीं है कि जिन्होंने महेश को उसके विरुद्ध कर दिया हूँ । पता है उस ने इनका परिचय प्राप्त करने के लिए उठकर ऋषियों के नेता जवाल को झुककर प्रणाम किया और अपना परिचय दिया । भगवान मैं महाराज का मुख्य से वाक करण देखो मुझको ये जानकर बेहद प्रसन्नता हुई है क्या आप महाराज की और देवा लोग की सहायता के लिए यहाँ पर हरे हैं । सेवक यदि किसी काम आ सके तो उपस् थित हूँ जवाल ऋषि को करन से परिचय प्राप्त कर अपनी प्रसन्नता हुई । उसने करण को आशीर्वाद देकर कहा, आप किसी भी समय मिले तो बहुत अच्छा होगा । आपसे एक आवश्यक विषय पर बात करनी है । करन भी यही चाहता था । मंत्रालय का कार्य देखना निकाल वो ऋषि जावाल के निवास स्थान पर जा पहुंचा । छात्रों ऋषि वहाँ मौजूद थे और परस्पर परामर्श कर रहे थे । करण के आने पर उस को भी वहीं बुला लिया गया । जब करण बैठ गया तो उन्होंने सर्वप्रथम छ चीजें हुई बातचीत का वृतांत जाना । पश्चात ऋषि भगोने कहा, जहाँ तक सच्ची से व्यवहार का संबंध है ये हो ही जाना चाहिए । करण निवेदन किया, विवाह बाल अथवा चलके प्रयोग से होना तो ठीक नहीं है । भ्रगु का कहना था, राजा महाराजाओं के व्यवहार उनकी छाया अच्छा का विषय नहीं होते हैं । इस प्रकार के विवाहों में देश प्रजा और कभी कभी विदेशों के हित अहित का विचार करना पडता है । देखिए, गंदे नहीं उसका अविवाहित रहना देश के लिए ठीक नहीं । वो वहाँ के बिना उसका मन अव्यवस्थित रहेगा । प्रजा के हित के विचार से उसको इच्छानुकूल पत्नी मिल जानी चाहिए परन्तु शिमान कर नहीं सकते । हुए कहा वो एक दूसरे पुरुष की पत्नी है और वो पुरुष अभी जीवित है । बंदी और मृत में कोई अंतर रही । जिस धर्मनीति को गांधार मानते हैं उसमें किसी की धर्मपत्नी होने से उनका व्यवहार वर्जित नहीं है । फिर भी एक बात विशेष विचार नहीं है वो ये है की नहीं उस देश का राजा है सच्ची । अपने सौंदर्य के कारण रानी बनने की जो है वो किसी ऐसे के हाथ में नहीं रखी जा सकती जो उसकी रक्षा ना कर सकता हूँ । तो फिर आप क्या करने को कहते हैं? उसने तो यहाँ आना स्वीकार नहीं किया । हमारी तो ये इच्छा थी कि ब्रह्मा से कहकर उसको मनवाएं परन्तु मम्मा ने इस विषय में हस्तक्षेप करना अस्वीकार कर दिया है । हमारा ये निश्चित मत है कि एक बार और ये अपना किया जाए और यदि देवी जी मान चाहें तो ठीक अन्यथा बलपूर्वक अपहरण कर उनको देव लोग की महारानी ये पद पर सुशोभित कर दिया जाए । ऐसे ही अपना किया जाएगा । हम भारत की खोज में है । हमें याद है कि भारत का शरीर पर बहुत प्रभाव है और यदि वो शशि को जाकर समझाने का कष्ट करें तो सब बात सुधर जाएगी । करण को स्मरण हुआ आया कि नारद उसको मिलने को कह गया है । इस कारण उसने कह दिया कि मैं भारत को ढूंढने का यत्न करूंगा क्योंकि वो मिल जाए तो बहुत अच्छा हो सकता है । धम्मा जी भी उसको स्मरण कर रहे थे । यद्यपि करन को ऋषियों की नियुक्ति पसंद नहीं थी फिर भी वो अपनी विरोधी संपत्ति उनके सामने रखने से बहुत डरता था । उसको विश्वास था कि नारद उनकी नीति को पसंद नहीं करेगा परन्तु उसने ऐसी कोई बात विषयों के सम्मुख नहीं कही । वो ऋषियों के सामने अपने मन के भाव कहने से खानी ही मानता था । इस वार्तालाप के पश्चात होना भारत से मिलने के लिए उत्सुक हो उठा और उसकी प्रतीक्षा करने लगा । करण का विचार था कि नारद उसको ये कष्ट करने देगा । उसी रह जब वह सुमन को ऋषियों से अपनी बात बता रहा था और सुमन ऋषियों की बुद्धि पर आलोचना कर रही थी । प्रतिहार नया कर सूचना दी की कोई देवता जो अपना नाम नहीं बताता हूँ मिलने के लिए आया है । करण को एकदम सूख गया कि नाराज आया है । इस कारण वोट कर बाहर द्वार पर जा पहुंचा और आगंतुक को देखकर जान गया । इसका अनुमान ठीक था । उसको भीतर ले गया । पश्चात द्वार बंद कर बोला आपने अच्छा ही किया जो नाम नहीं बताया अन्यथा आपके यहाँ आने का रहस्य खुल जाता हूँ । इतना ज्ञान मैं रखता हूँ । भारत ने कहा इस समय सुमन आ गई और देवर्षि को पहचान प्रणाम करने लगी । जब सब पिछले आगार में जाकर अपने अपने आसनों पर बैठ गए तो सुमन ने कहा आपका यहाँ आना भयरहित नहीं । आजकल हम पर महाराज को संदेह हो रहा है । इसका कारण कहा नहीं जा सकता । जिस समय से पता मिला है कि तुम यहाँ रहती हूँ, मैं तुमसे मिलने की इच्छा कर रहा हूँ । अपनी इच्छा को अधिक काल तक ना रोक सकने के कारण ही यहां चला आया । तुमसे ना हो, कितने बच्चे हैं, तुम्हारे कहाँ है अभी दो हैं, एक माणिक्य है और एक पडा । दोनों इस समय हो रहे हैं । करण जी की महारानी इंद्राणी बहुत प्रशंसा कर रही थी । वो जिसमें करती हैं कि ये कैसे नहीं उसकी सेवा कर सकते हैं । मुझको महारानी ने आज्ञा दी है कि इनको महारानी जी की सेवा के लिए तैयार कर लूँ । करण ने इस बात को उत्तर देने की अपेक्षा ऋषियों में बात कह दी । उन्होंने कहा अगस्त रघु काश्यप हत्या दे ऋषि नहुष की सेवा में आ गए हैं । आपको भी ढूंढ रहे हैं चाहे रात्रि सेवाएं भी नहीं उसके लिए मानते होंगे । कहाँ है ये? मैंने सुना तो है परंतु विश्वास नहीं आता । करण ने उसके निवास स्थान का पता दिया और कहा मैं उनसे मिल कर आया हूँ । वही अपना कर रहे हैं कि ब्रह्मा उनको जीवित पारक निर्माण का रहस्य बता दें सुना है कि ब्रह्मा जी चाहते हैं कि नारद आएँ । उनसे परामर्श कर उनसे बात करें । देखिए करण जी एक बात में मेरा और श्री ब्रह्मा जी का मतभेद रहा है । उनका कहना है विज्ञान मनुष्यमात्र की संपत्ति है इसका ये जिज्ञासु को देना चाहिए । मैं कहता हूँ ज्ञान एक अमूल्य रत्न है जो केवल अधिकारी को ही मिलना चाहिए । जिज्ञासा मात्र से ये नहीं दिया जा सकता । ये ऋषि वेदों के ज्ञाता जरूर है परन्तु जो कुछ करना चाहते हैं वैदिक विचारधारा के अनुकूल नहीं है । इस पर भी मैं उन लोगों से मिलूंगा और इनको अपने विचार बताऊंगा । मैं समझता हूँ कि आपको इन लोगों से मिलना चाहिए । व्यक्तियों के झगडे जातियों की उलझनों को बढाने वाले नहीं होने चाहिए । यदि किसी प्रकार से देव लोग के रहने वालों को सुख सुविधा मिल सके तो फिर चाहे इंद्रा राजा हो और चाहे न होश । इसमें क्या महत्व है । नाराज हस पडा और कहने लगा इस प्रकार से विचार करने में आपका कोई दोष नहीं । आपके संस्कार ही इसमें कारण है । हम तो ये समझते हैं कि राजा अच्छा होने से ही प्रजा सुखी हो सकती है । केवल सुख सुविधा । मनुष्य जीवन का आधे नहीं, आत्मोन्नति सुख सुविधा प्राप्त करने से बहुत ऊंची वस्तु है । विषय लोनों पर राजा के राज्य में आत्मघाती संभव नहीं । बहुत रात व्यतीत हो चुकी थी । नाराज खडा हुआ और इतना कहकर वो कभी कभी मिलने आया करेगा विदा हो गया । एक दिन करण को ये सुन जिसमें हुआ कि नारद सच्ची को वहाँ के लिए मनाने चला गया है । उसको नहुष नहीं स्वयं बात बताएगी । उसने कहा था सुनो करन, मेरी नीति सफल हो रही है । मैं समझता हूँ कि तुम सब बुद्धू हो । कोई भी काम तुम लोग संपन्न नहीं कर सके । एक और मम्मा ने ये मान लिया है कि जब भी जीवित पारद समाप्त होगा वो उसको अपने कोष में से देंगे । कुछ प्राण उन्होंने दिया दी है । दूसरे नाराज मेरा शत्रु था, मेरा मित्र बन गया है और सच्ची को मेरी पत्नी बनाने में यत्न करने के लिए कश्मीर चला गया है । ये सफलता आर्यव्रत के कुछ ऋषियों को यहां लाकर बसाने से मिली है । करण को ये सब अनहोनी बात प्रतीत होती थी परंतु एक कह नहीं सका उसको नाम उसकी बात का विश्वास नहीं है । जब रात सुमन से बात हुई तो वह आश्चर्य में पड गयी । वो देख रही थी की दिन प्रतिदिन देवताओं का साहस बढता जा रहा है । गांधार उनके सामने आने में ये अनुभव करने लगे हैं । एकता दुकान गांधार तो उनके मोहल्लों में जा भी नहीं सकता । निति गांधारी और देवताओं में झगडा होता रहता है और इन झगडों में प्राय गांधार ही पराजित होते हैं । इन सब बातों से प्रतीत होने लगा था शीघ्र ही गांधार राज्य समाप्त हो जाएगा । ऐसी अवस्था में ब्रह्मा और भारत का नहीं, उसका राज्य चलाने में सहायक होना और उसके विवाह का प्रबंध करने में यह में कर रहा हूँ । सुमन को आश्चर्यजनक प्रतीत हुआ फिर भी वह ये विचार कर रही है । इस विषय में कुछ नहीं कर सकती । चुप खेलेगा । करण के सामने एक गांधार सैनिक ये अभियोग लेकर आया । एक दुकानदार ने एक सेव का दाम एक रजत मांगा है और जब इतना अधिक दाम देना उसने अस्वीकार कर दिया तो झगडा हो गया और दुकानदार ने उसको घायल कर दिया । गांधार सैनिक अपनी पीठ दिखाई जिस पर तलवार का भाव लगा था । करन गांधार सैनिक की व्यवस्था से तिलमिला उठा । उसमें पूछा हम बीट पर भाव खा गए । उच्चतम मुझे डर कर भागने लगे होंगे । हाँ पुत्रवान चलाने ना परवीन था । उसने एक ही बार में मेरी तलवार के दो टुकडे कर दिए । ऐसी अवस्था में मुझे भागना पडा और उसकी तलवार से मेरी पीठ पर घाव लग गया । तो तुम क्या चाहते हो? क्या मैं तुम्हारी भीरता और दुर्बलता के लिए उसको दंड दू? मैं चाहता हूँ कि उस देवता को शासक पक्ष के व्यक्ति के विरुद्ध लडने के अपराध में आपसे दंड दें । परन्तु यदि ये हो गया कि पहला अपराध तुमने किया है तो फिर उसमें ही मुझसे झगडा आरंभ किया था । मैंने सेव लेकर घर चलने से पूर्व उसको कहा था किसी का दाम एक चौथाई रजत होना चाहिए वो मैं दे सकता हूँ और यदि उसे अधिक चाहिए तो वह न्यायालय में जा कर लेने । मेरी इस बात पसंद कर वो तलवार से मेरे सामने खडा हो गया । विवस मुझको भी तलवार निकालनी पडी । उसने एक का एक बार किया और मेरी तलवार कि मुट्ठी के कुछ ऊपर पडा । मेरी तरफ बार उसी स्थान से टूट गई और मेरे हाथ में उसकी केवल मात्र मुठ्ठी रह गई । इस कारण वो अपराधी है । हम तो तुमको किसने बताया है कि सेव का दाम एक चौथाई रजत है और फिर जब उसने तुम्हारा दम स्वीकार नहीं किया तो तुम बिना दम दिए सेव लेकर क्यों चल पडे? अपने माल की रक्षा के लिए तलवार निकाल लेना अपराध नहीं था तो मैं उसके विरुद्ध यदि कुछ करना था तो न्यायालय में आकर करते हैं । बच्चे को घर ले जाने का कोई कारण नहीं था । रियात मेरी सहायता तथा नीरज भाव का प्रतिकार नहीं करेंगे तो गांधार ओं का भारी अपमान हो जाएगा । इससे हमारा राज्य दुर्बल हो जाएगा और हम सबकी जान को भय उत्पन्न हो जाएगा । महाराज ने घोषणा कर दी कि गांधार और देवता राज्य में स्वान समझे जाएंगे । इससे मुझे तो तुम अपराधी प्रतीत होते हो और यदि मैंने तुम्हारा अभियोग स्वर तो तुमको ही दंड मिल जाएगा । परंतु पहले तो ऐसा नहीं होता था । जो पहले होता था वो उचित नहीं था । अब ऐसा ही होगा । करन से किसी प्रकार की सहायता की आशा ना पाकर गांधार सैनिक नहीं उसके पास जा पहुंचा । नहीं उसके पास जावाद ऋषि बैठा हुआ था । बहुत नहीं जावाल । ऋषि से उसका उपयोग सुनने को कहा । ऋषि जावाल ने उस दुकानदार को बुलाकर पूछा तुम सेव कितने का बेचते हो? एक रजत का एक दम बहुत ही अधिक है । महर्षि सेव कश्मीर से आते हैं । इनके आने में मार गया । बहुत अधिक लगता है इस कारण इससे कम दाम देखने में हमें लाभ नहीं होगा तो इस कॅश नहीं क्यूँ इतने दाम की वस्तु इस लोग में शोभा नहीं देती । पर महार्षि ये तो इस दम पर भी बहुत देखती है । नहीं ऍम पर नहीं भेज सकते । बेचोगे तो दंड के भागी बना हो गई । बहुत अच्छा भगवान भविष्य में नहीं बेचूंगा । जब वह दुकानदार जाने लगा तो गांधार ने महर्षि को कहा श्रीमान, आपने इसको दंड तो दिया ही नहीं । अब अधिक दाम पर बेचेगा तो दंड का भागी बनेगा । पर इसमें मुझे घायल जो कर दिया है वो भूल हो गई । जो भाई दुकानदार हमने इसको घायल क्यों क्या है? महर्षि मैंने इसको घायल नहीं किया । प्रत्युत ये मेरी तलवार के सम्मुख आ गया था । जवाली युक्ति जहाज पडा और बोला देखो सैनिक भी तलवार चलाओ और इससे कहूँ कि तुम्हारी तलवार के सम्मुख आ जाए । ये भी घायल हो जाएगा । गांधार विवश घर लौट गया न हो उसको जावाल । ऋषि की चतुराई प्रतीत हुई कि उसने दोनों को संतुष्ट कर दिया है । वो ये नहीं समझ सका कि दोनों असंतुष्ट ही लौटे थे । परिणाम ये हुआ की न तो दुकानदार ने से कम दाम पर बेचने स्वीकार किए और न ही गांधार ओं ने अपनी उच्छ्रंखलता बंद की और इस प्रकार की घटनाएं नित्यप्रति होने लगी । पिछले कई मास बार एक दिन नहीं उसने करण को बुलवाया । इससे चिंतित अवस्था में कारण नहीं । उसके सामने उपस् थित हुआ । उसने नहीं उसको अत्यंत चिंतित अवस्था में पाया । इस कारण वो नमस्कार कर इसका कारण जानने के लिए वहाँ पर खडा रहा । हमने तुम को बुलाया है । महाराज को पस्थित है । आज रात को नगर में भारी उपद्रव हो गया है । इस विषय में कुछ समाचार सुने हैं परन्तु शिमान को बजट होना चाहिए कि बिना मुझसे राय लिये सेनापति ने सुद्रढ को शांत करने का प्रयास में भी क्या है? क्या मालूम है तुमको रातों को सैनिक बलपूर्वक एक मकान में घुस गए । वे मद्यपान किए हुए थे । उस घर में कुछ महिलाएं रहती थी । उनसे सैनिकों ने बलात्कार करना चाहा । इस पर झगडा हो गया और महिलाओं के संबंधियों ने सैनिकों से युद्ध किया और एक के अतिरिक्त सब सैनिक मारे गए । वो सैनिक जो डर कर वहाँ से भाग आया था, सेनापति के पास पहुंचा और सेनापति ने उस घर को जलाकर महिलाओं सहित भस्म कर रही नहीं की आज्ञा दे दी और इसके लिए अपने सैनिक भेज दिए । ऐसा प्रतीत होता है कि सेनापति की आज्ञा की सूचना नागरिकों को पहले ही मिल गई थी । भारी संख्या में वहाँ उपस्थित थे । दोनों पक्षों में युद्ध हुआ और दो बार सैनिकों को नागरिकों ने लड कर भगा दिया । सुना है कि सेनापति आपसे आज्ञा लेकर पूर्ण सेना एकत्रकर पूरन नगर को भस्म कर देने की योजना बना रहा है । हमने तो कुछ भिन्न कथा सुनी है । सहायता और सेनापति के पास । सूचना मिली कि वो लडकी