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बहुत तीन तरह तुला का जहर ब्योमकेश को घर से बाहर ले जाने के लिए मुझे बहुत कोशिश करनी पडी । पिछले एक महीने से वहाँ एक जालसाजी के केस को सुलझाने में लगा हुआ था । सुबह शाम जब भी देखो वहाँ बडी बडी फाइलों में उलझा रहता । जैसे उन पन्नों में जालसाज की छवि उभर आएगी । जैसे जैसे रहस्य की परते बढने लगी वैसे वैसे उस की बातचीत भी घटने लगी । सुबह से रात तक फाइलों के उलझन उसके स्वास्थ्य पर देखने लगी थी । जब भी मैं इस विषय पर बात करता हूँ तो वहाँ दो टूक जवाब देता अरे नहीं मैं पूरी तरह ठीक हूँ । वो शाम मैं जिद पर अड गया । देखो अब मैं तुम्हारी एक विवाद नहीं सुनूंगा । आज हम घूमने जा रहे हैं तो तुम्हारा दो दिन घंटों के लिए बाहर जाना जरूरी है । लेकिन लेकिन लेकिन कुछ नहीं । हम लोग लेके चलते हैं । तुम्हारा जालसाज दो घंटों में भागा नहीं जाता तो चलो चलते हैं । उसमें फाइलों को किसका दिया । लेकिन उन्हें मस्तिष्क से हटावाया या कहना मुश्किल है । लेक के किनारे घूमते हुए एक मुझे पुराना मित्र दिखाई दे गया । वहाँ मेरे साथ इंटरमीडिएट तक पढा था । उसके बाद वह मेडिकल कॉलेज में चला गया तो तब से मैंने उसे नहीं देखा । मैंने आवाज दी है तो तुम मोहनी होना । अरे भाई कैसे हो? वहाँ चौकर रुका और मुझे देखकर खुशी से उछल पडा । अरे अजीत तो मैं देख एक अरसा बीता कैसे हो? कहाँ हो? सब ठीक है ना? जोश भरे अभिवादन के बाद मैंने उसका परिचय ब्योम कैसे कराया? मोहन बोला हो तो आप है भी उनके िपक्षी आपसे मिलकर खुशी हुई । मैं अक्सर सोचा करता था कि ब्योमकेश बख्शी के वृतांतों का लेखक अजीत बन्दोपाध्याय कहीं अपना पुराना मित्र अजीत तो नहीं है, लेकिन निश्चय नहीं कर पाता था । मैंने कहा आजकल क्या कर रहे हो? मोहन बोला मैं कलकत्ता में ही प्रैक्टिस कर रहा हूँ । हम घंटे बरसात साथ घूमते रहे । बातचीत में समय बीत गया । उस दौरान मुझे लगा जैसे मोहन कुछ कहना चाह रहा हूँ पर रुक जाता था । ब्योमकेश ने भी शायद देखा था क्योंकि एक बार उसने मुस्कुराकर कह ही दिया क्यों रो क्यों जा रहे हैं और डॉक्टर साहब जो मन में हैं कैट डालिए । मोहन ने कुछ झिझकते हुए बोला एक बात है जो मैं आप से पूछना चाह रहा था, लेकिन बताने में संकोच हो रहा है । दरअसल मैं वही इतनी छोटी समस्या है, जिसे आपको बताना मुनासिब नहीं समझता हूँ । फिर भी मैंने कहा कोई बात नहीं, तुम बताओ तो सही है और कुछ नहीं तो कम से कम कुछ समय के लिए ब्योमकेश को इस जालसाज से फुर्सत मिल जाएगी । जालसाज मैंने पूरी कहानी बताई तो अजीत बोला यह तो ठीक है, पर ब्योमकेश बाबू मेरी समस्या पर हसेंगे । यदि वह हसने लायक होगी तो जरूर होगा, लेकिन आपको देखकर मुझे नहीं लगता कि हस्ते लाया गया । बल्कि मुझे तो लगता है कि उस समस्या से आप चिंतित है और हल करने के लिए आप एडी चोटी का जोर लगा रहे हैं । मोहन ने उत्साहित होकर