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Shri Krishna (Tritiya Adhyay) 4.3 in Hindi

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AuthorNitin
श्री कृष्ण Written by गुरुदत्त Published by हिंदी साहित्य सदन Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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तृतीय अध्याय भाग तीन । इस प्रकार युद्ध अठारह दिन तक चलता रहा । अठारह दिन सबको रोसन्ना छिन्न भिन्न हो गई । फ्राय सैनिक मारे गए और जो बचे थे वे रणभूमि छोड भाग खडे हुए । पूर्व में केवल दुर्योधन बचा था और वह भी समीप के एक तालाब में जा छुपा था । युद्ध समाप्त हुआ तो कृष्ण ने देखा दुर्योधन मारा नहीं गया । मैं कहीं भाग गया है । उसका विचार था कि यदि वह जीवित और स्वतंत्र रहा तो उन्हें युद्ध की तैयारी कर सकेगा । इस कारण पांडवों ने दुर्योधन को ढूंढने के लिए चारों गुप्चर लगा दिए । सिंगर ही पता चल गया । दुर्योधन संदीप के तालाब में छुपा हुआ है । ये सूचना पाते ही सब पांडव अपने अपने आयुध ले तलाब को चारों ओर से घेरकर खडे होंगे और दूरी है तुम को ललकारने लगे । आगे दुर्योधन निकला और किसी भी एक से युद्ध करने के लिए तैयार हो गया । भीम से उसका गदा युद्ध हुआ । इस ज्यादा युद्ध में भीम ने नियम के विपरीत नाभि के नीचे वारकर दुर्योधन को इतना घायल कर दिया कि उसकी दोनों जाएंगे चूर चूर हो गया । इस युद्ध को बलराम भी देख रहा था । दुर्योधन बलराम का समय था । मैं तो ही दुर्योधन की ओर से लडने वाला था परन्तु जब कृष्ण ने ये कहा यदि बलराम स्वयं इस युद्ध में लडेगा तो वह भी आपने सुदर्शनचक्र के साथ लडेगा । इस पर दुर्योधन के हित में ही उसने युद्ध में लडना स्वीकार किया था । वाॅयलेशन को सालों के साथ सुदर्शनचक्र से युद्ध करते देख चुका था जो पूर्ण यादव सेना नहीं कर सकी थी । भैया के लिए प्रश्न ने कर दिखाया था सालों की पूर्ण सेना का विनाश कर दिया इस कारण में समझता था यदि कृष्ण सुदर्शनचक्र के साथ युद्ध में उतर आया तो दुर्योधन के जीतने की कुछ भी आशा नहीं हो सकती । वह युद्ध के दिनों में कुरुक्षेत्र भूमि के समिति घूमता रहा था । अंतिम दिन जब भीम और दुर्योधन का युद्ध हुआ तो दर्शक के रूप में वहाँ उपस्थित था । टीम ने जब दुर्योधन की जांघ पर वार किया तो दुर्योधन की दोनों जांघों की हड्डियाँ चूर चूर हो गई और दुर्योधन भूमि पर लेट गया । भीम ने नियम विरुद्ध नाबी के नीचे वार करने पर बलराम को क्रोध हो गया और वह भीम को युद्ध में ललकारने लगा । कृष्ण ने बीच बचाव करना चाहा तो बलराम ने भीम पर युद्ध का नियम भंग करने का आरोप लगा दिया इस पर कृष्ण ने कहा भैया जो व्यक्ति जीवन भर अधर्मयुक्त व्यवहार करता रहा हूँ उसके लिए एक आद युद्ध के नियम भंग करने की दुहाई देना कैसे सुबह दे सकता है? धर्म व्यवहार उनके साथ ही किया जाता है जो हम धर्म का पालन करने वाले हैं । इस पर भीम ने का मैंने इसकी जाऊंगी । इस कारण थोडी हैं क्योंकि इस ने भरी सभा में द्रोपदी को अपनी जान पर बैठने का आह्वान किया था । मैंने उससे नहीं संकल्प क्या हुआ था कि मैं इसकी जांच तोडूंगा । दुर्योधन की मृत्यु पर महाभारत का ये युद्ध समाप्त हुआ परंतु सोथा माने अपनी क्रोध को निकालने के लिए रात के समय पांडव सेना के शिविर को घेर लिया और अपने पर मास्टर्स से पूर्ण शिविर को फूंक दिया । संयोगवश पांडव और कृष्ण युद्ध की सफल समाप्ति पर समीर भी एक मंदिर में पूजा के लिए गए हुए थे । इस कारण पूर्ण सेना में से ये छह व्यक्ति ही बच्चे कुछ योद्दा साइकल ही युद्ध जीतने की खुशी में घरों को चल दिए थे । इनके अतिरिक्त पूर्ण कश्मीर के प्राणी ब्रह्मास्त्र की अग्नि में जल मारे चाहते का जब पांडव और कृष्ण मंदिर से लौटे तो शिविर को सैनिकों के साथ बस हम पाया यह देख शोक अभिभूत एक दूसरे का मुख देखते रहेंगे । पांडवों के सापुतारा सिविर में ही जलकर मारे गए थे । अभी मन की पत्नी उत्तरा जो पति की मृत्यु के शोक में हस्तिनापुर में ही थी । वह बच गई और उस समय उसके गर्भ स्थित हो चुका था । बस वह अगर विस्तृत बालक ही पूर्ण ऍम परिवार में से बचा था, से सब एक दूसरे से लडते हुए तथा स्वीट की अग्नि में मारे गए थे । इस विशाल जनसंहार को देख युनिस्ट सूखा मजबूत होता था । राजपाट सबको छोडकर वन जाने को तैयार हो गया । युधिष्टर के इस व्यवहार से चारों भाई और कृष्ण बहुत परेशानी अनुभव करने लगे । कृष्ण ने रिश्तों को समझाने का यत्न किया उसने का भैया अब राज्यकार्य संभाल किसके लिए संभालना सब तो मारे ही जा चुके हैं कृष्ण इस उत्तर को सुनकर सोम पश्चाताप करने लगा । एक किस्म उसकी सहायता उसने की है । वह समझ नहीं रहा था कि राजा युद्ध अपने तथा अपने परिवार वालों के लिए नहीं लडा करते हैं । प्रत्युत प्रजा के हित के लिए लडते हैं । कृष्ण ने मिस्टर को समझा है भैया ट्यूरिस्ट यदि युद्ध का लडना अपने परिवार का हित मात्र था तो परिवार को तो तुम युद्ध में झोंक रहे थे । ये परस्पर विरोधी व्यवहार भला किस लिए किया था? नहीं मिस्टर ये युद्ध अपने पुत्र पोत्रों के लिए नहीं लगाया गया था । ये तो मानव समाज में जो कुछ विषाक्त काटेदार झाडियां उत्पन्न हो गई थी और जो पूर्ण समाज को विषाक्त कर रही थी, उन को नष्ट करने के लिए था । ऐसा करने में ही तो परिवार मारा गया । जिस मानव कल्याण के लिए तुमने अपने पूर्ण परिवार की अ होती दे दी है, उस कल्याण कार्य को करोगे तभी तो तुम इन हत्याओं कि पाप से मुक्त हो होगी । जिस जिस को इस बात का कुछ ज्ञान हुआ तो राज्य संभालने के लिए तैयार हो गया क्या

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श्री कृष्ण Written by गुरुदत्त Published by हिंदी साहित्य सदन Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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