इससे संरक्षक में कुछ दिन पूर्व उसकी वहाँ कार्ड दी थी । एक मकान में रहती है । सेनापति ने कुछ सैनिकों को उसे पकडने के लिए उस मकान में भेज दिया । वहाँ उन सैनिकों के मार्ग में बाधा डाल दी गई जिनसे झगडा हो गया और बारह में से ग्यारह सैनिक वही मार डाले गए । समाचार को पाकर सेनापति ने दो सौ के लगभग सैनिक भेजे । इस पर वहाँ घमासान शुद्ध हुआ । अभी तक उन विद्रोहियों ने वहाँ मोर्चा बंदा हुआ है । मैंने निर्णय कर लिया है कि उनको इस बदरों के लिए दंड दिए बिना नहीं रहूंगा । प्रंमुख देखता रहा, कुछ नहीं कह सका । उसे चुप देखना । होश ने पूछा क्या तुम को ये पसंद नहीं है? जब आप ने एक बात निश्चय कर ली है तो मैं क्या कह सकता हूँ? आपकी इच्छा सर्वोपरी है । इसका अर्थ यह है कि तुमको तुम्हारी योजना रुचिकर नहीं है । इसमें रुचि, अरुचि का प्रश्न ही नहीं उठता । महाराज मान लीजिए उन विद्रोहियों को दंड देने के लिए आप नगर को भस्म कर देने में सफल हुए तो फिर आप कहाँ रहेंगे? और यदि भवन के ये यन्त्र जिनसे यहाँ का जीवन चलता है, बिगड गए तब फिर आप यहाँ रहकर क्या करेंगे? ये तो दूसरे को झूठा सिद्ध करने के लिए अपनी ही ना काटने के तुल्य होगा । इस भवन को बचा रखेंगे । मान लीजिए यदि ऐसा संभव हो गया तब भी यह नगर नहीं रहेगा । राज्य इस पर करेंगे गांधार से और लोगों को बुला लेंगे और आप समझते हो की इस प्रकार देवताओं के विनाश के पश्चात भी मम्मा आपकी सहायता करेगा । जब सच्ची आ जाएगी तब मम्मा की आवश्यकता नहीं रहेगी । सब ठीक है, आप करिए परन्तु मैं अविनाश कार्य में कुछ तो नहीं देखता हूँ । मेरे विचार में शांति मार को ढूंढना ही उचित है । अब तो आज्ञा जा चुकी है । देखिए उसका परिणाम क्या होता है । चरण चुपचाप खडा रहा । कुछ विचार करना । उसने कहा तो इसमें क्या सहायता दे सकते हो? मुझको आज्ञा दीजिए, मैं क्या करूँ? एक घोषणा लिखो और उसे मेरी और से घोषित करवा लो, उसमें लिखो । यदि विद्रोही एक प्रहर तक अपने आपको बंदी ना बनवा देंगे तो पूर्ण नगर को भस्म कर दिया जाएगा । करण ने उसी समय घोषणा लिख दी ना उसने घोषणा को सुना और उसके शब्दों को पसंद कर प्रसारित करने के लिए भेजने ही वाला था कि प्रतिहार सूचना लाया महाराज, कुछ गांधार सैनिकों की स्त्रियाँ अपने बाल बच्चों को लेकर रोजन करती हुई शिवान से कुछ निवेदन करने के लिए आई हैं । तुरंत बुलाओ बहरा आज्ञा दी । बीस पच्चीस स्त्रियाँ थी और उनके साथ दस पंद्रह के लगभग बालक थे । वॅायस था में वहाँ खडी हो गई पहुँचना पूछा क्या बात है महाराज, हम लोग गए हैं । देवताओं ने हमारे घर वालों को मार डाला है और हमको घर से निकाल दिया है । हम लोगों की रक्षा के लिए मैं अभी सेना भेज रहा हूँ । सेना तो वहां पहुंची थी महाराज परन्तु डरकर भाग गई है । अभी और अधिक मात्रा में भेजता हूँ । इस समय प्रतिहार सूचना लाया महाराज सेनापति दर्शन करना चाहते हैं आने दो । सेनापति आया और प्रणाम कर बोला सेना ने लडने से इंकार कर दिया है क्योंकि कहते हैं कि देवताओं की सेना को बुलाकर देवताओं से लडने के लिए भेजना चाहिए । देवताओं की सेना कहाँ है? बहुत से देवता सैनिक तो सीमा पर भेज दिए गए हैं । उनको वापस बुलाने में समय लगेगा तो उस समय तक शांत रहना चाहिए । इतना कहकर नहुष ने एक रन से कहा मैं समझता हूँ कि अब महामात्य का काम आ गया है । करण रेफ आइए और किसी प्रकार शांति करने का यत्न करेंगे । करण देव जानता था कि सब बात भी कर चुकी है । इस पर भी उसने सोचा कि अपनी और से शांति के लिए यत्न करना चाहिए । यदि असफलता मिली अपना कर्तव्य तो पूरा हो जाएगा । इस विचार से वो शांति स्थापन के लिए चल पडा । वो सीधा न्यायालय गया और वहाँ जाकर उसने घोषणा जो उसने न हो उसके कहने पर लिखी थी । बाहर कर फेंक दी और एक नई घोषणा लिख डाली । उसमें उसमें लिखा हमको ये जानकर भारी खेद हुआ है । ये कुछ गांधार सैनिकों ने नगर के लोगों से झगडा किया है । झगडे में दोनों ओर के लोग मारे गए हैं । सैनिकों की ओर से झगडा हमारी नीति के विरुद्ध हुआ है । हमने उन सैनिकों पर जिन्होंने झगडा प्रारम्भ किया है, अभियोग चलाने की आज्ञा दी है । उनके ग्यारह बढ चुके हैं । केवल एक ही बच्चा है उस पर अभियोग चलाया जाएगा और यदि वह दोषी सिद्ध हुआ उसको दंड दिया जाएगा । हम जनता को विश्वास दिलाते हैं कि उनके साथ न्याय होगा और जिन जिनको झगडे से हानि पहुंची है उनकी छठी की पूर्ति की जाएगी । हम जनता से भी प्रार्थना करते हैं कि वह शांतिपूर्वक रहे । जिस किसी को भी किसी के विरुद्ध आरोप लगाना हो, न्यायालय में लगाए उनके साथ न्याय किए जाने का विश्वास दिलाया जाता है । ये घोषणा नगर में कई बार करवाई गई । फिर भी छुटपुट आक्रमण कई बार होते रहे । पूर्ण शांति स्थापित होने में दो सप्ताह लग गए । तब तक देवताओं की सेना नगर में पहुंची । उस सेना के नायकों को करण ने समझाया भी सैनिक हूँ, ये देश तुम्हारा है । यहाँ के रहने वाले तुम्हारे भाई बंधु हैं । इस कारण तुम को उस की रक्षा करनी चाहिए । देश में शांति स्थापित रखना तुम्हारा धर्म है । इस कारण बिना किसी पर अन्याय किए नगर में झगडे बंद कराना तो हमारा काम है । यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार का भी झगडा करें, उसको पकडकर न्यायालय में ले आओ, उसको स्वयं ठंड मत दो । इस प्रकार समझा बुझाकर देवता सैनिकों को करण ने नगर में नियुक्त कर दिया । देवताओं और गांधार ओं का ये झगडा पूर्ण रूप से शांत भी नहीं हुआ था कि जाबाल ऋषि नारद का संदेश लेकर आया, नाराज देना हो, उसको बधाई दी थी और इस संदेश दिया था बाहर बहुत से कह दीजिए कि आधे से अधिक काम हो गया है । महाराणा इंद्राणी अमरावती आने के लिए तैयार हो गई है । वो कुछ शर्तें करना चाहती हैं । मैं इस अवस्था में नहीं हूँ कि महाराज की ओर से किसी प्रकार की शर्त तय कर सकूँ । इस कारण महाराष्ट्र कह दीजिए कि किसी अपने विश्वस्त व्यक्ति को वहाँ भेज दें जो शर्तें स्वीकृत करने का अधिकारी हो । ये कार्य शीघ्र हो । नौ समाचार कसुन पागलों की भांति नाचने कूद रहे और ऋषि से गले मिलने लगा । अविलंब करण को बुलाया गया । जवान ऋषि नहीं भारत का पत्र पढकर सुनाया और उसकी सम्मति मांगी करने का हम महाराज ये सत्य है । इमारत का देवताओं पर भारी प्रभाव है और जब उसने लिखा है कि आधे से अधिक कार्य हो गया है । वास्तव में भाई प्रसन्नता का विषय है । आप अपने किसी विश्वस्त दूत को भेज दीजिए । छह सफलता भी मिल जाएगी तो तुम भी जाऊँ और मेरे द्वारा मान्यता लडते निश्चित कर उसको लेता हूँ । बहुत कठिन कार्य है । हमारा भूल से ऐसी कोई शर्त हो गई जिसको आप पसंद न कर सके तो फिर क्या होगा? देखो करण तुम मेरे मित्र हो । मैं तुमसे कोई बात छिपाकर नहीं रखना चाहता हूँ । मैं तो उससे किसी भी शर्त पर व्यवहार करना चाहता हूँ । मैं अपना सब राजपाट उस पर न्योछावर कर सकता हूँ । मेरी और से केवल एक ही शर्त है वो है उसके सहवास का निर्बाध अधिकार, जो वो मांगे मान जाना, एक बार देख लेना । मुझ को लज्जित करने वाली कोई बात ना हो । सच्ची जैसी इस तरीके पति का जो मान संसार में होना चाहिए वो मेरा होना चाहिए । घर में तो उसके जूते तक साफ कर सकता हूँ । करण ने मुस्कराकर कहा आप आज दिन भर विचार करने मैं कल ही यहाँ से जा सकूँ । इससे पूर्व यदि कोई विशेष बात आप कहना चाहते हो तो आ गया कर दें । मैं तुम्हारी बुद्धि और चतुराई पर विश्वास रखता हूँ । अब तुम जा सकते हो और जाने की तैयारी कर सकते हो । तरण वहाँ से चलकर घर आया और सुमन को नारंग का संदेश बताकर तैयारी करने के लिए कहने लगा । सुमन यह समाचार सुनने मुख देखती रह गई । जो मैंने पूछा विश्वास नहीं आता । देवताओं का घोर पतन हो चुका है । अभी तो ये दुर्दशा इनकी हुई है । जब राजा ही पतित हो गया है तो प्रजा की क्या बात है? तुम दूसरा विवाह करना पतन का लक्षण समझती हो । ये विवाह का प्रश्न नहीं है तो समाज के नियमों को भंग करने की बात है । हमारे समाज में इससे दूसरा व्यवहार नहीं करती । इस समाज में दूसरा व्यवहार नहीं होता । वहाँ ये पता नही है तो इसका अपना ये निकला । इंद्राणी ने देवसमाज को छोडकर गांधार समाज में प्रवेश करने का निश्चय कर लिया है । यही जिसमें करने की बात है समाज परिवर्तन एक साधारण सी बात नहीं होती है । इसमें ये तो देखना आवश्यक है दोनों में कौन श्रेष्ठ है ऐसा प्रतीत होता है चारों और गांधार ओं की विजय होती दे । सच्ची के मन में विजेताओं के श्रेष्ठ होने का विश्वास बैठ गया है । सुमन जी बात क्या विचाराधीन नहीं कि विजेताओं की जी उनमें किसी श्रेष्ठता की सूचक हैं । मैं सिद्धांत वो मानने में कोई युक्ति नहीं देखती । इस पर भी हमारा इस विषय पर वाद विवाद कुछ अर्थ नहीं रखता । देखें आपके यहाँ आने का क्या फल निकलता है । अब तो भगवान का ही आश्रय है तो मेरा शरीर भी नहीं रहा । आपको आज क्या हो गया है? मैं जब अपने विषय में कहती हूँ तो आपने पूर्ण परिवार के विषय में ही तो कहती हूँ और आप उसमें मुख्य व्यक्ति हैं । मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि समाज के चुनाव के विषय में है । मैंने तो भगवान के भरोसे आपका छोड पकडा हुआ है । मैं तुम्हारा अभिप्राय नहीं समझा । अभिप्राय स्पष्ट है, मेरी लडकी पडा है । वो आपके समाज की प्रथा स्वीकार करेगी अथवा देवताओं की ऍम कह सकता है । मेरी धारणा है कि देर समाज की प्रथा अधिक सुखकारक है । परंतु जो घटनाएँ हमारे चारों और घट रही हैं वे तो देर समाज के रहन सहन और नियमों को विध्वंस करके छोडेंगी । ऐसी व्यवस्था में भगवान का ही तो भरोसा किया जा सकता है । देखो सुमन करण ने अपनी अंतरात्मा की बात को खोलते हुए कहा मेरा इस काम ने मन नहीं है फिर भी मैं जी रहा हूँ । मैं देखना चाहता हूँ कि महाराणा इंद्राणी को किसी प्रकार का धोखा देकर कोई बात तो नहीं बना ली गई । फिर भी यदि वे विवाह करने पर स्वेच्छा से तैयार हुई तो मैं इसमें कुछ भी नहीं कर सकूंगा । इसी कारण तो कहती हूँ कि भगवन की जैसी इच्छा है वैसा ही होने दो । करण अगले दिन यात्रा करी तैयार होकर नहीं उससे अंतिम आदेश लेने के लिए उसके सम्मुख चाह उपस्थ हुआ । वहाँ किस तरी पहले ही मौजूद थी । करण उसको देख चुपचाप खडा रह गया । बात नहीं । उसने आरंभ कि उसमें उस स्त्री का परिचय दिया । ये महारानी शरीर की सकी मिलन है । ये देवर्षि नारद का पत्र लेकर आई है और आपको एक सीधे मार्ग से वहाँ ले जाने के लिए साथ जा रही है । अश्वों पर जाने से राजमार्ग पर एक पखवाडा लगता है । आपको तीन दिन में ले जाएंगे । कहती है मार कुछ कठिन अवश्य है परंतु देवर्षि की आज्ञा है । ये कार्य शीघ्रातिशीघ्र सम्पन्न होना चाहिए । उनका कहना है, शायद वहाँ से एक बार और आना पडेगा । यदि महारानीजी आने पर तैयार हो गई तो पहले यहाँ आकर उनके लिए निवास का उचित प्रबंध करना होगा । करण बिना बोले चुप चाप खडा हो गया । अब इस परिचय के पश्चात अपने सम्मुख खडी स्त्री को देखकर उसने नमस्कार किया और पूछने लगा क्या आप भी घोडे पर सवार होकर चलेगी? इसीलिए तो आई हूँ । मैं इस मार्ग पर बीसियों बारा जा चुकी हूँ । पहुंॅच तेरी जी को आपको कुछ पुरस्कार देना चाहिए दे रहा था । परंतु वो कहती हैं कि जब तक अंतिम निर्णय नहीं हो जाता अब तक यहाँ से कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे । क्यों उत्तर जिस तरह लिया मैं महारानी जी की दासी नहीं हूँ । मैं उनकी सकती हूँ और उनके द्वारा ही महाराज से भेंट ले सकती हूँ । करण महाराज से महारानी के लिए पत्र जिसमें करण को उनकी ओर से बातचीत करने का पूर्ण अधिकार लिखा था, लेकर विदा हो गया । मिलिंद भास्कर की जिस तरह थी करण उसके साथ दस सैनिक और लेकर अमरावती के लिए चल पडा । अमरावती से निकलते हैं । मिलिंद ने सबको एक भिन्न मार्ग पर चलने के लिए कहा । राजमार्ग छोडकर ये सीधा मार्ग पश्चिम की ओर जाता था । कुछ दूर जाकर मिलिंद उन सबको एक और संकीर्ण मार्ग पर ले जाकर चल पडी । ये मार्ग एक घने जंगल में से होकर जा रहा था । मैंने सब के आगे थी और करण तथा अन्य अश्वारोही उनके पीछे थे । मार इतना संकीर्ण था कि पर्वतारोही एक साथ में ही चल सकते थे । अमरावती से निकलकर ये लोगों का पहाड पर चढाई चल रहे थे । दो पहर भर चढाई चढकर ये लोग एक दूसरी वादी में पहुंचे और मार कुछ धनवान पर जा पहुंचा । ये दल धीरे धीरे नीचे उतरने लगा । अभी तक ये देवलोक में ही थे कि रात पड गई । करण ने मिले उनसे पूछा कि रात कहाँ ठहरने का प्रबंध होगा । यहाँ से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर है । हम वहाँ ही ठहरा करते हैं । मंदिर का पुजारी भला पुरुष है । भोजन का प्रबंध उसी के द्वारा हो जाएगा । इस समय मार गोवर खबर नहीं था । ये एक जंगल में से समतल भूमि पर जा रहा था और करन का घोडा मिलिंद घोडे के साथ साथ चल रहा था । करण दिनभर की यात्रा से थोडा होने के कारण और मार्ग में केवल धोनी चने खाओ रखने के कारण अशांति अनुभव कर रहा था । मेरे मैंने उसे शांति देने के लिए कहा । हम पचास कोस आ गए हैं । लगभग इतना ही और चलना है । यदि कोई देखना पडा तो कल साइकिल से पूर्व सीमा पार कर महान ईजी से भेंट कर सकेंगे । नाराज जी वहाँ है क्या? हाँ महारानी के विदा होने तक वहीं रहेंगे और पश्चात चक्रधरपुर जाने का विचार रखते हैं, अमरावती जाने का नहीं । नहीं ब्रम्हवर्त में कश्मीरी सेनाओं को कुछ सफलता नहीं मिल रही । इस विषय में भी वो कोई समझौता करवाने के पक्ष में हैं । हमारा तो ये अनुमान था कि देवर्षि बहुत झगडालू व्यक्ति हैं परन्तु ये कार्य तो उन्होंने ऐसे क्या है जिससे हमारी पूर्वधारणा सकते शुद्ध हुई है । देवर्षि जी के संबंध