कहा, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं । संभव है वहाँ समस्या बेहद आसान हो, लेकिन मेरे लिए जी का जंजाल बन गई है । ऐसा नहीं कि मैं चुपचाप बैठा हूँ । मैं अब तक अपने सामान्य ज्ञान का भरपूर उपयोग कर चुका हूँ । फिर भी आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एक बीमार वृद्ध व्यक्ति, जिसका पूरा शरीर लकवे से ग्रस्त हो, कैसे हर दिन मुझे चकमा दे रहा है । वहाँ केवल मुझे नहीं अपने पूरे परिवार के सख्त पहरे के बावजूद उनकी आंखों में धूल झोंक रहा है । बातचीत के दौरान हम लोग बेंच पर बैठ गए । मोहन बोला, मैं आपको संक्षेप में सारी बात बताता हूँ । मैं बहुत ही संपन्न परिवार का पारिवारिक डॉक्टर हूँ । यह परिवार बहुत ही पुराना है । उस समय का है जब यहाँ शहर बसना शुरू हुआ था । पर्याप्त संपत्ति और आय के अतिरिक्त ये लोग एक संपूर्ण मार्केट के स्वामी है, जिससे उनके आर्थिक स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है । पूरे मार्केट का बडा किया होगा । आप इसी से अनुमान लगा सकते हैं । घर के स्वामी का नाम नंदूलाल बाबू है और वे ही मेरे पेशेंट हैं । अपनी जवानी के दिनों में उन्होंने अनेक ऐसे व्यसन पाल लिये थे कि पचास की आयु पहुंचते पहुंचते उनके शरीर में जवाब दे दिया । उनका शरीर रोगों का घर बन गया है । बहुत पहले से उनके शरीर को आर्थराइटिस ने धन लिया और अब तो लकवा भी मार चुका है । हमारे व्यवसाय में एक कहावत प्रचलित है कि व्यक्ति की मृत्यु कोई विचित्र बात नहीं, बल्कि आश्चर्य तो यह है कि वहाँ अब तक जीवित कैसा है । मेरे मरीज इसी कहावत का सर्वश्रेष्ठ नमूना है । नंदूलाल बाबू के चरित्र के वर्णन के लिए मेरे पास शब्द नहीं है । बत्तमीज, बेहुदा, गाली गलोच करने वाला दो के बाद चालाक और निष्कर्ष संक्षेप में मैंने जीवन में इतना निकृष्ट व्यक्ति नहीं देखा है । उनकी पत्नी और परिवार हैं, किंतु उनका किसी से अच्छा व्यवहार नहीं है । वे आज भी उसी नरक में जीना चाहते हैं, जिसमें वे जवानी में थे । लेकिन उनके शरीर की शक्ति समाप्त हो चुकी है और अब वह सब सहने योग्य नहीं रही । इसलिए उनके मन में सब के प्रति भयंकर द्वेष है । जैसे हुए सब उनकी दशा की जिम्मेदार है । वे हमेशा इसी प्रयास में रहते हैं कि कैसे किसी को दोषी बनाकर उसे गाली गलोच की जाए । उनका शरीर कमजोर है, रजय रोग भी है, इसलिए वहाँ अपने कमरे से बाहर नहीं जा सकते । वे अपने कमरे में बैठकर पूरी दुनिया को गाली देते हैं और लिख लिख कर पन्ने बढते जाते हैं । उन्होंने मन्ने या ब्रहमपाल लिया है कि वे एक महान साहित्यकार है, इसलिए वो काली स्याही से कभी लालसाई से पन्नों को भरते जाते हैं । प्रकाशकों को भी वे गाली देते रहते हैं । उनके मन में यहाँ बैठ गया है कि सभी उनके विरुद्ध षडयंत्र रच रहे हैं और इसलिए उनकी रचनाएं नहीं छापते । कमाल है । उत्सुक्ता से मैंने पूछा, क्या लिखते हैं कहानी या फिर कुछ आत्मकथा जैसा? केवल