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ऍम के सोता हूँ को सुरेश मुदगलकर नाम उसका सुने जो मन चाहे आप सुन रहे हैं गुरुदत्त लेकिन श्रीकृष्णन द्वितीय अध्याय ये है वह था जब पांडु के पुत्र युधिष्टर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव अपने पिता पांडु की मृत्यु के उपरांत हस्तिनापुर में आकर रहने लगे थे । जिस समय पांडू हस्तिनापुर में रहता था । ये प्रेस उपस्तिथ हुआ था कि महाराज पद पांडेय को मिलना चाहिए । कारण ये है कि पांडु का बडा वाई धृतराष्ट्र नेत्रविहीन था और सब राज्यकार्य को पांडो ही करता हूँ । इस पर परिवार के प्रमुख बीस पिता नहीं ये व्यवस्था दे दी कि धृतराष्ट्र भारत सम्राट बना रहे और उसके स्थान पर पांडू राज्य कर दोनों भाइयों के घर इसके पुत्र पहले हो । मैं धृतराष्ट्र के उपरांत राजगद्दी का अधिकारी उस समय धृतराष्ट्र का विवाह हो चुका था । पांडु अभी कुंती के सोमवर पर गया ही था । इस कारण धृतराष्ट्र मान गया । मैं समझता था कि उसके घर पुत्र पांडु से पहले ही होगा । परन्तु भाग्य की विडंबना यह हुई कि पांडु का विवाह कुंती से हो गया और उसके घर लडका पहले हुआ और धृतराष्ट्र के पीछे रजिस्टर दुर्योधन से बडा था । अच्छा जब युवराज पद पर नियुक्ति का प्रश्न स्थित हुआ तो यूज सिस्टर की आयु और उसके गुण तथा स्वभाव को देखकर सर्वसम्मति से ये निश्चित हुआ कि युवराज पर यू मिस्टर को दिया जाएगा । रिश्तों का जान वन में हुआ था और जब से पांचों भाई हस्तिनापुर में आए थे, वे लोकप्रिय होने लगे थे । इससे धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन उसके भाइयों को एशिया होने जब उनको ज्ञात हुआ कि युवराज रजिस्टर हो गया है तो उसने अपने मामा शकुनी की सहायता से पांडवों की हत्या कर देने का सडयंत्र चाहिए । एक दिन सबको राॅ जल बिहार के लिए गए हुए थे कि वहाँ भीम के भोजन में विश्व मिला दिया गया । विश्व के प्रभाव से जब भी बेहोश हो गया तो रात को उसे उठाकर गंगा नदी में बहा दिया गया और तो वासुकी नाग की सहायता से भीम बच निकला । वासुकीनाग उन दिनों गंगा यमुना के पीस के बीहड वन में जो पांचाल देश के दक्षिण में था । आपने नाग बन्दों के साथ रहता था । भीम हाथ मुँह से झगडा हुआ । गंगा में बहता हुआ चाह रहा था कि वासुकीनाग के नाग जातीय साथियों ने उसे देख लिया । उन्होंने उसे गंगा से बाहर निकाला और अपने राजा के पास ले गए । जब उन्हें पता चला कि वह हस्तिनापुर का राज कुमार है तो उसे वापिस स्पष्ट हापुर भेज दिया । भीम के जीवित लौटाने पर दुनिया उनको बहुत दुःख हुआ । देश पिता मेरे को दुर्योधन की करतूत का पता चल गया था परंतु अंधे धृतराष्ट्र को अपने पुत्रों पर छत्तीस नहीं देख उसने दुर्योधन को केवल डांट डपट कर छोड दिया । इस डांट डपट से तो दुर्योधन और भी जुड गया । इसके साथ ही अर्जुन की धनुर्विद्या में निपुणता देखनी दुर्योधन एशिया की अग्नि में जलने लगा । मैं यत्न करने लगा की किसी ने किसी प्रकार पांडु के पुत्र पांडवों को समाप्त कर दिया जाएगा । इस समय तक लगभग नीचे ही था की धत राष्ट्र के उपरांत युधिष्टर राज्याधिकारी होगा । दुर्योधन और उसके भाई ये नहीं चाहते थे रहते उन्होंने एक योजना बनाई । उन्होंने महाराज झोतराडा से कहकर पांडवों के लिए अलग रहने की व्यवस्था कर दी । उनके लिए जंगल में एक बार सात बनवाया गया जिसके मसाले में लाख इत्यादि शीघ्र चलने वाले पदार्थ मिले थे । उनकी योजना आई थी कि एक रात चुपचाप कुछ प्रसाद ने आग लगा दी जाए जिससे सभी पांडव उसमें जलकर भस्म हो जाएगा । परन्तु पांडेय को इस संयंत्र का ज्ञान हो गया और एक रात उन्होंने श्रम, उस प्रसाद आग लगा दी और हम अपनी माता सुनती को साथ लेकर एक सुरंग के मार्ग से बाहर निकल गया । प्रसाद को भस्म हुआ देख सब लोगों ने ये समझा कि पांडव भी उसमें भस्म हो गए । युगदृष्टा राजी तो धूर्त राष्ट्र के पुत्रों से मैं बीस वन में छुप गए और धत राष्ट्र के पुत्रों दुर्योधन आदि ने ये विख्यात कर दिया कि पांडो मकान में जल गए हैं । इस पर परिवार में बहुत शोक मनाया गया और