में आपकी ये धारणा भ्रमपूर्ण थी । देवताओं में सबसे अधिक संतुलन बुद्धि रखने वाले वहीं है । अनेक बार संसार भ्रमण करने के कारण उनका मानव मन का ज्ञान भी अतिश्रेष्ठ है । उनके परिणाम प्राय ठीक ही निकलते हैं । तो ये कार्य मेरा अभिप्राय शशि के व्यवहार से है । उनकी श्रेष्ठ बुद्धि का श्रेष्ठ कार्य मानती हैं आप । मिलिंद चुप रही । करण को कुछ ऐसा संदेह हुआ कि वो इस विभाग के पक्ष में नहीं है । इस कारण उसने इस विषय में कुछ और अधिक जानने के लिए उनसे पूछा, आपका समझती हैं कि देव लोग कैसे कल्याण होगा? मैंने बहुत संयत भाषा में उत्तर दिया, हम लोग इसमें क्या सम्मति रख सकते हैं । ये विवाह मेरा होता तो मैं विचार कर इसमें अपनी सम्मति बनाने का यह नहीं करती । करण हस पडा और बोला, आपकी सखी के साथ आपका विभाग भी तो हो सकता है । क्या आयु है आपकी देवताओं में आयु का प्रश्न ही नहीं उठता । हमने जीवन का एक रह सलून निकाला है । हम कालकी लम्बाई में जीवन व्यतीत करने के स्थान पर इसका गहराई में जाने का ढंग खोजते हैं । ऐसी अवस्था में काल तो चलता जाता है परन्तु हम बूढे नहीं होते हैं । हमारे यहाँ पर एक व्यक्ति पांच सौ वर्ष जीता हुआ भी युवा रह सकता है । काल व्यतीत हो जाता है पर जीवन व्यक्ति नहीं होता । करण इस गन्ना की पहली को नहीं समझा । उसको विस्मय में आवास मुख अपनी और देखते हुए मेलिन ने कहा, देखिए मोहम्मद मैं बहुत पढी लिखी नहीं हूँ । इस कारण ये समस्या आपको समझा नहीं सकती । केवल इतना बता सकती हूँ । एक नदी है मानव बहता हुआ काल है । संसार के प्राणी उस नदी में बहते जा रहे हैं । आधार आयु भोग रहे हैं । कोई योगी उस नदी में बहने के स्थान उसके पार जाने लगता है । वह जलविहार तो वैसे ही करता है जैसे नदी के जल के साथ बहने वाला कर सकता है परन्तु अपने योग बल से वह किनारे के विचार से आगे नहीं पडता । आधार वह योगी संसार का भोग करता हुआ भी बूढा नहीं होता । आधार देवता लोग किसी भी आयु में विवाह कर सकते हैं और संतानोत्पत्ति कर सकते हैं । हाँ तो आप की आयु पूछने की आवश्यकता नहीं और विवाह का प्रस्ताव किया जा सकता है । मैं तो योग नहीं जानती फिर भी अपने समाज के कुछ ऐसे प्राणियों को जानती हूँ जो ऐसा कर सकते हैं । इंद्राणी उनमें एक है, केंद्र भी योगेश्वर है । धम्मा जी भी ऐसे ही एक हैं । मैं इंद्रा, मम्मा और इंद्राणी तीनों से मिल चुका हूँ और इंद्राणी के विषय में कह सकता हूँ वे अभी युवा है परन्तु ब्रह्मा तो बहुत बूढे प्रतीत होते हैं । मिलिंद हंस पडी । उसने पूछा इंद्राणी जी कहती थी कि आपने इतिहास पुराण पडे हैं इस से आप जानते होंगे कि महाबला वन को कितने वर्ष हो गए होंगे । कम से कम बीस सहस्त्र वर्ष तो हो ही गए होंगे । धम्मा की प्लावन पूर्व की सृष्टि के पुरुष हैं । दस सहस्र वर्ष हुए जब उन्होंने कायाकल्प किया था । ये राम के काल की बात है । जब लंका विजय हो गई तब उन्होंने सुख का सांस लिया और कायाकल्प कर पांच सौ वर्ष तक समाधिस्थ हो विश्वास किया । पश्चात वे उन्हें युवा हो अपना कार्य करते रहे । तो क्या अब उन्हें कायाकल्प करने का विचार रखते हैं? ये तो नहीं बता सकते हैं । इस समय में मंदिर के सम्मुख पहुंच गए थे । वहाँ एक बडा सा चाहता था जिसके चार और एक दीवार बनी हुई थी । दीवार में भीतर जाने के लिए छोटा सा द्वार था । उस द्वार के सामने मिलिंद ने अपना घोडा खडाकर आवाज की । पुजारी महोदय ये आवाज सुन एक सौ डॉल पुरुष द्वार से बाहर निकल आया । मिलिंद कोसना देख प्रणाम कर आशीर्वाद दिया और पश्चात प्रश्न भरी दृष्टि से करन की और देखने लगा मेरे करन का परिचय कराया । आप महाराज नहुष के महान मानते हैं, आज रात इस मंदिर में रहेंगे । पुजारी ने पुनः प्रणाम किया और उन सबको भी तरह का निमंत्रण दिया । करण और मिलिंद घोडों से उतर आए और आपने घोडो की लगाने अपने साथ ही सैनिकों को देकर द्वार के भीतर चले गए । पुजारी ने उनके साथ आए सैनिकों को कहा आप लोग अपने घोडों को खोल दीजिए और इन को आराम कराकर पिछवाडे की और अंशुमाला में ले जाकर बांध दीजिए तब तक आपके भोजनादि का प्रबंध हो जाता है । चाहरदिवारी के भीतर जाकर एक खुले मैदान के बीचोबीच एक बडे आगार के चारों और कई छोटे छोटे आगार बने हुए थे । उस ग्रह के सम्मुख खडे होकर पुजारी ने आवाज दी ओबामा ओबामा ग्रह के पिछवाडे की ओर से दस ग्यारह वर्ष की एक लडकी निकलकर आई और अतिथियों को देख संकोच से एक और खडी हो गई । उसे आया देख पुजारी ने कहा जाओ माता जी से कहूँ बारह आदमियों का भोजन तैयार हो जाए । लडकी के चले जाने पर पुजारी ने अतिथियों को कहा आइए महाराज और उनको बडे आगार में ले गया । पुजारी ने मिलिंद और करण कोई सुसज्जित आगार में ले जाकर बिठा दिया और कुछ अंतर पर सामने बैठ कर कहा इन देवी जी को तो मैं जानता हूँ । यह वर्ष में एक दो बार इधर से आती जाती रहती हैं । आपके दर्शन का सौभाग्य आज ही प्राप्त हुआ है । करण ने उत्सुकता से पूछा इधर से क्या बहुत लोग आते जाते हैं? नहीं शिवान! ये मार्च चालू नहीं है । शीतकाल में वह सामने दिखाई देने वाला पहाड ऍम से ढक जाता है और आने जाने का मार्ग नहीं रहता हूँ । साथ यहाँ से कुछ अंतर पर एक नदी पडती है । वर्षा ऋतू में उस को पार करना लगभग असंभव हो जाता है । इस प्रकार वर्ष भर में आठ मात्र वो मार्ग चालू नहीं रहता हूँ । आप यहाँ क्या करते हैं? यात्रियों के ठहरने के लिए मंदिर बनाया है । बहन तो मार्ग की दुर्व्यवस्था के कारण यात्री बहुत कम आते जाते हैं । इस मार्ग से प्राय लोग पैदल जाते हैं । ये ही देवी हैं । देश मार्ग पर घोडे पर सवार होकर आती जाती हैं । मैंने कई बार इनको कहा भी है । किसी भी समय उस पहाड की चोटी पर कहीं थोडा चमक उठा तो अश्व और अश्वारोही दोनों नीचे खड्डे में गिरकर चकना चूर हो जाएंगे । पर ये देवी घोडा सरपट दौडती हुई चली जाती है । पुजारी एक बात पूछने पर दस बताता था । करण उसकी बोलने की आदत को समझ उसको विदा कर देना चाहता था । उसने कहा तो महाराज भोजन का प्रबंध दैनिक शीघ्र करवाइए । हमने दिनभर से कुछ नहीं खाया । कल कुछ प्रातः साथ ले जाने के लिए भी चाहिए । पुजारी ने कहा भगवान पुजारन बहुत चतुर है और बहुत जल्दी आपको भोजन मिल जाएगा । वो बहुत स्वादिष्ट पार्ट पढाती है । जब पेट भर कर खाइएगा तो रात भलीभांति सोकर दिन भर की थकावट दूर कर सकेंगे । उस बेचारी की आपको सहायता कर दीजिए । अरे इसमें वो अपना मान मानेगी । आज तो बारह व्यक्ति हैं । एक बार पचास यात्री आ गए थे और भाजपा की माँ ने दो घडी भर में भोजन तैयार कर और उस भी दिया था । मिलिंद ने कहा मैं दूसरे आगार में आराम करूंगी, विवश हो । पुजारी ने उठते हुए कहा चलिए आप चलकर प्रबंध कराइए तो फिर मैं वहाँ चलूंगी तो इस प्रकार पुजारी को अकेला छोड कर जाना ही पडा । उसके चले जाने पर करण ने मिलन से पूछा आप विवाहित हैं क्या? मेरे मुस्कराकर कहाँ हाशिमा मेरी दो लडकियाँ हैं उसके भी विवाह हो चुके हैं और उनके संतान भी है तो तब तो आप की आयु चालीस पचास के लगभग होगी । हाँ मैं पैसठ की हूँ परन्तु आप घोडा तो ऐसे चलाती है जैसे आप बीस वर्ष की युवती हूँ लेकिन चुप रही । करण ने कुछ बाद आरंभ करने के लिए कह दिया । ये पुजारी तो पीछा ही नहीं छोडता था । बहुत भला आदमी है । यात्रियों से ही इसकी बातें करने का अवसर मिलता है । इस कारण कुछ मात्रा से अधिक बोलने की आदत हो गई है । करन हस पडा, मैंने कहा इसमें हसने की क्या बात है? कभी कभी एक वर्ष एकांत में रह कर देखिए तो आपको इस निर्जन वन में रहने वाले के स्वभाव का ज्ञान हो जाएगा । करण ने उन्हें बाद इंद्राणी के विषय में आरंभ कर दी । आपकी सकी महारानीजी से मैं मिलने गया था । मैं उन दिनों अपने घर पड गई हुई थी । लौटने पर आपके आगमन के विषय में ज्ञात हुआ था । उस समय उन्होंने विभाग अस्वीकार कर दिया था । उसको मालूम है अब तो भरत मुनि की प्रेरणा का फल हुआ है । इस पर भी कुछ शर्तें रखना चाहती हैं । जब विवाह ही होना है तो क्या शर्तें हो सकती हैं? ये विवाह एक प्रकार से दो जातियों के भीतर संधि का रूप रखता है । इस कारण संधि की भर्ती ही उसमें शर्तें होंगी । मैं तो समझ नहीं सका आप उस पर कुछ प्रकाश डालेंगे । क्या मैं एकदम उस करा दिया? उसको चुप देख करण ने फिर पूछा तो आप कुछ नहीं बताना चाहती हूँ । मैंने आपसे पहले ही निवेदन किया है कि व्यवहार मेरा होता तो मैं इस पर अपना मस्तिष्क लगती है । मैंने तो इस विषय में कुछ जानने का यह नहीं नहीं किया । इसका तो मैं ये समझता हूँ कि आप अपनी साकी की इस प्रभाव को पसंद नहीं करती है या आपने कैसे समझ लिया है । मेरे कहे शब्दों का यह तो बिलकुल नहीं निकलता हूँ । मैं सब समझता हूँ भला ये बताओ तुम्हारे विभाग का कोई प्रस्ताव करें तो तुम उसके उत्तर में क्या क्या होगी? तो वो प्रस्ताव आप करेंगे । मान लो मैं ही करता हूँ । तब तो सुमन का क्या होगा? करण अपनी पत्नी का नाम सुनकर विस्मय में मिलिंद का मुख देखता रह गया । मिलिंद उसके मन के भावों का अनुमान लगाकर खिलखिलाकर हंस पडी । फिर बोली, आप विश्व में कर रहे हैं कि मैं उनका नाम कैसे जानती हूँ । नारद जी ने उनको देखा है और पहचाना है । मैंने उनको गोदी में खिलाया है । नरेंद्र भवन के प्राय सब शिष्ट लोग उनसे परिषद हैं । तब तो मुझसे व्यवहार नहीं करोगी नहीं क्योंकि मैं आपको बोल नहीं समझती । सुमन जैसी इस तरी को छोडकर मेरी और दृष्टि करने वाला पागल कहलाएगा । करण चुप रह गया । इस समय पुजारी आ गया । उसके साथ उसकी लडकी थी । उन दोनों के पीछे पीछे पुजारिन भी आ गई । उन्होंने भोजनशाला में चलने के लिए कह दिया विमान चलिए भोजन तैयार है । करण ने कहा हमारे सैनिकों को पहले खिलाना चाहिए दिखा रहे हमारा आज आप आइए, करण फॉर्मिलिन उठे हाथ मुद्दो भोजनशाला में जा पहुंचे । भामा रसोई घर में से भोजन सामग्री लाल आकर उनके सामने परोसने लगी । भोजन स्वादिष्ट । वहाँ पर तो साधारण था । बाहर था दार भाजी और खीर थी । करण को भूक लगी और इस कारण उसने पेट भरकर खाया । खाते समय पुजारी सामने बैठा था । अपनी कथा बता रहा था । उसने बताया महाराज मेरी आयु साठ वर्ष की है । मैं जब तीस वर्ष का था तब गुरूजी से धर्म भाषा पढकर अमरावती की और चल पडा । मार्ग में हुए पर जलपान करते समय भामा की माँ के दर्शन हो गए । प्रसन्न दृष्टि में ही हम परस्पर प्रेम करने लगे । मैं इसके पिता के पास गया और सैन्य वहाँ कर केंद्र महाराज के दरबार में जहाँ पहुंचा महाराष्ट्र मुझको इस मंदिर में भेज दिया । सबसे मैं जहाँ रहता हूँ इस वर्ष विभाग को हो गए पर कोई संस्थान नहीं हुई । तब मैं केंद्र जी की सेवा में पहुंचा, शिमान जीने औषधि दी और उसके प्रभाव से ये कन्या उत्पन्न हुई । अब ये दस वर्ष की हो गई है । इच्छा थी कि इस बार एक पुत्र के लिए उनके पास जाता परंतु वर्तमान महाराष्ट्र ये विद्या जानते नहीं । इस कारण पुत्र की आकांक्षा तो मन में ही रह गई है । पुजारी दम प्रसन्न हो अपने जीवन से निसंदेह महाराज मेरी स्त्री भी बहुत बातें करने वाली है और हम दोनों परस्पर बहुत प्रेम करते हैं । इस कारण हमारी बातें समाप्त नहीं होती । बहुत भाग्यशाली हो पंडित परन्तु क्या तुम्हारी पत्नी तुम्हारी बातें सुनती सुनती सकती नहीं । नहीं मरा वो तो मेरी बातें सुनते सुनते मुक्त हो जाती है और प्रेम के सम्मोहन मंतर में संसार की सुबह हुई जाती है । करन इस पंडित के संतोष को देख विश्व में करता था । उसने पूछा पंडित आज से पहले यहाँ यात्री करवाए थे । दो दिन हुए तो यही देवी जी पश्चिम की ओर से आएगी । रात भर यहाँ रही और प्रातःकाल पूर्व की और चली गई थी । इससे पहले तीन मार्च तक एक पक्षी भी यहाँ नहीं चाहता था । यहाँ खाने पीने का प्रबंध कैसे होता है? समीत तम गांव यहाँ से दस कोर्स पर है और महाराज केंद्र की आज्ञा से उस गांव वाले हमारे और यात्रियों के भोजनादि का प्रबंध करते थे । जब से राज्य पालता है, मैं मार्च में एक बार उस गांव में जाता हूँ और लोगों को कह सुनकर अपने और यात्रियों के नेतृत्व ले आता हूँ । बीच में बहुत कठिनाई हो गई थी । परंतु पिछली बार गांव वालों ने मंदिर का भाग देने में प्रमाण नहीं किया । चुना है कि वर्तमान महाराज में और पिता मैं में मैत्री हो गई हैं । हम आ जी के आशीर्वाद से ही खेत हरे भरे दिखाई देने लगे हैं । करण और मिलिंद भोजन कर लिया था । वे हाथ धो विश्राम के लिए तैयार हो गए । पुजारिन आई और मिलिंद को उसके कोरे के आधार में ले गई । जाने से पूर्व मिलिंद करन से कहा सूर्योदय होते ही हमको यहाँ से चल देना चाहिए जिससे दोपहर में ही हम सीमा पार कर सकें । देरी बहुत रखा हुआ हूँ और पंडिताइन जी के स्वादिष्ट भोजन की हमारी चल रही है । जमीन खुलेगी तभी तो चल सकेंगे । इस पर भी करण बहुत नहीं हो जाएगा । रात्रि के मध्य में ही उसकी निंद्रा में बाधा पडी । खोलते ही उसने देखा कि आगार में प्रकाश हो रहा है और कुछ लोग एक सुदृढ डोरी से उसके हाथ पांव बांध रहे हैं । जब उसको परिस्थिति का भान हुआ तो उसने अपने आप को छुडाने का यह क्या परन्तु बांधने वाले दस व्यक्ति थे और बहुत मनीष थे । प्रण के हाथ पाँव बन गए तो उनको उठाकर वे लोग आंगन में ले गए । वहाँ उसने देखा कि पुजारी की पत्नी और उनकी लडकी भावना तथा मिलिंद के हाथ पांव बांधकर उन्हें यहाँ पहले ही बिठाया हुआ था । करन के आने पर मिलिंद नहीं प्रश्न भरी दृष्टि से उनकी और देखा करो । स्वयं इसका अर्थ नहीं समझा था । पुजारी व्यवस्था तो अभी करना जरा थी । वो अपनी हिस्ट्री और लडकी को कष्ट में देखकर हो रहा था और कह रहा था दुष्टों इनको क्यों पर कर रखा है उन्होंने तुम्हारा क्या बिगाडा है? अरे पार्टियाँ निर्दोष स्त्री और बालिका को छोड दो । वो दंडनीय अवस्था देखकर करण ने एक आपका इसे पूछा तुम कौन हूँ अपने स्वामी की सेवा? उसने उत्तर दिया क्या नाम है तुम्हारे स्वामी का बताने की आज्ञा नहीं है । कारण उत्तरों को सुनकर रूप से पागल हो रहा था परंतु हाथ वहाँ बने होने के कारण कुछ नहीं कर सकता था । कुछ साल तक चुप रहकर उसने फिर पूछा, हम सब को पकडने का क्या उद्देश्य है तुम्हारा मैं नहीं जानता हूँ और हमारे साथ क्या करने का विचार है । तुम्हारा स्वामी के पास ले जा रहे का कप्तान अभी आपके अंदर को भेज रहा हूँ । वो लोग ही एक स्थान पर नहीं जा रहे करण जिसमें में देखता रहा हूँ एक घडी भर की प्रतीक्षा के पश्चात पकडने वालों के दस साथी और आएगा और पुजारी, पुजारी और भामा को उठा कर ले गए । एक घडी पश्चात थे राये और करण तथा मिलिंद को उठाकर उन्हीं के घोडों पर लादकर और वहाँ बांधकर अंधेरे में चल दिए । जंगल में लोग इन को ले जा रहे थे । उनके पास प्रकाश करने को कुछ नहीं था फिर भी वे ठीक मार्ग पर ही जा रहे थे । ये भटक रहे प्रतीत नहीं होते थे । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे उस स्थान और मार्ग से भलीभांति परिचित थे । जंगल से वे पहाडी की चढान पर चढने लगे छोडो के पास खास पढना पढकर पत्थरों पर पढ रहे थे । दो घडी चलने के पश्चात रहे एक पहाड की गुफा में गए । वहाँ भी उनको प्रकाश की आवश्यकता ना पडी या अंधेरे में चलते गए । बडों के पास उत्पन्न शब्द की घूम से ये पता चल रहा था कि वे किसी कंदरा में जा रहे थे । इस गुफा में कुछ दूर तक चलने पर उससे बाहर निकले । आकाशवाणी पुर है । तारे दिखाई देने लगे तो कारण समझ गया कि वह गुफा पार कर किसी बस्ती में पहुंच गए । मार्ग उन्हें ढालू आरंभ हो गया था । उषाकाल का धीमा प्रकाश तारागढ के ओज को सीखा करने लग गया था । कुछ समय उपरांत घर के बाहर जा पहुंचे । वहाँ प्रकाश था और कुछ लोग इन की प्रतीक्षा में खडे थे । इनके वहां पहुंचते ही उन्होंने इनके बंधन खोल डाले और घोडों से नीचे उतारकर भूमि पर खडा कर दिया । अब इनको पूर्णतया मुक्त कर उस घर के भीतर ले जाएँ । वहाँ एक आगार में करण को ले जाकर विश्राम करने के लिए कह दिया गया और मेरे को एक अन्य आगार मिले गए । करण इस रहस्यमय घटना कार्ड समझने में लीन बिस्तर पर जो उसके लिए लगा हुआ था, लेता रहा हूँ । उसकी आंखों में एक भी जबकि रही थी । सुमन के मन में इंद्राणी के न हो उससे विवाह के लिए तैयार हो जाने पर घोर संघर्ष चल पडा था । वो अत्यंत उत्सुकता से अपने पति से मिलकर वापस आ जाने की प्रतीक्षा कर रही थी तो सोचती थी कि सच्ची के मन में ये विचार किस कारण उत्पन्न हुआ । देवताओं में सच्ची के लिए भारी मान था । वो माना जाता था कि वे आदर्श पति साथ हुई थी और उनके मन में लेशमात्र भी पाप नहीं विचार सकता हूँ । फिर ये कैसे हुआ? सुमन नहीं समझ सके । इससे भी अधिक वो भारत के व्यवहार पर विश्व में कर रही थी । नारद ने उसको इस प्रकार की प्रेरणा क्यों दी वो ये सब को समझने में अशक्त थी । शचि का एक विजेता के साथ विभाग के लिए तैयार हो जाना उसके घोर पतन का सूचक था । अपने जीवन को नीरस पा बच्चों से नाराज होने लगी । तनिक सी बात पर उनकी ताडना करने लगी और बच्चे अपनी माँ के व्यवहार पर तितर बितर माँ का मुख देखते रहते थे । जिस दिन करण अमरावती से गया उसी दिन सांयकाल प्रतिहार ने द्वार खटखटाकर उसको सूचना दी । ये पुरुष और इस तरह से मिलने आए हैं । वो बाहर देखने आई गुणारत् को एक युवती के साथ खडा देख चकित रह गई । उसकी सूचना के अनुसार नारद वहाँ से सैकडों कोस दूर सच्ची के साथ उसको पता करने की योजना में सहयोग दे रहा था । इस कारण वो समझ नहीं सकी कि वह सत्य ही भारत को देख रही है अथवा उसको प्राप्त हुई । सूचना विध्यार्थी सुमन को चुप देख नाराज नहीं मुस्कराकर पूछा सुमन बेटी क्या देख रही हो? क्या हमें भीतर आने का निमंत्रण नहीं होगी? आइए सुमन ने चेताते हुए कहा, मैं तो कुछ और ही विचार कर रही थी । आइए बहन जी सुमन के साथ मैं आई स्त्री को संबोधन क्या उनको भीतर कर द्वार बंद कर सुमन ने प्रश्न भरी दृष्टि से उस स्त्री की और देखा । नारद ने साथ आई । सी को बैठने का आग्रह कर सुमन से कहा, अमन करण कहाँ है? बात नहीं जानते कि वे कहा है आपको पत्र नहीं भेजा था महाराज को जिसमें उनको कोई विश्वस्त दूत भेजने को कहा था तो महाराज ने उसको भेज दिया है । मैं तो समझता था कि आजकल महाराज उनसे पसंद नहीं है । मेरा विचार था कि ऋषि जावाल को भेजेंगे । जी क्या रहस्य है? देवर्षि मेरी तो बुद्धि में ये सामान नहीं रहा । मैं तो कारण से मिलने आया था । इनको भी उन्हीं से मिलने के लिए लाया था । वो तो है नहीं, आज प्राप्त ही चले गए हैं । मैं अधिकोष इन की सेवा कर सकू तो आ गया दीजिए । भारत कुछ काल के लिए सोच में पढा रहा । आप सतर्क हो । उसने कहा सुमन तुम देवकन्या होना इसमें आपको संदेह है क्या? क्या मेरी माता के विषय में आपने कुछ भला बुरा सुना है? हरे हरे ये बात नहीं है । सुमन मेरा पूछने का विप्रा ये था कि तुम्हारा हित देवताओं के साथ है ना । मैं अपने पति की शक्ति पत्नी हूँ । कारण मलेश नहीं है वो उसकी माँ और उसका पिता सब आ रहे हैं । मैं तुम्हारे समूह के एक रहस्य उद्घाटन करने के विचार से ये पूछ रहा था करन से भी इसी दृष्टि से बातचीत करने आया था । नहीं, उसके मन की बात को न जानने के कारण ये अनुमान नहीं लगा सका के कारण ही शची के पास भेज दिया जाएगा । यू तो तुम पर विश्वास ही था और तुम से यह आशा लेकर आया था की तुम करण को हमारे अनुकूल ही सम्मति होगी । अब नहीं है इस कारण तुम से एक रहस्य को अपने मन में सुरक्षित रखने के विचार से उप प्रश्न किया था । मैं तुम पर विश्वास रखता ही इस तेरी का परिचय दे रहा हूँ । ये है कश्मीर के महाराजा देव नाम की सुपुत्री देवयानी । इनके पति विक्रमदेव ने गांधार ओं को हम घर से भगाकर सिंधु का तक पर रख लिया है । वे अब देवलोक से गान धारों को निकालने के लिए आई हैं और हम देवताओं सहित रखने वाले प्रत्येक से आशा करते हैं जो इनको अपना सहयोग देगा । सुमन देवरानी का नाम सुन अपने स्थान से उठकर अचंभे में उसे देखने लगी । देवयानी उसे व्यवस्था में देख मुस्करा रही थी । जब सुमन समझ गई तो हाथ जोडकर नमस्कार कर बोली यहाँ आपका इस प्रकार चले आना भयरहित नहीं है । समन्वयन बिना फैल ये भला कोई कार्य हो सकता है । देव लोग का उद्धार कोई साधारण बात नहीं है । क्या इसके लिए भारी त्याग और बलिदान की आवश्यकता अपेक्षित नहीं है । पर आपके देश के पुरुष क्या कर रहे हैं? जो उनकी राजकुमारी को इतना कष्ट उठाना पड रहा है, वे भी यहाँ हैं । मैं उन के पास प्रदर्शन और उत्साहवर्धन के लिए यहाँ चली आई हूँ । उनको सूचना मिली थी कि देवताओं और गांधार ओ में खुलकर युद्ध होने लगे हैं । इस कारण युद्ध करने वालों को मार दर्शन के लिए किसी की आवश्यकता थी तो मैं चली आई हूँ । सुमन का मन इन लोगों के भावी कार्यक्रम को जानने के लिए व्याकुल हो उठा परन्तु उत्सुकतावश वो समझ नहीं सकी की क्या और कैसे पूछे । इस कारण वो देवयानी की बातों पर आश्चर्य कर रही थी । देवयानी ने उसके अनिश्चित मन को देख कहा, सुमन बहन बैठोगे नहीं किया तो चाहती हो हम उठकर चलते नहीं । सुमन ने बैठते हुए कहा, नहीं, मेरा ये अभिप्राय बिल्कुल नहीं है । वास्तव में आपकी सब बातें मेरे लिए नहीं है और मैं इनकी अर्थ ना समझने से नहीं जानती की मैं क्या कहूं अथवा क्या करूँ । देखो सुमन देवरानी ने कहा, यदि तुम्हारे पति होते तो हम उनसे अपनी योजना में बहुत सहायता ले सकते थे परंतु घटना वर्ष वो यहाँ नहीं है । इस कारण वो सहायता उसकी हम आशा कर रहे थे, अब नहीं मिल सकती है । परंतु आपसे जैसे अन्य देवताओं की स्त्रियों से भी मैं बोल रही हूँ और उन्हें समझा रही हूँ । कहती हूँ कि सब हमारी योजना से सहानुभूति रखें और समय पडने पर जिस किसी प्रकार से भी हो सके हमारी सहायता करें । क्या सहायता कर सकती हैं हम ये अभी नहीं बता सकती । समय आने पर प्रत्येक से कुछ ना कुछ काम लिया जाएगा । अब आप लोगों के उद्धार का समय निकट आ गया है । आप सब स्त्री पुरुष दोनों को तैयार हो जाना चाहिए । जीवन से अधिक प्रिय मान की रक्षा के लिए कुछ करने का समय आ गया है । योजना के अभी अगर हम फिर बताएंगे इतना स्मरण रखना चाहिए की मुक्ति का समय निकट ही है । इतना कह देवयानी विदा होने के लिए उठ पडी । इस समय सुमन ने पूछा मैंने तो देवर्षि से कई बातें पूछनी है । आप बैठे ना आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ । नारद ने कहा मैं कल किसी समय मिलकर तुम्हारे पति के विषय में कुछ बताऊंगा । इतना तुमको समझ लेना चाहिए कि किसी प्रकार चिंता करने का कोई कारण नहीं है । परन्तु मैं तो महारानी जी के विषय में जानना चाहती थी । आपने क्या किया है? एक और तो देव लोग के उधार की बात करते हैं । दूसरी और महारानी को इस पशु की पत्नी बढाने का यत्न कर रहे हैं । ये सब क्या है? मैं तो ये विचार कर पागल हुई जाती हूँ । हम सत्य कहती हो, वास्तव में ये चिंता का विषय है परंतु तुम कल तक धैर्य नहीं रख सकती । क्या कारण के जाने का मुझको गया नहीं था? कल तक सब पता चल जाएगा । मैं विश्वास दिलाता हूं कि सब ठीक होगा । वैसा ही जैसा होना चाहिए । सुमन चुप रह गई । नाराज और देवयानी ये कह कर के कल हम पुनः मिलेंगे । विदा हो गए देवयानी तथा नाराज जब राजभवन से निकल आए तो विचार करने लगे कि करण का शचि के लिए जाना ठीक हुआ है अथवा नहीं । भारत ने कहा, मैं समझता हूँ कि करण के चले जाने से कोई हानि नहीं हुई । मिलिंद इतनी चतुर है कि जवाल के स्थान पर करण के होने पर समझ जाएगी की क्या बात करनी चाहिए । जहाँ उसके यहाँ होने से लाभ की बात वो संदिग्ध थी वो हमारी योजना में सम्मिलित बोला अथवा ना होना कहा नहीं जा सकता था । अब उसकी अनुपस्थिति में सुमन से जो कार्य लेना है, सुगमता से लिया जा सकेगा । सुमन पर मुझको अधिक भरोसा है उससे कल मिलूंगा और सब बात स्पष्ट कर लूंगा । अब सब बात इतनी निकट आ गई है । इसमें सैनिक भी भूल से सारा कार्य बिगड सकता है । देखो देवी नारद ने कहा हम अपनी ओर से पूर्ण प्रयत्न और ध्यानपूर्वक कार्य करते रहे हैं । फिर भी सफलता ना मिली तो क्या किया जा सकता है । भगवान को जैसा स्वीकार हो वैसा होना चाहिए । देवयानी ने अपने पुत्र को अपने माता पिता के पास छोड दिया था । वो अब एक वर्ष हो चुका था । स्वयं आपने निश्चित अनुसार नहीं उसको दंड देने के लिए देवलोक में चली आई । उसको देवलोक में आए दो सप्ताह के लगभग हो गए थे और उसके आने पर कश्मीरी सैनिकों का उत्साह दोगुना हो गया था । इसके अतिरिक्त और सैनिक भी कश्मीर से आप पहुंचे जो अमरावती ने भिन्न भिन्न स्थानों पर छा चुके थे । इन सब के खाने पीने का प्रबंध कश्मीर से आई । दुकानें कर रही थी खर्च कश्मीर राज्य दे रहा था राई नृत्य रात को गुप्त स्थानों पर सफाई होती थी, जिसमें देवता और कश्मीर सैनिक जो देवलोक के उद्धार की योजना में सहयोग दे रहे थे, आते थे और अपने नायकों को कार्य के लिए तैयार कर रहे थे । देवताओं को बताया जा रहा था कि इंद्राणी को नहुश विवश कर रहा है, उससे विभाग करें कि हम नहीं होने देंगे । इसमें देवताओं का अपमान है । कश्मीर सैनिकों को बताया जाता था कि कार्य अंतिम स्थिति तक जा पहुंचा है और अब इसको समाप्त होने में दो तीन सप्ताह से अधिक नहीं चलेगा । सुनती और देवयानी देव लोग किस्तों में घूम घूमकर उनको गांधार सैनिकों से संबंध विच्छेद करने के लिए आग्रह कर रही थी । इन सब प्रचार का परिणाम ये हो रहा था की कहीं गांधार सैनिकों का अपनी देव पत्नियों से झगडा होने लगा था और कहीं कहीं तो मार कटाई की नौबत आ जाती थी । एक दो गांधार ओं को तो उनकी पत्नियों ने मार ही डाला था । इन सब की सूचना नहीं उसके पास जाती थी । परंतु वह सच्ची की प्रतीक्षा में था और ऐसे समय जब वो आने वाली थी, नगर में किसी प्रकार का झगडा खडा होने देना उचित नहीं मानता था । इस कारण दिन प्रतिदिन देवताओं का साहस बढता ही जाता था और गांधार उत्साह रहित होते जाते थे । अगले दिन एक देवता सुमन के पास नारद का पत्र लाया । उसमें लिखा था, बेटी सुमन पत्रवाहक के साथ चली जाओ तो तुम को अपने मन के संदेहों का उत्तर मिल जाएगा । मैंने इस समय हमारे घर में आना उचित नहीं समझा । अपने बच्चों को ले तियाना । कल रात हो रहे थे । कोई उनसे मिलना चाहता है । सोहन अपने पति के विषय में पूर्ण सूचना चाहती थी । इस कारण पत्र पाते ही बच्चों को लेकर पत्रवाहक के साथ ही वह चल पडी । वो पत्रवाहक उसको अपने साथ नगर के देवता के मकान पर ले गया । वहाँ नारद धीरे यानी और सुमति और अन्य कई महिलाएं और पुरुष बैठे विचार कर रहे थे । चमन को आया देख नारद उठकर उसको एक पृथक आगार में ले गया । वहां सुमन को बिठाकर उसने कहा रात तुम अपने पति के विषय में समाचार पत्र प्राप्त करने की इच्छुक थी । मैंने आज पूर्ण समाचार प्राप्त कर लिया है । करण आज सांयकाल तक इंद्राणी के निवास स्थान पर पहुंच जाएगा । वहाँ पर जो वार्तालाप होगा उसका समाचार यहाँ नहीं उसके पास आएगा । महाराज नौं इंद्राणी को मिलने के लिए स्वयं जाएंगे और पश्चात दोनों का विवाह होगा । ये जावाल रिषी ने मुझको बताया है । पर देवर्षि पत्र तो आपने लिखा था कि महारानी नहीं उससे कुछ शर्ते करना चाहती हैं था । ये पत्र मैंने ही लिखा था । परंतु जैसा महर्षि जवाल ने कहा था वैसा ही लिख दिया था । फिर भी हमारा विचार है कि हम इस विभाग को रोकने में सफल होंगे । पर यदि इंद्राणी को ही विवाह की इच्छा हुई तो क्या होगा? सामान तुम उसको मुख्य समझती होगा । हमसे तो वह कई गुना अधिक समझदार और अनुभवी है । मुझे उस पर विश्वास है तो मान के पिता जब महारानी के पास पहुंचेंगे, यहां आपका पत्र तथा महाराज नहुष का पत्र दिखाएंगे तो क्या होगा? वे मेरे पत्र पर विश्वास नहीं करेंगी क्योंकि मेरा असली पत्र भेजा नहीं गया । नहीं उसका पत्र पढकर उसके लिखने वालों को मूर्ख मानेगी । फिर भी महर्षि जावाल का कहना है महारानी मान जाएगी । तो तो बात स्पष्ट है कि पूर्व इससे की कोई घटना घटे । हम नहीं उसके राज्य का अंत कर देना चाहते हैं । उसी में तुम्हारी सहायता चाहते हैं । क्या सहायता चाहते हैं आप से समय आने पर बताऊंगा । तुम अपने मन को दृढ कर कार्य करने के लिए तैयार हूँ । इन सब सूचनाओं से तो मन को शांति नहीं मिलेगी । विचार कर रही थी कि जावाल ऋषि के कहने पर नाराज नहीं पत्र भेजा है । भारत को विश्वास है कि सच्ची विभाग के लिए नहीं मानेगी परंतु जावाल को इससे विपरीत बात का विश्वास है । फिर वहाँ होश के राज्य को उलट देने के लिए किसी प्रकार का षड्यंत्र चल रहा है । इसमें उसके पति की क्या व्यवस्था होगी? इंद्राणी उसके हापुर है, उसी विचार के जाने पर क्या विचार करेगी? और इस बात की क्या प्रतिक्रिया उसके मन पर होगी तो कुछ समझ नहीं सकती थी । इस कारण कुछ काल तक प्रचार कर उसने कहा, देवर्षि आप मेरे पितातुल्य हैं, आपकी बात मैं बता नहीं सकती । आप जो भी मुझ को करने के लिए कहेंगे, मैं करूंगी । इस पर भी मैं आपको अपने मन का संदेह बता देना चाहती हूँ । मुझको उनके इस कार्य के लिए जाने में कल्याण प्रतीत नहीं होता । ये सब जावाल ऋषि और आप पर अच्छा हुआ एक मिथ्या जाल प्रतीत होता है और मुझको भर है कि वे ही इस जाल में फंस जायेंगे । नारद सुमन को कहा सवाल ऋषि क्या समझते हैं मैं नहीं बता सकता । मैं अपने विषय में बता देना चाहता हूँ की मैंने जवाल ऋषि को अमरावती से निकाल देने का षड्यंत्र किया था । उसको किसी प्रकार से पानी पहुंचाने का नहीं । इस कारण मुझको आपने इस कहने में किंचित मात्र भी संदेह नहीं करण देव का बाल भी बांका नहीं होगा तो इतनी बुद्धिमान होते हुए भी इस भ्रम में क्यों पडी हो? प्रथम मेरी योजना में कोई क्षेत्र नहीं है । जवान रशीक स्थान पर करण देव के चले जाने से कोई अंतर नहीं पडा और उस योजना में जावाल ऋषि के अनिष्ट का कोई विचार नहीं था । दूसरी बात ये कि महारानी सचिव करण के लिए आदर और प्रशंसा का भाव रखती है । इस कारण करण के लिए किसी भी अनिष्ट की कोई भी संभावना नहीं । अब तुम जाओ जो कुछ भी मैंने कहा है देवताओं का हित विचार कर कहा है किसी से कहना नहीं । कुछ ही दिनों में तो हमारे पास कोई संदेश पहुंचेगा उसका पालन करना । भारत द्वारा सांत्वना दिए जाने पर वो आगार के बाहर आई तो माणिक्य और पर आपको देवयानी की गोली ने खेलते थे । हस पडी माणिक्य ने माँ को हसते देख रहा । वो कहती है कि मेरी मौसी है हैं हम क्या कहते हो बहुत अच्छी हैं सुमन देवयानी की और देख खस पडी इस समय पढाने अपने गले में एक मोतियों की माला दिखाकर कहा मौसी ने मुझको दी है सुबह नहीं कृतज्ञता भरी दृष्टि से देवयानी की और देखा और लडकी को गोद में लेकर मुख्य चूमते हुए कहा तुमने मौसी का धन्यवाद किया है या नहीं था और वो कहती है इस की आवश्यकता नहीं है । सुंदर लडकियों को मालाएं मिलती ही है । करण के जाने की एक सप्ताह पश्चात एक कश्मीर पहले चरण का एक पत्र लेकर आया और नहीं उसके सामने उपस्तिथ होकर उसको पत्र दे दिया । पत्र में लिखा था विमान महाराजाधिराज के चरणों में करण का प्रणाम पहुंचे । महारानीजी से बातचीत हुई है । वे अमरावती में आकर रहने के लिए तैयार हैं । मेरे आने से पूर्व तो वह समझती थी कि उन्हें अमरावती में रहकर पारत यंत्रों का संचालन करना होगा । जहाँ तक विभाग का संबंध है, मैं चाहती है कि उनके लिए पृथक मकान हो । आप उनसे मिल सकते हैं और जब उनको विश्वास हो जाएगा कि आपका प्रेम उनसे अत्यंत ही अधिक है तो वे विभाग के लिए तैयार हो जाएंगी । मैंने उनको कहा कि विवाह के बिना उनका अमरावती में रहना राजनीतिक विचार से उचित नहीं है । विवाह पहले होगा और उसके बाद उनको अमरावती में रहने की सुविधा मिलेगी । बातचीत के उपरांत हम निम्न शर्तों पर एकमत हुए हैं । ये एक मत भी अंतिम नहीं है । आप जब तक स्वीकार नहीं करते तब तक कुछ नहीं माना जाएगा । मैं इसी स्थान पर हूँ । कारण ये कि महारानीजी के विचार परिवर्तित हो जाने का भाई है । आपको शर्त स्वीकार हो तो आप तुरंत यहाँ आ जाएँ । एक दूध पहले भेज दें जिसमें आपके सीमा पर पहुंचने की तिथि और समय का पता चल सके । हम आपको कश्मीर राज्य की सीमा पर मिलेंगे और वहाँ से आप महारानी जी के साथ अमरावती आ सकेंगे । शर्तें इस प्रकार है ये अमरावती की मान मर्यादा के विचार से वह चाहती हैं । यहाँ उनको लेने के लिए स्वयं माएँ आप वर्क के रूप में आए न कि एक विजेता के रूप में । अथार्त सेना लेकर नहीं प्रत्युत अकेले आना चाहिए । दो आती कैसे रथ पर सवार होकर आए जैसा आज तक किसी भी देवता ने प्रयोग में न लिया हो । यहाँ एक रख तैयार करवा रही हैं और उसमें कश्मीर सीमा तक आएंगी । वहाँ से भेंट होगी और पश्चात उसी रात में बैठकर आपके साथ अमरावती जाएंगे । चार विवाह कराने के लिए ब्रह्मा जी आएंगे और उनके आशीर्वाद से ही भविष्य में राज्यकार्य होगा । हाँ, वो आपके प्रथक भवन में रहेंगी और वे आपके मास में एक बार भेज क्या करेंगी? कृप्या तुरंत सूचित कीजिए कि किस दिन आप सीमा पर पहुंच रहे हैं जिससे उसी दिन उचित समय पर हम भी वहां पहुंच सके । आपका कश्मीर राज्य में आना उचित नहीं । यहाँ ये प्रबंध गुप्त रखा जा रहा है । नहीं, इस पत्र के मिलने से अत्यंत प्रसन्न था । उसने ऋषि और मंत्रीगण की तुरंत एक बैठक बुलाई और उसमें पत्र पर विचार प्रारंभ हुआ । सभा में सभी इस पत्र पर अत्यंत प्रसन्न प्रतीत होते थे । सब का विचार था सच्ची के देवलोक में आ जाने से और नहीं उसकी पत्नी बनना स्वीकार करने से देवताओं और गांधार ओं में संघर्ष समाप्त हो जाएगा, सच्ची से नहीं । उसको पारद रहस्य मिल जाएगा और देवता हूँ और गांधार ओं से मिश्रित परिवार देवरूप में शासक बन जाएगा । नहीं उसको केवल एक शर्त पर आपत्ति थी । वो ये कि वह मास में केवल एक बार महारानी से भेंट कर सकेगा । परंतु ऋषियों ने उसको समझाया । उन्होंने बताया कि इस प्रकार की बात है व्यवहार से पूर्व नहीं की जाती है । ये तो पति पत्नी परस्पर एकांत मैं निश्चित करते हैं । सबसे कठिन प्रश्न वाहन का था । शर्तों में एक ये भी थी कि न हो जैसे वाहन पर सवार होकर आए जैसा पहले कभी किसी के द्वारा प्रयोग में न लाया गया हो । देवता लोगों ने प्रकार के वाहनों की सवारी करते थे हूँ और चिडियों से लेकर सिंह हो तथा हाथियों तक को वेश अर्थ प्रयोग में ला चुके थे । इस पर बहुत वाद विवाद हुआ और अंत में वाहन निर्माताओं को बनाया गया और उनको आज्ञा दी गई कि वे कोई ऐसे वाहन की योजना बनाएं तो महारानी जी की संतुष्टि कर सके । नहीं उसने करण को उसके पत्र का उत्तर दिया । इसमें उसने लिखा, मेरे बुद्धिमान महामंत्री तुम्हारे प्रयास की सफलता के लिए बधाई देता हूँ । महारानीजी की सब शर्तें स्वीकृत है और मैं एक दो दिनों में यहाँ से चल दूंगा । वहाँ तैयार किया जा रहा है कि यत्न किया जा रहा है । ये पूर्व रचित विमानों से सर्वथा भिन्न तथा सर्वथा विलक्षण हो । मेरे सीमा पर पहुंचने से दो दिन पूर्व आपको समय तथा दिन की सूचना मिल जाएगी । जो दूध पत्र लेकर आया था वही उत्तर लेकर चला गया । उसके जाने के उपरांत वाहन की तैयारियाँ होने लगी । वाहन विशेषज्ञों ने इस प्रश्न पर विचार विनिमय प्रारंभ कर दिया । रच का स्वरूप और उसको खींच कर ले जाने के लिए जानवरों पर विचार होने लगा । विशेषज्ञों में देवता, कलाकार और कुछ कांधार थे । ऋषियों में से इस गोष्ठी में जवाल भी थे, हूँ । बहुत स्वरूप प्रस्तावित हुए परंतु एक एक तरफ सारे स्वीकत हो गए । कुछ को तो इस कारण कि उन पर सवारी करना सुखप्रद नहीं था । कुछ इस कारण की वैसा वाहन किसी देवी देवता का पहले भी था । अंत में एक कलाकार देवता नहीं, एक अनुपम वाहन का स्वरूप चित्रित कर विचारार्थ रखा । ये सिंगर के मुकबाला अजगर के पेट वाला और छिपकली के समान दम वाला जानता था । इसके दस पाँच थे । ये जंतु लकडी, कपडा और धातु का बनता था और इस पर सागर के जंतुओं का रंग होता था । इशरत को ले जाने के लिए ये प्रस्ताव था इसको मनुष्य उठाएंगे । परंतु जावाल दिल्ली का कह रहा था कि मनुष्य तो राजाओं की पालकियाँ उठाते ही है । इस पर ये प्रस्ताव किया गया क्योंकि पालकियां उठाने वाले प्राय अनपढ और निर्धन लोग होते हैं । इस कारण इस रस को ले जाने वाले विद्वान वेदवेत्ता ऋषि होने चाहिए । इस प्रस्ताव पर गांधार अतिप्रसन्न हुए जवाल मुख देखता रह गया और देवता चुप रहे । अधिक विवादों प्रांत जब अन्य कोई उपाय नहीं सूझा तो इस बात का अंतर निर्णय हो गया । महाराज के रस को खींचने के लिए बीस रिषी ढूंढे जाने लगे तो दस दस की बारी से रस ले जा सकेंगे । इस खोज में यह में किया गया कि वे योग्य से योग्य विद्वान हो, जो वेद वेदांगों के ज्ञाता हूँ तो वेज गान करते हुए वाहन को खींचेगी । वहाँ का निर्माण होने लगा तो नगर में समाचार फैल गया । शशि के विषय में भी जनता के विचार प्रकट होने लगे । लोग परस्पर कानाफूसी करने लगे और भारत के साथ ही लोगों को कहने लगे इस महापात की कार्य संपन्न होने के पूर्व ही इस राज्य का ध्वंस कर देना चाहिए । जो लोग उतावले हो गए वे देवयानी से मांग करने लगे कि अब तो पानी नाक तक आ चुका है । इससे अधिक प्रतीक्षा नहीं की जा सकती । जिस राज्य में विद्वान वेद वक्ता ऋषियों से पोलियो के समान व्यवहार किया जाए । जहाँ सती साध्वी स्त्रियाँ स्वेच्छा से पत्ता बनने लगे, वहाँ रहना धर्म है । देवरानी को बहुत कठिनाई प्रतीत हो रही थी । किस प्रकार देवताओं को शांत रखा जाए । उनका कहना था की मैं ये सब कुछ देख रही हूँ । मैं भी अनुभव करती हूँ कि अब और वाहन नहीं किया जा सकता हूँ । ऐसी दास्ता को दूर करते करते मृत्यु भी हो जाए तो हमको उसका स्वागत करना चाहिए । आप लोग विश्वास रखते हैं कि हम उचित समय पर उचित कार्रवाई अवश्य करेंगे । आप अपने भाग का कार्य करने के लिए तत्पर रहेंगे । वास्तव में दावत और देवयानी न होश के जाने के कार्यक्रम की घोषणा की प्रतीक्षा कर रहे थे । रस बनने में तीन दिन निकल गए । सिंघम मुखी अजगर बनाया गया । उसकी पीठ पर एक एक छत्र के नीचे नहीं । उसके बैठने का आसन था कि कृत्रिम जंतु ऐसा बना के देखने वाले इसको असली होने का विश्वास करने लगे थे । इस अजगर को खींचने के लिए ऋषि युवा सुदृढ और मधुर स्वर में वेदपाठ कर सकते थे, चुन लिए गए । इसमें कश्यप भगोर पुरस्कार अगस्तस हत्यादि ऋषि भी समृद्ध है । इनमें से कश्यप देवताओं का गुरु था और उसके लिए देवताओं में भारी सम्मान था । जब ज्ञान तैयार हो गया तो शहर के लोग इसको देखने गए । ये राजभवन के संभव प्रदर्शन आ रखा गया था । देखने वाले कलाकारों की प्रशंसा किए बिना नहीं रहते थे । फिर भी देवता को देखकर रखता शुरु बढाते थे वह दो वर्ष के नाराज और उसके साथियों के प्रचार से आपने मान अपमान का अनुभव करने लगे थे । जब इस यान को खर्च कर चलने वाले ऋषियों के नाम घोषित किए गए तो देवताओं के मन विश्वास है भर गए । उसी रात कश्मीरी सैनिकों को बुलाकर के आदेश दे दिया गया । उनको अंतिम प्रयास के लिए तैयार रहना चाहिए चाहती । साधारण देवताओं से कहा गया कि वे सहस्त्रों की संख्या ने महाराज न हो । उस की सवारी में समृद्ध हूँ और जब उनको संकेत मिल जाए तो नहुष और उनके साथियों का काम तमाम कर दें । सैनिकों को कहा गया कि वे सब नगर की मंडी में सवारी के स्वागत के लिए एकत्रित हो जाए । वहाँ उनके नेता उपस्थित होंगे और वे आज्ञा करेंगे । देवताओं में से युवकों को कहा गया कि वे मंडी में एकत्रित रहें और सवारी के समय नेतागणों के संकेत की प्रतीक्षा करें । जिन दृश्यों को यान में खींच कर ले जाता था । एक दिन पहले अपने अपने भवन में बुला लिए गए और उनको यान चलाने का और चलाते चलाते वेद गान करने का अभ्यास कराया गया । इस प्रकार अभ्यास कराकर उनका कार्य उनको समझा दिया गया और उनको उस रात भवन में रखा गया था जिसमें उनमें से कोई भागना जाए । रात के समय सब के सब विशाल आगार में रखे गए । जब रात के भोजन के पश्चात आगार में विश्राम के लिए गए । वे अपने दुर्भाग्य और इस अपमानजनक कार्य पर विचार करने लगे । उनमें से प्राय सभी आपने भगवान को और अपने दुर्भाग्य को सोच रहे थे । कुछ तो उन दृश्यों को गाली देते थे जिन्होंने नहीं उसकी सहायता करने का वचन दिया था और जिन्होंने धम्मा से जीवित पारित दिलवाया था । इनमें प्रमुख अगस्त से रही था । उसने अपने ऊपर बनाए गए आरोपों का संपूर्ण उत्तर दिया । उसने कहा विद्याधर! हमने देवलोक में बढ रहे अनाचार और दुराचार को रोकने का ये अपना क्या है? ये यतना बिना नहीं उसकी सहायता के नहीं हो सकता था । इस कारण जनता ने चरित्र की स्थापना के लिए हमने नहीं उसकी सहायता की और उसके राज्य में सुख और शांति के लिए धम्मा से जीवित भारत दिलवाया । हमको विश्वास है कि हमारा कार्य शुद्ध जनहित की भावना से प्रेरित था । पश्चिम मान ऍम ने कहा आपने सच्ची से नहीं उसके विभाग में सहायता क्योंकि है तो इतना हानि क्या हो गई है हमारी योजना में ये रथ की सम्मति नहीं थी, सच्ची से नहीं । उसका व्यवहार आप है और आप में सहायता देने से ही ये अपमानजनक कार्य भगवान ने आपको करने को दिया है । जब सब इस प्रकार का रोष एक दूसरे पर प्रकट कर रहे थे । एक वेद पार्टी भ्रमण जिसका नाम जनक था