एक बार मैंने उनके पेज पर दृष्टि डाली थी । फिर कभी हिम्मत नहीं हुई । यदि तो मैं उस कूडे करकट को पढ लो तो कोई देवता भी तुम्हें शुद्ध नहीं कर पाएगा । मैं दावे के साथ कह सकता हूँ । आज के प्रयोगात्मक युवा लेखक भी उसे पढकर बेहोश हो जाएंगे । ब्योमकेश ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, मैं कल्पना कर सकता हूँ चरित्र के बारे में, किंतु यहाँ तो बताइए । दरअसल में समस्या क्या है? मोहन ने सिगरेट का पैकेट निकालकर हम दोनों के लिए सिगरेट पेश की और स्वयं जलाकर बोला, शायद आप सोच रहे होंगे कि ऐसे विचित्र व्यक्ति में और कोई गुण नहीं हो सकते हैं । वे एक अन्य गुण से सम्पन्न है और वहाँ एक भयंकर नशा । उसने सिगरेट के कई कश लगाने के बाद कहा ब्योमकेश बाबू! आपको तो ऐसे नशीले और दुष्चरित्र व्यक्तियों से पाला पडता होगा जो शराब, गांजा, कोकेन और ऐसे ही निकृष्ट नशों के आदि होते हैं । पर क्या आपने कभी सुना है कि कोई व्यक्ति मकडी का जूस पीता हूँ? मैं जोर से चौक गया क्या? कहाँ माॅक बाबा, यह क्या होता है? मोहन बोला, कुछ खास किस्म की मकडिया होती है जिनके शरीर से जहरीला जूस निकाला जाता है । ब्योमकेश जैसे अपने आप सही बोल रहा हूँ उसके मुंह से निकल पडा टाॅस यह एक जमाने में इसने में प्रचलित था । मकडी के काटने पर लोग घोडे की तरह डांस करने लग जाते थे या एक बहुत ही घातक जहर है । मैंने इसके बारे में पढा है किंतु हमारे देश में मैंने इसका प्रयोग करते आज तक किसी को नहीं देखा । मोहन बोला आपने सही का तार अंतुल डांस यहाँ तरंत ओला जूझ दक्षिणी अमेरिका की इस पैनिश अमरीकी जनजातियों में काफी प्रचलित है । तरण तुला का जहर एक घातक जहर है लेकिन इसकी छोटी मात्रा में प्रयोग स्नायुमंडल में बडे जोरों की झनकार और सनसनाहट पैदा कर देता है । और आप आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि जो व्यक्ति इस नशे का आदी हो वहाँ इस नशे के बगैर कैसे रह सकता है । किंतु इसका लगातार प्रयोग घातक है । वह नशेडी निश्चित रूप से लगभग कैसे मारता है? मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि नंदूलाल बाबू ने यह खूबसूरत शौक अपनी जवानी में शुरू किया होगा । बाद में चलकर जब उनका शरीर अपन हो गया तब भी तो वैसे छोड नहीं पाए । मुझे उनका फैमिली डॉक्टर बने लगभग एक वर्ष हुआ । तब तक वे जहर के पक्के आधी बन चुके थे । पहला काम जो मैंने किया हुआ था उस पर रोक लगाना । मैंने उनसे स्पष्ट रूप से कह दिया कि यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें यह नशा छोडना पडेगा । शुरू में काफी लोग जो हुई वे छोडने को तैयार नहीं थे और मैं उन्हें नशा करने नहीं देना चाहता था । अंत मैंने कहा मैं जहर को आप के घर में घुसने नहीं दूंगा । मैं देखता हूँ आप कैसे उसे ले पाते हैं । उन्होंने एक हसी के साथ अच्छा यह बात है तो ठीक है । मैं लेता रहूंगा, देखता हूँ तुम कैसे रोकते हो और इस प्रकार