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द्वितीय अध्याय बाग छह दुनियो जान के साथियों ने दुर्योधन को कहा कि उसने अपने मित्र शिशुपाल से धोखा किया है । जब वह यह की सभा में कृशन के अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध कर रहा था तो उसे अपने सैनिकों से यह मंडप पर आक्रमण करवा सब हम लोगों को वहाँ से बाहर देना चाहिए था । परन्तु दुर्योधन का कहना था शिशुपाल के बीच में और धूर्त राष्ट्र को बुड्ढा और बंदा कहने से उसके सब भाई शिशुपाल से नाराज हो गए थे । इस कारण यदि मैं शिशुपाल की सहायता के लिए उनसे कहता भी तो मेरी आज्ञा का पालन हूँ नहीं करते । सकू नहीं की अपनी योजना थी । उसने कहा युधिष्टर के इस युग में भूमंडल का ब्राह्मण वर्ग उसके पक्ष में हो गया है । इस कारण उसे उन ब्राह्मणों की दृष्टि में पतित और निश्चित किए बिना उससे युद्ध नहीं हो सकेगा । आते हैं मैं यूज मिस्टर को विद्वानों और भले लोगों की दृष्टि में प्रशिक्षित करने का यत्न करूंगा । जब ऐसा हो जाएगा तब उससे युद्ध ठीक रहेगा । कदाचित तब कृशन भी उसकी सहायता नहीं करेगा । सकू नहीं की योजना हस्तिनापुर जाकर पूर्ण हुई और तब मिस्टर को हस्तिनापुर जाकर कुछ दिन रहने का निमंत्रण भेज दिया गया । इस निमंत्रण को लेकर विदुर इंद्रप्रस्थ गया । रजिस्टर के आते ही जुआ खेलने का निमंत्रण उपस् थित कर दिया गया है । जो एक ऐसी चीज है इसमें हारने वाले को रस आने लगता है और मैं सरोना से पहले ही उसे छोडता नहीं । यही बात मिनिस्टर की हुई है । वैसा खूनी से जुआ खेलने लगा तो फिर हार नहीं लगा । वह निरंतर हारता जाता था और उतरोत्तर बडे हैं और बडे दाव लगता जाता था । अंत में डिस्टर्ब अपना राजपाट हार गया । तदंतर उसने अपने को दांव पर लगा दिया । फिर भाइयों को और पत्नी द्रोपदी को भी दांव पर लगा दिया । सब कुछ हार जाने पर दुनिया धन्य भरी सभा में और पांच हो गए । समूह द्रौपदी का अपमान किया । उसे भरी सभा में नग्न करने का आदेश दे दिया । इस पर परिवार के वृद्धजन जो हम बैठे थे उन्होंने इसमें हस्तक्षेप किया और इस सत्र और संधि हो गई । ऍम भाइयों सहित बारह वर्ष तक वन में रहे और तेरह वर्ष मैं अज्ञातवास करें तब उसको राज्य वापिस कर दिया जाएगा । दृष्टिसे मान हस्तिनापुर से ही वन को चल पडा । उसके भाई और द्रौपदी भी उसके साथ वन को चले गए । कृष्ण उस समय सालों के साथ युद्ध में रखा था । सालों पर विजय के उपरांत उसे सूचना मिली कि पांडव जो इनमें सबकुछ हारकर और अपमानित होकर वन में भटक रहे हैं, आती है उन को ढूंढता हुआ वन में जा पहुंचा । जब पांडवों मिले तो उसने यूज सिस्टर से पूछा ये तुमने क्या क्या है? सिस्टर ने पूर्ण व्रतांत कि वह कैसे जुडे में सबकुछ हार गया और फिर धृतराष्ट्र के संधि कराने पर किस सबसे वनों में चलाया है? बताया और हम तो भैया कृष्ण ने कहा तुमने राज्य दांव पर लगाया क्या तुम राज्य के स्वामी थे क्या? राज्य तो प्रजा कि तुम्हारे पास धरोवर था तो अपनी वस्तु तो दांव पर लगा सकते थे