सर्वत्र ये विख्यात किया गया । पांडवो अपनी माता कुंती के साथ भवन में जल गए हैं । इस प्रकार दुर्योधन निश्चित हो पिता से राज्य प्राप्त करने की लालसा करने लगा हूँ । इस समय पांचाल नरेश द्रुपद ने अपनी एकमात्र पुत्री द्रोपदी का स्वयंबर रचा दिया । नवंबर में ये सत्र की गई की एक खंबे से लटक रही मछली के नीचे एक चक्र घूम रहा होगा और उसके नीचे एक निर्मल जलकुंड होगा । उस जल कुल में मछली की परछाई देख उसकी आपको चक्र के करोगे । बीच में से तीन के साथ निशाना लगाना है । जो निशाना लगाने में सफल होगा वह द्रोपदी से भरा जाएगा । इसके लिए देश विदेश में राजकुमार और युवक नरेश आए थे । दुर्योधन और कर्ण भी नवंबर में प्रतियोगिता में भाग लेने आए युधिष्टर इत्यादि वी बहनों में अज्ञात रहते हुए नवंबर का समाचार पाकर ब्रह्मण भिखारियों के देश में नवंबर में आगे लक्ष्य भेदने की प्रतियोगिता हुई । कई राज्यों ने इसमें भाग लिया । दुर्योधन तथा करने भी इसमें भाग लिया परंतु कोई भी उस लक्ष्य को भेदने में सफल नहीं होगा । जब राजा लोग इस प्रतियोगिता में सफल हुए तो अर्जुन मैदान में आया और अपने को एक निर्धन ब्राह्मण कहकर प्रतियोगिता में भाग लेने की स्वीकृति मांगने लगा । एक भ्रमण को इनकार नहीं किया जा सका और भ्रमण के वे इसमें अर्जुन ने मछली की । आपको वहाँ रखे तीन से बीदा तो चारों ओर से जय जयकार होने लगी थी । परंतु करण और कुछ अन्य राजा एक राजबंस की कन्या को एक निर्धन ब्राह्मण के घर जाने में आपत्ति करने लगे हैं । इस नंबर समारोह में बहुत से ब्राह्मण लोग भी दर्शक के रूप में आए हुए थे । जब उन्होंने एक युग के ब्राह्मण को धम्मन होने के नाते राजकन्या को भी वहाँ के अयोग्य कहा गया सुना तो उन्होंने इसे अपना अपमान माना । परिणाम ये हुआ कि सोमवार समारोह में ही दो पक्ष परस्पर एक दूसरे वर्ग की निंदा करने लगे । इस समय ब्राह्मण वर्ग में बैठा हुआ । भीम उठकर मैदान में आगे अर्जुन और भीम मैदान में खडे हुए तो द्रोपदी जो अपने को वही गई अनुभव करते थे । उनके पीछे खडी हूँ करण और कुछ अन्य राजा धनुष मान ले इन पर आक्रमण करने की तैयारी करने लगते हैं । हमने यज्ञमंडप का एक नंबर उखाड लिया और उसे घुमाता हुआ इन राज्यों पर टूट पडा । अर्जुन मुस्लिम को निशाना लगाने के लिए रखे धन उसको उठाकर राजाओं पर बाढ वर्ष करने लगा । घमासान युद्ध हूँ और इस युद्ध में कर्ण घायल हो गया । अन्य कोर्स तथा दूसरे राजा भयभीत हो भाग मिलेंगे । इस समय महर्षि व्यास जो इस नंबर में स्थित थे, भागते हुए राजा को संबोधन कर कहने लगे की छतरी हीरो सुनो ब्राह्मण स्टेशन में छतरियों से कम नहीं है । इस कारण तुम्हारी ये आपत्ति की निशाना लगाने वाला भ्रमण होने से राजकन्या को निभानी नहीं है । उचित नहीं । आवश्यक बात ये है कि देवी द्रोपदी क्या चाहते हैं इसका नंबर है इस कारण उसकी इच्छा हमें स्वीकार करनी चाहिए । राजा हूँ मैं तो गर्म हो चुकी थी । भीम ने उस खम्बे को कंधे पर ऐसे रखा हुआ था जैसे कोई हल्की सी हूँ । सब भी थे । महर्षि व्यास ने ये कहने पर कितना आपकी निश्चय करेगी कि वह वर्ली गई है अथवा नहीं । विरोधी ने मेहसी की ओर देखा और सभासदों को सुनाते हुए कह दिया मैं समझती हूँ किस नंबर की सर, इस वेज ने पूर्ण कर दी है और तदानुसार मैं इसे वर्ती हूँ । ग्रुप के इस वचन पर द्रोपदी का भाई पिछले समझाने आगे बढे । मैं उसे कहना चाहता था कि वे भ्रमण होने से सेल तो है परंतु निर्धन प्रतीत होता है । तुम्हें उनके घर में कष्ट होगा परन्तु उतरो की घोषणा ब्राह्मण वर्ग में भी सुना था और सब ने आगे बढ भीम अर्जुन और द्रोपदी को घेर लिया था और राजकुमारी द्रोपदी तब मनवीर की जज कार्य करते हुए एक विजय यात्रा के रूप में सब नगर की ओर चल पडे । व्यास ने दुरुस्त धूमन कुछ समझाया । उस ने कहा है कुमार पता करो कि ये भी कौन है और कहाँ है देश । दमन और कृष्ण इस विजय यात्रा के पीछे पीछे उन ब्राहमणों निवास स्थान का पता करने और उन के विषय में जानकारी प्राप्त करने चल पडेंगे ।
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