युद्ध का श्रीगणेश हो गया । परिवार के सभी सदस्य वस्तुतः मेरे साथ ही थे और इसलिए घर के अंदर एक मजबूत मोर्चाबंदी करना आसान हो गया । उनकी पत्नी और बेटों ने बारी बारी से उनके रूम पर बहरा देने का काम शुरू कर दिया ताकि रूम के अंदर उसे जहर को ले जाने का उपाय ही नहीं रह जाए । हुआ क्योंकि स्वयं भी अपन थे इसलिए बाहर जाकर उसे लाना उनके लिए संभव नहीं था । इतने मोर्चाबंदी तथा पहरेदारी के बाद फिलहाल तो संतोष हो गया लेकिन वहाँ सब बेकार ही रहा क्योंकि इतना सब करने के बावजूद वे नशा करते ही रहे । कोई नहीं जान पाया कि वहाँ कैसे करते हैं । पहले तो मुझे संदेह हुआ कि यहाँ जरूर उनके परिवार के किसी सदस्य का ही काम है । इसलिए एक दिन मैं खुद पहले पर बैठा लेकिन काजू है कि उन्होंने मेरी पहरेदारी के बावजूद तीन बार जहर का सेवन किया । यहाँ मुझे तब पता चला जब मैंने उनकी नब्ज की जांच की । लेकिन मैं यह जान नहीं पाया की उन्होंने कब और कैसे वहाँ जरुर ले लिया । उसके बाद मैंने उनके कमरे की बडे यत्न से तलाशी ली । हर कोना और फर्नीचर छान मारा । सभी आगंतुकों के प्रवेश पर रोक लगा दी है लेकिन मैं उन का नशा करने को रोक नहीं पाया हूँ । यही आज की स्थिति है । अब मेरी समस्या यह है कि मैं कैसे पता लगा हूँ की वहाँ व्यक्ति मकडी का जहर कैसे पाता है और कब लोगों को चकमा देकर उसे डिटेल जाता है । इतना कहकर मोहन रुक गया । मैं यह नहीं जान पाया कि मोहन के व्रतांत में कब ब्योमकेश का मस्तिष्क को वहाँ से हट कर कहीं और चला गया । क्योंकि जैसे ही मोहन ने बोलना समाप्त क्या ब्योमकेश उठ खडा हुआ और अजीब से बोला अजीत चलो अब हम घर चलते हैं, मुझे का एक कुछ ख्याल आया है और यदि मेरा अनुमान सही है तो मैं समझ गया कि जालसाज फिर से उसके मस्तिष्क में आ गया है । हो सकता है उसने मोहन के व्रतांत का अंतिम भाग चुनावी न हो । मैंने कुछ निरूत्साहित होकर कहा, शायद तो मोहन की कहानी पर ध्यान नहीं दे पाए हो नहीं नहीं मैंने वस्तुतः सारी कहानी पूरी सावधानी से सुनी है । यहाँ समस्या वाकई विचित्र है और मैं तो कहूंगा कि मैं भी इस चक्कर को समझ नहीं पाया हूँ । लेकिन इस समय मेरे लिए समय देना संभव नहीं हो पा रहा है । मोहन को इन बातों से शायद ठेस पहुंची थी किंतु उसने अपने भावों को छुपाते हुए कहा । बिल्कुल सही है छोडिये । उसे आपको छोटे मोटे मामलों में ओलोचना ठीक नहीं लगता । लेकिन इतना जरूर है कि यदि यह ऐसे खुल जाए तो संभव था उस व्यक्ति का जीवन बच जाए । इससे ज्यादा दुख और क्लेश क्या हो सकता है कि एक व्यक्ति को चाहे वहाँ पार्टी ही क्यों ना हो, आंखों के सामने जहर से मारता देखते रहे हैं । ब्योमकेश थोडा विचलित हो गया । उसने कहा, मैंने ये तो नहीं कहा कि मैं इस केस को नहीं देखूंगा । मुझे इस केस को सुलझाने के लिए कम से कम कुछ घंटे तो लगेंगे । फिर उस व्यक्ति को भी देखना चाहूंगा, उससे भेंट काफी सहायक हो सकती है । किंतु यहाँ सब