परंतु तुमने दूसरे की डर हुआ हैं । कैसे दाव पर लगा दी और फिर तुमने भाइयों और पत्नी को भी दांव पर कैसे लगा दिया? ये तुम्हारे कृष्णदास है क्या? यूज सिस्टर ने कह दिया तो ये सब मुझे छोड कर जा सकते हैं । ये अपने को हारा हुआ नहीं भी मान सकते हैं । तो आप ने बताया भैया कृष्ण ये मेरे पति है । मैं इन की अपने मुख से निंदा नहीं कर सकते । इस पर भी मैं आपने कुछ हुए में हारी हुई और वन में भेजी गई नहीं मानती परंतु जो धर्म का बंधन इनसे है वह तोडने सकती है । इसी कर मैं इनके साथ चली आई हूँ और अर्जुन तुम बताओ? कृष्ण ने तब अर्जुन से पूछ लिया मैं युद्ध कर विजय प्राप्त कर सकता हूँ । यदि भैया मुझे कहते हैं तो मैं एक्शन में ही इन सबको को हम लोग पहुंचा देता हूँ परन्तु में राज्य नहीं कर सकता । इस कारण भैया के साथ चल पडा हूँ । बीम ने भी ऐसा ही उत्तर दिया । इस पर कृष्ण ने कहा मैं तो ये दृष्टि को ये सम्मति दूंगा कि वह वनों की धूल छानने किस्तान पर सीधा इंद्रप्रस्थ जा पहुंचे तो वहाँ अपने भाइयों के बल के आश्रय अपना राज्य वापस लेने मिस्टर का उत्तर था भैया मैं ये नहीं कर सकता । मैं महाराज धृतराष्ट्र के समूहों वचन देकर आए हूँ कि बारह वर्ष तक बहनों में रहूँ और वर्ड्स अज्ञातवास करूंगा । रजिस्टर दोस्तों और सत्रों को दिए वचन पालन करने योग्य नहीं होते हैं । उन्होंने तुमसे छलना के लिए तुम्हें भी यथायोग्य व्यवहार अपनाते हुए उनको छल देना चाहिए । नहीं भैया, मैं इसे अधर्म समझता हूँ । क्या वचन पालन करना? महान धर्म में मैं वचनबद्ध नहीं करूंगा । कश्मीर के समझाने का कुछ भी फल नहीं निकला । ऍम इसे भाग्य का खेल समझ लो । टूट गया । रजिस्टर ने जुआ खेलने और उसके अपने राज्य भाइयों तथा पत्नी को हार देने की बात भूमंडल पर फैल गई । जहाँ यह के उपरांत यूज सिस्टर की बुद्धिमता, धर्मपरायणता और राज्य करने में कुशलता की महिमा गाई जा रही थी । वहाँ उसके नाम पर सब तू तो करने लगे हैं । सपनी की योजना सफल हो गए । उसने दुर्योधन को कहा कि अब तुम ही दुष्ट की युद्ध युद्ध करोगे तो भूमंडल के प्राय रेस तुम्हारी सहायता करेंगे । इससे तुम्हारी विजय होगी । कृष्ण पांडवों की मामा का लडका था । पानी की मांग पंती कृशन की फूफी थी । इसके अतिरिक्त कृष्ण की बहन का अर्जुन से विवाह हो गया था । इस कारण प्रश्न पांडवों की दुर्गति देखता था तो बहुत दुःख हो करता था, परन्तु मैं जानता था कि ये युद्धस्तर की अपनी करनी का फल । इसी कारण मैं पानी की निंदा सुन चुप कर जाता था । तेरे वर्ष व्यतीत हो गए । बारह वर्ष तक पांडव बनो भटक रहे और तेरह वर्ष उन्होंने विराट नगर के राजा के पास बहुत छोटे दर्जे की सेवा कार्य लेकर व्यतीत किया । एक दिन महारानी का भाई कीचक अपनी बहन से मिलने अंतपुर में गया हूँ तो वहाँ अपनी बहन की सेवा में एक सुंदर सेविकाओं को देख उसे पत्नी रूप में प्राप्त करने की इच्छा करने लगा । उसने अपनी बहन महारानी से अपनी इच्छा का वर्णन किया तो बहन ने कह दिया वैसे हम उससे बात कर लें । ईचक ने