और जो सब की बातें धैर्य स्टेशन रहा था । कहने लगा मैंने कल प्रातःकाल एक सपना देखा था । मैंने उस सपनों में अनुभव किया । मैंने गौर पास किए हैं और उन के कारण मुझे भारी प्रश्न दिया जा रहा है । मेरे पीट नंगी कर मुझे कोडे लगाए जा रहे हैं । मैं चीखें मार रहा हूँ और माँ मेरी माँ कहकर पुकार रहा हूँ । मैं कह रहा हूँ मुझ को बचा हूँ मेरा करुणकर नाम सुन मेरी माँ इसका देहांत हुई । चर कान हो चुका है, प्रकट हुई और उसने मुझे ऐसे पाप जो मैंने किए थे, स्वीडन कराए । मैंने उससे इस बार बचाने की प्रार्थना की और वचन दिया कि उन्हें ऐसे पाप हरगिज नहीं करूंगा । इस पर उसने मेरे लिए परमात्मा से प्रार्थना करने का वजन दिया । कुछ काल पश्चात उसने मेरे पास आकर कहा कि मैं नगर की मंडी में जाऊँ और वहाँ भगवान साक्षात आकर मेरी रक्षा करेंगे । इस आश्वासन पर मेरी नींद खुल गई और मैं समझता हूँ कि हमारी इस अपमानजनक दासता से मुक्ति नगर की मंडी में होगी । भगवान साक्षात वहाँ आकर हमें मुक्त कराएंगे । ये सुन सब भ्रमण देवता बसने लगे । एक ने तो यहां तक कह दिया मंडी में इससे तो सवारी जाएगी ही, नहीं तो भगवान मंडी को ही उठाकर हमारे मार्ग में ले आएंगे, जिससे जनक जी महाराज का उद्धार हो सके । एक नहीं यंग में कह दिया । एक अन्य बोला जनक जी को मैं अन्य देवताओं से अधिक पवित्र आत्मा नहीं मानता । वो सब तो अभी तक उधार नहीं हुआ । फिर जनक जी के लिए ही भगवान ये सब कष्ट टू करेंगे भाई । इनकी माँ की ये सिफारिश है । शायद वो देवताओं में सबसे अधिक धर्मात्मा रही होगी । इस प्रकार सर्वथा निराशापूर्ण बातचीत चल रही थी । जब वे सब अपने अपने स्थानों पर जाकर सोने लगे तो जनक भी चुप चाप लेट गया । उसे नींद नहीं आ रही थी । वो बहुत रात बीतने पर भी सो नहीं होता और उठकर आगार के बाहर चला गया । आधार के बाहर पहली खडा था । पहली ने जनक से पूछा कहाँ जा रहे हैं ऋषि महाराज? भीतर मान सैनिक चलायमान हो रहा था । इस को शांत करने के लिए बाहर शीतल भवन में विचरने के लिए यहाँ आ गया है । प्रहरी को दया आ गई । उसने कहा कि शिवाराज उस सामने पडी । चौकी पर बैठकर ही पवन का सेवन कीजिए । दूर नहीं चाहिए । धन्यवाद । जनक ने कहा और वह बाहर आनंद में चौकी पर बैठ गया । कुछ ही देर पश्चात एक अन्य ऋषि जिनका नाम कश्यप था, जनक के समीप आ कर बैठ गए । अगर आपने पूछा तो आपको भी नहीं नहीं आई भरा है इस अपमानजनक अवस्था में भी नहीं जा सकती है । मैंने इस दुष्ट को प्रजा के प्रकोप से बचाने का बहुत यह क्या है? परन्तु ये अपनी इच्छा की पूर्ति में दूसरों की भावनाओं का विचार ही नहीं करता है । भगवन मुझको आपने स्वप्निल पर विश्वास है । मेरे स्वप्न कभी निष्फल नहीं जाते हैं । परंतु एक बात मैं मानता हूँ कि उचित समय पर यदि हम कुछ यत्न न करें, भगवान सहायता नहीं करेगा । मैंने इससे इमरती का परीक्षण किया है कि भगवान उसकी सहायता करता है । स्वयं अपनी सहायता आप करते हैं । पश्चिम को पिछले छह वर्षों के प्रश्नों पर ध्यान करे । भगवान पर भरोसा नहीं रहा था । फिर भी डूबते को तिनके के सहारे वाली बात थी । उसने उत्सुकता से पूछा मान लिया भगवान हमारी सहायता करेगा परन्तु कहीं मिला हमसे किस बात की आशा करता है? जनक में उत्साहित तो बताया हम नहीं उसके अत्याचारों से पीडित हैं और इन अत्याचारों से बचने के लिए ही परमात्मा से सहायता चाहते हैं । इस कारण जहाँ उसमें सहायता करने का आश्वासन दिया वहाँ उसी स्थान पर हम को इस आप ताई का अत्याचार साइन करने से इंकार कर देना चाहिए । बडे बाजार में को डोसे पीटे जाएंगे । अनेक अन्य लोग हमारी भर्ती मिथ्या आरोपों पर पीटे जाते हैं । यहाँ सहस्त्रों अन्य पीते हुए हैं । वहाँ भी सही फिर भी मुझको विश्वास है कि परमात्मा का नाम लेकर यदि हम सब इस अत्याचारी को उठाकर ले जाने से इंकार कर नहीं वह अवश्य हमारी सुनेगा । भाई, मैं तुम्हारे साथ हूँ, ऐसा तुम कहोगे, वैसा ही करूंगा । तब ठीक है मैं और तुम सबसे आगे लगेंगे जिससे कि हमें कोडे खाते देखकर लोग हमारा अनुसरण करें । विदा होने से पूर्व के रात नहीं उसके भवन में भारी उत्सव मनाया गया । इस उत्सव में भाग लेने के लिए सैकडों नागरिक और गांधार सैनिक निमंत्रित किए गए । रासरंग नृत्य और मद्यपान पर भारी जोर था । जब मध्य का प्रभाव उपस् थित लोगों पर होने लगा तो हंसी के फव्वारे छूटने लगे । भांति भांति के व्यंग्य महाराज और सच्ची पर कैसे जाने लगे? प्रत्येक स्थान पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपना और जाति के मान अपमान का ध्यान छोडकर राजा महाराजा को ही खुश रावत करते हैं । ऐसे ही देवता इस उत्सव में बुलाए गए थे । इस पर भी जब अश्लीलता सीमा उल्लंघन करने लगी तो कुछ लोग मन में चंचलता अनुभव करने लगे । उत्सव में ही कानाफूसी होने लग गई और देवता उत्सव को छोड जाने लगे । गांधार ओं ने देवताओं को जाते देख लिया और उन्होंने इसे अपने महाराज का अपमान माना । इस कारण में मध्य के नशे में अपने भावों को दबा नहीं सके एक नर्तकी का नाथ समाप्त हुआ । ये गांधार ने नहीं उसके सम्मुख निवेदन कर दिया । राज्य की देवता हमारे साले और ससुर बन गए हैं । इस कारण आपने सब्जियों के हंसी छटते से नाराज नहीं होना चाहिए था । नहीं, उसने प्रसन्नता से उन्मुक्त हो कह दिया कौन है जो नाराज हो रहा है? एक देवता उस समय द्वार से बाहर निकल रहा था । उक्त निवेदन करने वाले ने उसकी और उंगली कर कह दिया । वो देखिए महाराज पकडो साले को मत जाने दो । इस आज्ञा के मिलते ही गांधार उसकी और लडके और उन्होंने उसे पकडकर महाराज के सम्मान खडा कर दिया । महाराज ने माथे पर त्यौरियाँ चढाकर पूछा तो मैं क्या नाम है तुम्हारा श्रीमद् महाराज कहाँ चले जा रहे थे? घर जो यहाँ का राज रंग नीरस हो रहा था । अरे पीटर साले को हाँ उसने क्रोधपूर्वक रहा । किसी ने अपना भाला शिव के पेट में बहुत दिया । जब वह तडप तडप कर मर गया तो उसका शव उठाकर भवन के फाटक के बाहर फेंकवा दिया । देवताओं में से कुछ नहीं । जो नहीं उसका यान देखने आए हुए थे । उस को देख लिया । उन्होंने नगर में समाचार पहुंचाया तो पता चल गया कि श्रीमत उस रात उत्सव में समय हुआ था और वही भाले से घायल करके मार डाला गया है । इस से पूरन नगर में प्रतिकार की भावना जाग उठी । बहुत कठिनाई से नाराज और देवयानी ने लोगों के क्रोध को अगले दिन तक शांत क्या नाराज घूम घूम का देवताओं को कह रहा था कल मंडी में एकत्रित हो जाओ । सब के साथ हुए अत्याचारों का बदला लिया जाएगा । अगले दिन बहुत सवेरे नाउस उठते हैं । स्नानादि से निवृत्त हो अल्पाहार कर तैयार हो गया । इस समय महाराज की सवारी के अध्यक्ष ने वेदपाठी ऋषियों को खिला पिलाकर यान के समीप एकत्रित कर लिया और कहने लगा आप लोगों को ये पुण्य कार्य करने को दिया जा रहा है तो आज से पूर्व किसी भी सभ्य देश के रहने वालों ने नहीं किया । आपने महाराज को अपने कंधों पर बिठाकर उनसे विवाह की सवारी ले जाने का सौभाग्य आपको मिल रहा है । एक समय में इस यान को दस लोग उठाएंगे और वे पांच पोस्ट एसियान को लेकर जाएंगे । पांच कोर्स के पश्चात दूसरे दस लोग उठाएंगे । इस प्रकार में पांच कोर्स तक लेकर चलेंगे । वे दस जो यान को उठाकर चल नहीं रहे होंगे । वे आगे जाकर नियत स्थान पर अपनी बारी की प्रतीक्षा करेंगे । अतः तुम में से कौन? पहले दस इस महान कार्य के लिए आगे आते हैं । अध्यक्ष का विचार था कि नगर के भीतर यान को उठाने के लिए कोई तैयार नहीं होगा परंतु उनके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा जब जनक और कश्यप ने सबसे प्रथम आगे बढकर कहा हम इस कार्य को पहले करेंगे । इन दोनों के इस प्रकार अपने आपको सेवा के लिए उपस् थित करते थे । पांच अन्य ऋषि और आगे बढ गए । अभी तीन और चाहिए थे और शेष ऋषियों में से तीन निकल नहीं रहे थे । विवश तीन दृश्यों को जबरदस्ती निकाला गया । शेष दस को सैनिक संरक्षकों की देख रेख में पांच को उसके अंतर पर पहले ही पहुंचने के लिए रवाना कर दिया गया । जब महाराज बहुत सवारी पर चढने के लिए तैयार होकर पहुंचे तो उस समय सहस्त्रों गांधार भवन के सम्मुख महाराज को विदा करने के लिए एकत्रित हो गए । गांधा राज और प्रसन्न थे । सबके मन में यही भावना थी पिशाची के महारानी बनकर । वहाँ जाने से गांधार ओं का राज्य देवलोक में स्थिर हो जाएगा । पश्चात देवताओं में पतन आरंभ हो जाएगा और वे अन्य गांधार ओं को लाकर यहां बचा सकेंगे । सबसे बडी बात ये थी कि युद्ध करने के लिए उनको आग्रह, अस्त्र इत्यादि मिल जाएंगे और तब वे विश्वविजय कर सकेंगे । महाराज बहुत चीजें हो महाराज नहीं, उसकी जय हो । जय घोषणाओं के साथ नहुश यान पर सवार हो गया । जनक तथा कश्यप यान उठाने वालों में से लोग सबसे आगे थे । सवारी का अध्यक्ष यानी बाहर जिसके हाथ में कोडा था तो सिंघम की अजगर की गर्दन पर बैठ गया । पीछे पीठ पर नहीं उष्टासन था जिसपर स्वर्ण का मणि माणिक कैसे जड छत्र छाया कर रहा था । हमारी भवन से चली तो अध्यक्ष ने आज्ञा दी । वेद गान हो और ऋषियों ने वेद गान आरंभ कर दिया । ओम विश्वानि देव इत्यादि हमारी भवन में से निकली तो नगर में से घूम कर जाने लगी । मार्ग के दोनों और सहस्त्रों लोग एकत्र थे । वही सवारी के व्यवहार को देखने आए थे । पुरुष मार्ग के दोनों किनारों ऊपर पंक्तियों में खडे थे । घरों की छतों पर और छज्जों पर स्त्रियाँ बालक और वृद्ध खडे थे । कुछ लोग सवारी पर पुष्पवर्षा भी कर रहे थे । ऐसा प्रतीत होता था कि पूरन नगर ही उस मार्ग पर आकर एकत्रित हुआ है और महाराज नहीं उसको सम्मानित कर रहा है । हमारी चल रही थी । वे ध्यान हो रहा था । ओम प्रयाप्त थी, नकदी देवत्य हूँ । विश्वास इतनी भीड थी कि देवताओं में वृद्धि भी कहते थे कि ऐसा समारोह और उन्होंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा । हमारी धीरे धीरे चल रही थी और प्रबंधकों का विचार था ये महाराज बहुत का प्रभाव जनता के मन में अंकित कर दिया जाए । प्रत्येक बात इसी विचार से की जा रही थी । जब यान ने नगर में प्रवेश किया तो भीड अधिक होती जाती थी । एक बात में अंतर बराबर पड रहा था । महाराज बहुत उसकी जय घोषणा करने वालों की संख्या भीड में कम होती जाती थी । जयघोष करने वालों ने जब देखा उनकी आवाज के साथ आवाज मिलने वाले काम होते जाते हैं तो उन्होंने भी जयघोष कम कर दी । साफ चलने वाली भीड में भी गान धारों की संख्या कम होती जाती थी । देवता धक्के देकर उनको महाराज के यान से दूर करते जाते थे । देवता जयघोष में सम्मिलित नहीं हो रहे थे । इस चुप्पी के कारण वेदपाठियों का वेट गण और भी स्पष्ट और भयानक प्रतीत होने लगा था । जनक और कश्यप सबसे आगे थे । चुप्पी में अष्टकुल रूपी वेदज्ञान का शब्द सुन विश्वमय करने लगे थे । प्रश्न आपने जनक से धीरे से पूछ लिया मैं क्या हो रहा है? यहाँ शमशान किसी चुप्पी क्यों हैं? ऐसा प्रतीत हो रहा है कि परमात्मा इनके कानों में कह रहा है कि वे ठीक नहीं कर रहे । ईश्वर को कुछ और कथित करना चाहिए । हमको कहाँ तक के अपमान का विरोध करना चाहिए । यहाँ नहीं ये वो स्थान नहीं जहाँ पर मुझको सौंपना आया था । रोज का स्थान मंडी के बीच का होना चाहिए । इस समय अजगर की गर्दन पर बैठे यान वाहक में झट से थोडा लगाते हुए कहा वेद गान करो, बातें मत करो । इस पर जनक और कश्यप ने पुनः सफेद ज्ञान प्रारंभ कर दिया । कश्यप ऋषि देख रहा था कि दर्शकों में देवताओं की संख्या अधिक है । कश्मीरी सैनिक यान को चारों ओर से घेरे हुए हैं । इससे उनका मन निर्भयता अनुभव करने लग गया । उसने पुनर्स् साहस पकड अचानक से कहा जरा हाँ मुझको इन दर्शकों करे भगवान बैठा प्रतीत हो रहा है । सत्य हाँ! परन्तु देखिए, मेरा विचार है कि भगवान उनकी सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता आप करते हैं । हमको अव्यवस्था से स्वयं असंतोष प्रकट करना चाहिए । इस समय वाहक ने उन्हें जनक को थोडे लगाते हुए कहा बात मत करो, वेद गान करो जनक पुणे अपने साथियों के साथ स्वर में स्वर मिलाकर गांधी करने लगा । मंत्रों का शब्द ऊंचा और ऊंचा सुनाई पडने लगा । इस समय तो नहीं उसको भी जनता के चुप्पियां करने लगी । उसने यान वहाँ को कहा जयघोष करो । वहाँ ऊंचे स्वर में आवाज नहीं महाराज बहुत की घोषणा की पूर्ति में किसी ने भी जय हो का शब्द नहीं किया । इस पर वाहक ने यान के चारों और देखा वो देवताओं से घेरा हुआ था । उसने जब देवताओं को चुपचाप साथ चलते हुए देखा तो कहा बोलते क्यों नहीं? सालों ये सुनकर देवता भी चुप रहे और केवल मात्र एक दूसरे का मुख देखते रहे । इस समय सवारी मंडी के चौमुखे पर पहुंच गई थी । जगत में देखा के सामने घर के छज्जे पर भारत खडा है । उसने अवसर पाकर अपने साथ ही ये कहा आ गया है आओ अहमियत ना करें । दोनों ठहर गए । वहाँ पे समझा कि वह थक गए हैं । उसमें उनको विश्राम लेने का अवसर देने के लिए घोषणा की । महाराष्ट्र पहुंच की केवल गांधार जो सामने की छत पर खडा था कि लाया जय हो और शब्द के निकलते ही किसी ने उसे उसकी ग्रीवा से पढकर छत से नीचे रख लिया । वो चीख मारता हुआ नीचे आ पडा । ज्ञान वाहक में ये देखा नहीं उसने भी ये देखा वाहन ने अपना थोडा जनता पर जो यान के चारों और खडी थी चलाते हुए कहा और गांधार ओं के सालों बोलो यान वाहक ने जनक और कश्यप को लाख से प्रहार कर कहा चलो बडो आ गए । थोडे चारों और बढ चाय जा रहे थे । इस पर देवयानी जो ना भारत के साथ ही छज्जे पर खडी थी । तीव्र स्वर से बोली ठहरो, ये दुष्टता अब और नहीं चलेगी । वाहक और न होश । दोनों ने उस बोलने वाली की और देखा नहीं । उसने पहचान लिया । उस प्रमुख से निकल गया देवयानी । इससे अधिक वो कुछ नहीं कह सकता हूँ । देवयानी ने एकत्र जनता को संबोधित कर कहा पकडो! इस दुष्ट हो पाती को दंड देने का समय आ गया है । दर्शक पहले से ही संकेत की प्रतीक्षा में थे । संकेत पाते ही सब के सब नहुष की और लडके इक्का दुक्का गांधार जो अभी भी यान के साथ थे, न होश की रक्षा के लिए अपनी तलवारें निकालने लगे, परंतु उनके निकलने के पूर्व ही जनता ने उन पर आक्रमण कर दिया । दो दो हाथ से अधिक नहीं हुए । यहाँ लड गया । वहाँ कश्यर सबसे पहले घर से अलग था । ज्ञान के साथ ही नहीं कुछ भी भीड में लुढक गया । लोगों ने उस पर लातों घूसों से प्रहार करना और नाखूनों से नोचना आरंभ कर दिया । उस ठंड में ही नहीं उसके शरीर के टुकडे टुकडे हो गए और वे भी कहीं दिखाई नहीं दिए । टुकडों का भी पाँव चले आकर कचूमर निकल गया । सवारी के पीछे कुछ गांधार थे मैंने देवताओं ने धरती दे देकर पीछे कर दिया था । उन्होंने भी देवताओं को न होश पर प्रहार करते देखकर अपनी तलवारें निकाल ली और भीड पर आक्रमण आरंभ कर दिया । कश्मीर सैनिक अभी तक मार्च तक पर ही खडे थे । उन्होंने गांधारी को जनता पर आक्रमण करते देखा तो उनसे लडने के लिए भी अपने खानदान निकाल लिए । देवता और कश्मीरी सैनिकों की भारी संख्या दें । गांधार घबरा उठे और लडना छोड भवन की और भाग खडे हुए । इस समय देवयानी ने उन्हें आदेश दिया । उसने कहा खैर वो बहादुर भी रहूं । ठहरो चुप हो सुनने लगे । यानी ने शान्ति होने पर अपना कठल सुनाया । वीर देवता हूँ और मेरे सैनिकों आठ पाई समाप्त हो चुका है । उसके साथ ही उसका राज्य भी समाप्त हो गया है । इस समय देवराज इंद्र यहाँ नहीं है । नहीं महारानी, शचि यहाँ मौजूद है । उसकी अनुपस्थिति में मैं कश्मीर की राजकुमारी देवयानी यहाँ का राज्य अपने अधिकार में लेती हूँ । मैं कश्मीर से आए सैनिकों को और उन देवताओं को जिन्होंने मेरी आश्वासन करने की शपथ ली है । आज्ञा देती हूँ कि तुरंत इंद्रा भवन पर आक्रमण का उनको अपने अधिकार नहीं कर ले । यहाँ मंडी में न तो समय व्यर्थ गंवाना है और न ही यहाँ रक्तपात अधिक करना उचित है । हमें राजभवन की और चलना चाहिए । चलो बढ चलो । सुमन ने यहाँ समय सुन लिया था कि करण का पत्र आया है जिसमें उसने लिखा है कि इंद्राणी ने नहीं उससे विवाह करना स्वीकार कर लिया है । इस समाचार से उसका मस्तिष्क घूमने लगा था । वो चाहती थी कि नाराज से मिलकर अपने पति की रक्षा का शोशल नहीं परंतु कभी नहीं जानती थी । इसको कहाँ मिल सकें? नहीं उसके विदा होने से पूर्व के राहत जब राहुल भवन ने उसको बनाया जा रहा था, महाराज सुमन से मिलने आया तो मैंने उसको देखा तो एक प्रकार से सांत्वना अनुभव कि उसने पूछा देवर्षि ये क्या हो रहा है मेरी सुमन भारत ने आसन ग्रहण करते हुए कहा आज बहुत का जीवन की अंतिम रास्ता है । उसके पापों का घडा भर चुका है । अब वो डूबे मिला नहीं रह सकता । हमने राजकुमारी देवयानी के सम्मुख वचन दिया था की तुम अपने भाग का कार्य कर होगी । तो कल जब होश की सवारी भवन से निकल जाए, यंत्र गार में चली जाना और उसको भीतर से बंद कर लेना । इससे कोई भी उन यंत्रों को पानी ना पहुंचा सके । सुमन विश्व में में ना भारत का मुख देखती रह गई । भारत कहता गया समझ लिया सुमन हमारे यहाँ से नगर में एक घडी में पहुंचेगी । उस गाडी के भीतर ही भीतर तो मैं यंत्रों पर अधिकार कर लेना है । पश्चात हम शीघ्रातिशीघ्र यहां पहुंचने का यात्रा करेंगे । देवर्षि मैं तो पा रह के पिता का समाचार जानना चाहती हूँ । मैं कल रात काम को मिल जाएंगे । कहा है समिति हैं और सच्ची महारानी ऍफ समय नहीं सब बातें सबके जानने की नहीं होती है । तुमने अपना कार्यकुशलता से कर लिया तो निसंदेह जानो के पांच छह दिवस में इंद्राणी यहाँ केंद्र महाराज की महारानी के रूप में उन्हें स्थापित हो जाएंगे । सुमन अभी भी सब का अर्थ नहीं समझती । नारद उठा और सुमन के सिर पर हाथ फेर और आशीर्वाद देकर चला गया । सुमन को रात भर नहीं नहीं आई, अपराधा उठी । उसको ऐसा अनुभव हुआ के आकाश और सूर्य देव लोग पर खिलखिलाकर हंस रहे हूँ । स्वच्छ धूप अमरावती की ऊंची ऊंची अटारियों पर अपनी मृदु मुस्कान में अपनी मोटी सामान दातों का प्रदर्शन कर रही थी । सुमन का चित्र हल्का था । उसका मन कह रहा था कि भारत का प्रयास अवश्य सफल होगा । उसने बच्चों को उठाया । स्नानादि करवाया । रात राष्ट्र दिया । जब खाती चुके है तो उनको नवीन वस्त्र पहना दिए । माणिक्य ने पूछा माँ हम कहाँ जा रहे हैं? हमारे पिता के पास कहाँ है वह हम उनके पास जाएंगे । जल्दी करो बस वो महाराज की सवारी निकल जाए तो हम भी चल देंगे । महाराज कहाँ जा रहे हैं? सेवा करने कहाँ दूर देश में हम भी साथ चलेंगे क्या नहीं । हम हमारे पिताजी के पास जाएंगे । यहाँ कराने सुमन की हँसी निकल आई । माना कि और परामाणु का बुक देखते रह गए । इस समय बाजे बजने लगे । शंक भेरी और धुंधु क्या खोर नाग ने ये घोषणा की । महाराज की सवारी तैयार हो गई है । सुबह बच्चों को ले जाने आगार के सम्मुख चबूतरे पर सवारी का दृश्य देखने लगी । यान की सजावट, उसका रूप गांधार ओं का जमघट । बहुत भारी भीड एक भव्य दस उपस्तिथ कर रहे थे । इस समय महाराज ज्ञान परसवार हुए और यान को ऋषियों ने उठाया । जब वे वेज गान करने लगे तो सुमन ने दांतों तले उंगली दवा ली । क्या उसने विचार क्या अगस्तस से ऋषि को वो पहचानती थी । उनको एक अन्य ऋषि के साथ और विश्वानि देव गाते हुए देख क्रोध तथा दुख से उसकी आंखों से आंसू निकल आए । इस समय उनको ना भारत के कथन का अर्थ समझ में आ गया । उसे वो कर्तव्य भी स्मरण आ गया तो भारत में उसके लिए नियत किया था । इस से वो अपने कार्य पर विचार करने लगी । नहुश की सवारी भवन से निकल गई तो यंत्रों की रक्षा अपना कर्तव्य मान उस और चल पडी माने की और पडा उसके साथ है । जब वह यंत्रालय के बाहर पहुंची तो कुछ गण धारों को तलवार लिए उसकी रक्षा करते थे । वो चकित रह गई । गणधर सैनिक ने उससे पूछा, क्या चाहती हैं मैं? सप्ताह में एक बार यंत्रों को देखने और झाड फूंक ने आया करती हूँ । जब आपको ये करने की आवश्यकता नहीं रहेगी, महारानी स्वर्ण है तो इसका प्रबंध करेंगे । चौवन डर गई और लौट आई तो सैनिकों से झगडा करना नहीं चाहती थी । उनके पैसा चेक करते हो जो उन्होंने अमरावती पर अधिकार करते समय किया था । होली नहीं थी । इस कारण लौटकर अपने आगार के बाहर चबूतरे पर आकर खडी हो गई । इस समय भवन अध्यक्ष सुमन को वहाँ खडा दे आठ जो और नमस्कार कर बोला महाराज किया गया से यंत्रालय पर मैंने सैनिक बिठा दिए हैं । वे अब किसी अन्य का हस्तक्षेप उसमें नहीं चाहते हैं । ठीक है मैं वहाँ नहीं जाउंगी । सवारी देखिए देवी कैसी थी बहुत ही सुंदर दृश्य था । आपने तो महारानी को देखा होगा । हाँ, मुझ से बहुत प्यार करती थी । तब तो उनके आने पर आपको बहुत प्रसन्नता होगी । इसमें भी संदेह क्या कुछ देवता बहुत बुरा मान रहे हैं । मैं मूर्ख हैं । अभी ये बातें चल ही रही थी कि नगर की ओर से भारी कोलाहल सुनाई दिया । भावना अध्यक्ष पाँव के पंजों पर खडा हो उस और देखने लगा तो कुछ नहीं देख सका तो बोला भवन की छत पर चढकर देखता हूँ कैसा कोलाहल है । इतना कहकर वह सुमन को वही उसी स्थल पर छोड भवन की सीढियों की और चल पडा । सुमन अपने मन में कौतूहल अनुभव कर रही थी की किस प्रकार मंत्रालय में आए । इतने में वह कोलाहाल भवन की और बढता हुआ प्रतीत होने लगा और कुछ ही क्षणों में गांधार भागते हुए भवन की और आते दिखाई दिए । सहस्त्रों की संख्या नहीं गांधार भवन के बाहर अपनी तलवारें निकाल छटने के लिए तैयार खडे हो गए । अगले ही छंट देवता और कश्मीर सैनिक थी । अपने हाथों में खडग लिए भवन के द्वार की और बढ गए देवताओं को भवन पर आक्रमण करते आया देख सुमन को लगा कि यंत्रों की रक्षा आवश्यक है तो उन्हें मंत्रालय की ओर जाने के लिए भूमि । इसी समय भवना अध्यक्ष हफ्ता हुआ । वहाँ उन के समीप चबूतरे पर आप पहुंचा । उसने सुबह से कहा देवी बदमाश देवताओं ने महाराज को अकेले पाल उनकी हत्या कर दी है और अब इस भवन पर आक्रमण कर दिया है । पर गांधार भी इन कायरों से डरने वाले नहीं । आपको कुछ और भी कहना चाहता था । देवताओं में से एक छह हाथ वाला ऊंचाहार पुष्ट विशाल का पुरुष था । एक ऊंचे स्थान से सिंह की भारतीय नाडकर बोला कांधार सैनिको! तुम्हारा राजा मारा गया है । हम यदि चाहो तो भवन में मार डाले जा हो गई । इस पर भी मैं महारानी देवयानी राजकुमारी कश्मीर की आज्ञा से सूचना देता हूँ कि देव लोग का राज्य उन्होंने अपने अधीन कर लिया है । उन की आज्ञा है कि जो गांधार आपने शास्त्र डाल दें, उसे छमा प्रदान की जाए । दूसरों को मौत के घाट उतार दिया जाए । इस कारण मैं चौथाई घडी भर का समय देता हूँ । इस काल में जो गांधार शास्त्र डाल अपने को हमारे अधीर कर देगा । उसके अपराधों को छमा प्रदान कर दी जाएगी । इस काल के पश्चात किसी पर भी दया नहीं की जाएगी । इस घोषणा के पश्चात कश्मीर सैनिकों और देवताओं ने घोषणा की महारानी देवयानी की जय हो आजकल देवता कि जय हो कान धारों को चेतावनी देने वाला भाष्कर था जो ब्रह्मवर से लौटकर कश्मीर आ गया था और यहाँ तक सूचना पाकर मिलिंद और देवरानी देवलोक में है । वहाँ चला आया था । वो इस विप्लव से एक दिन पूर्व ही पहुंचा था । गांधार ओं ने जल्दी जल्दी मंत्रणा की । भावना अध्यक्ष ने भास्कर का कपिल सुना था । उसका संबंध से कहा तेरी यदि हमें कश्मीर के कुत्तों को परास्त कर सकें । उन्होंने संदेह देवलोक कर राज्य करन महामंत्री के हाथ जा सकेगा, उस कारण तुम का हो । मैं इसके लिए यतना करूँ । मैं इन सब बातों को नहीं समझ सकती । इस सब की स्वीकृति बान भावना अध्यक्ष ने गांधार सैनिकों को चबूतरे पर से आज्ञा दी । मैं होश के उपरान्त महामंत्री करन को यहाँ का राजा समझता हूँ और उसके नाम पर आज्ञा देता हूँ । इन कश्मीरी लुटेरों को भवन में घुसने नहीं देना है और इन को देवलोक से भगा देना है । इस प्रकार से दोनों ओर से युद्ध का शंखनाद हो गया । भास्कर देव ता हूँ कि आगे आगे चलता अपने हाथ नहीं चार हाथ लंबी खडक लिए हुए गांधार ओं पर बूथ पडा गांधार भास्कर की तलवार के सामने ऐसे उठने लगे जैसे धोनी की धुरकी के सामने रूम छोड दी है तो खटाखट पलवार चल रही थी और रंग मुंडों से पृथक हो रहे थे । भास्कर एक हादसे चलवा चलता था और दूसरे हाथ से गणधरों को मूल्यों से पकड पकडकर तो ऐसे आकाश वक्त है कर रहा था मानव मार्ग से कंकड उठाकर एक और बता रहा हूँ गांधार भास्कर की विनाशकारी खडक की चमक के संभव भयभीत हो भागने लगे तो भास्कर की तलवार लम्बी थी जिसकी मार के भीतर कोई आ नहीं पाता था । तो यदि कोई आदमी गया तो भास्कर बाजू से उसका मुंड क्या ग्रीवा पकडकर हो आकाश में उछाल देता था और वो कश्मीर सैनिकों में जा गिरने से पूर्व ही किसी की खडक का ग्रास बन जाता था । होना दक्षिण देखा कि देवताओं का भवन पर अधिकार हुए बिना नहीं रहेगा । उसमें सुमन से कहा दे दो तो एक बात करो मंत्रालय में चली जाओ । जब ये लोग भवन में आने लगे तो इन पर आग नी अस्तर चलता हूँ उससे सब झूलसकर मर जाएंगे । सुमन आगने अस्त्र चलाना नहीं जानती थी उसने इसको यंत्रालय में पडा हुआ देखा था । इस समय यंत्रालय में जाने का अवसर पार्टर वो भावना अध्यक्ष की बात मानने को तैयार हो गई तो सुमन माणिक्य और बडा को साफ नहीं भावना अध्यक्ष के बीच पीछे मंत्रालय में जा पहुंची तो बहुत अध्यक्ष ने वहाँ खडे सैनिकों को कह दिया तो की आग्रह अस्त्र चलने वाला है । पूर्ण भवन तो हो जाएगा । जो भी सुमन मंत्रालय में प्रविष्ट हुई की भावना अध्यक्ष और सैनिक भवन से दूर जाने के लिए भवन के पिछवाडे से निकल भागे तो सुमन ने भी तरह से द्वार बंद कर दिया और वहाँ रखिए चौकी पर बैठ गई मानक के जो भास्कर की कुशलता को देख चुका था तो यहाँ अपने को सुरक्षित था । माँ से पूछने लगा हो वो कौन था जो देवों की भांति लड रहा था तो एक देखता था हम पिताजी के पास कब चलेंगे? ये जो लड रहे हैं जब यहाँ से चले जाएंगे तब यहाँ भी आएंगे नहीं । मैंने द्वार बंद कर लिए हैं । बहुत सही नहीं हुई थी और काम रही थी । इस कारण सुमन ने उसको उठाकर उसका मुख चूम गले से लगा लिया । भवन पर पूर्ण अधिकार प्राप्त करने में एक पहर लग गया । जब पूर्ण अधिकार हो गया तो नाराज देवयानी तथा अन्य देवता भवन में आ गए । देवयानी उच्च स्थान पर खडी हो गई । भास्कर उसके समीप खडा था । उसने जयघोष किया महारानी देवयानी की जय हो सब देवताओं नहीं जयघोष किया । पश्चात देवयानी ने सबको हाथ के संकेत से चुप कराकर भास्कर को कहा घोषणा कर रही है । भास्कर ने वही घोषणा दोहरा दी तो देवयानी ने मंडी में की थी । उसके पश्चात उसने कहा महारानी जी ने ये भी कहा है कि वे महारानी शचि को यहाँ शीघ्रातिशीघ्र बुलाएंगी और देवलोक का राज्य उनके हाथों सौंपेंगी । अब वो चाहती है कि आप देवलोक के उद्धार के उपलक्ष्य में आनंदोत्सव मनाए । सब अपने अपने निवास स्थानों में जाए और रात्रि को दीपमाला का आयोजन करें । कांधार सैनिक अपने शस्त्र भवन में दे रहे हैं । यदि किसी गांधार के पास खडक देखी गई तो उसको पर मत मार डालने की आज्ञा दी जाती है । निशस्त्र गांधार ओं को छमा दी जानी चाहिए । इस मुक्ति पर देवता आनंद से भरे हुए नाश्ते गाते नगर की और चले गए । भास्कर को भवन की रक्षा का कार्य सौंप दिया गया और एक सहस्र कश्मीरी सैनिक उसके अधीन कर दिए गए । इस समय देवयानी और नारद यंत्रालय से सुमन को निकालने के लिए वहाँ पहुंच गए । मंत्रालय का द्वार खटखटाया गया तो संकेत पास सुमन ने द्वार खोल दिया और स्वयं बाहर निकल आई । देवरानी ने उसे गले से लगाया पर आपको गोदी में उठाकर उसका मुख्य