मैं आज नहीं कर पाऊंगा । यह सही है कि नंदूलाल बाबू जैसे अजीब व्यक्ति को यही मृत्यु का ग्रास बनने देना अपराध होगा और मैं ऐसा नहीं चाहूंगा । आप निश्चिंत रहे, लेकिन इस समय मुझे फौरन अपने घर पहुंचना बहुत जरूरी है । मैं समझता हूँ कि मुझे जालसाज को पकडने के लिए एक बार कागजों पर नजर दौडाना जरूरी है । इसलिए आज भर के लिए नंदूलाल बाबू को शांति से अपनी खुराक लेने दीजिए । कल से मैं उनके जहर पर रोक लगा दूंगा । मोहन ने हस्कर उत्तर दिया, मुझे कोई समस्या नहीं । आप केवल मुझे समय दे दीजिए ताकि मैं आपको लेने के लिए कार भेज सकूँ । ब्योमकेश एक्शन सोचकर बोला, मेरा एक सुझाव है । अजीत को अपने साथ जाने दीजिए । इससे आपकी उत्सुकता में फिलहाल राहत भी मिलेगी । एक बार अजीत को जाकर पूरा मुआयना कर लेने दीजिए । उसकी रिपोर्ट पर आज रात या कल तो वहाँ तक आपकी समस्या का हल दे दूंगा । ब्योमकेश का प्रस्ताव सुनकर मोहन के चेहरे पर निराशा की जो छाया दिखाई दी, वह किसी से छिपने सकी । ब्योमकेश के स्थान पर अजीत का जाना वह निराश हो गया । यहाँ भी उनके इस ने भी देखा । इसलिए उसने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा, अजीत क्योंकि आपका मित्र है इसलिए शायद आपका उस पर विश्वास जम नहीं रहा । लेकिन दिल छोटा ना कीजिए । अजीत पहले जैसा अजीत नहीं है । वहाँ भी एक सफल अन्वेषी के साथ रह कर उन्हें ऊंचाइयों पर पहुंच चुका है । मैं तो कहता हूँ कि संभव है कि अजीत स्वयम आपकी बहली का हल खोज निकाले, किन्तु इतनी तारीख के बाद भी मोहन के चेहरे पर मायूसी छिपी नहीं । जैसे दिनभर बडी मछली की । आज मैं बैठा कोई शिकारी शाम तक फंसी । एक छोटी सी मछली को देखकर मायूस हो जाए अंत है । उसने कहा ठीक है जी थी चले मेरे साथ । किन्तु यदि वहाँ नहीं निश्चिंत रहे है, यदि वहाँ सफल नहीं हो पाया तो आप मुझ पर भरोसा रखी है । चलने से पहले ब्योमकेश ने मुझे एक और बुलाकर कहा ठीक से सभी चीजों का मुआयना कर जांच कर लेना और हाँ आने वाली डाक के बारे में पूछना मत भूलना । बहुत से ब्योमकेश को अनेक गुड रहस्यों को सुलझाते देखने के साथ साथ अनेक केसों में उसे मदद करने के बाद मुझे भी अब लगने लगा कि आखिर यह ऐसा कौन सा गहन केस है जो मैं नहीं सुलझा सकता । मोहन ने जो मेरी क्षमता पर इतना संदेह व्यक्त किया था, उसने मानो ना मानो मुझे आज किया था और मैंने भी निश्चय कर लिया कि मैं इस समस्या का हल करके ही रहूंगा । इस निश्चय के साथ वहाँ मोहन के साथ चल दिया उन्होंने । उन्होंने बस पकडी और गंतव्य स्थान पर पहुंच गए । साथ ही अंधेरा गिराया था । सडक की रोशनी में मोहन आ गया । ये चल रहा था । हम लोग सर्कुलर रोड पर कुछ देर चले होंगे कि मोहन ने दूर से बडे घर की ओर इशारा करते हुए कहा, यही घर है । घर के बाहर लोहे का विशाल गेट था, सिर्फ बाहर खडे दरबार ने मोहन को सलाम किया किंतु मुझे रोक लिया । सारा आप नहीं जा सकते हैं । मोहन ने मुस्कुराकर कहा ठीक है दरबान, ये मेरे साथ हैं तो ठीक ऐसा दरबान रास्ते से हट गया । हम बरामदे में कुछ ही दूर गए होंगे कि लगभग बीस वर्ष का एक युवक मिल गया । वो डॉक्टर साहब आप आई आई है और ये मोहरों से दो कदम अलग ले जाकर कुछ बोला तो उत्तर में उसने कहा, हाँ जरूर उन्हें देख लेना जरूरी है । मोहन ने मेरा परिचय दिया । युवक का नाम अरुण था । वहाँ नंदूलाल बाबू का बडा लडका था । वहाँ हमें उस कमरे तक ले गया । बीच में दो कमरे थे । तीसरे दरवाजे पर जाकर उसने खटकटाया । जिसके बाद भीतर से कठोर स्वर गुराया और मैं मुझे परेशान मत करो मैं लिख रहा हूँ । अरुण ने कहा पिताजी, मैं अरुण डॉक्टर साहब आए हैं । अब मैं जरा दरवाजा खोल दो । दरवाजे को खोलने वाला शायद अरुण का छोटा भाई था । उसकी आयु करीब अठारह वर्ष होगी । अरुण में धीरे से पूछा क्या ले लिया उत्तर में अब मैंने निराश होकर सिर्फ हिला दिया । कमरे में घुसते ही मेरी दृष्टि पलंग पर पडी । वह कमरे के बीच में था जिसमें नंदूलाल बाबू अपने दुबली पतली काया में तकिये के सहारे अधलेटे पडे थे । हाथ में खुला पैन था और आग्नेय नेत्रों से हमें देख रहे थे । सिर के ऊपर फ्लोरोसेंट ट्यूब्स चल रही थी । बगल में टेबल लैम्प से रोशनी हो रही थी जिसके प्रकाश में उस व्यक्ति को स्पष्ट देखा जा सकता था । उनकी आयु करीब बावन तिरपन होगी । लेकिन बाल पूरे सफेद हो गए थे तो अच्छा पीली कद, छोटा शरीर का मांस लगभग सूख चुका था जिसके कारण उनके चेहरे के दोनों ओर की हड्डियाँ उठकर नुकीली हो गई थी और उनकी तोते जैसी नाक वोटों तक झुक आई थी । दोनों आंखों में एक विचित्र प्रकार की चमक थे किन्तु चमक के कोरों से एक मारी मछली का अहसास हो रहा था । उन का निचला होटल लटक कर झूला हुआ था । कुल मिलाकर उनकी आकृति पर एक महत्व असंतुष्ट जीजीविषा की प्रतिच्छाया लगती थी । उस प्रेत आत्मा जैसे शरीर का उन लोग काम कर मैंने देखा उनका दायां हाथ ऍफ जाता है । मरे हुए मैंने के किसी अंग पर बिजली का तार छू जाने से जैसे वहाँ एकदम उछलकर दूर गिरता है, वैसे ही उनका दायां हाथ रह रहकर उछल जा रहा था । नंदलाल बाबू द्वेषपूर्ण निगाहों से मुझे निरंतर घूम रहे थे । ऊंची गुर्राती आवाज में गरजे डॉक्टर तो हमारे सा यहाँ कौन है? कौन आया है यहाँ इससे हो चला जाए यहाँ से एक दम भी । मोहन ने मुझे देखकर संकेत में कहा कि उनकी बातों पर काम न रे हैं । उसके बाद उसने पास जाकर पलंग पर पहले कागजों को एक और सरकार कर अपने बैठने की जगह बनाई और उनकी कलाई हाथ में लेकर नब्ज जांचने लगा । नंदलाल बाबू विषैली हंसी के साथ कभी मुझे देखते कभी डॉक्टर को उनका दायां हाथ वैसे ही एक एक बार फिर जाता था । एक्शन बाद मोहन ने उनकी कलाई छोडते हुए कहा, तो आपने फिर ले लिया, ले लिया तो तो मैं क्या? तो मैं क्यों दर्द होता है? मोहन ने अपने होटल चबाते हुए कहा यहाँ करके आप खुद को ही बर्बाद कर रहे हैं और यही बात आप समझ नहीं रहे हैं और यही बात आप