सुरेंद्र जी से बात की है । सुरेंद्र ने कह दिया कि वह विवाहित है और पति वर्ता स्त्री हैं । मैं कीचक से अधर्मयुक्त संबंध बनाना नहीं चाहती थी । पर तो जब कीचक उन महारानी ने भी इस दासी के रूप में ग्रुप को आज्ञा दी तो वह कुछ उत्तर नहीं दे सके । सिरेंद्र ने कह दिया कि उसका पति इसी नगर में रहता है और यदि उसे पता चल गया की महारानी का भाई उससे दुराचार करना चाहता है तो वह उसकी हत्या भी कर सकता है कि चक विराट नगर में एक महान योद्धा समझा जाता था । इस कारण महारानी ने नरेंद्री की इस सूचना की चिंता नहीं कि अब अपनी लाज बचाने के लिए द्रोपदी ने भीम से बात की । इस पर भीम ने कीचक का वध करने का निश्चय कर लिया । रात के समय जो भी के स्थान पर मुख पर चादर ओड कर लेट गया जबकि चक उसके पास आया तो भीम ने उसको इतने बाल से अपनी बुझाओ में कैसा की, उसका पिंजरे चूर चूर हो गया । उसकी वहाँ हो गयी । भीम ने उसका सा उठाकर प्रांगण में फेंक दिया । रात की चक्की मृत्यु का समाचार दूर दूर तक फैल गया । कीचक अति बलवान और अजय समझा जाता था । इस कारण उसके वहाँ पर लोग करते थे । ये समाचार हस्तिनापुर भी पहुंचा तो कोर उन्होंने अनुमान लगाया कि चक्का वक्त धीमी कर सकता है तो उन्होंने विराटनगर पर आक्रमण करने का फैसला कर लिया । वे समझते थे यदि भीम का वहाँ होना सिद्ध हो जाएगा तो ये ऍम आदि एक वर्ष तक गुप्त रहने की शर्त टूट जाएगी और वह धृतराष्ट द्वारा कोई संधि में उन्हें वन को चल देगा । इसका उसने सेना लेकर विराटनगर पर आक्रमण कर दिया । परंतु कीचक के मारे जाने का समाचार हस्तिनापुर तक पहुंचते और उसके प्रतिकार में सेना तैयार कर विराटनगर तक पहुंचने के गुप्तवास की एक वर्ष की अवधि व्यतीत होगी । इस पर भी दुर्योधन आदि विराटनगर पर आक्रमण कर वहाँ की गोविन्द और अन्य पशुओं को बलपूर्वक चुराकर ले जाने लगे । इसपर विराटनगर का महाराज अपनी छोटी सी सेना लेकर लोगों को छुडाने चल पडा । उनके लोगों के चोरी करने वालों के पीछे पीछे जाने पर दूसरी ओर से भी इस कारण इत्यादि ने आक्रमण कर दिया । विराट नगर में उस समय वहाँ का राज कुमार ही था, परंतु कोरवों से युद्ध में डरता था अर्जुन जो नृत्य संगीत की शिक्षिका के रूप में वहाँ था । राजकुमार का साथी बंद उसे युद्धभूमि में ले गया । मार्ग में अर्जुन ने अपना कवच और वस्त्रादि धारण कर लिए और राजकुमार का सारथी बंद श्रम युद्ध के लिए चल पडा । अकेले अर्जुन ने दुर्योधन आदि को मार भगाया । दुर्योधन के रत के अश्विनी घायल हुए तो उसे युद्धभूमि से चला आना पडा । करण घायल हो वहाँ से चलाया । बीस भी सबको भागता देख समझ गया कि विरोधी पक्ष में अर्जुन नहीं हो सकता है । उसने अर्जुन को कहाँ? हमने तुम्हारे गुप पाकिस्तान का पता पा लिया है । तुम पकडे जाने के कारण और फिर वन को लोड जाओगे । अर्जुन ने बीस उनको कहा पिता मैं तेरे वर्ष समाप्त हो चुके हैं, गिनती कर लेना, इस कारण हम सब अपना राज्य लेने आएंगे हूँ हैं ।
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