उमा पश्चात सब लोग भवन के एक आगार में आएगा पर हुए सुमन ने जाते हुए मारने करन की याद दिलाई । भारत ने कहा सुमन मुझे ध्यान है तुम स्वयं उनके पास जाओगी क्या उनको यहाँ बुलाऊँ मैं स्वयं जाना चाहती हूँ । ठीक है अभी भास्कर और दो सैनिक तुम्हारे साथ जाएंगे । साठ साल तक तो वहाँ पहुँच जाओगी । कल प्रातःकाल तक लौट कर आ सकती हो । भास्कर को बुलाकर देगा नहीं । आज्ञा दी । भास्कर देवता इस देवी को साथ लेकर दो संरक्षकों के साथ जाओ । मैं तुमको एक स्थान पर ले जाएंगे । वहाँ इस देवी के पति करण देव हैं । उनको वहाँ आदर सहित ले जाओ महारानीजी एक निवेदन मेरा दी है । मेलन दिखाई नहीं दे रही । इतना कहते कहते भास्कर ने माथे पर त्यौरी चढाकर नार्थ की और देखा । देवरानी ने मुस्कराकर कहा देवता पहले कार्य समाप्त करो । जब ये कार्यकर जाओगे तो मिलिंद के विषय में प्रार्थना पत्र देना विचार किया जाएगा । भास्कर ने झुककर प्रणाम किया और संरक्षकों के साथ जाने को तैयार हो गया । उसके जाने से पूर्व देवरानी ने सुमन से कहा, सुमन बहन, हमारी ये उत्तर इच्छा है कि करण देव हमारे राज्य में रहे और आपने उपयुक्त कोई राज्य कार्यकारी । हम उनका इस राज्य में स्वागत करेंगे और उनको उनके योग्य कोई सम्मानित कार्य देंगे । हम आशा करते हैं कि वे हमारे इस निमंत्रण को स्वीकार करेंगे । मेरे तथा करण को गुफा पार वाले ग्रह में रहते हुए एक सप्ताह हो चुका था । स्थान एक शादी में था जो चार और से पहाडों से घिरी हुई थी । इस शादी में आने का मार्ग केवल गुफा थी जिसमें वे लांग कर आना होता था । घर वादी के मध्य में बना हुआ था । इसमें कई आगार थे । इस घर का संरक्षक बीस प्रहरियों सहित वहाँ रहता था । एक आगार में करण के रहने का प्रबंध किया गया था और दूसरे आगार में मिलिंद के रहने का बाहरी दोनों की देखभाल करते थे । घर के सामने एक छोटी सी बावडी थी । उसमें एक झरने से जल गिरता था । पोस्ट आनादि के लिए उस घर के निवासियों के लिए प्रयोग में आता था । पहली रात तो ये सब बहुत देरी से पहुंचे थे । मिलिंद आपने आगार में गई जाते ही हो गई और अगले दिन देरी तक सोई रही । चरण के मन में इतनी बेचैनी थी । इसको न तो नींद आई और ना ही वो किसी और अपना ध्यान लगा सका । सूर्योदय होते ही वो आगार से बाहर आकर बावडी के समीप खडा हो झरने के झरोखर करते जल को देखता रहा । उसने प्रकाश होने पर वादी के दृश्य को देखा तो समझता था कि उसको वहाँ से ढाक जाना चाहिए । इस कारण वो बावडी में उतर आया । ठंडे जल से आंखों को छीटें मारकर सचेत हो । वादी की एक और मार ढूंढने चल पडा । वह भी बीस पर भी नहीं । बडा दो खडक दारी एक झाडी के पीछे से निकल आए और करण के साथ साथ चल पडेंगे । कुछ दूर तक करन गया और वे उसके साथ साथ ही गए । इससे करण को भारी की जाएगी तो खडा हो गया और उनसे पूछने लगा, तुम मेरे साथ साथ क्यों आते हो? ऐसा करने की आज्ञा है । किस किया गया है आपने? स्वामी क्या करता है तुम्हारा स्वाइन आप जैसे श्रीमान को पकडकर उनके संबंधियों से धन प्राप्त करता है तो तुम लुटेरे हो । आश्रम कितना रुपया तुम को चाहिए । स्वामी एक दो दिन में आएंगे और आपसे बात चीत करेंगे । आज क्या नहीं मुझे आवश्यक कार्य है और मुझको आज ही छोडने से अधिक मूल्य मिलेगा । ये सूचना अपने स्वामी के पास भेज दूंगा तो उस को छोडने के लिए कितना धन चाहते हो । मैं आपको छोड नहीं सकता । इस वादी का द्वार मेरे अधीन नहीं है । इसके अधीन है । हमारे नायक हैं उनसे पूछ कर अभी बताओ आपसे कुछ कालो प्रांत स्वयं मिलेंगे । मैं भी बाहर अपने कार्य पड तुरंत जाना चाहता हूँ । सब कार्य अपनी इच्छानुसार नहीं हो सकते हैं । विवश करण वापस लौट आया लेकिन अभी भी सोकर नहीं उठी थी । करण ने साथ साथ आ रहे प्रहरी पूछा मेरे साथ जो हिस्ट्री आई थी वो कहाँ है? हो रही है जगह अमित स्त्रियों के आधार में नहीं जाते हैं । वहाँ कौन जाता है कोई भी नहीं यहाँ कोई स्त्री नहीं है । तो फिर क्या होगा अपने आप जागेंगी तो बाहर आ जाएंगे चरण झरने के सभी बैठ अपने मन में उठ रहे उद्गारों को भीतर ही भीतर पीने का यत्न करता रहा । सूर्य पहाडों से ऊपर उठाया था और चारों और उसका प्रकाश फैल चुका था । पक्षी गन अपने अपने घोषणाओं से निकल कर अपने आहार की खोज में निकल गए थे । कुछ साथ के वक्ष पर बैठे जहाँ चाह रहे थे, कुछ अपने साथियों को बुलाने के लिए सीटियां बजा रहे थे । इन सब चहल पहले में करण शोक जस्ट बैठा था । इस समय एक बाहरी उसके समीप आकर बोला, श्रीमान शौचादि से निवृत्त हो जाए तो अल्पहार का प्रबंध किया जाए । वो इस्त्री जागी है तो नहीं । नहीं, अभी हो रही है जन्मजन्मांतर कि थकावट दूर रही प्रतीत होती है । बाहरी चुप रहा । करण ने पूछा आप करना है, कब आएगा? जब आप अल्पाहार कर बैठेंगे? पहले नहीं । पहले नहीं वहाँ आपको खिलाकर स्वयं कुछ खायेगा तो तैयार हो जाना चाहिए । आज श्रीमान महेंद्र मत ध्यान से कुछ पहले सनादी से निपट तैयार हो गई । करण अल्पाहार कर चुका था । वो अत्यंत ही असंतुष्ट अवस्था में था । मिलिंद घर के बाहर धूप से सूर्यकिरणों की उष्मा प्राप्त करने खडी थी । इसी समय करण उसके पास आकर बोला, श्रीमती जी को पता चला है कि ये कौन लोग हैं नहीं, लुटेरे हैं, बहुत दुष्ट होंगे । तब तो मैंने चिंता प्रकट करते हुए कहा केवल इतना ही नहीं वो कहते हैं कि उनका स्वामी तीन दिन के बाद आएगा तब वो हमारे घर वालों का पता पूछेगा । फिर उनको लिखेगा कि इतना धन भेजो । जब वे धन भेज देंगे तब हमें छोडा जाएगा सब हाँ मैंने स्वयं इनके नायक से पता क्या है? चार छुट्टी हुई, क्यों न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी, ना हम जाएंगे । आपके महाराज का व्यवहार होगा तो तुम इससे प्रसन्न हो । ईश्वर को यही स्वीकार प्रतीत होता है । तुम क्या चाहती हूँ? मेरे चाहने अथवा ना चाहने का प्रश्न ही नहीं है न वो कभी था ना अब है । मैं पहले महारानी की सेवा में उनके नाम की सकती थी । अब बैंक लुटेरों के पक्ष में हूँ । मान लोग करण ने उत्सुकतापूर्वक पूछा उनसे तुम्हारी स्वतंत्र संबंधी मांगी जाए तो तुम क्या कहोगी? मिलिंद कुछ विचार कर कहा एक बात पूछूं ऍम वर्ष की आयु की हूँ । क्या कोई बीस वर्ष का युवक मुझसे व्यवहार करेगा तो क्या महारानी सच्ची भी इस आयु की है । वो एक सौ पचास वर्ष से ऊपर की आयु की है । देखने में तो इतनी आयु के प्रति नहीं होती । मेरा विचार था कि तीस पैंतीस वर्ष की होगी । मेरे दस पडी गर्म को उसके कहने पर संदेह हो गया इस पर उसमें पढा पूछा मुझसे हसी कर रही है । नहीं, आप लोग देवताओं की बहुत सी बातों से अनभिज्ञ हैं । उनमें ये आयु रहस्य के ज्ञान की भी एक बात है । हम जीना जानते हैं । हमारे यहाँ स्वाभाविक आयु दो सौ वर्ष की होती है । फिर भी कई लोग ऐसे हैं जो और भी अधिक काल तक जीवित रहते हैं । कुछ विशेष व्यक्ति तो सहस्त्रों वर्षों तक जीवन का भोग करते हैं और में से ब्रह्मा एक हैं । करण कोई आश्चर्य हुआ उसने विश्व में से पूछा केंद्र की कितनी आयु होगी, आपका समझते हैं और पैंतालीस वर्ष का मानता था । वास्तव में उनकी आयु का ज्ञान किसी को नहीं । ब्रह्मा उनसे बडी आयु के हैं, वही ठीक बता सकते हैं । हमारा अनुमान है कि उनकी आयु कई सहस्त्र वर्ष जरूर है । करण इसको मनपसंद बात मान हस पडा । उसने कहा, मैं समझता हूँ कि आप एक चप्पल स्त्री हैं और मुझको मूर्ति बना रही है । फिर भी मैं समझता हूँ किस विषय पर विवाद करने की आवश्यकता नहीं । बात ये है कि यदि शचि डेढ सौ वर्ष की आयु के होने पर भी युवती प्रतीत होती है तो पैंतीस वर्ष के युवा पुरुष को विभाग करने में क्या आपत्ति हो सकती है । परन्तु जो अनुभव और ज्ञान डेढ सौ वर्ष की आयु के एक मनुष्य को हो सकता है, उससे कोई तीस वर्ष का युवा पुरुष विभाग नहीं करेगा । दोनों के ज्ञान में अंतर है । इससे दोनों में निभा नहीं सकती । तो तुम्हारा विचार है कि ये व्यवहार नहीं होना चाहिए था । आपका समझे हैं तो तुम इससे बंदी बनाए जाने पर प्रसन्न हो । बंदी होने के परिणाम से तो संतोष होता है, परंतु आपके समय से विडियो पर तो संतोष नहीं हो सकता । इतना कहकर वो हंस पडी । उन लोगों का स्वामी करन से मिलने नहीं आया । इससे करन के मन में दिन प्रतिदिन चिंता बढती गई । इस प्रकार असंतोष की अवस्था नहीं, एक सप्ताह व्यतीत हो गया । आठवें दिन तो करण उतावला हो रहा था । प्राथमिक अल्पहार के समय प्रहरियों का नायक आया तो करण उससे लडने से लगा कहाँ मर गया है तुम्हारा स्वानी उससे हमें क्यों बंदी बना रखा है? नायक ने कहा, श्रीमान, मुझसे क्रोध करने की आवश्यकता नहीं । मैं आपके साथ जितना कुछ करने में स्वतंत्र हूँ, उतनी बात के विषय में बताइए । उसमें मैंने क्या अपराध किया है? इस बात पर मेरा अधिकार नहीं । उसके लिए मुझ पर करोड करना आपके लिए उचित नहीं है । ऍम हुआ । उसने कहा पर मैं तो तुमको ही जानता हूँ । मेरा संबंध हमसे है । इससे तो वही तो कह सकता हूँ मुझे छोड दो अन्यथा वीर पुरुषों की भारतीय खडक मुझको दो प्रमुख से युद्ध करले । नायक मुस्कराया और बोला मैं श्रीमान जी से युद्ध करने की क्षमता नहीं रखता हूँ । मैं तो आपके सेवकों के तुल्य हूँ । मैं यहाँ से जाना चाहता हूँ । इस समय मिलिंद आपने आगार से अल्पहार करने के लिए निकल आई । उसने करन की अंतिम बात सुनी तो कह दिया देखिए करनी जी मैं कहती हूँ कि आज आप छूट जाएंगे । देखो मिलन देवी मुझे हसी घटाना करूँ । मेरे मन में आज विश्व भर रहा है । इच्छा हो रही है किसी को काट डालो यहाँ पेड पौधों की भर्ती स्थावर जीवन व्यतीत करते करते मैं ऊब गया हूँ मुझको आपसे पूर्ण सहानुभूति है और मैं हंसी नहीं कर रही हैं । मैं तो ये कह रही हूँ की आप आज अवश्य मुक्त हो जाएंगे । आपको मुक्त कराने के लिए आपकी पत्नी सुमन ही यहाँ आने का कष्ट कर रही है । हमने ज्योतिष लगाया है क्या नहीं । उसके सूत्र ने पता चला है और प्रातःकाल सामने के पेड पर साथ बैठा गांव काम कर रहा था । मुझको इन बातों पर कोई विश्वास नहीं होता तो मुझे तो पूर्ण विश्वास है । देखिए आपकी श्रीमती जी के साथ मेरे देवता भी आ रहे प्रतीत होते हैं । ऐसा लगता है कि उनके स्वामी ने हमारा नाम धाम आपके सैनिकों से पता कर हमारे संबंधियों से हमारा मूल्य प्राप्त कर लिया है और वे आ रहे हैं । मैं महाराज के सम्मुख इनके विरुद्ध अभियोग अवस्थित करूंगा और सेना लाकर है सवादी को आग लगा दूंगा । इस वादी ने क्या अपराध किया है तो एक बात और है । मैंने सोचा मैंने देखा है कि महारात नहुष विमान में बैठ स्वर्गारोहण कर गए हैं । मिलिंद की बात सुन करन गंभीर हो गया । वो इस औरत के रहस्य को समझने में सफल नहीं हुआ था । वो अल्पाहार करने के लिए बैठने लगा तो मैंने कहा बात करूँ आपसे हूँ । मेरा मन कह रहा है कि मेरे पति देव आ रहे हैं । इस समय उनकी प्रतीक्षा करना चाहती हूँ । जब आएंगे उनके साथ ही आहार कर लूंगी । आपकी धर्मपत्नी भी आ रही है । आप भी प्रतीक्षा करने तो उचित नहीं होगा । गया । करण जिसमें में मिलिंद का मुख देखता रह गया उसको सुमन की यहाँ जा रही थी । पहले वह बैठा हुआ था । अब खडा हो गया और नायक से बोला ये कहती हैं कि हमारे घर के लोग आ रहे हैं तो उन के आने पर ही भोजन होगा । दोनों उस आधार से बाहर निकल आए । बाहर आने पर करण की दृष्टि जब पूर्व की और गई तो उसे उस और से कुछ घोडों पर सवार आते दिखाई दिए । अश्वारोही यों में पाल की भी थी । मिलिंद अपूर्व की और पीठ किए हुए खडी थी और करण उनसे बात करता हुआ पूर्व की और देख रहा था । इस कारण उसकी दृष्टि उन आने वालों पर पहले पडी । करण जिसमें करते हुए कहने लगा देखो कौन आ रहे हैं । मिलिंद ने घूम कर देखा तो बोली और चाहे कोई हो या न हो और मेरे देवता तो आ ही रहे हैं । ये तो सबसे ऊंचे दिखाई देते हैं । वहीं है तो तुम्हारा स्वप्ने सब हुआ है । साथ एक पाल के भीतर है । उसमें आपकी श्रीमती हो सकती हैं । आने वालों की वह दोनों उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगे । आधी घडी में सब सवार पालकी संहिता पहुंचे । पालकी में बैठी सुमन को करण ने देख लिया था । इससे वो अपने स्थान से उठ उसकी और भागा और पालकी के भूमि पर रखने से पूर्व ही उसने उसे बो जाऊ में उठा लिया और गले लगा लिया । सुमन ने लग जा अनुभव करते हुए कहा देखिए सब लोग देख रहे हैं । करण को समझ आ गई और उसका सुमन को भूमि पर खडा कर बच्चों को गोदी में ले लिया । इस समय उसकी दृष्टि मिलिंद पर पडी । वो भास्कर को पहचान गया एक बार है ना हो उसे उसकी जान बचाई थी । मिलिंद भास्कर के पाँच हूँ हाथ जोड उसके सम्मुख खडी थी और भास्कर आवास मुखों से देख रहा था । करण बच्चों को गोदी में लिए हुए भास्कर के समीप आकर बोला पहलवान पहचानता है मुझको । इस आह्वान को सुन भास्कर का ध्यान टूटा और उसने घूम कर करन की और देखा वो पहचान गया तो महाराज भी वहाँ हैं । मेरी स्टोरी आपके पास कैसे आ गई । यही सोच रहा था कि आपकी स्त्री है क्या? ये तो कहती थी कि ये महारानी शचि की सखी हैं । ये नारद महादूत है । न जाने क्या क्या षड्यंत्रकर्ता रहता है मुझको वहाँ भेजते समय बताया तक नहीं ये श्रीमती जी वहाँ विद्यमान होंगी । अच्छी बात है रानी देवयानी के सम्मुख बात करूंगा करण ने मिल के मुख्य और देखा मुस्कुरा रही थी और उसका मुख्य प्रसन्नता से दैदीप्यमान हो रहा था । आप सुन नहीं ऍम सोने जो मन चाहे

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उमड़ती घटाए Written by गुरुदत्त Published by हिंदी साहित्य सदन Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ashish Jain
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