नहीं समझ रहे हैं आपने आपने मस्तिष्क को जहर से सडा दिया है । नंदूलाल बाबू ने व्यंग्य करते हुए मजाक किया, अच्छा ऐसा है मैंने अपने मस्तिष्क को सडा दिया है । वह यहाँ बात है लेकिन आपका मस्तिष्क तो चोर दुरुस्त है है ना? तो तुम पाकड क्यों नहीं लेते हैं? मेरे चारों ओर तो तो मैं पहला लगा रखा है, फिर क्यों नहीं पकडते? उनके चेहरे पर एक विकृत मुस्कान तैर गई । मोहन उठते हुए हताश स्वर में बोला आपसे बात करना ही फिजूल है । मैं समझता हूँ आपको आपके हाल पर ही छोड देना चाहिए । नंदलाल बाबू बेहुदा मजाक करते रहे । शहराम नहीं आती । डॉक्टर तो अपने को आदमी रहते हो । हाँ कर लो मुझे या फिर इसे जो उन्होंने चिढाते हुए अपना अंगूठा दिखाया । इतना बडा मजाक अपने बेटों के सामने मेरे भी बर्दाश्त से बाहर हो रहा था । मोहनका धर्य भी अब समाप्तप्राय हो चुका था । उसने कहा थी हैं अजीत देखकर जो भी अपना मुआयना करना चाहते हो कर लोग यहाँ सब आप सही नहीं होता । नंदूलाल बाबू का अब तक का घटिया मजाक एका एक रुक गया । उन्होंने मेरी और विषैली आंखों से देखते हुए कहा तो उनको होते हो तो कर क्या रहे हैं और मेरे घर में जब उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला तो वे बोले तो अपने को बडे तेईज मार खां समझते हो ना ऍम खोलकर सुन लो तुम्हारी चाले यहाँ नहीं चलेंगे तो वहाँ वहाँ से अन्यथा मैं पुलिस को बुलाता हूँ । सब चोर, उचक्के आवारा बदमाश इकट्ठा हो गए । यहाँ उन्होंने मोहन को भी अपनी गाडियों में समेट लिया । हालांकि मेरे आने का मकसद नहीं पाए, किंतु उन्हें शक जरूर हुआ । अरुण अब पछता रहा था । धीरे से मैंने कान में बोला इन की बातों पर ध्यान नहीं देना । एक बार जहर का नशा करने के बाद ये पागल हो जाते हैं । मैंने सोचा कि जो नजारा आदमी के निकृष्ट और जिन्होंने स्वरूप को दिखा सकता है, वह कितना खाता होगा । कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो मनुष्य की इस निम्न और विकृत अवस्था पर नियंत्रण लगा सकता है । आदमी किसी न राधा में स्थिति में गिर सकता है बे उनके इसने मुझे सारे तथ्यों को अच्छे से जांच कर मुआयना कर लेने को कहा था । इसलिए मैं माननीय मान कमरे की सभी वस्तुओं की सूची बनाने में लगा । कमरा काफी बडा था जिसमें कुछ चीजें थी जैसे पलंग, कुछ कुर्सियां, अलमारी और एक छोटी सी बेडसाइड टेबल । मेज पर टेबल लैंप के अलावा कागज, पैन आदि लेखन सामग्री थी । लिखे हुए कागज पहले हुए थे । मैंने कागज को उठाकर पडने की चेष्टा की, पर दो दिन लाइनों के बाद मुझे पढा ही नहीं गया । सब अश्लील बातों से भरा हुआ था । मोहन सही कह रहा था कि उनका लेखन एमिल जोला जैसे लेखक को भी शर्मसार कर देगा । लेखक महोदय ने कमाल और क्या था? कुछ मजेदार लाइनों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्हें लाल स्याही से मार्ग किया था । सच में मैंने अपने जीवन में ऐसा निकृष्ट और घृणित मस्तिष्क नहीं देखा था ।